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Published on Jul 02, 2024 Updated 0 Hours ago

भारत और खाड़ी देशों के आर्थिक और रक्षा हित जिस तरह एक-दूसरे से जुड़े हैं, उसे देखते हुए ये निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि भारत और मध्य पूर्व देशों के संबंध आने वाले दिनों में और बेहतर होंगे.

मोदी 3.0: भारत व पश्चिम एशिया के संभावित संबंधों की दशा और दिशा का आकलन?

भारतीय मतदाताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) को एक बार फिर पांच साल शासन करने का मौका दिया है. चुनाव नतीज़ों के एलान से पहले से ही इस बात पर चर्चा हो रही थी कि सरकार की विदेश नीति का फोकस क्या होगा. भारत की पश्चिम एशिया (मध्य पूर्व) नीति भी उसमें से एक थी. मोदी सरकार के पिछले दो कार्यकाल के दौरान खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के सदस्य देशों और इज़रायल के साथ भारत के संबंधों में काफी सुधार देखा गया. पीएम मोदी की 'व्यक्तिगत कूटनीति' और हितों के मज़बूत झुकाव ने संबंधों को सुधारने में महत्वपूर्ण योगदान दिया. ऐसे में ये कहना सही होगा कि मोदी सरकार की मिडिल ईस्ट पॉलिसी भारत की विदेश नीति की सबसे सफल कहानियों में से एक है. नई सरकार में अपने पहले दौरे में विदेश मंत्री एस. जयशंकर 23 जून 2024 को अबू धाबी की यात्रा पर गए. इसने एक बार फिर इस बात को रेखांकित किया कि ये क्षेत्र भू-रणनीतिक और आर्थिक रूप से भारत के लिए कितना अहम है. ये दोनों देशों के बीच महत्वपूर्ण व्यापक रणनीतिक साझेदारी का प्रतीक भी है.

 पीएम मोदी की 'व्यक्तिगत कूटनीति' और हितों के मज़बूत झुकाव ने संबंधों को सुधारने में महत्वपूर्ण योगदान दिया. ऐसे में ये कहना सही होगा कि मोदी सरकार की मिडिल ईस्ट पॉलिसी भारत की विदेश नीति की सबसे सफल कहानियों में से एक है. 


उम्मीद जताई जा रही है कि नई सरकार भी इन देशों के साथ अपनी मौजूदा साझेदारी को और मज़बूत करेगी. आपसी सहयोग के नए संभावित क्षेत्रों को तलाशेगी. मध्य पूर्व के देशों के साथ भारत के द्विपक्षीय सहयोग का विस्तार सैन्य सुरक्षा, समुद्री सहयोग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, चिकित्सा और स्वास्थ्य देखभाल, अंतरिक्ष, खाद्य सुरक्षा, साइबर सिक्योरिटी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, नागरिक परमाणु सहयोग, खाद, जलवायु परिवर्तन, रिन्यूएबल एनर्जी जैसे दूसरे क्षेत्रों में भी हुआ है. इस सब विस्तार के बावजूद ऊर्जा और आर्थिक सहयोग भारत-मध्य पूर्व देशों के संबंधों की महत्वपूर्ण पहचान बने हुए हैं. इस लेख के अगले तीन सेक्शंस में हम जीसीसी देशों के साथ भारत के सहयोग के तीन मुख्य बिंदुओं पर चर्चा करेंगे. ये क्षेत्र हैं ऊर्जा (हाइड्रोकार्बन ट्रेड और रिन्यूएबल), आर्थिक सहयोग और समुद्री सहयोग.

