Published on Sep 10, 2023 Updated 0 Hours ago

कोविड का प्रकोप झेल चुकी दुनिया, अहम आपूर्ति श्रृंखला में आई अड़चनों की गवाह बनी.

MSMEs, GVCs, और डिजिटलीकरण: G20 व्यापार और निवेश मंत्रिस्तरीय बैठक से हासिल नतीजे

G20 व्यापार और निवेश मंत्रियों की बैठक (TIMM) 25 अगस्त 2023 को जयपुर में संपन्न हुई. मंत्रियों की मीटिंग के नतीजा दस्तावेज़ (Outcome document) में सहयोग के प्रमुख क्षेत्रों को रेखांकित किया गया. इनमें आर्थिक वृद्धि और समृद्धि के लिए व्यापार, विश्व व्यापार संगठन में सुधार और व्यापार के लिए रसद शामिल हैं. सबसे उल्लेखनीय बात ये है कि दस्तावेज़ में वास्तविक नतीजा दे सकने वाले (deliverables) पांच मसलों पर ज़ोर डाला गया. इनमें वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं (GVCs) के लिए G20 जेनेरिक फ्रेमवर्क; सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यमों (MSMEs) के लिए सूचना तक पहुंच को उन्नत बनाने को लेकर जयपुर कॉल फॉर एक्शन; व्यापार दस्तावेज़ों के डिजिटलीकरण पर उच्च-स्तरीय सिद्धांत; पेशेवर सेवाओं के पारस्परिक पहचान समझौतों (MRAs) से जुड़े बेहतरीन अभ्यासों पर प्रेसिडेंसीज़ कम्पेंडियम का विकास; और 2023 में G20 मानक संवाद के आयोजन का सुझाव शामिल हैं.

अक्टूबर 2021 में कॉरपोरेट क्षेत्र के तमाम CEOs ने आपूर्ति श्रृंखला में आए संकट को कंपनी और देश की अर्थव्यवस्था के लिए “सबसे बड़े ख़तरे” के तौर पर चिन्हित किया था. 

सप्लाई चेन में अड़चन

कोविड का प्रकोप झेल चुकी दुनिया, अहम आपूर्ति श्रृंखला में आई अड़चनों की गवाह बनी. ऐसे में वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं यानी GVCs के लिए G20 जेनेरिक मैपिंग फ्रेमवर्क में मूल्य श्रृंखलाओं में भावी रुकावटों को सीमित करने के लिए समन्वय और तैयारियों का प्रस्ताव किया गया है. इस क़वायद में उच्च स्तरीय सिद्धांतों के प्रस्ताव के ज़रिए असुरक्षाओं की पहचान करते हुए पहले से ज़्यादा लचीली मूल्य श्रृंखलाएं खड़ी करने का प्रयास किया गया है. इन उच्च स्तरीय सिद्धांतों में विश्लेषण, सहभागिता, समन्वय, तैयारी, समावेश और टिकाऊ विकास प्रमुख हैं. इस रूपरेखा में वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में अल्प-विकसित देशों (LDCs) द्वारा पहले से अधिक भागीदारी और ज़्यादा मूल्य निर्माण किए जाने पर भी ज़ोर दिया गया है. वैसे तो ये ढांचा अब भी स्वैच्छिक और ग़ैर-बाध्यकारी है, लेकिन इसमें पहले से ज़्यादा लचीली मूल्य श्रृंखलाओं के निर्माण को लेकर समन्वित प्रयास के मार्गदर्शक सिद्धांत प्रस्तुत किए गए हैं. अक्टूबर 2021 में कॉरपोरेट क्षेत्र के तमाम CEOs ने आपूर्ति श्रृंखला में आए संकट को कंपनी और देश की अर्थव्यवस्था के लिए “सबसे बड़े ख़तरे” के तौर पर चिन्हित किया था. आपूर्ति श्रृंखलाओं में रुकावटों को भू-राजनीतिक अस्थिरता, महामारी और श्रम की किल्लत से भी बड़ा ख़तरा माना गया था. कारोबार जगत ने अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुरक्षित बनाने के लिए जोख़िम प्रबंधन के नए तौर-तरीक़े अपना लिए. इनमें ऊपरी प्रवाह (upstream) और निचली प्रवाह (downstream) की ओर पहले से ज़्यादा एकीकरण के साथ-साथ पूरी क़वायद में विविधता लाने (diversification) के प्रयास शामिल हैं. मिसाल के तौर पर, अमेरिका की एक परिधान कंपनी ने अपने परिधानों के खुदरा व्यापारियों को आपूर्ति श्रृंखला में ज़्यादा नियंत्रण देने के मक़सद से एक रसद कंपनी का ही अधिग्रहण कर लिया. इसी तरह अन्य देशों ने अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं को ज़्यादा लचीला बनाने के लिए विविधीकरण और नए स्थानों पर जाने यानी रिलोकेशन की रणनीतियों का सहारा लिया. भारत समेत ग्लोबल साउथ यानी अल्प-विकसित और विकासशील दुनिया की अनेक अर्थव्यवस्थाओं को आपूर्ति श्रृंखलाओं में इस तरह के बदलावों से निरंतर लाभ हो रहा है. वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में भरोसेमंद साझेदारों के तौर पर भारत और G20 के देश, ठोस मूल्य श्रृंखलाएं तैयार करने से जुड़े विमर्श को आकार देने में अहम भूमिका निभा रहे हैं. यही वजह है कि ठोस आपूर्ति श्रृंखलाएं तैयार करने को लेकर तमाम देशों के लिए अपनी क़वायदों में तालमेल बिठाना और सूचनाएं साझा करना अहम हो जाता है.

