Published on Nov 04, 2022 Updated 0 Hours ago

उभरती हुई टेक्नोलॉजी और चौथी औद्योगिक क्रांति, क्या भारत और विश्व स्तर पर बढ़ती जल असुरक्षा में सहायक साबित हो सकती है?

Security Nexus: ‘तक़नीक, जल और सुरक्षा का ताना बाना’

खारे पानी को मीठा बनाने की कम खर्च वाली प्रक्रिया और हाथ में पकड़े जाने वाले जल शुद्धिकरण उपकरणों की उपलब्धता के कारण प्रौद्योगिकी ने स्वच्छ जल (Clean Water) तक आम लोगों की पहुंच बढ़ाकर उनके जीवन में सुधार करने में क्रांतिकारी भूमिका अदा की है. तक़नीक (Technology) ने ही बेहतर बुनियादी ढांचे को सक्षम करने, घाटे को कम करने और अधिक सुरक्षित माहौल (Security Nexus) बनाने में भी सहायता की है. जैसे-जैसे दुनिया की आबादी बढ़ रही है, विशेषत: शहरी केंद्रों में, वैसे-वैसे संसाधनों की कमी महसूस की जा रही है. ऐसे में जल क्षेत्र की स्थिरता और लचीलेपन को बढ़ाना और भी महत्वपूर्ण हो गया है. अब हमें जल के बेहतर उपयोग के साथ ‘वॉटर स्मार्ट’ बनते हुए जो जल उपलब्ध है उसका ज्य़ादा से ज्य़ादा उपयोग करने और जल की बर्बादी को रोकने के उपाय खोजने होंगे.

जल असुरक्षा अब मानवीय और पर्यावरणीय सुरक्षा की दृष्टि से सभी साधनों के सामने एक वास्तविक चुनौती पेश करने लगी है. स्वच्छ पानी तक पहुंच इसमें सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है. इसके अलावा असुरक्षा कई अन्य मुद्दों से भी उत्पन्न होती है. इसमें घटते भूजल, जल निकायों पर बढ़ रहे तनाव, अरक्षणीय (जिसकी रक्षा न की जा सके) सतत विकास और जल की चोरी जैसी अन्य बाधाएं भी शामिल हैं. 

हमें इस बात पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि हम सभी क्षेत्रों में नवाचार और उभरती हुई तक़नीक का उपयोग, जल दक्षता, सुरक्षा, गुणवत्ता और लोगों तक इसकी पहुंच बढ़ाने में कैसे कर सकते हैं. प्रौद्योगिकी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई), इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी), रोबोटिक्स, और कम्प्यूटिंग में नए मोर्चो पर सफलता हासिल करने वाली कंपनियों और लोगों के साथ काम करते हुए हम अपनी बढ़ती जल असुरक्षा को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने में सक्षम बन सकते हैं. हालांकि, इन दोनों क्षेत्रों के विलय और दोनों के बीच की लाइन धुंधली हो रही है. ऐसे में हमें इस बात का ध्यान भी रखना होगा कि हम प्रौद्योगिकी पर कितने निर्भर रह सकते हैं, ताकि यह हमारे बर्ताव और जल उपयोग की प्रचलित व्यवस्था को प्रभावित न करें. और, सबसे अहम बात यह है कि हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि, जैसे नवाचार और विज्ञान समेत कई अन्य क्षेत्रों के लिए यह बात लागू है, हम प्रौद्योगिकी और प्रणालियों पर इतने भी ज्यादा निर्भर न हो जाएं कि यह हमारी सुरक्षा के लिए ही खतरा बन जाएं.