 

मध्य पूर्व का महत्व



आर्थिक और ऊर्जा सुरक्षा के दृष्टिकोण से भारत के लिए मिडिल ईस्ट बहुत महत्वपूर्ण है और इन पारंपरिक क्षेत्रों में सहयोग प्राथमिकता रहेगी. हालांकि पिछले कुछ समय से सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और इज़रायल जैसे देशों के साथ भारत के द्विपक्षीय व्यापार में काफी बढ़ोत्तरी हुई है. वित्तीय वर्ष (FY) 2023 में सऊदी अरब के साथ व्यापार 52.76 अरब डॉलर का रहा. यूएई के साथ ये आंकड़ा 85 अरब डॉलर तक पहुंच गया. इज़रायल के साथ 4.42 अरब डॉलर का व्यापार हुआ. इसमें रक्षा सौदे शामिल नहीं हैं. बहरीन के साथ भारत का व्यापार 1.7 अरब डॉलर तक पहुंच गया है. भारत और यूएई ने फरवरी 2022 में व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (CEPA) पर दस्तख़त किए हैं. ये समझौता दोनों देशों के बीच की वाणिज्यिक साझेदारी को मज़बूत करेगा और 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार (इसमें तेल शामिल नहीं है) को 100 अरब डॉलर तक पहुंचाने में मददगार होगा. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए CEPA में “शुल्क में कटौती, कारोबार के लिए तुरंत मंजूरी देने और व्यापार क्षेत्र तक पहुंच” की बात कही गई है, जिससे आपसी निवेश के अवसर उत्पन्न हो रहे हैं. "स्थानीय मुद्रा व्यापार निपटान समझौते के कार्यान्वयन के लिए भारत के रूपे कार्ड स्टैक पर आधारित यूएई के घरेलू क्रेडिट/डेबिट का लॉन्च" से द्विपक्षीय वित्तीय लेन-देन में सुविधा होगी.

इसी तरह का ट्रेंड सऊदी अरब के मामले में भी देखा जा सकता है. सऊदी अरब भारत का 19वां सबसे बड़ा निवेशक और चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. दोनों देशों के मज़बूत संबंधों की विशेषता इनके बीच बढ़ते व्यापारिक और निवेश के रिश्तों में दिखती है. वित्तीय और व्यावसायिक साझेदारी, बुनियादी ढांचे के विकास में बढ़ता सहयोग, रिन्यूएबल एनर्जी, खाद्य सुरक्षा और सैन्य-सुरक्षा क्षेत्र में सहयोग बढ़ रहा है. 2019 में स्थापित रणनीतिक साझेदारी परिषद (SPC) ने सितंबर 2023 में नई दिल्ली में अपनी पहली मीटिंग की. ये परिषद दोनों देशों के बीच व्यापार और सुरक्षा संबंधों को मज़बूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी. नीति निर्माण, चर्चा, हितधारकों के बीच समन्वयन और इसमें की गई पहलों के क्रियान्वयन के लिए SPC एक अहम संस्थागत तंत्र है. प्रधानमंत्री मोदी और सऊदी अरब के क्राउंन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (MbS) के दूरदर्शी नेतृत्व में दोनों देशों अपने द्विपक्षीय व्यापार को 100 अरब डॉलर तक ले जाना चाहते हैं.

सऊदी अरब भारत का 19वां सबसे बड़ा निवेशक और चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. दोनों देशों के मज़बूत संबंधों की विशेषता इनके बीच बढ़ते व्यापारिक और निवेश के रिश्तों में दिखती है.


आर्थिक संबंधों में ये वृद्धि ऐसे समय पर हो रही है, जब भारत अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों के साथ साझेदारी स्थापित कर अपनी आर्थिक स्थिति को मज़बूत करने की कोशिश कर रहा है. वहीं खाड़ी देश भी अपने मिशन और विज़न को पूरा करने के लिए एशियाई अर्थव्यस्थाओं की तरफ देख रहे हैं, जो उनके यहां निवेश कर सकें. ऐसी संयुक्त साझेदारी कर सकें तो उनके मिशन से मेल खाती हों. खाड़ी देश अपने यहां सामाजिक-आर्थिक सुधारों (जैसे कि सऊदी विज़न-2030) के लक्ष्यों को पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं. अब चूंकि दोनों पक्षों, भारत और खाड़ी देशों, के हित एक जैसे हो रहे हैं तो एनडीए सरकार और जीसीसी को मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को साकार करने पर ध्यान देना चाहिए, जो काफी समय से लंबित है. वित्तीय वर्ष 2022-23 में जीसीसी भारत का सबसे बड़ा क्षेत्रीय व्यापार पेपर बन गया था. भारत के कुल व्यापार में जीसीसी की हिस्सेदारी 15.8 प्रतिशत की थी. हालांकि, पिछले साल के अंत में मुख्य वार्ताकारों की नियुक्ति से ये संकेत मिले कि दोनों पक्ष इस समझौते को हासिल करने की दिशा में बढ़ रहे हैं. इसलिए उम्मीद है कि ये आर्थिक रिश्ते इसी तरह फलते-फूलते रहेंगे.

