Author : Gurjit Singh

Expert Speak Raisina Debates
Published on Jun 21, 2024 Updated 0 Hours ago

दक्षिण कोरिया जहां अफ्रीका में अपनी मौजूदगी को बढ़ाना चाहता है वहीं उसकी स्पष्ट नीतियों में उसे “नव-उपनिवेशवादी” करार दिए जाने का ख़तरा है.

दक्षिण कोरिया का ध्यान अब हुआ अफ्रीका की तरफ केंद्रित!

Source Image: Reuters

 4-5 जून 2024 को आयोजित कोरिया-अफ्रीका शिखर सम्मेलन दोनों साझेदारों के लिए एक महत्वपूर्ण घटना थी. इस शिखर सम्मेलन का लक्ष्य ‘द फ्यूचर वी मेक टुगेदर: शेयर्ड ग्रोथ, सस्टेनेबिलिटी एंड सोलिडैरिटी’ (साथ मिलकर जो भविष्य हम बनाते हैं: साझा विकास, स्थिरता और एकजुटता) थीम के तहत सहयोग को बढ़ाना था. कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक-योल और मॉरितानिया के राष्ट्रपति मोहम्मद ओल्द गज़ूआनी, जो कि अफ्रीकन यूनियन (AU) के वर्तमान अध्यक्ष हैं, ने साझा रूप से शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता की. इसमें AU की चुपचाप स्वीकृति के साथ बंजुल प्रारूप का पालन किए बिना 48 अफ्रीकी देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए जिनमें 25 नेता भी शामिल थे. 

ये पहला कोरिया-अफ्रीका शिखर सम्मेलन था. दक्षिण कोरिया न तो अफ्रीका के प्रमुख साझेदारों में से है, न ही शिखर सम्मेलन का कोई नियमित कार्यक्रम है. 2021 से AU ने चीन के साथ नियमित शिखर सम्मेलन या मंत्रिस्तरीय बैठक में भाग लिया है और इस साल उन्हें फिर से आयोजित करने का कार्यक्रम है. जापान के साथ AU ने 2022 में TICAD (टोक्यो इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑन अफ्रीकन डेवलपमेंट) में भाग लिया और इस साल फिर से सम्मेलन आयोजित करेगा. EU के साथ AU ने 2022 में शिखर सम्मेलन में भाग लिया जबकि रूस के साथ 2023 में. वैसे तो अरब शिखर सम्मेलन का आयोजन विफल रहा लेकिन सऊदी अरब के साथ 2023 में सम्मेलन का आयोजन किया गया. 

ये पहला कोरिया-अफ्रीका शिखर सम्मेलन था. दक्षिण कोरिया न तो अफ्रीका के प्रमुख साझेदारों में से है, न ही शिखर सम्मेलन का कोई नियमित कार्यक्रम है. 2021 से AU ने चीन के साथ नियमित शिखर सम्मेलन या मंत्रिस्तरीय बैठक में भाग लिया है और इस साल उन्हें फिर से आयोजित करने का कार्यक्रम है.

सऊदी अरब, तुर्किए (2021), अमेरिका (2022) और अब कोरिया के साथ अनियमित शिखर सम्मेलन तो आयोजित हुए लेकिन भारत, अरब लीग और लैटिन अमेरिका के साथ AU के नियमित रूप से आयोजित होने वाले सम्मेलन रुके हुए हैं. 

कोरिया के साथ शिखर सम्मेलन का ज़्यादा ज़ोर आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देना और सप्लाई चेन में सहयोग था. संसाधनों के मामले में समृद्ध अफ्रीकी देशों को विकसित करने पर ध्यान दिया गया. राष्ट्रपति यून ने अफ्रीका में व्यापार और निवेश का विस्तार करने के महत्व पर ज़ोर दिया और दोनों पक्षों ने इस दिशा में कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए. दक्षिण कोरिया ने अफ्रीका में कोरियाई कंपनियों की गतिविधियों का समर्थन करने के लिए 2030 तक 10 अरब अमेरिकी डॉलर के ODA (आधिकारिक विकास सहायता) और निर्यात वित्त के रूप में 14 अरब अमेरिकी डॉलर का वादा किया. ये निर्यात वित्त का समर्थन करने और विशेष लक्ष्यों के साथ अफ्रीका में कोरियाई परियोजनाओं की मदद करने में कोरिया की दिलचस्पी को दिखाता है. 

