Author : Gurjit Singh

Published on Aug 28, 2023 Updated 0 Hours ago

सफल अफ्रीका शिखर सम्मेलनों का विस्तार करने, आर्थिक संपर्क बढ़ाने और क्षेत्रीय विकास बैंकों के साथ सहभागिता के ज़रिए LOC वितरण में सुधार लाने के लिए भारत, क्षेत्रीय वित्तीय संस्थाओं के साथ काम कर सकता है.

अफ्रीका में क्षेत्रीय सहयोग के दायरे का विस्तार ज़रूरी

अगले भारत-अफ्रीका मंच शिखर सम्मेलन (IAFS IV) का समय क़रीब आ रहा है. पहले तीन शिखर सम्मेलन 2008, 2011 और 2015 में आयोजित किए गए थे. पहले दो शिखर सम्मेलनों की संरचना बांजुल प्रारूप पर आधारित थी. इस प्रारूप के तहत भारत, अफ्रीकी संघ (AU) के ज़रिए केवल 15 राष्ट्राध्यक्षों या सरकार के प्रमुखों को आमंत्रित करता है. दूसरी ओर, IIFS III संपूर्ण अफ्रीका की परिकल्पना पर आधारित था. तार्किक धारणा के हिसाब से ऐसा लगता है कि IAFS IV भी बांजुल प्रारूप से आधार पर हो सकता है.

इस लेख में तर्क दिया गया है कि इस क़वायद को कुशल और उत्तरदायी संस्थानों के साथ मिलकर रणनीतिक रूप से आगे बढ़ाया जाना चाहिए. इस कड़ी में केवल IAFS को छोड़कर अन्य कालखंडों में सभी क्षेत्रीय आर्थिक समुदायों के साथ फिर से जुड़ने की कोशिश करने की ज़रूरत नहीं है.

क्षेत्रीय श्रेणी के महत्व का प्रदर्शन करते हुए अफ्रीकी संघ ने 16 जुलाई 2023 को अपने सदस्यों, क्षेत्रीय आर्थिक समुदायों (RECs), क्षेत्रीय तंत्रों और AU आयोग के बीच पांचवीं मध्य-वार्षिक समन्वय बैठक (MYCM) का आयोजन किया. बांजुल प्रारूप, अफ्रीका के त्रि-स्तरीय संगठन को मान्यता देता है और भागीदारों को उन स्तरों पर सहयोग करने के लिए आमंत्रित करता है. शुरुआती वर्षों में अफ्रीकी संघ (AU), REC और परंपरागत द्विपक्षीय तरीक़ों से त्रिस्तरीय सहयोग को आगे बढ़ाने में भारत का बेहतरीन रिकॉर्ड रहा था.

हालांकि पहले के नतीजे भारतीय क़वायदों के अनुरूप नहीं थे. AU ने अक्सर इस बात को माना कि अफ्रीका की त्रिस्तरीय प्राथमिकताओं को स्वीकार करने में भारत सबसे अच्छे साझेदारों में से एक था. अफ्रीकी संघ के साथ, भारत ने 47 देशों में पैन-अफ्रीकन ई-नेटवर्क परियोजना पर अमल किया है, जिसे अच्छी सफलता मिली है. AU के माध्यम से पैन-अफ्रीकन संस्थानों को लेकर बाद की क़वायदों को कामयाबी नहीं मिल पाई. स्थानों को लेकर राजनीतिक पसंद और मेज़बान देशों द्वारा अपनी ज़िम्मेदारियों का पालन ना करना, नाकामयाबियों की मुख्य वजहें थीं.

इसी तरह भारत ने 2008 से पहले अनेक क्षेत्रीय आर्थिक समुदायों (RECs) के साथ विचारों का आदान-प्रदान किया था. इनमें पूर्वी अफ्रीकी समुदाय (EAC), दक्षिणी अफ्रीकी विकास समुदाय (SADC), और पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका के लिए साझा बाज़ार (COMESA) जैसे RECs शामिल हैं. भारत-अफ्रीका मंच शिखर सम्मेलन प्रक्रिया में RECs की अटूट भूमिका है. उनके महासचिवों और अधिकारियों ने तीन अवसरों पर भारत की अलग-अलग यात्राओं के लिए उन्हें आमंत्रित किया था. हालांकि, IAFS II में उन्हें सौंपी गई परियोजनाओं का कार्यान्वयन निराशाजनक था; जब IAFS III में तर्कसंगत ढंग से इन पर  विचार हुआ तो ज़्यादातर को रद्द कर दिया गया.

