Author : Soumya Bhowmick

Published on Sep 18, 2023 Updated 0 Hours ago

स्टेबलकॉइन का विनियमन करके, नियामक संस्थाएं आविष्कार और यूज़र्स के हितों और वैश्विक अर्थव्यवस्था के बीच संतुलन स्थापित कर सकती हैं.

स्टेबलकॉइन का नियमन: कस रहा है शिकंजा

G20 के सदस्य देशों के राष्ट्रीय वित्तीय अधिकारियों के बीच तालमेल करने वाले वित्तीय स्थिरता बोर्ड (FSB) ने हाल ही में क्रिप्टोकरेंसी के नियमन के लिए अपने उच्च-स्तरीय सुझाव जारी किए हैं. ये सुझाव, वैश्विक क्रिप्टो रूप-रेखा को आकार देने में FSB द्वारा जोखिम पर ध्यान केंद्रित करने वाले नज़रिए को रेखांकित करते हैं. उल्लेखनीय रूप से पहले के नियमों से महत्वपूर्ण बदलाव करते हुए, ये सुझाव स्टेबलकॉइन जारी करने वालों के लिए ये शर्त लगाते हैं कि वो किसी भी देश में अपनी गतिविधियां चलाने के लिए वहां कारोबार करने का लाइसेंस ज़रूर ले लें. ये बदलाव, स्टेबलकॉइन देने वालों के काम-काज के तरीक़े और नियमों के अनपालन को सुधार सकता है, जिससे आख़िरकार उनकी विश्वव्यापी गतिविधियों पर असर पड़ेगा. स्टेबलकॉइन की संभावनाओं और इससे जुड़े जोखिमों को स्वीकार करते हुए, G20 देश और अंतरराष्ट्रीय संगठन इनके विनियमन के लिए अब ज़्यादा सक्रियता दिखा रहे हैं.

G20 के मौजूदा अध्यक्ष के तौर पर भारत ने क्रिप्टोकरेंसी पर एक नोट जारी किया है, जिसका मक़सद वैश्विक नियमन पर असर डालना है. ये नोट बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि, इसमें अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और FSB के उस साझा पेपर के लिए सुझाव दिए गए हैं

G20 के मौजूदा अध्यक्ष के तौर पर भारत ने क्रिप्टोकरेंसी पर एक नोट जारी किया है, जिसका मक़सद वैश्विक नियमन पर असर डालना है. ये नोट बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि, इसमें अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और FSB के उस साझा पेपर के लिए सुझाव दिए गए हैं, जिसको G20 के शिखर सम्मेलन के बाद प्रकाशित किया जाना है. भारत ने अपने नोट में FSB को असरदार तरीक़े से लागू करने, उभरते हुए बाज़ारों पर प्रभाव का मूल्यांकन करने, ग़ैर G20 देशों को इस प्रक्रिया में शामिल करने और IMF-FSB के बीच तालमेल की भूमिकाएं तय करने को लेकर सुझाव दिए हैं. भारत ने ये नोट G20 के शिखर सम्मेलन से ठीक पहले जारी किया था. इससे क्रिप्टोकरेंसी के विनियमन को लेकर भारत द्वारा अपनाया जा रहा सक्रिय नज़रिया दिखता है, जिसे वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों की बैठक के दौरान आपसी सहयोग से प्राप्त हुए विविधता भरे सुझावों से और मज़बूती मिली है. स्टेबलकॉइन का अधिकतम लाभ उठाना, उनके प्रभावी नियमन पर निर्भर करता है, जिससे भारत की कोशिशें और उल्लेखनीय हो जाती हैं.

विनियमन को आगे बढ़ाना

FSB के उच्च-स्तरीय सुझाव ये संकेत देते हैं कि वित्तीय स्थिरता की चिंताओं को देखते हुए, तमाम क्रिप्टो संपत्तियों और उनसे जुड़ी गतिविधियों के मामले में वैश्विक मानकों और सिद्धांतों में बड़ा बदलाव होने की उम्मीद है. FSB के सुझाव क्रिप्टो के लिए व्यापक नियमन पर ज़ोर देते हैं. इसमें ग्राहक की संपत्ति और क्रिप्टो मंचों के काम-काज को अलग अलग करने जैसे व्यापक विनियमन पर ज़ोर दिया गया है, जिससे तमाम देशों की अलग अलग विनियामक संस्थाओं के बीच सहयोग भी रेखांकित होता है.

