महामारी के साल 2020-21 में भारत की पेट्रोलियम उत्पाद ज़रूरतों (कच्चा तेल और पेट्रोलियम उत्पाद) का 84 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्सा आयात से पूरा किया गया था. 77 अरब अमेरिकी डॉलर की क़ीमत का क़रीब 239 मिलियन टन सकल पेट्रोलियम आयात 2020-21 में भारत के कुल आयात में 19 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्सा था. 2019-20 में भारत की पेट्रोलियम उत्पाद ज़रूरतों का 85 प्रतिशत से ज़्यादा आयात से पूरा किया गया. 119 अरब अमेरिकी डॉलर का 270 मिलियन टन सकल पेट्रोलियम आयात भारत के कुल आयात में 25 प्रतिशत हिस्सा था. 2006-07 के मुक़ाबले ये काफ़ी ज़्यादा बढ़ोतरी है, उस वक़्त लगभग 145 मिलियन टन का तेल आयात खपत का 77 प्रतिशत हिस्सा था.
119 अरब अमेरिकी डॉलर का 270 मिलियन टन सकल पेट्रोलियम आयात भारत के कुल आयात में 25 प्रतिशत हिस्सा था. 2006-07 के मुक़ाबले ये काफ़ी ज़्यादा बढ़ोतरी है, उस वक़्त लगभग 145 मिलियन टन का तेल आयात खपत का 77 प्रतिशत हिस्सा था.
वर्ष 2000 के दशक के शुरुआती वर्षों में कच्चे तेल के आयात की मात्रा में बढ़ोतरी को भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए दो प्रमुख बाहरी जोखिमों से जुड़ा हुआ पाया गया था. पहला जोखिम मात्रा का था जो इस तथ्य से पैदा हुआ कि दुनिया में ज़्यादातर परंपरागत तेल भंडार और भारत का ज़्यादातर तेल आयात फारस की खाड़ी में केंद्रित है. ये मान लिया गया कि फ़ारस की खाड़ी में राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता से सरकारी या ग़ैर-सरकारी किरदारों के द्वारा जानबूझकर तेल की आपूर्ति में रुकावट की आशंका बढ़ती है. दूसरा जोखिम क़ीमत से जुड़ा हुआ था, कई कारणों की वजह से अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में दाम में नाटकीय बढ़ोतरी की संभावना थी. ये कारण थे (ए) तेल उत्पादन के क्षेत्रों में अस्थिरता (बी) उत्पादक देशों में अपनाई गई नीतियों की वजह से आपूर्ति में गिरावट (सी) कुछ ख़ास देशों से तेल ख़रीदने पर अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रतिबंध. तेल की आपूर्ति में मात्रा के जोखिम को क़ीमत के जोखिम के ऊपर तरजीह दी गई और इसका समाधान तेल आयात के स्रोतों में विविधता जैसी रणनीतियों और दुनिया भर में तेल कंपनियों में भागीदारी हासिल करके किया गया.
तेल आयात के स्रोतों की विविधता.
वर्ष 2006-07 में भारत ने 27 देशों से कच्चे तेल का आयात किया और वर्ष 2020-21 में भारत ने 42 देशों से कच्चा तेल मंगवाया. लेकिन इस तथ्य को तेल आयात के स्रोतों में विविधता में बढ़ोतरी के रूप में नहीं समझा जा सकता. इसकी वजह ये है कि पिछले 15 वर्षों में भारत के तेल आयात के सबसे बड़े 20 स्रोतों का लगातार भारत के तेल आयात में 95% से ज़्यादा हिस्सा और सबसे बड़े 10 स्रोतों का 80% से ज़्यादा हिस्सा बना हुआ है. पिछले 15 वर्षों में भारत के कच्चे तेल के आयात में फ़ारस की खाड़ी के देशों का हिस्सा लगभग 60% पर बना हुआ है. अफ्रीका से आयात का हिस्सा 2009-10 के लगभग 17% से कम होकर 2019-20 में क़रीब 13% हो गया है और दक्षिण अमेरिकी देशों का हिस्सा लगभग 6% से बढ़कर 2019-20 में क़रीब 12% हो गया है. फ़ारस की खाड़ी, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के देशों का भारत के 10 सबसे बड़े तेल स्रोतों में 80% से ज़्यादा हिस्सा है. इन क्षेत्रों के अपेक्षाकृत सस्ते आपूर्तिकर्ताओं का वर्चस्व ये संकेत देता है कि कच्चा तेल ख़रीदने का फ़ैसला देश के स्तर पर नहीं बल्कि रिफाइनरी के स्तर पर लिए गए हैं. आवश्यक रूप से कच्चा तेल ख़रीदने के फ़ैसले को भू-राजनीति के बदले रिफाइनरी अर्थव्यवस्था ने प्रभावित किया.
