Expert Speak Raisina Debates
Published on Jun 19, 2024 Updated 0 Hours ago

यह त्रिपक्षीय मौज़ूदा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रणाली में विभाजन पैदा करने के बजाए आर्थिक प्रगति और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने की कोशिश करता है. जिस प्रकार से यह त्रिपक्षीय सम्मेलन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ है, उससे उम्मीद की किरण जगी है

चीन-जापान-कोरिया त्रिपक्षीय वार्ता: सहयोग के नए आयाम

हाल ही में चीन, दक्षिण कोरिया और जापान के नेता साढ़े चार साल के लंबे अंतराल के पश्चात नौवीं ट्राइलेटरल समिट यानी त्रिपक्षीय शिखर बैठक में हिस्सा लेने के लिए सियोल में जुटे थे. इस समिट के आयोजन का वक़्त बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि इन दिनों चीन और अमेरिका के बीच तेज़ होती महाशक्ति होड़ का साया पूर्वी एशियाई क्षेत्र पर मंडरा रहा है. इसके साथ ही वर्तमान में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भी ज़बरदस्त उथल-पुथल मची हुई है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ख़ास तौर पर सुरक्षा से संबंधित चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं और भू-राजनीति भी ज़बरदस्त उठापटक के दौर से गुजर रही है. वर्ष 2023 में अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया के बीच शिखर सम्मेलन होने और उसे संस्थागत स्वरूप मिलने के पश्चात चीन, जापान और दक्षिण कोरिया के बीच ट्राइलेटरल समिट का इतने लंबे अंतराल के बाद आयोजन, तमाम सवाल उठाता है. सवाल उठना लाज़िमी भी हैं कि आख़िर त्रिपक्षीय समिट को दोबारा से शुरू करने का औचित्य क्या है? और ट्राइलेटरल 2.0 से तीनों देशों को किस प्रकार से लाभ पहुंच सकता है?

 

आर्थिक सहयोग के मुद्दे पर आम सहमति बनाना

चीन, जापान और दक्षिण कोरिया के बीच पिछली व्यापार वार्ता वर्ष 2019 में आयोजित हुई थी, इसलिए इनके बीच यह त्रिपक्षीय समिट मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को आगे बढ़ाने के लिए बेहद अहम है. ज़ाहिर है कि मुक्त व्यापार समझौते को लेकर लंबे समय से कोई प्रगति नहीं हुई है. हालांकि, इन देशों के विदेश मंत्रियों और व्यापार मंत्रियों के बीच त्रिपक्षीय और द्विपक्षीय बैठकों में मुक्त व्यापार समझौते को लेकर विचार-विमर्श हुआ है, लेकिन दुर्भाग्य से कोविड-19 महामारी और उतार-चढ़ाव भरे कूटनीतिक रिश्तों के चलते मुकम्मल रूप से इसमें कुछ नहीं हो पाया. इस दिशा में जो कुछ भी प्रगति हुई वो एक लिहाज़ से सिर्फ़ बयान जारी करने तक ही सीमित रह गई. हालांकि, अब ऐसा नहीं होगा, क्योंकि इस त्रिपक्षीय समिट के दौरान जो भी बातचीत हुई है, निश्चित रूप से वो एफटीए से जुड़ी बातचीत की प्रक्रिया को तेज़ी से आगे बढ़ाने और प्रस्तावों को लागू करने में मददगार साबित होगी. इस बैठक के बाद तीनों देशों के नेताओं द्वारा जारी किए गए साझा वक्तव्य के मुताबिक़, उन्होंनेएक त्रिपक्षीय एफटीए के लिए बातचीत में तेज़ी लाने के लिए चर्चा-परिचर्चा को जारी रखने की प्रतिबद्धता जताई है, जिसका मकसद एक स्वतंत्र, निष्पक्ष, व्यापक, उच्च गुणवत्ता वाले और पारस्परिक रूप से लाभकारी एफटीए को ज़मीन पर उतारना है.’अगर इन तीनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौता हो जाता है, तो निसंदेह रूप से इससे तीनों के बीच व्यापक आर्थिक सहयोग सुनिश्चित होगा. आर्थिक रिश्तों में मज़बूती जहां द्विपक्षीय संबंधों को सशक्त करने का काम करती है, वहीं सुरक्षा से जुड़े मुद्दे कहीं कहीं पारस्परिक रिश्तों में खटास पैदा करने का काम करते हैं. ऐसे में एफटीए इन देशों के आपसी रिश्तों को सशक्त करने का काम करेगा. ट्राइलेटरल में शामिल तीनों देशों का पारस्परिक आर्थिक सहयोग मज़बूत करने का मकसद अलग-अलग है, यही वजह है कि इस त्रिपक्षीय समूह में नई जान फूंकने और इसे फिर से बहाल करने के कारण भी अलग-अलग हैं, जिनके बारे में इस लेख में आगे विस्तार से चर्चा की गई है.