जल असुरक्षा अब मानवीय और पर्यावरणीय सुरक्षा की दृष्टि से सभी साधनों के सामने एक वास्तविक चुनौती पेश करने लगी है. स्वच्छ पानी तक पहुंच इसमें सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है. इसके अलावा असुरक्षा कई अन्य मुद्दों से भी उत्पन्न होती है. इसमें घटते भूजल, जल निकायों पर बढ़ रहे तनाव, अरक्षणीय (जिसकी रक्षा न की जा सके) सतत विकास और जल की चोरी जैसी अन्य बाधाएं भी शामिल हैं. जलवायु पारिस्थतिकी अर्थात इकोसिस्टम में आ रहा परिवर्तन भी जल असुरक्षा के लिए नई चिंता पैदा कर रहा है. वैश्विक आबादी में से लगभग एक तिहाई आबादी की स्वच्छ पानी तक पहुंच नहीं है. संयुक्त राष्ट्र के दीर्घकालीन विकास लक्ष्यों ने 2030 के दशक के अंत तक सभी के लिए सुरक्षित और किफायती पेयजल सुनिश्चित करने का एक महत्वाकांक्षी और ऊंचा लक्ष्य निर्धारित किया है. ऐसा करना आसान नहीं होगा. खासकर एशिया में. इस क्षेत्र में अनुमानित 300 मिलियन लोगों तक स्वच्छ पानी नहीं पहुंचता है, जबकि शहरों से निकलने वाले 80 प्रतिशत दूषित जल को बगैर किसी प्रक्रिया के जल निकायों में छोड़ दिया जाता है.

जैसे अंतरिक्ष तकनीक हमें अधिक डेटा और ज्ञान का खाका तैयार करने और एकत्रित करने की अनुमति देती है, वैसे ही कई छोटे विचार हैं, जो हमारे पानी के उपयोग करने के तरीके में क्रांति लाकर इसमें बेहतरी हासिल करने का अवसर हमें प्रदान करते हैं.

महत्वाकांक्षी होने के बावजूद इन लक्ष्यों को बेहतर समझ के साथ हासिल किया जा सकता है. बेहतर समझ अर्थात जल, कैसे न केवल मानव के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भोजन और स्वास्थ्य सुरक्षा की दृष्टि में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है. इसके अलावा यह पारिस्थितिकी तंत्र, विकास महत्वाकांक्षाओं, ऊर्जा की जरूरतों और जलवायु परिवर्तन को कम करने में भी अहम भूमिका निभाता है. व्यावहारिक रूप से, प्रौद्योगिकी और जल सुरक्षा का अंतरसंबंध अर्थात इंटरसेक्शन इन लक्ष्यों को हासिल करने का एक महत्वपूर्ण मार्ग है. उभरती हुई प्रौद्योगिकी का प्रभावी ढंग से उपयोग और अनुकूलन करते हुए जल तक पहुंच बनाने और जल प्रणालियों के प्रबंधन को अधिक कुशल बनाने का काम किया जा सकता है. इसके अलावा इनका उपयोग बेहतर भविष्यवाणी और पूर्वानुमान लगाने के लिए भी किया जा सकता है. प्रौद्योगिकी, नवाचार का उपयोग करने के कई तरीके हैं, जिनकी सहायता से जल समाधान हासिल करने के उपायों पर काम किया जा सकता है. ऐसा करके ही अंतत: संसाधनों को साझा करने को लेकर होने वाले संघर्ष को भी रोका जा सकता है.

