Author : Ayjaz Wani

Expert Speak Raisina Debates
Published on Feb 28, 2025 Updated 0 Hours ago

सोवियत संघ के विघटन के बाद बने देशों पर रूस का प्रभाव कम होता जा रहा है. ऐसे में रूस सामूहिक सुरक्षा ढांचे के तहत कॉमनवेल्थ इंडिपेंडेंट स्टेट्स को एकीकृत करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन उसके इन प्रयासों को आंतरिक प्रतिरोध और मनमुटाव का सामना करना पड़ रहा है.

सामूहिक सुरक्षा का भरोसा देकर अपने पड़ोसी देशों को क्यों लुभा रहा है रूस?

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रूस ने स्वतंत्र देशों के राष्ट्रमंडल (सीआईएस) के लिए एक एकीकृत वायु रक्षा प्रणाली स्थापित करने का प्रस्ताव दिया है. रूस का कहना है कि इस क्षेत्र के देशों की सुरक्षा मज़बूत करने और आपसी सहयोग बढ़ाने में इससे मदद मिलेगी. दिसंबर 2024 में, मॉस्को में सीआईएस की सरकारी परिषद के प्रमुखों की बैठक हुई थी. इसमें सभी सदस्य देश इस साझा योजना के लिए धन आवंटित करने पर सहमत हुए, जिसकी देखरेख इन देशों के रक्षा मंत्री करेंगे. रूस की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में बेलारूस, कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान, उज़्बेकिस्तान, ताज़िकिस्तान और अज़रबैजान के प्रधानमंत्री, आर्मेनिया के उप प्रधानमंत्री और सीआईएस में तुर्कमेनिस्तान के स्थायी प्रतिनिधि शामिल हुए. पूर्व सोवियत संघ के देशों और गणराज्यों के साथ संबंधों को दोबारा मज़बूत करने के पीछे रूस के दो मक़सद हैं. पहला, रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान इस क्षेत्र में पश्चिमी देशों के बढ़ते प्रभाव को कम करना. दूसरा, अपने  भू-रणनीतिक प्रभाव को बढ़ाना. इन देशों के साथ सहयोग रूस की इसी व्यापक रणनीति का हिस्सा है. आज, सीआईएस (कॉमनवेल्थ ऑफ इंडिपेंडेंट स्टेट) में नौ सदस्य शामिल हैं, जिसमें तुर्कमेनिस्तान एक सहयोगी सदस्य है. जॉर्जिया 2008 में इस संगठन से बाहर हो गया था, जबकि यूक्रेन ने क्रीमिया पर रूस के कब्ज़े के बाद 2014 में इसमें भाग लेना बंद कर दिया. मोल्दोवा ने 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद इस संगठन छोड़ दिया.

पूर्व सोवियत संघ के देशों और गणराज्यों के साथ संबंधों को दोबारा मज़बूत करने के पीछे रूस के दो मक़सद हैं. पहला, रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान इस क्षेत्र में पश्चिमी देशों के बढ़ते प्रभाव को कम करना. दूसरा, अपने  भू-रणनीतिक प्रभाव को बढ़ाना.


सीआईएस और सीएसटीओ की स्थापना क्यों?


1991 में तत्कालीन सोवियत संघ के विघटन के बाद सीआईएस की स्थापना की गई थी. इसे बनाने का मक़सद इन देशों के बीच व्यापार, राजनीतिक और सुरक्षा मामलों में सहयोग की सुविधा मुहैया कराना था. सीआईएस की बैठकें सदस्य देशों में बारी-बारी से आयोजित की जाती हैं. शुरुआती दौर में इन बैठकों से सदस्य देशों को अपनी सीमाएं (बॉर्डर) पहचानने में मदद मिली. 1993 में इन देशों ने गतिविधियों के चार्टर को अपनाया. इस चार्टर का लक्ष्य पूर्ण निरस्त्रीकरण हासिल करना था. इसके तहत परमाणु हथियारों को कम करने के उद्देश्य से विश्व शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सदस्य देशों के सिद्धांतों, अधिकारों और दायित्वों को निर्धारित किया गया था. इतना ही नहीं CIS में ये भी फैसला किया गया कि सदस्य देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को बरकरार रखते हुए इनके नागरिकों की एक-दूसरे देशों में यात्रा को बढ़ावा दिया जाए, साथ ही सदस्य देशों के बीच संघर्षों और विवादों का समाधान करने का प्रस्ताव दिया गया. सीआईएस ने एक-दूसरे के घरेलू और विदेशी मामलों में दखलअंदाज़ी ना करने की परिकल्पना भी की थी.

