Published on Apr 19, 2023 Updated 0 Hours ago
कोको द्वीप पर सिग्नल इंटेलिजेंस क्षमताओं का विस्तार: चीन की साज़िश में म्यांमार भी साझेदार

इस बात के सबूत हैं कि म्यांमार के कोको द्वीप पर इलेक्ट्रॉनिक जासूसी की क्षमताएं मज़बूत की जा रही है. ये द्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में स्थित भारत की तीनों सेनाओं के अड्डे से बस 55 किलोमीटर उत्तर में स्थित है. म्यांमार की सेना ने इस बात से सख़्ती से इनकार किया है कि वो चीन की मदद कर रहा है. लेकिन, मैक्सर द्वारा जारी की गयी ताज़ा सैटेलाइट तस्वीरें दिखाती हैं कि म्यांमार के सैन्य शासक हवाई पट्टी का विस्तार करके और सिग्नल इंटेलिजेंस जुटाने का मज़बूत ढांचा खड़ा करके कोको द्वीप के अड्डे का विस्तार कर रहे है. वैसे, आधिकारिक रूप से म्यांमार में शासन कर रहे सैन्य अधिकारियों की राज्य प्रशासनिक परिषद ने भारत की उन चिंताओं को ख़ारिज कर दिया है कि कोको द्वीप पर मूलभूत ढांचे के विस्तार के तहत म्यांमार, विदेशी सेना की तैनाती या अधिक स्पष्ट रूप से कहें तो चीन को अपने सैनिक तैनात करने की इजाज़त दे रहा है. सैन्य शासकों द्वारा भारत की आशंकाएं ख़ारिज किए जाने के बावजूद, म्यांमार द्वारा कोको द्वीप पर इलेक्ट्रॉनिक जासूसी की क्षमता विकसित करने के लिए सुरक्षा की स्वतंत्र रूप से सामरिक आवश्यकता नज़र नहीं आती. हां, चीन द्वारा दी जा रही लुभावनी मदद के बदले में वो ज़रूर ऐसा कर सकता है. इस बात की संभावना सबसे अधिक है कि भले ही कोको द्वीप पर म्यांमार का नियंत्रण हो. लेकिन, यहां पर सुविधाओं का निर्माण चीन की मदद से ही किया जा रहा है, और चीन के सैन्य कर्मचारियों, ख़ास तौर से पीपुल्स लिबरेशन आर्मी स्ट्रैटेजिक सपोर्ट फोर्स (PLASSF) के तकनीकी जानकारों की पहुंच इस द्वीप तक ज़रूर है.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर म्यांमार के अलग-थलग पड़ने के कारण चीन के उसके साथ बड़ा मज़बूत संबंध है. म्यांमार, चीन से हथियार, हथियार उत्पादन सुविधाओं और नए सैन्य हथियारों के बदले में उसको जासूसी करने, निगरानी करने और जासूसी विमानों के उड़ान भरने के लिए अपनी ज़मीन और समुद्री क्षेत्र उपलब्ध करा रहा है. चीन ने सिग्नल इंटेलिजेंस (SIGINT) की सुविधाएं केवल ग्रेटर कोको द्वीप पर स्थापित की हैं, बल्कि उसने अराकान तट के पास रैमरी द्वीप पर भी इसका ढांचा खड़ा किया है; रंगून के मंकी प्वाइंट; और क्रे प्रायद्वीप के पास स्थित ज़डेटक्यी क्यून द्वीप पर भी ये सिग्नल इंटेलिजेंस का तकनीकी ढांचा स्थापित किया है. 1990 के दशक से ही म्यांमार के इरावदी में चीन की तीनों सेवाओं का एक बड़ा अड्डा है.

हालिया घटनाओं से पहले, 2017 में कोको द्वीप के इर्द गिर्द से म्यांमार ने समुद्र से काफ़ी ज़मीन हासिल की थी. जिसके बाद कोको द्वीप पर स्थित हवाई पट्टी का विस्तार 1300 मीटर से बढ़ाकर 2300 मीटर किया गया था. इस हवाई पट्टी को और बढ़ाकर 2500 मीटर किया जा सकता है. Figure 1 मे दिखाए गए ग्रेट कोको द्वीप के सबसे दक्षिणी सिरे पर एक अतिरिक्त रनवे का निर्माण किया जा रहा था (Figure 2). अब इन उपायों के साथ विमानों के खड़े होने के लिए हैंगर के निर्माण जैसी नई सुविधाएं तैयार की जा रही हैं (Figure 3). इसके अलावा इस द्वीप पर एक रडार स्टेशन (Figure 4), रिहाइश के लिए इमारतें और चीन की सेना और उसके सहयोगी के लिए भविष्य में हमला कर सकने लायक़ एक अड्डा बनाया जा रहा है. कम से कम सिग्नल इंटेलिजेंस सुविधा में जो सुधार किया गया है, उसे चीन द्वारा हासिल किए जाने की संभावना है. फिर, चीन इसकी मदद से अंडमान और निकोबार द्वीप समूह से हो रहे संचार की निगरानी कर सकेगा. इसके अलावा वो भारतीय सेना की निगरानी वाली उड़ानों और नौसेना के तैनाती के चलन का भी पता लगा सकेगा.

