Author : Hari Bansh Jha

Published on Apr 24, 2023 Updated 0 Hours ago
नेपाल: जनगणना के नये आंकड़ों के कारण देश में हलचल

पिछले दिनों नेपाल के केंद्रीय सांख्यिकी ब्यूरो (CBS) ने प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल की मौजूदगी में अपनी 12वीं राष्ट्रीय जनगणना जारी की. जनगणना से पता चला कि नेपाल की कुल आबादी 2011 के 2 करोड़ 64 लाख के मुक़ाबले नवंबर 2021 में बढ़कर 2 करोड़ 92 लाख हो गई. आबादी में बढ़ोतरी के बावजूद जनसंख्या बढ़ने की दर 2011 के 1.35 प्रतिशत की तुलना में स्पष्ट रूप से घटकर 2021 में 0.92 प्रतिशत हो गई. नेपाल में जनसंख्या वृद्धि की दर वैश्विक औसत 1.01 प्रतिशत (2020) से भी कम है. नेपाल में जनगणना की शुरुआत 1911 में हुई थी और वास्तव में 2021 में नेपाल में जनसंख्या वृद्धि की दर अभी तक की सभी जनगणना में सबसे कम है. 

नेपाल में जनसंख्या में बढ़ोतरी की दर में कमी के पीछे कई कारण ज़िम्मेदार है. पिछले कुछ वर्षों के दौरान साक्षरता दर बढ़कर 76.3 प्रतिशत हो गई है जिसकी वजह से लोगों की जागरुकता के स्तर में बढ़ोतरी हुई है. लोग अब ज़्यादा बच्चों को जन्म देने के बदले अपने रहन-स्तर के स्तर को अधिक महत्व देते हैं. इसके अतिरिक्त नेपाल से युवाओं के दूसरे देश जाने, बच्चों के पालन-पोषण की लागत में बढ़ोतरी, काम-काजी आबादी में महिलाओं की ज़्यादा भागीदारी और ज़्यादा उम्र में शादी जैसे कारणों से भी जनसंख्या वृद्धि की दर में कमी आई है.  

नेपाल में जनसंख्या में बढ़ोतरी की दर में कमी के पीछे कई कारण ज़िम्मेदार है. पिछले कुछ वर्षों के दौरान साक्षरता दर बढ़कर 76.3 प्रतिशत हो गई है जिसकी वजह से लोगों की जागरुकता के स्तर में बढ़ोतरी हुई है. लोग अब ज़्यादा बच्चों को जन्म देने के बदले अपने रहन-स्तर के स्तर को अधिक महत्व देते हैं.

नई जनगणना की रिपोर्ट उम्रदराज़ आबादी के बारे में भी बताती है. 2011 से 2021 के बीच 14 वर्ष या उससे कम उम्र के बच्चों की आबादी 34.91 प्रतिशत से घटकर 27.83 प्रतिशत हो गई. वहीं दूसरी तरफ़ 15-59 वर्ष के काम-काजी उम्र के लोगों की जनसंख्या 2011 के 56.96 प्रतिशत से बढ़कर 2021 में 61.96 प्रतिशत हो गई. इसके साथ-साथ इस अवधि के दौरान 60 वर्ष या उससे अधिक आबादी वाले लोगों की संख्या 8.13 प्रतिशत से बढ़कर 10.21 प्रतिशत हो गई. लोगों की जीवन प्रत्याशा में बढ़ोतरी के पीछे स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े खर्च में ज़्यादा निवेश और मातृत्व देखभाल में सुधार है. हालांकि उम्रदराज़ आबादी में बढ़ोतरी के साथ बुजुर्गों के लिए सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के मामले में सरकार की ज़िम्मेदारी में इज़ाफ़ा हुआ है. वित्तीय वर्ष 2022-23 की शुरुआत से बुजुर्गों के भत्ते की पात्रता के लिए उम्र की सीमा 70 साल से घटाकर 68 साल करने की वजह से सरकार के खर्च में और बढ़ोतरी हुई है. सरकार अब बुजुर्गों के भत्ते पर बढ़ते खर्च को पूरा करने को लेकर चिंतित है जो कि सरकार के ख़ज़ाने पर एक अतिरिक्त बोझ बन गया है.  

लेकिन जनगणना की नई रिपोर्ट के जारी होने के बाद नेपाल किसी भी चीज़ से ज़्यादा जिस बात को लेकर सबसे ज़्यादा चिंतित है वो है देश के तीन भौगोलिक क्षेत्रों यानी हिमालय या पर्वतीय क्षेत्र, पहाड़ी क्षेत्र और भारत की सीमा से सटे तराई के मैदानी क्षेत्र में जनसंख्या की वृद्धि में दर्ज किया गया असंतुलन. देश के तीन भौगोलिक क्षेत्रों में तराई या मधेश क्षेत्र की आबादी सबसे ज़्यादा है जो कि नेपाल की कुल जनसंख्या का 54 प्रतिशत है. तराई के बाद पहाड़ी क्षेत्र आता है जहां कुल जनसंख्या में से लगभग 40 प्रतिशत लोग रहते हैं जबकि हिमालय के क्षेत्र में 6 प्रतिशत लोग ही बसे हुए हैं. यहां तक कि हिमालय और पहाड़ी क्षेत्रों की कुल आबादी (46 प्रतिशत) को भी मिला दिया जाए तो ये तराई (54 प्रतिशत) की जनसंख्या से कम है. 