इन सुझावों में वैश्विक नियमन, निगरानी, व्यवस्था करने और ‘ग्लोबल स्टेबलकॉइन्स’ (GSCs) की निगरानी पर काफ़ी ध्यान दिया गया है. FSB के उच्च-स्तरीय सुझावों में देशों के विनियामकों को सुझाव दिया गया है कि वो अपने अपने अधिकार क्षेत्र में स्टेबलकॉइन की गतिविधियों को नियंत्रित करें, उनकी निगरानी करें और उनके कारोबार को सीमित करें. ख़ास तौर से FSB ने नियामक संस्थाओं से अपील की गई है कि वो ये सुनिश्चित करें कि GSC को पहचानी जा सकने वाली और जवाबदेह संस्थाओं द्वारा ही जारी किया जाए. इन संस्थाओं को ‘प्रशासनिक संस्था’ कहा गया है, जिससे ज़रूरत पड़ने पर तुरंत इंसानी दख़ल दिया जा सके. क्योंकि GSC जारी करने वाली संस्थाएं ओपेन लेजर या ऐसी ही व्यवस्थाएं इस्तेमाल करते हैं, जिन्हें प्रशासित करने में काफी चुनौतियां आती हैं. ओपेन लेजर, निगरानी की विकेंद्रीकृत व्यवस्थाएं होती हैं, जो लेन-देन का भंडारण किसी सरकार या केंद्रीकृत अधिकरण के दायरे से बाहर करती हैं.

GSC को जारी करने वालों को मनी लॉन्ड्रिंग विरोधी या उनको पूंजी देने वालों से मुक़ाबला करने (AML/CFT) मानकों और फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) के ‘ट्रैवल रूल’ का पालन करना चाहिए और भेजने और प्राप्त करने वाले की जानकारी देनी चाहिए. डेटा मैनेजमेंट करने वालों को भी किसी देश के डेटा संरक्षण के नियमों का पालन करने के साथ साथ निजता भी उपलब्ध करानी चाहिए. ये सुझाव बिल्कुल सही समय पर दिए गए हैं, क्योंकि ग़ैरक़ानूनी गतिविधियों या मनी लॉन्ड्रिंग के लिए पसंदीदा क्रिप्टोकरेंसी बिटकॉइन में लोगों की दिलचस्पी कम होती जा रही है. क्रिप्टोकरेंसी सेक्टर में हुई तरक़्क़ी ने विकेंद्रीकृत वित्तीय प्रोटोकॉल को जन्म दिया है, जिसमें स्टेबलकॉइन और सेवाओं का घालमेल है, जिससे अपराधियों के लिए नए मौक़े पैदा हो गए हैं.

एक और अहम सुझाव उन संपत्तियों को अलग करने का है, जिनके भाव काल्पनिक हैं, और जो स्टेबलकॉइन के समर्थन मूल्य वाली रिज़र्व संपत्तियों की वजह से उथल-पुथल के शिकार होते हैं.

एक और अहम सुझाव उन संपत्तियों को अलग करने का है, जिनके भाव काल्पनिक हैं, और जो स्टेबलकॉइन के समर्थन मूल्य वाली रिज़र्व संपत्तियों की वजह से उथल-पुथल के शिकार होते हैं. इनको अलग करने से चलन वाले स्टेबलकॉइन की क़ीमत का एक न्यूनतम या उससे ज़्यादा स्तर बना रहे. वैसे तो इन सुझावों से कारोबारी बैंकों के समकक्षों को अलग रखा गया है. लेकिन, GSC जारी करने वालों को हर देश में लाइसेंस ज़रूर लेना चाहिए, ताकि कारोबार शुरू करने से पहले नियमन की तमाम शर्तों को पूरा किया जा सके. पुराने तजुर्बों को देखते हुए, रिज़र्व संपत्ति बनाकर रखने और क्रिप्टोकरेंसी में भरोसे को बरक़रार रखना, स्टेबलकॉइन के काम करने के लिए ज़रूरी है. मिसाल के तौर पर टेथर ने सरकारी मुद्रा के बराबर टोकेन रखने के दावे में धोखाधड़ी के आरोपों से निपटने के लिए 4.1 करोड़ डॉलर में समझौता किया. लेकिन, कमोडिटी फ्यूचर ट्रेडिंग कमीशन ने टेथर के इस झूठे दावे की पोल खोल दी. कमीशन ने बताया कि जून से सितंबर 2017 के बीच टेथर के स्टेबलकॉइन के बदले में केवल 6.15 करोड़ डॉलर की असली संपत्ति थी, जबकि उस वक़्त 44.5 करोड़ स्टेबलकॉइन चलन में थे. बिटकॉइन के कारोबार और उसके व्यापक विस्तार में टेथर की महत्वपूर्ण भूमिका ने बाज़ार में उथल-पुथल और वित्तीय अस्थिरता की चिंताओं को बढ़ा दिया था.

