Author : ARKA BISWAS

Published on Feb 25, 2019 Updated 0 Hours ago

भारत को हर हाल में बदले की सैन्य कार्रवाई पर विचार करना चाहिए, क्योंकि और ज्यादा निष्क्रियता बरतने से सिर्फ पाकिस्तान की परमाणु प्रतिरोधक क्षमता ही सुदृढ़ होगी।

पुलवामा आतंकी हमला, परमाणु हथियार और भारत-पाकिस्तान संघर्ष

पुलवामा में हुए आतंकवादी हमले ने एक बार फिर से भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ा दिया है। चाहे यह लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) या जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) जैसे आतंकवादी गुटों को नियंत्रित रखने में पाकिस्तान की नाकामी हो या इन गुटों को निरंतर समर्थन देना जारी रखने वाला पाकिस्तान सरकार के भीतर मौजूद गुप्त नेटवर्क हो, सवाल यही है कि भारत किस तरह पाकिस्तान को अपने हितों को पूरा करने के लिए मजबूर कर सकता है। हालांकि बातचीत भारत द्वारा जवाबी सैन्य कार्रवाई करने तथा पाकिस्तान की परमाणु शक्ति की सीमा रेखा को पार कैसे किया जाए — पर विचार करने तक सीमित है। इस लेख में दलील दी गई है कि पाकिस्तान का परमाणु सिद्धांत और प्रतिरोधकता स्थायी नहीं हैं; वे भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दोहरे आधार से जुड़े घटनाक्रमों, विशेष तौर पर भारत द्वारा की गई कार्रवाइयों का फायदा उठाते हैं। इस नजरिए से देखा जाए,तो भारत को हर हाल में बदले की सैन्य कार्रवाई पर विचार करना चाहिए, क्योंकि और ज्यादा निष्क्रियता बरतने से सिर्फ पाकिस्तान की परमाणु प्रतिरोधक शक्ति ही सुदृढ़ होगी। इस पहेली का एक और गायब सिरा भारत का अपना परमाणु शस्त्रागार और उसका दृष्टिकोण है। बेहतर यही होगा कि पाकिस्तान की परमाणु धमकी के जवाब में भारत अपनी जवाबी परमाणु कार्रवाई के विकल्पों का संकेत देने की दिशा में काम करे। इससे पाकिस्तान के परमाणु सिद्धांत के संबंध में धारणाओं में बदलाव लाने में मदद मिलेगी और भारत को दबाव बनाने के लिए जवाबी सैन्य कार्रवाई करने पर विचार करने का समय मिल सकता है।

यूं तो देश के अन्य हिस्सों में बड़े आतंकवादी हमले नहीं हुए हैं, लेकिन इसके बावजूद इसे सितंबर 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक्स से जोड़कर नहीं देखा जा सकता।

भारतीय सेना द्वारा सितम्बर 2016 में की गई सर्जिकल स्ट्राइक्स को भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने सफलता के रूप में प्रस्तुत किया है। हालांकि इन स्ट्राइक्स का विश्लेषण करने पर दो मोर्चे सामने आते हैं, जिनमें वे नाकाम रहे। पहला, ये स्ट्राइक्स किसी तरह का दबाव बनाने में विफल रहीं। पाकिस्तान ने इसके बाद से अपनी धरती से गतिविधियां चलाने वाले भारत-विरोधी आतंकवादी गुटों के खिलाफ ऐसी कोई भरोसेमंद कार्रवाई नहीं की, जिसका श्रेय इन स्ट्राइक्स को दिया जा सके। नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर सीमा पार से होने वाली गोलीबारी में यदि वृद्धि नहीं हुई है, तो भी उसका जल्दी-जल्दी होना जारी है। उसी तरह भारतीय सीमा चौकियों पर बार-बार आतंकवादी हमले होते हैं, जैसे पहले जम्मू-कश्मीर में होते रहे हैं। यूं तो देश के अन्य हिस्सों में बड़े आतंकवादी हमले नहीं हुए हैं, लेकिन इसके बावजूद इसे सितंबर 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक्स से जोड़कर नहीं देखा जा सकता।

दूसरा, परमाणु हथियारों का पहले सामरिक इस्तेमाल करने की पाकिस्तान की घोषित सीमा रेखा को भारत ने कभी पार नहीं किया या पाकिस्तान की परमाणु धमकी का मुकाबला नहीं किया। सर्जिकल स्ट्राइक्स का पैमाना और प्रकृति उन जवाबी सैन्य कार्रवाइयों से काफी कम थी, जिन्हें भारतीय सेना के कोल्ड स्टार्ट सिद्धांत के तहत डिजाइन किया गया है। सेना की किसी बटालियन या बख्तरबंद डिवीजन की पाकिस्तानी भूभाग में कोई मूवमेंट नहीं हुई और भारत ने पाकिस्तान के किसी भू-भाग पर वास्तविक कब्जा करने की मंशा नहीं जाहिर की। पर गौर करते हुए कि परमाणु हथियारों का पहले सामरिक इस्तेमाल करने की पाकिस्तान की धमकी की मंशा भारत को छोटे पैमाने पर सैन्य हमले करने से रोकना थी — सितम्बर 2016 में भारत द्वारा गुपचुप किए गए हमले — जिन्हें सर्जिकल स्ट्राइक्स कहा गया — ने पाकिस्तान की घोषित परमाणु सीमारेखा के लिए किसी तरह की चुनौती पेश नहीं की।