बड़ी तस्वीर से लेकर छोटे विचारों तक

अंतरिक्ष से लेकर स्मार्ट इंफ्रा तक, विज्ञान ने साबित कर दिया है कि दक्षता हासिल करना संभव है; लेकिन हम इसका उपयोग कैसे करते हैं यह बात मायने रखती है. उभरती हुई चौथी औद्योगिक क्रांति (fourth industrial revolution), अब तक जल को समझने की अप्रयुक्त संभावनाएं प्रदान करती है. 2021 में, नासा और फ्रांस के बीच एक संयुक्त उपग्रह मिशन, सरफेस ओशन टोपोग्राफी मिशन प्रक्षेपित किया गया था. इसका उद्देश्य, रडार तकनीक का उपयोग पृथ्वी के पानी का वैश्विक सर्वेक्षण प्रदान करने के लिए करना था. यह उपग्रह झीलों, नदियों, जलाशयों और महासागरों का अध्ययन करते हुए संभावित रूप से हमारे जल संसाधनों को समझने, मापने और प्रबंधित करने के लिए अब तक हमारे खजाने में अनुपलब्ध अज्ञात डेटा के ज्ञान से हमारे खजाने को भर देगा. यह ज्ञान न केवल हमें हमारी जल संबंधी आवश्यकताओं को समझने के लिए ही नहीं, बल्कि विकास का हमारे संसाधनों पर पड़ने वाले प्रभाव और मौसम तथा जलवायु में हो रहे अधिक सूक्ष्म परिवर्तन के प्रभावों को समझने में भी अविश्वसनीय रूप से उपयोगी है. यह ज्ञान अंतत: बेहतर नीति निर्माण में योगदान देता है.

जलवायु परिवर्तन, अस्थिर विकास और जलसंसाधनों में आ रही कमी की खतरनाक तिकड़ी मानव और पर्यावरण की सुरक्षा में बाधा डाल रही है. अत: विज्ञान, उभरती हुई टेक्नोलॉजी और नवाचार की तिकड़ी को जल क्षेत्र में एक साथ लाना जरूरी हो गया है.

जैसे अंतरिक्ष तकनीक हमें अधिक डेटा और ज्ञान का खाका तैयार करने और एकत्रित करने की अनुमति देती है, वैसे ही कई छोटे विचार हैं, जो हमारे पानी के उपयोग करने के तरीके में क्रांति लाकर इसमें बेहतरी हासिल करने का अवसर हमें प्रदान करते हैं. उदाहरण के तौर पर आईओटी सेंसर्स का उपयोग कर स्थापित की जाने वाली स्मार्ट मीटरिंग व्यवस्था का जिक्र किया जा सकता है. यह सेंसर्स, उपयोगकर्ताओं को जल के स्तर, गुणवत्ता, चोरी और रिसाव को लेकर सावधान करने अर्थात अलर्ट करने में अहम भूमिका अदा कर रहे हैं. मूलत: बड़ी परियोजनाओं में ही इनका उपयोग हो रहा है, लेकिन इन्हें आवास स्तर अथवा सामाजिक (क्षेत्रीय) स्तर पर भी लगाया जा सकता है. इसमें भारत के अनेक शहरों में बन रहे नए हाउसिंग कॉम्पलेक्सेस् का भी समावेश किया जा सकता हैं. यह व्यवस्था न केवल जागरुकता बढ़ाएगी, बल्कि घरेलू उपयोग प्रणाली को समझने के भी काम आएगी. ऐसा होने पर हम इस स्थिति को देखकर बेहतर नीति तैयार कर सकते हैं. इसके अलावा यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि जल चक्रों की स्थिरता में नागरिकों की भूमिका अहम और जिम्मेदारी वाली है.

