Author : Rajen Harshé

Published on Sep 21, 2023 Updated 0 Hours ago

एक तरफ़ नाइजर का नया प्रशासन स्वयं को स्थापित करने का प्रयास कर रहा है, वहीं दूसरी ओर वह देशी और विदेशी ताकतों के दबाव का सामना कर रहा है.

नाइजर में तख़्तापलट की गुत्थी को सुलझाना

26 जुलाई 2023 को नाइजर में हुए सैन्य तख़्तापलट के तहत राष्ट्रपति मोहम्मद बाउज़ौम की लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकार को अपदस्थ कर दिया गया. यह घटनाक्रम इस बात का एक और उदाहरण पेश करता है कि कैसे नाइजर के साथ-साथ पूरा पश्चिम अफ़्रीका राजनीतिक अस्थिरता और सैन्य तख़्तापलट से ग्रस्त है. नाइजर के प्रेसिडेंशियल गार्ड के प्रमुख जनरल अब्दुर्रहमान त्चियानी तख़्तापलट के बाद सत्ता की बागडोर पहले ही अपने हाथ में ले चुके हैं.

यूरोपीय संघ (EU) ने भी नाइजर को सुरक्षा संबंधी वित्तीय सहायता देने पर प्रतिबंध की घोषणा की. नाइजर में वर्तमान राजनीतिक अस्थिरता को देश से जुड़ी कुछ भून, ख़ासकर पश्चिमी अफ्रीकी क्षेत्र की स्थिति के संदर्भ में देखा जाना चाहिए.

नाइजर में संवैधानिक व्यवस्था को बहाल करने के प्रयास में ECOWAS (इकोनॉमिक कम्युनिटी ऑफ वेस्ट अफ्रीकन स्टेट्स) का एक प्रतिनिधिमंडल इस समस्या के कूटनीतिक समाधान के लिए पहले ही दोनों  विपक्षी पार्टियों से मुलाकात कर चुका है. इस प्रतिनिधिमंडल में पश्चिम अफ्रीका और साहेल के संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिनिधि भी शामिल थे. तमाम अंतर्राष्ट्रीय दबावों के बावजूद सैन्य शासक पूरी हठधर्मिता के साथ सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए हुए हैं. बलपूर्वक तख़्तापलट करने वाले सैन्य शासक नागरिक सरकार को फिर से स्थापित करने के लिए कम से कम तीन साल का वक्त मांग रहे हैं. इस बीच ECOWAS बाउज़ौम शासन को फिर से बहाल करने के लिए सीधे सैन्य कार्रवाई को अंजाम देने से लेकर व्यापार और आर्थिक गतिविधियों पर प्रतिबंध और कूटनीतिक वार्ताओं के ज़रिए इस मसले का समाधान करने जैसे सभी विकल्पों पर विचार कर चुकी है. उन्होंने नाइजर के साथ वित्तीय और आर्थिक लेनदेन जैसी गतिविधियों पर भी प्रतिबंध लगा दिया है. अगर ECOWAS सैन्य कार्रवाई का विकल्प चुनती है तो ऐसी किसी स्थिति के खिलाफ़ बुर्किना फासो और माली ने चेताया है कि ऐसा कोई क़दम उठाना युद्ध की घोषणा करने जैसा होगा, जो कि पूरे क्षेत्र के लिए ख़तरे की घंटी साबित हो सकता है. संयोग से, बुर्किना फासो और माली, ये दोनों देशों सैन्य शासन के अधीन हैं. इसके अलावा, यूरोपीय संघ (EU) ने भी नाइजर को सुरक्षा संबंधी वित्तीय सहायता देने पर प्रतिबंध की घोषणा की. नाइजर में वर्तमान राजनीतिक अस्थिरता को देश से जुड़ी कुछ भून, ख़ासकर पश्चिमी अफ्रीकी क्षेत्र की स्थिति के संदर्भ में देखा जाना चाहिए.

