Author : Ritika Passi

Published on Mar 14, 2018 Updated 0 Hours ago

चीन के बेल्ट और रोड पहल के अंतर्गत आर्कटिक छेत्र पर चीन के वाइट पेपर में पोलर सिल्क रोड की बात है। बेल्ट रोड इनिशिएटिव शी जिनपिंग की कूटनीति या Xiplomacy को आगे बढ़ने में काफी कारगर है।

एक बेल्ट, एक रोड और अब एक घेरा

बर्फब्रेकर शू लांग के डेक से देखा गया आर्कटिक महासागर में बर्फ बहाव शिविर।

यह लेख The China Chronicles श्रृंखला का 47 वें हिस्सा है।


उत्खनन की आखिरी सरहद को भेदा जा रहा है।

पिछल साल अगस्त में, रूस के आर्कटिक तट से सटे उत्तरी पश्चिमी मार्ग से होता हुआ रूस का एक एल एन जी टैंकर नोर्वे से दक्षिण कोरिया तक गया, सिर्फ १९ दिनों में वो भी बर्फ हटाने के लिए इस्तेमाल होने वाले जहाज़ के बगैर अमेरिका के पिछले राष्ट्रपति ओबामा ने ध्रुवीय इलाकों में ऑफ शोर ड्रिलिंग पर रोक लगायी थी लेकिन ट्रम्प ने सत्ता के पहले सौ दिनों में ही एक एग्जीक्यूटिव आर्डर के ज़रिये ये फैसला बदल दिया। फ़िनलैंड और नॉर्वे इस पर रिसर्च कर रहे हैं की क्या आर्कटिक रेलवे प्रोजेक्ट मुमकिन है और अगर हाँ तो ये कितना मुनाफे का होगा। ये नार्डिक इलाकों को आर्कटिक तट से जोड़ने का काम करेगा, जिस से एशिया के बाज़ार यूरोप के भूमध्यसागर से लेकर रूस के उत्तर दक्षिण रूट तक आसानी से पहुँच सकते हैं।

चीन भी इस इलाके में अपनी हिस्सेदारी का दावा कर रहा है, हालाँकि वो आर्कटिक राज्य नहीं है लेकिन चीन खुद को आर्कटिक छेत्र का पडोसी मानता है। ये एक ऐसा अखाडा है जहाँ चीन खुद को एक जायज़ खिलाडी मानता है। चूँकि इस छेत्र में गतिविधिया बढ़ी हैं, इसलिए कुछ ही दिनों पहले चीन ने अपनी आधिकारिक आर्कटिक नीति जारी की है। आर्कटिक नीति में कहा गया है की उत्तरी ध्रुवीय छेत्र या आर्कटिक छेत्र में घटती हुई बर्फ कई चीज़ों पर प्रभाव डालती है, जैसे स्थानीय मौसम, पर्यावरण, स्थानीय खेती। समुंदरी उद्योग, जलमार्ग का विकास ये सारे मुद्दे मानवता से जुड़े हैं। इसका सीधा असर उन देशों पर भी पड़ता है जो आर्कटिक छेत्र में नहीं हैं, जैसे की चीन।

चीन का हित आर्थिक भी है और सामरिक भी। मालक्का स्ट्रेट और सुएज नाहर के मार्ग के मुकाबले एशिया और यूरोप के बीच छोटा रास्ता जहाजी कारोबार की कीमत को कम करेगा जिस से विदेशी व्यापर और मुनाफेदार होगा और चीन की ऊर्जा सुरक्षा मज़बूत होगी।

चीन की आर्कटिक नीति में साफ़ कहा गया है की आर्कटिक छेत्र का विकास और अन्वेषण। यहाँ के समुंदरी मार्ग का इस्तेमाल चीन के ऊर्जा छेत्र, आर्थिक विकास और सामरिक हितों पर बड़ा असर डालेगा। चीन दुनिया के बड़े कारोबारी देशों में है। सबसे अधिक ऊर्जा का इस्तेमाल करने वाले देशों में भी चीन शामिल है। चीन अपना ९० फीसदी कारोबार समुंदरी मार्ग से करता है। इसलिए अगर समय में थोड़ी भी कटौती होती है तो इसका असर सीधा मुनाफे पर पड़ेगा। मिसाल के तौर पे चीन से रॉटरडैम पहुँचने में एक जहाज़ को ४८ दिन लगते हैं, लेकिन अगर ये आर्कटिक के रास्ते गुज़रता है तो यूरोप से एशिया की दूरी २० से ४० फीसदी कम हो जायेगी।

