Author : Abhishek Sharma

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Published on Jun 29, 2024 Updated 0 Hours ago

नाटो के इंडो-पैसिफ़िक की ओर ध्यान के केंद्र में जापान और दक्षिण कोरिया के साथ रणनीतिक साझेदारी है. ‌नाटो इस क्षेत्र में नियम-आधारित वैश्विक व्यवस्था सुनिश्चित करने के साथ ही मजबूत प्रतिरोधक भी बनना चाहता है.

NATO की इंडो-पैसिफिक में नई रणनीति: जापान और दक्षिण कोरिया पर विशेष ध्यान

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NATO, यूक्रेन में रूस की घुसपैठ के कारण इस तरह की स्थितियों को लेकर बेहद सजग हो गया है क्योंकि ये स्थितियां नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की स्थिरता के लिए गंभीर चुनौती बन जाती हैं. वह अब पश्चिमी फिलीपींस और ताइवान जलसंधि में नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के ख़िलाफ़ जाकर चीन की ओर से की जाने वाली कार्रवाइयों पर भी नज़र रख रहा है. इन क्षेत्रीय घटनाओं की वजह से ही NATO, इंडो-पैसिफ़िक में अपने चार सहयोगियों-जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड - के साथ रणनीतिक साझेदारी को उन्नत करते हुए इन मुद्दों का निवारण करने के लिए आगे आने पर मजबूर हुआ है. हालांकि इंडो-पैसिफ़िक की ओर अपने झुकाव में नाटो प्रमुखता से अपने उत्तरपूर्व एशियाई साझेदारों के साथ रणनीतिक साझेदारी को विकसित करना चाहता है. यह इस क्षेत्र को लेकर उसकी दीर्घावधि योजना पर काम करने की दिशा में एक अहम कदम है.

 जापान के साथ नाटो के संबंध काफ़ी तेज गति से आगे बढ़े, लेकिन रूसी आक्रमण के पश्चात इस साझेदारी में एक नई तेजी का अनुभव किया जा रहा है.

जापान और दक्षिण कोरिया के साथ नाटो के संबंधों का विकास

 

पिछले कुछ वर्षों में जापान और दक्षिण कोरिया के साथ नाटो के संबंधों का विकास बड़ी तेजी के साथ हुआ है. हालांकि यह संबंध अपनी-अपनी दिशा में ही आगे बढ़े हैं. 1990 के बाद जापान के साथ संबंध आगे बढ़े, जबकि दक्षिण कोरिया के साथ इन संबंधों में 2010 के दशक के बाद ही सुधार देखा गया है. जापान के साथ नाटो के संबंध काफ़ी तेज गति से आगे बढ़े, लेकिन रूसी आक्रमण के पश्चात इस साझेदारी में एक नई तेजी का अनुभव किया जा रहा है. इसकी वजह टोक्यो का अविभाजित सुरक्षा संबंधी दृष्टिकोण है. टोक्यो इन भू-राजनीतिक घटनाओं को यूरेशिया और इंडो-पैसिफ़िक के साथ परस्पर रूप से जुड़ा हुआ देखता है. जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा की हिरोशिमा में G7 शिखर सम्मेलन को दिए गए संबोधन में यह साफ़ दिखाई देता है. अपने संबोधन में उन्होंने कहा था कि, ‘‘यूक्रेन, कल का पूर्वी एशिया हो सकता है.’’ इसी प्रकार 2023 में हुए नाटो शिखर सम्मेलन में किशिदा ने कहा था कि, ‘‘यूरो-अटलांटिक और इंडो-पैसिफ़िक की सुरक्षा को अलग-अलग नहीं किया जा सकता.’’ इसके साथ ही उन्होंने जोड़ा था कि, ‘‘हम, यूरो-अटलांटिक क्षेत्र के ऐसे देशों, जिनके विचार हमारे विचारों से मिलते हैं की ओर से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में ली जा रही रुचि और यहां उनके दख़ल का स्वागत करते हैं.’’ हालांकि यह रणनीतिक दृष्टिकोण नया नहीं है. इसे लेकर 1980 के दशक से ही विचार चल रहा है. उस वक़्त संगठनात्मक संबंध बनाने की कोशिश की गई थी. लेकिन अब यह साफ़ है कि टोक्यो, नाटो के साथ अपने सुरक्षा संबंधों में विविधता लाकर इन्हें गहराई से मजबूती प्रदान कर इस क्षेत्र में उभर रहे ख़तरों से निपटने की तैयारी कर रहा है.

