Author : Sushant Sareen

Published on Jul 29, 2023 Updated 0 Hours ago

यह लेख दो हिस्सों में है. पहले हिस्से में, अर्थव्यवस्था, सुरक्षा, भारत और आतंकवाद को लेकर NSP के वादों की आलोचनात्मक दृष्टि से चीरफाड़ की गयी है.

पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति (NSP): ज़बरदस्त या उबाऊ?
पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति (NSP): ज़बरदस्त या उबाऊ?

सात साल तक ‘गहन विश्लेषण और सलाह-मशविरा’ चला; 600 से ज्यादा अकादमिकों (academics), नागरिक समाज के सदस्यों, छात्रों से परामर्श लिया गया; नागरिक और सैन्य पक्षधारकों से इनपुट लिये गये; स्वतंत्र विशेषज्ञों के साथ सलाह-मशविरे के कई दौर चले – यह सब किया गया एक ऐसी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति बनाने के लिए, जिसे एक मामूली थिंक-टैंक इंटर्न महज़ सात दिनों में लिख सकता था. बस इसके लिए उसे चाहिए था गूगल करने का अच्छा हुनर, ख़ास शब्दावली (jargon) और राजनीतिक रूप से दुरुस्त घिसे-पिटे जुमलों पर अच्छी पकड़, और विभिन्न अवयवों को कट-पेस्ट कर एकसाथ जोड़ने का शऊर. इस नीरस और अकल्पनाशील दस्तावेज- जिसमें कोई नया विचार नहीं है, जो कोई नयी या उत्साहजनक अवधारणा पेश नहीं करता, कोई ताज़ा सोच प्रतिबिंबित नहीं करता, कोई नयी ज़मीन नहीं तोड़ता, पाकिस्तान के शासन प्रतिमान में किसी बदलाव का इशारा नहीं करता- को अगर कोई एक ‘ऐतहासिक उपलब्धि’ कहता है, तो यह एक मज़ाक़ के सिवा कुछ नहीं है.

इस ‘नयी’ राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में कुछ भी नया नहीं मिलता, न ही ऐसा दिखता है जो इशारा करे कि ज़मीन पर कुछ बदला है. इसलिए, अधिक से अधिक, इसे इच्छाओं और आकांक्षाओं का सतही बयान कहा जा सकता है

इच्छाओं का सतही बयान

NSP 2022-26 ‘इस्लामी कल्याणकारी राज्य’, ‘क्षेत्रीय कनेक्टिविटी’, ‘साझा समृद्धि’, ‘मानव सुरक्षा’ जैसे दोहराये गये पुराने विचारों; ‘विविधता में एकता’ जैसी उधार ली गयी अवधारणाओं; ‘वैश्विक आर्थिक हितों के लिए मिलन-स्थल (melting pot)’ जैसे अनुगूंज पैदा करनेवाले, ख़ासकर पश्चिम में, चिकने-चुपड़े जुमलों से भरा हुआ है – जिन्हें पाकिस्तान की एक ऐसे देश की छवि पेश करने के संदर्भ में फिट किया गया है जो अपने गंदे अतीत से अलग हो रहा है और अपने लिए एक नया रास्ता गढ़ रहा है. लेकिन, हक़ीक़त यह है कि, जब आप शब्दजाल, और डेढ़ सयानेपन वाली जुमलेबाज़ी- ‘हमारी दिलचस्पी फ़ौजी अड्डे नहीं, आर्थिक अड्डे मुहैया कराने में है’- से बाहर निकलते हैं, तो इस ‘नयी’ राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में कुछ भी नया नहीं मिलता, न ही ऐसा दिखता है जो इशारा करे कि ज़मीन पर कुछ बदला है. इसलिए, अधिक से अधिक, इसे इच्छाओं और आकांक्षाओं का सतही बयान कहा जा सकता है जिसमें कोई स्पष्टता नहीं है कि वह इन आसमान छूते उद्देश्यों को कैसे हासिल करेगा. शायद, वह चीज़ NSP के गोपनीय (classified) हिस्से में है. लेकिन अगर सार्वजनिक दस्तावेज जैसा ही हाल रहा, तो इसकी संभावना नहीं लगती कि गोपनीय हिस्से में ऐसा कुछ होगा जो नीति से मिलता-जुलता भी लगे, कथित नीति के तहत बिल्डिंग ब्लॉक्स और रोडमैप की बात तो जाने ही दीजिए. 