CIS चार्टर के अध्याय-III के तहत, रूस ने यूरेशिया में पूर्व सोवियत गणराज्यों के साथ एक सैन्य गठबंधन बनाया. बाहरी सुरक्षा ख़तरों के ख़िलाफ़ आपसी रक्षा सुनिश्चित करने के लिए सामूहिक सुरक्षा संधि (सीएसटी) की गई. चार्टर के अनुच्छेद 12 के अनुसार, यदि किसी सदस्य देश को किसी बाहरी ख़तरे का सामना करना पड़ता है, तो ख़तरे को ख़त्म करने के लिए उस देश को सीआईएस के सदस्य देशों के साथ मिलकर समन्वित उपाय करना चाहिए. स्थापना के वक्त सीएसटी का कार्यकाल पांच साल निर्धारित किया किया गया था जब तक कि इसे विस्तार ना दिया जाए. 1999 में, कज़ाकिस्तान, बेलारूस, किर्गिस्तान, आर्मेनिया, ताज़िकिस्तान और रूस ने इस संधि को अगले पांच साल के लिए को रिन्यू किया. हालांकि, जॉर्जिया, उज़्बेकिस्तान और अज़रबैजान ने रिन्यू के समझौते पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया और सीएसटी से हट गए. साल 2002 में, सीएसटी को आधिकारिक तौर पर सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन (CSTO) का नाम दिया गया. इसमें ये संकल्प लिया गया कि अगर CSTO में शामिल किसी भी देश के ख़िलाफ़ हमला किया जाता है तो ये सभी सदस्य देशों पर हमला माना जाएगा. सीएसटीओ, एक पारस्परिक सुरक्षा समझौता है, जो सोवियत संघ के विघटन के बाद बने छह देशों को रक्षा सहयोग, हथियार निर्माण और आतंकवाद विरोधी अभियानों के लिए सुरक्षा बलों के प्रशिक्षण में एकजुट करता है. रूस इस संगठन का सबसे ताक़तवर देश है.

साल 2002 में, सीएसटी को आधिकारिक तौर पर सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन (CSTO) का नाम दिया गया. इसमें ये संकल्प लिया गया कि अगर CSTO में शामिल किसी भी देश के ख़िलाफ़ हमला किया जाता है तो ये सभी सदस्य देशों पर हमला माना जाएगा.


CSTO के तहत रूस ने ताज़िकिस्तान में 6,000 सैन्य कर्मियों को रखा. इसका उद्देश्य तालिबान द्वारा अफग़ानिस्तान पर कब्ज़ा करने के बाद किसी भी तरह के संभावित आक्रामक अतिक्रमण को रोकना था. 2010 में किर्गिस्तान में संकट के दौरान अपनी पिछली विफलताओं से रूस ने सबक सीखा. 2020 में दूसरे नागोर्नो-काराबाख संघर्ष में अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच सशस्त्र संघर्ष के बाद रूस ने कज़ाकिस्तान में संयुक्त सैन्य अभियान चलाकर 2022 में सीएसटीओ की प्रोफ़ाइल और अपना प्रभाव बढ़ाया. हालांकि, इस सबके बावजूद सीएसटीओ का भविष्य अंधकारमय दिख रहा है. इसकी सबसे बड़ी वजह 2022 में शुरू हुआ रूस-यूक्रेन है. इस जंग की शुरुआत के बाद रूस के भू-राजनीतिक प्रभाव में कमी आई है. इतना ही नहीं CSTO के सदस्य देशों के भीतर रूस के लोकप्रिय समर्थन में गिरावट आई है. आर्मेनिया ने दक्षिण काकेशस में रूस पर अपनी निर्भरता पर पुनर्विचार करते हुए 2023 सीएसटीओ शिखर सम्मेलन का बहिष्कार किया. अज़रबैजान भी तुर्की के साथ अपने संबंधों को मज़बूत कर रहा है. CSTO के किसी भी सदस्य देश ने डोनेट्स्क और लुहान्स्क पर रूस के कथित कब्जे को मान्यता नहीं दी. इसकी बजाए, इन देशों ने रूस, चीन, अमेरिका और अन्य के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने के लिए अपनी विदेश नीति में विविधता लाने की कोशिशों को तेज़ कर दिया है. परंपरागत रूप से इस क्षेत्र में आर्थिक और राजनीतिक मामलों में रूस का दबदबा रहा है, लेकिन सोवियत संघ के ये पूर्व गणराज्य देश अब रूस को क्षेत्रीय स्थिरता, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए ख़तरा मानने लगे हैं.

इस वक्त रूस का सारा ध्यान यूक्रेन पर है. इसकी वजह से CIS देशों में अस्थिरता देखने को मिल रही है. इसमें अज़रबैजान-आर्मेनिया संघर्ष भी शामिल है. कुछ मध्य एशियाई देशों को भी संप्रभुता संबंधी चिंताएं सता रही हैं. इसने पश्चिमी देशों के लिए इस क्षेत्र में हस्तक्षेप करने और इस खालीपन को भरने का मौका दिया है. इसके अलावा, यूक्रेन के साथ संघर्ष की शुरुआत के बाद से रूस से रक्षा आपूर्ति में कमी ने पड़ोसी देशों को तुर्किये, भारत और चीन जैसे वैकल्पिक हथियार विक्रेताओं की तरफ देखने पर मज़बूर कर दिया है. इससे रूस पर इनकी निर्भरता कम हो गई है. इस सैन्य गठबंधन (CSTO) के भीतर बढ़ते संदेह और गहराती दरारों को देखते हुए रूस ने व्यापक भू-रणनीतिक और भू-आर्थिक कारणों से अपने क्षेत्रीय प्रभुत्व को फिर से हासिल करने का रास्ता चुना है.