सवाल उठता है कि इस पृष्ठभूमि में अफ्रीका के क्षेत्रीय संस्थानों के ज़रिए उसके साथ सहयोग का सुझाव देना अब भी उचित होगा? इस लेखक का ऐसा ही विचार है. इस लेख में तर्क दिया गया है कि इस क़वायद को कुशल और उत्तरदायी संस्थानों के साथ मिलकर रणनीतिक रूप से आगे बढ़ाया जाना चाहिए. इस कड़ी में केवल IAFS को छोड़कर अन्य कालखंडों में सभी क्षेत्रीय आर्थिक समुदायों के साथ फिर से जुड़ने की कोशिश करने की ज़रूरत नहीं है.

दरअसल अफ्रीकी संघ आठ क्षेत्रीय आर्थिक समुदायों को मान्यता देता है, जो बांजुल प्रारूप के मुताबिक तमाम क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं. ज़्यादातर RECs के पास क्षेत्रीय वित्तीय संस्थान हैं. उन सबके पास क्षेत्रीय संकटों में हस्तक्षेप करने के लिए ऐसी ब्रिगेड होनी चाहिए, जिनका ज़रूरत पड़ने पर कभी भी इस्तेमाल किया जा सके. इन तमाम समुदायों की दक्षता के स्तर में काफ़ी भिन्नता होती है.

अफ्रीकी महाद्वीप के साथ भारत का जुड़ाव

भारत, अफ्रीकी संघ को G20 की सदस्यता दिलाने से जुड़े अभियान की अगुवाई कर रहा है. वो बहुपक्षीय विकास संस्थानों (MDIs) में सुधार से जुड़ी क़वायद को आगे बढ़ा रहा है, साथ ही अपनी अफ्रीका नीति में नई ऊर्जा का संचार भी कर रहा है. जैसे-जैसे भारत-अफ्रीका संबंध नए स्तरों पर आ रहे हैं, वो रिश्ते को और आगे ले जाने के लिए निर्धारकों (determinants) की तलाश कर सकता है. लाइंस ऑफ क्रेडिट से जुड़ा मॉडल, भारत के काफ़ी काम आया है, क्योंकि इसने 42 देशों तक 12.26 अरब अमेरिकी डॉलर के सॉफ्ट लोन का विस्तार किया है. ऋण से जुड़े दबावों, ऋण और ब्याज़ चुकाने में नाकामियों और देशों द्वारा ऋण से बाहर निकलने का विकल्प चुनने के कारण ये तरीक़ा अब अलोकप्रिय हो गया है.

भारत-अफ्रीका साझेदारी पर हाल ही में आई क़िताब द हरामबी फैक्टर में भारतीय निवेशकों की भूमिका को रेखांकित करते हुए बताया गया है कि कैसे उन्होंने भारत और अनेक अफ्रीकी देशों के बीच साझेदारी के स्तर को बढ़ाया है.

निजी क्षेत्र की अग्रणी भूमिका के साथ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अगुवाई वाला मॉडल अपनाया जाना चाहिए. अफ्रीका में 75 अरब अमेरिकी डॉलर की FDI के साथ भारत एक प्रमुख भागीदार है. ख़ासतौर से अफ्रीका के पूर्वी समुद्री तट पर स्थित प्रमुख देशों में भारतीय निवेश की धमक है. ये देश रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं. भारतीय और स्थानीय बैंकों से समर्थन की कमी के कारण निजी क्षेत्र को अफ्रीका में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. नीति में इन समस्याओं को दूर करने के लिए निजी क्षेत्र को समर्थन दिए जाने पर ध्यान देना चाहिए. भारत के निजी क्षेत्र का उद्यमी भाव सराहना के क़ाबिल है.

भारत-अफ्रीका साझेदारी पर हाल ही में आई क़िताब द हरामबी फैक्टर में भारतीय निवेशकों की भूमिका को रेखांकित करते हुए बताया गया है कि कैसे उन्होंने भारत और अनेक अफ्रीकी देशों के बीच साझेदारी के स्तर को बढ़ाया है. इस पहलू की ओर अक्सर ध्यान नहीं दिया गया है. अब भारत, निवेशकों की भूमिका को बेहतर ढंग से पहचानने लगा है. हालांकि निवेशकों को लगता है कि समर्थन की ये क़वायद अब भी सुस्त है.

