Published on Aug 12, 2022 Updated 0 Hours ago

दक्षिणी एशिया में परमाणु हथियारों की गतिकी (डाइनैमिक्स) अभिन्न रूप से उस व्यापक वैश्विक परिदृश्य से जुड़ी हुई है, जिसकी विशेषता आज दो अंतर-संबद्ध पहलुओं से बयान की जाती है: अमेरिका-रूस हथियार नियंत्रण सहयोग का अनिश्चित भविष्य और परमाणु निरस्त्रीकरण की धुंधली संभावना.

‘दक्षिण’ एशिया में परमाणु हथियारों की होड़?

13 जून 2022 को, स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिप्री ) ने परमाणु हथियारों के वैश्विक आयुध भंडार का अपना वार्षिक आकलन जारी किया. यह आकलन मोटे तौर पर पाता है कि नौ परमाणु हथियार-संपन्न राष्ट्रों के परमाणु हथियार भंडार में थोड़ी कमी आयी है. फिर भी, आने वाले दशक में, इस भंडार के बढ़ने की उम्मीद है. अभी, कुल 12,705 न्यूक्लियर वॉरहेड (प्रक्षेपास्त्रों से दागे जाने वाले परमाणु बम) होने का अनुमान है, जिनमें से 9440 संभावित उपयोग के लिए सैन्य ज़ख़ीरों में मौजूद हैं.  

तालिका1: वैश्विक परमाणु शक्तियां, जनवरी 2022

Country Nuclear weapons inventory
China 350
France 290
India 160
Israel 90
North Korea 20
Pakistan 165
Russia 5,977
United Kingdom 225
United States 5,428

Source: SIPRI Yearbook 2022

दक्षिणी एशिया के लिए, यह आकलन पाता है कि तीनों देश – भारत, चीन और पाकिस्तान – अपने परमाणु आयुध भंडार का विस्तार करने में लगे हुए प्रतीत होते हैं. इसके अलावा, वे अलग-अलग प्रकार के डिलीवरी सिस्टम भी तैनात कर रहे हैं. ख़ास तौर पर, सिपरी ने इस ओर ध्यान दिलाया है कि चीन अपने आयुध भंडार में बड़ा विस्तार कर रहा है और 300 से ज़्यादा नये मिसाइल साइलो (गोदाम) बना रहा है. मौजूदा अनुमान दिखाते हैं कि चीन के पास उपयोग के लिए तैयार 350 वॉरहेड, ज़मीन से संचालित 248 बैलिस्टिक मिसाइलें, और समुद्र से संचालित 72 बैलिस्टिक मिसाइलें हैं. उसके पास 20 न्यूक्लियर ग्रैविटी बम भी हैं. बीजिंग ज़मीन-आधारित मिसाइलों, समुद्र-आधारित मिसाइलों और परमाणु-सक्षम विमानों की अपनी नाभिकीय त्रयी (न्यूक्लियर ट्रायड) को भी सक्रिय बना रहा है.

जहां तक भारत की बात है, तो उसके पास लगभग 160 वॉरहेड हैं, और नयी दिल्ली भी अपने आयुध भंडार का आधुनिकीकरण कर रहा है. इस क्रम में वह अपने डिलीवरी सिस्टम को अगले स्तर पर ले जाने के लिए कनस्तरीकरण और ‘मल्टीपल इंडिपेंडेंट री-एंट्री व्हीकल’ तकनीक विकसित कर रहा है. 

जहां तक भारत की बात है, तो उसके पास लगभग 160 वॉरहेड हैं, और नयी दिल्ली भी अपने आयुध भंडार का आधुनिकीकरण कर रहा है. इस क्रम में वह अपने डिलीवरी सिस्टम को अगले स्तर पर ले जाने के लिए कनस्तरीकरण और ‘मल्टीपल इंडिपेंडेंट री-एंट्री व्हीकल’ तकनीक विकसित कर रहा है. दूसरी तरफ़, पाकिस्तान 165 वॉरहेड के साथ ज़रा-सा आगे है और अपनी ‘पूर्ण विस्तृत भयावरोध मुद्रा’ (फुल स्पेक्ट्रम डिटरेंस पॉश्चर) के एक हिस्से के रूप में अपने डिलीवरी सिस्टम को उन्नत बनाने के रास्ते तलाश रहा है.