 

तेल व ऊर्जा आयात



वैसे भारत और मध्य पूर्व देशों के रिश्तों की मज़बूती को लंबे समय से इस बात से मापा जाता रहा है कि तेल और ऊर्जा व्यापार की मात्रा कितनी है. पिछले कुछ वर्षों में थोड़ी बहुत कमी आने के बावज़ूद भारत अब भी अपने कुल कच्चे तेल का 50 प्रतिशत और गैस आयात का 70 प्रतिशत हिस्सा खाड़ी देशों से आयात करता है. खाड़ी देशों से तेल और गैस के आयात जो गिरावट आई है, उसकी वजह भारत की विविधीकरण की नीति है. भारत अब अमेरिका से भी तेल/ऊर्जा का आयात करने लगा है. इसके अलावा 2022 में यूक्रेन पर आक्रमण के बाद से रूस ने रियायती कीमतों पर तेल बेचना शुरू किया तो अब भारत भी रूस से तेल खरीदने लगा है. भारत अपने ऊर्जा इस्तेमाल के क्षेत्र में बदलाव लाना चाहता है, जिसके लिए तेल/गैस आयात का विविधीकरण ज़रूरी हो गया था. भारत की कोशिश है कि "व्यापक स्रोत आधार से उपलब्धता और सामर्थ्य सुनिश्चित करने के लिए" कई तरह के ईंधन का इस्तेमाल किया जाए. फिर भी ये कहा जा सकता है कि अगले कुछ दशकों में हाइड्रोकार्बन के क्षेत्र में खाड़ी देशों के साथ भारत का पारंपरिक सहयोग जारी रहेगा.

वर्तमान में इराक, सऊदी अरब (तीसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता) और यूएई (चौथा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता) भारत के टॉप-5 तेल आयातक देशों में शामिल हैं. लाल सागर के संकट के बाद भारतीय रिफाइनरियों ने इराक़ का रुख़ किया क्योंकि माल ढुलाई की दरों में बढ़ोत्तरी की वजह से अमेरिका से तेल का आयात बाधित हो गया. इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि रूस से रियायती दरों पर तेल की आपूर्ति जारी रहेगी. इन अनिश्चितताओं को देखते हुए कहा जा सकता है कि खाड़ी देशों से लंबे समय तक भारत की तेल/ऊर्जा ज़रूरतों का एक बड़ा हिस्सा आयात होता रहेगा. ऊर्जा क्षेत्र की बात करें तो क़तर लिक्विफाइड नेचुरल गैस (LNG) का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है. क़तर से भारत को 35 प्रतिशत एलएनजी और 29 प्रतिशत लिक्विफाइड पेट्रोलियम गैस (LPG) की आपूर्ति होती है. इस सहयोग का केंद्र वो समझौता है, जो भारत और क़तर के बीच फरवरी 2024 में हुआ. 20 साल के इस समझौते के मुताबिक भारत हर साल क़तर से 7.5 मीट्रिक मिलियन टन (MMTPA) एलएनजी खरीदेगा. 

फरवरी 2024 के मध्य में की गई मोदी की क़तर यात्रा दोनों देशों के बीच संबंधों को मज़बूत करने के लिए ज़रूरी थी क्योंकि पिछले कुछ समय से ये रिश्ते कमज़ोर हो रहे थे, खासकर 2022 में जासूसी के आरोप में भारतीय नौसेना के 8 पूर्व अधिकारियों की गिरफ्तारी के बाद दोनों देशों के संबंधों में तनाव पैदा हो गया था.

