2017 में QUAD 2.0 (जो भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान का एक समूह है) की शुरुआत के बाद से, लगातार इस संभावना पर विचार किया गया है कि क्या क्वॉड एक छोटे शक्ति समूह या घोषित रूप से एक रक्षा समूह के रूप में उभरेगा जबकि इन चारों देशों के नेताओं ने बार–बार ऐसी किसी संभावना से इनकार किया है. नेताओं ने ऐसे किसी समूह के गठन के पीछे जो तर्क दिए हैं, वह नियम–आधारित तंत्र से प्रभावित हैं, जहां क्वॉड को समान विचारधारा वाले देशों के एक समूह के रूप में परिभाषित किया गया है, जो हिंद–प्रशांत क्षेत्र में उभरने वाले ख़तरों और साझा चिंताओं से मिलकर निपटने का प्रयास कर रहे हैं. इसके अलावा, हिंद–प्रशांत क्षेत्र ऐसे लोकतांत्रिक देशों से संबंध स्थापित करने के लिए उत्सुक है, जो व्यवस्था–पालन के लिए तैयार हों और क्षेत्र की स्थिरता और सुरक्षा में योगदान दें. हालांकि, जापान के हिरोशिमा में क्वॉड नेताओं की बैठक से ठीक पहले 15 से 17 मई 2023 के बीच अमेरिका के कैलिफोर्निया में सनीलैंड्स में क्वॉड देशों के उच्च सैन्य अधिकारियों की एक बैठक हुई, जिससे एक फिर से इस बात को लेकर बहस शुरू हो गई है कि क्या क्वॉड स्पष्ट रूप से एक सुरक्षा संगठन के रूप में काम करेगा?
वर्तमान हालातों के मद्देनजर ऐसा संभव है कि क्वॉड पूरे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी पहुंच का विस्तार करने की बजाय केवल प्रशांत क्षेत्र तक सीमित रहे. इसके इंटीग्रेटेड रिव्यू रिफ्रेश 2023 से भी यूनाइटेड किंगडम को शामिल किए जाने के कारणों का पता चलता है, जहां हिंद-प्रशांत क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए चीन को एक क्षेत्रीय चुनौती के रूप में उल्लेखित किया गया है.
क्वॉड की भूमिका
यह वास्तव में क्वॉड के लिए महत्वपूर्ण परिवर्तन हो सकता है जो कि सदस्य देशों द्वारा क्षेत्र में चीन के खिलाफ़ सुरक्षा जाल तैयार करने की ज़रूरत और चीन से सावधान रहने की आवश्यकता के बीच संतुलन पर टिका है. अमेरिकी हिंद-प्रशांत कमांड के कमांडर एडमिरल जॉन सी एक्विलिनो की मेज़बानी में हुई इस बैठक में जापानी सेना के चीफ़ ऑफ़ स्टाफ, ज्वाइंट स्टाफ जनरल योशिहिदे योशिदा, ऑस्ट्रेलियाई सेना के मुख्य सेनाध्यक्ष जनरल एंगस कैंपबेल और भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने हिस्सा लिया था. चारों देशों के वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के अलावा, इस बैठक में यूनाइटेड किंगडम (UK) के चीफ़ ऑफ़ डिफेंस स्टाफ के वाइस-एडमिरल रैंक के एक प्रतिनिधि की मौजूदगी ने कई सवाल खड़े किए.
पिछले कुछ समय से यह संभावना जताई जा रही है कि ‘क्वॉड प्लस’ के जरिए समूह का विस्तार किया जा सकता है. बैठक में यूनाइटेड किंगडम को आमंत्रित किए जाने के क्वॉड देशों के सुरक्षा प्रमुखों के फ़ैसले से भले ही समूह की मूल संरचना में परिवर्तन होता हो लेकिन इससे ज़रूर यह संकेत मिलता है कि आगे चलकर समूह अपनी रक्षा भूमिका में और ज्यादा विस्तार कर सकता है. देखा जाए तो अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और यूनाइटेड किंगडम ने पहले से ही
AUKUS समझौता कर रखा है, जो मुख्य रूप से एक सुरक्षा समझौता है. ऐसे में क्वॉड के सुरक्षा प्रमुखों की बैठक में यूके के एक अधिकारी की मौजूदगी पहले से जारी उन अटकलों को और बढ़ावा देती है कि समूह के सदस्य क्वॉड की सुरक्षा भूमिका को विस्तारित करने की दिशा में शुरुआती कदम उठा रहे हैं. हालांकि, वर्तमान हालातों के मद्देनजर ऐसा संभव है कि क्वॉड पूरे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी पहुंच का विस्तार करने की बजाय केवल प्रशांत क्षेत्र तक सीमित रहे. इसके इंटीग्रेटेड रिव्यू रिफ्रेश 2023 से भी यूनाइटेड किंगडम को शामिल किए जाने के कारणों का पता चलता है, जहां हिंद-प्रशांत क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए चीन को एक क्षेत्रीय चुनौती के रूप में उल्लेखित किया गया है.
