Author : Ramanath Jha

Published on Oct 20, 2023 Updated 0 Hours ago

उचित नीतिगत उपाय और सार्वजनिक परिवहन के प्रदर्शन में सुधार से लोगों को निजी परिवहन से हटाने और यातायात की भीड़ को संबोधित करने में मदद मिलेगी. 

#PublicTransport: सार्वजनिक परिवहन के कारण शहरी यातायात की भीड़ पर पड़ने वाला प्रभाव

शहरों में सार्वजनिक परिवहन प्रणाली में सुधार की ज़रूरत की आवश्यकता को नज़रअंदाज़ करना अब मुश्किल हो रहा है, इस संदर्भ में लगातार लोगों और विशेषज्ञों की ओर से इस बारे में ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की जा रही है. ऐसा करने से शहरों को इससे स्पष्ट रूप से फायदा होगा इसमें कोई दो राय नहीं है. अगर शहरों में होने वाला कार्बन उत्सर्जन को कम किया जा सके, जो कि हवा में तकरीबन 45 प्रतिशत वायु प्रदूषण को कम करता है तो उसका सीधा असर सांस संबंधी बीमारियों में कमी से होगा, जिसके माध्यम से लोगों को कई तरह से स्वास्थ्य लाभ होगा. इसके अलावा पर्यावरण के स्तर पर शहर की वायु गुणवत्ता में सुधार, ईंधन की खपत में पर्याप्त लाभ के अलावा, ध्वनि प्रदूषण में भी काफी कमी लाने का काम करेगा. 

सड़क और इनसे संबंधित बुनियादी ढांचों के निर्माण में, इन निजी वाहनों के लिए मुख्यतः भारी मात्रा में भूमि आवंटन की वजह से, इन व्यक्तिगत अथवा निजी वाहनों की काफी ऊंची आर्थिक लागत आती है.

दोपहिए वाहन और कारों के इस्तेमाल के तुलना में, सार्वजनिक परिवहनों का इस्तेमाल, सुरक्षा के दृष्टिकोण से, काफी ज्य़ादा सुरक्षित विकल्प है. राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा उपलब्ध कराए गए आँकड़ों के अनुसार, देश के भीतर वर्ष 2021 में हुई कुल 1.53.972 मौतों में से 69,240 मौतें (44.96 प्रतिशत) दुपहिया वाहनों से और 23,531 मौतें (15.28 प्रतिशत) कार आदि से हुई है. इसके अलावा, सड़क और इनसे संबंधित बुनियादी ढांचों के निर्माण में, इन निजी वाहनों के लिए मुख्यतः भारी मात्रा में भूमि आवंटन की वजह से, इन व्यक्तिगत अथवा निजी वाहनों की काफी ऊंची आर्थिक लागत आती है.  हमें सर्वसम्मति  से  ये मानना होगा कि सार्वजनिक परिवहन शहरों के लिए किसी वरदान से कम नहीं हैं. 

यातायात प्रणाली में सुधार 

सार्वजनिक परिवहन, यातायात की भीड़ को कम करती है, ऐसा कोई भी दावा, हमेशा सही नहीं साबित होता है. हालांकि, ऐसी उम्मीद करना तार्किक तौर पर काफी हद तक सही है कि इन सार्वजनिक परिवहनों के इस्तेमाल की वजह से ज्य़ादातर कार अथवा दोपहिया चालकों को अपनी कार अथवा बाईक आदि को छोड़कर, उसके बजाय शहरी रेल या फिर बस सेवाओं की सुविधा लेने और अपनी व्यक्तिगत यात्राओं को कम करने के लिये प्रेरित करता है. फिर भी, ये ज़रूरी नहीं है कि इस पहल से शहर में यातायात की भीड़ में कमी आएगी ही, चूंकि रोज़ नए प्रवासी शहरों की ओर कूच कर रहे हैं, और नई-नई कारें भी इन खाली स्थानों को भर कर भीड़-भाड़ की स्थिति को पहले की तरह बहाल कर रही है. वे शहर जिन्होनें यातायात की भीड़ को कम करने अथवा कंट्रोल में करने के उद्देश्य से अपने यहाँ काफी फ्लाई ओवर और सबवे आदि का निर्माण किया है, उन्होंने भी अपनी पहल से यातायात की भीड़ के पहले के स्तर पर लौटने के लिए महज़ शुरुआती या अस्थायी राहत ही पाने में सफलता हासिल की है.   

