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रूस यूक्रेन जंग को लेकर अफ्रीकी देशों की मिश्रित प्रतिक्रिया के पीछे की वजह अफ्रीकी देशों की रूस और पश्चिमी देशों पर निर्भर रहना है.
24 फरवरी 2022 को यूक्रेन पर रूस के हमले और यूक्रेन के नागरिकों द्वारा हमलावर रूसी सेना के ख़िलाफ़ पलटवार ने समसामयिक वैश्विक राजनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत की है. साल 1991 में सोवियत रूस के विघटन के बाद पिछले दो दशकों से राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन सक्रिय रूप से वैश्विक राजनीति में रूस के खोए हुए गौरव और ताक़त को वापस लाने की दिशा में लगातार काम कर रहे हैं. अतीत के कुछ घटनाक्रम जैसे 2008 में जॉर्जिया पर आक्रमण, 2014 में अवैध रूप से क्रीमिया पर कब्ज़ा करना और मौजूदा युद्ध के दौरान रूस द्वारा यूक्रेन के पूर्वी इलाक़े में डोनबास क्षेत्र पर कब्ज़ा जमाने की कोशिशों ने इस क्षेत्र में पुतिन की सुरक्षा चिंताओं को स्पष्ट रूप से दिखाया है. दरअसल, रूस नेटो यानी नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (नेटो), जिसके मौजूदा 30 देश सदस्य हैं, के पूर्व में विस्तार को रोकना चाहता है. इसमें तत्कालीन सोवियत संघ के नेतृत्व में वार्सा संधि पर हस्ताक्षर करने वाले पोलैंड, हंगरी, अल्बानिया और रोमानिया जैसे देश भी शामिल हैं. स्पष्ट तौर पर यूक्रेन का नेटो संगठन में शामिल होना अमेरिकी नेतृत्व वाले गठबंधन को रूस के दरवाज़े पर ला खड़ा कर सकता है. चूंकि रूस खनिज संपदाओं से भरपूर यूक्रेन को अपना हिस्सा मानता रहा है, यही वज़ह है कि यूक्रेन में वह रूस के समर्थन वाली सरकार बनाने के पक्ष में है. हालांकि, रूस के ख़िलाफ़ यूक्रेन की मोर्चा बंदी के साथ-साथ जेलेंस्की शासन की अमेरिका से नज़दीकियां बढ़ाने की कोशिश ने रूस को यूक्रेन के ख़िलाफ़ और उकसाया है. अमेरिका और इसके सहयोगी देशों ने पहले से ही रूस पर सख़्त आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं ताकि रूस को घुटने टेकने पर मज़बूर किया जा सके. उद्देश्य के किसी भी मानकों के स्तर से देखा जाए तो रूस का हमला अंतरराष्ट्रीय कानून की खुलेआम धज्जियां उड़ाने जैसा है. इस जंग ने न सिर्फ़ लोगों की ज़िंदगियां ख़त्म की हैं बल्कि शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त के मुताबिक़ 30 लाख (यही ताज़ा आंकड़ा है) से ज़्यादा यूक्रेनी नागरिक अब तक पोलैंड, रोमानिया, स्लोवाकिया, मोलडोवा और हंगरी जैसे देशों मे पलायन करने को मज़बूर हुए हैं. इसने एक बहुत बड़े मानवीय संकट को पैदा कर दिया है. नतीज़तन संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए ) ने 7 अप्रैल 2022 को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से रूस को निष्कासित कर दिया. यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस का आक्रमण पूर्व सोवियत संघ या फिर जार साम्राज्यवादी (Czarist imperialism) नीतियों की याद दिलाता है जब अपनी सुरक्षा को मज़बूत करने के मक़सद से सोवियत रूस पूर्वी यूरोप के कई इलाक़ों पर कब्ज़ा करने की कोशिश कर रहा था. संक्षेप में, साम्राज्यवाद अक्सर भौतिक रूप से उन्नत और पिछड़े समाज के बीच आधारित संबंधों के विषम रूपों को दर्शाता है. हालांकि यह देखना दिलचस्प होगा कि अफ्रीकी देश वर्तमान संदर्भ में साम्राज्यवाद को कैसे देखते हैं.
स्पष्ट तौर पर यूक्रेन का नेटो संगठन में शामिल होना अमेरिकी नेतृत्व वाले गठबंधन को रूस के दरवाज़े पर ला खड़ा कर सकता है. चूंकि रूस खनिज संपदाओं से भरपूर यूक्रेन को अपना हिस्सा मानता रहा है, यही वज़ह है कि यूक्रेन में वह रूस के समर्थन वाली सरकार बनाने के पक्ष में है.