इस बैठक को एक सामान्य बैठक बताने वाले बयान अभी भी दिए जा रहे हैं, जहां सदस्य देशों के सुरक्षा प्रमुख सामान्य सुरक्षा मुद्दों और अन्य चुनौतियों पर चर्चा करने के लिए इकट्ठा हुए थे, जिनसे वर्तमान में हिंद-प्रशांत क्षेत्र जूझ रहा है. हालांकि, अगर ऐसा है भी तो यह संभावना नहीं है कि इस बारे में सार्वजनिक रूप से कुछ कहा जाएगा, बल्कि इसे गुप्त ही रखा जाएगा. उदाहरण के लिए, एक भारतीय सूत्र का कहना था कि “बैठक ऐसे किसी समूह का हिस्सा नहीं है.” इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ के मुख्यालय द्वारा दिए गए एक बयान के मुताबिक, हिंद-प्रशांत सुरक्षा संवाद के पहले दौर में, भारत के चीफ़ डिफेंस स्टाफ ने “प्रभावी गठजोड़ के माध्यम से प्रतिरोध (डिटरेंस)” पर भारत के मत को प्रस्तुत किया था. इस समय यह स्पष्ट रूप से कहना मुश्किल है कि क्या वाकई में क्वॉड “सुरक्षा भागीदारी को अगले चरण” तक ले जा रहा है.
क्वॉड के सुरक्षा समूह के रूप में विस्तार को लेकर की जाने वाली बहस, अटकलें और विश्लेषण कोई नई बात नहीं है. यहां तक कि पहले मालाबार अभ्यास (जिसमें चारों देशों की जल सेनाओं ने हिस्सा लिया था) के बाद ऐसी अटकलें लगाई जा रही थी, लेकिन उसके बाद सदस्य देशों की ‘नेताओं’ की बैठकों, संयुक्त बयानों ने यह स्पष्ट कर दिया कि समूह का ध्यान गैर-पारंपरिक सुरक्षा मुद्दों जैसे वैक्सीनों के कूटनीतिक आदान-प्रदान, महत्त्वपूर्ण एवं उभरती तकनीक, जलवायु परिवर्तन, समुद्री क्षेत्र में जागरूकता आदि पर होगा.
हाल ही में हिरोशिमा में क्वॉड नेताओं की बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान के मुताबिक समूह ने दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संगठन (ASEAN), हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) और पैसिफिक आइलैंड फोरम (PIF) जैसे संगठनों के साथ और उसके सदस्य देशों के साथ जुड़कर काम करने की इच्छा जताई है.
निलंथी समरनायके, जो वाशिंगटन में ईस्ट-वेस्ट सेंटर के एक सहायक फेलो हैं, जैसे विद्वानों का कहना है कि प्राकृतिक आपदाओं जैसे गैर-पारंपरिक सुरक्षा मुद्दों पर, “राहत कार्रवाई के लिए कभी-कभी सैन्य प्रतिक्रियाओं की आवश्यकता होती है.” यहां इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि 2004 में हिंद महासागर में आई सुनामी के बाद क्वॉड का गठन हुआ था, जिस दौरान राहत और बचाव कार्यों के संचालन के लिए विभिन्न देशों की नौसेनाओं के बीच “परिचालन समन्वय” की आवश्यकता थी. इसलिए, क्वॉड का उद्देश्य समुद्री क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के कारण पैदा हुई सुरक्षा समस्याओं जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए क्षेत्र में स्थित देशों के क्षमता निर्माण में सहयोग को बढ़ावा देना और मदद करना था.
