Expert Speak Health Express
Published on Jun 05, 2024 Updated 0 Hours ago

बदलते जलवायु पैटर्न और बढ़ते वायरल प्रसार के साथ निपाह के प्रकोप का ख़तरा बहुत अधिक बना हुआ है. इसलिए सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ी सामाजिक प्रतिक्रिया की ज़रूरत पर ज़ोर दिया जा रहा है.

निपाह वायरस: संदर्भ के अनुसार स्वास्थ्य को लेकर जवाब देने की ज़रूरत

हाल के दिनों में निपाह वायरस अनगिनत बार ख़बरों में आया है और सिर्फ केरल में चार बार इसका प्रकोप फैला है. निपाह वायरस का प्रसार मुख्य रूप से जानवरों के ज़रिए लोगों में होता है लेकिन इसका प्रसार उन फलों को खाने से भी हो सकता है जो संक्रमित जानवरों और संक्रमित लोगों के पेशाब या लार से दूषित होता है. इस बीमारी का कभी-कभी कोई लक्षण नहीं होता है जबकि कुछ मामलों में सांस के संक्रमण से लेकर पूरी तरह एन्सेफलाइटिस तक हो सकता है. वैसे तो ये SARS-CoV2 की तरह तेज़ी से नहीं फैलता है लेकिन निपाह वायरस से मृत्यु की दर 40-75 प्रतिशत के बीच है. इस कारण ये विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के लिए प्राथमिकता वाली बीमारियों के केंद्र में है. 

वैसे तो ये SARS-CoV2 की तरह तेज़ी से नहीं फैलता है लेकिन निपाह वायरस से मृत्यु की दर 40-75 प्रतिशत के बीच है. इस कारण ये विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के लिए प्राथमिकता वाली बीमारियों के केंद्र में है. 

निपाह वायरस के फैलने का सबसे ताज़ा मामला पिछले साल कोझिकोड ज़िले में सामने आया था जहां लैबोरेटरी के टेस्ट से छह लोगों में निपाह वायरस की पुष्टि हुई थी और दो लोगों की मौत हुई थी. केरल की तरफ से वायरस के ख़िलाफ़ 21 दिनों तक तेज़ मुहिम चलाई गई और इस दौरान बीमारी को लेकर ज़्यादा निगरानी की गई, लोगों के आने-जाने पर प्रतिबंध लगाए गए, सोशल डिस्टेंसिंग अपनाने को कहा गया और सार्वजनिक जगहों पर मास्क पहनना अनिवार्य बनाया गया. इस प्रकोप के दौरान जो नीतियां लागू की गईं वो कोविड-19 महामारी के दौरान अपनाई गई सुरक्षात्मक प्रतिक्रिया से मिलती-जुलती हैं. मौजूदा समय में निपाह वायरल इन्फेक्शन के इलाज के लिए कोई निवारक (प्रिवेंटिव) या चिकित्सीय (थेराप्यूटिक) साधन नहीं है. ये लेख दलील देता है कि निपाह के प्रकोप के समय उठाए गए कदम केवल कोविड-19 जैसी प्रतिक्रिया के आधार पर नहीं हो सकते हैं क्योंकि इसमें निपाह को लेकर विशेष पहलुओं को पूरी तरह समझने की आवश्यकता होती है. इन पहलुओं में लोगों तक फैलने के लिए ज़िम्मेदार कारण, इसके संक्रमण की गतिशीलता और एक संगठित प्रतिक्रिया की सीमाएं शामिल हैं. ये लेख अगले संभावित वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल का समाधान करने के लिए एक नैतिक रूप से प्रेरित सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया की आवश्यकता का तर्क देता है