 इस त्रिपक्षीय समूह में नई जान फूंकने और इसे फिर से बहाल करने के कारण भी अलग-अलग हैं, जिनके बारे में इस लेख में आगे विस्तार से चर्चा की गई है.

  • चीन

सियोल में आयोजित की गई इस त्रिपक्षीय समिट के समाप्त होने के बाद जारी किए साझा वक्तव्य में अर्थव्यवस्था वैश्विक हालातों को लेकर चीन की कुछ प्रमुख चिंताओं का उल्लेख किया गया है. चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग, दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक योल और जापान के प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा ने व्यापार और निवेश के लिए बिना भेदभाव वाला, खुला पारदर्शी माहौल बनाने हेतु समान अवसर उपलब्ध कराने का संकल्प लिया. इसके अलावा, तीनों नेताओं ने आपूर्ति-श्रृंखला सहयोग को प्रोत्साहित करने, इसमें आने वाली बाधाओं का समाधान करने और अपने बाज़ारों को एक दूसरे के लिए सहज बनाने पर भी सहमति जताई. ज़ाहिर है कि तीनों देशों के बीच यह समिट अमेरिका द्वारा सेमीकंडक्टर से संबंधित संवेदनशील प्रौद्योगिकी के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने, चीन में विकसित क्षेत्रों के आउटबाउंड निवेश यानी दूसरे देशों में अपने बिजनेस को फैलाने पर प्रतिबंध लगाने और चीनी वस्तुओं पर शुल्क लगाने को लेकर नए नियम-क़ानून बनाने की कोशिशों के तत्काल बाद हुई है.

जापान और कोरिया दोनों ही अमेरिका के निकटतम सहयोगी हैं और उन्नत सेमीकंडक्टर विनिर्माण उपकरणों एवं महत्वपूर्ण जानकारी तक चीन की पहुंच को सीमित करने की अमेरिकी रणनीति के लिहाज़ के बेहद अहम हैं. वर्तमान में खींचतान से भरे भू-राजनीतिक रिश्तों की वजह से चीन में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश अपने सबसे बुरे दौर में है और 30 साल के निचले स्तर पर पहुंच चुका है.

 

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) की सरकार की सबसे बड़ी ताक़त देश की अर्थव्यवस्था है. जिस प्रकार से चीन की अर्थव्यवस्था हिचकोले खा रही है, उससे सत्ता पर काबिज नेताओं में घबराहट फैली हुई है. ज़ाहिर है कि पिछले वर्ष चीन के सेंट्रल नेशनल सिक्योरिटी कमीशन यानी केंद्रीय राष्ट्रीय सुरक्षा आयोग ने अपने एक आकलन में साफ कहा था कि सरकार को "बद से बदतर हालात" का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए. चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेम्पररी इंटरनेशनल रिलेशंस के विशेषज्ञ ली वेई ने चीनी अर्थव्यवस्था को लेकर किए गए इस विपरीत आकलन के लिए "एक तरफा व्यापार संरक्षण" और "क्षेत्रीय एवं वैश्विक टकरावों" को ज़िम्मेदार ठहराया है. दक्षिण कोरिया और जापान के साथ अपने कूटनीतिक संबंधों में चीन ने चालाकी दिखाते हुए अपने पुराने रिश्तों, एक समान हितों और उद्देश्यों का हवाला देते हुए उन्हें अपने पाले में लाने की कोशिश की है. पिछले साल क्विंगदाओ में आयोजित इंटरनेशनल फोरम फॉर ट्राइलेटरल कोऑपरेशन के दौरान चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने जापान और कोरिया के राजदूतों से कहा था कि उन्हें पश्चिम के चंगुल से बाहर निकलने की कोशिश करनी चाहिए और "एशिया को फिर सशक्त बनाने" के लिए चीन का साथ देना चाहिए. यही सारी वजहें हैं, जिनके चलते चीन वर्ष 2019 में अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के कारण गतिरोध में फंसे मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को लेकर बातचीत दोबारा से शुरू करने पर ज़ोर दे रहा है.