सार्वजनिक परिवहन के तौर पर, 1863 में लंदन में दुनिया की सबसे पहली भूमिगत रेलवे की शुरुआत हुई थी. जैसा बताया गया था, इस परियोजना की शुरुआत के पीछे का प्रमुख मक़सद यातायात की भीड़ कम करना था.

सार्वजनिक परिवहन के तौर पर, 1863 में लंदन में दुनिया की सबसे पहली भूमिगत रेलवे की शुरुआत हुई थी. जैसा बताया गया था, इस परियोजना की शुरुआत के पीछे का प्रमुख मक़सद यातायात की भीड़ कम करना था. इसके उपरांत लंदन की ये भूमिगत अथवा अन्य भाषा में कहें तो ट्यूब रेल का बाद में विभिन्न चरणों में विस्तार होता गया. आज, ये कुल 470 किलोमीटर का रास्ता तय करती है एवं लगभग पांच मिलियन मुसाफिरों को अपनी सेवा प्रदान करती है. लंदन, के पास, विश्व में सबसे बड़ी सार्वजनिक परिवहन नेटवर्क और सम्पूर्ण यूरोप का सबसे व्यापक रेल सुविधा है, जिसके अंतर्गत विभिन्न शहरों को जोड़ती हुई, एकीकृत भूमिगत ट्रेन और बस प्रणाली की एक नेटवर्क फैली हुई है. इसके अलावा, रिवरबोट सेवा, ट्राम, केबल कार और पेराट्रांज़िट आदि भी है. इसके बावजूद, टॉमटॉम द्वारा भीड़भाड़ सूचकांक 2022 के तहत 390 शहरों में कराए गए सर्वेक्षण के अनुसार, सबसे अधिक भीड़भाड़ वाली यातायात की श्रेणी में लंदन शीर्ष स्थान पर काबिज है. लंदन में 10 किलोमीटर की दूरी की यात्रा तय करने का औसत समय 36 मिनट 20 सेकंड है और 2021 के बाद तो 1 मिनट 50 सेकंड का अतिरिक्त समय लेकर स्थिति और भी खराब हो गई है. भीड़भाड़ वाले समय के वक्त औसत गति प्रति वाहन 14 किलोमीटर प्रति घंटा की है. कारों की बढ़ती संख्या, इस बात की पुष्टि करती है. 1995 से 2020 के दौरान, लाइसेंस प्राप्त कारों की संख्या में 17 प्रतिशत (26 मिलियन) की वृद्धि दर्ज हुई है.     

पश्चिम अमेरिका के शहर — बोगोटा और कूर्टिबा — ने  सबसे सक्षम बस रैपिड ट्रांज़िट सिस्टम (बीआरटीएस) चलाने के लिए अंतरराष्ट्रीय ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया, और बाद में कई अन्य देशों ने भी इस प्रणाली का सफल अनुकरण किया. फिर भी, ये सब करने के बावजूद, उन्हे टॉमटॉम ट्रैफिक कंजेशन इंडेक्स से बाहर आने में सफलता नहीं मिली. वे इस सूचकांक में 10 और 37 के बीच के ही स्थान तक सीमित रह गए. दोनों ही शहरों में, व्यस्त समय के दरम्यान, प्रति 1 किलोमीटर का सफर तय करने में 26 मिनट और 20 सेकंड और क्रमश: 22 मिनट लगता है.   

बीते समय में इस्तेमाल मे आ रही कारों द्वारा उत्पन्न उच्च शोर और उत्सर्जन, उल्लेखनीय तौर पर काफी कम हो चुका है, और उनकी ऊर्जा दक्षता के साथ-साथ कार रखने की समर्थता भी काफी बढ़ गई है.

