Author : Saranya

Published on Oct 13, 2021 Updated 0 Hours ago

चीन ने भी महामारी और अमेरिकी पाबंदियों की दोहरी मार के चलते चिप की किल्लत से जुड़ी समस्या से निपटने के प्रयास तेज़ कर दिए हैं.

चिप के लिए रस्साकशी: तक़नीकी संप्रभुता हासिल करने की होड़ में दो खेमों में बंटती दुनिया

कोरोना महामारी के प्रसार और आबादी के एक बड़े हिस्से के घर में क़ैद रहने की वजह से उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों की मांग में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है. इसके साfथ ही स्थानीय तौर पर महामारी के पांव पसारने की वजह से फ़ैक्ट्रियों के जब-तब बंद होने की नौबत आती रही है. इसके चलते fइन सामानों के उत्पादन में गिरावट देखी गई है. आपूर्ति से जुड़ी दिक्कतों का पूर्वानुमान लगाते हुए कुछ कंपनियों ने अपने यहां चिप का भंडार इकट्ठा कर लिया. इससे इन उत्पादों की आपूर्ति से जुड़ी समस्या और गंभीर हो गई. ये संकट इतना ज़बरदस्त है कि इसे हॉलीवुड की एक मशहूर फ़िल्म की तर्ज पर “चिपेगैडन” का नाम दिया गया है. हालांकि, महामारी का प्रभाव अब पहले से काफ़ी कम हो गया है लेकिन इसके बावजूद चिप की किल्लत से जुड़ी समस्या जस की तस बरकरार है. बैंक ऑफ़ अमेरिका द्वारा अपने ग्राहकों को जारी एक नोट के मुताबिक सेमीकंडक्टर वेफ़र और सबस्ट्रेट्स की आपूर्ति से जुड़ी समस्या में इस साल के अंत तक मामूली सुधार आने की ही उम्मीद है. वहीं कुछ अत्याधुनिक तकनीक से जुड़े उत्पादों (कम्प्यूटिंग, 5जी चिप्स) की आपूर्ति से जुड़ी दिक्कत 2022 में भी बरकरार रहने की आशंका है. आपूर्ति भंडारों में इन उत्पादों की पर्याप्त मौजूदगी के बाद ही ये समस्या दूर हो सकेगी.

संकट इतना ज़बरदस्त है कि इसे हॉलीवुड की एक मशहूर फ़िल्म की तर्ज पर “चिपेगैडन” का नाम दिया गया है. हालांकि, महामारी का प्रभाव अब पहले से काफ़ी कम हो गया है लेकिन इसके बावजूद चिप की किल्लत से जुड़ी समस्या जस की तस बरकरार है. 

सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री अपनी क्षमता का बेहतरीन इस्तेमाल करने के लिए मशहूर है. मांग में उम्मीद से ज़्यादा तेज़ गति से बढ़ोतरी होने के चलते सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री अपनी क्षमता के इस्तेमाल की दर में भारी बढ़ोतरी कर रही है. हालांकि केवल क्षमता इस्तेमाल में बढ़ोतरी से ही दीर्घकाल के लिए माइक्रोप्रोसर्स की मांग में होने वाली बढ़ोतरी को पूरा नहीं किया जा सकता. इसके लिए चिपमेकर्स को अपनी उत्पादन क्षमता को भी बढ़ाना होगा. चिप निर्माण से जुड़े कार्य में पूंजी और नवाचार से जुड़ी प्रक्रियाओं की सबसे ज़्यादा अहमियत होती है. कांउटरप्वॉएंट रिसर्च की एक रिपोर्ट के मुताबिक चिप निर्माण से जुड़ी गतिविधियों में शामिल मझौले आकार वाली ज़्यादातर कंपनियों को पिछले कुछ वर्षों से बेहद निम्न आमदनी, कम मुनाफ़े और ऊंचे ऋण अनुपात से जुड़े हालातों का सामना करना पड़ रहा है. ज़ाहिर है कि वो अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ा पाने में सक्षम नहीं हैं. लिहाज़ा उत्पादन क्षमता में बढ़ोतरी का ज़िम्मा इस क्षेत्र की बड़ी कंपनियों के कंधों पर ही है. दुनिया की सबसे बड़ी सेमीकंडक्टर निर्माण कंपनियों में से एक ताइवान सेमीकंडक्टर मैनुफ़ैक्चरिंग कं. (टीएसएमसी) ने अगले तीन सालों में 100 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश करने का एलान किया है. कंपनी ने पूंजीगत ख़र्च का रिकॉर्ड सालाना बजट रखा है. मेमोरी चिप निर्माण में दुनिया की शीर्ष इकाई सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी ने इस सिलसिले में अपना विज़न 2030 पेश किया है. इसके तहत कंपनी ने इस दशक में कुल 116 अरब डॉलर का निवेश करने का ऐलान किया है. इंटिग्रेटेड डिवाइस मैनुफ़ैक्चरर (आईडीएम) इंटेल ने “इंजीनियरिंग द फ़्यूचर” शीर्षक से प्रसारित वेबकास्ट में एरिज़ोना में 2023 तक 20 अरब अमेरिकी डॉलर की लागत से दो नई फ़ैक्ट्रियां लगाने की अपनी योजना का एलान किया है.

