Author : Snehashish Mitra

Published on Oct 17, 2023 Updated 0 Hours ago

भारतीय शहरों में ट्राम की कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने से प्राइवेट गाड़ियों पर निर्भरता को कम करने, सड़कों से भीड़ घटाने और बेहतर एयर क्वालिटी को हासिल करने में भारत महत्वपूर्ण रूप से अपने लक्ष्य को हासिल कर पाएगा.

इको-फ्रेंडली पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा: भारतीय शहरों में ट्राम के इस्तेमाल की समीक्षा

2023 के मौजूदा साल में केवल एक भारतीय शहर कोलकाता (पश्चिम बंगाल की राजधानी) में इस्तेमाल किए जा रहे ट्राम का नेटवर्क है. अपने अच्छे दिनों में ट्राम भारत के कुछ बड़े शहरों में चलती थी जैसे कि मुंबई, कोलकाता, दिल्ली और चेन्नई. ये शहर ब्रिटिश भारत की प्रेसीडेंसी  में सबसे महत्वपूर्ण शहर थे. कई वजहों से स्वतंत्रता के बाद ट्राम को भारतीय शहरों से हटा दिया गया जिसमें  कम सवारी, चलाने में नुकसान और अकुशल तकनीक शामिल हैं. यहां तक कि कोलकाता में भी ट्राम नेटवर्क पिछले कुछ दशकों से लगातार नुकसान दर्ज कर रहा है और हाल के समय में राज्य सरकार व्यावसायिक परिवहन के उद्देश्यों से चुनिंदा रूट पर ही ट्राम चलाने की अनकही नीति पर चल रही है. ट्राम को हेरिटेज (विरासत) और पर्यटन के सीमित उद्देश्यों के लिए ही बढ़ावा दिया जा रहा है. भारत में पिछले कुछ वर्षों के दौरान परिवहन और सड़क नीति को बदलकर प्राइवेट गाड़ियों को बढ़ावा देने की नीति हो गई है और ट्राम के बारे में कहा जाता है कि ये ट्रैफिक को धीमा करती है. इस मोड़ पर क्या भारत में ट्राम को मोहम्मद रफी के मशहूर गानेकहीं बिल्डिंग, कहीं ट्रामें, कहीं मोटर, कहीं मिलकी तरह पुराने दिनों की यादों में धकेल दिया जाएगा? या फिर शहरों में सतत हस्तक्षेप (सस्टेनेबल इंटरवेंशन) के माध्यम से ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन कम करने के लिए इलेक्ट्रिक गाड़ियों (EV) से प्रेरित नीतियों और प्रतिबद्धता के युग में भारतीय शहरों में अभी भी ट्राम के इस्तेमाल करने का व्यावहारिक विकल्प है?

इस नीति में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि परिवहन के बिना मोटर वाले साधनों जैसे कि पैदल चलने और साइकिल चलाने के लिए घटती जगह की वजह से ग़रीबों के लिए ट्रांसपोर्ट की लागत में बढ़ोतरी हुई है.

भारत के शहरी सड़क: भीड़ कम करने को प्राथमिकता मिलनी चाहिए

ज़्यादातर भारतीय शहरों में लंबा ट्रैफिक जाम आम बात है, ख़ास तौर पर ऑफिस जानेआने के समय के दौरान. एक अध्ययन के मुताबिक, भारत के लोग ट्रैफिक जाम में हर साल दो दिन तक का अपना समय गंवाते हैं. ट्रैफिक के इस हालात का एयर क्वालिटी पर भी हानिकारक असर पड़ता है. इसकी वजह से शहरी क्षेत्रों में रहने वाले सभी जीवित प्राणियों की सेहत को नुकसान होता है. ताज़ा राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति 2014 भारत के शहरों में ट्रैफिक जाम की चुनौतियों को समझती है. इसकी वजह ये है कि सड़क का नेटवर्क काफी हद तक पहले की तरह ही है लेकिन गाड़ियों की संख्या में ज़बरदस्त बढ़ोतरी हो गई है. इस नीति में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि परिवहन के बिना मोटर वाले साधनों जैसे कि पैदल चलने और साइकिल चलाने के लिए घटती जगह की वजह से ग़रीबों के लिए ट्रांसपोर्ट की लागत में बढ़ोतरी हुई है. शहरों की सीमा में विस्तार ने भी शहरों में ज़्यादातर ग़रीबों के लिए बिना मोटर वाले साधनों को अव्यावहारिक बना दिया है. परिवहन नीति में केंद्र सरकार, राज्य सरकार/शहरी विकास प्राधिकरण और प्राइवेट सेक्टर के बीच कामकाजी सहयोग के माध्यम से परिवहन के स्थायी साधन के तौर पर पब्लिक ट्रांसपोर्ट को प्राथमिकता देने पर ज़ोर दिया गया है. इस तरह के नीतिगत संकेतों के बावजूद भारतीय शहरों में शहरी सार्वजनिक परिवहन में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया गया है. आधिकारिक अनुमानों के मुताबिक, 2001 से 2011 के बीच रजिस्टर्ड दो पहिया वाहनों और कार में क्रमश: 164 प्रतिशत और 192 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. ऐसे आंकड़े इशारा करते हैं कि भारतीय शहर एक सफल मल्टी मॉडल  शहरी सार्वजनिक परिवहन प्रणाली लाने में सफल नहीं हो पाए हैं. बढ़ती अर्थव्यवस्था के तौर पर भारत को अपने शहरी केंद्रों के प्रदर्शन से बहुत उम्मीदें हैं और इसके लिए एक भरोसेमंद पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम बेहद ज़रूरी है.

