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बांग्लादेश को अपनी ऊर्जा सुरक्षा मज़बूत करने पर निवेश करना होगा क्योंकि मौजूदा संकट के गंभीर आर्थिक दुष्प्रभाव हो सकते हैं.
अक्टूबर महीने की शुरुआत में ग्रिड फ़ेल होने से बांग्लादेश (Bangladesh) का 75 से 80 फ़ीसदी हिस्सा अंधेरे में डूब गया था. ये वाक़या मुल्क में गहराते बिजली संकट (power crisis) की ओर इशारा करता है. घंटों बत्ती गुल रहना और आपूर्ति में कमी की वजह से बिजली कटौती वहां आम बात हो गई है. बिजली सप्लाई में ऐसे उतार-चढ़ाव से देश के निर्यात में दबदबा रखने वाले प्रमुख उद्योगों के उत्पादन की रफ़्तार मंद पड़ गई है. बांग्लादेश को इस वक़्त विदेशी मुद्रा की भारी दरकार है और उनके आवक के लिहाज़ से अर्थव्यवस्था (economy) के ये क्षेत्र बेहद अहम हैं. मौजूदा संकट बांग्लादेश को भयंकर दुष्चक्र में फंसा सकता है. विदेशी मुद्रा की किल्लत से देश के ऊर्जा आयातों में कमी आ सकती है और ऊर्जा के क्षेत्र में साझीदारों के साथ बांग्लादेश के सामरिक रिश्तों पर दूरगामी असर पड़ सकता है.
बांग्लादेश के मौजूदा संकट में वैश्विक और घरेलू कारकों का मिला-जुला योगदान है. देश में बिजली उत्पादन का लगभग 85 प्रतिशत हिस्सा जीवाश्म ईंधनों (जैसे प्राकृतिक गैस और तेल) के इस्तेमाल से आता है. इसमें प्राकृतिक गैस की प्रमुख भूमिका है.
बांग्लादेश के मौजूदा संकट में वैश्विक और घरेलू कारकों का मिला-जुला योगदान है. देश में बिजली उत्पादन का लगभग 85 प्रतिशत हिस्सा जीवाश्म ईंधनों (जैसे प्राकृतिक गैस और तेल) के इस्तेमाल से आता है. इसमें प्राकृतिक गैस की प्रमुख भूमिका है. रूस के ऊर्जा संघर्ष, OPEC+ द्वारा तेल की आपूर्ति में की गई कटौतियों और रूसी कच्चे तेल पर यूरोपीय संघ की पाबंदियों के चलते तेल और गैस की क़ीमतों में बेहिसाब बढ़ोतरी हुई है. नतीजतन महंगाई में भारी उछाल हुआ है और ऊर्जा आयात से जुड़े ख़र्चे असंतुलित हो गए हैं. ऐसे में बांग्लादेश को गैस की ख़रीद रोकने पर मजबूर होना पड़ा है. डीज़ल से चलने वाले कई बिजली संयंत्रों को बंद कर दिया गया है. बांग्लादेशी सरकार ने नवीकरणीय ऊर्जा की ओर ना के बराबर ध्यान दिया है. साथ ही क्षमता भुगतानों (capacity payments) जैसी नीतियों का भी ऊर्जा संकट को और गंभीर बनाने में बड़ा हाथ रहा है.
हाल तक बांग्लादेश इस इलाक़े की सबसे तेज़ी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था थी. उसकी आर्थिक कामयाबी का एक अहम हिस्सा सिले-सिलाए कपड़ों से जुड़ा उद्योग (RMG) रहा है. बांग्लादेश के सकल घरेलू उत्पाद में इस उद्योग का हिस्सा लगभग 10 प्रतिशत है और ये तक़रीबन 44 लाख लोगों को रोज़गार प्रदान करता है. बांग्लादेश आज दुनिया में परिधानों का निर्यात करने वाला दूसरे सबसे बड़ा देश है. बाग्लादेश के कुल निर्यात में RMG सेक्टर का हिस्सा 84 प्रतिशत है. ज़ाहिर है ये उद्योग देश के विदेशी मुद्रा भंडार के लिए बेहद अहम है.
सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था, निर्यात से होने वाली आय में गिरावट और ऊर्जा आयातों में होने वाले ख़र्चों में ज़बरदस्त बढ़ोतरी से देश का विदेशी मुद्रा भंडार तेज़ी से खाली हो गया है. ऐसे में बांग्लादेश को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से 4.5 अरब अमेरिकी डॉलर का एहतियाती ऋण लेने पर विचार करना पड़ा है.
बहरहाल, मौजूदा संकट ने इस उद्योग की रफ़्तार रोक दी है. कई कारखानों में उत्पादन में 50 फ़ीसदी तक का उतार दर्ज किया गया है. रोज़ औसतन तीन घंटे तक होने वाली बिजली कटौती इस रुझान के लिए ख़ासतौर से ज़िम्मेदार है. RMG सेक्टर के उत्पादक बार-बार होने वाली बिजली कटौती के चलते जेनेरेटर्स पर निर्भर रहने लगे हैं. इसी के ज़रिए वो रंगाई और धुलाई करने वाली इकाइयों को चालू रख पा रहे हैं. दरअसल इन इकाइयों को बंद कर देने से कपड़े ख़राब हो जाएंगे, लिहाज़ा कारखाना मालिक भारी लागत उठाकर डीज़ल जेनेरेटर्स का इस्तेमाल करने को मजबूर हैं. बिजली की दरों के मुक़ाबले ये जेनेरेटर्स तीन से चार गुणा महंगे हैं. ज़ाहिर है, इससे उनकी उत्पादन लागत बढ़ जाती है. बिजली गुल रहने से निर्माण प्रक्रियाओं में देरी हो रही है, लिहाज़ा निर्यातों के लिए निर्माण से जुड़ी समयसीमा का पालन करना चुनौतीपूर्ण हो गया है. इससे बांग्लादेशी परिधान निर्यातों का प्रतिस्पर्धा लाभ घट रहा है. उत्पादन प्रक्रिया में देरी के चलते निर्यातकों को समयसीमा के भीतर माल की आपूर्ति के लिए महंगे हवाई लदानों का इस्तेमाल करना पड़ रहा है. इस प्रक्रिया में उत्पादन लागत बढ़ जाने के कारण निर्यात में गिरावट आ रही है.
इन हालातों में ताज्जुब की बात नहीं है कि बांग्लादेश से परिधानों के निर्यात में पिछले साल के इसी कालखंड के मुक़ाबले इस साल 7.5 प्रतिशत की नकारात्मक बढ़त दर्ज की गई है. इस बीच एशियाई विकास बैंक ने अपनी रिपोर्ट में बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था की विकास दर से जुड़े अपने पूर्वानुमान में कटौती कर दी है. पहले वहां की अर्थव्यवस्था में मौजूदा वित्त वर्ष में 7.1 प्रतिशत की बढ़त का अनुमान था, जिसे बैंक ने घटाकर 6.6 प्रतिशत कर दिया है. सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था, निर्यात से होने वाली आय में गिरावट और ऊर्जा आयातों में होने वाले ख़र्चों में ज़बरदस्त बढ़ोतरी से देश का विदेशी मुद्रा भंडार तेज़ी से खाली हो गया है. ऐसे में बांग्लादेश को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से 4.5 अरब अमेरिकी डॉलर का एहतियाती ऋण लेने पर विचार करना पड़ा है.
आसपड़ोस के मुल्कों के तजुर्बे भी यही इशारा करते हैं कि दुश्वारियों के वक़्त चीनी कर्ज़ माथे का बोझ बन जाते हैं. चीन के साथ बांग्लादेश के क़रीबी जुड़ावों से भारत और अमेरिका की नज़र टेढ़ी हो सकती है. ऐसे में इन देशों के साथ ऊर्जा साझेदारियों की संभावना खटाई में पड़ सकती है.