पहले और अब

इससे लगता है कि उच्च-स्तरीय सुझावों में स्टेबलकॉइन से पैदा होने वाली चुनौतियों और क्रिप्टोकरेंसी से जुड़े ग़लत व्यवहार से काफ़ी कुछ सीखा गया है. हालांकि, इस मामले में स्टेबलकॉइन जारी करने वालों के मौजूदा रुख़ को समझना भी ज़रूरी है. इस मामले में स्टार्ट-अप इकोसिस्टम की दो बड़ी कंपनियां, पेपाल और मेटा बहुत सक्रिय भूमिका निभाते हैं.

पेपाल ने अपने स्टेबलकॉइन पेपाल USD (PYUSD) को अमेरिकी डॉलर की क़ीमत के बराबर रखकर जारी किया था, ताकि क्रिप्टोकरेंसी बाज़ार में उठा-पटक का असर कम हो. PYUSD को पैक्सोस ट्रस्ट कंपनी जारी करती है और जितने भी स्टेबलकॉइन जारी होते हैं, उनके बराबर अमेरिकी डॉलर और नक़दी को जमा रखा जाता है, ताकि दोनों के बीच नियमित रूप से 1:1 का अनुपात बना रहे. PYUSD से यूज़र को पेपाल और दूसरे वॉलेट के बीच पैसे ट्रांसफर करने, एक दूसरे को भुगतान करने, ख़रीदारी करने और इसके समर्थन वाली क्रिप्टोकरेंसी में बदलने की सुविधा मिलती है. इस स्टेबलकॉइन ने इस पेपाल में वर्चुअल भुगतान को आसान बनाया है, और इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तुरंत पैसे भेजने की सुविधा मिलती है. कंटेंट बनाने वाले भी इसका समर्थन करते हैं. स्टेबलकॉइन के मौद्रिक संप्रभुता पर असर का मुद्दा वैश्विक परिचर्चाओं और वाद-विवाद में प्रमुख विषय बन चुका है. बड़ी बड़ी कंपनियों द्वारा अपने स्टेबलकॉइन जारी करने ने इस जटिल मसले में एक पेचीदगी और बढ़ा दी है.

स्टेबलकॉइन के मौद्रिक संप्रभुता पर असर का मुद्दा वैश्विक परिचर्चाओं और वाद-विवाद में प्रमुख विषय बन चुका है. बड़ी बड़ी कंपनियों द्वारा अपने स्टेबलकॉइन जारी करने ने इस जटिल मसले में एक पेचीदगी और बढ़ा दी है.

मेटा की क्रिप्टोकरेंसी का शुरुआती नाम लिब्रा था और अब उसे डायम कहा जाता है. फ़ेसबुक के व्यापक नेटवर्क को देखते हुए, एक वक़्त आशंका जताई जा रही थी कि डायम सरकारी करेंसियों को चुनौती देगी. फ़ेसबुक के स्टेबलकॉइन के इस वैश्विक दबदबे ने अंतरराष्ट्रीय नेताओं के बीच चिंता बढ़ गई थी. फ्रांस के वित्त मंत्री ब्रूनो ले मेयर ने डायम के एक संप्रभु मुद्रा में तब्दील होने और देशों की करेंसियों से होड़ लगाने का विरोध किया था. यूरोप के केंद्रीय बैंक की कार्यकारी परिषद के सदस्य बेनॉय कोएयू ने इसके नियमन की ज़रूरत पर बल दिया था. ये वाजिब चिंताएं थीं, क्योंकि क्रिप्टोकरेंसी के इस्तेमाल का एक बड़ा हिस्सा अवैध गतविधियों में लगता है, और मेटा के निजता से जुड़े मसलों ने ग्राहकों की सुरक्षा की चिंताओं को और बढ़ा दिया था. हाल ही में हाउस फिनांशियल सर्विसेज़ कमेटी और सीनेट बैंकिंग कमेटी की सुनवाई के दौरान इन मसलों की पड़ताल की गई थी. अमेरिका में तो ये विवाद बिना किसी नतीजे के ख़त्म हो गया, क्योंकि रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टियों के बीच इस पर आम सहमति नहीं बन सकी थी. लेकिन, यूरोपीय संघ (EU) ने क्रिप्टोकरेंसी का एक क़ानून, मार्केट्स इन क्रिप्टो एसेट्स (MiCA) पारित करके क्रिप्टोकरेंसी पर नियंत्रण और सख़्त कर दिया है.