फरवरी 2024 के मध्य में की गई मोदी की क़तर यात्रा दोनों देशों के बीच संबंधों को मज़बूत करने के लिए ज़रूरी थी क्योंकि पिछले कुछ समय से ये रिश्ते कमज़ोर हो रहे थे, खासकर 2022 में जासूसी के आरोप में भारतीय नौसेना के 8 पूर्व अधिकारियों की गिरफ्तारी के बाद दोनों देशों के संबंधों में तनाव पैदा हो गया था. जैसा कि एक विद्वान ने कहा भी था कि “इन अधिकारियों की रिहाई ना सिर्फ भारत और क़तर के बीच के मज़बूत द्विपक्षीय संबंधों का प्रमाण हैं बल्कि इस बात का भी सबूत है कि भारत के राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित रखने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूसरे देशों के नेताओं के साथ किस तरह मज़बूत व्यक्तिगत संबंध स्थापित कर लेते हैं”. खाड़ी देशों के निर्यातक भी इस बात को समझते हैं कि अपनी ऊर्जा ज़रूरतों के लिहाज से भारत एक आकर्षक बाज़ार है, जिसे वो अपने हाइड्रोकार्बन व्यापार के लिए प्राथमिकता दे सकते हैं.

दोनों पक्षों के बीच सहयोग का एक और अपेक्षाकृत नया क्षेत्र उभर रहा है, जिसमें प्रगति होने के आसार हैं. ये क्षेत्र है रिन्यूएबल एनर्जी. भारत और मिडिल ईस्ट के देश जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता को कम करके सौर और पवन ऊर्जा जैसे स्वच्छ ऊर्जा की तरफ बदलाव करने की कोशिश कर रहे हैं. इसे लेकर 2023 में सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने भारत के साथ एक समझौता भी किया है. भारत ने राष्ट्रीय सौर मिशन बनाया है जबकि यूएई ने एनर्जी स्ट्रैटजी 2050 बनाई है, जो अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. भारत इस क्षेत्र में निवेश और तकनीकी सहायता के लिए अपने विदेशी साझेदारों से मदद मांग रहा है, वहीं यूएई की मसदर भारत की अयाना रिन्यूएबल पावर का अधिग्रहण करना चाहती है. इस क्लीन एनर्जी कंपनी का स्वामित्व भारत के नेशनल इंवेस्टमेंट और इंफ्रास्ट्रक्चर फंड (NIIF) के पास है. यूएई भी इस तरह की परियोजनाओं  के लिए भारतीय पक्ष से निवेश चाहता है. रिन्यूएबल एनर्जी के लिए इज़रायल के साथ भी साझेदारी स्थापित की गई है. इज़रायल में भी अक्षय ऊर्जा के उत्पादन की काफी संभावनाएं हैं और उसके पास इस सेक्टर के लिए बेहद उन्नत प्रौद्योगिकी भी है. इन देशों का उद्देश्य डी-कार्बनाइजेशन के लक्ष्यों को हासिल करना, जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटना और स्थायी भविष्य को बढ़ावा देने के लिए आगे की साझेदारी का रास्ता साफ करना है.

हिंद महासागर का इलाका

हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में भारत की बढ़ती भूमिका, पश्चिमी हिंद महासागर और अरब सागर को अपने हितों के लिए ‘इंडो-पैसेफिक नीति’ में शामिल करने की भारत की कोशिशों के बाद ये माना जा सकता है कि जीसीसी के कुछ देशों के साथ समुद्री सुरक्षा और नौसैनिक सहयोग में भी वृद्धि होगी. ओमान, सऊदी अरब, क़तर, कुवैत और यूएई की नौसेना ने भारत के साथ समुद्री अभ्यास किया है. इस सहयोग को मज़बूत करने में उनकी रुचि इसलिए है क्योंकि पश्चिमी हिंदी महासागर क्षेत्र में दुनिया की कुछ सबसे व्यस्त शिपिंग लाइन हैं. इनमें लाल सागर, अदन की खाड़ी, ओमान की खाड़ी, खाड़ी और अरब सागर शामिल हैं. हाल ही में इस तरह के अभ्यास में त्रिपक्षीय समुद्री साझेदारी अभ्यास को भी शामिल किया गया. जून 2023 में भारत, फ्रांस और यूएई ने संयुक्त नौसैनिक अभ्यास किया.