सामूहिक सुरक्षा सिद्धांत पर रूस नए सिरे से डाल रहा है ज़ोर

रूस अगर एक बार पड़ोसी देशों की तरफ देखने को मज़बूर हुआ है तो इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए हैं. इन प्रतिबंधों ने रूस के व्यापार पर बहुत असर डाला है. रूस को अब नए बाज़ार और व्यापार के लिए पड़ोसी देशों पर निर्भर होना पड़ रहा है. पश्चिमी देशों की उपस्थिति ने आर्थिक चुनौतियां पैदा की हैं. रूस की अर्थव्यवस्था पहले से ही काफ़ी नियंत्रित रही है, पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों ने अविश्वास और असुरक्षा का माहौल बनाया है. कई CIS देश, विशेष रूप से मध्य एशिया में, गैस और तेल निर्यात के लिए व्यापार मार्गों और बुनियादी ढांचे पर निर्भर हैं. इसके लिए रूस उनकी मदद करता है. मॉस्को मध्य गलियारे जैसे नए संपर्क मार्गों को लेकर भी चिंतित है. ये मिडिल कॉरिडोर चीन को सीआईएस देशों के माध्यम से यूरोप से जोड़ता है. अब तक इन रूट्स पर रूस का प्रभुत्व रहा है लेकिन अब इन व्यापार मार्गों में विविधता आ रही है.

इतना ही नहीं, रूस की कोशिश अपने आसपास के क्षेत्रों में चीन के प्रभाव को कम करना भी है. चीन इस क्षेत्र में अपनी सुरक्षा गतिविधियों को बढ़ा रहा है और रूस उसे रोकना चाहता है. चीन का मक़सद हथियार बिक्री के बाज़ार पर हावी होना है. इसी तरह, 2020 में नागोर्नो-काराबाख संघर्ष के बाद दक्षिण काकेशस में अज़रबैजान को तुर्किए हथियारों की बिक्री में वृद्धि हुई है. तुर्कमेनिस्तान जैसे मध्य एशियाई देश भी तुर्किए से हथियार खरीद रहे हैं. 2019 में तुर्की से होने वाले हथियारों के निर्यात में 23 प्रतिशत रक्षा उपकरण तुर्केमेनिस्तान जा रहे थे. हालांकि रूस अब भी CIS क्षेत्र के देशों के भीतर रक्षा आपूर्ति में एक प्रमुख शक्ति बना हुआ है, लेकिन चीन और तुर्किए की सैन्य प्रौद्योगिकी की बिक्री में लगातार हो रही वृद्धि इस क्षेत्र में एक भू-राजनीतिक बदलाव का संकेत दे रही है.

रूस बाहरी शक्तियों, विशेष रूप से नाटो और अमेरिका को CIS क्षेत्र के भीतर भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक ख़तरों के रूप में मानता है. क्षेत्रीय भू-राजनीतिक और सुरक्षा मामलों में रणनीतिक बढ़त बनाए रखने के लिए रूस ने सीआईएस के सदस्य देशों के बीच सैन्य सहयोग बढ़ाने की कोशिश शुरू की है.


2024 के पहले 10 महीनों में, सीआईएस सदस्य देशों के साथ रूस के व्यापार में 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई. ये बढ़कर 93 बिलियन अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा हो गया. ख़ास बात ये है कि इसमें से 85 प्रतिशत लेनदेन राष्ट्रीय मुद्राओं में किए गए. रूस बाहरी शक्तियों, विशेष रूप से नाटो और अमेरिका को CIS क्षेत्र के भीतर भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक ख़तरों के रूप में मानता है. क्षेत्रीय भू-राजनीतिक और सुरक्षा मामलों में रणनीतिक बढ़त बनाए रखने के लिए रूस ने सीआईएस के सदस्य देशों के बीच सैन्य सहयोग बढ़ाने की कोशिश शुरू की है. एक एकीकृत रक्षा प्रणाली स्थापित करने का रूस का प्रस्ताव इस क्षेत्र को दिए जा रहे है महत्व को दिखाता है. हालांकि, CIS के सदस्य देशों के अलग-अलग हित और द्विपक्षीय संघर्ष रूस के प्रभुत्व को चुनौती दे रहे हैं. कुछ बाहरी दबावों के साथ-साथ, क्षेत्रीय शक्तियां और नाटो भी रूस को उसके आसपास के क्षेत्रों में घेरने की कोशिश कर रही हैं. ऐसे में सीआईएस के भीतर एकीकृत रक्षा प्रणाली जैसी रूस की पहल की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वो इस गठबंधन के भीतर आंतरिक विभाजन और संघर्षों पर किस हद तक काबू पा सकता है.


अयाज़ वानी (पीएचडी) ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में फेलो हैं.

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