इसलिए पाकिस्तान की परमाणु प्रतिरोधक क्षमता और भारत की जवाबी सैन्य कार्रवाई (या उसका अभाव) दो-तरफा मूलभूत संबंधों को परिलक्षित करती है।

पाकिस्तान से गतिविधियां चलाने वाले और उसी से वित्तीय मदद लेने वाले इन गुटों द्वारा 1998 से किए गए आतंकवादी हमलों के जवाब में भारतीय जवाबी सैन्य कार्रवाइयों या उनके अभाव ने इसके विपरीत, पाकिस्तान के परमाणु सिद्धांत और प्रतिरोधक क्षमता को और मजबूत बना दिया है। 2001-02 के संकट के दौरान भारत ने भारी तादाद में सेना तैनात की थी, लेकिन उसने पाकिस्तान पर परम्परागत हमला करने के लिए नियंत्रण रेखा या अंतर्राष्ट्रीय सीमा को पार नहीं किया। 2008 के मुम्बई आतंकवादी हमलों के बाद, भारत ने छोटे पैमाने पर, जवाबी त्वरित सैन्य कार्रवाई नहीं की। ऐसा 2004 में कोल्ड स्टार्ट सिद्धांत की संकल्पना तथा उस सिद्धांत को अमली जामा पहनाने के लिए 2004 और 2007 के बीच किए गए अनेक सैन्य अभ्यासों के बावजूद हुआ।सितम्बर, 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक्स को उरी में हुए आतंकवादी हमले के बाद अंजाम दिया गया, जैसा कि ऊपर आकलन किया जा चुका है, यह एक अन्य उदाहरण है। दक्षिण एशियाई प्रतिरोधक क्षमता-स्थायित्व के किसी भी अध्ययन में पाकिस्तान की परमाणु प्रतिरोधकता की मजबूती का उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए इन मामलों का इस्तेमाल किया जाता है।

इसलिए पाकिस्तान की परमाणु प्रतिरोधक क्षमता और भारत की जवाबी सैन्य कार्रवाई (या उसका अभाव) दो-तरफा मूलभूत संबंधों को परिलक्षित करती है। एक ओर, पाकिस्तान की परमाणु धमकी, भारत द्वारा सैन्य विकल्पों ​का त्याग निर्धारित भले ही न करे, लेकिन इसमें योगदान अवश्य देती है; संघर्ष ​का अर्थशास्त्र और दबाव के साधन के तौर पर जवाबी सैन्य कार्रवाई करना जैसे कई कारण हैं, जो भारत की इस गणना में योगदान देते हैं। दूसरी ओर, भारत द्वारा जवाबी सैन्य कार्रवाई का अभाव, महज पाकिस्तान की परमाणु धमकी से प्रभावित नहीं है, लेकिन यह पाकिस्तान के परमाणु सिद्धांत और प्रतिरोधक क्षमता को मजबूती देता है। उस दृष्टिकोण से अनेक विशेषज्ञों ने भारत सरकार से अनुरोध किया है कि वह जवाबी सैन्य कार्रवाई पर विचार करे जिससे पाकिस्तान के परमाणु सिद्धांत या पाकिस्तान की परमाणु गीदड़भभकी को चुनौती मिलेगी।

लेकिन इस चर्चा से एक विषय पूरी तरह गायब है, वह है भारत के अपने परमाणु हथियार और उसका दृष्टिकोण। जब पाकिस्तान, भारत के परम्परागत हमलों के खतरे को अपनी परमाणु धमकी से रोक सकता है, तो भला भारत, पाकिस्तान की पहले परमाणु हथियार इस्तेमाल करने की धमकी को अपने परमाणु हथि​यारों का डर दिखाकर क्यों नहीं रोक सकता?

भारत भरोसेमंद जवाबी कार्रवाई का दृष्टिकोण प्रदर्शित करने के लिए यह दलील देता आया है — कि वह अपने विरोधी द्वारा परमाणु हथियार का पहले इस्तेमाल करने का जवाब अपने परमाणु हथियारों से देगा। हालांकि यह धमकी और इसके संकेत, विशेषतौर पर कम पैमाने के परम्परागत संघर्ष में परमाणु हथियारों का सामरिक इस्तेमाल करने की पाकिस्तान की परमाणु धमकी का मुकाबला करने में अब तक बेअसर रहे हैं। यकीनन, परमाणु हथियारों के बारे में भारत का दृष्टिकोण, भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दोहरे आधार में बेमतलब रहा है।

जब पाकिस्तान, भारत के परम्परागत हमलों के खतरे को अपनी परमाणु धमकी से रोक सकता है, तो भला भारत, पाकिस्तान की परमाणु हथियार पहले इस्तेमाल करने की धमकी को अपने परमाणु दृष्टिकोण से क्यों नहीं रोक सकता?