 

  • दक्षिण कोरिया

दक्षिण कोरिया ने इस ट्राइलेटरल समिट के अध्यक्ष के तौर पर तीन देशों के इस समूह को दोबारा से जीवित करने के लिए राजनीतिक स्तर पर काफी कोशिशें की हैं. दरअसल, अमेरिका सरकार ने अपनी व्यापारिक नीतियों में जिन बातों को आधार बनाया है, उनमें दक्षिण कोरिया के पक्ष की अनदेखी की गई है. इसके चलते चाहे राष्ट्रपति ट्रंप का प्रशासन हो या फिर राष्ट्रपति बाइडेन का प्रशासन, सभी के द्वारा सिर्फ़ अमेरिका के फायदे वाली व्यापार नीतियों को लागू किया गया है. उदाहरण के तौर पर बाइडेन प्रशासन द्वारा लागू किए गए इन्फ्लेशन रिडक्शन एक्ट यानी मुद्रास्फ़ीति न्यूनीकरण अधिनियम (IRA) और हाल ही में लगाए तमाम टैरिफ जैसे कई क़दमों नीतियों ने दक्षिण कोरियाई कंपनियों के हितों को नुक़सान पहुंचाया है. इसके अतिरिक्त, सियोल यह अच्छी तरह से समझ चुका है कि अमेरिका या चीन में से किसी एक पर बहुत अधिक निर्भरता आर्थिक रणनीति के लिहाज़ से व्यावहारिक नहीं है. यानी उसका मानना है कि आर्थिक प्रगति और आर्थिक संतुलन के लिए चीन और अमेरिका दोनों के ही साथ अच्छे व्यापारिक रिश्ते क़ायम करना बेहतर है. इसीलिए, दक्षिण कोरिया मज़बूत आर्थिक संबंध बनाए रखने के लिए कूटनीति को एक ज़रूरी साधन मानता है.

  जापान और कोरिया दोनों ही अमेरिका के निकटतम सहयोगी हैं और उन्नत सेमीकंडक्टर विनिर्माण उपकरणों एवं महत्वपूर्ण जानकारी तक चीन की पहुंच को सीमित करने की अमेरिकी रणनीति के लिहाज़ के बेहद अहम हैं.

त्रिपक्षीय बैठक को दोबारा से प्रारंभ करने के पीछे दक्षिण कोरिया का मकसद चीन और जापान के साथ अपने रिश्तों को बेहतर बनाना है. यानी दक्षिण कोरिया का मानना है कि इस शिखर सम्मेलन की बैठकों के माध्यम से वो चीन के साथ अपने द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों में स्थिरता ला सकता है. ज़ाहिर है कि पहले दक्षिण कोरिया और चीन के आर्थिक रिश्तों में काफ़ी उथल-पुथल देखने को मिल चुकी है. ख़ास तौर पर जब से यून सुक योल दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति बने हैं और उन्होंने अमेरिका के साथ संबंधों को प्रगाढ़ करते हुए मूल्य-आधारित कूटनीति यानी स्वतंत्रता, लोकतंत्र, मानवाधिकार, क़ानून का शासन और बाज़ार अर्थव्यवस्था जैसे मुद्दों पर आधारित कूटनीति एवं आपसी सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा देना शुरू किया है, तब से दक्षिण कोरिया और चीन के रिश्तों में खटास शुरू हो गई. कहने का मतलब है कि अमेरिका के साथ दक्षिण कोरिया के क़रीबी सुरक्षा संबंधों ने कहीं कहीं बीजिंग के साथ सियोल के व्यापारिक और सुरक्षा रिश्तों को प्रभावित करने का काम किया है.

 आर्थिक प्रगति और आर्थिक संतुलन के लिए चीन और अमेरिका दोनों के ही साथ अच्छे व्यापारिक रिश्ते क़ायम करना बेहतर है. इसीलिए, दक्षिण कोरिया मज़बूत आर्थिक संबंध बनाए रखने के लिए कूटनीति को एक ज़रूरी साधन मानता है.