यूक्रेन पर रूसी आक्रमण को लेकर संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2 मार्च 2022 को आयोजित एक बैठक के दौरान प्रस्ताव पारित किया और यूक्रेन पर रूस के सैन्य आक्रमण को फौरन रोकने की मांग की. 193 सदस्य देशों में से इस प्रस्ताव का 141 देशों ने समर्थन किया. हालांकि संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में 54 अफ्रीकी सदस्य देशों में से महज़ 28 देशों ने ही इस प्रस्ताव का समर्थन किया, 17 अफ्रीकी देशों ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया जिसमें अल्ज़ीरिया, दक्षिण अफ्रीका और अंगोला शामिल रहे. जबकि उत्तर कोरिया, बेलारूस, रूस और सीरिया के साथ इरिट्रिया ने इस प्रस्ताव के ख़िलाफ़ मतदान किया. आठ अफ्रीकी देश जिसमें कैमरून, इथियोपिया और मोरक्को शामिल थे, उन्होंने अपना मतदान नहीं किया. जहां तक यूक्रेन-अफ्रीका संबंधों की बात है तो मोरक्को और नाइजीरिया जैसे देशों के 8000 और 4000 छात्र यूक्रेन में पढ़ते हैं और इन छात्रों के उपचार और उनकी वतन वापसी को लेकर अफ्रीकी देश चिंतित हैं. यूक्रेन क़रीब 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निर्यात अफ्रीकी देशों को करता है. रूस-यूक्रेन युद्ध के संबंध में, भले ही अफ्रीकी संघ (एयू) के वर्तमान अध्यक्ष और सेनेगल के राष्ट्रपति मैकी सैल यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता सुनिश्चित करने के लिए दोनों देशों के बीच दुश्मनी को तत्काल ख़त्म करने और अंतरराष्ट्रीय कानून की रक्षा के लिए खड़े दिखते हैं लेकिन संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव के पक्ष में कम से कम आधे अफ्रीकी राज्यों की ख़ामोशी ने इस धारणा को मज़बूत किया है कि आक्रमणकारियों के ख़िलाफ़ खड़े होने में यह अफ्रीका की ओर से नैतिक नाकामी है. अफ्रीकी राज्यों द्वारा इस तरह के उठाए गए रुख़ को इस तरह समझना अनुचित हो सकता है. ख़ास कर इस तथ्य को स्वीकार करते हुए कि यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस की आक्रामकता नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के ख़िलाफ़ है और यह कि यूक्रेन के लोगों पर कहर बरपाना मानवता के ख़िलाफ़ अपराध है, यह साम्राज्यवाद के चश्मे से मौजूदा संकट की जटिलताओं और अफ्रीका के साथ इसके संबंध को तलाशने का एक ज़रिया हो सकता है.
रूस के साम्राज्यवाद की तरह ही अफ्रीका भी उपनिवेशवाद, नस्लवाद और साम्राज्यवाद के ज़रिए हमेशा से पश्चिमी देशों के प्रभाव में रहा है लेकिन विडंबना यह है कि पूर्व सोवियत संघ ने हमेशा से सक्रिय रूप में अफ्रीका में उपनिवेशवाद और नस्लवाद के विरोध में हुई क्रांतियों का समर्थन किया है और अमेरिकी नेतृत्व वाले उपनिवेशवाद के ख़िलाफ़ विरोध का झंडा बुलंद करने वाले नए पैदा होने वाले अफ्रीकी देशों को उनके विकास में मदद की है. इसे आसान भाषा में समझाने के लिए कहा जा सकता है कि न तो पूर्व के सोवियत संघ और न ही मौजूदा रूस ने पश्चिमी देशों की विरासत का बोझ अपने कंधे पर उठाने की कोशिश की है. भले ही पूर्वी यूरोप में रूसी साम्राज्यवादी शक्ति प्रमुख थी लेकिन अफ्रीकी देश पूर्वी यूरोपीय देशों पर रूसी प्रभुत्व के बारे में अनजान थे, ख़ास कर तब तक जब तक कि रूस अफ्रीका में एक प्रमुख भूमिका निभाने के तौर पर अपनी पहचान नहीं बना पाया था.
