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नई दिल्ली को यह बात समझनी होगी कि सैन्य क्षमताओं के मुकाबले कूटनीतिक इरादे काफ़ी तेजी से विकसित होते हैं. ऐसे में उसे यह बात सुनिश्चित करनी होगी कि उसकी रक्षा तैयारियों को विकसित करने की गति भी इस बात का ध्यान रखें.
Image Source: Getty
2020 अप्रैल-मई में लद्दाख के इलाके में हुए चीनी आक्रमण के बाद दोनों देशों के बीच ख़राब हुए संबंधों को मोदी सरकार सामान्य बनाने की कोशिश कर रही है. लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) यानी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर जिस इलाके से चीनी घुसपैठ हुई और तनाव बढ़ा था और जिन इलाकों पर कब्ज़ा किया था, वहां से सेना की आंशिक वापसी हुई है. इस इलाके में सीमित पेट्रोलिंग भी दोबारा शुरू हो गई है. इसके बावजूद 2020 में चीन ने इन विवादास्पद क्षेत्र से सटी हुई जिस जमीन पर यहां कब्ज़ा किया था वहां अब भी बड़ी संख्या में भारत और चीन की सेना तैनात है. दरअसल आज की स्थिति में भी ईस्टर्न यानी पूर्वी लद्दाख में इंडियन आर्मी (IA) की 10 रेजिमेंट तैनात हैं. इसके अलावा IA ने हाल ही में एक फ़ैसला लेते हुए “72 इन्फैंट्री डिवीजन” नामक एक डिवीजन स्थापित करने का भी निर्णय किया है. इस 72 इन्फैंट्री डिवीजन को पूर्वी लद्दाख में स्थाई रूप से तैनात किया जाएगा. इसके अलावा विवादास्पद सीमा पर मध्य और पूर्वी सेक्टर में भी अतिरिक्त सैनिकों की तैनाती की गई है. इन सब बातों के बावजूद कुछ सप्ताह पहले प्रधानमंत्री मोदी ने एक साक्षात्कार में यह बयान दिया था कि वे भारत-चीन की सीमा पर 2020 अप्रैल से पहले की स्थिति को दोबारा देखना चाहते हैं. यानी वे चीन-भारत सीमा पर स्टेटस को यानी जस की तस स्थिति देखना चाहते हैं. अप्रैल 2020 के पहले जस की तस स्थिति हासिल करनी है तो इसके लिए शी जिनपिंग सरकार को काफ़ी पीछे हटना पड़ेगा. यह फिलहाल स्पष्ट नहीं है कि नई दिल्ली सीमा पर जस की तस स्थिति बनाने के साथ-साथ दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को कैसे सामान्य करेगा. इसका कारण यह है कि इन दोनों देशों के बीच संबंध सामान्य होने के लिए व्यापार, निवेश और दोनों देशों के बीच सीधी उड़ान को दोबारा शुरू करने जैसे विभिन्न क्षेत्र के मसलों पर बातचीत होने के बाद ही द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य किया जा सकेगा.
यह फिलहाल स्पष्ट नहीं है कि नई दिल्ली सीमा पर जस की तस स्थिति बनाने के साथ-साथ दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को कैसे सामान्य करेगा.
यदि यह मान भी लिया जाए कि भारत और चीन के बीच LAC पर चल रहे वर्तमान संकट का कोई कूटनीतिक और लाभदायक नतीजा निकल जाता है और सीमा पर 2020 अप्रैल से पहले की स्थिति बन जाती है. इसके बावजूद दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार को लेकर काफ़ी चुनौतियां बनी हुई हैं. जैसा कि स्वर्गीय के. सुब्रह्मण्यम ने सटीकता के साथ यह कहते हुए कि, “किसी विशेष वक़्त में संबंधों की स्थिति के बावजूद,” दावा किया था कि, “भारत और चीन दोनों ही एक दूसरे के लिए पारस्परिक रूप से चुनौती बने रहेंगे.” इसका कारण यह है कि ये दोनों ही विशाल देश है और भौगोलिक रूप से एक दूसरे के बेहद करीब है. इसके अलावा दोनों की ही यह धारणा है कि वे सिविलाइजेशनल ग्रेट स्टेटस यानी महान सभ्यताओं वाले देश हैं. इसके अलावा दोनों ही देशों के पास वैश्विक एजेंडे में अपनी भूमिका को लेकर काफ़ी महत्वकांक्षाएं मौजूद हैं. इन्हीं कारणों से यह दोनों देश पारस्परिक रूप से एक-दूसरे को चुनौती देते रहेंगे. इन बातों को ध्यान में रखकर ही सुब्रमण्यम ने तर्क दिया था कि “नई दिल्ली को चीन के साथ सीधी मित्रता स्थापित करने की नीति अपनानी चाहिए” और इसके साथ ही “एशियाई और वैश्विक स्तर पर सत्ता संतुलन को माध्यम बनाकर” चीन की शक्ति को संतुलित करना चाहिए.