राष्ट्रपति यूं सूक येओल के ग्लोबल पिटोल स्टेट (GPS) दृष्टिकोण के तहत दक्षिण कोरिया ने यूरोपियन यूनियन (EU) का रुख़ किया था. इसके तहत दक्षिण कोरिया अपने तत्कालिक नज़दीकी देशों से आगे जाकर अन्य देशों के साथ रणनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा साझेदारियां विकसित करना चाहता था. दक्षिण कोरिया के इस रुख़ के कारण ही उसका नाटो और उसके सदस्य देशों के साथ मजबूत संबंध बनाने में रुचि बढ़ी थी. 2023 में विल्नुस में हुए नाटो शिखर सम्मेलन के दौरान यूं ने अविभाजित सुरक्षा दृष्टिकोण को अपना समर्थन व्यक्त करते हुए कहा था, ‘‘इस हाइपर-कनेक्टेड यानी अति-संबंधित युग में यूरोप और एशिया की सुरक्षा को अलग नहीं किया जा सकता.’’ नाटो के साथ संबंधों को मजबूती प्रदान करने में रूसी घुसपैठ जैसे कारकों ने अहम भूमिका अदा की है इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता है. लेकिन बेन्स नेमेथे और सिएम किम (Saeme Kim) ने संबंधों में देखी जा रही मजबूती के लिए कुछ ढांचागत और स्थिति परक कारकों की भी पहचान की है. लेकिन जापान के रणनीतिक दृष्टिकोण के मुकाबले सियोल का दृष्टिकोण संकीर्ण है और यह केवल उत्तरपूर्वी एशिया के साथ उत्तर कोरिया की ओर से पेश होने वाली चुनौतियों पर ध्यान देता है. हालांकि चीन को लेकर चिंताएं बनी हुई है, लेकिन वह इसे लेकर सतर्क है और रणनीतिक सहयोग की संभावना को टाल रहा है ताकि बीजिंग को अनावश्यक रूप से अपनी ओर आकर्षित करने से बच सकें.

सियोल और टोक्यो ने पिछले कुछ वर्षों में नाटो के साथ सहयोग करने की दृष्टि से जलवायु परिवर्तन, इंर्फोमेशन ऑपरेशंस और सैन्य ख़ुफ़िया जानकारी साझा करने जैसे कुछ नए क्षेत्रों की पहचान की है. इन क्षेत्रों को लेकर जानकारी साझा करने को दोनों देश बेहद अहम मानते हैं. इससे पहले भी ये दोनों देश साइबर, अंतरिक्ष, उभरती हुई और क्रिटिकल तकनीकों के क्षेत्र में सहयोग कर ही रहे थे. सहयोग की सूची में यह विस्तार रणनीतिक साझेदारी के ढांचे को उन्नत करने की वजह से संभव हुआ है. अब यह साझेदारी इंडीविजुअल पार्टनरशिप एंड को-ऑपरेशन प्रोग्राम (IPCP) यानी व्यक्तिगत साझेदारी और सहयोग कार्यक्रम से उन्नत होकर इंडीविजुअली टेर्ल्ड पार्टनरशिप प्रोग्राम (ITPP) हो गई है. ITPP एक अधिक ‘रणनीतिक और लक्ष्य-केंद्रित ढांचा’- समग्र, विस्तृत और दीर्घ-अवधि (चार-वर्ष) के लिए है, जबकि IPCP सामान्य साझेदारी थी और इसकी अवधि भी अल्प (दो वर्ष) थी. साझेदारी के ढांचे में इस उन्नति के माध्यम से नाटो और उसके उत्तरपूर्वी एशियाई सहयोगियों के बीच रणनीतिक गठबंधन को पुख़्ता किया जा रहा है. इसके अलावा यह इन देशों की ओर से नाटो और उसके सदस्य देशों के साथ सुरक्षा साझेदारी को विस्तार देकर मजबूती प्रदान करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति का भी सबूत है.

ITTP ढांचे के तहत IP4 साझेदारी अब संस्थागत हो गई है और इसके वाशिंगटन, D.C. में होने वाले नाटो शिखर सम्मेलन के दौरान और भी आगे बढ़ने की संभावना है.

 

नाटो का उत्तर-पूर्वी रुख़ : क्या है इसका रणनीतिक औचित्य?