समय और खर्च में और भी कम हो जाएगा अगर ये जहाज़ दक्षिणी चीन के बंदरगाह से जाएँ तो होन्ग कोंग और उत्तर पश्चिमी यूरोप की दूरी एशिया और यूरोप के दुसरे रास्ते से १४ फीसदी और कम है।

इस के साथ ये भी ध्यान देना ज़रूरी है की चीन अपनी शिपिंग क्षमता को लगातार मज़बूत कर रहा है। यूरोप के बाहर, चीन की सरकारी शिपिंग कंपनी कॉस्को। सबसे बड़ी कंपनी है और चीन के पास दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा व्यवसायिक बेडा। यानि चीन की अर्थव्यवस्था में जहाज़ उद्योग का बड़ा रोल है साथ ही चीन की समुंदरी कारोबार और संरचना के विकास की जो सोंच है उसमें चीन की बढती हुई शिपिंग इंडस्ट्री और समुंदरी बेडा अहम् होगा।

इस की इस महत्वाकांक्षा में आर्कटिक छेत्र भी शामिल होगा ताकि समुंदरी व्यवसाय पर नियंत्रण बेहतर बना रहे। चीन की ऊर्जा की मांग का ७० फीसदी हिस्सा समुंदरी आयात से पूरा होता है।

वाइट पेपर में पोलर सिल्क रोड के दायरे को खुला रखा गया है, बेल्ट रोड पहल के तहत आर्कटिक से जुड़े सहयोग उसका अंत है।

आर्कटिक उसके लिए आकर्षक विकल्प हैं क्यूंकि ये रास्ता राजनितिक तौर पर शांत है, जबकि दुसरे जलमार्ग देशों के बीच से होकर जाते हैं, स्पर्धा करने वाले दुसरे देश भी मौजूद हैं और समुंदरी लुटेरे भी। तेल और प्राकृतिक गैस का ऐसा भंडार जहाँ अभी खोज नहीं हुई है, फॉसिल इंधन का भंडार जिसका एक चौथाई हिस्सा अछूता है, इसकी कीमत ३५ ट्रिलियन डॉलर होगी, ये चीन के लिए ऊर्जा के विकल्प हैं जिन की खोज से वो अपनी उर्जा सुरक्षा बढ़ा सकता है। US जियोलाजिकल सर्वे के मुताबिक दुनिया का प्राकृतिक गैस भंडार का ३० फीसदी हिस्सा जिसे अभी खोजा नहीं गया है और १३ फीसदी तेल भंडार आर्कटिक में हैं।

इसके अलावा सोना, चांदी, हीरे, ताम्बा, निकल, यूरेनियम, टाइटेनियम, ग्रेफाइट का यहाँ भंडार है। बिजली से चलने वाली कार और मोबाइल फ़ोन के लिए ज़रूरी लीथियम और कोबाल्ट भी यहाँ पाए जाते हैं।

यानी भविष्य के बाज़ार और संसाधन तक नए रास्ते तलाशने का काम हो रहा है और इस दूरंदेशी में चीन छेत्रिय और वैश्विक स्तर पर एक बड़ा रोल अदा करना चाहता है। चीन की आर्कटिक नीति के दस्तावेज़ में साफ़ है की यू एन सिक्यूरिटी कौंसिल के स्थाई सदस्य के तौर पे चीन इस छेत्र में शांति और स्थायित्व बनाये रखने की ज़िम्मेदारी उठाना चाहता है। आर्कटिक या उत्तरी ध्रुवीय छेत्र एक ऐसा नया छेत्र है जहाँ पहुंचना अब तक सहज नहीं था, चीन इस नए छेत्र में बड़ी भूमिका निभाना चाहता है, चूँकि पुराने इलाके में पुरानी शक्तियों का वर्चस्व है। जैसा की रेनमिन यूनिवर्सिटी के जिन कैरोंग के मुताबिक “आर्कटिक छेत्र आर्थिक और भूराजनीतिक स्तर पर काफी सक्रिय रहने वाला है, और २१वींसदी में विज्ञानं और सस्टेनेबिलिटी को परिभाषित करेगा।”

