Author : Kabir Taneja

Published on Nov 14, 2017 Updated 0 Hours ago

आईएसआईएस को केवल भारतीय विदेश नीति के चश्मे से ही देखना पयाप्त नहीं है, इसके खतरे का अंदाजा लगाने के लिए हमें दृष्टिकोण व्यापक करना होगा।

आईएसआईएसः एक सोच और उसका अमल

इस शोधपत्र का उद्देश्य आईएसआईएस (इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया या इस्लामिक स्टेट) के लक्ष्य और 21वीं सदी के सबसे खतरनाक आतंकवादी संगठन के तौर पर आज की इसकी स्थिति के संबंध में भारतीय बौद्धिक जगत में जागरुकता के अभाव को दूर करना है। भारतीय विदेश नीति और सुरक्षा के लिहाज से इस विषय पर सूचना और साहित्य की कमी नहीं है, लेकिन यहां कोशिश की गई है मध्य-पूर्व के नजरिए से इस विषय की पड़ताल करने की। इस आतंकवादी संगठन और इसकी सांगठनिक बारीकियों, कार्यशैली के तौर-तरीकों तथा अधिनस्थ इलाकों पर शासन के अंदाज के साथ ही इराक और सीरिया को ले कर इसके अलग-अलग नजरिये व ऑनलाइन मीडिया का अभूतपूर्व उपयोग कर इस पर चलने वाले प्रोपगंडा के जरिए अपने प्रसार को भौगोलिक सीमाओं के पार ले जाने के बारे में सही समझ बनाने के लिए यह बेहद जरूरी है कि हम इसे सिर्फ भारतीय विदेश नीति और सुरक्षा के नजरिये से ही नहीं देखें। 

परिचय

मोसूल का इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) के शिकंजे से मुक्त होना सिर्फ इराक और सीरिया ही नहीं बल्कि व्यापक पश्चिम एशिया क्षेत्र के लिहाज से एक अहम बिंदू हो सकता है। आईएसआईएस को 2014 से 2016 के अपने उभार की अवधि के दौरान बड़े भूभाग पर कब्जा जमाने में कामयाबी मिली। हालांकि अपने विस्तार के साथ ही आईएसआईएस का अपने तेज रफ्तार विकास के मॉडल से नियंत्रण खोता गया। अब ज्यादा से ज्यादा चर्चा इस बात पर हो रही है कि आईएसआईएस के बाद का इराक और सीरिया कैसा होगा, क्योंकि अब शासन कर रहे अर्ध-राज्य के तौर पर इस्लामिक स्टेट के बने रहने को ले कर अनिश्चितता पैदा हो गई है। ऐसे में अब सवाल उठना लाजमी है कि शासन करने वाले आईएसआईएस के अर्ध-राज्य के ढांचे और वैचारिक ब्रांड का क्या होगा?

यह शोध पत्र इस्लामिक स्टेट के उत्थान और अब लाजमी लग रहे पतन की रूप-रेखा पेश करने की कोशिश करता है ताकि इसकी आधारशिला रखे जाने से ले कर मोसूल के अंतिम युद्ध तक का इसका पूरा विकास-क्रम सामने आ सके। आईएसआईएस का पतन अगर होता है, तो इसका नतीजा क्या होगा, क्षेत्रीय रूप से इसका क्या मतलब होगा और इसका असर कहां तक होगा, इन सब के बारे में यहां कुछ ठोस अंदाजा लगाने की कोशिश की गई है। इसके लिए इस्लामिक स्टेट की विचरधारा की पृष्ठभूमि को तलाशने और इस आतंकवादी आंदोलन के डीेएनए की पहचान करने के साथ ही इसके जन्म और विकास में सहायता करने वाले क्षेत्रीय, राजनीतिक, धार्मिक और अंतरराष्ट्रीय कारकों को रखने की भी कोशिश की गई है। कुल मिला कर इस शोध पत्र ने विभिन्न पारंपरिक और गैर-पारंपरिक (ज्यादातर सोशल मीडिया आंकड़ों) को स्रोत के तौर पर इस्तेमाल किया है। यह लेखक अपनी एक कमी की ओर भी ध्यान दिलाना चाहता है कि अध्ययन, रिपोर्ट और पुस्तकों के तौर पर ज्यादातर पारंपरिक स्रोत अंग्रेजी के ही इस्तेमाल किए गए हैं, क्योंकि इसे अरबी या दूसरी क्षेत्रीय भाषाएं ज्ञात नहीं हैं। आईएसआईएस पर गौर करने का एक और पहलू है जिहाद, इस्लाम, आतंकवाद, राजद्रोह और उग्रवाद के बीच अंतर करना और जिहाद और क्षेत्रीय राजनीति का एक व्यापक ऐतिहासिक संदर्भ देना, लेकिन यह इस शोधपत्र के दायरे से बाहर है।