 

जापान और दक्षिण कोरिया के साथ नाटो के संबंधों को मजबूती प्रदान करने की कोशिशों को बदलते वैश्विक गठजोड़ के रणनीतिक चश्मे और नाटो तथा उसके सदस्य देशों की सुरक्षा के लिए ख़तरा बन रही यूरेशिया तथा इंडो-पैसिफ़िक की बिखरी हुई सुरक्षा स्थिति से देखा जाना चाहिए. नाटो ने 2022 के अपने रणनीतिक रुख़ में इस बढ़ते हुए ख़तरे का साफ़ तौर पर उल्लेख किया था. ‌नाटो इस क्षेत्र में बीजिंग, मास्को और इन दोनों देशों के विचारों से प्रभावित देशों के बीच बढ़ते सहयोग को देखते हुए इस बात को समझता है कि उसे भी इस क्षेत्र में पनप रहे ख़तरे से निपटने के लिए एक समग्र और प्रभावी रणनीति की आवश्यकता है. उदाहरण के लिए मॉस्को और उसे महत्वपूर्ण हथियारों की आपूर्ति करने वाले उसके मित्रों-उत्तर कोरिया और ईरान के बीच बढ़ता सहयोग नाटो की योजनाओं के लिए घातक साबित हो सकता है. इसी वजह से नाटो इंडो-पैसिफ़िक में दक्षिण कोरिया और जापान जैसे अपने विचारों से मेल खाने वाले देशों के साथ नज़दीकी संबंध स्थापित करना चाहता है. दक्षिण कोरिया और जापान ने यूक्रेन को बड़ी मात्रा में सैन्य और आर्थिक सहायता मुहैया करवाते हुए यह साबित कर दिया है कि अन्य क्षेत्र के सहयोगियों के लिए ये दोनों देश कितना महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं. नाटो के महासचिव ने दक्षिण कोरिया और जापान के साथ संबंधों का समर्थन करते हुए कहा था कि, ‘‘जब रूस जैसे देश वैश्विक नियमों और कानूनों को तार-तार कर रहे हैं, इस महत्वपूर्ण वक़्त में हमारे बीच बढ़ रहे संबंध हमारे एकजुट होकर मजबूती से जीवन और संपन्नता की सुरक्षा को लेकर हमारे दृष्टिकोण को एक मजबूत संकेत दे रहे हैं.’’

दक्षिण कोरिया और जापान ने यूक्रेन को बड़ी मात्रा में सैन्य और आर्थिक सहायता मुहैया करवाते हुए यह साबित कर दिया है कि अन्य क्षेत्र के सहयोगियों के लिए ये दोनों देश कितना महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं. 

दूसरी ओर सियोल और टोक्यो के लिए नाटो के साथ समग्र संबंधों को विकसित करना इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है ताकि यूक्रेन जैसी स्थिति को इंडो-पैसिफ़िक में दोहराने से रोका जा सके. यह साझेदारी अर्थव्यवस्था, तकनीक और सैन्य जैसे विभिन्न क्षेत्रों को एक कड़ी में जोड़ते हुए क्षेत्रीय ख़तरों के ख़िलाफ़ प्रभावी प्रतिरोधक को विकसित करने का काम करेगी. रूस को आमतौर पर इस स्थिति के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाता है. लेकिन यह बात सच नहीं है. यू कोईजूमी (Yu Koizumi) जैसे विद्वान तर्क देते है कि रूस-जापान संबंध पारम्परिक रूप से प्रतिद्वंद्विता वाले नहीं है और यही बात दक्षिण कोरिया के मामले में भी लागू होती है. भले ही उदारवादी लोकतंत्र होने की वजह से इन दोनों देशों के लिए यूक्रेन जैसी स्थिति चिंता का विषय हो सकती है, लेकिन यह इनके अस्तित्व के लिए कोई ख़तरे वाली बात नहीं है. परंतु ताइवान जलसंधि में चीन की ओर से की गई कार्रवाई को लेकर यह बात नहीं कही जा सकती है, क्योंकि यह स्थिति जापान के अस्तित्व के लिए ख़तरे वाली बात है और दक्षिण कोरिया की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर सवाल खड़े करता है .यह स्थिति दोनों देशों के लिए गंभीर राष्ट्रीय परिणाम देने वाली साबित हो सकती है. इस संदर्भ में देखा जाए तो जापान और दक्षिण कोरिया के लिए इस क्षेत्र में सैन्य दृष्टि से रूस चिंता का विषय नहीं है, बल्कि चीन ही उनके लिए महत्वपूर्ण ख़तरा बना हुआ है. अत: जापान और दक्षिण कोरिया के साथ नाटो के संबंध सिस्टेमिक फैक्टर यानी प्रणालीगत कारक की वजह से प्रभावित हैं: यह कारक है चीन का उदय, जिसे स्थितिपरक घटना नहीं कहा जा सकता. अत: इस साझेदारी को इस क्षेत्र में एक प्रतिरोधक क्षमता को मजबूती प्रदान करने की कोशिश कहा जा सकता है जो बीजिंग की ओर से होने वाली दुस्साहसिक हरकत का जवाब देने में सक्षम होगी.