भारतीय शहर एक विकल्प के तौर पर ट्राम को आज़मा रहे हैं

हाल के समय में भारत के कई शहरों ने व्यस्त इलाकों में ट्रैफिक जाम की समस्या से निपटने के लिए ट्रामवे के इस्तेमाल की संभावना की छानबीन करने पर ध्यान दिया है.मुंबई में मुंबई महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण (MMRDA) दफ्तरों के केंद्र बांद्राकुर्ला कॉम्प्लेक्स (BKC) में दफ्तर तक पहुंचने के लिए आख़िरी दूरी के संपर्क (लास्ट माइल कनेक्टिविटी) के रूप में ट्राम को शुरू करने की संभावना की पड़ताल कर रही है. दिल्ली में राज्य सरकार चांदनी चौक के आसपास के इलाकों समेत शहर के पुराने हिस्से में भीड़भाड़ कम करने के लिए ट्रैकलेस (बिना पटरी के) ट्राम के आइडिया पर विचार कर रही है. ट्रैकलेस ट्राम पुरानी दिल्ली के भीतर सभी बाज़ारों और हेरिटेज साइट (जैसे कि जामा मस्जिद और लाल क़िला) को नज़दीक के बस और मेट्रो स्टेशन से जोड़ेगी. ट्रैक वाले ट्राम के मुकाबले ट्रैकलेस ट्राम को तैयार करना काफी सस्ता है क्योंकि इसमें इंफ्रास्ट्रक्चर पर कम निवेश करना पड़ता है. चीन के कई शहरों (झाऊझाऊ, यिबिन) और ऑस्ट्रेलिया के स्टर्लिंग ने ट्रैकलेस ट्राम को अपनाया है और ये शहर भारतीय शहरों के लिए आदर्श हो सकते हैं. हैदराबाद में शहरी और परिवहन एजेंसियां सामूहिक रूप से मल्टीमॉडल पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम, जिसमें आवागमन और पर्यटन के कॉरिडोर शामिल होंगे, के एक हिस्से के रूप में ट्राम की व्यावहारिकता की छानबीन कर रही हैं. चंडीगढ़ में भविष्य के परिवहन के साधन को लेकर एक रिपोर्ट में ट्रामवे को मेट्रो रेल की जगह मास ट्रांज़िट के विकल्प के तौर पर बताया गया है.

हाल के समय में भारत के कई शहरों ने व्यस्त इलाकों में ट्रैफिक जाम की समस्या से निपटने के लिए ट्रामवे के इस्तेमाल की संभावना की छानबीन करने पर ध्यान दिया है.

आगे का रास्ता: नागरिकों की भागीदारी और कोलकाता से एक सीख

राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत ने पर्यावरण की स्थिरता और कार्बन उत्सर्जन में कमी को लेकर गंभीर प्रतिबद्धता जताई है और इस उद्देश्य के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम के आधुनिकीकरण के द्वारा नेटज़ीरो कार्बन शहरों की तरफ कदम उठाना ध्यान देने का प्रमुख क्षेत्र होना चाहिए. राष्ट्रीय स्तर पर नीतिगत चर्चा में व्यावहारिक और आधुनिक शहरी सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की आवश्यकता को स्वीकार किया जाता है लेकिन स्थानीय स्तर पर सरकारी एजेंसियों की उदासीनता एक समस्या बनी हुई है. ये उदासीनता सीमित वित्तीय क्षमता और बंटी हुई संस्थागत रूपरेखा की वजह से और बढ़ जाती है.

