Published on Oct 05, 2023 Updated 0 Hours ago

स्पेस टेक्नोलॉजी के ग्लोबल गवर्नेंस की ज़रूरत बढ़ती जा रही है. अंतरिक्ष यात्रा के मामले में पहले और सबसे कामयाब देश होने की वजह से भारत नियमों को तय करने वाले देश की भूमिका निभा सकता है

अंतरिक्ष तकनीक और ग्लोबल स्वास्थ्य: वैश्विक स्तर पर रेगुलेटरी गवर्नेंस के ढांचे की ज़रूरत!

23 अगस्त 2023 को चंद्रयान-3 की कामयाबी ने भारत को चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला चौथा देश और चंद्रमा के साउथ पोल पर पहुंचने वाला पहला देश बना दिया. 14 जुलाई 2023 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के द्वारा चंद्रयान-2 के अगले मिशन के रूप में चंद्रयान-3 को लॉन्च किया गया था. चंद्रयान-3 का लक्ष्य अलग-अलग ग्रहों की खोज के लिए ज़रूरी तकनीक को विकसित और प्रदर्शित करना था. ये इससे साफ है कि मिशन के तीन हिस्सों- लैंडर मॉड्यूल (LM), प्रॉपल्शन मॉड्यूल और रोवर- को स्वदेशी तौर पर विकसित किया गया था. इस मिशन की सफलता भविष्य में अंतरिक्ष से जुड़ी दिलचस्पियों के लिए अवसरों का द्वार खोलता है. वैसे तो भारत इस क्षेत्र में लगातार आगे बढ़ रहा है लेकिन इसके साथ-साथ वो सहयोग, ख़ास तौर पर गवर्नेंस में, की आवश्यकता को भी सुनिश्चित करता है. इसरो की टीम को बधाई देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘स्पेस टेक्नोलॉजी इन गवर्नेंस’ की बनावट पर भी बोले और इस तरह उन्होंने अलग-अलग देशों में बढ़ते स्पेस कंपीटिशन के बीच अंतरिक्ष तकनीक की विश्व व्यवस्था के लिए आवश्यकता को उजागर किया. 

इसरो की टीम को बधाई देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘स्पेस टेक्नोलॉजी इन गवर्नेंस’ की बनावट पर भी बोले और इस तरह उन्होंने अलग-अलग देशों में बढ़ते स्पेस कंपीटिशन के बीच अंतरिक्ष तकनीक की विश्व व्यवस्था के लिए आवश्यकता को उजागर किया.

पिछले छह दशकों के दौरान सोवियत संघ के स्पुतनिक 1, जो कि पहला आर्टिफिशियल सैटेलाइट था, के लॉन्च के समय से धरती-अंतरिक्ष का मोर्चा (अर्थ-स्पेस फ्रंटियर) एक ख़ास क्षेत्र से काफी ज़्यादा बदलकर बहुत अधिक स्टडी प्रोग्राम और रिसर्च की पहल वाला एरिया बन गया है. स्पेस सेक्टर में शुरू में सिर्फ दो सुपरपावर थे लेकिन आज इसमें कई देशों और प्राइवेट कंपनियों के बीच कंपीटिशन है. अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में नए आविष्कार और इनोवेशन इंसानों की भलाई को बढ़ाने वाले औजार साबित हुए हैं. इसके संभावित इस्तेमाल को लेकर खोज जहां जारी है, वहीं अलग-अलग देशों के बीच बढ़ता मुकाबला और संदेह में बढ़ोतरी की वजह से एक सक्षम गवर्नेंस के ढांचे को लेकर आवश्यकता पर चर्चा तेज़ हुई है. इसके अलावा, वर्तमान संदर्भ में उनके इस्तेमाल की छानबीन करने के लिए मौजूदा व्यवस्था के तौर-तरीकों पर गौर करना ज़रूरी है. 