 

आने वाले अवसर और नज़दीकी चुनौतियां

 

दक्षिण कोरिया और जापान, आतंकवाद विरोधी, अंतरिक्ष और हथियारों में कमी के साथ-साथ सुरक्षा और रक्षा साझेदारी से संबंधित ख़ुफ़िया जानकारी साझा करने और साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में भी साझेदारी को मजबूती प्रदान करना चाहते हैं. ITPP के मजबूत ढांचे के अंतर्गत लगातार चल रही रणनीतिक साझेदारी को संस्थागत किया जा रहा है. ऐसे में सहयोगियों के लिए विभिन्न क्षेत्रीय और वैश्विक चुनौतियों को लेकर मुद्दा-विशेष पर सहयोग और साझेदारी करना आसान हो जाएगा. सियोल और टोक्यो के साथ सुरक्षा संबंधों को मजबूत करने से साझेदारी और सफलता से आगे बढ़ेगी तथा यूरो-अटलांटिक और इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्रों के बीच रणनीतिक कड़ी स्थापित हो जाएगी. सियोल इस साझेदारी को लेकर ज़्यादा रुचि दिखा रहा है. वह नाटो के कोऑपरेटिव साइबर डिफेंस सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस (CCDOE) के साथ साइबर सुरक्षा पर काम करना चाहता है. दूसरी ओर जापान इंफॉर्मेशन यानी सूचना युद्ध और आर्थिक सुरक्षा जैसे हाइब्रिड ख़तरों से निपटने के लिए नज़दीकी सहयोग वाले संबंध स्थापित करने का इच्छुक है. इसके विपरीत नाटो एक ऐसा कूटनीतिक संबंध स्थापित करना चाहता है, जिसमें सैन्य तैनाती की व्यवस्था की बजाय सैन्य-तकनीक नवाचार, क्षमता वृद्धि और स्थितिपरक जागरूकता को साझा करने पर ध्यान दिया जाए.

जैसे जैसे हम आगे बढ़ रहे है भले ही हमें इस क्षेत्र में नाटो की सैन्य स्तर पर भूमिका में इज़ाफ़ा न दिखाई दे, लेकिन हम नाटो सदस्यों तथा जापान और दक्षिण कोरिया के बीच गहरी रणनीतिक साझेदारी अवश्य देखेंगे. 

इंडो-पैसिफ़िक की जब बात आती है तो यूक्रेन पर हुए हमले के बाद अब ताइवान पर हमले का ख़तरा भी नाटो और उसके सदस्य देशों पर मंडराता दिखाई दे रहा है. लेकिन नाटो में रूस के मामले में लेकर जैसी व्यापक सहमति देखी गई थी, फिलहाल चीन को लेकर वैसी सहमति नाटो और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में उसके सहयोगियों के बीच नहीं देखी जा रही. चीन को लेकर इसी तरह के अंतर्गत मतभेद IP4 सहयोगियों के बीच विशेषत: जापान और दक्षिण कोरिया में देखे जा रहे हैं. इसके अलावा ASEAN के सदस्य भी बाहरी हस्तक्षेप को लेकर आशंकित है, जिसकी वजह से स्थिति और भी जटिल हो जाती है. अनिश्चितता की यह स्थिति इंडो-पैसिफ़िक में मौजूद रणनीतिक चुनौतियों को साझा मानकर उसके साथ निपटने के लिए दो सहयोगियों के बीच संबंध को विकसित करने की राह में रुकावट बनकर खड़ी है. अत: जैसे जैसे हम आगे बढ़ रहे है भले ही हमें इस क्षेत्र में नाटो की सैन्य स्तर पर भूमिका में इज़ाफ़ा न दिखाई दे, लेकिन हम नाटो सदस्यों तथा जापान और दक्षिण कोरिया के बीच गहरी रणनीतिक साझेदारी अवश्य देखेंगे. यह साझेदारी इंडो-पैसिफ़िक में नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को बनाए रखने के लिए इस क्षेत्र में प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का काम करेगी.


अभिषेक शर्मा, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च असिस्टेंट हैं.

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