नाइजर और पश्चिम अफ्रीका 

1960 में राजनीतिक स्वतंत्रता हासिल करने के बाद से नाइजर ने क्रमशः 1974, 1996, 1999 और 2010 में चार बार सैन्य तख़्तापलट की कार्रवाई को देखा है. इसी तरह, 2020 के बाद से, पश्चिम अफ्रीका के राजनीतिक रूप से अस्थिर क्षेत्र में नाइजर (2021) और गिनी बिसाऊ (2022) में तख़्तापलट के प्रयास देखे गए हैं, और माली (2020 और 2021) गिनी (2021), चाड (2021), बुर्किना फ़ासो (2022) और नाइजर (2023) जैसे देशों में ये प्रयास सफल रहे हैं. दिलचस्प बात यह है कि फ्रांस के पूर्व अफ्रीकी उपनिवेशों में से गिनी, माली, बुर्किना फासो, चाड और नाइजर में सैन्य ताकतों ने सत्ता पर कब्जा कर लिया है. वास्तव में, 1990 के दशक के बाद अफ्रीका में 27 बार सैन्य तख़्तापलट   हुआ है, जिसमें से 78% घटनाएं फ्रांस के पूर्व उपनिवेश देशों में हुईं. फ्रांस के लिए सैन्य शासकों के ज़रिए अपने पूर्व उपनिवेशों पर नियंत्रण जमाना आसान था.

नाइजर की सामाजिक-आर्थिक स्थिति निराशाजनक है. नाइजर में कृषि में विविधता की कमी है. इसकी स्थिति बेहद ख़राब है क्योंकि भौगोलिक रूप से विशाल इस देश की क़रीब 40 प्रतिशत आबादी (यानी लगभग 1 करोड़ से ज्यादा लोग) भीषण गरीबी की शिकार है.

यह क्षेत्र खनिज संपदा के मामले में धनी है, जहां नाइजर के पास महत्वपूर्ण  संसाधनों जैसे यूरेनियम, सोना, कोयला और जिप्सम है, बुर्किना फासो में सोना, जिंक, फास्फेट, लाइमस्टोन, कॉपर और मैंगनीज  और माली यूरेनियम, हीरा, तांबा, वैनेडियम और निकल का भंडार है. खनिज संसाधनों के अलावा क्षेत्र में व्यापक स्तर पर गरीबी और कई उग्रवादी इस्लामी संगठनों की मौजूदगी ने नाइजर और एक क्षेत्र के रूप में पूरे पश्चिम अफ्रीका की राजनीतिक अर्थव्यवस्था को आकार दिया है. इसके अलावा, अफ्रीकी संघ (AU) और ECOWAS के साथ-साथ अमेरिका, फ्रांस और यूरोपीय संघ जैसी बाहरी शक्तियां भी लोकतंत्र को बढ़ावा देने और आतंकवाद से मुकाबला करने के उद्देश्य से पूरे क्षेत्र की राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लेती रही हैं.

नाइजर में लोकतंत्र की स्थिति और ज़मीनी हालात 

नाइजर में, पश्चिम के कट्टर सहयोगी मोहम्मदु इस्सोफौ ने लगातार दो कार्यकाल (2011-2021) तक सत्ता में बने रहे.

नाइजर में 2021 के चुनावों के बाद ऐसा पहली बार देखने को मिला कि शक्ति का हस्तांतरण शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक ढंग से हुआ हो, जिसके परिणामस्वरूप राष्ट्रपति बाउज़ौम का उभार हुआ. हालांकि नाइजर धीरे-धीरे इस क्षेत्र में लोकतांत्रिक ताकतों की उम्मीद बन रहा था, लेकिन सैन्य तख़्तापलट के इतिहास ने इसका पीछा नहीं छोड़ा.

इसकी भू-राजनीतिक अवस्थिति के कारण, बड़ी संख्या में लोग नाइजर के रास्ते यूरोपीय संघ के देशों में प्रवास कर रहे हैं. जाहिर है, यह स्थिति नाइजर के सैन्य शासकों के लिए एक अवसर की तरह है