भारत और चीन दोनों ही एक दूसरे के लिए पारस्परिक रूप से चुनौती बने रहेंगे.” इसका कारण यह है कि ये दोनों ही विशाल देश है और भौगोलिक रूप से एक दूसरे के बेहद करीब है.
ज़्यादा चीनी निवेश को आकर्षित करके भारत की अर्थव्यवस्था को नव संजीवनी देने की कोशिश में नई दिल्ली को इस बात को कदापि नहीं भूलना चाहिए कि उसे PRC के ख़िलाफ़ अपने सशस्त्र बलों की सैन्य क्षमताओं में भी वृद्धि करनी ज़रूरी है. भारत के लिए अपनी सैन्य क्षमताओं में वृद्धि करना न केवल आवश्यक है बल्कि यह बेहद आवश्यक है. भारत इस पहलू को नज़रअंदाज नहीं कर सकता. सैन्य शक्ति ही शक्ति संतुलन का आधार होती है. भारत की सरकारों ने वास्तविक ख़तरे के सामने आने पर ही जवाबी कार्रवाई करने पर ज़्यादा ध्यान दिया है. किसी संकट विशेष के दौरान वे सामने उपजने वाली स्थिति को देखकर ही प्रतिक्रिया देती हैं. दरअसल सरकार को भारत के दुश्मनों की ओर से की जा रही हरकतों को पहचानते हुए अपनी क्षमताओं को पहले ही विकसित कर लेना चाहिए. लेकिन वह अपने दुश्मनों की हरकतों का पूर्वानुमान लगाकर तैयारी नहीं करती. वर्तमान में चीन और भारत के मोर्चे पर चल रहा संकट इस बात का सटीक उदाहरण है कि PRC को लेकर भारत के समक्ष अपनी सैन्य क्षमताओं को विकसित करने को लेकर क्या समस्याएं मौजूद हैं. अब लाइट टैंक्स के विकास का मामला ही ले लीजिए. PRC ने अपने टाइप-15 लाइट बैटल टैंक (LBT) के विकास की घोषणा की है. PRC के अनुसार उसने इस LBT का विकास 2010 के दशक में ही कर लिया था. इस टैंक के प्रोटोटाइप या वेरिएंट को सबसे पहले 2016 में हुए झुहाई एयर शो में दिखाया गया था. PRC ने इसे अंतत: 2019 में हुई पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) की नेशनल डे परेड में दुनिया के सामने पेश किया था. 2019 में PRC की ओर से डिफेंस व्हाइट पेपर यानी श्वेत पत्र जारी किया गया था. यह व्हाइट पेपर वामपंथी सरकार की ओर से जारी किया गया पहला श्वेत पत्र था. इसमें टाइप-15 लाइट टैंक को PLA के ऑर्डर ऑफ़ बैटल (ORBAT) में शामिल किए जाने की बात विशेष रूप से कही गई थी.
दूसरी ओर भारत ने काफी जल्दबाजी में एक स्वदेशी लाइट टैंक को विकसित करने का फ़ैसला किया है. ज़ोरावर LBT का विकास भी इंजन तथा ट्यूरेट सिस्टम जैसे महत्वपूर्ण पुर्जों को आयात करके किया जा रहा है.
ऐसे में नई दिल्ली को अंतरराष्ट्रीय राजनीति में बार-बार आने वाले एक अनुभव से यह सीख लेनी चाहिए कि इरादों में तेजी से बदलाव आता है, जबकि क्षमताओं को विकसित करने में काफ़ी वक़्त लगता है.