पर्यावरण में बदलाव यहाँ की हकीकत है जिसकी वजह से नए जीव जंतु यहाँ पनप सकते हैं। इस कारण आर्कटिक छेत्र भविष्य में विज्ञानं और भूराजनीतिक स्तर पर गतिविधियों का अखाडा बना रहेगा, विज्ञानं और दीर्घकालिक विकास को परिभाषित करेगा।

चीन के बेल्ट और रोड (BRI) पहल के अंतर्गत आर्कटिक छेत्र पर चीन के वाइट पेपर में पोलर सिल्क रोड की बात है। बेल्ट रोड इनिशिएटिव शी जिनपिंग की कूटनीति या Xiplomacy को आगे बढ़ने में काफी कारगर है। पोलर सिल्क रोड के तहत जलमार्ग के विकास, आधारभूत संरचना के विकास पर ध्यान है।

चीन को आर्कटिक BRI यानि बेल्ट रोड इनिशिएटिव् को अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए एक औज़ार की तरह इस्तेमाल करेगा, आर्कटिक छेत्र को समझना, बचाना, विकसित करना और उसके शासन में सक्रिय भूमिका चीन की नीति का लक्ष्य है।

१९९४ में बीजिंग ने यूक्रेन से अपनी पहली बर्फ तोड़ने की मशीन खरीदी थी। उसी समय से चीन यहाँ सक्रिय है। तीन बड़े जलमार्ग चीनी मशीन ने ढून्ढ निकले हैं, १९,००० टन कार्गो लिए चीन का पोत वो पहला कंटेनर पोत बना जो २०१३ में दलियन से रॉटरडैम पहुंचा, वो भी सिर्फ एक महीने में जो पहले सुएज नाहर के रास्ते ४५ दिन के मुकाबले काफी कम है।

चीन आर्कटिक कौंसिल में एक पर्यवेक्षक के रोल में भी है। बल्कि २०१४ के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीन को उत्तर ध्रुवीय छेत्र की उभरती हुई शक्ति बताया है।

आर्कटिक पहले से ही BRI के नक़्शे पर है, पिछले जून से इसे आधिकारिक तौर पर समुंदरी सहयोग के लिए BRI के नक्शे पर डाला गया है एशिया को यूरोप से जोड़ने के लिए एक नीले रस्ते को बनाने की कल्पना है।

नए समुंदरी रास्तों की तलाश, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन में बदलाव, और इस छेत्र की क्षमता का उपयोग इस नीले कॉरिडोर के दायरे में हैं।

BRI के तहत चीन और सबसे बड़े आर्कटिक राज्य रूस के उत्तर दक्षिणी छेत्र के बीच सहयोग पहले से ही है। न के शी जिनपिंग और रूस के व्लादिमीर पुतिन ने पिछले जून में एक साझा घोषणा पत्र पर दस्तखत किया है जिस में इसे सिल्क रोड की बात है, जिसके तहत NSR रूट को विकसित किया जाएगा। यमल LNG प्रोजेक्ट चीन और रूस का सबसे बड़ा साझा प्रोजेक्ट है जो चीन को हर साल ४ मिलियन टन गैस इंधन देगा। ये नार्थ साउथ रूट के रास्ते सिर्फ १५ दिनों में चीन पहुँच जायेगी। ये सुएज नाहर के परंपरागत रास्ते से दुगना समय लेता। इसमें सिल्क रोड फण्ड का ९.९ फीसदी है, चाइना नेशनल पेट्रोलियम कारपोरेशन का २० फ़ीसदी हिस्सा है। चीनी बैंकों ने इस प्रोजेक्ट को कुछ हद तक पैसे लगाये हैं, ६० प्रतिशत उपकरण चीनी हैं। कॉस्को ६ जहाज़ भेजने के लिए तैयार है, जिस से उपकरण, स्टील और दुसरे ज़रूरी सामान नार्थ साउथ रीजन के रास्ते ले जाये जायेंगे। चीन और रूस के कई साझा प्रोजेक्ट हैं, जिसमें शामिल है, रूस के पूर्वी इलाके मं तेल और गैस के भंडारों में चीनी सक्रियता, ऐसे पोत बनाना जो बर्फ में जा सकें। और उत्तर पश्चिमी रूस में एक बंदरगाह का निर्माण चीन ने दुसरे आर्कटिक राज्यों से भी बात की है। हालाँकि दुसरे कोई भी राज्य BRI का हिस्सा नहीं हैं लेकिन वो एशिया इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक का हिस्सा हैं, यानी BRI के दायरे में आते हैं। चीन आर्कटिक कनाडा और ग्रीनलैंड में भी सक्रिय है। पिछले साल उसने फ़िनलैंड से और नजदीकी बनानी शुरू कर दी है। २०१९ तक आर्कटिक कौंसिल का अध्यक्ष फ़िनलैंड ही है।