रूस-यूक्रेन युद्ध का असर

सिपरी के आकलन से ऐसा लगता है कि दक्षिणी एशिया हथियारों की होड़ से गुज़र रहा है, और भारत अपना परमाणु आयुध भंडार तेज़ी से बढ़ा रहा है. यह शायद सच भी है, लेकिन इस क्षेत्र में परमाणु हथियारों की गतिकी अभिन्न रूप से उस व्यापक वैश्विक परिदृश्य से जुड़ी हुई है, जिसकी विशेषता आज दो अंतर-संबद्ध पहलुओं से बयान की जाती है : अमेरिका-रूस हथियार नियंत्रण सहयोग का अनिश्चित भविष्य और परमाणु निरस्त्रीकरण की धुंधली संभावना. ये दोनों कारक भारत की ख़तरा-संबंधी धारणा (थ्रेट परसेप्शन) को आकार प्रदान करते हैं.

यूक्रेन संघर्ष और उसके नतीजतन अमेरिका-रूस तनाव ने फ़िलहाल हथियार नियंत्रण के मोर्चे पर किसी बड़ी प्रगति की संभावना को ख़ारिज कर दिया है. रूसी अधिकारियों ने मौजूदा यूक्रेन संघर्ष के दौरान बार-बार परमाणु हथियारों का हवाला दिया है, जिसने स्थिति को और बिगाड़ा ही है.  

यूक्रेन संघर्ष और उसके नतीजतन अमेरिका-रूस तनाव ने फ़िलहाल हथियार नियंत्रण के मोर्चे पर किसी बड़ी प्रगति की संभावना को ख़ारिज कर दिया है. रूसी अधिकारियों ने मौजूदा यूक्रेन संघर्ष के दौरान बार-बार परमाणु हथियारों का हवाला दिया है, जिसने स्थिति को और बिगाड़ा ही है. हालांकि, हथियार नियंत्रण पर अमेरिका-रूस की द्विपक्षीय सहमति यूक्रेन में रूसी लड़ाई से पहले ही छिन्न-भिन्न हो गयी थी. दोनों ही 2019 में ‘इंटरमीडिएट-रेंज न्यूक्लियर फ़ोर्सेज़ ट्रीटी’ और उसके बाद ‘मुक्त आकाश संधि’ से पीछे हट गये थे. इन क़दमों ने किसी हथियार नियंत्रण उपाय, और सहयोग के मौजूदा द्विपक्षीय या बहुपक्षीय रास्तों को बरक़रार रखने पर बातचीत आगे बढ़ाने के लिए उनकी अनिच्छा प्रदर्शित की. 

2021 में, रूस और अमेरिका परमाणु हथियार नियंत्रण की एक आख़िरी व्यवस्था, ‘न्यू स्ट्रैटिजिक आर्म्स रिडक्शन ट्रीटी’ को बचाने के लिए तेज़ी से आगे आये. राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और जो बाइडेन इस साल फरवरी में ख़त्म हो रही इस संधि को पांच साल के लिए बढ़ाने पर सहमत हुए. हालांकि यह एक महत्वपूर्ण विकास था, लेकिन व्यापक गतिकी को बदलने में नाकाम था, जैसा कि बाद में रूस-अमेरिका संबंधों में क्षरण ने दिखाया.

हथियार नियंत्रण वार्ताओं पर किसी प्रगति की परिकल्पना के लिए मॉस्को और वॉशिंगटन के बीच विश्वास के अभाव का स्तर काफ़ी ऊंचा है. रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने ज़ोर दिया कि अगर यूक्रेन परमाणु क्षमता से लैस होता है, तो रूस को ‘इस वास्तविक ख़तरे पर प्रतिक्रिया करनी ही होगी.’ अमेरिकी अधिकारी भी रूसी संशय को साझा करते हैं. जैसा कि हथियार नियंत्रण (सत्यापन एवं अनुपालन) के लिए अमेरिका की सहायक विदेश मंत्री, मैलोरी स्टीवर्ट ने हाल में कहा, ‘यूक्रेन में [रूस के] अवैध आक्रमण और उनकी अभी जारी, 17वीं सदी की ख़ौफ़नाक गतिविधियों को देखते हुए, यह जवाब ढूंढ़ पाना बहुत कठिन है कि हम कैसे बैठ सकें और सोच सकें कि हमारी कूटनीति को उस तरफ़ गंभीरता से लिया जायेगा.’ 

हथियार नियंत्रण पर अनिश्चितता के बादल सीधे-सीधे न सिर्फ़ रूस और अमेरिका को, बल्कि चीन को भी अपने परमाणु हथियारों के जख़ीरे में विविधता लाने और उन्हें परिष्कृत बनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.