कई लोग मानते हैं कि जनसंख्या का क्षेत्रीय असंतुलन सरकार की रिपोर्ट में दिखाए गए आंकड़े से भी ख़राब स्थिति में है. हिमालय और पहाड़ी क्षेत्रों में कम होती आबादी की स्थिति की गंभीरता को नेपाल के पूर्वी पहाड़ी क्षेत्र में स्थित चौबिसे ग्रामीण नगरपालिका की उपाध्यक्ष तनकामाया अच्छी तरह से बताती हैं. उन्होंने कहा, “ये मायने नहीं रखता है कि हम लोगों को इस इलाक़े में रखने के लिए क्या कर रहे हैं, वो इस जगह को छोड़ कर जाना चाहते हैं; ये एक राष्ट्रीय समस्या बन रही है. हम ग्रामीण विकास की बातें करते हैं लेकिन यहां कोई नहीं है जिसका विकास किया जा सके. दुख होता है जब लोग अपने पूर्वजों की ज़मीन को इस तरह छोड़ कर चले जाते हैं.”

अतीत में हिमालय और पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाली जनसंख्या तराई में रहने वाली आबादी से ज़्यादा थी. लेकिन अब हालात विपरीत हैं. हिमालय और पहाड़ी क्षेत्रों की जनसंख्या जहां कम होती जा रही है वहीं तराई क्षेत्र में ज़रूरत से ज़्यादा लोग होते जा रहे हैं. हिमालय और पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले ज़्यादातर लोगों ने अपनी परंपरागत बस्ती को छोड़ दिया है क्योंकि वो लोग इस इलाक़े से ज़्यादातर तराई क्षेत्र या हिमालय के निचले क्षेत्र जैसे कि काठमांडू में बस गए हैं. साथ ही नौकरी की तलाश में दूसरे देश जाने के बाद अधिकतर लोग लौटकर अपने घर नहीं आए हैं. 

जंगल के फैलाव में कमी

देश के सामने असली चुनौती सिर्फ़ आबादी का क्षेत्रीय असंतुलन नहीं है बल्कि उत्तर से दक्षिण की ओर लोगों के आंतरिक प्रवासन की वजह से तराई क्षेत्र में कई प्राकृतिक आपदाएं आई हैं. तराई क्षेत्र में नेपाल के कुल क्षेत्रफल का केवल 17 प्रतिशत हिस्सा आता है लेकिन यहां देश की कुल आबादी के 54 प्रतिशत लोग रहते हैं. वहीं दूसरी तरफ़ हिमालय और पहाड़ी क्षेत्र में कुल क्षेत्रफल का 83 प्रतिशत हिस्सा आता है लेकिन यहां सिर्फ़ 46 प्रतिशत आबादी रहती है. तराई क्षेत्र की तरफ़ लोगों के प्रवासन की वजह से पूरा चूरे या शिवालिक क्षेत्र और हिमालय की तलहटी अशांत है. 

चूरे और तराई- दोनों क्षेत्रों में नई बस्तियों के बनने से जंगल के फैलाव में बहुत ज़्यादा कमी आई है. चूंकि चूरे क्षेत्र पूरे तराई और उसके नीचे उत्तर भारत के लिए पानी का स्रोत हुआ करता था, इसलिए अब इन क्षेत्रों में पानी के स्तर पर ज़बरदस्त प्रभाव पड़ा है. इसके अलावा मिट्टी के कटाव और भूस्खलन ने नदी के किनारे को इस हद तक बढ़ा दिया है कि हर साल नेपाल का तराई क्षेत्र और भारत में नेपाल की सीमा से सटे इलाक़े बाढ़ के पानी में डूब जाते हैं, विशेष रूप से मॉनसून के दौरान. नेपाल से भारत में प्रवाहित होने वाली ये नदियां पहले खेतों को उपजाऊ बनाती थीं लेकिन अब मॉनसून के दौरान ये ज़्यादातर गाद लेकर बहती हैं जो कृषि भूमि को धीरे-धीरे बंजर बनाकर नुक़सान पहुंचाती हैं. 

देश के तीन भौगोलिक क्षेत्रों में तराई या मधेश क्षेत्र की आबादी सबसे ज़्यादा है जो कि नेपाल की कुल जनसंख्या का 54 प्रतिशत है. तराई के बाद पहाड़ी क्षेत्र आता है जहां कुल जनसंख्या में से लगभग 40 प्रतिशत लोग रहते हैं जबकि हिमालय के क्षेत्र में 6 प्रतिशत लोग ही बसे हुए हैं.

इस प्रकार कई तरह से नेपाल में 2021 की जनगणना के नये आंकड़े आंख खोलने वाले हैं क्योंकि इसने कई गंभीर मुद्दों जैसे कि लोगों की बढ़ती उम्र, हिमालय और पहाड़ के कई क्षेत्रों में कम होती आबादी, तराई में ज़रूरत से ज़्यादा जनसंख्या, बाढ़ और कृषि भूमि के मरुस्थलीकरण को सामने रखा है. अगर जनगणना से दूसरे महत्वपूर्ण पहलुओं जैसे कि जातीयता, भाषा और धर्म के आंकड़े भी सामने आते तो और भी उपयोगी सूचनाओं को इकट्ठा किया जा सकता था. लेकिन इसके बावजूद जनगणना ने योजना बनाने वालों और नीति निर्माताओं को बदलती जनसांख्यिकी से जुड़ी उभरती चुनौतियों का समाधान करने के लिए नीति और रणनीति बनाने के उद्देश्य से पर्याप्त जानकारी मुहैया कराई है. 

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