ध्यान महत्वपूर्ण खनिजों, डिजिटल कायापलट, जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर है. कोरिया और अफ्रीका के बीच महत्वपूर्ण खनिजों पर संवाद की इस साल शुरुआत होनी है. ये संवाद महत्वपूर्ण खनिजों की खुदाई और प्रसंस्करण के मामले में सूचना और विशेषज्ञता के आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान करेगा.

वन-स्टॉप ओरिजिन मैनेजमेंट सिस्टम

दक्षिण कोरिया ने अफ्रीका और अफ्रीका महाद्वीप मुक्त व्यापार क्षेत्र (AfCFTA) में आर्थिक एकीकरण का समर्थन करने का वादा किया ताकि आर्थिक सहयोग को मज़बूती देने के प्रयासों के हिस्से के रूप में कस्टम प्राधिकरण की क्षमता के निर्माण में मदद की जा सके और वन-स्टॉप ओरिजिन मैनेजमेंट सिस्टम (OOMS) स्थापित किया जा सके. 

लोगों के स्तर पर सहयोग के दूसरे तत्वों में अफ्रीका में अधिक संख्या में स्कॉलरशिप और ज़्यादा व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों की स्थापना थी. आपसी समझ को बढ़ावा देने और एकजुटता को मज़बूत करने के लिए सरकारी अधिकारियों, कारोबारियों, सिविल सोसायटी के प्रतिनिधियों और सांसदों समेत अलग-अलग क्षेत्रों में आदान-प्रदान को प्रोत्साहन देने की परिकल्पना की गई है.  

कोरिया अब अफ्रीका में अपने 21 दूतावासों का विस्तार करने वाला है. उसके छह दूतावास उत्तरी अफ्रीका में हैं, जबकि पूर्वी, दक्षिणी और मध्य अफ्रीका में चार-चार दूतावास हैं और बाकी तीन पश्चिमी अफ्रीका में हैं. वो अपनी वित्तीय सहायता मुख्य रूप से अफ्रीका डेवलपमेंट बैंक (AfDB) के ज़रिए देता है. 

जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा, सप्लाई चेन में रुकावट और स्वास्थ्य संकट जैसी वैश्विक चुनौतियों से निपटने पर ज़ोर का ज़िक्र साझा घोषणापत्र में किया गया.   

कोरिया अब अफ्रीका में अपने 21 दूतावासों का विस्तार करने वाला है. उसके छह दूतावास उत्तरी अफ्रीका में हैं, जबकि पूर्वी, दक्षिणी और मध्य अफ्रीका में चार-चार दूतावास हैं और बाकी तीन पश्चिमी अफ्रीका में हैं. वो अपनी वित्तीय सहायता मुख्य रूप से अफ्रीका डेवलपमेंट बैंक (AfDB) के ज़रिए देता है. 

निकट भविष्य में अफ्रीका डेवलपमेंट बैंक के रियायती अंग अफ्रीकन डेवलपमेंट फंड के साथ-साथ अफ्रीका में हरित बुनियादी ढांचे के लिए निजी वित्त जमा करने के उद्देश्य से AU और अफ्रीका50 के बीच नई साझा पहल अलायंस फॉर ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर इन अफ्रीका में फिर से फंड डालने के लिए दक्षिण कोरिया को प्रोत्साहित किया गया. 115.4 मिलियन अमेरिकी डॉलर के कोरिया-अफ्रीका आर्थिक सहयोग (KOAFEC) ट्रस्ट फंड (KTF) की स्थापना कोरिया के द्वारा 2007 में की गई. ये AfDB के 17 सक्रिय द्विपक्षीय ट्रस्ट फंड में सबसे बड़ा है. 

