Published on Sep 12, 2023 Updated 0 Hours ago

नाइजर में हुए सैन्य विद्रोह की वजह से क्षेत्रीय अस्थिरता की स्थिति पैदा होने और युद्ध शुरू होने से पहले अफ्रीका के क्षेत्रीय संगठनों को कूटनीति के ज़रिए समस्या के समाधान की कोशिश करनी चाहिए.

नाइजर: तख्त़ापलट के बाद के हालात

30 महीनों में बहुत कुछ हो सकता है. फरवरी 2021 में जब मोहम्मद बज़ूम पश्चिम अफ्रीकी देश नाइजर के 10वें राष्ट्रपति निर्वाचित हुए तो देश के लिए ये जश्न का पल था. 1960 में फ्रांस से स्वतंत्रता हासिल करने के बाद ये नाइजर का पहला शांतिपूर्ण, लोकतांत्रिक सत्ता में परिवर्तन था. पिछले लगभग दो वर्षों के दौरान राष्ट्रपति बज़ूम इस्लामिक उग्रवादियों के ख़िलाफ़ लगातार बढ़त हासिल कर रहे थे. ऐसा लग रहा था कि सशस्त्र बलों के साथ उनके संबंध अच्छे हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि उन्हें अमेरिका और फ्रांस का समर्थन हासिल था. 

वैसे जनरल चियानी ने तख्त़ापलट के पीछे खराब सामाजिक एवं आर्थिक प्रबंधन और उग्रवादियों से लड़ाई में सरकार की नाकामी को ज़िम्मेदार बताया लेकिन वास्तविक कारण अस्पष्ट बने हुए हैं.

इसके बावजूद हालात ऐसे बने कि नाइजर उस वक्त अराजकता की चपेट में आ गया जब एक सैन्य विद्रोह के ज़रिए राष्ट्रपति बज़ूम को सत्ता से बाहर कर दिया गया. इसके परिणामस्वरूप यहां का राजनीतिक परिदृश्य उलट-पुलट गया जिसकी वजह से यहां के नागरिक और पूरी दुनिया सन्न रह गई. आनन-फानन में देश की सरहद को बंद कर दिया गया जिसके कारण अनिश्चितता और अराजकता में और बढ़ोतरी हुई. 

कैसे हुआ सैन्य विद्रोह 

अफ्रीका के अशांत साहेल क्षेत्र में हाल के वर्षों में नाइजर के हालात अपेक्षाकृत स्थिर रहे हैं. लेकिन ये स्थिरता 26 जुलाई तक ही रही जब नाइजर के प्रेसिडेंशियल गार्ड के कुछ सदस्यों ने राजधानी नियामी में राष्ट्रपति के पैलेस को घेर लिया और राष्ट्रपति को उनके घर में हिरासत में ले लिया. बाद में सेना की अलग-अलग ब्रांच की नुमाइंदगी करने वाले बागियों ने राष्ट्रीय टेलीविज़न पर एलान किया कि उन्होंने सरकार गिरा दी है. दो दिन बाद 28 जुलाई को नाइजर की प्रेसिडेंशियल गार्ड के कमांडर, 59 साल के जनरल अब्दुर्रहमान उमर चियानी ने टेलीविज़न पर अपने संबोधन में देश की बागडोर संभालने का दावा किया. 

वैसे जनरल चियानी ने तख्त़ापलट के पीछे खराब सामाजिक एवं आर्थिक प्रबंधन और उग्रवादियों से लड़ाई में सरकार की नाकामी को ज़िम्मेदार बताया लेकिन वास्तविक कारण अस्पष्ट बने हुए हैं. ऐसा लगता है कि राष्ट्रपति बज़ूम की योजना प्रेसिडेंशियल गार्ड के कमांडर के पद से जनरल चियानी को बर्खास्त करने की थी. तो क्या जनरल ने ऐसा होने से पहले ही बदला ले लिया? संभव है कि ऐसा हुआ हो. तख्त़ापलट के पीछे नाइजर में यूरेनियम की समृद्ध खदानों पर कब्ज़े की लड़ाई भी हो सकती है. 

नाइजर अहम क्यों?

