Author : Vivek Mishra

Published on May 18, 2022 Updated 0 Hours ago

यूक्रेन संकट पर भारत के अलग दृष्टिकोण के बावजूद, यूरोप भारत के साथ विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग के लिए उत्साहित है.

मोदी की यूरोप यात्रा: रूस पर भारत की अलग दृष्टि के साथ सामंजस्य की गुंजाइश

भारत-ईयू संबंधों को एक नयी गति मिली है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीन अहम यूरोपीय देशों जर्मनी, डेनमार्क और फ्रांस की हालिया यात्रा इस ऊर्जा को और बढ़ाने की कोशिश थी. इस यात्रा से ठीक पहले यूरोपीय कमीशन की अध्यक्ष उर्सुला वॉन देर लियेन दिल्ली में तीन दिवसीय ‘रायसीना डायलॉग’ के दौरान भारत आयीं. वॉन देर लियेन की यात्रा भारत-ईयू रणनीतिक साझेदारी की प्रगति की समीक्षा के लिए एक अहम मौक़ा साबित हुई, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा ने न सिर्फ़ तीन अहम यूरोपीय साझेदारों, बल्कि पूरे यूरोपीय संघ (ईयू) के साथ भारत के संबंधों की नयी दिशा का ख़ाका तैयार किया. ख़ास तौर पर, प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा ने यह सुनिश्चित किया कि जर्मनी, डेनमार्क और फ्रांस के साथ भारत के संबंध नयी ऊर्जा से भरे रहें.

भारत के विदेश मंत्रालय और जर्मनी के विदेश कार्यालय के बीच इनक्रिप्टेड चैनलों के ज़रिये गोपनीय सूचनाओं के आदान-प्रदान व उनकी साझा हिफ़ाजत तथा हरित व टिकाऊ विकास साझेदारी स्थापित करने को लेकर आशय की दो संयुक्त घोषणाओं (जेडीआइ) पर दस्तख़त हुए.

पहला छोटा पड़ाव जर्मनी था, जहां द्विपक्षीय संबंधों में बेहद अहम प्रगति हुई. यह यात्रा प्रतीकात्मक दृष्टि के साथ-साथ ठोस नतीजों के लिहाज़ से महत्वपूर्ण थी. छठे भारत-जर्मनी अंतर-सरकारी परामर्श (आईजीसी) ने ओलाफ शॉल्त्स के चांसलर बनने के बाद दोनों देशों को सर्वोच्च स्तर पर संलग्न होने का मौक़ा मुहैया कराया. छठी आईजीसी ने बहुत तरह के मुद्दों को समेटने की कोशिश की, जिसने भारत-जर्मनी रणनीतिक साझेदारी की संभावनाओं को विस्तृत किया. विस्तृत द्विपक्षीय एजेंडे के तहत महत्वपूर्ण क्षेत्रों में इन बहुपक्षीय हितों पर साझी प्रतिबद्धता थी: हरित एवं टिकाऊ विकास; व्यापार, निवेश तथा डिजिटल रूपांतरण; वैश्विक स्वास्थ्य; राजनीतिक एवं अकादमिक आदान-प्रदान; वैज्ञानिक सहयोग; श्रमबल और लोगों की आवाजाही. जर्मनी ने भारत को उसके 2030 के जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने में मदद के लिए 10 अरब यूरो अतिरिक्त देने का वादा किया. इससे भारत की जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम होने की उम्मीद है. भारत के विदेश मंत्रालय और जर्मनी के विदेश कार्यालय के बीच इनक्रिप्टेड चैनलों के ज़रिये गोपनीय सूचनाओं के आदान-प्रदान व उनकी साझा हिफ़ाजत तथा हरित व टिकाऊ विकास साझेदारी स्थापित करने को लेकर आशय की दो संयुक्त घोषणाओं (जेडीआइ) पर दस्तख़त हुए. ये ऐसे क़दम हैं जिनसे संवेदनशील मुद्दों पर आपसी संलग्नता और सूचनाओं के आदान-प्रदान के साथ-साथ मज़बूत संबंधों के लिए भविष्य के एक रोडमैप के निर्माण के ज़रिये लंबी अवधि में भरोसे में वृद्धि की उम्मीद है. इन समझौतों से परे, चूंकि जर्मनी यूक्रेन-रूस युद्ध के मद्देनज़र यूरोप में अपनी बदली हुई विदेश और सुरक्षा नीतियों के साथ एक अभूतपूर्व पुनर्समायोजन (recalibration) चाहता है, भारत के साथ उसके रिश्तों में उदार रवैया एक स्पष्ट हिस्सा रखता है. 