अब जबकि यमन स्थित हूती विद्रोहियों की तरफ से लाल सागर क्षेत्र में मिसाइल और ड्रोन अटैक की संख्या बढ़ रही है, ऐसे में भारत को चाहिए कि वो भी इस क्षेत्र में अपनी नौसैनिक मौजूदगी और समुद्री अभ्यास को बढ़ाए. अलग-अलग देशों की सेनाओं के बीच पारस्परिक संचालन क्षमता बढ़ाने, समुद्री क्षेत्र में पारंपरिक और गैर पारंपरिक ख़तरों से निपटने, समुद्री मार्गों पर व्यापार की सुरक्षा करने, उच्च समुद्री क्षेत्र में परिवहन संचालन को बनाए रखने के लिए ऐसा किया जाना ज़रूरी है. भारत और खाड़ी देशों के बीच रक्षा औद्योगिक सहयोग ढांचे के भीतर समुद्री तकनीकी के सैनिक और नागरिक  इस्तेमाल की पूरी गुंजाइश है. इस क्षेत्र में भी सहयोग की संभावनाओं को तलाशा जाना चाहिए.

मध्य पूर्व क्षेत्र में भारत का प्रतिस्पर्धी चीन भी तेज़ी से अपनी पैठ बढ़ा रहा है. इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है. चीन भले ही इस क्षेत्र में फिलहाल सुरक्षा को लेकर ख़तरा ना हो लेकिन इस लेख में जिन विषयों पर चर्चा की गयी है उन क्षेत्रों में वो भारत का प्रतिद्वंदी हो सकता है.

भारत और खाड़ी देशों के आर्थिक और रक्षा हित जिस तरह एक-दूसरे से जुड़े हैं, उसे देखते हुए ये निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि भारत और मध्य पूर्व के देशों के संबंध आने वाले दिनों में और बेहतर होंगे. द्विपक्षीय संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए 2014 के बाद से ही दोनों पक्षों की तरफ से इसे लेकर मज़बूत आधार तैयार किया जा चुका है. इतना ही नहीं भारत ने जिस तरह छोटी-छोटी बहुपक्षीय साझेदारी स्थापित करने में रुचि दिखाई है, उसके माध्यम से भी इस साझेदारी को बढ़ाने की कोशिश की जानी चाहिए. पारस्परिक हितों के क्षेत्रों में सामूहिक रूप से काम करने के लिए तीसरे देश को भी इसमें शामिल किया जा रहा है. भारत-मध्य पूर्व-यूरोप-आर्थिक-कॉरिडोर (IMEEC) और I2U2 पहल इसका बेहतरीन उदाहरण है. हालांकि, भारत को आगे आने वाली चुनौतियों के प्रति सावधान रहना चाहिए, ख़ास तौर से इस क्षेत्र में उभर रहे जटिल सुरक्षा परिदृश्य पर नज़र बनाए रखने की ज़रूरत है. मध्य पूर्व क्षेत्र में भारत का प्रतिस्पर्धी चीन भी तेज़ी से अपनी पैठ बढ़ा रहा है. इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है. चीन भले ही इस क्षेत्र में फिलहाल सुरक्षा को लेकर ख़तरा ना हो लेकिन इस लेख में जिन विषयों पर चर्चा की गयी है उन क्षेत्रों में वो भारत का प्रतिद्वंदी हो सकता है. हालांकि, मिडिल ईस्ट के देशों के साथ द्विपक्षीय सहयोग को लेकर भारत वर्तमान में अच्छा काम कर रहा है लेकिन अब वक्त आ गया है कि वो इस क्षेत्र को एक समग्र दृष्टिकोण से देखना शुरू करे.


अल्विते निंगथौजम सिंबायोसिस इंटरनेशनल (डीम्ड यूनिवर्सिटी) के सिंबायोसिस स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज (SSIS) में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं

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