एक सुरक्षात्मक प्रतिक्रिया

निपाह वायरस को लेकर केरल के सुरक्षात्मक जवाब के अपने लाभ हो सकते हैं लेकिन ज़रूरी नहीं कि ये सबसे उपयुक्त जवाब हों. केरल सरकार, स्वास्थ्य विभाग और सरकार में ऊंचे पदों पर बैठे लोगों ने निपाह वायरस को एक ख़तरे के रूप में बताया, इस मुद्दे कोराजनीति से ऊपररखा और ख़तरे को संभालने के लिए असाधारण उपायों को लागू किया. संक्रामक बीमारियों को लेकर सुरक्षा के उपाय कोई नई बात नहीं है और ये WHO के इस निर्देश से मेल खाता है किशांति और सुरक्षा को हासिल करने के लिए स्वास्थ्य मूलभूत है.’ अध्ययनों से पता चला है कि संक्रामक बीमारियों को लेकर सुरक्षा के कदम रोकथाम को लेकर सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों की जागरूकता बढ़ाने और अनुसंधान एवं विकास की गतिविधियों के लिए फंड के आवंटन को बढ़ाने में लाभकारी हैं. ध्यान देने की बात है कि कोविड-19 महामारी के दौरान लागू किए गए असाधारण उपाय किसी संक्रामक बीमारी के ख़िलाफ़ सुरक्षा के कदम का उदाहरण है. वैसे तो प्रकोप को काबू में करने के लिए एक सुरक्षात्मक प्रतिक्रिया आवश्यक है लेकिन किसी प्रकोप को लेकर ऐसी प्रतिक्रिया के उपयुक्त होने को लेकर कम अध्ययन हुए हैं. निपाह वायरस के मामले में जानवरों से इंसान तक फैलने के मामलों और संक्रमण की गतिशीलता पर ध्यान देने की ज़रूरत है क्योंकि ये ऐसे कारण हैं जो आवश्यक सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया के स्वरूप में योगदान देते हैं. ज़रूरत से ज़्यादा कड़े निवारक स्वास्थ्य उपाय निपाह वायरस के लिए आवश्यक नहीं हैं. इसके बदले प्रतिक्रिया संदर्भ पर निर्भर होनी चाहिए

वायरस के हिसाब से उचित उपाय

2023 के सबसे ताज़ा प्रकोप के दौरान केरल में लागू किए गए सार्वजनिक स्वास्थ्य उपाय आवश्यकता से अधिक थे क्योंकि उनमें निपाह वायरस की संक्रमण गतिशीलता पर विचार नहीं किया गया था. इस तरह सरकार की तरफ से हस्तक्षेप नैतिक रूप से अन्यायपूर्ण बन गए. ये उपाय कोविड-19 महामारी के दौरान लागू किए गए उपायों की तरह थे. साथ ही पहली बार निपाह वायरस का मुकाबला करने के लिए लॉकडाउन लगाने का उपयोग किया गया. इथोक्स सेंटर ऑफ ऑक्सफोर्ड पॉपुलेशन हेल्थ के रिसर्चर्स निपाह वायरस के प्रसार की गतिशीलता को प्राथमिक कारण के तौर पर बताते हुए इसके प्रकोप को संभालने के लिए अलग दृष्टिकोण अपनाने की बात करते हैं. वायरस का संक्रमण दूषित फलों को खाने या इलाज की जगह और घरेलू माहौल में संक्रमित लोगों के नज़दीकी संपर्क में आने से होता है. ये पैटर्न सांस की बीमारियों से अलग है जहां सामान्य सामुदायिक उपाय जैसे कि सोशल डिस्टेंसिंग, यात्रा पर प्रतिबंध, लॉकडाउन और व्यापक निगरानी संक्रमण के स्तर को कम करने में प्रभावी होती हैं. निपाह वायरस के मामले में नज़दीकी संपर्क के माहौल में संक्रमण के अधिक ख़तरे को देखते हुए घर पर रहने का आदेश और क्वॉरंटीन के उपाय लोगों को इन्फेक्शन के अधिक ख़तरे में डाल सकते हैं

अध्ययनों से पता चला है कि संक्रामक बीमारियों को लेकर सुरक्षा के कदम रोकथाम को लेकर सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों की जागरूकता बढ़ाने और अनुसंधान एवं विकास की गतिविधियों के लिए फंड के आवंटन को बढ़ाने में लाभकारी हैं.