नाइजर दुनिया का सातवां सबसे बड़ा यूरेनियम उत्पादक है. यूरेनियम एक रेडियोसक्रिय धातु है जिसका इस्तेमाल व्यापक रूप से परमाणु ऊर्जा के उत्पादन और कैंसर के इलाज में होता है. साथ ही ये परमाणु उद्योग का एक प्रमुख कच्चा माल है. नाइजर यूरेनियम का एक बड़ा सप्लायर है जो फ्रांस की यूरेनियम की ज़रूरत का 15 प्रतिशत और यूरोपियन यूनियन की ज़रूरत का पांचवां हिस्सा सप्लाई करता है. ज़ाहिर है कि बगावत की वजह से यूरोप में ऊर्जा सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ गई है. 

इसी बीच रूस की प्राइवेट आर्मी वागनर ग्रुप के संस्थापक प्रिगोज़िन ने खुले तौर पर विद्रोह का जश्न मनाया और इसके लिए उपनिवेशवाद की विरासत को ज़िम्मेदार ठहराया. 

इसके अलावा नाइजर इस्लामिक उग्रवाद के विरुद्ध पश्चिमी देशों की लड़ाई में एक महत्वपूर्ण सहयोगी है. मौजूदा समय में नाइजर में अमेरिका के 1,100 सैनिक और दो ड्रोन साइट हैं. इनमें से एक साइट नियामी और दूसरी अगादेज़ में है. अमेरिका ने ड्रोन अड्डे के निर्माण में लगभग 110 मिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च किए. इसके अलावा अमेरिका हर साल 30 मिलियन अमेरिकी डॉलर इनके रखरखाव पर खर्च करता है. नाइजर में फ्रांस के भी 1,500 सैन्य कर्मी हैं. वास्तव में संयुक्त राष्ट्र (UN) ने नाइजर का इस्तेमाल माली में शांति सेना के अभियान से जुड़े 13,000 कर्मियों को बाहर निकालने के लिए साजो-सामान के अड्डे के तौर पर करने की योजना बनाई थी और ये 2023 के आख़िर तक पूरी होनी थी.  

‘रूस फैक्टर’ 

मुहावरे के मुताबिक ही राजनीति में कोई संयोग नहीं होता. नाइजर में सैन्य विद्रोह ठीक उस समय हुआ जब रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन सेंट पीटर्सबर्ग में अफ्रीकी देशों के राष्ट्राध्यक्षों और मंत्रियों की मेज़बानी करने में व्यस्त थे. इसकी वजह से यूक्रेन के राष्ट्रपति के सलाहकार मिखाइलो पोडोल्याक ने सार्वजनिक रूप से रूस पर नाइजर में विद्रोह कराने का आरोप लगाया. वैसे रूस की तरफ से जारी सरकारी बयान में अपील की गई कि नाइजर में संवैधानिक व्यवस्था को जल्द-से-जल्द बहाल किया जाए लेकिन बगावत का समय और तख्त़ापलट के बाद नाइजर की सड़कों पर रूस का झंडा लहराना निश्चित तौर पर संदेह पैदा करता है. 

अगर नाइजीरिया और फ्रांस के साथ नाइजर, बुर्किना फासो और माली भिड़ते हैं तो ये संघर्ष अंतत: पूरे साहेल क्षेत्र को अपनी चपेट में ले सकता है और यहां तक कि उत्तरी अफ्रीका के कुछ देशों जैसे कि लीबिया, अल्जीरिया और मिस्र तक फैल सकता है.

इसी बीच रूस की प्राइवेट आर्मी वागनर ग्रुप के संस्थापक प्रिगोज़िन ने खुले तौर पर विद्रोह का जश्न मनाया और इसके लिए उपनिवेशवाद की विरासत को ज़िम्मेदार ठहराया. वागनर के लिए तख्त़ापलट कारोबार का मौका पेश करता है. वागनर के सैनिक माली और सूडान के विद्रोही इलाकों में खुले तौर पर काम करते हैं. साथ ही वो नज़दीक के सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक और लीबिया में भी सक्रिय हैं. और अब नाइजर उनका सबसे अनमोल तोहफा हो सकता है. 