हाल ही में हिरोशिमा में क्वॉड नेताओं की बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान के मुताबिक समूह ने दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संगठन (ASEAN), हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) और पैसिफिक आइलैंड फोरम (PIF) जैसे संगठनों के साथ और उसके सदस्य देशों के साथ जुड़कर काम करने की इच्छा जताई है. उदाहरण के लिए, हिंद-प्रशांत क्षेत्र के द्वीपीय राष्ट्रों, जैसे इंडोनेशिया और फिलीपींस जैसे द्वीपीय देश जलवायु परिवर्तन के रूप में सबसे बड़ी चुनौती का सामना कर रहे हैं, जो समुद्री जलस्तर में वृद्धि, सुनामी और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के लिए ज़िम्मेदार है. संकट के दौरान इन तटीय देशों तक जल्द से जल्द पहुंचने के लिए क्वॉड देशों की नौसेनाओं को बहुत ज्यादा सक्रिय होना होगा. हिंद-प्रशांत सुरक्षा संवाद को इस नज़रिए से भी देखा जा सकता है, जहां चर्चा के केंद्र में यह मुद्दा हो सकता है कि क्वॉड देशों और यूनाइटेड किंगडम की नौसेनाएं आखिर किस तरह से हिंद-प्रशांत क्षेत्र के द्वीपीय देशों की नौसेनाओं के क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण में सहयोग कर सकती हैं.
प्रशांत क्षेत्र में किसी भी सुरक्षा-संबंधी एजेंडे को आगे ले जाने में इस क्षेत्र में अमेरिकी के सहयोगी देशों (जिसमें ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, जापान और यूनाइटेड किंगडम शामिल हैं) की भूमिका महत्वपूर्ण होगी. इनमें से ज्यादातर छोटे समूह क्वाड के सदस्यता और उसके उद्देश्यों से जुड़ाव रखते हैं.
आगे की राह
अमेरिका की मेजबानी में इस संवाद का आयोजन किया गया था, जो ख़ासकर प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी राष्ट्रीय रक्षा रणनीति को आसानी से लागू करने के लिए तमाम गठजोड़ कर रहा है और विभिन्न देशों के साथ अपनी साझेदारी को मजबूत कर रहा है. उदाहरण के लिए, फरवरी 2023 में वाशिंगटन में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, अजीत डोभाल और अमेरिकी उप रक्षा मंत्री कैथलीन हिक्स के बीच एक बैठक हुई, जिसमें “क्षेत्र में लगातार बढ़ती प्रतिस्पर्धा को देखते हुए अमेरिकी और भारतीय सेनाओं के आपसी समन्वय को और बढ़ावा देने के तरीकों” को लेकर चर्चा की गई. अमेरिकी नौसेना के एडमिरल एक्विलिनो ने भी कई मौकों पर कहा है कि दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग अब तक के सबसे उच्च स्तर पर है. हिंद महासागर क्षेत्र में आपसी सहयोग को और अधिक बढ़ावा देने और अपनी पहुंच सुनिश्चित करने के लिए अमेरिका को भारत के साथ काम करने और दक्षिण-पूर्व एशिया में अपने प्रभाव में विस्तार की ज़रूरत होगी. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा के दृष्टिकोण से अमेरिका के लिए जापान के साथ सहयोग सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बना हुआ है. प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका-जापान-फिलीपींस के एक त्रिपक्षीय गठजोड़ को लेकर वार्ता चल रही है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र के सुरक्षा एजेंडे के मद्देनज़र, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ब्लू पैसिफ़िक महाद्वीप के लिए 2050 की रणनीति को लागू करने के लिए मिलकर प्रयास कर रहे हैं, जिसे 2019 में तुवालु में प्रशांत द्वीप समूह के देशों ने अपनाया था. इसके अलावा, प्रशांत क्षेत्र में किसी भी सुरक्षा-संबंधी एजेंडे को आगे ले जाने में इस क्षेत्र में अमेरिकी के सहयोगी देशों (जिसमें ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, जापान और यूनाइटेड किंगडम शामिल हैं) की भूमिका महत्वपूर्ण होगी. इनमें से ज्यादातर छोटे समूह क्वॉड के सदस्यता और उसके उद्देश्यों से जुड़ाव रखते हैं. जिस तरह से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा लगातार बढ़ती जा रही है, ऐसे में न केवल क्वॉड देशों बल्कि छोटे क्षेत्रीय देशों के लिए भी यह ज़रूरी है कि क्वॉड देश कूटनीति, प्रभाव और सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में अपनी प्रभावशीलता के विस्तार के लिए मिलकर काम करें क्योंकि उनके तात्कालिक हित एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं.
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