महामारी ने शिक्षा व्यवस्थाओं में मौजूद संरचनात्मक दोषों को सुधारने के लिए गहरी समझ प्रदान की है, लिहाज़ा, भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश पाने के लिए समुचित न्यूनीकरण (मिटिगेशन) प्रयासों को अपनाये जाने की ज़रूरत है.
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य 4 (एसडीजी 4) को आर्थिक उन्नति के प्रमुख वाहक के रूप में माना जाता है, क्योंकि यह स्वास्थ्य, राजनीति, सामाजिक सशक्तीकरण, और पूरी मानव पूंजी पर काफ़ी असर डालता है. शिक्षा की भूमिका को विकासशील राष्ट्रों की प्रगति में बतौर मददगार देखा गया था और सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा हासिल करने के उद्देश्य के साथ 2000 में इसे दूसरे सहस्राब्दी विकास लक्ष्य (एमडीजी) में शामिल किया गया था. ‘समावेशी और समतापूर्ण गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने और सभी के लिए आजीवन सीखने के अवसरों को बढ़ावा देने’ की कोशिश करते हुए, एसडीजी फ्रेमवर्क चौथे एसडीजी के साथ इसे एक क़दम आगे ले गया.
शिक्षा की भूमिका को विकासशील राष्ट्रों की प्रगति में बतौर मददगार देखा गया था और सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा हासिल कशिक्षा की भूमिका को विकासशील राष्ट्रों की प्रगति में बतौर मददगार देखा गया था और सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा हासिल करने के उद्देश्य के साथ 2000 में इसे दूसरे सहस्राब्दी विकास लक्ष्य (एमडीजी) में शामिल किया गया था.
नीति आयोग के मुताबिक़, एसडीजी 4 दूसरे कई सारे विकासात्मक उद्देश्यों जैसे एसडीजी 1 (कोई ग़रीबी नहीं), एसडीजी 2 (भूख से मुक्ति), एसडीजी 3 (अच्छा स्वास्थ्य और कुशलक्षेम), एसडीजी 5 (लैंगिक समानता), एसडीजी 6 (साफ़ पानी और स्वच्छता), एसडीजी 8 (सम्मानजनक काम और आर्थिक वृद्धि), एसडीजी 9 (उद्योग, नवोन्मेष और बुनियादी ढांचा), एसडीजी 10 (असमानता में कमी), एसडीजी 12 (सतत खपत और उत्पादन), और एसडीजी 13 (जलवायु परिवर्तन) के साथ अंतर्संबद्ध है – और ये सभी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से ‘एजेंडा 2030’ के मानव पूंजी निर्मित करने वाले पहलुओं के लिए काम करते हैं.
मानव पूंजी की उन्नति, जैसाकि एसडीजी 4 के उद्देश्यों में परिकल्पित है, देश के विकास का एक अभिन्न अंग है, और आर्थिक और सामाजिक बेहतरी के पीछे की प्राथमिक शक्ति है. कई संचित कौशलों और लक्ष्यों (जिनमें शिक्षा सबसे अहम कारकों में से एक है) का संयोजन उस सामाजिक पूंजी की वृद्धि में भी योगदान देता है, जो अनुकूल श्रम बाजार स्थितियों, बढ़े हुए निवेश और संसाधनों के बेहतर जुटान की वजह से एक ख़ुशनुमा कारोबारी माहौल के लिए बेहद अहम है. 55 देशों और क्षेत्रों के शैक्षणिक आंकड़ों का इस्तेमाल करते हुए, एक अर्थमितीय (इकोनोमेट्रिक) विश्लेषण ने शिक्षा में पूंजी निवेश और किसी राष्ट्र की आर्थिक वृद्धि के बीच धनात्मक सह-संबंध को उजागर किया.
विकसित देशों के समूहों, जो आर्थिक के साथ-साथ समग्र मानव विकास मानदंडों के लिहाज़ से अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं, ने शिक्षा में उच्च स्तर का निवेश किया है, जो स्कूलिंग के प्रत्याशित और औसत वर्षों के ज़रिये निर्धारित होता है.