अब सवाल उठना लाजमी है कि शासन करने वाले आईएसआईएस के अर्ध-राज्य के ढांचे और वैचारिक ब्रांड का क्या होगा?

यह शोध पत्र पांच खंड में है, शुरुआत होती है आईएसआईएस के संंक्षिप्त ऐतिहासिक संदर्भ से। यह कहां से आया और इतने क्रूर लेकिन तेज रफ्तार से यह आगे कैसे बढ़ा जैसे सवालों का जवाब तलाशने में इससे आसानी होगी। अगला खंड वो है जो संभवतः आईएसआईएस को समझने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है और वह है वे लोग जिन्होंने इस विचारधारा को क्षेत्र विशेष में प्रासंगिक उग्रवादी आंदोलन के रूप में स्थापित किया। तीसरा खंड इराक और सीरिया, उन दो देशों के बारे में है जहां आईएसआईएस ने अपनी खिलाफत व्यवस्था को आधार दिया। साथ ही बगदाद और दमासकस दोनों ने अपनी आंतरिक लड़ाइयां किस तरह लड़ीं जिनमें उन्होंने वही तरीके अपनाए जो इस्लामिक स्टेट के खिलाफ युद्ध में लगाए थे। चौथा खंड इस्लामिक स्टेट के व्यवहारिक पहलू का वर्णन करता है जिसमें उनकी राजनीतिक वरीयता का क्रम, सैन्य रणनीति, वित्तीय व्यवस्था, मीडिया प्रोपगंडा और ऐसे दूसरे अहम विवरण शामिल हैं जो उनकी खिलाफत व्यवस्था को एक हद तक वैधता प्रदान करवाने का प्रयास करते हैं। इस शोध पत्र की समाप्ति होती है इस्लामिक स्टेट के खत्म होते साम्राज्य के भौगोलिक भूभाग संबंधी भविष्य और वैचारिक खंडहर के रहस्यों को सुलझाते हुए तथा क्षेत्र पर इसके संभावित असर के आकलन से।

आईएसआईएस: अल कायदा से ले कर इस्लामिक स्टेट तक

इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस, आईएसआईएल, आईएस या अरबी में दाएश) जिहादी गुट के बीज तो 2003 में इराक पर किए गए अमेरिकी हमले ने ही बो दिए थे। यह हमला 11 सितंबर, 2001 में न्यूयॉर्क पर हुए पश्चिमी दुनिया के इतिहास के सबसे बड़े आतंकवादी हमले के परिणाम स्वरूप किया गया था। हालांकि दूसरे इस्लामी गुटों की तरह ही इस उग्रवादी संगठन का इतिहास भी काफी उलझा हुआ है और इसके ईर्द-गिर्द काफी विवाद मौजूद हैं। सुन्नी और शिया के रूप में बंटे इस्लामी जगत में गरीबी और अपराध इसके सामाजिक ढांचे से ही पैदा होती है।