इसके अलावा कुछ उपाय जैसे कि सीमा पर टेस्ट का निर्देश संक्रमण के दुर्लभ मामलों की जांच करने के लिए बहुत कारगर और प्रकोप को संभालने के लिए उचित नहीं हो सकता है. साथ ही मृत्यु की दर बहुत अधिक होने के कारण निपाह वायरस के संक्रमण का हर मामला जीवन के लिए गंभीर ख़तरा पेश करता है. इसकी वजह से संक्रमण के हर मामले को सीमित रखने की ज़रूरत रहती है. ये संकेत देता है कि चरम उपाय निपाह वायरस के प्रकोप को संभालने के लिए उपयुक्त या नैतिक रूप से न्यायसंगत नहीं हो सकते हैं. इसके बदले घरों या इलाज की जगहों पर वायरस के संक्रमण को सीमित करने के लिए ठोस प्रयास पर मुख्य ध्यान होना चाहिए. ये भी ध्यान रखना चाहिए कि 2018 के प्रकोप के दौरान केरल की प्रतिक्रिया, जो मुख्य रूप से संक्रमित व्यक्ति का पता लगाने (कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग) पर केंद्रित थी, संक्रमण को रोकने के लिए प्रभावी और पर्याप्त थी. ये दिखाता है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों का प्रयोग सजगता से किया जाना चाहिए क्योंकि आवश्यकता से अधिक प्रतिबंध के उपाय घरों या इलाज की जगहों पर बीमारी से राहत में सहायता नहीं करेंगे जबकि कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग जैसे उपाय फायदेमंद हैं

सेहत से जुड़ा संचार

निपाह वायरस को लेकर सक्रिय सार्वजनिक संचार प्रकोप को संभालने और लोगों के विश्वास को बढ़ाने में महत्वपूर्ण है. बांग्लादेश में सामुदायिक केस स्टडी से पता चला है कि निपाह वायरस को लेकर चिकित्सीय समझ बीमारी की सामाजिक समझ के साथ मेल नहीं खाती है. इसके बदले धार्मिक और सांस्कृतिक पहलू संक्रमण को लेकर गलत धारणा में योगदान देते हैं और बीमारी के कारणों एवं रोकथाम के उपायों के उपयोगी मूल्यों के बारे में वैज्ञानिक समझ के मामले में लोगों की क्षमता में बाधा उत्पन्न करते हैं. इससे प्रकोप लंबे समय तक बना रहता है

इसके अलावा निपाह वायरस WHO के वन हेल्थ परिप्रेक्ष्य का एक उदाहरण है जहां आर्थिक प्रथाएं, जलवायु परिवर्तन और जैव-विविधता मिलती हैं और वायरल संक्रमण की गतिशीलता को प्रभावित करती हैं. बांग्लादेश और भारत के मामले में संक्रमित चमगादड़ों से लोगों तक फैलने के मामलों का स्रोत प्लांटेशन में बीज जमा करने वालों से जुड़ा हुआ है. संक्रमित चमगादड़ सामान्य रूप से काजू और सुपारी के बाहरी आवरण को खाते हैं जिसकी वजह से वो टूटकर ज़मीन पर गिर जाते हैं. इन मेवों को आम तौर पर प्लांटेशन से जुड़े किसान जमा कर लेते हैं. इन मेवों की सतह पर निपाह वायरस संभावित रूप से 30 घंटे तक सक्रिय रह सकता है जो संक्रमण के लिए संपर्क बिंदु के तौर पर काम करता है

स्वास्थ्य ढांचे की तर्कसंगत और अच्छी समझ रोकथाम से जुड़े बर्तावों की ओर ले जा सकती है, विशेष रूप से प्लांटेशन करने वाले लोगों में. ताड़ी की खपत और उसकी सतह पर निपाह वायरस के बीच संपर्क को लेकर समझ में कमी बांग्लादेश में स्वास्थ्य देखभाल को लेकर सरकार के उपायों में लोगों के अविश्वास को पैदा करने में एक प्रमुख कारण था. प्लांटेशन के क्षेत्रों में चमगादड़ का स्वास्थ्य लोगों की सेहत से जुड़ा हुआ है और दिखाता है कि वायरल ट्रांसमिशन को बढ़ावा देने वाली प्रथाओं को लेकर पारदर्शिता लोगों के बीच जागरूकता बढ़ा सकती है और उन्हें अपने उन बर्तावों में बदलाव की तरफ ले जा सकती है जो ट्रांसमिशन को बढ़ावा देते हैं. उदाहरण के लिए, घर पर क्वारंटाइन का सख़्त प्रोटोकॉल, ताड़ी जमा करने के बाद व्यक्तिगत स्वच्छता के उपायों को प्रोत्साहन और बांस की छतरी- जो पेड़ के तने और ताड़ी जमा करने वाले मटके को घेरती हैं और इस तरह चमगादड़ों को ताड़ी तक पहुंचने से रोकती हैं- का इस्तेमाल. गलत सूचनाएं और दुष्प्रचार अभियान, जो कोविड-19 और इबोला के प्रकोप के दौरान भी देखा गया था, पारदर्शी संचार के महत्व को और ज़्यादा रेखांकित करते हैं. ये विशेष रूप से इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि भविष्य में भी निपाह वायरस के प्रकोप पर इनका असर पड़ने की आशंका है. ये लोगों तक निपाह वायरस को लेकर पारदर्शी सार्वजनिक संचार के महत्व को उजागर करता है ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि जागरूक लोग बीमारी के प्रकोप को कम करने में सक्रिय रूप से योगदान दे सकें