आदर्श स्थिति तो ये थी कि कोलकाता एक इस्तेमाल में लाए जा रहे ट्राम नेटवर्क के लिए सफल प्रेरणा स्रोत (रोल मॉडल) बनकर भारत के दूसरे शहरों को रास्ता दिखा सकता था. कोलकाता के ट्राम में काम करने वाले लोग पूरे भारत में ट्राम चलाने के लिए परिवहन कामगारों को ट्रेनिंग दे सकते थे. दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के द्वारा चलाए जा रहे कंसल्टेंसी प्रोजेक्ट की तर्ज पर पश्चिम बंगाल परिवहन निगम (WBTC जो कोलकाता के ट्राम सिस्टम के प्रबंधन के लिए ज़िम्मेदार है) के द्वारा ट्रामवे की व्यावहारिकता के अध्ययन के लिए कंसल्टेंसी का मॉडल भारत के अलगअलग शहरों में ट्राम की व्यावहारिकता की रिपोर्ट तैयार करने के लिए विदेशी कंसल्टेंट ग्रुप को रखने की निर्भरता को कम कर सकती थी. इससे WBTC के राजस्व में भी बढ़ोतरी होती जिसका इस्तेमाल कोलकाता के ट्राम नेटवर्क को आधुनिक बनाने और उसका विस्तार करने में किया जा सकता था. लेकिन गलत नीतियों और प्राथमिकताओं की वजह से पिछले कुछ वर्षों के दौरान ट्राम को नज़रअंदाज़ किया गया है और इसके परिणामस्वरूप कोलकाता का ट्राम नेटवर्क 2011 के 37 से घटकर 2023 में सिर्फ 3 रह गया है.

इस स्थिति ने कोलकाता के नागरिकों के एक समूह को चिंतित कर दिया है. इन लोगों ने मिलकर कलकत्ता ट्राम यूज़र एसोसिएशन (CTUA) का गठन किया है. ये संगठन कई सार्वजनिक और सामाजिक मंचों पर ट्राम की वापसी की मांग कर रहा है. साथ ही ट्राम का संचालन कम करने की सरकार की कोशिशों को नाकाम बनाने के लिए कई मौकों पर ये संगठन कलकत्ता उच्च न्यायालय का रुख भी कर चुका है. ट्राम के संचालन में सुधार की मांग को लेकर आयोजित सार्वजनिक सम्मेलनों में बड़ी संख्या में लोग जुटे हैं. इस दौरान बुद्धिजीवियों और राजनेताओं ने भी शामिल होकर इस मांग का समर्थन किया है. CTUA और दूसरे सिविल सोसाइटी  संगठन अपनी लगातार कोशिशों से कुछ ट्राम रूट की बहाली के लिए सरकार पर दबाव डालने में सफल रहे हैं. व्यापक तौर पर कहें तो कोलकाता में ट्राम को लेकर लोगों की जागरूकता और सक्रियता भारत के शहरी पब्लिक ट्रांसपोर्ट में नागरिकों की भागीदारी के लिए एक रास्ता दिखाती है.

अगर उचित ढंग से किफायती आवागमन, परिवहन से होने वाले प्रदूषण को कम करने और मास ट्रांज़िट के लक्ष्यों के साथ रणनीति बनाई जाए तो हेरिटेज और पुरानी यादों के ख्याल के आगे ट्राम भारत के शहरों को बदलने में अभी भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है.

भारत सरकार सड़कों पर इलेक्ट्रिक गाड़ियों को बढ़ावा देने के लिए नीतियों को लागू करने पर ज़ोर दे रही है (जैसे कि नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन, EV मिशन). भारतीय शहरों में ट्राम की कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने से प्राइवेट गाड़ियों पर निर्भरता को कम करने, सड़कों से भीड़ कम करने और बेहतर एयर क्वालिटी को हासिल करने में भारत महत्वपूर्ण रूप से अपने लक्ष्य को हासिल कर पाएगा. राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति 2014 के सुझावों के आधार पर एम्सटर्डम, बर्लिन और सैन फ्रांसिस्को जैसे शहरों में सफल ट्राम/ट्रॉली नेटवर्क से सबक सीखा जा सकता है. अगर उचित ढंग से किफायती आवागमन, परिवहन से होने वाले प्रदूषण को कम करने और मास ट्रांज़िट के लक्ष्यों के साथ रणनीति बनाई जाए तो हेरिटेज और पुरानी यादों के ख्याल के आगे ट्राम भारत के शहरों को बदलने में अभी भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. कोलकाता के ट्राम पर लिखे धुंधले पड़ चुके शब्दये गाड़ी आपकी है, कृपया इसका ध्यान रखेंअभी भी भारत की शहरी सार्वजनिक परिवहन प्रणाली के लिए महत्वपूर्ण है, बशर्तें ये लोगों और रोज़ाना इस्तेमाल करने वालों के संरक्षण में समानता और स्थिरता (सस्टेनेबिलिटी) के सिद्धांतों के तहत आगे बढ़े.

स्नेहाशीष मित्रा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के अर्बन स्टडीज़ में फेलो हैं.

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