पिछले तीन साल से दुनिया के सबसे प्रमुख आतंकवादी संगठन के तौर पर कुख्यात सलाफी-जिहादी संगठन कथित इस्लामिक स्टेट (आईएस) की जड़ें 1990 के दशक के उत्तरार्ध में तलाशी जा सकती है। आईएसआईएस की स्थापना करने वाले जिहादी अबू मुसाब अल जरकावी ने अपराध और विद्रोह का रास्ता छोटे से शहर जरका में अपनी युवावस्था में ही अपना लिया था। यह शहर जोर्डन की राजधानी अमान से कुछ मील दूर ही है। आगे चल कर शेख अब्दुल रहमान नाम के एक आध्यात्मिक व्यक्ति ने उसे अपने साथ लिया और उसमें कट्टरता भरी। मध्य पूर्व के कई क्षेत्रीय जिहादी समूहों में से एक से दुनिया के सबसे बड़े और प्रभावी आतंकवादी संगठन तक के अपने बदलाव में आईएसआईएस ने पहले के इस्लामी आतंकवाद के कथ्यों को पूरी तरह बदल दिया। यह अल कायदा जैसे इस्लामी आतंकवादी संगठन से अलग था। अल कायदा के मारे जा चुके मुखिया ओसामा बिन लादेन का निशाना अमेरिका था और इसी लक्ष्य के ईर्द-गिर्द वह अपने धन और विचारधारा को केंद्रित रखता था। लेकिन आईएसआईएस अपनी शुरुआत के समय से ही स्थानीय कारणों से ज्यादा संचालित होता रहा है, जिसके तहत इसने स्थानीय सरकारों को लक्ष्य किया और बाद में ही खिलाफत व्यवस्था कायम करने के लिए अपनी भौगोलिक और क्षेत्रीय सीमा पर काम शुरू किया। [i]

हालांकि 11 सितंबर के उपरांत के इराक पर हुए अमेरिकी हमले के बाद ही जरकावी को रातों-रात लोकप्रियता मिली और यह बहस का विषय बना हुआ है कि क्या उसे ‘असाधारण अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी’ घोषित किया जाना किसी चाल के तहत था या फिर वास्तविक खुफिया सूचना पर आधारित था। यह माना जा सकता है कि 5 फरवरी, 2003 को जब अमेरिका केे विदेश मंत्री कॉलिन पावेल ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को संबोधित करते हुए इराक पर हमले के पीछे अमेरिका की मजबूरी को रेखांकित किया तो जरकावी दुनिया भर में ख्यात हो गया। “आज मैं इराक और अल कायदा आतंकवादी नेटवर्क के बीच के और खतरनाक गठजोड़ को आपके ध्यान में लाना चाहता हूं। यह ऐसा गठजोड़ है जिसमें पारंपरिक आतंकवादी संगठन और हत्या के आधुनिक साधन दोनों का मेल हो जाता है। इराक आज अबू मुसाब जरकावी के नेतृत्व वाले एक खूनी आतंकवादी संगठन को बढ़ावा दे रहा है। जरकावी ओसामा बिन लादेन और कायदा का सहयोगी है।” [ii]

जरकावी का जीवन और उसके योगदान के बारे में इस शोध पत्र के अगले खंड में और विस्तार से चर्चा की जाएगी। यहां यह उल्लेख करना ज्यादा जरूरी है कि आगे चल कर जो आज आईएसआईएस के नाम से जाना गया उसके बीज 2001 में गठित जमात अल तवाहिद वाल जिहाद (जेटीजे) से ही पड़ गए थे। [iii] जेटीजे के तहत जरकावी ने पूरे क्षेत्र में और खास तौर पर इराक में आतंकवादियों को आत्मघाती मानव बम के तौर पर तैयार करना शुरू कर दिया था। वर्ष 2002 में जोर्डन की राजधानी अमान में यूएसएड के अधिकारी जेम्स फोले की उसके घर के बाहर की गई हत्या के बाद यह आतंकवादी संगठन अंतरराष्ट्रीय रूप से चर्चा में आया। तब तक जरकावी समझ चुका था कि अमेरिका का हमला अवश्यंभावी है और इसलिए वह जमीनी स्तर पर दूसरे आतंकवादी संगठनों के साथ मिल कर तैयारी करना चाहता था। इस योजना में शक्तिशाली इराकी शिया धार्मिक नेता मुक्तदर अल सद्र का समर्थन हासिल करना भी शामिल था जिसने अपने समर्थकों की मदद से जयश अल महदी नाम का सैन्य आंदोलन चलाया हुआ था।