निकट भविष्य में जीवाश्म ईंधनों की ऊंची क़ीमतों से राहत की उम्मीद नहीं है, लिहाज़ा बांग्लादेश को ऊर्जा की ख़रीद के लिए लगातार विदेशी मुद्रा भंडारों में कमी का सामना करना पड़ सकता है. सरकार अगर इन सेक्टरों को पटरी पर बनाए रखने में नाकाम रहती है तो हालात बदतर हो सकते हैं.
शेख़ हसीना की हुकूमत के सामने गैस की अतिरिक्त आपूर्ति सुनिश्चित करते हुए देश की आर्थिक तरक़्क़ी में गतिशीलता सुनिश्चित करने की पहाड़ जैसी चुनौती है. साथ ही हरित ऊर्जा से जुड़ी प्रतिबद्धताएं पूरी करने के लिए देश में बिजली आपूर्ति के स्रोतों में तेज़ी से विविधता लाना भी निहायत ज़रूरी है. इस क़वायद के लिए बिजली क्षेत्र के संयंत्रों में सस्ती-लागत वाले ऊर्जा उत्पादन की जगह दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा को प्राथमिकता दिए जाने की नीति अपनाना आवश्यक हो गया है. इस मंसूबे को पूरा करने के लिए महाशक्तियों और ऊर्जा के क्षेत्र में बांग्लादेश के अहम साझीदारों के बीच सतर्कतापूर्ण संतुलन बिठाने वाली रणनीति की दरकार होगी क्योंकि इन ताक़तों के बीच अक्सर रस्साकशी का दौर चलता रहता है.
चीन और रूस, ऊर्जा के क्षेत्र में पारंपरिक तौर पर बांग्लादेश के अहम साझीदार रहे हैं. आज बांग्लादेश में 90 फ़ीसदी ऊर्जा परियोजनाओं को चीन रकम मुहैया करवा रहा है. 2016 से बांग्लादेश के ऊर्जा क्षेत्र में चीनी निवेश और कर्ज़ बढ़कर 8.31 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया है. हालिया वर्षों में चीन ने बांग्लादेश को नवीकरणीय क्षेत्र में आगे बढ़ने से जुड़ी क़वायदों में मदद करने की इच्छा भी जताई है. दरअसल, चीन ने बांग्लादेश को दो टूक कह दिया है कि अब वो कोयला खनन और कोयले से संचालित बिजली घरों के पर विचार नहीं करेगा. भले ही ऐसी बातों से चीन की छवि एक व्यावहारिक साझेदार की दिखाई दे सकती है लेकिन चीन पर बहुत ज़्यादा निर्भर हो जाने से बांग्लादेश के कर्ज़ के मकड़जाल में फंसने का ख़तरा रहेगा. साथ ही देश के रईस तबक़ों में भ्रष्टाचारी प्रवृति बढ़ने की भी आशंका रहेगी. आसपड़ोस के मुल्कों के तजुर्बे भी यही इशारा करते हैं कि दुश्वारियों के वक़्त चीनी कर्ज़ माथे का बोझ बन जाते हैं. चीन के साथ बांग्लादेश के क़रीबी जुड़ावों से भारत और अमेरिका की नज़र टेढ़ी हो सकती है. ऐसे में इन देशों के साथ ऊर्जा साझेदारियों की संभावना खटाई में पड़ सकती है.
उधर रूस ने गैस की खोज और खुदाई के क्षेत्र में बांग्लादेश की काफ़ी मदद की है. बांग्लादेश के पहले परमाणु ऊर्जा संयंत्र का निर्माण कर उसने परमाणु सहयोग के क्षेत्र में भी हाथ बढ़ाया है. रूस पर ऊर्जा से जुड़ी इसी निर्भरता के चलते बांग्लादेश शुरुआती दौर में यूक्रेन पर रूसी आक्रमण को लेकर संयुक्त राष्ट्र में लाए गए पहले प्रस्ताव से ग़ैर-हाज़िर रहा था. बहरहाल युद्ध के आर्थिक प्रभावों, रूस पर लगी पाबंदियों और अमेरिका की ओर से नए सिरे से छेड़ी गई कूटनीतिक क़वायदों के चलते रूस को लेकर बांग्लादेश के रुख़ में हाल में बदलाव आया है. संयुक्त राष्ट्र महासभा के ताज़ा प्रस्ताव में बांग्लादेश ने यूक्रेन पर रूसी हमले के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों पर चिंता जताते हुए उसकी आलोचना की है. हालांकि, बांग्लादेश ने रूस के साथ जुड़ाव बरक़रार रखा है. बांग्लादेशी प्रधानमंत्री के ऊर्जा सलाहकार और रूसी राजदूत के बीच हाल ही में हुई बैठक, सहयोग में और बढ़ोतरी के संकेत देती है. हालांकि इसके नतीजे के तौर पर बांग्लादेश पर पश्चिमी दुनिया का दबाव और बढ़ने के आसार हैं.