अंतरिक्ष तकनीक और स्वास्थ्य का इंटरफेस 

स्वास्थ्य एक ऐसा महत्वपूर्ण सेक्टर है जिसमें स्पेस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल ख़ास तौर पर मददगार है. स्पेस टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में तरक्की ने तापमान और नमी जैसे फैक्टर पर निगरानी और विश्लेषण की तकनीकों को बेहतर बनाया है जिससे महामारी विज्ञान में इस्तेमाल के लिए संभावना दिखी है. टेलीमेटरी और इलेक्ट्रॉनिक मेडिकल सिस्टम के गठजोड़, जो स्पेस टेक्नोलॉजी के उपोत्पाद (स्पिन-ऑफ) के रूप में जाने जाते हैं, ने हेल्थकेयर डिलीवरी बेहतर बनाई है जैसे कि हेल्थकेयर स्पेशलिस्ट से रिमोट कंसल्टेशन के लिए लिंक उपलब्ध कराना. दुनिया भर में कई संक्रामक बीमारियों के मौजूद होने, जो कई मामलों में किसी देश के विकास की राह को तय करती हैं, की वजह से उनके बारे में डेटा होना ज़रूरी है ताकि उनसे मुकाबले के लिए रणनीति और दवाई विकसित की जा सके. इस मामले में अलग-अलग सैटेलाइट से हासिल डेटा को मिलाना बीमारियों के फैलने में प्रभाव और योगदान देने वाले कारणों के अध्ययन की क्षमता बढ़ाने में महत्वपूर्ण है. इसके अलावा, ये संक्रामक बीमारियों के हॉटस्पॉट्स की पहचान कर सकता है जिससे सुधार के उपायों के लिए इलाकों की रूप-रेखा तैयार करने में मदद मिलती है. इस तरह बीमारी के भौगोलिक फैलाव के पैटर्न की पहचान करने के लिए लगातार निगरानी और भविष्य में प्रकोप के लिए असुरक्षित इलाकों की पूर्व सूचना में आसानी होती है. 

दुनिया भर में कई संक्रामक बीमारियों के मौजूद होने, जो कई मामलों में किसी देश के विकास की राह को तय करती हैं, की वजह से उनके बारे में डेटा होना ज़रूरी है ताकि उनसे मुकाबले के लिए रणनीति और दवाई विकसित की जा सके.

अंतरिक्ष तकनीकों ने जोखिम में कमी और आपदा प्रबंधन के लिए भी महत्वपूर्ण आंकड़े मुहैया कराए हैं. उदाहरण के लिए, भारत सरकार ने मॉनिटरिंग और अर्ली वॉर्निंग सिस्टम का इस्तेमाल उष्णकटिबंधीय चक्रवाती तूफानों (ट्रॉपिकल साइक्लोन्स) की आशंका वाले भारत के पूर्वी तट के किनारे में रहने वाले लोगों को निकालकर सुरक्षित ठिकानों तक ले जाने में किया है. इस प्रकार, प्रभावी ढंग से अंतरिक्ष तकनीक का इस्तेमाल आर्थिक नुकसान और जान की हानि को कम करता है. इस तरह के इस्तेमाल की वजह से संयुक्त राष्ट्र (UN) ने स्पेस-बेस्ड इन्फॉर्मेशन फॉर डिज़ास्टर मैनेजमेंट एंड इमरजेंसी रेस्पॉन्स (UN-SPIDER) और UN ऑपरेशनल सैटेलाइट एप्लिकेशन प्रोग्राम (UNOSAT) तैयार किया है जो आपात स्थिति में और आपदा राहत के दौरान ज़रूरी अंतरिक्ष आधारित सूचना तक पहुंच उपलब्ध कराते हैं. अंतरिक्ष तकनीकों का इस्तेमाल जहां समाज के लिए फायदेमंद साबित हुआ है, वहीं उनके प्रयोग को रेगुलेट करना भी समान रूप से महत्वपूर्ण है. 

