Author : Saranya

Published on Oct 11, 2021 Updated 0 Hours ago

चीन सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग में आत्मनिर्भरता हासिल करना चाहता है, लेकिन यह लक्ष्य उसकी पहुंच से काफी दूर है. असल में, चीन में इस उद्योग पर अमेरिका के साथ उसके व्यापार युद्ध की काली छाया पड़ गई है

क्या SMIC चीन को सेमीकंडक्टर में आत्मनिर्भर बना सकती है?
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चीन की सबसे बड़ी कॉन्ट्रैक्ट चिप कंपनी सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग इंटरनेशनल कॉर्प. (SMIC) ने 3 सितंबर को स्टॉक एक्सचेंज को बताया कि उसने शंघाई मुक्त व्यापार क्षेत्र के लिन-गांग स्पेशल एरिया में एक नई फैक्ट्री लगाने का समझौता किया है. कंपनी ने इसके लिए 8.87 अरब डॉलर के निवेश का प्रस्ताव रखा है. इससे वहां एक फाउंड्री लगेगी, जिसमें हर महीने 12 इंच के एक लाख वेफर्स बन सकेंगे. SMIC यह फैक्ट्री संयुक्त उपक्रम यानी पार्टनर के साथ मिलकर लगाने जा रही है, जिसमें उसकी हिस्सेदारी 51 प्रतिशत होगी. इसमें 25 प्रतिशत हिस्सा शंघाई सरकार की ओर से तय एक निवेश इकाई का होगा. मार्च में SMIC ने बताया था कि वह शेनझेन सरकार के साथ मिलकर एक परियोजना में 2.35 अरब डॉलर का निवेश करेगी. इसके तहत 28 नैनोमीटर (एनएम) और उससे ऊपर के इंटीग्रेटेड सर्किट बनाए जाएंगे. इस फैक्ट्री से हर महीने 12 इंच के 40,000 वेफर्स निकलेंगे.

कोविड-19 महामारी के बाद वैश्विक स्तर पर सेमीकंडक्टर चिप की कमी हो गई है. यह सरकारी कंपनी SMIC के आक्रामक निवेश की एक बड़ी वजह है. लेकिन इस विस्तार योजना का यह अकेला कारण नहीं है. असल में चीन और अमेरिका के बीच भू-राजनीतिक टकराव बढ़ता जा रहा है. 2018 में अमेरिका और चीन के बीच जो व्यापार युद्ध शुरू हुआ, उसका शिकार चीन की कई टेक्नोलॉजी कंपनियां हो चुकी हैं. इनमें हुवावेई भी शामिल है. सितंबर 2020 में अमेरिका ने SMIC को निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका के वाणिज्य विभाग ने 25 सितंबर की तारीख से एक चिट्ठी निकाली. इसमें लिखा था कि चुनिंदा सामान SMIC को निर्यात करने के लिए अमेरिकी कंपनियों को लाइसेंस की अर्जी देनी होगी. इन पाबंदियों का फरमान ऐसे वक्त में आया, जब हुवावेई पर ट्रंप की पाबंदियों के कारण SMIC का कामकाज पहले ही प्रभावित हो रहा था. ट्रंप सरकार ने हुवावे पर दुनिया में कहीं से भी सेमीकंडक्टर खरीदने पर रोक लगा दी थी. यहां तक कि वह SMIC से भी इसे नहीं खरीद सकती थी. विदेशी ब्रोकरेज फर्म क्रेडिट सुइस की रिपोर्ट में बताया गया था कि 2020 में SMIC की कुल बिक्री में हुवावे की चिप यूनिट का योगदान करीब 20 प्रतिशत था. इसके बाद दिसंबर में SMIC को आखिरी झटका लगा. तब ट्रंप सरकार ने कंपनी और उसकी 10 इकाइयों को वाणिज्य विभाग की एंटिटी लिस्ट यानी अमेरिका की ट्रेड ब्लैकलिस्ट में डाल दिया. उसने आरोप लगाया कि यह कंपनी चीन की सेना को तकनीक मुहैया करा रही है. वैसे अमेरिका के इस आरोप को SMIC ने बेबुनियाद बताया था.

 कोविड-19 महामारी के बाद वैश्विक स्तर पर सेमीकंडक्टर चिप की कमी हो गई है. यह सरकारी कंपनी SMIC के आक्रामक निवेश की एक बड़ी वजह है. 

