Author : Anub Mannaan

Published on Oct 05, 2023 Updated 0 Hours ago

बच्चे के संपूर्ण विकास के लिए पर्याप्त समय दिया जाए यह सुनिश्चित करने के लिए हमें काम और खेल के बीच संतुलन स्थापित करने की आवश्यकता है.

कृपया अपने बच्चों को खेलने की छूट दें!

बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCRC, 1989) ने बच्चों को नागरिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और स्वास्थ्य अधिकार देने का काम किया है. यह इतिहास का सबसे अधिक मान्यता प्राप्त मानवाधिकार संधि है जिसमें 196 देशों ने बचपन की मौलिक गारंटी की रक्षा करने का वादा किया है. 

UNCRC बच्चों के खेलने के अधिकार और उनके समग्र विकास में खेल के महत्व को न  सिर्फ़ मानता है बल्कि उसकी पैरवी भी करता है. किसी भी बच्चे की सुरक्षा और कल्याण के लिए आवश्यक कई कारकों के साथ वो जानता है कि खेलकुद भी  अनिवार्य है. अनुच्छेद 31 के अनुसार किसी भी बच्चे को आराम करने, खेलने और मनोरंजन का अधिकार है. साल 2013 में, सामान्य टिप्पणी संख्या 17 में खेलने के अधिकार को लागू किये जाने को सुनिश्चित करने के उपायों की विस्तृत व्याख्या भी की गई है, जो खेलने के अधिकार के प्रति समाज, परिवार और स्कूल की प्रतिबद्धता को और मज़बूत करती है.

बाल विकास में खेल के महत्व पर बढ़ते और लगातार लिखे जा रहे साहित्य ने बच्चों के खेलने के अधिकार को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता दिलवाने में खासी मदद की है. ऐसे में सवाल उठा है कि आख़िर खेल की परिभाषा क्या है?

बाल विकास में खेल के महत्व पर बढ़ते और लगातार लिखे जा रहे साहित्य ने बच्चों के खेलने के अधिकार को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता दिलवाने में खासी मदद की है. ऐसे में सवाल उठा है कि आख़िर खेल की परिभाषा क्या है?  वॉस (2015) के शब्दों में “खेलने के लिए सबसे अच्छी परिस्थितियाँ वे हैं, जो बच्चों के द्वारा की गई उनकी पहल का समर्थन करती है और उन्हें मनचाहा प्रतिक्रिया देने का काम करती है, उन्हें खेलने के दौरान अपनी मनमर्ज़ियां करने और सीखने का अवसर देती है. ऐसा करने के लिए उन्हें संसाधन और जगह मुहैय्या कराती है; और उन्हें सहज अभिव्यक्ति की आज़ादी देती है”. क्योंकि, खेल बच्चों को आकर्षित करता है और एक तरह से आसान क्रिया होती है.  हालांकि, इसका मतलब यह नहीं  है कि खेल सिर्फ़ बच्चों के नेतृत्व में होता है. कई बार माता-पिता और बच्चों के केयरगिवर्स यानी उनकी देखभाल करने वाले भी जब बच्चों के साथ खेलने में शामिल होते हैं तो इसके अनेक फायदे होते हैं और उनके बेहतर रिश्ते बनते हैं. इस लेख में, हम खेल के फायदे और बच्चों के इस मौलिक अधिकार का उपयोग करने के बीच आनी वाली रुकावटों का विश्लेषण करेंगे.

खेल के समय का फायदा 

बच्चों द्वारा संचालित खेल मज़बूत सामाजिक संबंध बनाने में मदद करता है और संघर्ष व दोस्ती को नियंत्रित करने में मदद करता है. पशु खेल और मस्तिष्क विज्ञान के अध्ययनों से पता चलता है कि खेल लगभग तुरंत ही बच्चों को सकारात्मक सामाजिक और आपसी संबंध बनाने में मदद करता है. माता-पिता या शिक्षकों के हस्तक्षेप के बिना खेलने से बच्चों को समूह में काम करना आता है और वे नेतृत्व का गुर भी सीखते हैं — ये उनके सामाजिक कौशल को विकसित करने में मदद करता है, जैसे बातचीत करना, क्या खेलना है, कब खेलना है और कैसे खेलना है इत्यादि.

आज, बच्चों में मोटापा एक महत्वपूर्ण और गंभीर समस्या बन गया. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने घोषणा करते हुए कहा है कि “बचपन के मोटापे में तेज़ी से वृद्धि 21वीं सदी की सबसे गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है.”बच्चों का खेल और स्वस्थ भोजन वो कड़ी है, जो इसी बीमारी से निपटने में हमारी सबसे बड़ी सुरक्षा और ताकत बन सकती है. खेल खेलने से शारीरिक व्यायाम मिलता है जो संयम, शरीर की गतिविधियों का नियंत्रण और शारीरिक संतुलन का निर्माण करता है. असल में, अध्ययन बताते हैं कि खाली समय में या स्कूल में रीसेस पीरियड के दौरान खेलने से जो फायदा शरीर को होता है वो बच्चों के फिज़िकल एजुकेशन क्लास से ज़्यादा होता है.  