अफ्रीका महाद्वीपीय मुक्त व्यापार समझौता (FTA), भारतीय कंपनियों को अफ्रीका में बड़े क्षेत्रीय बाज़ारों तक पहुंच का दायरा मुहैया कराता है. तमाम निवेशक इसका इंतज़ार कर रहे थे. अब वो अपना परिचालन बढ़ा सकते हैं और नए किरदार भी अब इसमें प्रवेश के इच्छुक हो सकते हैं. इन कंपनियों को वित्तीय सहायता की दरकार है, जो इन्हें भारतीय बैंकों से नहीं मिल पा रही है. इनमें से अधिकांश अब अफ्रीका से हाथ खींच रहे हैं.

LOCs ने भारतीय कंपनियों को अफ्रीका में अनुभव जुटाने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फंडिंग वाली परियोजनाओं के लिए बोली लगाने को लेकर सशक्त बनाया है. कंपनियों ने निजी संस्थानों या MFIs की फंडिंग के ज़रिए ट्रांसमिशन लाइनों, रेलवे, बंदरगाहों, रसद टर्मिनलों, पानी और नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं का क्रियान्वयन किया है. आइवरी कोस्ट में सैन पेड्रो, गैबॉन में ओवेंडो और मॉरिटानिया में नौआकचॉट जैसे बंदरगाहों के पास ऐसे जुड़ावों के ज़रिए भारतीय EPC कॉन्ट्रैक्टर्स मौजूद हैं.

वित्त की भूमिका 

भारतीय निवेशक और भारतीय EPC कॉन्ट्रैक्टर्स, दोनों को विस्तार के लिए अवसरों, राजनयिक सहायता और वित्तीय शक्तियों की दरकार होती है. इसे अफ़्रीका में MDI के साथ जुड़कर हासिल किया जा सकता है. पैन-अफ्रीकी स्तर पर एक्ज़िम बैंक ने AfriExIm बैंक में निवेश किया है और उसे LOC मुहैया कराई है. निर्धारित रूप से परियोजना निर्यातों और भारतीय EPC कॉन्ट्रैक्टर्स को मदद पहुंचाने के लिए इस क़वायद को और आगे बढ़ाया जाना चाहिए. अफ्रीका विकास बैंक (AfDB), विश्व बैंक से संबद्ध क्षेत्रीय बैंक है. इसमें 54 अफ्रीकी सदस्य और भारत समेत 22 ग़ैर-अफ्रीकी सदस्य शामिल हैं. हालांकि 0.265 प्रतिशत की हिस्सेदारी के साथ इसमें भारत का हिस्सा मामूली है. भारत से अपना हिस्सा बढ़ाने और एक अलग निदेशक हासिल करने का आह्वान किया जा रहा है. बहरहाल, 2019 में आख़िरी पूंजी निवेश के साथ अब इस क़वायद के जल्द साकार होने की संभावना नहीं रह गई है. अफ़्रीका अब सबकी नज़रों में है. AfDB में हिस्सेदारी रखने वाले सभी देश इसे छोड़ना नहीं चाहते. 2020 में हिस्सेदारी हासिल करने के लिए आयरलैंड ने कड़ी मेहनत की, और आख़िरकार अपने मित्र देशों से इसे हासिल कर लिया. AfDB में हिस्सा रखने वाले स्टेकहोल्डर्स पूरे ज़ोर-शोर से अपने हिस्से का बचाव करते हैं.

भारत के पास 2015 से लगभग 90 लाख अमेरिकी डॉलर का ट्रस्ट फंड रहा है. इसका मक़सद अफ्रीका में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल को आगे बढ़ाना है. निजी क्षेत्र सहायता की उन्नत पहल भारत को एक बड़ी भूमिका मुहैया कराएगी.