हालांकि, प्रत्यक्ष व्यापार और निवेश में दक्षिण कोरिया लगातार पिछड़ रहा है. जब तक इसमें सुधार नहीं किया जाता तब तक पूरे अफ्रीका को आकर्षित करने की उसकी कोशिश सफल नहीं होगी.  

शिखर सम्मेलन के दौरान चर्चा में, उससे जुड़े बिज़नेस फोरम या साझा बयान में शायद ही व्यापार के आंकड़ों का ज़िक्र किया गया. केवल अफ्रीकन यूनियन कमीशन (AUC) के अध्यक्ष इसको लेकर बोले. एशिया के साथ अफ्रीका जहां 40 प्रतिशत व्यापार करता है, वहीं कोरिया के वैश्विक व्यापार का महज़ 2 प्रतिशत अफ्रीका के साथ होता है. इनमें से 1.2 प्रतिशत कोरिया से अफ्रीका को निर्यात किया जाता है जबकि अफ्रीका से आयात काफी कम है. अफ्रीका के बड़े व्यापारिक साझेदारों में कोरिया शामिल नहीं है. अब जब कोरिया ग्लोबल साउथ (विकासशील देश) की तरफ अधिक ज़ोर देने पर विचार कर रहा है, उस समय उसका उद्योग अपने ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रिक गाड़ियों, सेमीकंडक्टर और इससे जुड़े उत्पादन, जिनके लिए महत्वपूर्ण खनिज अहम हैं, के लिए अधिक समर्थन चाहता है. 20वीं शताब्दी में पहले जो यूरोप ने और फिर इसके बाद चीन ने किया, अब ऐसा ही कुछ कोरिया अफ्रीका के साथ नई साझेदारी स्थापित करके करने का लक्ष्य रखता है. इसमें महत्वपूर्ण खनिजों पर अधिक ध्यान होगा. 

ऐसे में उसकी दिलचस्पी उन देशों में होगी जहां से खनिज का आयात किया जा सकता है. ज़ाम्बिया, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (DRC) और घाना पर विशेष ध्यान था. विकास के मामले में कोरिया के समर्थन पर वहां ध्यान दिए जाने की संभावना है. चूंकि पूरे अफ्रीका के लिए महत्वपूर्ण खनिज से जुड़ी कोई नीति नहीं है, ऐसे में कोशिश सहयोग का एक उदाहरण तैयार करने की है जो कोरिया को एक साझेदार के रूप में पेश करे. वास्तव में, कोरिया को अपनी महत्वाकांक्षा की पड़ताल करनी होगी ताकि उसके ऊपर ‘नव-उपनिवेशवाद’ का दाग नहीं लगे

टेक4अफ्रीका इनिशिएटिव

शिखर सम्मेलन के दौरान मौजूद कुछ राष्ट्र प्रमुखों ने द्विपक्षीय बातचीत भी की. मोरक्को और केन्या की तरह तंज़ानिया को एक आर्थिक साझेदारी समझौते की पेशकश की गई. तंज़ानिया को कोरिया के आर्थिक विकास सहयोग कोष (ECDF) से पांच साल के लिए 25 अरब अमेरिकी डॉलर का कर्ज़ मिला. तंज़ानिया ने दक्षिण कोरिया को अपने समुद्री संसाधनों और स्वच्छ ऊर्जा की तकनीकों के लिए महत्वपूर्ण खनिजों जैसे कि निकेल, लिथियम और ग्रेफाइट तक पहुंच मुहैया कराने के लिए दो समझौतों पर हस्ताक्षर किए. रवांडा और इथियोपिया के साथ बुनियादी ढांचे के विकास से जुड़े एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए गए. इथियोपिया के साथ 1 अरब अमेरिकी डॉलर की वित्त सुविधा पर हस्ताक्षर किए गए. रवांडा ने पावर सेक्टर के लिए 66 मिलियन अमेरिकी डॉलर के कर्ज के समझौते पर हस्ताक्षर किए. 23 देशों के साथ परियोजनाओं और खनिजों के लिए 47 समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए

 कोरिया की ‘टेक4अफ्रीका इनिशिएटिव’ की शुरुआत का उद्देश्य अफ्रीका के युवाओं की डिजिटल क्षमताओं को बढ़ाना है. इस तरह की पहल युवाओं को आगे बढ़ाने में मदद करेंगी जो अफ्रीकी महाद्वीप के विकास के लिए प्रेरक शक्ति हैं. 

घाना, मलावी, रवांडा और ज़िम्बाब्वे समेत आठ अफ्रीकी देशों के साथ व्यापार एवं निवेश को बढ़ावा देने की रूप-रेखा तैयार की गई और डबल टैक्सेशन एवॉइडेंस एग्रीमेंट (DTAA) पर दस्तखत किए गए. 

शिखर सम्मेलन के दौरान कोरिया-अफ्रीका आर्थिक सहयोग सम्मेलन और कोरिया-अफ्रीका मंत्रिस्तरीय बैठक की गतिविधियों को तेज़ करने का फैसला लिया गया. इनका समय-समय पर आकलन किया जाएगा और सम्मेलन के दौरान किए गए वादों की समीक्षा की जाएगी. राष्ट्रपति यून और राष्ट्रपति गज़ूआनी के साझा बयान के साथ शिखर सम्मेलन समाप्त हुआ. साझा बयान में ‘वैश्विक रूप से निर्णायक देश’ के रूप में काम करने के कोरिया के दृष्टिकोण और अफ्रीकन यूनियन के एजेंडा 2063 में बताए गए एकीकृत, समृद्ध और शांतिपूर्ण अफ्रीका के अफ्रीका के दृष्टिकोण के बीच सहयोग की तरफ ध्यान दिलाया गया. दोनों नेताओं ने एक मज़बूत और आपसी तौर पर फायदेमंद साझेदारी के आधार पर मिलकर भविष्य बनाने का संकल्प जताया. ये साझेदारी साझा विकास, स्थिरता और एकजुटता के तीन खंभों पर तैयार होगी. 

स्मार्ट सिटीज़ और इंटेलिजेंट ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम जैसे स्मार्ट इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्रों में सहयोग और कृषि एवं स्वास्थ्य देखभाल समेत तालमेल के अलग-अलग क्षेत्रों में फैली डिजिटल टेक्नोलॉजी का एकीकरण उपयोगी साबित हो सकता है. कोरिया की ‘टेक4अफ्रीका इनिशिएटिव’ की शुरुआत का उद्देश्य अफ्रीका के युवाओं की डिजिटल क्षमताओं को बढ़ाना है. इस तरह की पहल युवाओं को आगे बढ़ाने में मदद करेंगी जो अफ्रीकी महाद्वीप के विकास के लिए प्रेरक शक्ति हैं. 

पूर्वी अफ्रीका के नेताओं- केन्या के राष्ट्रपति विलियम रूटो, तंज़ानिया की राष्ट्रपति सामिया हसन, रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कागमे और युगांडा की उप राष्ट्रपति अलुपो- ने अपनी अर्थव्यवस्थाओं के लिए महत्वपूर्ण मुद्दे के रूप में खनिज प्रसंस्करण की तकनीक का हस्तांतरण, संतुलित व्यापार और बहुपक्षीय कर्ज में कमी की मांग की. हालांकि कोरिया की प्रतिबद्धता ‘टेक4अफ्रीका इनिशिएटिव’ के ज़रिए क्षमता निर्माण पर थी, न कि खनिज प्रसंस्करण की तकनीकों के व्यावसायिक हस्तांतरण की तरफ. 