चिप, माइक्रोप्रोसेसर और सेमीकंडक्टर की आपूर्ति से जुड़ी इस समस्या ने भू-राजनीति से जुड़े नाज़ुक हालातों को भी जगज़ाहिर कर दिया है. भले ही इंटीग्रेटेड सर्किट (आईसी) की डिज़ाइनिंग के मामले में अमेरिका दुनिया की अगुवाई करता है, लेकिन इसके निर्माण में ताइवान और दक्षिण कोरिया का दबदबा है. टीएम लोम्बार्ड से जुड़े अर्थशास्त्री रोरी ग्रीन के आकलनों के मुताबिक दुनियाभर में प्रोसेसर चिप्स के उत्पादन में ताइवान और दक्षिण कोरिया का हिस्सा 83 प्रतिशत है. जबकि मेमोरी चिप्स के वैश्विक निर्माण में इन दोनों देशों का हिस्सा 70 प्रतिशत है. विश्व में चिप उत्पादन में अमेरिका का हिस्सा 1990 में 37 प्रतिशत था जो अब घटकर 12 प्रतिशत तक आ गया है. अमेरिका में सक्रिय एक लॉबी ग्रुप ने मौजूदा संकट को भविष्य में आपूर्ति की किल्लत से जुड़ी समस्याओं की ‘पूर्व चेतावनी’ करार दिया है. चिप निर्माण से जुड़े व्यवसाय की अहमियत को समझते हुए अमेरिकी सीनेट ने पिछले साल CHIPS for America Act पास किया था. इस क़ानून को नेशनल डिफ़ेंस ऑथोराइज़ेशन एक्ट (एनडीएए) के हिस्से के तौर पर ही पारित किया गया था.

चिप निर्माण से जुड़ी गतिविधियों में शामिल मझौले आकार वाली ज़्यादातर कंपनियों को पिछले कुछ वर्षों से बेहद निम्न आमदनी, कम मुनाफ़े और ऊंचे ऋण अनुपात से जुड़े हालातों का सामना करना पड़ रहा है. ज़ाहिर है कि वो अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ा पाने में सक्षम नहीं हैं. 

चिप को लेकर चीन-अमेरिका में व्यापार युद्ध

जून 2021 में अमेरिकी सीनेट ने यूनाइटेड स्टेट्स इनोवेशन एंड कंपिटिशन एक्ट (यूएसआईसीए) पास किया. इसके तहत क्रिएटिंग हेल्पफ़ुल इंसेंटिव्स टू प्रोड्यूस सेमीकंडक्टर्स (CHIPS) फ़ॉर अमेरिका एक्ट को ज़रूरी रकम मुहैया कराने से जुड़ी ज़िम्मेदारियों को भी शामिल किया गया है. इस क़ानून के तहत सेमीकंडक्टर्स के निर्माण और रिसर्च से जुड़े काम के लिए 52 अरब अमेरिकी डॉलर की रकम मुहैया कराई जाएगी. इसमें सीधे तौर पर ऑटो-चिप्स के लिए दी जाने वाली 2 अरब अमेरिकी डॉलर की रकम भी शामिल है. इसके बाद अमेरिकी संसद में रिपब्लिकन और डेमोक्रेट दोनों पार्टियों की सहमति से सांसदों ने एक विधेयक पेश किया. इसके तहत सेमीकंडक्टर निर्माण से जुड़े उपकरणों और सुविधाओं पर निवेश के लिए 25 फ़ीसदी टैक्स क्रेडिट देने का प्रावधान किया गया है. ज़ाहिर है कि अमेरिकी प्रशासन ने सेमीकंडक्टर के मामले में विश्व की अगुवाई करने वाला रुतबा एक बार फिर हासिल करने में कोई कोर-कसर बाक़ी नहीं छोड़ी है. हालांकि दोबारा वो मुकाम हासिल करने और उत्पादन क्षमता को ऊंचा उठाने में अभी काफ़ी समय लगने वाला है.

यूरोपीय संघ भी अब एशियाई या अमेरिकी सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन पर निर्भरता से जुड़े ख़तरों के प्रति चौकन्ना हो गया है. पिछले महीने अपने सालाना स्टेट ऑफ़ द यूनियन स्पीच के दौरान यूरोपीय आयोग की अध्यक्षा उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने तत्काल “अत्याधुनिक यूरोपीय चिप तंत्र” तैयार करने की ज़रूरत पर काफ़ी ज़ोर दिया.