जहां तक यूक्रेन-अफ्रीका संबंधों की बात है तो मोरक्को और नाइजीरिया जैसे देशों के 8000 और 4000 छात्र यूक्रेन में पढ़ते हैं और इन छात्रों के उपचार और उनकी वतन वापसी को लेकर अफ्रीकी देश चिंतित हैं. यूक्रेन क़रीब 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निर्यात अफ्रीकी देशों को करता है.
हाल के वर्षों में रूस अफ्रीका में एक प्रमुख शक्ति बनकर उभरा है. मिसाल के तौर पर शुरूआत में 2013 में चरमपंथी जिहादी आतंकवादियों के ख़िलाफ़ मालियन राज्य में व्यवस्था बहाल करने के लिए फ्रांसीसी सैन्य हस्तक्षेप का माली की जनता के द्वारा स्वागत किया गया था. हालांकि जैसे ही फ्रांसीसी सैनिक माली से हट गए, रूस ने वैगनर समूह के माध्यम से सुरक्षा प्रदाता के तौर पर माली में फ्रांस की जगह अख़्तियार कर ली. साल 2014 से काम कर रहे वैगनर ग्रुप की संदिग्ध निजी सेना नाममात्र की निजी है असल में यह राष्ट्र पर क़ाबिज़ सत्ताधारी लोगों से जुड़ी हुई है और यही वैगनर ग्रुप यूक्रेन के साथ-साथ अन्य अफ्रीकी देशों में भी तैनात है. यूक्रेन युद्ध ने साहेल क्षेत्र, विशेष रूप से अफ्रीका में रूस के बढ़ते प्रभाव पर फ़्रांसीसी/यूरोपीय चिंताओं को भी बढ़ा दिया है. वास्तव में सोची में आयोजित अक्टूबर 2019 के रुसो-अफ्रीकी शिखर सम्मेलन के बाद, जिसमें सभी 54 अफ्रीकी राज्यों ने शिरकत की थी, रूस ने अफ्रीका में अपनी आर्थिक, वाणिज्यिक, रणनीतिक और सैन्य गतिविधियों के विस्तार में तेज़ी लाई है.
रूस के धीरे-धीरे होते विस्तारवाद ने बुर्किना फासो (सोना, जस्ता, तांबा और मैंगनीज़), गिनी (सोना, हीरा और तेल), मध्य अफ्रीकी गणराज्य (सीएआर) (यूरेनियम, सोना और हीरा) सहित सूडान (क्रोमियम अयस्क, लौह अयस्क, तांबा, चांदी और सोना) और माली (सोना और बॉक्साइट) जैसे कई संसाधन-समृद्ध देशों में अपने पैर फैलाए हैं. इसके अलावा रूस ने लीबिया और मिस्र जैसे भूमध्य सागर पर तेल-समृद्ध और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण देशों से भी मित्रता की है. पोर्ट सूडान में नौसेना बेस के साथ रूस हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका में अपनी उपस्थिति का विस्तार करने की कोशिश में लगा हुआ है. अफ्रीका में उग्रवाद का मुक़ाबला करने के लिए रूस द्वारा वैगनर समूह को तैनात किया जा रहा है. संक्षेप में, अतिरिक्त-कानूनी उपकरणों को तैनात करके रूस खनिज समृद्ध देशों में विभिन्न खनिज आधारित उद्योगों में अपने हितों की रक्षा करने के लिए कुलीनों/निरंकुश शासनों को संचालित करने का समर्थन करता रहा है. इसने अब तक भ्रामक सूचना अभियान चलाने और संसाधनों के लिए हथियारों की पेशकश करने में महारत हासिल कर ली है. जैसा कि सीएआर और गिनी में उदाहरण के तौर पर बताया जाता है, रूस अफ्रीकी देशों के घरेलू मामलों में नियमित रूप से हस्तक्षेप कर रहा है. अल्ज़ीरिया, अंगोला, बुरुंडी, गिनी, इक्वेटोरियल गिनी, मेडागास्कर, मोज़ाम्बिक, दक्षिण सूडान, युगांडा और ज़िम्बाब्वे सहित अफ्रीकी राज्यों को हथियारों, प्रौद्योगिकी और निवेश के मामले में रूस से प्रत्यक्ष संरक्षण मिल रहा है. इसके अलावा रूसी आक्रमण ने गेहूं सप्लाई के वैश्विक चेन को भी खतरे में डाल दिया है. क्योंकि दुनिया का 25 प्रतिशत गेहूं और 90 प्रतिशत पूर्वी अफ्रीकी राज्यों का गेहूं रूस और यूक्रेन से आयात किया जाता है. युद्ध न केवल खाद्य असुरक्षा को बढ़ाएगा बल्कि अफ्रीकी देशों को ईंधन की क़ीमतों में वृद्धि और व्यापार में गिरावट के कारण आर्थिक कठिनाइयों से गुजरने के लिए भी मज़बूर करेगा.