वास्तविकता यह है कि दक्षिण कोरिया का शीर्ष निर्यात बाज़ार अब चीन नहीं है, बल्कि अमेरिका बन गया है, बावज़ूद इसके सियोल को यह लगता है कि निर्यात पर निर्भर अर्थव्यवस्था होने के नाते वह चीनी बाज़ारों के महत्व को नज़रंदाज नहीं कर सकता है. ख़ास तौर पर ऐसे समय तो सियोल कतई यह ख़तरा मोल नहीं ले सकता है, जबकि उसे लगता कि इंडस्ट्रियल ट्रेड पॉलिसी यानी औद्योगिक व्यापार नीति और 10 प्रतिशत शुल्क लगाने जैसे मुद्दों पर अमेरिका के अगले राष्ट्रपति का रवैया दक्षिण कोरिया के निर्यात के लिए नुक़सानदायक होगा. ऐसे में साफ नज़र आता है कि दक्षिण कोरिया त्रिपक्षीय समूह को दोबारा से सक्रिय करके अमेरिका के अगले राष्ट्रपति के रुख का सामना करने के लिए या कहा जाए कि ट्रंप-प्रूफ होने के लिए चीन से अपने रिश्तों को सुधारना चाहता है और चीन के साथ वर्तमान आपूर्ति श्रृंखलाओं एवं व्यापारिक संबंधों को बरक़रार रखना चाहता है. इसके अलावा, सुरक्षा के मसले पर भी चीन सियोल के लिए काफ़ी अनुकूल है. उत्तर कोरिया के साथ उसकी तनातनी और रणनीतिक प्रतिद्वंदिता किसी से छिपी नहीं है. जिस प्रकार से दक्षिण कोरिया के रिश्ते मास्को के साथ बिगड़ते जा रहे हैं, उनमें बीजिंग ही वो कड़ी है, जो मुश्किल हालातों में सियोल और प्योंगयांग के बीच संपर्क का माध्यम बन सकता है.

 

  • जापान

इस ट्राइलेटरल को फिर से सक्रिय स्वरूप प्रदान करना देखा जाए तो जापान के लिए बेहद अहम है और इसके पीछे कई कारण हैं. यह अलग बात है कि त्रिपक्षीय अभी तमाम तरह की क्षेत्रीय मुश्किलों से घिरा हुआ है. चीन के सबसे बड़े विदेशी निवेशकों में जापान भी शामिल है और पूर्वी एशियाई आपूर्ति श्रृंखलाओं में जापान एक प्रमुख राष्ट्र है. इस लिहाज़ से देखा जाए तो जापान को कच्चे माल के व्यापार यानी उत्पादन में उपयोग की जाने वाली चीज़ों और वस्तुओं के व्यापार से सबसे अधिक लाभ होता है और यह जापान की विनिर्माण एवं निर्यात पर आधारित अर्थव्यवस्था का अटूट हिस्सा है. त्रिपक्षीय सहयोग को फिर से जीवित करने से आर्थिक मेलजोल, साझा तकनीक़ी विकास, जलवायु कार्रवाई, डिजिटल परिवर्तन और अन्य क्षेत्रों में ख़ासी बढ़ोतरी दर्ज़ की जा सकती है. बैठक के बाद जारी किए गए संयुक्त बयान में आपसी सहयोग के जिन छह प्रमुख क्षेत्रों को चिन्हित किया गया है, उनमें ये भी शामिल हैं.

 

जापान के लिए सबसे अहम बात यह है कि यह त्रिपक्षीय उसे अपने रणनीतिक हितों को संतुलित करने के लिए एक मंच उपलब्ध कराता है. जापान ने चीन को लेकर संतुलन वाला नज़रिया अपनाया है. ज़ाहिर है कि चीन दुनिया भर में यहां-वहां अपने दावे कर रहा है और नियम-क़ानून पर आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को चुनौती दे रहा है और ऐसा करके वो भू-राजनीतिक चिंता का कारण बन गया है. इसके बावज़ूद टोक्यो ने चीन के विरुद्ध रणनीतिक रूप से बहुत अधिक टकराव वाला दृष्टिकोण नहीं अपनाया है और बीजिंग के भौगोलिक आर्थिक महत्व को समझते हुए क्षेत्रीय फ्रेमवर्क में चीन को शामिल करने की कोशिश की है. इस प्रकार से देखा जाए तो जापान द्वारा चीन और दक्षिण कोरिया के साथ मिलकर त्रिपक्षीय को प्रोत्साहित करना केवल पूर्वी एशिया की भू-राजनीति में चीन की भूमिका को संतुलित करने का मौक़ा देता है, बल्कि क्षेत्रीय तनावों का समाधान निकालने के लिए भी एक मंच उपलब्ध कराता है. उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम और पूर्वी चीन सागर में क्षेत्रीय विवाद जैसी मौज़ूदा चुनौतियों के मद्देनज़र यह ट्राइलेटरल बेहद अहम है. हालांकि, इन बड़े मुद्दों का नौवीं त्रिपक्षीय समिट में जिक्र नहीं किया गया, इसके बाद भी यह एक बहुत महत्वपूर्ण क़दम है.