कई अध्ययनों में ये बात बतायी गई है कि अकादमिक सफलता और खेलने के समय के बीच एक स्वभाविक संबंध होता है. इन सभी साक्ष्यों या केस स्टडी को ज़्यादातर स्कूल में रीसेस या लंचब्रेक पर आधारित शोध से प्राप्त किये गए हैं.

खाली समय में हमउम्र साथियों साथ बातचीत और सामाजिक, भावनात्मक और मानसिक फायदों से बच्चों की सीखने की क्षमता बढ़ती है और उनका समग्र शैक्षिक अनुभव बेहतर होता है. कई अध्ययनों में ये बात बतायी गई है कि अकादमिक सफलता और खेलने के समय  के बीच एक स्वभाविक संबंध होता है. इन सभी साक्ष्यों या केस स्टडी को ज़्यादातर स्कूल में रीसेस या लंचब्रेक पर आधारित शोध से प्राप्त किये गए हैं. ये देखा गया है कि हमउम्र साथियों के साथ बातचीत करने और खेल के दौरान पढ़ने से, लिखने, वर्तनी, गणित और मौखिक कौशल में काफी सुधार हुआ है. ब्रेक टाइम पर साथियों से बातचीत करने से बच्चे सेल्फ रेगुलेशन भी सीखते हैं, जो उनके सकारात्मक बदलाव लाता है और उनके क्लास रूम व्यवहार में सुधार लाता है.

खेल हमें खुशी देता है. सामाजिक खेल मनोवैज्ञानिक रूप से हममें कई तरह के सुधार लाने के काम करता है. इससे कई तरह विकासात्मक उद्देश्य भी पूरे होते हैं. कई बार सकारात्मक भावनाएंभी स्थायी मानवीय संसाधनों का निर्माण करती हैं. इसके विपरीत, जिन बच्चों को खेल नहीं खेलने दिया जाता है वे बच्चे  चिंता, अवसाद और अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से घिर जाते हैं. एक अमेरिकी मानवशास्त्रीय अध्ययन ने इस बात का पता लगाया है कि कैसे मनोविकृति विज्ञान में वृद्धि और स्वतंत्र खेल में कमी के बीच एक संबंध होता है.

अगर खेलों का नियंत्रण बड़ों के हाथों में आ जाता है तो इससे खेल महत्वहीन हो जाता है. उदाहरण के लिए, स्कूल के बाद आयोजित की जाने वाली एनरिचमेंट क्लासेज़ से मिलने वाले फायदे, बच्चों के साथ खेलने से मिलने वाले फायदों से बहुत अलग होते हैं. ऐसे संगठित खेल गतिविधियों और उसके विकासात्मक फायदों से जुड़े कुछ शोध भी पाये गये हैं.

ऐसा लगता है कि एक सूची है जिसे टिक किया जाना चाहिए, जिसमें कम से कम प्रत्येक बच्चे में एक खेल, संगीत, एक विदेशी भाषा, एक नृत्य शैली या रंगमंच से जुड़ी कला ज़रूरी आनी चाहिये.

यह विडंबना है कि बच्चों के खेल को समझने और उसे सराहने का समय ऐसा वक्त में आया है जब बच्चों की स्वतंत्र खेल तक पहुंच काफी हद तक सीमित हो गई है. इसकी वजह कई हैं, जिनमें गरीबी, युद्ध और बाल श्रम हैं जो उनके इस अधिकार को बाधित करते हैं. हालाँकि, जहां संसाधनों की कमी नहीं हैं, वहां भी खाली समय और खेल में कमी आयी है. इस गिरावट को किसी एक पहलू से जोड़कर नहीं देखा जा सकता है; यह बाधा उत्पन्न करने में कई सामाजिक और पारिस्थितिक घटकों की भूमिका शामिल है.