जयपुर कॉल फॉर एक्शन, MSMEs के सामने खड़ी सूचना की असमानता से जुड़ी साझा चुनौती को दर्शाते हैं, जो अंतरराष्ट्रीय व्यापार में उनकी हिस्सेदारी में रोड़े अटकाते हैं. 

दूसरा, सूचना तक MSMEs की पहुंच को उन्नत करने के लिए जयपुर कॉल फॉर एक्शन का मक़सद, MSMEs के लिए व्यापार-आधारित सूचना को ज़्याद सुलभ बनाना और उन्हें अंतरराष्ट्रीय व्यापार में आगे और एकीकृत करना है. संयुक्त राष्ट्र (UN) के मुताबिक “सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यम, कारोबार के 90 प्रतिशत, रोज़गार के 60 से 70 प्रतिशत और विश्व स्तर पर सकल घरेलू उत्पाद के 50 प्रतिशत हिस्से की नुमाइंदगी करते हैं.” वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में अहम योगदान के बावजूद MSMEs को अपने कारोबार का संचालन करने में अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. जयपुर कॉल फॉर एक्शन, MSMEs के सामने खड़ी सूचना की असमानता से जुड़ी साझा चुनौती को दर्शाते हैं, जो अंतरराष्ट्रीय व्यापार में उनकी हिस्सेदारी में रोड़े अटकाते हैं. कॉल फॉर एक्शन से जुड़ी इस क़वायद को वैश्विक व्यापार हेल्पडेस्क को उन्नत बनाकर कार्यान्वित किया जाएगा. इस हेल्पडेस्क को अंतरराष्ट्रीय व्यापार केंद्र (ITC), व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) और विश्व व्यापार संगठन (WTO) द्वारा चालू किया गया है. लिहाज़ा, प्रतिभागी देश, वैश्विक व्यापार हेल्पडेस्क को “MSMEs के लिए प्रासंगिक उपयुक्त और एकत्रित व्यापार से जुड़ी सूचना एक इकलौते पोर्टल या/और व्यापार में शामिल MSMEs के लिए प्रासंगिक सरकारी वेबसाइट्स में लिंक्स की ग़ैर-संपूर्ण सूची” उपलब्ध करा सकते हैं. इतना ही नहीं, 2024 से ITC अपने साझा सलाहकारी समूह को सालाना प्रगति रिपोर्ट भी मुहैया कराना शुरू कर देगा. इसमें कॉल फॉर एक्शन के संदर्भ में किए गए प्रयासों का लेखा-जोखा दिया जाएगा. MSMEs, संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को हासिल करने में अहम भूमिका निभाते हैं. ‘सम्मानजनक कार्य और आर्थिक वृद्धि’ से जुड़ा लक्ष्य 8 इसमें बेहद ख़ास है. भारत में MSMEs 90 प्रतिशत कारोबार में योगदान देते हैं, और 12 करोड़ से भी ज़्यादा लोगों को रोज़गार प्रदान करते हैं. MSMEs रोज़गार निर्माण के इंजन के तौर पर काम करते हैं, जो ख़ासतौर से असुरक्षित हालातों में रहने वाले समूहों के लिए आजीविका के अवसर उत्पन्न करते हैं. लिहाज़ा सूचना तक MSMEs की पहुंच को आगे बढ़ाने के लिए कॉल फॉर एक्शन, अंतरराष्ट्रीय व्यापार में इन उद्यमों को और एकीकृत करेगा. इसका लोगों की आजीविकाओं और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं पर कुल मिलाकर सकारात्मक असर हो सकता है.