स्रोत: वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय, *2021-22 (अप्रैल 2021 से जनवरी 2022).
भारत के तेल आयात में हाल के रुझान
वर्ष 2020-21 में भारत को तेल निर्यात करने वाला सबसे बड़ा देश इराक़ था और उसके बाद सऊदी अरब. भारत के आयात में इराक़ का हिस्सा 2009-10 के 9% से बढ़कर 2020-21 में 22% से ज़्यादा हो गया है. वैसे तो सऊदी अरब ने लंबे समय तक भारत के तेल आयात का सबसे बड़ा स्रोत होने का दर्जा 2017-18 में इराक़ के हाथों गंवा दिया लेकिन एक दशक से ज़्यादा समय तक भारत के आयात में सऊदी अरब का हिस्सा नियमित रूप से 17-18% के बीच बना हुआ है. रोचक बात ये है कि एक दशक पहले अमेरिका भारत को कच्चे तेल का निर्यात करने वाले 20 बड़े देशों में शामिल नहीं था लेकिन 2017-18 में अमेरिका 18वां सबसे बड़ा निर्यातक, 2018-19 में नौवां सबसे बड़ा निर्यातक, 2019-20 में सातवां सबसे बड़ा निर्यातक और 2020-21 में चौथा सबसे बड़ा निर्यातक बन गया. इसकी वजह ये है कि 2015 तक अमेरिका से कच्चे तेल का निर्यात ग़ैर-क़ानूनी था और अमेरिका ख़ुद कच्चे तेल का आयात भी करता था. शेल तेल (हाइड्रोकार्बन के स्रोत वाले चट्टानों से प्राप्त तेल) के उत्पादन में बढ़ोतरी के साथ अमेरिका अब न सिर्फ़ कच्चे तेल का निर्यातक है बल्कि दुनिया में सबसे बड़ा उत्पादक भी बन गया है. भारत के तेल आयात के चौथे सबसे बड़े स्रोत के रूप में अमेरिका के उभरने से पिछले दो दशकों से भारत के पांच सबसे बड़े आयात स्रोतों में सऊदी अरब, इराक़, ईरान, कुवैत, यूएई, नाइजीरिया और वेनेज़ुएला के वर्चस्व का रुझान ख़त्म हो गया है.
वर्ष 2020-21 में भारत को तेल निर्यात करने वाला सबसे बड़ा देश इराक़ था और उसके बाद सऊदी अरब. भारत के आयात में इराक़ का हिस्सा 2009-10 के 9% से बढ़कर 2020-21 में 22% से ज़्यादा हो गया है.
