Author : Himani Pant

Published on Dec 28, 2016 Updated 0 Hours ago
रूसी राजदूत की हत्या से रूस-तुर्की संबंधों पर असर

तुर्की के राष्ट्रपति एर्डोगन एक बड़ी जनसभा को संबोधित करते हुए।

“नहीं, यह 1914 का सेराजेवो नहीं है… अंकारा और मास्को जंग नहीं छेड़ने वाले। बल्कि इसके उलट वे और करीब आ सकते हैं।” तुर्की के स्तंभकार मुस्तफा अकयोल ने यह ट्वीट तब किया जबकि तुर्की में 19 दिसंबर को रूसी राजदूत एंड्रे कार्लोव की हत्या के बाद रूस-तुर्की संबंधों के बारे में कई तरह की अफवाहें गर्म थीं। आरोप है कि राजदूत की हत्या मेवलूट मेर्ट अलटिनास नाम के पुलिस अधिकारी ने तब कर दी जब वह अंकारा में एक कला प्रदर्शनी के दौरान भाषण दे रहे थे। यह हत्या उस दौरान हुई जब सीरिया में रूस की भूमिका को ले कर तुर्की में प्रदर्शन हो रहे थे और एक दिन बाद ही तुर्की के विदेश मंत्री मास्को जाने वाले थे जहां वे रूस और ईरान के विदेश मंत्रालय के साथ सीरिया की स्थिति पर बैठक करने वाले थे।

सीरिया में गतिरोध के बढ़ने के साथ-साथ रूस और तुर्की के बीच तनाव भी बढ़ता गया है। जहां रूस, असद का समर्थन करता है, वहीं तुर्की, सीरिया में सत्ता परिवर्तन के लिए आंदोलित है। हालात खराब होते जाने और सीरियाई सत्ता के खिलाफ इस्लामी स्टेट के मुख्य विपक्ष के रूप में सामने आने के बाद कुर्द आबादी ने इस्लामी स्टेट के खिलाफ खड़ा होना शुरू कर दिया है। कुर्दों के बीच एकता के बढ़ने के साथ ही सीरिया में तुर्की के हित बहुत उलझ गए। अंकारा के लिए एक बड़ी चिंता यह है कि सीरियन कुर्दिश डेमोक्रेटिक यूनियन पार्टी (पीवाईडी) तुर्की से चलने वाली कुर्दिस्तान वर्कर पार्टी (पीकेके) से संबद्ध है, जिसे एक आतंकवादी संगठन के तौर पर देखा जाता है। तुर्की को अब यह चिंता भी है कि अगर सीरिया में पीवाईडी को कामयाबी मिली तो इससे तुर्की के खिलाफ पीकेके को भी मजबूती मिल जाएगी।

रूस की ओर से किए जा रहे हवाई हमलों की वजह से तुर्की और रूस में तनाव पहले से ही बढ़ा हुआ था, लेकिन नवंबर, 2015 में यह चरम पर पहुंच गया जब तुर्की ने रूस के एसयू-24 विमान को यह कहते हुए मार गिराया कि यह लड़ाकू विमान कई चेतावनियों के बावजूद उसकी हवाई सीमा में घुस आया था। हालांकि दोनों में फिर से संबंध स्थापित हो गए जब राष्ट्रपति एर्डोगन ने राष्ट्रपति पुतिन को खेद का पत्र भेजा जिसमें रूस को ‘एक मित्र और सामरिक साझेदार’ बताया गया था। उन्होंने रूसी पायलट के परिवार वालों को सांत्वना बंधाई और दोषियों को सजा दिलाने का वादा किया। यहां तक कि उन्होंने लड़ाकू विमान और पायलट के परिवार वालों को मुआवजा देना का भरोसा भी दिलाया। इस समय इनमें से कम से कम एक वादा तो पूरा होना बाकी है।