जैसा कि सिपरी की रिपोर्ट ने पाया है, हथियार नियंत्रण पर अनिश्चितता के बादल सीधे-सीधे न सिर्फ़ रूस और अमेरिका को, बल्कि चीन को भी अपने परमाणु हथियारों के जख़ीरे में विविधता लाने और उन्हें परिष्कृत बनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. पिछले दशक में, चीन ने अपनी नाभिकीय त्रयी क्षमताओं को उन्नत बनाया है, जिसके लिए उसने ऐतिहासिक रूप से शक्तिशाली ज़मीन-आधारित अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलों से लेकर पनडुब्बी से प्रक्षेपित की जाने वाली ‘जुलांग-2’ बैलिस्टिक मिसाइलों को शामिल करने तथा रणनीतिक (लंबी दूरी के) स्टील्थ बमवर्षक विमान ‘शियान एच-20’ को शामिल करने की योजना जैसे क़दम उठाये हैं. बदले में, ये घटनाएं भारत को भी परमाणु हथियारों के आधुनिकीकरण के लिए प्रेरित कर रही हैं.

हथियार नियंत्रण की रूपरेखा

बड़ी शक्तियों का नाभिकीय आधुनिकीकरण साइबर और अंतरिक्ष जैसे क्षेत्रों में हमलावर क्षमताओं को विकसित करने की उनकी कोशिशों के साथ जुड़ा हुआ है. हालांकि, इन क्षेत्रों में प्रभावी हथियार नियंत्रण समझौता जैसा कुछ नहीं है. यह तर्क दिया जा सकता है कि इन क्षेत्रों में हथियार नियंत्रण की कोई सैद्धांतिक रूपरेखा नहीं होने से बड़ी शक्तियों को लाभ मिल रहा है, ख़ासकर रूस और चीन को साइबरस्पेस में. लिहाज़ा, भयावरोध (डिटरेंस) स्थिरता के लिए यह गतिकी नयी चुनौतियां पेश कर रही है. इसके अलावा, हथियार नियंत्रण की किसी भी समकालीन व्यवस्था में अनिवार्य रूप से दूसरे देश में घुसकर निरीक्षण का प्रावधान होगा ही, जो किसी भी बड़ी शक्ति को क़ुबूल नहीं होगा. यह किसी भी हथियार नियंत्रण समझौते, परमाणु या अन्य, की संभावना को और भी क्षीण बनाती है.

हथियार नियंत्रण पर बड़ी शक्तियों का संशय परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए निराशाजनक संभावना में भी प्रतिबिंबित होत्रा है. फरवरी 2021 में, संयुक्त राष्ट्र के ज़रिये हुई ‘परमाणु हथियारों के निषेध पर संधि’ (टीपीएनडब्ल्यू) क्रियान्वयन में आयी. यह संधि परमाणु हथियारों से संबंधित किसी गतिविधि में भागीदारी का निषेध करती है, जिसके ज़रिये यह परमाणु हथियारों से जुड़े प्रतिष्ठा के मुद्दे से निपटने की कोशिश करती है. हालांकि, किसी भी परमाणु शक्ति ने इसका अनुमोदन नहीं किया है. मतलब यह कि टीपीएनडब्ल्यू उन देशों को इन गतिविधियों से मना करता है जिनके पास परमाणु क्षमता तक नहीं है.  

टीपीएनडब्ल्यू की शर्तें परमाणु अप्रसार संधि और व्यापक परीक्षण प्रतिबंध संधि की शर्तों को ही प्रतिबिंबित करती हैं, जो परमाणु शक्तियों पर समान ज़िम्मेदारी डाले बिना परमाणु अप्रसार का दायित्व गैर-परमाणु शक्तियों पर डालती हैं. यह टीपीएनडब्ल्यू को परमाणु हथियारों से जुड़े मानदंड संबंधी मुद्दों और निरस्त्रीकरण के लिए अप्रासंगिक बनाता है.

यह संधि परमाणु हथियारों से संबंधित किसी गतिविधि में भागीदारी का निषेध करती है, जिसके ज़रिये यह परमाणु हथियारों से जुड़े प्रतिष्ठा के मुद्दे से निपटने की कोशिश करती है. हालांकि, किसी भी परमाणु शक्ति ने इसका अनुमोदन नहीं किया है.

शायद, टकराव और ज़्यादा बढ़ने या क्यूबाई मिसाइल संकट जैसे किसी संकट से ही यह चक्र टूट सकता है और हथियार नियंत्रण व अप्रसार में दिलचस्पी की शुरुआत हो सकती है. या फिर, बड़ी शक्तियों की ओर से यह एहसास कि जो आप दूसरों के साथ कर सकते हैं वह आपके साथ भी किया जा सकता है (कुछ-कुछ एक-दूसरे के सुनिश्चित विनाश के भयावरोध के तर्क जैसा), उन्हें एक समझौते के ज़रिये परमाणु संयम को संस्थागत बनाने में अपने हाथ आज़माने के लिए बाध्य कर सकता है. यह दक्षिणी एशिया में रणनीतिक स्थिरता को संभव बनाने वाली स्थिति बनायेगा.

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