मेटा के डायम और पेपाल के स्टेबलकॉइन जारी करने से जुड़ी चिंताएं, मुख्य रूप से करेंसियों पर मौद्रिक नियंत्रण और करेंसी जारी करने में केंद्रीय बैंकों की भूमिका से जुड़ी थीं. अमेरिका के फेडरल रिज़र्व जैसे केंद्रीय बैंकों ने सरकारी मुद्रा से मिलते जुलते स्टेबलकॉइन जारी करने को लेकर आशंकाएं जताई थीं. उनका कहना था कि ये मुद्राएं असली करेंसी की क़ीमत के बराबर होती हैं, लेकिन इनके एवज़ में जो डिपॉज़िट होता है, वो किसी देश की संप्रभु ताक़तों के बजाय वित्तीय संपत्ति का होता है. इस तरह ये स्टेबलकॉइन मनी मार्केट के फंड की व्यवस्था पर चलते हैं.

भविष्य की राह तय करना

लोगों को सशक्त बनाने के नाम पर बड़ी बड़ी निजी कंपनियों द्वारा अपनी मुद्रा जारी करना, देशों की मौद्रिक संप्रभुता में ख़लल डालने जैसी चिंताएं पैदा करता है. इससे पैसे और लेन-देन को लेकर लोगों का रवैया बदल सकता है. इसीलिए, FSB के उच्च-स्तरीय सुझाव दुनिया भर की सरकारों की उन चिंताओं की अभिव्यक्ति हैं, जिनमें स्टेबलकॉइन को लेकर जवाबदेही और पारदर्शिता बढ़ाने पर ज़ोर दिया जा रहा है.

स्टेबलकॉइन को लेकर भारत का रुख़ काफ़ी हद तक स्पष्ट है. दुनिया भर में स्टेबलकॉइन के विस्तार के बाद ही भारत ने डिजिटल रुपये की शुरुआत की थी. रिज़र्व बैंक के डिप्टी गवर्नर रबि शंकर ने ज़ोर देकर कहा था कि स्टेबलकॉइन किसी देश की नीतिगत संप्रभुता के लिए बड़ा ख़तरा हैं और इनसे कुछ गिने-चुने देशों को ही फ़ायदा होता है. रबि शंकर ने इस बात को रेखांकित किया था कि, स्टेबलकॉइन को लेकर आशंकाओं को देखते हुए, केंद्रीय बैंकों द्वारा जारी डिजिटल करेंसी (CBDC) हर देश के लिए अधिक भरोसेमंद और स्थायी समाधान उपलब्ध कराती है. उन्होंने ये भी कहा था कि स्टेबलकॉइन, अमेरिका और यूरोप जैसी अर्थव्यवस्थाओं के लिए उपयोगी हैं, ख़ास तौर से तब और जब उन्हें उनकी राष्ट्रीय मुद्राओं के साथ जोड़ा जाता है. हालांकि, उन्होंने चेतावनी दी थी कि भारत जैसे देशों में स्टेबलकॉइन, घरेलु अर्थव्यवस्था में भारत की राष्ट्रीय मुद्रा रुपये की जड़ें खोदने का काम करेंगे.

रिज़र्व बैंक के डिप्टी गवर्नर रबि शंकर ने ज़ोर देकर कहा था कि स्टेबलकॉइन किसी देश की नीतिगत संप्रभुता के लिए बड़ा ख़तरा हैं और इनसे कुछ गिने-चुने देशों को ही फ़ायदा होता है.

क्रिप्टोकरेंसी की दुनिया में स्टेबलकॉइन से कई तरह के फ़ायदे होते हैं. अगर उनकी क़ीमत सरकारी मुद्रा के बराबर तय की जाए, तो इससे स्टेबलकॉइन की क़ीमतें स्थिर रहती हैं, जिससे अन्य क्रिप्टोकरेंसी में दिखने वाले उतार-चढ़ाव का असर कम होता है. हालांकि, वित्तीय स्थिरता, ग्राहकों का संरक्षण, अवैध गतिविधियां रोकने और वित्तीय व्यवस्था की अखंडता सुनिश्चित करने के लिए स्टेबलकॉइन का नियमन बहुत ज़रूरी है. सही विनियमन से स्टेबलकॉइन के संभावित दुरुपयोग, मनी लॉन्ड्रिंग और फ़र्ज़ीवाड़े को रोका जा सकता है. इससे उनके इस्तेमाल की स्पष्ट रूप-रेखा भी बनती है, ताकि बाज़ार में हेरा-फेरी को रोका जा सके और मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक व आतंकवाद निरोधक वित्तीय उपायों का अनुपालन हो सके. इनसे जुड़े नियमों को संस्थागत तरीक़े से लागू करके अधिकारी, आविष्कार और यूज़र के हितों की रक्षा और वैश्विक अर्थव्यवस्था के बीच सटीक संतुलन बना सकते हैं.

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