नीति और राजनीति के बीच कनेक्शन की कमी

NSP की शुरुआत प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के संदेश से होती है, जो ‘साहसिक दृष्टि और बड़े विचारों’ की बात करते हैं, लेकिन दस्तावेज में दोनों ही नदारद हैं. वह आगे कहते हैं कि NSP ‘मेरी सरकार की दृष्टि पर केंद्रित है, जो यह मानती है कि पाकिस्तान की सुरक्षा उसके नागरिकों की सुरक्षा में निहित है. राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति यह नागरिक-केंद्रित दृष्टिकोण बिना किसी भेदभाव के मौलिक अधिकारों और सामाजिक न्याय की गारंटी करते हुए राष्ट्रीय एकजुटता और लोगों की समृद्धि को प्राथमिकता देता है.’ लेकिन यह हास्यास्पद है क्योंकि इमरान ख़ान शासन वास्तव में इन सारे मूल्यों का नकार (negation) है. ‘संस्थाओं को सशक्त करने, क़ानून के शासन, पारदर्शिता, जवाबदेही, और खुलेपन के ज़रिये डिलीवरी-आधारित सुशासन’ के माध्यम से लोगों की पूरी संभावनाओं को हासिल करने की उनकी घोषित इच्छा भी कुछ इसी तरह की है.

पारदर्शिता के दावों की पोल उस वक़्त खुल गयी जब इमरान ख़ान ने सरकार के मुखिया के रूप में प्राप्त तोहफ़ों के बारे में सूचना को रोकने की कोशिश की, क्योंकि आरोप है कि उन्होंने सऊदियों द्वारा भेंट की गयी एक क़ीमती घड़ी बेच दी और पैसे अपनी जेब में डाल लिये

तथ्य यह है कि उनके हाइब्रिड शासन ने संस्थाओं को कमज़ोर किया है – वह सेना का राजनीतीकरण कर चुके हैं और उनके मंत्री इलेक्शन कमीशन को जला डालने की धमकी दे चुके हैं; क़ानून के शासन का कोई वजूद नहीं है- साहीवाल मुठभेड़ और बार-बार लोगों को जबरन लापता किये जाने की घटनाएं इस तथ्य की गवाही देते हैं, इसी तरह उनकी तीसरी पत्नी के पहले पति द्वारा संविधानेतर प्राधिकार का इस्तेमाल किया जाना भी इसकी गवाही है; पारदर्शिता के दावों की पोल उस वक़्त खुल गयी जब इमरान ख़ान ने सरकार के मुखिया के रूप में प्राप्त तोहफ़ों के बारे में सूचना को रोकने की कोशिश की, क्योंकि आरोप है कि उन्होंने सऊदियों द्वारा भेंट की गयी एक क़ीमती घड़ी बेच दी और पैसे अपनी जेब में डाल लिये; और जवाबदेही विरोधियों के राजनीतिक उत्पीड़न के लिए एक खूबसूरत नाम बन गयी है. इसलिए कोई हैरत नहीं कि मुख्य विपक्षी दल, पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएलएन) ने पहले ही NSP की धज्जियां उड़ा दी हैं और साफ़ कर  दिया है कि यह उन्हें क़बूल नहीं है.

NSP में राष्ट्रीय सुरक्षा फ्रेमवर्क कहता है कि, ‘पाकिस्तान राष्ट्रीय एकजुटता और सामंजस्य सुनिश्चित कर, क्षेत्रीय अखंडता को महफ़ूज रख, आर्थिक स्वाधीनता बढ़ाकर, और राज्य का इख़्तियार सुनिश्चित कर- अपनी संप्रभुता की उसकी सभी अभिव्यक्तियों में रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है.’ लेकिन यही शासन महज़ कुछ महीनों पहले ही तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) के सामने शर्मनाक आत्मसमर्पण के साथ राज्य के इख़्तियार से समझौता कर चुका है. जहां तक आर्थिक स्वाधीनता की बात है, तो विदेशी क़र्ज़ों और बजटीय सहायता पर टिकी एक सरकार के लिए यह कुछ ज्यादा ही बड़बोलापन है. स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान को पूरी तरह स्वायत्त बनाने के विधेयक को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के फ़रमान के तहत वर्तमान व्यवस्था द्वारा जिस तरह से ध्वस्त किया गया है, उसे देखते हुए संप्रभुता का नारा बिल्कुल खोखला लगता है.