मानव विकास रिपोर्ट 2020 के मुताबिक़, ज़्यादातर देशों के शैक्षणिक नतीजों और मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) स्कोर के बीच एक स्पष्ट धनात्मक संबंध मौजूद है. विकसित देशों के समूहों, जो आर्थिक के साथ-साथ समग्र मानव विकास मानदंडों के लिहाज़ से अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं, ने शिक्षा में उच्च स्तर का निवेश किया है, जो स्कूलिंग के प्रत्याशित और औसत वर्षों के ज़रिये निर्धारित होता है. उदाहरण के लिए, नॉर्वे और नीदरलैंड जैसे देशों का एचडीआई स्कोर 0.9 के ऊपर है, जबकि यमन और माली जैसे ग़रीब देश 0.5 के नीचे के एचडीआई स्कोर पर पड़े हुए हैं. उच्च एचडीआई का होना मानव पूंजी एवं आर्थिक योग्यता के उच्च स्तर वाले राष्ट्रों का संकेत है, इस तरह यह उच्च प्रति-व्यक्ति ‘सकल राष्ट्रीय आय’ (जीएनआई) में योगदान देता है. इसे नीचे दिये गये चित्र में देखा जा सकता है.
चित्र 1 : मानव विकास सूचकांक (1 में से) और चुनिंदा देशों की सकल राष्ट्रीय आय (प्रति व्यक्ति, अमेरिकी डॉलर में), 2020
स्कूल में किसी छात्र द्वारा बिताये गये वर्षों की औसत संख्या में वृद्धि, श्रमबल के हिस्से के रूप में उस व्यक्ति द्वारा हासिल की जा सकने वाली उत्पादकता में सीधे-सीधे योगदान देती है. विशेषज्ञों की दलील है कि स्कूली शिक्षा हासिल करने के स्तरों (माध्यमिक, उच्च माध्यमिक इत्यादि) का राष्ट्र के मानव पूंजी आधार की उत्पादकता पर ख़ासा प्रभाव पड़ता है. विकासशील राष्ट्रों ने माध्यमिक शिक्षा में सुधार के लिए लक्षित प्रोत्साहन प्राप्त करने में बेहतर परिणाम दिखाये हैं, जिसका राष्ट्र की आर्थिक वृद्धि पर सीधा सकारात्मक असर पड़ा है. इस तरह के अवलोकन विकासशील राष्ट्रों में उन लक्ष्यों को तय करने में मदद करते हैं, जो सबसे कुशल परिणाम देंगे और उन्नत देशों के साथ जो खाई है उसे भरेंगे.
कोविड-19 महामारी का असर
नीचे दिया गया चित्र दिखाता है कि कैसे, 1970 से, 15 साल से अधिक की स्कूली शिक्षा हासिल करने वाले लोगों की संख्या में ठीकठाक वृद्धि हुई है. 2000 से यह ठीकठाक वृद्धि सभी क्षेत्रों के लिए साफ़ दिखी, उप-सहारा अफ्रीका (क्षेत्रीय श्रेणी में सबसे निचले पायदान पर) में 2030 तक स्कूलिंग के स्तरों में नौ गुना की वृद्धि होने का अनुमान (प्रोजेक्शन) है. हालांकि, क्षेत्रों के बीच असमानताओं का बढ़ना जारी है – विकसित देश ज़्यादातर विकासशील देशों की वर्तमान प्रगति के स्तर को दशकों पहले ही पार कर चुकने के बाद धीमी गति से वृद्धि करते हैं.