चाइना नॉर्थ इंडस्ट्रीज कारपोरेशन (NORINCO) ने टाइप-15 LBT का निर्माण किया है. इसे विकसित करने को लेकर सबूत भारत के नीति निर्माता को काफ़ी पहले से दिखाई दे रहे थे. लेकिन भारतीय नीति-निर्माताओं ने PRC की ओर से पैदा किए गए वर्तमान सीमा संकट, जो अब शांत होता जा रहा है, के एक वर्ष के बाद ही इसका संज्ञान लिया. एक वर्ष पश्चात ही नई दिल्ली ने रूस निर्मित स्प्रुट-SDM1 लाइट टैंक को ख़रीदने की घोषणा की है. इसके पश्चात सरकार ने स्वदेशी लाइट टैंक ‘ज़ोरावर’ को विकसित करने की घोषणा की है. इस लाइट टैंक का आरंभिक परीक्षण हो गया है. लेकिन इसका उत्पादन शुरू करने से पहले अभी इसके वेरिएंट की और जांच की जानी बाकी है. जांच की इस प्रक्रिया से गुज़रने के बाद ही इस लाइट टैंक का उत्पादन आरंभ होगा और इसे IA में कमीशन अर्थात तैनात किया जा सकेगा. वर्तमान में भारत ने काफ़ी जल्दबाजी में स्वदेशी लाइट टैंक ज़ोरावर LBT को विकसित करने का निर्णय लिया है. ज़ोरावर LBT का उत्पादन करने के लिए भी इंजन तथा ट्यूरेट सिस्टम जैसे महत्वपूर्ण पुर्जों का आयात करना पड़ रहा है. कुछ इसी तरह का पैटर्न अन्य क्षमताओं जैसे की हवाई और अंतरिक्ष आधारित ख़ुफ़िया और टोही (ISR) क्षमताओं को हासिल करने में भी देखा गया है. अरुणाचल प्रदेश के यांगत्से में दिसंबर 2022 में PLA की ओर से हुई घुसपैठ के बाद ही सरकार ने तीनों सशस्त्र सेनाओं के लिए 31 MQ-9Bs के रूप में ISR क्षमता हासिल करने का निर्णय लिया था. यह ISR क्षमता मिलने के बाद IA और इंडियन एयरफोर्स (IAF) को MQ-9s के वेरिएंट की वजह से LAC पर 24 घंटे सर्विलांस क्षमता बढ़ाने में सहायता मिलेगी. भारतीय अधिकारियों ने यह स्वीकार किया था कि नई दिल्ली के पास अर्थ ऑब्जर्वेशन (EO) स्पेसक्राफ्ट तथा इमेजरी इंटेलिजेंस (IMINT) के प्रति समर्पित हवाई क्षमताएं उपलब्ध नहीं थी. इसी कमज़ोरी की वजह से नई दिल्ली, यांगत्से क्षेत्र में PLA की ओर से की गई घुसपैठ को रोकने में विफ़ल रहा था. ISR के रूप में हवाई क्षमताएं MQ-9s के कारण उपलब्ध हो रही हैं, लेकिन यह अपर्याप्त है. इसका कारण यह है कि भारतीय सशस्त्र बलों को EO मिशन के लिए लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) सैटेलाइट की आवश्यकता है. इस लेखक ने 2020 में ही यह सुझाव दिया था कि भारतीय सशस्त्र बलों को कमांड, कंट्रोल, कम्प्यूटर, कम्युनिकेशन तथा इंटेलिजेंस सर्विलेंस एंड टोह (C4ISR) के लिए एक डेडिकेटेड स्मॉल सैटेलाइट (SmSat) कॉन्स्टेलेशन यानी समर्पित लघु उपग्रह समूह की आवश्यकता है.
ऊपर की गई चर्चा के अनुसार भारत जिन क्षमताओं को हासिल कर रहा है, वह PRC का मुकाबला करने के लिए आवश्यक क्षमताओं का एक छोटा सा हिस्सा मात्र है. इतनी तत्परता के साथ इन क्षमताओं को इसलिए हासिल नहीं किया जा रहा कि चीनी क्षमता के ख़िलाफ़ संतुलन हासिल करने को लेकर जोर-शोर से प्रतिबद्धता का प्रदर्शन हो, बल्कि यह LAC पर मौजूदा संकट के को ध्यान में रखकर जल्दबाजी में उससे निपटने के लिए की जा रही तैयारी ही कही जाएगी. सीमा पर संकट पहुंचने अथवा आने के बाद ही अपनी क्षमताओं में इज़ाफ़ा करने की आदत के कारण भारत प्रतिक्रियावादी देश के रूप में सामने आता है. उसका यह रवैया अप्रभावी भी साबित हो सकता है. इसका कारण यह है कि युद्ध की शुरुआत होने के बाद थर्ड पार्टी यानी तीसरा पक्ष नई दिल्ली की सहायता करने के लिए तैयार हो ही जाएगा यह ज़रूरी नहीं है. ऐसे में नई दिल्ली को अंतरराष्ट्रीय राजनीति में बार-बार आने वाले एक अनुभव से यह सीख लेनी चाहिए कि इरादों में तेजी से बदलाव आता है, जबकि क्षमताओं को विकसित करने में काफ़ी वक़्त लगता है. भारत ने LAC के लद्दाख क्षेत्र में 2020 के दौरान PRC की ओर से की गई सैन्य आक्रमण के रूप में पीड़ादायक रूप से इस स्थिति का सामना कर भी लिया है.
कार्तिक बोम्माकांति ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में सामरिक अध्ययन कार्यक्रम/स्ट्रेटेजिक स्टडीज प्रोग्राम के वरिष्ठ फेलो हैं.
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Kartik Bommakanti is a Senior Fellow with the Strategic Studies Programme. Kartik specialises in space military issues and his research is primarily centred on the ...
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