डिजिटल बुनियादी ढांचा

तीसरा, व्यापार दस्तावेज़ों के डिजिटलीकरण पर उच्च-स्तरीय सिद्धांत, 10 ग़ैर-बाध्याकारी सिद्धांतों का समूह हैं, जो व्यापार दस्तावेज़ों के डिजिटलीकरण की दिशा में देशों द्वारा की जा रही क़वायदों का मार्गदर्शन करते हैं. इनमें तटस्थता, सुरक्षा, भरोसा, इंटर-ऑपरेबिलिटी, डेटा सुरक्षा और निजता, विश्वसनीयता, स्वैच्छिक डेटा शेयरिंग, सहभागिता, पता या सुराग लगाने की क्षमता (traceability) और पैमाना बढ़ाने की क्षमता (scalability) शामिल हैं. डिजिटल की ओर रुख़ करने को “परिवर्तनकारी अवसर” के रूप में दर्ज किया गया है. नतीजा दस्तावेज़ में ख़ासतौर से कहा गया है कि “इन सिद्धांतों के दायरे में आने वाले व्यापार दस्तावेज़ परिवहन, अदायगियों, बीमा, भंडारण और संबंधित रसद सेवाओं को लेकर अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक लेन-देनों से जुड़ते हैं; ये सिद्धांत अनिवार्य रूप से सरकारी दस्तावेज़ों पर लागू नहीं होता, जिन्हें सीमा-पार व्यापार के लिए सरकारी प्राधिकार द्वारा जारी या नियंत्रित की जाती है या उनके द्वारा उसकी ज़रूरत रखी जाती है.” दस्तावेज़ में ज़िक्र है कि G20 के देश इन सिद्धातों को क्रियान्वित करने की दिशा में प्रयास करेंगे और दूसरे देशों को भी इस पर विचार करने को प्रेरित करेंगे. इस दस्तावेज़ में उन चुनौतियों की पहचान की गई है जिनका परिवर्तनकारी क़वायदों में लगे कुछ देशों को सामना करना पड़ सकता है. इनमें डिजिटल बुनियादी ढांचे का अभाव, सीमित डिजिटल कनेक्टिविटी, डिजिटल तौर-तरीक़े अपनाने की ऊंची लागत, और डिजिटल कौशल में अंतर (ख़ासतौर से सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यमों में) शामिल हैं. वैसे तो ये सिद्धांत बाध्यकारी नहीं हैं, फिर भी डिजिटलीकरण से अर्थव्यवस्थाओं को मौद्रिक लाभ होने की उम्मीद है. एक रिपोर्ट का अनुमान है कि “समुद्री मालवाहक जहाज़ पर माल लदान के इलेक्ट्रॉनिक बिल से प्रत्यक्ष लागतों में 6.5 अरब अमेरिकी डॉलर की बचत हो सकती है, और वैश्विक व्यापार में 40 अरब डॉलर की क्षमता लाई जा सकती है.” दुनिया भर में डिजिटल तौर-तरीक़े अपनाए जाने के बढ़ते प्रचलन के बावजूद व्यापार प्रक्रिया अब भी काग़ज़ी दस्तावेज़ों पर निर्भर है. इन दस्तावेज़ों में ग़लतियां होने की आशंकाएं ज़्यादा होती हैं, और मैनुअल प्रॉसेसिंग की वजह से माल और खेप (consignments) में देरी हो सकती है, जिससे रसद की लागत बढ़ जाती है. व्यापार दस्तावेज़ों का डिजिटलीकरण करके दुनिया के देश अंतरराष्ट्रीय व्यापार को बढ़ा सकते हैं, नियामक अनुपालना को सुचारू बना सकते हैं, यहां तक कि आपूर्ति श्रृंखलाओं को पहले से ज़्यादा लोचदार भी बना सकते हैं. इस प्रकार, व्यापार दस्तावेज़ों के डिजिटलीकरण पर उच्च-स्तरीय सिद्धांत, देशों के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत के तौर पर काम कर सकते हैं. इसके बूते वो व्यापार दस्तावेज़ों के डिजिटलीकरण की क़वायदों में तालमेल बिठा सकते हैं. इससे डिजिटल दस्तावेज़ों की पारस्परिक पहचान और इंटर-ऑपरेबिलिटी सुनिश्चित होगी. जैसे-जैसे दुनिया के देश दस्तावेज़ों का डिजिटलीकरण करेंगे, ये सिद्धांत वैश्विक मानकों को आकार देने में भी मददगार साबित होंगे. भारत ने भी अपने व्यापार लेखा-जोखा प्रक्रिया के डिजिटलीकरण पर ध्यान लगाया है. भारत की ताज़ा विदेश व्यापार नीति, व्यापार दस्तावेज़ों के डिजिटलीकरण और पेपरलेस फाइलिंग पर ज़ोर देती है.