जरकावी के प्रभाव से अल कायदा जैसे दूसरे क्षेत्रीय संगठनों की भी दिलचस्पी बढ़ी। जेटीजे ने ओसामा बिन लादेन के संगठन से 2004 में हाथ मिला लिया और इसका नाम तंजिम कैदत अल जिहाद फी बिलाद अल रफिदयन जरकावी रखा गया जिसका अनुवाद है अल कायदा इन इराक (एक्यूआई)। एक्यूआई का शीर्ष नेतृत्व कभी भी बिन लादेन या उसके नंबर दो अमान अल जवाहिरी जो अब अल कायदा का प्रमुख है, की सोच से सहमत नहीं था। ऐसे में इस दौरान इसने इराकी समाज के अंदर ही सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने को सर्वश्रेष्ठ रणनीति माना ताकि सद्दाम हुसैन के बाद के दौर में ये अपनी स्थिति मजबूत कर सकें। [iv] एक्यूआई की इस रणनीति को तब बड़ा लाभ मिला जब मई, 2003 में तब के अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्लू. बुश ने अमेरिका के इस देश में मुख्य सैन्य ऑपरेशन की समाप्ति की घोषणा की। अमेरिका ने बगदाद के फिरदौस चौक पर हुसैन की मूर्ति गिराए जाने को उसकी सत्ता की समाप्ति का प्रतीक मान कर कुछ ही दिनों के अंदर यह ऐलान कर दिया था।

इराक में हुसैन की सत्ता समाप्त हो चुकी थी और शिया व सुन्नी वर्ग में आपसी संघर्ष चल रहा था। इस तरह वहां एक राजनीतिक शूण्य कामय था, जिसने एक्यूआई के आगे बढ़ने में पूरी मदद की। एक्यूआई को शुरुआत में सुन्नी वर्ग का समर्थन मिला। इस वर्ग को उम्मीद थी कि यह बगदाद पर शिया-बहुल सरकार के कब्जे को रोकने में सहायक होगा। [v] इस जन समर्थन को कायम रखने के इरादे से एक्यूआई ने शिया वर्ग के ठिकानों पर लगातार निशाना लगाया जिनमें शिया बहुल रिहाइशी इलाके और मस्जिदें भी शामिल थीं ताकि स्थानीय सरकार के गठन में अविस्वास पैदा हो और तनाव पैदा हो। इससे शुरुआत में एक्यूआई के लिए इराक में काफी समर्थन मिला, खास तौर पर अल्पसंख्यक सुन्नी वर्ग में जिन्हें बगदाद में बहुसंख्यक शिया-नेतृृत्व वाली सरकार के आने का खतरा सता रहा था। [vi]

लेकिन इसके लगातार बढ़ते हमलावर तरीके और उस पर से अमेरिकी निशानों पर हमला करने की बढ़ती तत्परता की वजह से एक्यूआई इराक में कमजोर पड़ता गया और साथ ही अल कायदा के अंदर भी। जरकावी ने इराकी नेतृत्व के साथ बेहतर संबंध कायम करने की अल जवाहिरी की सलाह को नजरअंदाज किया। जवाहिरी शायद एक्यूआई के लिए अल सद्र की तरह का ज्यादा औपचारिक ढांचा तैयार करने की सोच रहा था। जमीन पर एक्यूआई के दूसरे इस्लामी संगठनों के साथ रिश्ते बहुत तेजी से बिगड़े। उधर इराक के अंदर इसके विदेशी लड़ाकों (सऊदी अरब, लेबनान और पाकिस्तान जैसे देशों से आए) को भी एक विदेशी आक्रामक ताकत के तौर पर ही देखा जा रहा था। इराकी सरकार की ओर से इसे खत्म करने की कोशिश तब तेज हुई जब इसने अमान में तीन होटलों में बम फोड़ दिए जिनमें 60 लोगों की जान गई और फरवरी, 2006 में जब इसने बगदाद से 125 किलोमीटर उत्तर स्थित समारा में शिया धर्मस्थल अल असकारी में बम विस्फोट किया। इसके नतीजे में 24 घंटे के अंदर दर्जनों सुन्नी स्थलों पर जवाबी कार्रवाई हुई। [vii]