फ्रांस के ख़िलाफ़ ज़ोरदार लहर 

तख्त़ापलट के कुछ दिनों के बाद हज़ारों प्रदर्शनकारियों ने रूस के झंडे के साथ राजधानी की सड़कों पर मार्च किया और अपने देश की संपत्ति लूटने के लिए फ्रांस की निंदा की. प्रदर्शनकारियों की नाराज़ भीड़ ने फ्रांस के दूतावास के कुछ हिस्सों को आग के हवाले कर दिया. ये पूरे क्षेत्र में एक अलग पैटर्न को दिखाता है. फ्रांस के सभी पुराने उपनिवेश जो बगावत के दौर से गुज़र रहे हैं, उनमें एक बात साझा है: फ्रांस और उसकी नवउपनिवेशवाद की नीति को नामंज़ूर करना. माली पहला देश था जिसने फ्रांस के ख़िलाफ़ बगावत की थी, इसके बाद बुर्किना फासो और अब नाइजर. आम लोग फ्रांस को लेकर पहले से खराब सोच रखते हैं. सैन्य नेता “बलि का बकरा बनाने के तौर-तरीके” का सहारा लेना जारी रख सकते हैं और फ्रांस विरोधी भावनाओं की मदद लेकर अपनी मौजूदगी को मज़बूत कर सकते हैं. 

क्षेत्रीय युद्ध का डर

नाइजर में सेना की कार्रवाई का अफ्रीकन यूनियन (AU) और पश्चिम अफ्रीकी देशों के क्षेत्रीय संगठन ECOWAS ने कड़ी आलोचना की. इसके अलावा ECOWAS ने सैन्य सरकार से अनुरोध किया कि राष्ट्रपति बज़ूम को तत्काल रिहा किया जाए और लोकतांत्रिक सरकार की बहाली के लिए एक समय सीमा जारी की. इसी तरह अमेरिका और फ्रांस ने नाइजर से रिश्ते तोड़ लिए. इसके जवाब में नाइजर की सैन्य सरकार ने फ्रांस के साथ 1977 से 2020 के बीच हुए सभी पांच सैन्य समझौतों को रद्द कर दिया.  

दूसरी तरफ, पड़ोसी देश बुर्किना फासो और माली ने अभूतपूर्व कदम उठाते हुए एलान किया कि नाइजर में विदेशी सैन्य हस्तक्षेप को उनके ख़िलाफ़ युद्ध की घोषणा के तौर पर समझा जाएगा. इस क्षेत्र के एक और देश गिनी, जहां हाल ही में सैन्य विद्रोह हुआ है, ने नाइजर की सैन्य सरकार के समर्थन में एक अलग बयान जारी किया. 

अगर नाइजीरिया और फ्रांस के साथ नाइजर, बुर्किना फासो और माली भिड़ते हैं तो ये संघर्ष अंतत: पूरे साहेल क्षेत्र को अपनी चपेट में ले सकता है और यहां तक कि उत्तरी अफ्रीका के कुछ देशों जैसे कि लीबिया, अल्जीरिया और मिस्र तक फैल सकता है. वैसे तो संभावित क्षेत्रीय युद्ध की स्थिति में फ्रांस और रूस के बीच सीधी लड़ाई की आशंका नहीं है लेकिन शुरुआती दौर में दोनों विरोधी खेमों का साथ देने का नतीजा काफी बर्बादी के रूप में निकलेगा. जैसे-जैसे अलग-अलग देश किसी पक्ष का साथ देने के लिए भिड़ रहे हैं, वैसे-वैसे क्षेत्रीय युद्ध का ख़तरा मंडरा रहा है. 

नाइजर में सैन्य बगावत की भू-राजनीति 

साहेल क्षेत्र ने एक लंबे समय से खराब प्रशासन, लोगों के बीच संघर्षों और हिंसक चरमपंथ का खामियाजा उठाया है. नाइजर में ये तख्त़ापलट, जो साहेल क्षेत्र में तीन वर्षों में आठवां है, उन मुश्किलों को और बढ़ाता है. अगर नाइजर की सेना सत्ता पर अपनी पकड़ बरकरार रखने में कामयाब होती है तो ये उत्तर अफ्रीका में सूडान के अलावा चार पश्चिम अफ्रीकी देशों में खाकी सत्ता का प्रतिनिधित्व करेगी. ये इस बात का भी उदाहरण है कि किस तरह फ्रांस और दूसरी विदेशी ताकतों की सैन्य नेतृत्व वाली भागीदारी इस क्षेत्र में बढ़ते इस्लामिक उग्रवाद को रोकने में नाकाम रही. चूंकि पूरे महादेश में खराब शासन व्यवस्था, भ्रष्टाचार और लोगों की मुश्किलें व्यापक स्तर पर हैं, ऐसे में अफ्रीका के कई और देशों में इसी तरह सत्ता पर सेना का कब्ज़ा हो सकता है. 