चित्र-2 : 15 साल से अधिक की स्कूली शिक्षा प्राप्त करने वाली आबादी: वास्तविक संख्याएं और भविष्य के लिए अनुमान
महामारी ने ग्लोबल नॉर्थ और साउथ के बीच विभाजन को और बढ़ा दिया है. महामारी से उत्पन्न पाबंदियां दुनियाभर में आम ज़िंदगी का हिस्सा बन गयीं, स्कूल भी बंद रहे, जिसने एसडीजी 4 लक्ष्यों पर असर डाला. हालांकि, देशों के कुछ समूह बेहतर स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे और उन्नत शैक्षणिक सुविधाओं की बदौलत, दूसरों के मुक़ाबले स्कूलों को जल्दी खोल सके. उदाहरण के लिए, उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में, महामारी की वजह से बच्चों को 2020 में औसतन 15 दिनों के स्कूल का नुक़सान हुआ. उभरते-बाज़ार वाले देशों में यह संख्या बढ़कर औसतन 45 दिनों की रही, और सबसे ग़रीब देशों के बच्चों के लिए यह 72 दिन रहा. जब लॉकडाउन की वजह से पढ़ाई के हफ़्तों के नुक़सान की बात आती है, तो ओशिआनिया और यूरोपीय देशों ने बाकी दुनिया के मुक़ाबले कहीं बेहतर ढंग से इससे पार पाया. इन नुक़सानों के संदर्भ में, महामारी के बाद उससे उबरने की प्रक्रिया में विकसित और विकासशील दुनिया के बीच फ़ासलों को कम करना अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है. यह विश्व अर्थव्यवस्था के दीर्घकालिक मैक्रोइकोनॉमिक ढांचे को तय करता है, जिसमें मानव पूंजी सबसे निर्णायक घटक होती है.
यह सही है कि शिक्षा को बढ़ा धक्का पहुंचा है, पर महामारी इस बात की गहरी समझ प्रदान करती है कि मौजूदा संरचनात्क दोषों में सुधार के लिए व्यवस्थाओं को कैसे अनुकूलित किया जा सकता है. महामारी के दौरान शैक्षणिक संस्थानों तक भौतिक पहुंच के मसले ने छात्रों को स्कूल में पढ़ाई करने से रोक दिया था, लेकिन दूरदराज़ के इलाक़ों में इंटरनेट की पहुंच एवं दूरसंचार को बेहतर बनाने पर फोकस नयी राह दिखाने वाला है. वहनीय तकनीक तक पहुंच के साथ जोड़े जाने पर, यह महामारी के बाद की दुनिया में शिक्षा तक सार्वभौमिक पहुंच को बेहतर बनायेगा.
महामारी के दौरान शैक्षणिक संस्थानों तक भौतिक पहुंच के मसले ने छात्रों को स्कूल में पढ़ाई करने से रोक दिया था, लेकिन दूरदराज़ के इलाक़ों में इंटरनेट की पहुंच एवं दूरसंचार को बेहतर बनाने पर फोकस नयी राह दिखाने वाला है.
एक तरफ़ तो शिक्षा व्यवस्था के डिजिटलीकरण को रोकने वाली मांग-आपूर्ति की खाई को पाटने के लिए सार्वजनिक वित्तपोषण की ज़रूरत है, तो दूसरी तरफ़, दूरस्थ शिक्षा का बुनियादी ढांचा स्थापित करना होगा, ताकि शिक्षा की रोशनी पहुंचने के मामले में विकासशील और अविकसित दुनिया का पीछे न रहना सुनिश्चित हो सके. आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) आगे उन क्षेत्रों की ओर इशारा करता है जिन पर, छात्रों के मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य और समग्र विकास का ख़याल रखते हुए, महामारी के युग से निकलने को आसान बनाने के लिए ध्यान देने की आवश्यकता है.
इस तरह, किसी देश के आर्थिक नतीजों के लिए एसडीजी 4 के महत्व को कम करके बयान नहीं किया जा सकता. वैसे तो महामारी ने सभी देशों में शिक्षा और कौशल अर्जन के ढांचे पर निरुत्साहित करने वाला प्रभाव डाला है, लेकिन इसे कम करने के प्रयास न सिर्फ़ सामाजिक-आर्थिक प्रगति के वास्ते, बल्कि भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं की ख़ातिर जनसांख्यिकीय लाभांश पा सकने के लिए बेहद अहम हैं.
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इस निबंध में अपनी शोध सहायता के लिए लेखक एनएलएसआईयू, बेंगलुरू के रोहन रॉस का आभार प्रकट करता है.
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Soumya Bhowmick is a Fellow and Lead, World Economies and Sustainability at the Centre for New Economic Diplomacy (CNED) at Observer Research Foundation (ORF). He ...