अक्षय ऊर्जा, व्यापार, संस्कृति, जलवायु और स्वास्थ्य के अलावा, हरित रणनीतिक साझेदारी प्रधानमंत्री मोदी की डेनमार्क यात्रा की एक असाधारण चीज़ रही. भारत और डेनमार्क के बीच सरकार-से-सरकार के कम से कम सात समझौतों पर दस्तख़त भी हुए. प्रधानमंत्री मोदी की डेनमार्क यात्रा द्विपक्षीय एजेंडे से परे दूसरे नॉर्डिक देशों तक पहुंचने के लिहाज़ से भी अच्छी रही. दूसरे भारत-नॉर्डिक शिखर सम्मेलन ने टिकाऊपन (sustainability), जलवायु परिवर्तन, डिजिटलीकरण, नवाचार, तकनीक तथा अक्षय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में इन देशों की ताक़त से लाभ उठाने के मौक़े तलाशे. नॉर्डिक देशों तक भारत के पहुंचने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा आर्कटिक क्षेत्र में सहयोग है. जलवायु परिवर्तन आर्कटिक में ज़्यादातर देशों के दृष्टिकोण को नयी दिशा के लिए बाध्य कर रहा है. नेवीगेशन (जहाज़ों के गुज़रने) और खोज के नये अवसरों को देखते हुए, भारत की नॉर्डिक देशों के साथ साझेदारी अगले दशक में पर्यावरणीय, वैज्ञानिक तथा रणनीतिक राह खोल सकती है. आर्कटिक काउंसिल के एक पर्यवेक्षक के रूप में, भारत की नॉर्डिक देशों के साथ व्यापक संलग्नता तेज़ी से बदलती क्षेत्रीय गतिकी में उसकी स्थिति को मज़बूत करने में एक बड़ी सफलता दिलायेगी.

नॉर्डिक देशों तक भारत के पहुंचने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा आर्कटिक क्षेत्र में सहयोग है. जलवायु परिवर्तन आर्कटिक में ज़्यादातर देशों के दृष्टिकोण को नयी दिशा के लिए बाध्य कर रहा है. नेवीगेशन (जहाज़ों के गुज़रने) और खोज के नये अवसरों को देखते हुए, भारत की नॉर्डिक देशों के साथ साझेदारी अगले दशक में पर्यावरणीय, वैज्ञानिक तथा रणनीतिक राह खोल सकती है.

फ्रांस, जो कि यूरोप में भारत के लिए सबसे मज़बूत लंगरों (ऐंकर) में से एक है, तीन देशों की यात्रा की आख़िरी मंज़िल के रूप में बिल्कुल उपयुक्त था. द्विपक्षीय रिश्ते के दूसरे पहलुओं जैसे साइबर सुरक्षा, स्टार्ट-अप्स, आतंकवाद का मुक़ाबला, ब्लू इकोनॉमी (समुद्री अर्थव्यवस्था), शहरी विकास तथा जी-20 जैसे महत्वपूर्ण बहुपक्षीय मंचों पर तालमेल के अलावा, विचार-विमर्श में हिंद-प्रशांत में साझेदारी की सशक्त पुनरावृत्ति देखने को मिली.

बदलते यूरोपीय हित

प्रधानमंत्री मोदी की यूरोप यात्रा भारत और यूरोप के बीच संबंधों में एक नयी गतिशीलता को दिखाती है. मुख्यत: ऐसा इसलिए है कि यूरोपीय महाद्वीप संघर्ष की अवस्था में है और उसने राजनीतिक, राजनयिक तथा सुरक्षा क्षेत्र में गंभीर पुनर्समायोजन चाहा है. भारत के लिए, यूरोप में इन पुनर्समायोजनों के दो तरह के प्रभाव हो सकते हैं. पहला पश्चिम के साथ उसके संबंधों पर असर डाल सकता है और दूसरा रूस के साथ उसके संबंधों पर. यूक्रेन के मुद्दे पर एक स्वतंत्र रुख अपनाने और किसी एक पक्ष का खुलकर समर्थन नहीं करने की भारत की रणनीति को राजनीतिक विभाजन के दोनों ओर अपने व्यापारिक फोकस को आगे बढ़ाने के लिए तैयार किया जा सकता है. यात्रा के दौरान की गयी घोषणाओं से भी यह स्पष्ट था. इन घोषणाओं में ईयू-भारत व्यापार एवं तकनीक आयोग की शुरुआत भी शामिल थी, जिसका मक़सद विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग को सुगम बनाना और परामर्शी भूमिका मुहैया कराना है. जैसा कि नीचे दिया गया ग्राफ दिखाता है, यूरोप के साथ निर्यात और आयात में भारत की हिस्सेदारी दुनिया के शीर्ष 10 देशों में आती है.

प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के दौरान तीनों यूरोपीय देशों के साथ भारत की संलग्नता को जोड़ने वाले जो साझा तार थे, उनमें टिकाऊ विकास, महामारी बाद पुनरुद्धार, खाद्य सुरक्षा, प्रवासन, आवाजाही तथा हिंद-प्रशांत की वैश्विक स्थिरता शामिल हैं. यात्रा ने दिखाया कि यूरोपीय संघ और भारत दोनों के उभरते संयुक्त रणनीतिक उद्देश्य के लिए हिंद-प्रशांत केंद्रीय भूमिका में क्यों बना हुआ है. 