इस तरह के सेंसर्स से जल की गुणवत्ता में भी सुधार आ सकता है. क्योंकि खतरनाक रसायनों और इनके स्तर में औचक वृद्धि होने पर इसका पता लगाकर उस स्थिति पर नियंत्रण हासिल करने के तत्काल उपाय किए जा सकते है. इन उपकरणों से मिलने वाली जानकारी को एआई एलगोरिदम की सहायता से किए गए विश्लेषण से यह पता लगाया जा सकता है कि कौन से मौसम में खतरनाक रसायनों का स्तर बढ़ता है और कैसे उसे पहले ही रोका जा सकें. खासकर उन क्षेत्रों में जहां जल निकायों का साझा उपयोग हो रहा हो या फिर उद्योगों से जुड़ी जल व्यवस्था में यह जानकारी उपयोगी साबित होगी. इस क्षेत्र में अनगिनत नवाचार हैं. इसमें पानी के एटीएम से लेकर उपयुक्त उद्देश्य के लिए दूषित जल समाधान से लेकर पाइप और नालियों के लिए सेंसर वाले अंडरवॉटर ड्रोन तक शामिल हैं. भुवनेश्वर में, कौंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रीयल रिसर्च यानि वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद में अध्यनकर्ता कच्चे पानी को पीने योग्य बनाने के लिए जली हुई लाल मिट्टी का उपयोग कर रहे हैं. और मध्य भारत में इकोसॉफ्ट (ईसीओएसओएफटीटी) द्वारा कम खर्च वाले उपयुक्त-उद्देश्य के लिए दूषित विकसित जल समाधानों का उपयोग नर्मदा नदी में प्रदूषण का उपचार करने के लिए किया जा रहा है. बेहतर प्रशासन और विभिन्न उपयोगकर्ताओं के बीच परस्पर संबंध अंतहीन है.

जलवायु परिवर्तन, अस्थिर विकास और जलसंसाधनों में आ रही कमी की खतरनाक तिकड़ी मानव और पर्यावरण की सुरक्षा में बाधा डाल रही है. अत: विज्ञान, उभरती हुई टेक्नोलॉजी और नवाचार की तिकड़ी को जल क्षेत्र में एक साथ लाना जरूरी हो गया है. बेहतर सार्वजनिक – निजी भागीदारी के साथ पर्याप्त निवेश लक्षित पूर्वानुमान और ऐसे साधन मुहैया करवाएगा, जो संभावित संघर्ष क्षेत्रों को लेकर भविष्यवाणी करने में सहायक होंगे. इंडियन मेट्रोलॉजिकल डिपार्टमेंट (भारतीय मौसम विभाग) की अंतिम वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि 1901 के बाद से 2021 न केवल पांचवां सबसे गर्म वर्ष था, बल्कि 2012-2021 का दशक, अब तक दर्ज किया गया सबसे गर्म दशक था. तापमान में हो रही वृद्धि का मौसम की घटनाओं, शहरी परिवर्तन, कृषि उत्पादन, स्वास्थ्य और ऊर्जा सुरक्षा पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है. इस तरह की घटनाएं मौजूदा तनाव को बढ़ाकर इससे जुड़े खतरों की संख्या को कई गुणा बढ़ा सकती हैं. एआई तथा मशीन लर्निग से हम ऐसे संभावित खतरों की भविष्यवाणी का खाका तैयार कर उसका अनुमान लगा सकते है. इसका उपयोग जलापूर्ति पर नजर रखने के साथ मौसम के पैटर्न में आने वाले बदलाव और इससे उपजने वाले अवरोधों का पता लगाने के लिए भी किया जा सकता है. यह संघर्ष को समझने और बातचीत और सहयोग के उपायों को जल्द से जल्द शुरू करने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ाता है. एक गर्म हो रहे ग्रह के ज्ञात और, अधिक महत्वपूर्ण रूप से अज्ञात जोखिमों और प्रभावों का मुकाबला करने में सक्षम होने के लिए विचार, विश्लेषण और कार्यान्वयन में बदलाव लाना जरूरी हो गया है.