स्पेस गवर्नेंस

स्पेस सेक्टर में काफी बदलाव हुआ है और ये दूसरे क्षेत्रों जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण इनपुट मुहैया कराता है. शुरुआत में जब अंतरिक्ष की खोज का युग शुरू हुआ था तो ये कुछ चुनिंदा देशों की स्पेस एजेंसियों तक सीमित था. इसके अलावा, इस बात को लेकर आम राय थी कि बाहरी अंतरिक्ष पर पूरी दुनिया का अधिकार है जो सामूहिक रूप से सबको फायदा पहुंचा सकता है और इसको बढ़ावा देने के लिए UN ने कमेटी ऑन द पीसफुल यूसेज़ ऑफ आउटर स्पेस (UN COPUOS) की स्थापना की. इस विचार की वजह से कई समझौतों और संधियों पर सहमति बनी जो मुख्य रूप से यूनाइटेड नेशंस ऑफिस फॉर आउटर स्पेस अफेयर्स (UNOOSA) के ज़रिए वजूद में आईं. इन समझौतों में आउटर स्पेस ट्रीटी, रेस्क्यू एग्रीमेंट, लायबलिटी कन्वेंशन, रजिस्ट्रेशन कन्वेंशन और मून एग्रीमेंट शामिल हैं जिन्हें अक्सर सामूहिक रूप से “आउटर स्पेस पर पांच संधियां” कहा जाता है. हालांकि इन मौजूदा रूप-रेखाओं की इस वजह से आलोचना की जाती है कि ये शीत युद्ध के युग की हैं और वर्तमान भू-राजनीतिक व्यवस्था के बदलाव पर विचार करने में नाकाम हैं. वैसे तो ये रूप-रेखा अंतरिक्ष व्यवस्था के लिए बुनियाद बनी हुई है लेकिन एक ऐसे रेगुलेटरी ढांचे की आवश्यकता है जो समकालीन मुद्दों का समाधान करे और समाज की भलाई के लिए अंतरिक्ष तकनीकों के प्रभावी इस्तेमाल को सुनिश्चित करे. 

किरदारों की संख्या में बढ़ोतरी के साथ बाहरी अंतरिक्ष के क्षेत्र में तरक्की ने स्पेस टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल के व्यावसायीकरण को सक्षम बनाया है. वैसे तो संख्या में बढ़ोतरी से विविधता आसान होती है लेकिन ये बाहरी अंतरिक्ष की स्थिरता पर इन कामों के असर के बारे में चिंता भी पैदा करती है. इसलिए मालिकाना अधिकार, अंतरिक्ष में संसाधनों तक पुहंच और अंतरिक्ष के मलबे के ख़तरे  जैसी उभरती चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक रेगुलेटरी ढांचे की ज़रूरत है जिससे कि अलग-अलग देशों के बीच टकराव को कम किया जा सके. ये नई तकनीकों के प्रसार पर निगरानी रखने और उनके इस्तेमाल के साथ जुड़ी सीमाओं को समझने के लिए एक प्लैटफॉर्म के तौर पर भी काम करता है. प्रमुख हितधारकों (स्टेकहोल्डर) जैसे कि सरकारों, राष्ट्रीय एजेंसियों, प्राइवेट दानकर्ताओं, रिसर्चर्स और एकेडमिशियंस को शामिल करने से एक आसान प्रक्रिया सुनिश्चित की जा सकती है क्योंकि तकनीक के प्रयोग से जुड़ी चिंताओं और समाज पर उनके असर का प्रभावी ढंग से समाधान किया जा सकता है. वैसे चूंकि स्पेस सेक्टर को एक ऐसे क्षेत्र के तौर पर देखा जाता है जो किसी देश की भौगोलिक और राजनीतिक सीमाओं तक सीमित नहीं है, ऐसे में घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाइयों का चित्रण बहुपक्षीय सहयोग और समन्वय को आसान बनाने में एक प्रमुख भूमिका निभाता है. इसमें मौजूदा प्रणाली में हर किरदार के योगदान की अस्पष्टता को साफ करना शामिल है.  

बाहरी अंतरिक्ष के ग्लोबल गवर्नेंस का सक्रिय किरदार होते हुए भारत इस चर्चा को बातचीत की मेज तक लाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.