Figure - 1

Myanmar And China In Cahoots Coco Island Source: Damien Symon

Figure - 2

Myanmar And China In Cahoots Coco Island Source: Maxar Technologies

Figure -3

Myanmar And China In Cahoots Coco Island 

Figure – 4

Myanmar And China In Cahoots Coco Island [

Source: Maxar Technologies 

कोको द्वीप पर चल रही ये गतिविधियां चीन की हिंद महासागर संबंधी रणनीति को और धार देने का संकेत हैं. इसके पीछे चीन के इरादों का पता लगाना ख़तरनाक और मुश्किल प्रयास होगा. लेकिन, शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीन ने जोखिम लेने के प्रति रुझान बढ़ाया है और अब चीन को यह लगने लगा है कि उसकी अपनी क्षमताएं, उसकी सेना को दुश्मन की तैयारियों का परीक्षण करने और जानकारी जुटाने के अवसर प्रदान करती है. हालांकि, म्यांमार का चीन के सैन्य दुस्साहस का मोहरा बनाना, स्पष्ट रूप से भारत के लिए अशुभ संकेत है. चीन द्वारा सैन्य अड्डे बनाने से ये पता भी चल जाता है कि श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह से भारत को कैसे ख़तरे हैं. पाकिस्तान के ग्वादर और कराची की तो बात ही जाने दीजिए. चीन की सेना पहले ही भारत के दावे वाले इलाक़ों में घुसकर बैठी है. ऐसे में म्यांमार के साथ साठ-गांठ करके कोको द्वीप पर चीन द्वारा अंडमान निकोबार में भारत के सैनिक अड्डे के बेहद क़रीब जासूसी का अड्डा बनाना, उसकी भारत को डराने की कोशिश ही कहा जाएगा. अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर एकीकृत कमान के तहत भारत की तीनों सेनाओं के साझा अड्डे हैं. कोको द्वीप पर चीन द्वारा अतिरिक्त सैन्य मूलभूत का निर्माण इस बात पर मुहर लगाती हैं कि उसकी सैनिक महत्वाकांक्षाएं, ताइवान पर दावे, दक्षिणी और पूर्वी चीन सागर और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र से कहीं दूर तक फैली हुई है.

भारत के लिए इसके मायने और उसकी प्रतिक्रिया

चीन के इरादे जो भी हो, अब ये बात बिल्कुल साफ है कि चीन अपने मूलभूत ढांचे और गोपनीय जानकारी जुटाने के संसाधनों के निर्माण के ज़रिए अपनी सैन्य क्षमता और ताक़त की नुमाइश के मौक़े के तौर पर देखता है, जिससे वो युद्ध छिड़ने की सूरत में समुद्र में भारत के पलटवार करने की क्षमता को सीमित कर सके. ऐसे में भारत को म्यांमार के ख़िलाफ़ और अधिक दबाव बनाना होगा और वहां के सैन्य शासकों को ये समझाना होगा कि कोको द्वीप या फिर म्यांमार का कोई भी इलाक़ा चीन द्वारा भारत के ख़िलाफ़ और भारत के समुद्री और थल सैनिक अड्डों पर हमले करने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. अगर कोको द्वीप, चीन के लिए भारत पर थल, जल या वायु क्षेत्र में हमला करने का ठिकाना नहीं भी बनता है, तो भी हाल ही में सुविधाओं के काफ़ी विस्तार के साथ यहां से भारत के ख़िलाफ़ इलेक्ट्रॉनिक जासूसी करने के लिए इसके इस्तेमाल से अंडमान निकोबार द्वीर समूह पर स्थित भारत की तीनों सेनाओं के अड्डे के लिए चुनौतियां पैदा होंगी. भारत को अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर स्थित अपनी मौजूदा क्षमताओं की पर्याप्तता की समीक्षा करनी होगी और ऐसे उपाय करने होंगे, जो चीन की सेना के ख़िलाफ़ उसकी क्षमताओं को बढ़ा सकें. इसके अतिरिक्त चूंकि चीन, म्यांमार को अपनी साज़िश में शामिल करने में काफ़ी कामयाब रहा है. ऐसे में भारत को अपने कुछ एशियाई साझेदारों जैसे कि जापान और आसियान देशों के साथ मिलकर काम करना होगा, जिससे म्यांमार को चीन के साथ अपने रिश्ते सीमित करने की चेतावनी दी जा सके. कुल मिलाकर, म्यांमार को चीन को साफ़ साफ़ ये कहना होगा कि चीन अपने वो सैन्य हित साधने के लिए उसे अपने मोहरे के तौर देखे, जो भारत और अन्य देशों की सुरक्षा और उनके हितों के ख़िलाफ़ है.

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