ये कार्य-उन्मुख डेलिवरेबल्स कारोबार को सुविधाजनक बना सकते हैं और देशों के बीच अंतरराष्ट्रीय व्यापार में बढ़ोतरी ला सकते हैं.

वास्तविक नतीजा दे सकने वाले ऊपर बताए गए उपायों के अलावा G20 के व्यापार और निवेश मंत्रियों ने “पेशेवर सेवाओं के लिए पारस्परिक पहचान समझौतों (MRAs) पर बेहतर अभ्यासों की स्वैच्छिक शेयरिंग” का स्वागत करते हुए “पेशेवर सेवाओं के लिए MRAs पर प्रेसिडेंसीज़ कम्पेंडियम ऑफ बेस्ट प्रैक्टिसेज़ के विकास का समर्थन” किया है. साथ ही उन्होंने “2023 में G20 मानक संवाद आयोजित करने के अध्यक्ष के सुझाव का भी स्वागत किया है.”

G20 समूह के देशों के साथ-साथ इसके बाहर के देशों को G20 व्यापार और निवेश पर मंत्रियों की बैठक में सहमति का केंद्र बने वास्तविक नतीजा दे सकने वाले उपायों से काफ़ी लाभ मिलने वाला है. नतीजा दस्तावेज़ में जिन बिंदुओं का ज़िक्र किया गया है, उनमें से कई वैश्विक स्तर पर लंबे समय से लंबित मसले रहे हैं. ये कार्य-उन्मुख डेलिवरेबल्स कारोबार को सुविधाजनक बना सकते हैं और देशों के बीच अंतरराष्ट्रीय व्यापार में बढ़ोतरी ला सकते हैं. ये डेलिवरेबल्स ऐसे साझा मानक तैयार करने की बुनियाद रखते हैं, जिनका देश अपनी घरेलू नीतियां बनाते समय पालन कर सकते हैं. ये दुनिया के देशों द्वारा कंधे से कंधा मिलाकर काम करने और समन्वित क़दम उठाने की इच्छा का प्रदर्शन करते हैं.


उर्वी टेम्बे ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं

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