हाल ही में मोदी-हसीना शिखर सम्मेलन से इस बात की तस्दीक़ होती है. बंगाल की खाड़ी पर भी भारत की नज़र है, ऐसे में उसने बिम्सटेक के भीतर भी संवाद प्रक्रियाओं में नई जान फूंक दी है. ख़ासतौर से BBIN देशों के साथ इस तरह की क़वायद को अंजाम दिया जा रहा है.
बांग्लादेश की आर्थिक वृद्धि के साथ-साथ ऊर्जा के क्षेत्र में चीन और रूस के साथ उसके बढ़ते सहयोग की वजह से अमेरिका भी उसके साथ तालमेल का स्तर बढ़ाने पर मजबूर हो गया. जलवायु पर अमेरिकी राष्ट्रपति के विशेष दूत जॉन कैरी ने ग्रिड की विश्वसनीयता सुनिश्चित करने और स्वच्छ ऊर्जा की ओर बदलाव से जुड़ी क़वायदों में बांग्लादेश की मदद करने का वादा किया है. हालांकि, रूस और चीन पर बांग्लादेश की निर्भरता की काट करने और उसका भरोसेमंद ऊर्जा साझीदार होने का दावा जताने के लिए अमेरिका को अभी काफ़ी मशक्कत करनी होगी.
बांग्लादेश में इस इलाक़े से बाहर की ताक़तों की बढ़ती धाक से भारत पूरी तरह वाक़िफ़ है. लिहाज़ा वो भी ढाका के साथ ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग को आगे बढ़ा रहा है. हाल ही में मोदी-हसीना शिखर सम्मेलन से इस बात की तस्दीक़ होती है. बंगाल की खाड़ी पर भी भारत की नज़र है, ऐसे में उसने बिम्सटेक के भीतर भी संवाद प्रक्रियाओं में नई जान फूंक दी है. ख़ासतौर से BBIN देशों (बांग्लादेश, भूटान, भारत और नेपाल) के साथ इस तरह की क़वायद को अंजाम दिया जा रहा है. हालांकि बांग्लादेश को हरित ऊर्जा की ओर परिवर्तनकारी उपायों के लिए मदद करने को लेकर फ़िलहाल भारत के पास पर्याप्त वित्तीय और प्रौद्योगिकीय क्षमता मौजूद नहीं है. ऐसे में भारत ने BBIN ढांचे के भीतर ही बिजली व्यापार का विस्तार करने का प्रस्ताव दिया है, जो बांग्लादेश के लिए फ़ायदेमंद हो सकता है. क्षेत्रीय स्तर पर बिजली के ऐसे व्यापार से बांग्लादेश को नेपाल और भूटान से सस्ती स्वच्छ ऊर्जा हासिल हो सकती है. ऐसा क्षेत्रीय सहयोग बांग्लादेश को बिजली की बढ़ती मांग का दीर्घकालिक समाधान मुहैया करा सकता है. हिमालय की गोद में बसे पड़ोसी देशों में पनबिजली की अपार संभावनाओं के इस्तेमाल से जीवाश्म ईंधनों पर बांग्लादेश की निर्भरता घटाने में भी मदद मिल सकती है.