तीन देशों की इस यात्रा की एक अहम लेकिन कम चर्चित उपलब्धि केंद्रीयता थी जो भारत ने उभरती यूरोपीय राजनीति में हासिल की है, ख़ासकर वह जो रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत के विशिष्ट रुख के संदर्भ में किसी राजनीतिक निंदा की जगह भारत को गले लगाने को प्राथमिकता देती है. व्यापारिक रिश्तों को बेहतर करने, सप्लाई चेन्स को मज़बूत बनाने तथा भारत को एक बड़ा विनिर्माण केंद्र बनाने पर भारत का ध्यान एक मजबूत उद्देश्य बना हुआ है, भले ही वह जारी रूसी हमलों और ट्रांस-अटलांटिक जवाबी कार्रवाइयों के बीच क्रॉसफायर से बच निकलने की कोशिश में लगा है.

प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के दौरान तीनों यूरोपीय देशों के साथ भारत की संलग्नता को जोड़ने वाले जो साझा तार थे, उनमें टिकाऊ विकास, महामारी बाद पुनरुद्धार, खाद्य सुरक्षा, प्रवासन, आवाजाही तथा हिंद-प्रशांत की वैश्विक स्थिरता शामिल हैं. यात्रा ने दिखाया कि यूरोपीय संघ और भारत दोनों के उभरते संयुक्त रणनीतिक उद्देश्य के लिए हिंद-प्रशांत केंद्रीय भूमिका में क्यों बना हुआ है. डेनमार्क, जर्मनी और फ्रांस सभी के एजेंडों में हिंद-प्रशांत का प्रस्ताव मज़बूती से बना रहा. एक भारतीय नौसैनिक पोत की दोस्ताना यात्रा का जर्मनी अगले साल जर्मन बंदरगाह पर स्वागत करेगा, जबकि फ्रांस ने हिंद-प्रशांत में भारत के साथ अपने द्विपक्षीय एजेंडे को इस क्षेत्र की व्यापक यूरोपीय दृष्टि के अनुरूप बनाने की कोशिश की. ईयू के हिंद-प्रशांत पर उभरते दृष्टिकोण को विभिन्न यूरोपीय शक्तियों की अपनी-अपनी हिंद-प्रशांत रणनीति ने और मज़बूती प्रदान की है. जिन देशों की प्रधानमंत्री मोदी ने यात्रा की, उनमें से फ्रांस और जर्मनी इस लगातार जटिल हो रहे क्षेत्र में आगे बढ़ने की अपनी दृष्टि का ख़ाका पहले ही खींच चुके हैं, जबकि डेनमार्क हिंद-प्रशांत क्षेत्र को रणनीतिक रूप से अपनाने की सोच रहा है. 

यूरोप में जारी युद्ध से उत्पन्न आवश्यकताओं पर सवार होकर, यूरोप में एक ऐसी संकीर्ण दृष्टि का भय धीरे-धीरे व्याप्त हो रहा है जो महाद्वीपीय विश्वदृष्टि को अमेरिका से रूस तक फैले क्षैतिज रणनीतिक भूदृश्य तक सीमित करना चाहती है. भारत जैसे मज़बूत एशियाई साझेदारों के साथ साझेदारी यूरोप को उसकी पहुंच के दायरे का ऊर्ध्वाधरीकरण (verticalisation) मुहैया कराती है. यूरोपीय देशों के लिए, भारत के साथ मज़बूत रिश्ता हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक लंगर उपलब्ध कराता है. एक ऐसे वक़्त में जब यूरोप का प्राथमिक फोकस यूक्रेन में संकट की ओर है, भारत के साथ एक व्यापक और भविष्योन्मुखी एजेंडे, जो युद्ध की मजबूरियों से परे जाता हो, को रेखांकित करना बहुपक्षीय हितों में विविधता बनाये रखने और उन्हें मज़बूत सहारा प्रदान करने की यूरोप की अपनी इच्छा को बताता है.

एक ऐसे वक़्त में जब यूरोप का प्राथमिक फोकस यूक्रेन में संकट की ओर है, भारत के साथ एक व्यापक और भविष्योन्मुखी एजेंडे, जो युद्ध की मजबूरियों से परे जाता हो, को रेखांकित करना बहुपक्षीय हितों में विविधता बनाये रखने और उन्हें मज़बूत सहारा प्रदान करने की यूरोप की अपनी इच्छा को बताता है.

यात्रा के दौरान यूक्रेन का साया मंडराता रहा, लेकिन विकास और साझेदारी की व्यापक दृष्टि के साथ यूरोप में कठिनाइयों को साधने की भारत की क्षमता यह साबित करने के लिए काफ़ी है कि दोनों भिन्न व विरोधी उद्देश्य लेकर एक-दूसरे के साथ शायद काम नहीं कर सकते. अभी जारी युद्ध की तात्कालिकता से परे, भारत और यूरोप वैश्विक खाद्य सुरक्षा, अफ़ग़ानिस्तान में अस्थिरता तथा हिंद-प्रशांत में शक्ति संतुलन की स्थिरता के क्षेत्रों में दीर्घकालिक दृष्टि के साथ एकजुट हैं.

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Vivek Mishra

Vivek Mishra

Vivek Mishra is a Fellow with ORF’s Strategic Studies Programme. His research interests include America in the Indian Ocean and Indo-Pacific and Asia-Pacific regions, particularly ...

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