भारत को एक बड़ा ट्रस्ट फंड स्थापित करना चाहिए, LOC जैसी फंडिंग मुहैया करानी चाहिए और बैंक के पेशेवराना रुख़ का उपयोग करके अफ्रीकी प्राथमिकताओं को पूरा करना चाहिए. भारतीय टेक्नोलॉजी, वस्तुएं और सेवाएं बड़े पैमाने पर संसाधन जुटाने की AfDB की क़वायदों से लाभान्वित हो सकती हैं. भारत के पास 2015 से लगभग 90 लाख अमेरिकी डॉलर का ट्रस्ट फंड रहा है. इसका मक़सद अफ्रीका में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल को आगे बढ़ाना है. निजी क्षेत्र सहायता की उन्नत पहल भारत को एक बड़ी भूमिका मुहैया कराएगी. ये भारतीय कंपनियों को फाइनेंसिंग के अन्य तरीक़ों का लाभ उठाने के लिए अवसर उपलब्ध कराएगी, और शायद उनकी सफलता के लिए बेहतर परिणाम हासिल करेगी.

जापान और कोरिया AfDB मॉडल का पालन करते हैं, क्योंकि ये दोनों भारत की तुलना में अफ्रीका में द्विपक्षीय रूप से कमज़ोर हैं. भारत को इन देशों से अधिक क्षमता के साथ AfDB के साथ काम करना चाहिए. इसके लिए विदेश मंत्रालय और वित्त मंत्रालय के बीच नज़दीकी समन्वय की दरकार है. वित्त मंत्रालय को AfDB में कोई दिलचस्पी नहीं है, क्योंकि उसे पूंजी प्रवाहों के मामले में सीधे तौर पर कोई लाभ होता नहीं दिखा. विदेश मंत्रालय को LOCs की ही तरह AfDB के लिए नीति का नेतृत्व करना चाहिए. AfDB-भारत साझेदारी को भारत-अफ्रीका भागीदारी की ऊर्जा की झलक पेश करनी चाहिए. इसे 1982 के स्तर पर जड़ बनकर नहीं रहना चाहिए, जब साझेदारी शुरू हुई थी.

अफ्रीका में ना तो सभी क्षेत्रीय आर्थिक समुदाय और ना ही क्षेत्रीय विकास बैंक समान रूप से बेहतर काम कर रहे हैं. COMESA से संबद्ध व्यापार और विकास बैंक (TDB) के पूरे अफ्रीका में 25 सदस्य हैं. ये अफ्रीका में बेहतरीन RDBs में से एक है. ये पेशेवर तरीक़े से प्रबंधित है और अफ्रीका से बाहर के राष्ट्रों को भी भागीदार के रूप में स्वीकार करता है. ये चीन और बेलारूस की तरह भारत को भी अपनी वित्तीय हिस्सेदारी में हिस्सा लेने के लिए खुला विकल्प प्रदान करता है. अरब बैंक और अफ्रीकी बीमा और पेंशन फंड भी इसके सदस्य हैं.

भारत के पास 10 करोड़ अमेरिकी डॉलर का वाणिज्यिक  ऋण मौजूद है जो TDB को उपलब्ध है. उसने दोबारा अदायगी से जुड़ी समस्याओं के बिना इसका बारी-बारी से उपयोग किया है.  हरामबी फैक्टर में भारतीय व्यापारियों के एक सर्वेक्षण में पूर्वी अफ्रीका को आगे के निवेश के लिए उनका मुख्य फोकस बताया गया. TDB उसी क्षेत्र के लिए वित्तीय संस्थान है. भारतीय उद्यमियों की सहायता के लिए TDB फंडिंग तक पहुंच महत्वपूर्ण है. भारत को TDB में एक स्टेकहोल्डर बनना चाहिए, जो जुड़ाव का स्वागत करता है. यह एक ऐसा अवसर है, जिसका भरपूर लाभ उठाया जाना चाहिए.

15-सदस्यीय ECOWAS के पास ECOWAS बैंक फॉर इन्वेस्टमेंट  एंड डेवलपमेंट (EBID) मौजूद है, जिसमें नाइजीरिया, घाना और सेनेगल जैसे शक्तिशाली राष्ट्र शामिल हैं. EBID में दो शाखाएं हैं: एक सदस्य राष्ट्रों की सार्वजनिक परियोजनाओं को सहारा देने के लिए, जबकि दूसरा, निजी क्षेत्र को मदद पहुंचाने के लिए. EBID सदस्यता सूची से बाहर के सदस्यों की स्टेकहोल्डिंग के लिए खुला नहीं है, लेकिन इसमें एक्ज़िम बैंक ऑफ इंडिया का 1.5 अरब अमेरिकी डॉलर का कर्ज़ चढ़ा है. 2022 में निजी क्षेत्र को मदद पहुंचाने के लिए 10 करोड़ अमेरिकी डॉलर की क्रेडिट लाइन का प्रावधान किया गया. यह सही दिशा में उठाया गया क़दम था. भारतीय निजी क्षेत्र, पश्चिम अफ्रीका में अपनी मौजूदगी बढ़ाने के अवसर ढूंढ रहा है. वो पहले ही दो-चरणों वाले ऋणों के माध्यम से EBID ​​के साथ काम कर चुका है. अगर भारत निजी क्षेत्र की शाखा को सहारा देने के लिए EBID ​​को बड़ा ऋण मुहैया कराता है तो यह अफ्रीका के लिए निजी क्षेत्र के नेतृत्व वाले दृष्टिकोण के लक्ष्यों को पूरा करेगा.