बांग्लादेश के लिए मौजूदा हालात चुनौती के साथ-साथ अवसर भी हैं. दरअसल ऊर्जा के क्षेत्र में उसके हरेक साझीदार के साथ कोई न कोई शर्त जुड़ी हुई है. रूस के साथ क़रीबी बढ़ाने पर पश्चिमी देशों की ओर से दबाव बढ़ने और अनिश्चितता के बादल मंडराने का ख़तरा है, जिससे कारोबार की लागत बढ़ सकती है. चीन पर निर्भरता से उसके कर्ज़ को लेकर विश्वसनीयता और ग़ैर-टिकाऊ प्रवृति से जुड़े सवाल खड़े होते हैं. इतना ही नहीं, चीन से नज़दीकी बढ़ाने से भारत और अमेरिका के साथ रिश्तों की गर्माहट में भी खलल पड़ सकती है. अमेरिका के पास विशेषज्ञता और वित्तीय क्षमताएं तो हैं, लेकिन प्रतिबद्धता का अभाव है. यही वजह है कि वो बांग्लादेश में रूस और चीनी सहयोग की काट निकालने में अबतक कामयाब नहीं हो सका है. जहां तक भारत का सवाल है तो तकनीकी और वित्तीय हदों के बावजूद भारत के पास ऊर्जा संपर्क और व्यापार के मोर्चे पर सहयोग की अपार संभावनाएं मौजूद हैं.
इस वक़्त बांग्लादेश के पास मुट्ठी भर भरोसेमंद साझीदार हैं, लिहाज़ा निकट भविष्य में हालात ऐसे ही डांवाडोल रहने के आसार हैं. हालांकि, दीर्घकालिक तौर पर बांग्लादेश को महाशक्तियों के बीच तेज़ होती रस्साकशी से फ़ायदा उठाने के तौर-तरीक़े सीखने होंगे.
बांग्लादेश अपनी आर्थिक तरक़्क़ी और ऊर्जा सुरक्षा को टिकाऊ बनाने की जुगत में लगा है. हालांकि उभरते बहुध्रुवीय संसार में अपने तमाम साझीदारों के साथ संतुलन बिठाने में उसे काफ़ी दिक़्क़त पेश आने वाली है. लिहाज़ा अपने साथियों का चुनाव करते वक़्त बांग्लादेश को काफ़ी सतर्क रहना होगा. उसे उन देशों की विश्वसनीयता, स्थिरता, क्षमता और उनसे जुड़ावों के व्यापक सामरिक प्रभावों की बारीक़ी से पड़ताल करके ही क़दम आगे बढ़ाना होगा.
बांग्लादेश के बिजली क्षेत्र के लिए ये साल यादगार रहेगा. साल की शुरुआत में ढाका में 100 फ़ीसदी विद्युतीकरण दर होने के दावे किए जा रहे था, लेकिन अब वहां रोज़ बिजली कटौती हो रही है. सरकार बेरोकटोक बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने में नाकामयाब हो रही है. ऐसे में बांग्लादेशी अर्थव्यवस्था की जीवनरेखा कहे जाने वाले निर्यात उद्योगों पर ज़बरदस्त मार पड़ रही है. RMG सेक्टर के लड़खड़ाने से देश की अर्थव्यवस्था ऊर्जा की किल्लत से जुड़े भयानक दुष्चक्र में फंस सकती है. इससे बचने के लिए कारखानों में सुचारू कामकाज सुनिश्चित करना बेहद अहम हो जाता है. इस वक़्त बांग्लादेश के पास मुट्ठी भर भरोसेमंद साझीदार हैं, लिहाज़ा निकट भविष्य में हालात ऐसे ही डांवाडोल रहने के आसार हैं. हालांकि, दीर्घकालिक तौर पर बांग्लादेश को महाशक्तियों के बीच तेज़ होती रस्साकशी से फ़ायदा उठाने के तौर-तरीक़े सीखने होंगे.
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Aditya Gowdara Shivamurthy is an Associate Fellow with the Strategic Studies Programme’s Neighbourhood Studies Initiative. He focuses on strategic and security-related developments in the South Asian ...
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