२२ सालों में शी जिनपिंग वो पहले चीनी राष्ट्रपति हैं जो बीते साल फ़िनलैंड गए हैं। चीन और नोर्डिक छेत्र से जोड़ने के लिए चाइना फ़िनलैंड आयरन सिल्क रोड पिछले नवम्बर से चालू है। दोनों मिल कर साझा तौर पर बर्फ तोड़ने की एक नयी मशीन बना रहे हैं जो २०१९ में बन कर तैयार हो जाएगी। १०,५०० किलोमीटर के फाइबर ऑप्टिक की चर्चा भी चीन कर रहा है जिस से यूरोप और चीन के बीच २०२० तक सब से तेज़ डिजिटल हाईवे तैयार हो जायेगा। इस प्रस्ताव में फ़िनलैंड, रूस नॉर्वे और जापान शामिल हैं। पिछले साल चीन और अमेरिका की द्विपक्षीय शिखर वार्ता से वापसी में जिनपिंग अलास्का में भी रुके थे, जिस की उम्मीद नहीं थी। वो अलास्का को भी साथ आने का सन्देश दे रहे हैं, बदले में अलस्का ने उन्हें प्राक्रतिक गैस का बड़ा भंडार देने का वादा किया है।

BRI और अन्तराष्ट्रीय कानून: टकराव या सामंजस्य 

चीन की आर्कटिक नीति, उसके महत्वाकांक्षा और लक्ष्य को बढ़ावा देती है। इस नीति में दिर्घ्कलिता या लम्बे समय तक चलने वाली नीतियों पर जोर दिया गया है। BRI आर्कटिक छेत्र में चाइना के उद्देश्य को पूरा करने का जरिया है जो एक दुसरे के सहयोग और एक दुसरे के सम्मान के साथ एक दुसरे के फायदे पर टिका है, राजनितिक वैज्ञानिक माइकल ब्येर्स के मुताबिक चीनी कंपनियां आर्कटिक में वही कर रही है जो वो दुसरे इलाकों में करती है, वहां के आधारिक संरचना में निवेश कर रही हैं। विदेशी कंपनियों को खरीद रही हैं, तेल और खनिज के खनन में द्सरे देशों से लीज लेने की होड़ में हैं।

BRI के तहत आर्कटिक नीति को लेकर आगे बढ़ने का चीन के लिए क्या मायने है?

चीन के व्यापार और आधारिक संरचना के विकास की पहल ने पहले ही रफ़्तार पकड़ ली है। आर्कटिक को भी ऐसे विकसित करने की कोशिश है जिस के केंद्र में चीन हो। चीन आर्कटिक राज्य नहीं है, इसलिए अन्तराष्ट्रीय कानून का इस्तेमाल कर के आर्कटिक छेत्र में जगह बनाने की कोशिश को जायज़ ठहराया है। इस लिए आर्कटिक नीति पर चीनी दस्तावेज़ में बार बार अन्तराष्ट्रीय कानून पर जोर है, जिसके तहत बाहरी राज्यों को वैज्ञानिक खोज का हक है पनडुब्बियों के लिए केबल और पाइप बिछाने से लेकर मछली पकड़ने तक का अधिकार है।