अपने नजरिए को बदलते हुए और अपने आधार को बढ़ाने के लिए एक्यूआई ने मजलिस शुआ अल मुजाहिदीन (एमएसएम) से हाथ मिला लिया जो अमेरिकी सेना से लड़ने के लिए काम कर रहे छह सुन्नी आतंकवादी संगठनों का वृहद जिहादी संगठन था। यह अमेरिका के मार्गदर्शन में संक्रमणकालीन सरकार के गठन और सुन्नी आबादी को जिहादी कथ्य से दूर करने की कोशिश को रोकना चाहता था। जैश अल तैफा अल मंसूरा, सराय अंसार अल तवाहिद, सराय अल जिहाद अल इस्लामी सराय अल घोराबा, किताब अल अहवाल और जैश अहलूल सुन्ना वा अल जम्मा (ध्यान रहे कि इन संगठनों के नाम अलग-अलग स्रोतों में अलग-अलग पाए जाते हैं, क्योंकि अक्सर ये अपने नाम बदलते रहते हैं) ये संगठन और एक्यूआई ने मिल कर एक बिल्कुल अलग जिहादी इकाई के बीज बोए जिसमें जरकावी का नेतृत्व नहीं था। [ix]

सुन्नी उग्रवाद के पुनर्संगठन, सांगठनिक ढांचे व नेतृत्व के टूटने-बदलने के दौरान एक्यूआई का जन समर्थन घट रहा था और साथ ही एमएसएम का भी जिसके अंदर इस समय तक काफी दरारें पड़ गई थीं और जो अपने सदस्यों के आपसी मन-मुटाव का एक मंच भर बन कर रह गया था। एक्यूआई ने अल मुजाहिदीन के अंदर के कथ्य पर अपने नियंत्रण को कायम रखा और केंद्रीय नेतृत्व के विचार को स्वीकार नहीं किया। बर्बर हिंसा जिसमें लोगों का सर कलम कर देना और आत्मघाती बम आदि को इसने जारी रखा जिससे सुन्नी समुदाय में काफी असहजता पैदा हो गई।

जरकावी की ओर से अमल में लाए जा रहे इन तरीकों ने अल कायदा के शीर्ष नेतृत्व को परेशान कर दिया, जो दुनिया भर में मुसलमानों को उकसा रहा था कि वे इराक आएं और यहां अमेरिकी हमले से लड़ें। एक्यूआई और अल कायदा का शीर्ष नेतृत्व 2003 के आस-पास इस बात पर सहमत हुआ कि एक्यूआई को इराक में किस तरह काम करना है और किस हद तक जाना है। अगस्त, 2003 में बगदाद में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय ट्रक बम धमाका जरकावी के लिए भी बहुत अहम बिंदू था, क्योंकि यह ऐसी जगह थी जिस  पर लादेन-जवाहिरी नेतृत्व भी निशाना लगाना चाहता था। इसके बाद एक्यूआई स्थानीय लक्ष्यों को निशाना बनाने के अपने मूल उद्देश्य में लग गया, जिसमें सरकार और उसकी ढांचागत सुविधाएं, राजनेता, पुलिस और सहायताकर्मी, एनजीओ अधिकारी और निर्माण संबंधी कारोबार में लगे लोग शामिल थे।

7 जून, 2006 को अमेरिकी ड्रोन के हमले में 500 पाउंड का बम उत्तरी बगदाद के बकूबा शहर के एक छोटे से घर पर गिरा जिसमें अबू मुसाब अल जरकावी और दूसरे जिहादी मारे गए। उसकी मौत का कारण उसका आध्यात्मिक गुरू ही बना। एक खुफिया अधिकारी रहमान का हप्तों से पीछा कर रहा था और इस तरह जरकावी के पते तक पहुंच गया। [x] एक्यूआई की कमान संभालने के लिए अबू अयूब अल मसरी (जिसे अबू हमजा अल मुजाहिर के नाम से भी जाना जाता है) को जरकावी का उत्तराधिकारी घोषित किया गया। उसने अपना काम संभालने के साथ ही सबसे पहले इस बात पर जोर दिया कि संगठन को ज्यादा से ज्यादा ‘इराकी’ बनाया जाए, ताकि जरकावी के अड़ियल रवैये की वजह से घटे समर्थन को दुबारा हासिल किया जा सके। [xi] एक्यूआई की कमान मसरी के हाथ में जाना अल कायदा की भी एक स्तर पर जीत थी, जैसा कि पहले भी चर्चा की गई है, इसे एक्यूआई के संचालन में जरकावी के मुकाबले अपने विचार चलाने में काफी समस्या आ रही थी। हालांकि मसरी जो जवाहिरी का विश्वासपात्र था, का एक्यूआई के रवैये पर बहुत कम प्रभाव पड़ा। बर्बर हत्याएं जारी रहीं, बल्कि इस लिहाज से संगठन का उत्साह और बढ़ा। इसी तरह सुन्नी आतंकी घटनाओं में विदेशी लड़ाकों की भागीदारी भी बढ़ती रही।