इन मुद्दों पर प्रकाश डालना महत्वपूर्ण है लेकिन इन कोशिशों का फायदा नहीं हो सकता है अगर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय मुद्दे की तरफ सहयोगी दृष्टिकोण से नहीं देखे. इस प्रकार, बाहरी अंतरिक्ष के ग्लोबल गवर्नेंस का सक्रिय किरदार होते हुए भारत इस चर्चा को बातचीत की मेज तक लाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. बाहरी अंतरिक्ष की व्यवस्था में भारत सक्रिय रहा है और उसने महत्वपूर्ण बहुपक्षीय संस्थानों एवं संधियों का समर्थन भी किया है. इसका सबसे ताज़ा उदाहरण है अर्टेमिस अकॉर्ड जो कि अमेरिका की अगुवाई में चंद्रमा से जुड़े सहयोग और व्यवस्था का तौर-तरीका है. इसके अलावा, भारत ने सफलतापूर्वक इस तरह के अंतर्राष्ट्रीय मंचों का इस्तेमाल दूसरे विकसित देशों की विशेषज्ञता को हासिल करने और अपनी जानकारी एवं तकनीकी अनुभव को विकासशील देशों के अंतरिक्ष कार्यक्रम के साथ बांटने के लिए किया है. इसलिए एक सहयोग आधारित दृष्टिकोण ज़्यादा व्यावहारिक है क्योंकि ये अलग-अलग देशों के सामाजिक-आर्थिक विकास को फायदा पहुंचाएगा. 

मौजूदा वैश्विक अंतरिक्ष व्यवस्था की रूप-रेखा की इस वजह से आलोचना की जाती रही है कि ये कई दशकों से अंतरिक्ष और अंतरिक्ष तकनीकों में तरक्की को लेकर उदासीन है. इसलिए, अंतरिक्ष यात्रा  के मामले में सबसे पुराना और सबसे कामयाब देश होने की वजह से भारत सहयोग पर ध्यान केंद्रित करते हुए और दूसरे किरदारों के भू-राजनीतिक महत्व की प्रशंसा करते हुए नियमों को तय करने वाले देश की भूमिका निभा सकता है. वैसे तो सहयोग का दृष्टिकोण आदर्श उदाहरण है लेकिन इसकी सफलता वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण अंतरिक्ष शक्तियों के द्वारा बाहरी अंतरिक्ष और अंतरिक्ष तकनीकों की व्यवस्था में निर्णय लेने की प्रक्रिया को पटरी से उतारने वाली चुनौतियों के समाधान की इच्छा पर निर्भर करती है. इसलिए, अंतरिक्ष के ख़तरों को कम करने के लिए बनाया गया 2022-23 का UN वर्किंग ग्रुप अंतरिक्ष से जुड़े समकालीन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने और अलग-अलग देशों के बीच सर्वसम्मति एवं सहयोग पर आधारित एक बाध्यकारी रेगुलेटरी रूप-रेखा विकसित करने का एक अवसर मुहैया कराता है. 


किरण भट्ट प्रसन्ना स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के ग्लोबल हेल्थ विभाग में सेंटर फॉर हेल्थ डिप्लोमेसी में रिसर्च फेलो हैं. 

अनिरुद्ध इनामदार प्रसन्ना स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के सेंटर फॉर हेल्थ डिप्लोमेसी में रिसर्च फेलो हैं.

संजय पट्टनशेट्टी प्रसन्ना स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के डिपार्टमेंट ऑफ ग्लोबल हेल्थ गवर्नेंस के प्रमुख और सेंटर फॉर हेल्थ डिप्लोमेसी के कोऑर्डिनेटर हैं.

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Authors

Aniruddha Inamdar

Aniruddha Inamdar

Aniruddha Inamdar is a Research Fellow at the Centre for Health Diplomacy, Department of Global Health Governance, Prasanna School of Public Health, Manipal Academy of ...

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Kiran Bhatt

Kiran Bhatt

Kiran Bhatt is a Research Fellow at the Centre for Health Diplomacy, Department of Global Health Governance, Prasanna School of Public Health, Manipal Academy of ...

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Sanjay Pattanshetty

Sanjay Pattanshetty

Dr. Sanjay M Pattanshetty is Head of theDepartment of Global Health Governance Prasanna School of Public Health Manipal Academy of Higher Education (MAHE) Manipal Karnataka ...

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