इन सख्त पाबंदियों का कंपनी के कारोबार पर असर नहीं पड़ा. SMIC ने 2021 की पहली छमाही में शानदार ग्रोथ हासिल की. दिक्कत बस यह थी कि वैल्यू चेन में कंपनी ऊपर नहीं जा पाई. यह बात सही है कि SMIC को तकनीक के लिहाज़ से चीन की सबसे अच्छी चिप कंपनी माना जाता है, लेकिन बताते हैं कि इसका मैन्युफैक्चरिंग प्रॉसेस सैमसंग और ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी (TSMC) जैसी आला कंपनियों से कम से कम तीन जेनरेशन पीछे है. SMIC के पास सबसे अच्छी चिप 14एनएम की है, जो 5एनएम की चिप की तुलना में पिछड़ी हुई मानी जाती है. SMIC इस तरह की बेहद आधुनिक चिप बनाने के लिए विदेशी कंपनियों की तकनीक पर आश्रित है. खबरों के मुताबिक SMIC के आधे उपकरण अभी अमेरिका से आते हैं. चीनी कंपनी अमेरिका की ट्रेड ब्लैकलिस्ट में है, इसलिए वह कई यूरोपीय या जापानी कंपनियों से उपकरण नहीं खरीद सकती क्योंकि ऐसा करने पर अमेरिकी बौद्धिक संपदा अधिकार कानून का उल्लंघन होगा.

अमेरिकी पाबंदी के बाद आत्मनिर्भर बनने की आपाधापी 

अमेरिका की इस सख्त़ी से चीन की दुश्वारियां बढ़ गई हैं. यूं तो चीन ने कहा है कि वह SMIC के खिलाफ़ इस तरह की पाबंदी से नाराज़ है और उसका विरोध करता है. इसके साथ उसने अमेरिका पर अंतरराष्ट्रीय व्यापार कानूनों के उल्लंघन के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा का बहाना बनाने का इल्ज़ाम भी लगाया. वैसे, इस मामले से चीन को यह बात भी समझ में आ गई कि चिप मैन्युफैक्चरिंग में आत्मनिर्भरता उसके लिए कितनी ज़रूरी है. मिसाल के लिए चीन ने पिछले तीन साल में 300 अरब डॉलर से अधिक के चिप आयात किए हैं. यानी वह सबसे अधिक पैसा चिप खरीदने पर ख़र्च कर रहा है. इसकी तुलना में कच्चे तेल के आयात पर उसका ख़र्च काफ़ी कम है, जो कि कीमत के लिहाज़ से आयातित चीजों की लिस्ट में दूसरे नंबर पर है.

यह बात सही है कि SMIC को तकनीक के लिहाज़ से चीन की सबसे अच्छी चिप कंपनी माना जाता है, लेकिन बताते हैं कि इसका मैन्युफैक्चरिंग प्रॉसेस सैमसंग और ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी (TSMC) जैसी आला कंपनियों से कम से कम तीन जेनरेशन पीछे है.

तकनीक केंद्रित व्यापार युद्ध के साथ वैश्विक स्तर पर चिप की कमी के कारण चीन को मेड इन चाइना 2025 प्लान बनाना पड़ा. इस योजना के तहत उसने 2020 तक घरेलू खपत के लिए 40 प्रतिशत सेमीकंडक्टर देश में ही बनाने का अहम लक्ष्य तय किया. चीन इसे 2025 तक बढ़ाकर 70 प्रतिशत तक ले जाना चाहता है. हालांकि, इस मामले में चीन लक्ष्य से कहीं पीछे चल रहा है. 2020 में 40 प्रतिशत के बजाय वह कुल घरेलू खपत के लिए 15 प्रतिशत चिप ही देश में बना पाया. 2020 में चीन की स्टेट काउंसिल ने ‘उच्च-गुणवत्ता वाली एकीकृत सर्किट इंडस्ट्री और सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री’ को बढ़ावा देने वाली नीति का ऐलान किया. इसका मकसद चिप की भारी कमी को स्थानीय स्तर पर पूरा करना था. अपनी 14वीं पंचवर्षीय योजना यानी 2021-2025 के बीच चीन ने चिप की गुणवत्ता में बेहतरी लाने की योजना बनाई है. चीन ने सात ‘फ्रंटियर टेक्नोलॉजीज’  में रिसर्च और डिवेलपमेंट पर ध्यान देने की योजना से भी परदा हटाया है. इसमें उसने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (कृत्रिम मेधा), क्वांटम इंफॉर्मेशन, ब्रेन साइंस और सेमीकंडक्टर को भी शामिल किया है. चीन के प्रीमियर ली कचियांग ने बताया कि इन क्षेत्रों में रिसर्च और डिवेलपमेंट पर खर्च में उनका देश 2021 से 2025 के बीच सालाना 7 प्रतिशत की बढ़ोतरी करेगा.