ब्रोंफेनब्रेनर का सामाजिक-पारिस्थितिक मॉडल

Bronfenbrenner’s Ecological Systems Theory

ब्रोंफेनब्रेनर की इकोलॉजिकल सिस्टम की थ्योरी

इस मॉडल की पहली परत (माइक्रोसिस्टम) में बच्चों के आसपास मौजूद दबाव का स्वरूप शामिल है, जिसमें पढ़ाई का दबाव, स्कूल में घंटो रहना, स्कूल के बाद की गतिविधियों, स्क्रीन समय में वृद्धि से पैदा होता है. अकादमिक उपलब्धि के लिए प्रतिस्पर्धा भी बहुत जल्दी ही कम उम्र में शुरू हो जाती है; उदाहरण के लिए, प्री-स्कूल के बच्चों (2-3 साल के बच्चों) से  स्कूल प्रवेश के लिए लिये जा रही परिक्षाओं में फलों और सब्ज़ियों की कई श्रेणियों का ज्ञान होना अनिवार्य माना जाता है. इसलिए माता-पिता अक्सर बच्चों को स्कूल शुरू होने से पहले ही ट्यूशन और विशेष कक्षाओं में दाखिला देना शुरू कर देते हैं. जिस कारण लगाता स्कूल के घंटे बढ़ते जा रहे हैं, जिससे बच्चों को बहुत कम अपना समय मिलता है. इतना ही नहीं, दबाव सिर्फ़ अकादमिक नहीं होता; ऐसा लगता है कि एक सूची है जिसे टिक किया जाना चाहिए, जिसमें कम से कम प्रत्येक बच्चे में एक खेल, संगीत, एक विदेशी भाषा, एक नृत्य शैली या रंगमंच से जुड़ी कला ज़रूरी आनी चाहिये.

स्कूल बाद की गैर-शैक्षणिक और शैक्षणिक गतिविधियाँ दोनों बढ़ रही हैं, जिसमें बड़ों द्वारा निर्देशित कार्यक्रमों से बाहर कुछ भी करने के लिए बहुत कम समय होता है. माता-पिता कहते पाये जाते हैं कि, “अगर उन्हें अभी एक्सपोज़र नहीं मिलेगा तो बाद में इसके लिए उनके पास समय नहीं होगा.” बच्चों को व्यस्त व्यस्क जीवन के लिये तैयारी किये जाने की प्रक्रिया में उन्हें जल्दबाजी वाला बचपन जीने को मजबूर किया जाता है. फिर तकनीक का अतिरिक्त एक्सपोज़र और स्क्रीन समय भी है जो अतिरिक्त भार है. ये सब मिलकर इस तरह की जीवनशैली बना रहे हैं जिसका सबसे बड़ा नुकसान संभवतः माता-पिता के सात बच्चे की क्वॉलिटी समय का नुकसान है.

पेरेंटिंग शून्य या वैक्यूम में नहीं होती. मॉडल की अगली परत (मेसोसिस्टम) है. जिसमें कई कारक एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करते हैं, जो माता-पिता द्वारा किए जा रहे फैसलों में एक-दूसरे से जुड़े होते हैं. खेल के मैदानों का व्यवसायीकरण, और घर व स्कूल और घर व खेल के मैदान के बीच बढ़ती दूरी की वजह से भी कई बार समय और पैसे की समस्या पैदा हो जाती है.  

हमें ये सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि हम बच्चों की औपचारिक पढ़ाई और उन्हें खोज व रचनात्मक माध्यम से सीखने देने का मौका दें और दोनों के बीच एक संतुलन रहने दें.

तीसरी परत (एक्सोसिस्टम) में बच्चों की स्वतंत्र रूप से खेलने की क्षमता पर अन्य अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ते हुए पाये गये हैं. उदाहरण के लिए, बच्चों को बेहतर मौके दिलवाने और उनके समूचे विकास से संबंधित व्यस्क प्रोफेश्नल्स के द्वारा चलाने जाने वाले एनरिचमेंट कार्यक्रमों की ज़रूरत के बारे में बड़ी ही चतुराई से की जा रही मार्केटिंग और उसके संदेश माता-पिता को भेजे जाते हैं. इन संदेशों में ये दावा कि या जाता है कि इस तरह के कोर्स को करने से उनके बच्चे अन्य बच्चों की तुलना में काफी तेज़ होंगे. अंतिम लेयर या परत राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक शक्तियों की है. जिसमें बच्चों की स्वतंत्र आवाजाही को सामाजिक पूंजी का नष्ट होना और अपराध का बढ़ता स्तर प्रभावित करता है, जिससे सार्वजनिक स्थानों पर बच्चों की पहुंच कम हो जाती है. यह बच्चे को स्वतंत्र रूप से खेलने से रोकता है. एक सुरक्षित शारीरिक और सामाजिक वातावरण का अर्थ होता है कि माता-पिता अपने बच्चों को बेफिक्र होकर खेलने और   तनावमुक्त होकर नयी चीज़ों के बारे में ज्ञान अर्जित करने दे सकते हैं. 

सार

कम होता खाली समय और इसके परिणामस्वरूप खेलने के समय का कम होना, काफी नुकसानदायक साबित हो सकता है. हमें ये सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि हम बच्चों की औपचारिक पढ़ाई और उन्हें खोज व रचनात्मक माध्यम से सीखने देने का मौका दें और दोनों के बीच एक संतुलन रहने दें. बच्चों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना सिर्फ़ माता-पिता की नहीं है. खाली समय और खेलने के समय के सही इस्तेमाल के लिए स्कूल के सहयोग, नीति और सांस्कृतिक समर्थन की भी ज़रूरत होती है.

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