मुख्य रूप से शिया ईरान के समर्थन से चल रहे बशर अल असद की सत्ता का समर्थन कर रहे रूस के साथ दुबारा से बढ़ा यह मेल-जोल तुर्की में कई लोगों को रास नहीं आया। क्योंकि तुर्की सुन्नी विद्रोहियों के साथ है, जिन्हें अधिकांश परंपरावादी सुन्नी अरब राजशाही का समर्थन हासिल है। एर्डोगन की अपनी पार्टी (जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी) के समर्थक भी इस बात से खुश नहीं हैं कि तुर्की ने रूस के आगे हाथ खड़े कर दिए। इस भावना की झलक कार्लोव की हत्या केे दौरान भी दिखाई दी। खबरों के मुताबिक यहां हत्यारे ने राजदूत की हत्या के तुरंत बाद चिल्ला कर कहा था, ‘अलप्पो को भूलो मत, सीरिया को भूलो मत… इस बर्बरता में जो भी साथ हैं, उन सब को एक-एक कर कीमत चुकानी होगी।’

पिछले साल रूस के विमान को गिरा दिए जाने के बाद जिस तरह दोनों देशों के बीच रिश्ते खराब हुए थे, वैसा ताजा मामले के बाद नहीं होगा। रूस अब सीरियाई संघर्ष से बाहर निकलने का रास्ता तलाश रहा है। अमेरिका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस के साथ सहयोग करने को ले कर दिलचस्पी दिखाई है ऐसे में मास्को के पास भी यह मौका है कि इस संघर्ष से निकलने का ऐसा रास्ता तलाश सके जो श्री असद के साथ ही रूस के अपनी क्षेत्रीय सीमाओं के हित में भी हो।

रूस-तुर्की के दुबारा से मेल-जोल का संकेत राजदूत की हत्या के अगले दिन मास्को में हुई रूस, ईरान और तुर्की के विदेश मंत्रियों की बैठक में ही मिल गया था। तीनों देश ‘मास्को घोषणापत्र’ पर सहमत हुए थे, जिसमें कहा गया था कि सीरियाई संघर्ष का समाधान सैन्य तरीके से नहीं हो सकता। इसकी बजाय उन्होंने माना था कि संयुक्त राष्ट्र इस गतिरोध को दूर करने में यूएनएससी प्रस्ताव 2254 के तहत अनिवार्य भूमिका निभा सकता है। साथ ही इंटरनेशनल सीरिया सपोर्ट ग्रुप (आईएसएसजी) का संज्ञान लेते हुए उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सभी सदस्यों का आह्वाण किया कि वे इन दस्तावेजों के प्रावधानों को लागू करने में सहायता करें।

पिछले उदाहरण भी देखें तो मास्को अपने विमान के गिराए जाने से ज्यादा गुस्सा उसके पायलट के मारे जाने की वजह से हुआ था। इस ताजा मामले में भी यह कहना जल्दबाजी होगा कि रूसी नेता अपने एक राजनयिक की हत्या का मुआवजा नहीं मांगेंगे। ऐसा होने पर सीरिया मामले में समझौते के लिहाज से एर्डगोन की स्थिति पुतिन के मुकाबले और कमजोर होगी। जुलाई में हुई तख्तापलट की नाकाम कोशिश से राष्ट्रपति और सेना के बीच के मतभेद पहले ही सामने आ चुके हैं। एर्डगोन ने अपनी सत्ता को खतरा देखते हुए सेना के कई जनरल को जेल में डाल दिया है। सुरक्षा अधिकारी की ओर से हुई ताजा हत्या भी आंतरिक सुरक्षा पर एर्डगोन की मजबूत पकड़ नहीं होने का संकेत है।

अंदरूनी समर्थन की कमी के बीच तुर्की के नेता के लिए अपने घरेलू हितों को साधने और रूस व ईरान के साथ संबंधों को बेहतर करने की दोतरफा चुनौती के बीच संतुलन बनाना मुश्किल हो जाएगा, खास कर जब पश्चिम के साथ इसके रिश्ते बिगड़ रहे हैं।

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