इसके साथ चीन ने देश में सेमीकंडक्टर उद्योग को बढ़ावा देने के लिए अलग से वित्तीय मदद का वादा भी किया है. चीन ने चिप कंपनियों को 10 साल तक कॉरपोरेट इनकम टैक्स से छूट दी है, जबकि इंटीग्रेटेड चिप (IC) डिजाइन, IC इक्विपमेंट, IC मैटीरियल्स, IC पैकेजिंग और IC टेस्टिंग कंपनियों को अधिकतम 5 साल तक की टैक्स छूट मिली है. SMIC सबसे बड़ी कंपनी है, जिसे इस टैक्स नीति का फायदा होगा. चीन ने सेमीकंडक्टर मशीनरी और कच्चे माल पर आयात शुल्क भी माफ कर दिया है. वहां की सरकार ने वादा किया है कि वह योग्य IC और सॉफ्टवेयर कंपनियों को देश और विदेश से फंड जुटाने में भी मदद करेगी. इसके साथ, वह चीन के साइंस-टेक इनोवेशन बोर्ड (STAR मार्केट शंघाई) और ग्रोथ एंटरप्राइज मार्केट (GEM हांगकांग) में लिस्टिंग में भी उनकी मदद करेगी. 2019 में चीन के नेशनल इंटीग्रेटेड सर्किट इंडस्ट्री इन्वेस्टमेंट फंड ने दूसरे चरण की वित्तीय मदद शुरू की थी. इसका मकसद चीन की IC इंडस्ट्री को आत्मनिर्भर बनाना है. शेयर बाजार से पैसा जुटाने में मदद और निवेश की अन्य पहल के साथ चीन अपने यहां के सूबों और स्थानीय सरकारों को भी सेमीकंडक्टर कंपनियों में इन्वेस्टमेंट करने या उन्हें कर्ज देने को कह रहा है.

मैन्युफैक्चरिंग के लिए पेशेवरों को तैयार करना

घरेलू चिप डिजाइन और मैन्युफैक्चरिंग को लेकर चीन की सरकार काफी जोर लगा रही है, लेकिन इसके बावजूद चीनी कंपनियों ने इस मामले में बहुत प्रगति नहीं की है. उसकी वजह यह है कि चिप उद्योग वैश्विक है. इसमें कड़ी प्रतिस्पर्धा है. इस उद्योग में सफलता बाजार तय करता है. सिर्फ पैसे के दम से चीनी कंपनियां अंतरराष्ट्रीय चिप कंपनियों का मुकाबला नहीं कर सकतीं. उन्हें इस लड़ाई के लिए कुशल पेशेवरों के साथ जरूरी उपकरणों की भी दरकार है.

अमेरिका की इस सख्त़ी से चीन की दुश्वारियां बढ़ गई हैं. यूं तो चीन ने कहा है कि वह SMIC के खिलाफ़ इस तरह की पाबंदी से नाराज़ है और उसका विरोध करता है. इसके साथ उसने अमेरिका पर अंतरराष्ट्रीय व्यापार कानूनों के उल्लंघन के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा का बहाना बनाने का इल्ज़ाम भी लगाया.

चीन जब से चिप इंडस्ट्री की दौड़ में शामिल हुआ है, उसे तब से पता है कि अच्छे पेशेवरों की कमी को भरने के लिए विदेश से प्रतिभाएं लानी होंगी. वह भी आक्रामक तरीके से. यूं तो चीन ने दक्षिण कोरिया, ताइवान और जापान से प्रतिभाओं को लाने की कोशिश की, लेकिन उसे सबसे अधिक सफलता ताइवान में मिली. उसकी वजह यह है कि चीन और ताइवान की भाषा और संस्कृति एक है. ऐसी खबरें आई हैं कि चीन की चिप कंपनियों ने ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी (TSMC), फॉक्सकॉन, मीडियाटेक, एमस्टार, यूएमसी सहित कई अन्य कंपनियों से सैकड़ों ताइवानी इंजीनियरों को हायर किया है. इसके लिए चीनी कंपनियों ने उन्हें मोटी सैलरी और दूसरे भत्ते दिए हैं. चीन की चिप कंपनी SMIC के को-चीफ एग्जिक्यूटिव और वाइस चेयरमैन भी दुनिया की सबसे बड़ी चिप कंपनी TSMC के पूर्व अधिकारी हैं.