आगे की बात करें तो इस गतिरोध के कूटनीतिक समाधान की उम्मीदें तो कम हैं लेकिन ECOWAS समेत अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को जल्दबाज़ी में किसी भी तरह की कार्रवाई करने से पहले एहतियात बरतना चाहिए और कूटनीति एवं बातचीत के ज़रिए समाधान की तलाश करने की कोशिश करनी चाहिए. ऐसा नहीं होने पर नाइजर, जो कि पहले से ही एक अस्थिर क्षेत्र है, में राजनीतिक अशांति बढ़कर निश्चित तौर पर एक क्षेत्रीय युद्ध में बदल जाएगी. इस तरह इस्लामिक उग्रवादियों को अपने आतंकी नेटवर्क का विस्तार करने में आसानी होगी. 

सैन्य विद्रोह के बाद नाइजर का भविष्य 

बगावत से पहले नाइजर के दो सबसे गंभीर मुद्दों में से पहला था खामियों से भरा लोकतंत्र जिसकी वजह से चुनाव में जीतने वालों को वास्तविक वैधता नहीं मिल सकी और दूसरा मुद्दा था लगातार जारी जिहादी हिंसा. लेकिन तख्त़ापलट वास्तव में नाइजर की दोनों बुनियादी समस्याओं को दुरुस्त कर सकता है. विद्रोह नाइजर के लोकतंत्र को नए तरीके से शुरू कर सकता है जो कि असल में एक पार्टी की प्रणाली से दम तोड़ चुका है. साथ ही विद्रोह की वजह से एक ज़्यादा असरदार सुरक्षा नीति बन सकती है. 

अपनी नज़रबंदी के दौरान नाइजर के राष्ट्रपति बज़ूम ने वॉशिंगटन पोस्ट के लिए लिखते हुए अपील की, “लोकतांत्रिक बहुलता और कानून के राज के लिए सम्मान समेत हमारे साझा मूल्यों के लिए लड़ाई ही ग़रीबी और आतंकवाद के ख़िलाफ़ मज़बूत ढंग से आगे बढ़ने का इकलौता रास्ता है”. नाइजर में हर कोई, चाहे वो सैन्य विद्रोह का समर्थन करता हो या नहीं, उनसे सहमत होगा कि नाइजर को जल्दी से नागरिक शासन की तरफ लौटकर और शायद अपने संविधान में बदलाव करके एक मिसाल पेश करने की ज़रूरत है. 

नाइजर में हर कोई, चाहे वो सैन्य विद्रोह का समर्थन करता हो या नहीं, उनसे सहमत होगा कि नाइजर को जल्दी से नागरिक शासन की तरफ लौटकर और शायद अपने संविधान में बदलाव करके एक मिसाल पेश करने की ज़रूरत है. 

माना कि इस विशाल देश के भविष्य के लिए आशावादी अनुमान इस वक्त बहुत ज्यादा है. लेकिन नाइजर में तख्त़ापलट के ज़रिए लोकतंत्र की बहाली की प्रक्रिया पहले भी हुई है. वास्तव में 1960 में फ्रांस से आज़ादी हासिल करने के बाद पांचवीं बार नाइजर में तख्त़ापलट किया गया है. इनमें से तीन मौकों- 1996 (विवादित), 1999 और 2010 में- पर नाइजर ने एक मज़बूत लोकतंत्र के तौर पर वापसी की है. अब एक बार फिर इतिहास खुद को दोहरा सकता है. नाइजर पर दुनिया की नज़र करीब से रहेगी. दुनिया को उम्मीद है कि संघर्ष का शांतिपूर्ण समाधान निकलेगा और नागरिक प्रशासन की बहाली होगी. जैसा कि चेक गणराज्य के पूर्व राष्ट्रपति वैक्लैव हैवल ने एक बार कहा था “उम्मीद ऐसा मज़बूत भरोसा नहीं है कि कुछ अच्छा हो जाएगा बल्कि ये एक निश्चय है कि ऐसा होना चाहिए भले ही नतीजा कुछ भी निकले.” 


समीर भट्टाचार्य विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन में सीनियर रिसर्च एसोसिएट हैं.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.