भारत का 2003 का घोषणात्मक सिद्धांत स्पष्ट रूप से जवाबी परमाणु धमकी की बात नहीं करता। वह कहता है कि भारत की जवाबी कार्रवाई “व्यापक होगी और अस्वीकार्य नुकसान करने के लिए डिजाइन की जाएगी।” इसके बावजूद, अनेक कारण हैं, जो भारत की जवाबी परमाणु धमकी को व्यापक रूप से समान जवाबी कार्रवाई करार देते हैं — बदले की कार्रवाई में समान परमाणु हथियारों का सामरिक इस्तेमाल करना, जिसमें आबादी और औद्योगिक केंद्रों को निशाना बनाना शामिल है। इन कारकों में “व्यापक जवाबी कार्रवाई” संबंधी शीत युद्ध की व्याख्या शामिल है, 1999 में सिद्धांत के मसौदे में शामिल किए गए “दंडात्मक” शब्द के इस्तेमाल के स्थान पर 2003 के घोषणात्मक सिद्धांत में जवाबी कार्रवाई का पैमाना तय करते हुए “व्यापक” शब्द का इस्तेमाल किया जाना शामिल है। भारत में राजनीतिक कुलीन वर्ग के बीच परम्परागत दृष्टिकोण, जिसके अनुसार परमाणु हथियार युद्ध लड़ने के हथियार नहीं, बल्कि प्रतिरोधक क्षमता के राजनीतिक साधन हैं और पूर्व विदेश सचिव श्याम शरण द्वारा 2013 में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड (एनएसएबी)के प्रमुख के तौर पर दिए गए एक भाषण में उन विचारों का दोहराया गया है, जिसमें उन्होंने विरोधी सेना की जवाबी कार्रवाई और “लचीली प्रतिक्रिया” की अवधारणा को खारिज कर दिया था।

जहां एक ओर परिणामस्वरूप होने वाली भारत की जवाबी परमाणु कार्रवाई की व्याख्या भारत के सामरिक ठिकानों पर पाकिस्तान के परमाणु हथियारों के हमले के खिलाफ विश्वसीय प्रतिरोधक के तौर पर की गई है, वहीं दूसरी ओर यह पाकिस्तान द्वारा अपने भूभाग पर परम्परागत संघर्ष के दौरान परमाणु हथियारों के सामरिक इस्तेमाल के खिलाफ नहीं है।

हालांकि भारत के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिव शंकर मेनन या भारत की स्ट्रेटेजिक फोर्स कमांड (एसएफसी)के पूर्व कमांडर-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) बी. एस. नागल द्वारा हाल में की गई टिप्पणियां भारत की जवाबी परमाणु धमकी — चाहे वह निशाना बनाने और जवाबी कार्रवाई के पैमाने के संबंध में ही क्यों न हो, उसकी ज्यादा लचीली व्याख्या करती है। वास्तव में भारत के पास जवाबी कार्रवाई को अंजाम देने की क्षमताएं मौजूद हैं, जो पाकिस्तान द्वारा परमाणु हथियारों के सामरिक इस्तेमाल के समकक्ष भी हैं। उसके पास छोटे (सामरिक)परमाणु मुखास्त्र हैं और वह डिलिवरी के साधनों के तौर पर अपनी सटीक मिसाइल प्रणालियों या लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल ​कर सकता है। भारत को बराबरी की जवाबी कार्रवाई को अंजाम देने के लिए सामरिक परमाणु हथियारों को विकसित और तैनात करने के लिए पाकिस्तान वाला रास्ता अख्तियार करने की जरूरत नहीं है। पाकिस्तान की परमाणु धमकी से निपटने के लिए भारत द्वारा विभिन्न स्तरों पर जवाबी कार्रवाई करने की इच्छा का संकेत भर देना ज्यादा बेहतर होगा।

इस तरह, पाकिस्तान की परमाणु प्रतिरोधक क्षमता की सफलता और वर्चस्व भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दोहरे आधार के अन्य घटनाक्रमों के साथ-साथ आतंकवादी हमलों के जवाब में भारत की सैन्य कार्रवाइयों (या उनके अभाव) और उसकी जवाबी परमाणु धमकी का संकेत दिए जाने से निर्धारित होता है। पाकिस्तान के परमाणु सिद्धांत और प्रतिरोधक क्षमता को स्थायी नहीं माना जा सकता। भारत परम्परागत संघर्ष शुरू कर सकता है और साथ ही पाकिस्तानी गणित को प्रभावित करने के लिए उसी समय अपनी जवाबी परमाणु कार्रवाई की धमकी भी दे सकता है।

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