ताइवान इससे खुश नहीं है. इसकी वजह भी कोई छुपी हुई नहीं है. असल में ताइवान के जीडीपी में सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री का योगदान 15 प्रतिशत है. मार्च 2021 में ताइवान के अधिकारियों ने दो रिक्रूटमेंट कंपनियों के यहां छापे मारे. उन्हें पता चला था कि दोनों चीन की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस चिप कंपनी के लिए ताइवान के सेमीकंडक्टर पेशेवरों को भर्ती करने की कोशिश में थीं. इसके अगले महीने ताइवान ने स्थानीय स्टाफिंग कंपनियों से चीन में नौकरी के सारे विज्ञापन हटाने को कहा ताकि सेमीकंडक्टर पेशेवरों का ब्रेन ड्रेन रुक सके. इस तरह से ताइवान ने स्पष्ट कर दिया है कि हाई-टेक टैलेंट ‘उसकी राष्ट्रीय आर्थिक नीति की खातिर अहम मुद्दा है.’ इससे पहले अमेरिका ने भी स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ फॉरेन एक्सपर्ट्स अफेयर्स (SAFEA) के जरिये प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिए चलाए गए अभियानों की आलोचना की थी.

चीन की सेमीकंडक्टर कंपनियों पर अमेरिकी दबाव

जहां तक आधुनिक चिप बनाने की क्षमता का सवाल है, इसके आधुनिकतम औजार बौद्धिक संपदा कानून और वैश्विक दबदबे की वजह से अमेरिकी सरकार के नियंत्रण में हैं. आधुनिक तकनीक तक SMIC की पहुंच रोकने के बाद अमेरिका ने चीनी कंपनी की दूसरी खरीद को भी रोका. नीदरलैंड्स की सरकार ने एक्ट्रीम-अल्ट्रावॉयलेट लिथोग्राफी (EUV) मशीन का एक्सपोर्ट लाइसेंस रिन्यू नहीं किया. इसे फोटोलिथोग्राफी क्षेत्र की दिग्गज कंपनी ASML 2019 में चीन के लिए बनाने वाली थी. नीदरलैंड्स की सरकार को अमेरिका के कूटनीतिक दबाव में यह कदम उठाना पड़ा. इससे पहले अमेरिका ने क्रमशः 2017 और 2018 में लैटिस सेमीकंडक्टर और एक्सेरा जैसी सेमीकंडक्टर कंपनियों का चीनी कंपनियों की ओर से अधिग्रहण भी रोक दिया था.

चीन जब से चिप इंडस्ट्री की दौड़ में शामिल हुआ है, उसे तब से पता है कि अच्छे पेशेवरों की कमी को भरने के लिए विदेश से प्रतिभाएं लानी होंगी. वह भी आक्रामक तरीके से. 

ये सख्तियां भले ही डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति रहने के दौरान शुरू हुई थीं, लेकिन जो बाइडेन सरकार ने भी इन्हें जारी रखा है. अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सलिवन और नीदरलैंड्स में उनके समकक्ष के बीच फरवरी 2021 में जब टेलीफोन पर बातचीत हुई तो खबरों के मुताबिक उसमें ASML के चीन के साथ बिजनेस को रोकने पर भी चर्चा की गई. दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच हुई वार्ता में यह मुद्दा शीर्ष पर था. वैसे, अमेरिका ने इस बातचीत को आधुनिकतम तकनीक में दोनों देशों के बीच करीबी सहयोग का नाम दिया था. इसी तरह से मार्च 2021 में अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा आयोग ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की. इसमें अन्य बातों के साथ यह सुझाव भी दिया गया कि देशों का एक समूह बने. यह समूह एक नीति बनाए, जिसके तहत 16एनएम नोड और इससे कम के चिप, खासतौर पर EUV इक्विपमेंट और Arf  इमर्शन लिथोग्राफी इक्विपमेंट का एक्सपोर्ट लाइसेंस सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग के लिए देने पर रोक हो. अभी चीन की SMIC को जो जरूरी उपकरण नहीं दिए जा रहे हैं, वह उसे कितना भी पैसा खर्च करके हासिल नहीं कर सकती.

जहां तक आधुनिक चिप बनाने की क्षमता का सवाल है, इसके आधुनिकतम औजार बौद्धिक संपदा कानून और वैश्विक दबदबे की वजह से अमेरिकी सरकार के नियंत्रण में हैं. आधुनिक तकनीक तक SMIC की पहुंच रोकने के बाद अमेरिका ने चीनी कंपनी की दूसरी खरीद को भी रोका.