बहरहाल चीन ने भी महामारी और अमेरिकी पाबंदियों की दोहरी मार के चलते चिप की किल्लत से जुड़ी समस्या से निपटने के प्रयास तेज़ कर दिए हैं. इस सिलसिले में चीन की सरकार रिसर्च के क्षेत्र में और ऋण से जुड़ी ज़रूरतों को पूरा करने पर बड़ी रकम ख़र्च कर रही है. इसके साथ ही चीनी सरकार ने सेमीकंडक्टर से जुड़े समूचे तंत्र के लिए करों से जुड़ी रियायतों, प्रोत्साहनों और तमाम तरह के लुभावने प्रावधानों का एलान किया है. इनमें आईसी निर्माण, आईसी डिज़ाइन, आईसी उपकरण, आईसी से जुड़े ज़रूरी पदार्थों, आईसी पैकेजिंग और आईसी टेस्टिंग एंटरप्राइज़ेज के लिए घोषित तमाम रियायतें शामिल हैं. चीनी कंपनियों ने चिप निर्माण से जुड़े शीर्ष ताइवानी कारखानों में काम कर रहे इंजीनियरों को अपने पाले में लाने की क़वायद तेज़ कर दी है. चीन अपने यहां इस काम में महारत रखने वाले इंजीनियरों की किल्लत दूर करने के लिए इस तरह की आक्रामक नीति अपना रहा है. हालांकि चीन के इस पैंतरे ने ताइवान को भी पलटवार करने पर मजबूर कर दिया है. ताइवानी सरकार ने एक बार फिर साफ़ किया है कि अत्याधनिक तकनीक में महारत रखने वाली प्रतिभा उसकी राष्ट्रीय अर्थनीति का बेहद अहम हिस्सा है. लिहाज़ा ताइवानी सरकार ने स्थानीय रोज़गार प्रदाता कंपनियों को चीन में नौकरियों के लिए जारी किए गए तमाम विज्ञापनों को हटाने के लिए कहा है. इतना ही नहीं ताइवान ने स्थानीय भर्ती कंपनियों के ख़िलाफ़ एक जांच भी शुरू कर दी है. चीनी मुख्य भूमि में सक्रिय चिप निर्माताओं के लिए सेमीकंडक्टर में महारत रखने वाली स्थानीय ताइवानी प्रतिभाओं की नियुक्ति किए जाने के आरोपों के बाद इस तरह की जांच बिठाई गई है.

अमेरिकी प्रशासन ने सेमीकंडक्टर के मामले में विश्व की अगुवाई करने वाला रुतबा एक बार फिर हासिल करने में कोई कोर-कसर बाक़ी नहीं छोड़ी है. हालांकि दोबारा वो मुकाम हासिल करने और उत्पादन क्षमता को ऊंचा उठाने में अभी काफ़ी समय लगने वाला है. 

चीन और अमेरिका के बीच छिड़े व्यापार युद्ध के प्रभाव से यूरोप भी अछूता नहीं रह सका है. अमेरिका ने डच कंपनी एएसएमएल पर चीन को एक्स्ट्रीम-अल्ट्रावॉयलेट लिथोग्राफ़ी मशीनों की बिक्री रोकने का ज़बरदस्त दबाव बनाया. एएसएमएल के सामने अत्याधुनिक लिथोग्राफ़ी मशीनों की मांग की बाढ़ सी आ गई है. ऐसे में उसके समक्ष अपने उपभोक्ताओं की वरीयता तय करने की चुनौती खड़ी हो गई है. यूरोपीय संघ भी अब एशियाई या अमेरिकी सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन पर निर्भरता से जुड़े ख़तरों के प्रति चौकन्ना हो गया है. पिछले महीने अपने सालाना स्टेट ऑफ़ द यूनियन स्पीच के दौरान यूरोपीय आयोग की अध्यक्षा उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने तत्काल “अत्याधुनिक यूरोपीय चिप तंत्र” तैयार करने की ज़रूरत पर काफ़ी ज़ोर दिया. इसके तहत उन्होंने डिज़ाइनिंग, टेस्टिंग, उत्पादन और बीमा से जुड़ी तमाम व्यवस्थाएं खड़ी करने की बात कही है. 2030 तक वैश्विक चिप्स बाज़ार में यूरोप का हिस्सा बढ़ाकर 20 प्रतिशत करने के लिए उन्होंने “यूरोपियन चिप्स एक्ट” का प्रस्ताव करने के इरादे की घोषणा भी की है.

इस संदर्भ में उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने बिल्कुल सटीक बात की है. उनका विचार है कि ये तमाम क़वायद सिर्फ़ प्रतिस्पर्धी क्षमता से जुड़ा मुद्दा ही नहीं बल्कि “तकनीक के क्षेत्र में संप्रभुता” से जुड़ा मसला भी है. बहरहाल इस पूरे मामले में एक बात सौ फ़ीसदी पक्की है. वो बात ये है कि तकनीक के क्षेत्र में पहले से चली आ रही गलाकाट प्रतिस्पर्धा के जल्द मंद पड़ने के कोई आसार नहीं हैं.

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