कई दूसरे अफ्रीकी देशों की तरह, नाइजर की राजव्यवस्था इन अर्थों में काफ़ी कमज़ोर और अशांत रही है कि यह कई नस्लीय समूहों में बंटा हुआ है. हौसा समुदाय सबसे बड़ा समुदाय है, जहां 55 प्रतिशत आबादी हौसा लोगों की है, जबकि कई अन्य छोटे सामाजिक समूहों के अलावा, ज़र्मा-सोंगहे दोनों मिलकर आबादी का 22 प्रतिशत हिस्सा हैं, और तुआरेग की संख्या 8 प्रतिशत है. मोहम्मदु इस्सोफौ हौसा जातीय समूह से ताल्लुक रखते हैं और उन्होंने अपने पूर्ववर्तियों की तरह जातीय आधार पर सैन्य कर्मियों को नियुक्त किया था, जिससे उनकी शक्ति मजबूत हुई. वहीं बाउज़ौम अरब मूल के हैं, जो नाइजर में एक अल्पसंख्यक समुदाय है. उनके साथ अक्सर विदेशियों जैसा बर्ताव होता था. एक अल्पसंख्यक समूह के नेता के लिए हौसा बहुल देश का प्रतिनिधित्व करना आसान नहीं था. इसके अलावा, नाइजर की सामाजिक-आर्थिक स्थिति निराशाजनक है. नाइजर में कृषि में विविधता की कमी है. इसकी स्थिति बेहद ख़राब है क्योंकि भौगोलिक रूप से विशाल इस देश की क़रीब 40 प्रतिशत आबादी (यानी लगभग 1 करोड़ से ज्यादा लोग) भीषण गरीबी की शिकार है.

भू-राजनीतिक अवस्थिति और सुरक्षा का मुद्दा

भू-राजनीतिक रूप से, नाइजर सहारा और उप-सहारा क्षेत्र में स्थित है. इसकी दक्षिणी सीमा नाइजीरिया और बेनिन से लगती है, पश्चिमी सीमा पर बुर्किना फासो और माली स्थित हैं, पूर्व में चाड और उत्तर में अल्जीरिया और लीबिया हैं. नाइजर और उसके आसपास के देश विभिन्न कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों की आतंकवादी गतिविधियों से प्रभावित हैं. ऐसे संगठन अल कायदा और इस्लामिक स्टेट (IS) जैसे अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों से जुड़े होते हैं. क्षेत्रीय आतंकवादी संगठनों में, बोको हराम  नाइजीरिया, नाइजर, चाड, कैमरून और माली में विशेष रूप से सक्रिय रहा है. नाइजर G5 साहेल देशों का हिस्सा है, जिसमें माली, चाड, मॉरिटानिया और बुर्किना फासो आदि शामिल हैं. इस क्षेत्रीय संगठन ने आतंकवाद से निपटने और क्षेत्र की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक बहुराष्ट्रीय दल के लिए एक संस्थागत ढांचा तैयार किया है. इसके अलावा, फ्रांसीसी सेनाएं “ऑपरेशन बुरखाने” के ज़रिए माली में आतंकवाद से निपटने के लिए 2013 से ही इन प्रयासों में हिस्सा ले रही थीं, लेकिन 2022 में फ्रांस की हार के साथ यह ऑपरेशन समाप्त हो गया. भले ही फ्रांस और अमेरिका जैसी क्षेत्रीय और वैश्विक शक्तियां आतंकवाद से लड़ने के ठोस प्रयास कर रही हैं, इस क्षेत्र में कट्टरपंथी इस्लामी संगठन फल-फूल रहे हैं. इस प्रक्रिया में, नाइजर नाइजीरिया और माली से आए 245,467 शरणार्थियों और क्षेत्र से लगभग 350,000 विस्थापित लोगों का भार भी उठा रहा है. हालांकि, इसकी भू-राजनीतिक अवस्थिति के कारण, बड़ी संख्या में लोग नाइजर के रास्ते यूरोपीय संघ के देशों में प्रवास कर रहे हैं. जाहिर है, यह स्थिति नाइजर के सैन्य शासकों के लिए एक अवसर की तरह है क्योंकि अगर यूरोपीय संघ अफ्रीकी प्रवासियों को गैरकानूनी ढंग से यूरोप में आने से रोकना चाहते हैं तो नाइजर इस बात का फ़ायदा उठाते हुए यूरोपीय संघ के देशों के सामने कूटनीतिक शर्तें रख सकता है.

इसके अलावा, क्षेत्र की सुरक्षा के संबंध में एक नई राजनीतिक चेतना का उभार देखने को मिल रहा है. जिन लोगों ने सैन्य शासन का समर्थन किया है, उन्होंने न केवल फ्रांसीसी साम्राज्यवाद का विरोध किया है, बल्कि उन्हें लगता है कि रूस और वैगनर समूह उनकी सुरक्षा संबंधी आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं. वैगनर समूह एक निजी सेना है, जिसे क्रेमलिन का समर्थन प्राप्त है. रूस और वैगनर समूह दोनों ही माली, बुर्किना फासो और गिनी में सक्रिय हैं ताकि वे फ्रांस के उपनिवेश रह चुके इन देशों में फ्रांस के प्रभाव को ख़त्म कर सकें. हालांकि, वैगनर समूह के प्रमुख,  येवगेनी प्रिगोझिन (जिन्होंने कभी राष्ट्रपति पुतिन के आदेशों की अवहेलना की थी) की 23 अगस्त 2023 को एक हवाई दुर्घटना में मौत हो जाने के बावजूद यह संगठन रूस के लिए एक निजी सेना के रूप में अपना काम जारी रख सकता है. फ्रांस के प्रति अफ्रीकी देशों की बेरुखी को समझने के लिए निम्नलिखित बिंदुओं पर विचार करने की ज़रूरत है.