वैसे, सेमीकंडक्टर क्षमता के लिहाज से चीन की स्थिति इतनी बुरी नहीं है. मार्केट रिसर्च से पता चलता है कि वाईफाई राउटर्स, माइक्रो-कंट्रोलर्स, इमेज सेंसर में इस्तेमाल होने वालीं कम आधुनिक चिप की जितनी दुनिया में खपत होती है, उनमें से 75 प्रतिशत का उत्पादन करने की चीन योग्यता रखता है. हैरानी की बात यह है कि वह कई वजहों से ऐसा नहीं कर पा रहा है.

चीनी सरकारी मीडिया के सहयोगी चाइना इकॉनमिक वीकली ने खबर दी थी कि करीब 13,000 कंपनियां 2020 के पहले 10 महीने में चिप से जुड़े बिजनेस में स्विच कर गईं. हो सकता है कि इनमें से कई कंपनियां नाकाम हो जाएं, लेकिन चीन को लगता है कि इनमें से कुछ कामयाबी हासिल कर सकती हैं. चीन सरकार से मदद के साथ कई घरेलू सेमीकंडक्टर कंपनियों ने ऊंचे लक्ष्य के साथ काम शुरू किया था, लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं लगा. पिछले साल नानजिंग स्थित टैकोमा सेमीकंडक्टर टेक्नोलॉजी दिवालिया हो गई, जिसकी वैल्यू 2.8 अरब डॉलर थी. चीन को वुहान होंगचिन सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी (HSMC) से काफी उम्मीद थी, लेकिन 20 अरब डॉलर का यह बुलबुला जब फूटा तो उसके अरमान धरे के धरे रह गए. कंपनी के अंदर कई गड़बड़ियां थीं, जिनका वह आखिरकार शिकार हो गई. पिछले कुछ वर्षों में कई अन्य कंपनियों का भी ऐसा ही हश्र हुआ.

अरबों डॉलर की इन चिप कंपनियों के फेल के बाद चीन संसाधनों की बर्बादी को लेकर सचेत हुआ. उसे यह बात समझ में आई कि इंटीग्रेटेड सर्किट डिवेलपमेंट की अपर्याप्त जानकारी वाली कंपनियों ने भी इस क्षेत्र में कदम रखा था. इसलिए उनकी सफलता संदेहास्पद थी. अक्टूबर 2020 में नेशनल डिवेलपमेंट और रिफॉर्म कमीशन (NDRC) ने कहा कि वह बड़े नुकसान और अधिक जोखिम वाले मामलों में जवाबदेही सुनिश्चित करेगा. ऐसा लगता है कि NDRC ने सेमीकंडक्टर उद्योग में खामियों को दूर करने की कुछ कोशिश की. जुलाई 2021 में शिंगहुआ यूनिग्रुप के एक संभावित कर्जदाता ने, जिसमें प्रतिष्ठित शिंगहुआ यूनिवर्सिटी की एक इकाई की भी हिस्सेदारी थी, कंपनी के खिलाफ दिवाला कानून के तहत कार्यवाही शुरू करने की अपील की. इन कंपनियों की नाकामी से घरेलू सप्लाई चेन पर काफी दबाव बन गया है. ऐसे में वेंडर बिजनेस जारी रखने के लिए फर्जी चिप खरीदने को मजबूर हो रहे हैं. इसी वजह से चीन अब SMIC से कामकाज के विस्तार की उम्मीद कर रहा है.

अरबों डॉलर की इन चिप कंपनियों के फेल के बाद चीन संसाधनों की बर्बादी को लेकर सचेत हुआ. उसे यह बात समझ में आई कि इंटीग्रेटेड सर्किट डिवेलपमेंट की अपर्याप्त जानकारी वाली कंपनियों ने भी इस क्षेत्र में कदम रखा था. इसलिए उनकी सफलता संदेहास्पद थी. 

वैश्विक स्तर पर अभी जो भू-राजनीतिक टकराव दिख रहा है, उसे देखते हुए लगता है कि सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग के मामले में चीन जल्द आत्मनिर्भर नहीं बन पाएगा. हालांकि, अंतरिक्ष कार्यक्रम में उसकी सफलता को देखते हुए वह इस क्षेत्र में इनोवेशन से दुनिया को हैरान भी कर सकता है.

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