अर्थव्यवस्था के लिए बचकाना नुस्ख़े

आर्थिक सुरक्षा को ‘राष्ट्रीय सुरक्षा के मुख्य तत्व’ के रूप में रखा गया है. लेकिन ‘नीति का उद्देश्य’ बहुत ही घिसा-पिटा है : ‘बढ़ी हुई उत्पादकता, निवेश, और बचत पर ध्यान केंद्रित कर, बाह्य असंतुलन से निपट कर, तथा एक चतुराई भरे राजकोषीय प्रबंधन (fiscal management) के द्वारा उच्च मध्यम-आय वाले देशों’ की क़तार में शामिल होना है. NSP इसकी कोई योजना पेश नहीं करती कि आख़िर कैसे पाकिस्तान उत्पादकता बढ़ायेगा, बचत उत्पन्न करेगा, निवेश को प्रोत्साहित करेगा, राजकोषीय समझदारी का पालन करेगा और बाह्य असंतुलन से निपटेगा. अर्थनीति पर जो खंड है, वह बाह्य असंतुलन, क्षैतिज असमानताओं (क्षेत्रों के बीच) और ऊर्ध्व असमानताओं (विभिन्न वर्गों के बीच) को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए तीन चुनौतियों के बतौर पेश करता है. लेकिन सुझाये गये नुस्ख़े हाईस्कूल की किताब जैसे हैं- निर्यात में वृद्धि के ज़रिये मौजूदा व्यापार घाटे को ठीक करना, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करना, विदेशों में कार्यरत पाकिस्तानियों द्वारा भेजे जाने वाले धन को बढ़ाना, और राजकोषीय घाटे को नियंत्रित रखा जाना सुनिश्चित करना.

यह कहने के बजाय कि गहरी क्षेत्रीय असमानता बलूचिस्तान जैसे वंचित और शोषित क्षेत्रों में लोगों की शिकायतों को बढ़ायेगी, NSP यह मानती लगती है कि असल समस्या इसमें छिपी है कि इन असमानताओं को ‘उप-राष्ट्रवादी तत्वों द्वारा शिकायत का नैरेटिव खड़ा करने के लिए इस्तेमाल किया गया है’

‘नीतियों पर अभिजात्य क़ब्ज़ा रोकने, अवरोधक हटाने और निम्न आय वाले परिवारों के लिए मौक़ों का विस्तार करने’ के द्वारा ऊर्ध्व असमानताओं का हल ढूंढ़ने की कोशिश की गयी है. सबकुछ बहुत बढ़िया है, सिवाय इसके कि इमरान ख़ान शासन के तहत ‘अभिजात्य क़ब्ज़ा’ और मज़बूत ही हुआ है. क़रीबियों, ख़ासकर जो रियल एस्टेट के कारोबार में हैं, पर जमकर इनायत बरसायी गयी है. अर्थव्यवस्था के कुप्रबंधन- ऊंची महंगाई दर, निम्न वृद्धि, ऊर्जा और अन्य अत्यावश्यक चीज़ों की किल्लत, बेरोजगारी, और ईंधन व ऊर्जा की आसामान छूती दरों- ने वास्तव में आर्थिक तकलीफ़ के स्तर को असहनीय स्तर तक पहुंचा दिया है. मौक़ों का विस्तार करने के इमरान ख़ान के विचार का मतलब है ग़रीबों को एक मुर्गी या बछिया देना, या मुफ़्त लंगर, रैन बसेरा वगैरह.

सत्तारूढ़ पंजाबी अभिजात वर्ग की कल्पनाशीलता का अभाव और पक्षपात इस बात से और भी ज्य़ादा खुलकर सामने आता है कि वे क्यों क्षैतिज असमानता से निपटने की जरूरत महसूस करते हैं. यह कहने के बजाय कि गहरी क्षेत्रीय असमानता बलूचिस्तान जैसे वंचित और शोषित क्षेत्रों में लोगों की शिकायतों को बढ़ायेगी, NSP यह मानती लगती है कि असल समस्या इसमें छिपी है कि इन असमानताओं को ‘उप-राष्ट्रवादी तत्वों द्वारा शिकायत का नैरेटिव खड़ा करने के लिए इस्तेमाल किया गया है’. आर्थिक पैकेज का जो हल पेश किया गया है, वह पहले ही बहुत आजमाया जा चुका है. अगर NSP एक गंभीर दस्तावेज होता, तो इन नाकाम पैकेजों के परे जाता. लेकिन इसके उलट, यह उसी पुरानी विफल नीति को और जोर-शोर से आगे बढ़ाता है.