पिछले एक दशक में ईरान और वेनेज़ुएला, दो ऐसे देश जिन पर पश्चिमी देशों ने आर्थिक प्रतिबंध लगा रखे हैं, भारत के लिए टॉप 10 तेल निर्यातक देशों की सूची में बने हुए थे लेकिन उनके हिस्से में बदलाव होता रहा है. 2009-10 में जो ईरान भारत को कच्चे तेल का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक था, उसका हिस्सा 2010 की शुरुआत में गिरकर 6% हो गया. 2010 के आख़िर में ईरान का हिस्सा बढ़कर क़रीब 10% हो गया लेकिन 2019-20 में ईरान का योगदान 1% से भी कम रह गया. 2020 से ईरान भारत में तेल के 20 सबसे बड़े स्रोतों में से नहीं है. वेनेज़ुएला का हिस्सा 2020 की शुरुआत में 4% से बढ़कर 2010 के मध्य में 12% से ज़्यादा हो गया. तब से वेनेज़ुएला का हिस्सा गिरता रहा है और 2020-21 में ये 2% से कुछ ही ज़्यादा था. 2020-21 में ईरान और वेनेज़ुएला- ये दोनों ही भारत के लिए 20 सबसे बड़े निर्यातक देशों में शामिल नहीं थे.
वर्ष 2022 में पश्चिमी देशों की आर्थिक पाबंदी की जद में आने वाला रूस भारत के लिए तेल आयात के मामले में बड़ा स्रोत नहीं है लेकिन पिछले एक दशक से रूस उन देशों की सूची में रहा है जिनसे भारत तेल का आयात करता है. 2017-18 तक भारत के कच्चे तेल के आयात में रूस की हिस्सेदारी 1% से भी कमथी. उसके बाद क़रीब 1.4% आयात के हिस्से के साथ रूस, भारत के लिए 20 सबसे बड़े तेल आयात स्रोतों में जगह बनाने लगा. 2021-22 (अप्रैल से जनवरी) में भारत के तेल आयात में रूस का हिस्सा 2.3% था. इस तरह रूस भारत के लिए 10 सबसे बड़े आयात स्रोतों में शामिल हो गया है.
महत्वपूर्ण बात यह है कि ‘मांग की असुरक्षा’ और उसके परिणामस्वरूप भारत में बाज़ार हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए तेल निर्यातक देशों के बीच मुक़ाबले की वजह से आपूर्ति की असुरक्षा से ज़्यादा अलग-अलग देशों से आयात पर प्रभाव पड़ रहा है.
मामले
जिस संदर्भ में तेल आयात के स्रोतों को अलग-अलग बनाने की बात की जा रही थी, वो संदर्भ आपूर्ति के मामले में ख़तरा है. फ़ारस की खाड़ी से तेल की आपूर्ति में रुकावट की उच्च संभावना थी जिसको काफ़ी महत्व दिया गया और इससे निपटने के लिए आपूर्ति के स्रोतों को अलग-अलग करने को एक समझदारी भरे जवाब के रूप में देखा गया क्योंकि इस क्षेत्र के देशों से भारत 60% से ज़्यादा तेल का आयात करता है. वैसे तो फ़ारस की खाड़ी में तेल की आपूर्ति में रुकावट की आशंका आज भी है लेकिन आतंक के ख़िलाफ़ लड़ाई के ज़माने में इसको लेकर जितना डर था, उतना अब नहीं है. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि ‘मांग की असुरक्षा’ और उसके परिणामस्वरूप भारत में बाज़ार हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए तेल निर्यातक देशों के बीच मुक़ाबले की वजह से आपूर्ति की असुरक्षा से ज़्यादा अलग-अलग देशों से आयात पर प्रभाव पड़ रहा है. पिछले कई दशकों में पहली बार तेल के बाज़ार के लिए मुक़ाबले की स्थिति बनी है, पश्चिमी गोलार्ध के तेल निर्यातक ख़ास तौर पर अमेरिका और रूस भारत को तेल का निर्यात करने वाले 10 बड़े देशों में शामिल हो गए हैं. भू-राजनीतिक आर्थिक प्रतिबंध भारत के तेल निर्यातक देशों में कुछ समय के लिए छोटा-मोटा बदलाव कर सकते हैं लेकिन ये दीर्घकालीन आर्थिक रुझानों को पलट नहीं सकते हैं.
स्रोत: वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय, *2021-22 (अप्रैल 2021 से जनवरी 2022).
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