घोषणापत्र का इरादा ‘अफ्रीका की ज़रूरतों के हिसाब से एक जलवायु वित्त संरचना के निर्माण के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मज़बूत’ करना भी था. सिंचाई की सुविधाओं को बढ़ाकर जलवायु परिवर्तन अनुकूलन के लिए आधुनिक कृषि तकनीकों के उपयोग की परिकल्पना की गई है. कृषि पर एक उच्च-स्तरीय कार्यक्रम में अभी तक सफल सहयोग के कई उदाहरण जुड़े हुए थे. अफ्रीकी नेताओं ने अपनी ज़रूरतों और नीतियों के बारे में बताया. मानक काफी ऊंचे थे. 

निष्कर्ष

अफ्रीका को लेकर कोरिया की नीति कम महत्वपूर्ण लेकिन स्पष्ट रही है. उसने कभी भी सामरिक चिंताओं या विकास सहयोग को लेकर अफ्रीका की तरफ नहीं देखा. कोरिया ने केंद्रित निर्यात, विशेष रूप से ऑटोमोबाइल और इंजीनियरिंग उत्पादों, के लिए अफ्रीका में प्रवेश किया है. जब कोरिया को संयुक्त राष्ट्र या उसकी दूसरी संस्थाओं में वोट के लिए अफ्रीका के राजनीतिक समर्थन की आवश्यकता हुई तो उसने उन देशों पर ध्यान दिया जिनके पास उन मुद्दों के लिए वोट है. 

कोरिया ने केंद्रित निर्यात, विशेष रूप से ऑटोमोबाइल और इंजीनियरिंग उत्पादों, के लिए अफ्रीका में प्रवेश किया है. जब कोरिया को संयुक्त राष्ट्र या उसकी दूसरी संस्थाओं में वोट के लिए अफ्रीका के राजनीतिक समर्थन की आवश्यकता हुई तो उसने उन देशों पर ध्यान दिया जिनके पास उन मुद्दों के लिए वोट है. 

इसका सबसे अच्छा उदाहरण उस समय सामने आया जब 2006 में संयुक्त राष्ट्र महासचिव के रूप में बान की-मून के चुनाव के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में तीन अफ्रीकी देशों को उसने किस तरह लुभाया. अफ्रीका में कोरिया की दिलचस्पी से पता चलता है कि भले ही उसने देर से अफ्रीका की तरफ रुख़ किया लेकिन इसकी वजह से उसका मक़सद पीछे नहीं होता. दोनों पक्ष सही सप्लाई लाइन और संभव हो तो कोरिया के उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण खनिजों की सप्लाई चेन स्थापित करने का इरादा रखते हैं. शिखर सम्मेलन ने पसंद के खनिजों के अधिकारों को सुरक्षित करने और खनिज मुहैया कराने वाले देशों को उदारतापूर्वक समर्थन देने में मदद की. ये कोशिश पूरे अफ्रीका के लिए नहीं है. जैसा कि मो इब्राहिम फाउंडेशन कहता है

‘वस्तु (कमोडिटी) केंद्रित निर्यात मॉडल के बने रहने से संकेत मिलता है कि जहां अफ्रीका के व्यापारिक साझेदारों में बदलाव हुआ है, वहीं मूलभूत आर्थिक संरचना में बहुत अधिक परिवर्तन नहीं आया है. अगर ये महाद्वीप कच्चे माल के निर्यात और तैयार उत्पादों के आयात पर बहुत ज़्यादा निर्भरता बनाए रखता है तो इससे उसकी आर्थिक विविधता और विकास में रुकावट आएगी. कोरिया को इसे लेकर सतर्क होने की आवश्यकता है लेकिन अफ्रीका के ज़्यादातर देशों में उसकी कूटनीतिक मौजूदगी नहीं है और इसलिए विकास से जुड़ा सहयोग सीमित बना हुआ है.’


गुरजीत सिंह जर्मनी, इंडोनेशिया, इथियोपिया, आसियान और अफ्रीकन यूनियन में भारत के राजनयिक के रूप में काम कर चुके हैं. 

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