अफ़ग़ानिस्तान में दिलचस्पी की असली वजह

इसमें कोई शक नहीं कि भू-अर्थनीति एक नया, चर्चा में रहनेवाला शब्द है जिसे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद यूसुफ़ ने पाकिस्तान के रणनीतिक शब्दकोश में जोड़ा है. एक समय था जब भू-अर्थनीति को भू-राजनीतिक और भू-रणनीतिक अनिवार्यताओं का संचालक माना जाता था. तब से लेकर NSP तक, जहां भू-अर्थनीति भू-रणनीति पर फोकस करते हुए केवल संपूरक की भूमिका में है, एक कुछ बारीक बदलाव रहा है. यह कुछ ऐसा है जिस पर ‘रणनीतिक विश्लेषक’ के अपने नये अवतार में पूर्व-फ़ौजियों की पुनर्गठित जमात मेहनत कर रही थी. NSP अक्सर सुनायी पड़नेवाले उस दावे को बस रटती रहती है कि ‘पाकिस्तान की ख़ास भू-आर्थिक अवस्थिति (geoeconomic location)’ है, जो ‘दक्षिण एवं मध्य एशिया, मध्य-पूर्व और अफ्रीका के लिए उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम की कनेक्टिवटी’ मुहैया कराती है. यह ये भी मानती है कि ‘पश्चिम की ओर कनेक्टिविटी अफ़ग़ानिस्तान में स्थिरता व क्षेत्रीय शांति के वास्ते पाकिस्तान की कोशिशों के लिए एक महत्वपूर्ण प्रेरक-तत्व है.’ विदेश नीति खंड इस बात को और स्पष्टता से कहता है : ‘केंद्रीय एशियाई देशों के साथ आर्थिक कनेक्टिविटी का द्वार होने की अफ़ग़ानिस्तान की क्षमता अफ़ग़ानिस्तान में शांति के लिए पाकिस्तान के समर्थन का मुख्य प्रेरक-तत्व है.’ यह 1990 के दशक के शुरू में सोवियत संघ के पतन और केंद्रीय एशियाई देशों के उदय के वक़्त से ही पाकिस्तान के सपनों में से एक रहा है.

अफ़ग़ानिस्तान को व्यापार और ट्रांजिट के बड़े ठिकाने के रूप में इस्तेमाल करने के लिए पाकिस्तान वहां अपना नियंत्रण और दबदबा चाहता रहा है. फ़र्क़ बस इतना है कि इस महत्वाकांक्षा को अब कनेक्टिविटी और भू-अर्थनीति जैसे नये भारीभरकम लफ़्ज़ों का सहारा दे दिया गया है

अफ़ग़ानिस्तान को व्यापार और ट्रांजिट के बड़े ठिकाने के रूप में इस्तेमाल करने के लिए पाकिस्तान वहां अपना नियंत्रण और दबदबा चाहता रहा है. फ़र्क़ बस इतना है कि इस महत्वाकांक्षा को अब कनेक्टिविटी और भू-अर्थनीति जैसे नये भारीभरकम लफ़्ज़ों का सहारा दे दिया गया है. असल बात है कि लोकेशन के फ़ायदे का कोई वास्तविक आर्थिक उपयोग नहीं, केवल रणनीतिक उपयोग था- पहले सोवियत संघ (USSR) के संदर्भ में और फिर अफ़ग़ानिस्तान के संदर्भ में. इस लोकेशन का भू-अर्थनीतिक पहूल केवल भारत के संदर्भ में प्रासंगिक है, भारत के बिना पाकिस्तान एक ऐसा पुल है जिससे कहीं जाया नहीं जा सकता. आख़िरकार, भारत के बिना, दक्षिण एशिया आर्थिक लिहाज़ से कोई मायने नहीं रखता. लेकिन पाकिस्तान ने 2019 में जम्मू-कश्मीर में संवैधानिक सुधारों की प्रतिक्रिया में भारत के साथ सारे संपर्क ख़ुद ही तोड़ लिये हैं. 

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