भारत के शहरों में, दिल्ली ने अपनी भूमि उपयोग प्लान के लिए – किसी अन्य भारतीय शहर की तुलना में, सबसे अधिक रोड/सड़क स्थान आवंटित किए हैं. वर्ष 2006 में इसे सबसे पहली मेट्रो ट्रेन सेवा प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था. आज इनके पास काफी व्यापक रेल आधारित ट्रांज़िट प्रणाली (400 किलोमीटर से भी ज्य़ादा) नेटवर्क और दुनिया की सबसे बड़ी सीएनजी-संचालित बसें, बीआरटीएस (बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम) और अन्य पैराट्रांज़िट सेवा उपलब्ध हैं. इन सब के बावजूद दिल्ली यातायात जाम की भारी समस्या से अब भी पीड़ित है और टॉमटॉम की वैश्विक सूची में 34वें स्थान के साथ प्रति 10 किलोमीटर का सफर तय करने के लिए औसत समय 22 मिनट 10 सेकंड और व्यस्त घंटों के दौरान 24 मिनट का औसत समय लेता है. दूसरी तरफ पुणे, भी यातायात भीड़ के मामले में तेज़ी से उभरा दूसरा अन्य महत्वपूर्ण भारतीय शहर है, जिसे मेट्रो रेल सेवा, बस प्रणाली, और पैराट्रांस के निर्माण और विस्तार के बावजूद, विश्व में छठी सबसे भीड़भाड़ वाले शहर की उपाधि मिली है.   

बेंगलुरू मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीएमटीसी) के तत्वाधान में सन् 2011 में बेंगलुरु में मेट्रो रेल ने आकार लेना शुरू किया था. वर्तमान समय में, कुल 485,000 मुसाफिरों को रोज़ यात्रा सुविधा प्रदान करते हुए कुल 70 किलोमीटर तक की रेल सेवा चालू है. इसके अलावा, ये शहर कुल 2000 रूटों पर अपनी 6000 बसों की सहायता से, जिनमें 825 बसें वातानुकूलित है, का परिचालन करती है. इसके अलावा, उबर एवं ओला सर्विसेज़, ऑटो-रिक्शा, और मोटरसाइकिल एवं स्कूटर समेत साइकिल आदि भी पैराट्रांज़िंट के तौर पर किराये पर उपलब्ध है. इनमें से ज़्यादातर सेवाएं एप-सक्षम एवं संचालित होने की वजह से यात्रियों के लिए सुविधापरक हैं. इस समृद्ध सार्वजनिक एवं पैरा ट्रांज़िट परिवहन व्यवस्था के बावजूद, टॉमटॉम ट्रैफिक कंजेशन इंडेक्स 2022 के सूचकांक में बेंगलुरु दुनियाभर में दूसरी सबसे खराब ट्रैफिक  व्यवस्था स्थान पाने वाला शहर है. इस शहर में भीड़ भाड़ वाले समय में 18 किलोमीटर प्रति घंटे के दर से, प्रति 10 किलोमीटर की यात्रा समय 29 मिनट 10 सेकंड है, और 2021 के बाद से इसमें 40 सेकंड की देरी से स्थिति और भी दयनीय हो गई है.     

नीदरलैंड में सार्वजनिक परिवहन से संबंधित हुए एक अध्ययन में पता चला कि ज्य़ादातर कार चालक, सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट/परिवहन का समर्थन नहीं करते है. कई मामलों में कार आदि ने सार्वजनिक परिवहनों से बेहतर प्रदर्शन किया है. कार जैसे कई अन्य निजी वाहनों ने इनके चालकों को स्वैच्छिक आज़ादी, स्वतंत्रता, समय का लचीलापन, आराम, विश्वसनीयता और सुरक्षा आदि की संतुष्टि प्रदान की है. कई कार चालकों ने सह परिवार यात्रा के दौरान, कार ड्राइविंग को काफी सुखद महसूस किया, जिस वजह से उन्हे उनकी सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिकी लाभ प्राप्त हुए. 