अल्ज़ीरिया, अंगोला, बुरुंडी, गिनी, इक्वेटोरियल गिनी, मेडागास्कर, मोज़ाम्बिक, दक्षिण सूडान, युगांडा और ज़िम्बाब्वे सहित अफ्रीकी राज्यों को हथियारों, प्रौद्योगिकी और निवेश के मामले में रूस से प्रत्यक्ष संरक्षण मिल रहा है. इसके अलावा रूसी आक्रमण ने गेहूं सप्लाई के वैश्विक चेन को भी खतरे में डाल दिया है. क्योंकि दुनिया का 25 प्रतिशत गेहूं और 90 प्रतिशत पूर्वी अफ्रीकी राज्यों का गेहूं रूस और यूक्रेन से आयात किया जाता है.
साम्राज्यवादी पश्चिम और विस्तारवादी रूस से निपटने के बाद, अफ्रीकी देश अब केवल दु्श्मनी को कम करने की दलील देकर रूस-यूक्रेन युद्ध के प्रति सतर्क रुख़ अपनाने के लिए मज़बूर हैं. जाहिर है रूस के साथ अपने बढ़ते संबंधों के बावजूद पिछले कुछ दशकों से अफ्रीकी देशों के यूरोपीय संघ (ईयू) के देशों और अमेरिका के साथ अच्छे संबंध रहे हैं. वास्तव में अगर पश्चिम ऊर्जा सुरक्षा के लिए रूस पर अपनी निर्भरता को कम करने की इच्छा रखता है तो ऊर्जा से संपन्न अफ्रीकी देशों को ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत के रूप में यूरोपीय संघ के देशों और अमेरिका के साथ लंबे समय में साझेदारी सौदे करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. उदाहरण के तौर पर तंजानिया के पास अफ्रीका का छठा सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस भंडार है. सेनेगल ने हाल ही में 40 ट्रिलियन क्यूबिक फीट प्राकृतिक गैस की खोज की है और नाइजीरिया पहले से ही कई यूरोपीय संघ के देशों के लिए एक तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG- Liquefied Natural Gas) का आपूर्तिकर्ता बना हुआ है. नाइजर और अल्ज़ीरिया के साथ, नाइज़ीरिया यूरोपीय संघ के बाज़ारों की ऊर्जा आपूर्ति को बढ़ाने के लिए ट्रांस-सहारन गैस पाइपलाइन भी शुरू कर रहा है. इस प्रकार रूस की तरह यूरोपीय संघ के देश और अमेरिका भी अफ्रीका के लिए मायने रखने वाले हैं.
यूक्रेन पर आक्रमण करके रूस द्वारा अंतरराष्ट्रीय कानून के उल्लंघन ने कई अफ्रीकी देशों को किसी भी प्रतिस्पर्द्धी पक्ष के साथ खड़े हुए बिना अपने हितों की रक्षा के प्रबंधन के साथ आगे चलने के लिए प्रेरित किया है. अफ्रीकी राज्यों की बारीक स्थिति को साम्राज्यवाद के चश्मे से बेहतर ढंग से समझा जा सकता है. हालांकि अतीत में पश्चिमी साम्राज्यवाद का मुक़ाबला करने के लिए, पूर्व सोवियत रूस ने अफ्रीका में उपनिवेशवाद विरोधी और नस्लवाद विरोधी संघर्षों का हमेशा से समर्थन किया था लेकिन विडंबना यह है कि पुतिन का रूस अब साम्राज्यवादी प्रवृत्तियों के साथ अफ्रीका में विस्तारवादी ताक़त के रूप में उभरता दिख रहा है. रूस के साथ-साथ पश्चिमी ताक़तवर देशों पर अफ्रीकी देशों की निर्भरता की वजह से अब कई अफ्रीकी राज्यों ने रूस-यूक्रेन के बीच जारी संघर्ष के जरिए अपने राष्ट्रीय हितों के प्रबंधन के लिए एक बेहद सतर्क रास्ता अख़्तियार कर लिया है.
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Rajen Harshé is a founder and former Vice Chancellor of the Central University of Allahabad Prayagraj and former President of the G.B. Pant Social Science ...
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