फ्रांस अतीत में एक औपनिवेशिक शक्ति रह चुका है, और भले ही वह अपने साम्राज्यवादी इतिहास से आगे बढ़ने का दावा करता है लेकिन अभी भी उसका अपने पूर्व उपनिवेशों और साहेल क्षेत्र पर प्रभावशाली नियंत्रण है. भले ही, फ्रांस अफ्रीका में विरोध का सामना कर रहा है लेकिन उप-सहारा क्षेत्र के खनिज संसाधनों में उसकी भारी हिस्सेदारी है. उदाहरण के लिए, फ्रांस ने कॉम्पेन नेशनल डेस माइन डी फ्रांस (CMF) नामक राज्य के स्वामित्व वाली खनन कंपनी के माध्यम से अफ्रीका में 55 करोड़ अमेरिकी डॉलर के निवेश की योजना बनाई है. इसके अलावा, नाइजर दुनिया का सातवां सबसे बड़ा यूरेनियम उत्पादक है. परमाणु ऊर्जा के लिए यूरेनियम आवश्यक है. सोसाइटी डेस माइंस डे एयर (SOMSIR) नाइजर की एक राष्ट्रीय कंपनी है, जिसकी ओरानो  नामक फ्रांसीसी कंपनी में 63.4 प्रतिशत की हिस्सेदारी है. इतना ही नहीं, शेष 36.66 प्रतिशत हिस्सेदारी सोसाइटी डु पेट्रीमोइन डेस माइंस ड्यू नाइजर (सोपामिन ) के पास है. संक्षेप में कहा जाए, तो फ्रांस संरचनात्मक स्तर पर नाइजर की अर्थव्यवस्था से जुड़ा है, जिसके कारण उसके प्रभाव को समाप्त करना बहुत कठिन है.

फ्रांस और अमेरिका ने जिहादी संगठनों के खिलाफ़ नाइजर का सहयोग किया है. जिबूती में एक स्थायी सैन्य अड्डे के अलावा अमेरिका ने नाइजर के अगाडेज़ क्षेत्र में एक बहुत बड़े ड्रोन बेस को स्थापित किया है जिसे नाइजर एयर बेस 201 कहा जाता है. नाइजर एयर बेस 201 अफ्रीका में दूसरा सबसे बड़ा अमेरिकी बेस है. हालांकि, पश्चिमी देशों के विरोध के कारण नियामी का नया सैन्य शासन फ्रांस, यूरोपीय संघ और अमेरिका से दूरी बरतते हुए नए सहयोगी संबंध स्थापित कर सकता है. इस संदर्भ में, रूस से सीधी मित्रता और वैगनर समूह से मिलने वाला समर्थन नाइजर के लिए महत्वपूर्ण  है. इसी तरह, बीजिंग ने नाइजर के नेताओं से आग्रह किया है कि वे तख़्तापलट के बाद अराजकता की स्थिति से निपटे और व्यवस्था स्थापित करें. चीन ने साहेल क्षेत्र में भारी निवेश किया है. इसलिए वह क्षेत्र में अपने निवेश की सुरक्षा के लिए तो चिंतित है ही, साथ ही वह नाइजर में पश्चिम-विरोधी भावनाओं की मौजूदगी का फ़ायदा उठाने की फ़िराक में भी है ताकि वह क्षेत्र में अपनी मौजूदगी का विस्तार कर सके.

निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि तख़्तापलट के बाद नाइजर सामाजिक-राजनीतिक स्तर पर अस्थिरता का सामना कर रहा है क्योंकि जहां एक तरफ़ नई सैन्य व्यवस्था खुद को स्थापित करने की कोशिश कर रही है. वहीं दूसरी तरफ़ उसे   देशी और विदेशी ताकतों के दबाव का सामना करना पड़ रहा है.

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