हाल के दशकों में, कार निर्माताओं द्वारा पूर्ण सक्रियता के साथ, कार से संबंधी कई प्रकार के नकारात्मक – वायु, ध्वनि प्रदूषण, दुर्घटनाओं की उच्च दर जैसे समस्याओं – पर काम किया जा रहा है. बीते समय में इस्तेमाल मे आ रही कारों द्वारा उत्पन्न उच्च शोर और उत्सर्जन, उल्लेखनीय तौर पर काफी कम हो चुका है, और उनकी ऊर्जा दक्षता के साथ-साथ कार रखने की समर्थता भी काफी बढ़ गई है. आज के समय की कारें एयरबैग जैसी विभिन्न उच्च स्तरीय सुरक्षा फीचर्स से लैस है. वैश्विक स्तर पर हो रहे सड़क निर्माण काफी तेज़ गति से सुरक्षा मानक के प्रति सजग हो रहे हैं. इन सभी कारकों की वजह से विश्व भर में कार की मांगें काफी बढ़ गई हैं. 1950 और 1990 के दौरान दुनियाभर में गाड़ियों की संख्या 75 मिलियन से 675 मिलियन तक बढ़ गई है. इनमें से 80 प्रतिशत का इस्तेमाल निजी परिवहन/वाहनों के तौर पर होता था. 1970 और 1990 के दौरान, पश्चिमी यूरोप में, निजी गाड़ियों से यात्रा करने वाले, प्रत्येक सवार लोगों द्वारा तय की जाने वाली किलोमीटर बढ़कर 90 प्रतिशत हो गई है. अन्य जगहों की कहानी भी इनसे अलग नहीं है.   

निष्कर्ष

उपरोक्त तथ्यों से ये निष्कर्ष निकलता है कि सार्वजनिक परिवहन, कारों के खिलाफ़ की जंग इतनी आसानी से नहीं जीतने वाला है. और जहां दो-पहिया वाहन और कारें काफी हद तक पर्यावरण अनुकूल बनती जा रही हैं, एक मोर्चा जिसपर सार्वजनिक परिवहन के सफल होने की उम्मीद दिख रही थी – वो ये कि सड़कों पर से दो-पहिया वाहनों और कार की तादाद घटेगी – वैसा कुछ भी होता फिलहाल तो नहीं दिख रहा है. 

समान हिस्सेदारी के दृष्टकोण से तर्क यह है कि इससे शहर की आबादी में बहुमत में रहने वाले गरीब, ग़ैर-कार और गैर-दो-पहिया वाहन नागरिकों को आवागमन की बेहतर सुविधा प्राप्त होगी.

विकल्प, बेशक ये नहीं है कि हम सार्वजनिक वाहनों से दूर चले जाएं. तीन काफी प्रभावशाली तर्क अब भी इसके समर्थन में खड़े हैं. ये पर्यावरण के अनुकूल है, समानता प्रदान करते हैं, और इच्छुक यात्रियों के लिए प्राइवेट/निजी वाहनों के लिए काउंटर मैगनेट है. किसी शहर में सार्वजनिक परिवहन से किस प्रकार के पर्यावरणीय लाभ प्राप्त होते है, ये सब हमने पहले ही बता रखा है. समान हिस्सेदारी के दृष्टकोण से  तर्क यह है कि इससे शहर की आबादी में बहुमत में रहने वाले गरीब, ग़ैर-कार और गैर-दो-पहिया वाहन नागरिकों को आवागमन की बेहतर सुविधा प्राप्त होगी. उन्हें एक विश्वसनीय और किफ़ायती परिवहन की आवश्यकता है, और सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट, इन सारी ज़रूरतों को पूरा करती है. तीसरा, शहर में स्थिति समय-समय पर बदलती रहती है, और ज्य़ादातर लोग बदलते समय के साथ, सार्वजनिक परिवहन की ओर रुख़ कर सकते हैं. ऐसा विशेषत: भीड़भाड़, आवाजाही में लगने वाला समय, स्ट्रेस/तनाव, लागत और हतोत्साहपूर्ण हो सकते है, जिसे शहरी प्रशासन इसे और भी प्रभावपूर्ण तरीके से लागू करने की चाहत में, निजी वाहनों के मालिकों पर थोपता है और उनके लिये हालात और मुश्किल बना देता है. 

इसके साथ ही, शहरों को चाहिए कि उन्हें व्यक्तिगत कारों के कार्यात्मक, मनोवैज्ञानिकी और सांस्कृतिक मूल्यों को विकसित करने की दिशा में लगने वाली नीतियों को लागू करने की दिशा में गंभीरता से काम करने की ज़रूरत है. साथ ही, इन सुविधाओं पर आधारित सार्वजनिक परिवहनों के प्रदर्शन में और भी बेहतर सुधार के ज़रिये निजी कार इस्तेमाल करने वाले लोगों को आकर्षित करने और उनके व सार्वजनिक परिवहन के बीच की खाई को पाटने की कोशिश करेंगे. 

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