संभावित रूप से वैश्विक चुनौतियों से निपटने में उनकी बड़ी भूमिका हो सकती है, लेकिन छोटे आकार के कारण उन्हें पर्याप्त मान्यता नहीं मिल पाती है. वो अफ़्रीका में केंद्रित लक्ष्यों को बेहतर ढंग से प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि उनका प्रबंधन अफ्रीकी देशों की प्राथमिकताओं के अनुरूप है. 

अनेक अफ्रीकी RDBs के बेहतर प्रदर्शन के साथ-साथ उनके प्रशासन ने बाज़ार फ़ाइनेंसिंग से जुड़े अवसरों को बढ़ाया है. क्रेडिट रेटिंग संस्था मूडीज़, विश्व बैंक की संबद्धता प्राप्त एजेंसी AfDB को AAA रेटिंग देती है; जबकि TDB को लेकर नज़रिया स्थिर Baa3 का है. EBID को एक स्थिर B2 रेटिंग मिली हुई है जो इसके उच्च क्रेडिट जोख़िम के मुक़ाबले इसके मज़बूत पूंजीकरण को संतुलित करती है. Afrexim बैंक को मध्यम जोख़िम के साथ स्थिर Baa1 रेटिंग हासिल है.

कर्ज़दारों की अगुवाई वाले कई बहुपक्षीय विकास बैंक भले ही छोटे हैं लेकिन वो तेज़ गति से आगे बढ़ रहे हैं. संभावित रूप से वैश्विक चुनौतियों से निपटने में उनकी बड़ी भूमिका हो सकती है, लेकिन छोटे आकार के कारण उन्हें पर्याप्त मान्यता नहीं मिल पाती है. वो अफ़्रीका में केंद्रित लक्ष्यों को बेहतर ढंग से प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि उनका प्रबंधन अफ्रीकी देशों की प्राथमिकताओं के अनुरूप है. हालांकि अधिक प्रभावी होने के लिए उन्हें बड़ी रकम की दरकार है.

क्या भारत RDBs में निवेश करने के लिए भारतीय स्टेट बैंक (जिसकी अफ्रीका में अनेक शाखाएं हैं) या LIC (जिसने अफ्रीका में निवेश किया हुआ है) को आगे लाने के बारे में विचार कर सकता है? ऐसा लगता है कि नियामक नियंत्रणों को और कड़ा कर दिए जाने के चलते भारतीय बैंकों और बीमा कंपनियों को अफ्रीका में इस तरह के जोख़िम उठाने का प्रोत्साहन नहीं मिलेगा. इसके इर्द-गिर्द चाहे जैसी भी बहस हो, यह AfDB, EBID ​​और TDB में संप्रभु प्रवेश की ज़िम्मेदारी ला देता है. इस सिलसिले में उपकरण अलग-अलग होंगे: मसलन AfDB के लिए ट्रस्ट फंड, EBID के लिए निजी क्षेत्र का समर्थन और TDB के लिए हिस्सेदारी.

भारत, क्षेत्रीय वित्तीय संस्थानों के साथ अपनी भागीदारी बढ़ा सकता है. अपने सफल अफ्रीका शिखर सम्मेलनों को आगे बढ़ाने, अपने आर्थिक संपर्कों का विस्तार करने और RDBs के साथ काम करके अपने वितरण तंत्र और LOCs की सफलता दर में सुधार लाने के लिए वो ये रास्ता अपना सकता है.


गुरजीत सिंह जर्मनी, इंडोनेशिया, इथियोपिया, आसियान और अफ्रीकी संघ में भारत के राजदूत की ज़िम्मेदारी निभा चुके हैं.

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