अंतराष्टीय कानून, UNCLOS जैसी संधि इस छेत्र में स्न्सधाओ की खोज और अनुसन्धान की इजाज़त देता है आर्कटिक छेत्र के कई इलाकों जैसे की उत्तर पश्चिमी छेत्र में आर्कटिक राज्यों में विवाद है, जैसे की कनाडा इसे अपना घरेलु जलमार्ग मानता है जबकि अमेरिका इसे अंतर्राष्ट्रीय जलमार्ग मानता है, इसलिए इस छेत्र में शिपिंग या जहाजों की आवाजाही अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत करना बेहतर है जो UNCLOS के दायरे में है। चीन को इस उत्तर ध्रुवीय छेत्र अपने हितों को आगे बढ़ने के लिए इसे अन्तराष्ट्रीय छेत्र मन्ना होगा जहाँ के समुंदरी इलाके में किसी के भी आवाजाही पर रोक नहीं है।

चीन अपनी बेल्ट रोड पहल के द्वारा विश्व में एक नयी व्यवस्था को लागू करना चाहता है, जिस से सारे रास्ते चीन तक ही जायें, और ये धारणा आर्कटिक छेत्र को एक ऐसे अन्तराष्ट्रीय मानने के उलट है

आर्कटिक पालिसी के तहत चीन सभी अंतर्राष्ट्रीय सन्धि और कानून के मुताबिक काम करेगा अंतर्राष्ट्रीय मेरीटाइम संस्था के नियमो का पालन करेगा, लेकिन चीन की ये बातें उसके BRI के मूल सिध्हंत के खिलाफ ही, जिसका पूरा मकसद ये है की चीन दुनिया भर के व्यापार के केंद्र में हो और सारे रस्ते चीन तक आयें।

ध्रुवीय राजनीती की जानकार ऐन मैरी ब्रैडी के मुताबिक ध्रुवीय छेत्र एक नया सामरिक अखाडा है जहाँ चीन अपनी बढती ताक़त को साबित करना चाहता है। चीन का पूरा फोकस एक ध्रुवीय शक्ति बन ने पर है जो दुनिया की दिशा के लिए एक मूलभूत बदलाव होगा।

क्या दुनिया के लिए ये नया नजरिया अंतर्राष्ट्रीय कानून और संधियों के लिए जगह बनाएगा।

दक्षिण चीन सागर में जिस तरह से चीन ने अपनी धौंस जमाई है सभी अन्तार्रश्त्रिया नियमो की अनदेखी करते हुए, उस से लगता है अन्तराष्ट्रीय नियमो के मुताबिक चलने का वडा गंभीर नहीं है। चीन की अधिकारिक आर्कटिक नीति पर अलग अलग प्रतिक्रिया हैं, कुछ का मन्ना है की चीन की नीयत सही नहीं, दरअसल वो इस आड़ में इस छेत्र में अपना दबदबा बढ़ाना चाहता है, दुसरे ये भी मानते है की चीन एक ज़िम्मेदार देश बन ने की तरफ अग्रसर है ऐसे में कोई भी घी ज़िम्मेदार गतिवधि उस की छवि को ख़राब करेगी।

अगले १५ सालों में इस छेत्र में एक आधारभूत ढाँचे में निवेश करने के लिय १ ट्रिलियन डॉलर की मांग है। मौजूदा चुनौतियियाँ कई स्टार पर हैं, पर्यावरण, तकनीकी और आरती चुनौतियाँ हैं इसलिए मुमकिन नहीं की २०४० के पहले इस इलाके में जलमार्ग का व्यवसायिक इस्तेमाल हो सके। किसी भी विकास के काम के लम्बे समय तक टिके रहने की चुनौती, जलमार्ग के इस्तेमाल में सुरक्षा की चुनौती और पर्यावरण से जुड़े सवाल इस बीच और ज़रूरी हो जायेंगे इस दौरान चीन के फैसले, उसकी गतिविधियाँ और बर्ताव से ये साफ़ होगा की उसकी कथनी यानी जो उसने पालिसी दस्तावेज़ में कहा है और करनी, यानी जो वो पोलर छेत्र में कर रहा है उसमें सामंजस्य है या नहीं।

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