 जिस प्रकार से यह त्रिपक्षीय सम्मेलन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ है, उससे उम्मीद की किरण जगी है. यह इससे साबित होता है कि इस त्रिपक्षीय शिखर वार्ता के दौरान तीनों देशों को बीच कई महत्वपूर्ण मसलों पर एक राय बनी है.

कहा जा रहा है कि बीजिंग द्वारा टोक्यो और सियोल को वाशिंगटन से दूर करने के तमाम प्रयास किए गए है, लेकिन वे सभी नाक़ाम साबित हुए हैं. इससे ज़ाहिर होता है कि जापान जिसके साथ अपने संबंध बनाता है, उन्हें आसानी से टूटने नहीं देता है. साथ ही इससे यह भी साबित होता है कि अमेरिका के साथ अपने गठबंधन को लेकर जापान प्रतिबद्ध है और यही जापान की विदेश नीति की बुनियाद है. अमेरिका के साथ मज़बूत सैन्य और रणनीतिक संबंध देखा जाए तो जापान और दक्षिण कोरिया को चीन एवं उत्तर कोरिया की ओर से पैदा होने वाले संभावित ख़तरों के विरुद्ध सुरक्षा कवच प्रदान करते हैं. यह भी एक बहुत बड़ा कारण है, जिसकी वजह से अमेरिका के साथ इन दोनों देशों के मज़बूत संबंधों में व्यवधान डालना मुश्किल हो जाता है.



आगे की राह

इसमें कोई संदेह नहीं है कि चीन, दक्षिण कोरिया और जापान के बीच त्रिपक्षीय की शुरुआत सिर्फ़ पूर्वी एशियाई क्षेत्र, बल्कि हिंद-प्रशांत रीजन की आर्थिक स्थिरता एवं सुरक्षा के लिए एक सकारात्मक और सराहनीय प्रगति है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि यह त्रिपक्षीय मौज़ूदा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रणाली में विभाजन पैदा करने के बजाए आर्थिक प्रगति और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने की कोशिश करता है. जिस प्रकार से यह त्रिपक्षीय सम्मेलन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ है, उससे उम्मीद की किरण जगी है. यह इससे साबित होता है कि इस त्रिपक्षीय शिखर वार्ता के दौरान तीनों देशों को बीच कई महत्वपूर्ण मसलों पर एक राय बनी है. इसमें सबसे अहम, मुक्त व्यापार समझौते की बाचतीच को दोबार शुरू करने पर सहमति है. इसके अलावा, तीनों देशों के बीच तमाम बड़े क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर मतभेदों के बावज़ूद सहमति क़ायम होना भी इस त्रिपक्षीय की एक बड़ी उपलब्धि है. हालांकि, जिन देशों के रिश्तों में सुरक्षा और अर्थिक पहलू बहुत मायने रखता है, उनके बीच सब कुछ इतना सामान्य तरीक़े से घटित होगा, इसकी उम्मीद करना बेमानी सा होगा. ज़ाहिर है कि अंतर्राष्ट्रीय गठजोड़ों की प्रतिबद्धताएं, देश के लोगों की बदलती भावनाएं और सदस्य देशों के सुरक्षा हित, जैसे तमाम मुद्दे हैं, जो हर क़दम पर त्रिपक्षीय में शामिल तीनों देशों के फैसलों और कार्यों के समक्ष चुनौती पेश करेंगे. तमाम मुश्किलों के बावज़ूद त्रिपक्षीय द्वारा अब तक जो भी प्रगति की गई है, वो उम्मीद जगाने का काम करती है. हालांकि, अभी यह देखना शेष है कि आर्थिक मोर्चे पर सहयोग करने के लिए तीनों सदस्य देश अपने आपसी मतभेदों को किस प्रकार से किनारे रखते हुए आगे बढ़ते हैं


प्रत्नाश्री बसु ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.

अभिषेक शर्मा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च असिस्टेंट हैं.

कल्पित मानकीकर ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में फेलो हैं.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.

Authors

Pratnashree Basu

Pratnashree Basu

Pratnashree Basu is an Associate Fellow, Indo-Pacific at Observer Research Foundation, Kolkata, with the Strategic Studies Programme and the Centre for New Economic Diplomacy. She ...

Read More +
Abhishek Sharma

Abhishek Sharma

Abhishek Sharma is a Research Assistant with ORF’s Strategic Studies Programme. His research focuses on the Indo-Pacific regional security and geopolitical developments with a special ...

Read More +
Kalpit A Mankikar

Kalpit A Mankikar

Kalpit A Mankikar is a Fellow with Strategic Studies programme and is based out of ORFs Delhi centre. His research focusses on China specifically looking ...

Read More +