चुनौतियां और भविष्य की राह

यह सच है कि इस तरह के टेक्नोलॉजी के व्यापक उपयोग करने में कुछ खामियां है. इस तरह के नवाचार का समर्थन करने के लिए मौजूदा बुनियादी ढांचे की अक्षमता, नियामक ढांचे का अभाव, कौशल की कमी, वित्तीय बाधाओं और उच्च ऊर्जा खपत, एक चुनौती बनकर खड़े हैं. आमतौर पर पर्यावरण और जल से संबंधित नई तकनीकी अथवा एआई या मशीन के उपयोग को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है. यदि स्थानीय समुदाय को इसके उपयोग को लेकर पहले से ही नहीं समझाया गया हो तो इन्हें परंपराओं के लिए एक चुनौती भी समझा जाता है. इसे अपनाने के लिए उन्नत बुनियादी ढांचे, तकनीकी कौशल की एक नई श्रृंखला, नए प्रशासन ढांचे, शिक्षा और प्रभावी प्रबंधन के साथ एक व्यापक दृष्टिकोण को अपनाए जाने की आवश्यकता होगी. ये ऐसी चुनौतियां नहीं है, जिनसे पार न पाया जा सकें. इन चुनौतियों से निपटने के लिए हमें राजनीतिक इच्छाशक्ति, भविष्य की ओर देखते हुए काम करने वाले संस्थान और नीतियां और अहम रूप से व्यापक तौर पर सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बीच साझेदारी की जरूरत होगी. तकनीक के उपयोग के साथ ही साइबर हमले का अतिरिक्त खतरा भी बढ़ जाता है. साइबर हमले की धमकी का उपयोग करके बुनियादी ढांचे, निकायों, कारोबार को प्रभावित किया जा सकता है. इस कारण एक ओर जहां उपभोक्ता प्रभावित होता है, वहीं काफी वित्तीय हानि भी उठानी पड़ती है.  ‘हैक्टिविज्म’ एक बढ़ती हुई चिंता है और परस्पर संबद्ध यानि इंटरकनेक्टेड ग्रिड, बांध, शुद्धिकरण संयंत्र और अन्य बुनियादी ढांचे सभी इसकी वजह से कमजोर हो जाते हैं. जैसे-जैसे विज्ञान और नवोन्मेष पर हमारी निर्भरता बढ़ रही है, हमें अपने जल को उन अतिरिक्त खतरों से बचाने की जरूरत है, जो बड़े पैमाने पर व्यवधान पैदा कर सकते हैं या इससे भी बदतर स्थिति पैदा कर सकते हैं.

साइबर हमले की धमकी का उपयोग करके बुनियादी ढांचे, निकायों, कारोबार को प्रभावित किया जा सकता है. इस कारण एक ओर जहां उपभोक्ता प्रभावित होता है, वहीं काफी वित्तीय हानि भी उठानी पड़ती है. 

क्या, उभरती हुई टेक्नोलॉजी और चौथी औद्योगिक क्रांति, भारत और विश्व स्तर पर बढ़ती जल असुरक्षा में सहायक साबित हो सकती है? इसका संक्षिप्त जवाब हां हो सकता है, लेकिन हमें दो महत्वपूर्ण मुद्दों को ध्यान में रखना होगा. पानी को कैसे देखें, समझे और इसका उपयोग करने की जो ज़िम्मेदारी फिलहाल मनुष्यों के पास है उसे प्रौद्योगिकी पर अत्यधिक निर्भरता प्रतिस्थापित नहीं कर सकती और न ही ऐसा किया जाना चाहिए. इसके अलावा जल की फिजूलखर्ची रोकने में शिक्षा जो भूमिका निभा सकती है उसकी जगह कोई दूसरा विकल्प नहीं हो सकता. दूसरा पहलू यह सुनिश्चित करना है कि हम किसी भी उभरती हुई तकनीक, नवाचार और विज्ञान का उपयोग ऐसी स्मार्ट नीतियों और वैश्विक शासन प्रणालियों के साथ करें, जो हमें सुरक्षा तो प्रदान करती हैं, लेकिन साथ ही पानी को भी सुरक्षित रखने में सक्षम हो. जबकि कुछ तकनीक, दशकों से पानी पर हो रही बातचीत का अभिन्न अंग हैं. फिर भी सहयोग का यह एक नया क्षेत्र है. आखिरकार, जिन खूबसूरत नदियों, झीलों और अन्य जल निकायों पर हम निर्भर हैं उनकी जगह भला कोई कैसे ले सकता है. 

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