संदर्भ से प्रेरित सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया 

WHO के द्वारा ये आशंका जताई गई है किएक गंभीर अंतरराष्ट्रीय महामारी ऐसे रोगाणु से पैदा होगी जिसके बारे में फिलहाल ये जानकारी नहीं है कि वो लोगों को बीमार करते हैं और जिसेपेंडेमिक Xकहा गया है”. इसे देखते हुए मज़बूत तैयारी की गतिविधियां जारी हैं. इसके अनुसार WHO ने अगले वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल के लिए निपाह वायरस की पहचान प्राथमिकता के तौर पर की है

ये भी ध्यान रखना चाहिए कि 2018 के प्रकोप के दौरान केरल की प्रतिक्रिया, जो मुख्य रूप से संक्रमित व्यक्ति का पता लगाने (कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग) पर केंद्रित थी, संक्रमण को रोकने के लिए प्रभावी और पर्याप्त थी.

जहां पाबंदी के सख्त उपाय जैसे कि लॉकडाउन संक्रमण की संख्या और मृत्यु दर कम करने में लाभदायक रहे हैं वहीं सुरक्षा की प्रतिक्रिया के नकारात्मक परिणाम साफ तौर पर दिखते हैं. लोगों की स्वतंत्रता का उल्लंघन, सामाजिक एवं आर्थिक गतिविधियां बंद होना, रोज़गार का नुकसान, घरेलू हिंसा के मामलों में बढ़ोतरी और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं में वृद्धि की घटनाएं दूसरे क्षेत्रों में सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल के फैलने के कुछ उदाहरण हैं. इसके अलावा सुरक्षा के उपाय वैक्सीन एवं इलाज को लेकर अनुचित व्यवहार, सार्वजनिक स्वास्थ्य की आड़ में निगरानी और स्वास्थ्य से जुड़े मामलों में प्राइवेसी के उल्लंघन का कारण बन सकते हैं. साथ ही अध्ययनों से ये भी पता चला है कि लंबे समय तक और बार-बार के लॉकडाउन ने सरकारों और स्वास्थ्य संकट को संभालने में उनकी क्षमता को लेकर अविश्वास पैदा किया है. ये इशारा करता है कि स्वास्थ्य से जुड़े उपाय नैतिक तौर पर सोच-समझकर लेना चाहिए ताकि संदर्भ आधारित दृष्टिकोण को सुनिश्चित किया जा सके. ये ऐसा दृष्टिकोण है जो स्वास्थ्य देखभाल की प्रणाली पर बहुत ज़्यादा बोझ नहीं डालता है, दूसरे क्षेत्रों तक नहीं फैलता है और काफी हद तक लोगों की स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं करता है. 

बदलते जलवायु, ज़मीन के बहुत ज़्यादा इस्तेमाल और अधिक वायरल प्रसार के साथ भविष्य में निपाह के प्रकोप की आशंका काफी ज़्यादा बनी हुई है. इससे संकेत मिलता है कि नैतिक रूप से प्रेरित सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया समय की आवश्यकता है


लक्ष्मी रामकृष्णन ने पिछले दिनों लंदन के किंग्स कॉलेज से इंटरनेशनल रिलेशंस में MA किया है.

 

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