इसकी कमान संभालने के बाद मसरी ने एक नई परिषद जैसी इकाई गठित की, जिसमें दूसरे क्षेत्रीय आतंकवादी संगठन भी शामिल किए गए। इस नए गठजोड़ को इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक (आईएसआई) नाम दिया गया। [xii] इसके साथ ही एक्यूआई के ब्रांड को भी कायम रखा गया, जो एक तरह से मार्गदर्शक की भूमिका में आ गया। मसरी ने आईएसआई के काम को इब्राहिम अवाद इब्राहिम अल बदरी नाम के व्यक्ति के हाथ में दिया जिसे आज अबू बकर अल बगदादी के नाम से जाना जाता है। यह इराक के समारा शहर में पैदा हुआ था और फुटबॉल का बहुत बड़ा फैन था। आज जिसे हम इस्लामिक स्टेट के नाम से जानते हैं, उसकी शुरुआत यहीं से होती है।

चमत्कारी व्यक्तित्व: जरकावी से अबू बकर अल बगदादी तक

इस्लामिक स्टेट शुरुआत से ही मीडिया की चर्चा में रहा है और उस पर से नए और सोशल मीडिया के अस्तित्व में आने के बाद तो इसके प्रमुख लोगों ने और प्रभावी और चमत्कारी व्यक्तित्व विकसित कर लिया, जैसा कि अक्सर रोमांचक फिल्मों में दिखाई देता है या फिर पौरानिक कहानियों की कल्पनाओं में सुनने को मिलता है। जरकावी से बगदादी तक का सफर आईएसआईएस को समझने के लिए बहुत जरूरी है। यह एक कट्टर इस्लाम के लिहाज से और बेहद संगठित आतंकवादी आंदोलन दोनों को समझने के लिए उपयोगी है।

इस शोध पत्र में उन चार मुख्य व्यक्तित्वों का विवरण दिया गया है जिन्होंने उस संगठन के आकार लेने में अहम भूमिका निभाई है जिसके बारे में आम तौर अब माना जाता है कि यह धरती पर अब तक का सबसे खूनी और एक सीमा तक सबसे धनवान इस्लामी आंतकवादी संगठन है। [xiii] इसे अल कायदा से भी ज्यादा बड़ा और प्रभावी माना गया है, क्योंकि इसने क्षेत्र के संप्रभु राष्ट्रों के स्थायित्व को खतरा पहुंचाया है (हालांकि विद्वान इस बात पर असहमत हैं कि ऐसी तुलना की कोई जरूरत भी है या नहीं।) [xiv] आईएसआईएस की परंपरा को अबू मुसाब अल जरकावी, अबू अयूब अस मसरी, अबू ओमर अल बगदादी और आखिरकार अबू बकर अल बगदादी के नेतृत्व के आइने में देखा जाए तो पता चलता है कि इन सभी ने ना सिर्फ विचारधारा और इस्लाम की व्याख्या के लिहाज से बल्कि हिंसा के अपने खास ब्रांड के लिहाज से भी निरंतरता कायम रखी। इसी ब्रांड की वजह से दुनिया भर से विदेशी लड़ाके हजारों की संख्या में इसकी ओर आकर्षित हुए हैं। जरकावी से ले कर अब बगदादी तक एक्यूआई के प्रारंभिक लक्ष्य में काफी बदलाव आए और ये चार जिहादी नए और बेहद आक्रामक जिहाद के शिल्पी बने।

1: अबू मुसाब अल जरकावी: अहमद फादिल अब खलायलेह जो बाद में अबू मुसाब अल जरकावी के नाम से जाना गया, अक्तूबर, 1966 में जरका में पैदा हुआ जो जोर्डन की अपेक्षाकृत ज्यादा धर्मनिरपेक्ष, उदार और समृद्ध राजधानी अमान के उत्तर में गरीबी की मार झेल रहा एक शहर था। जरकावी यूं तो बानी हसन कुनबे में पैदा हुआ था जो जोर्डन के शाही हेशमाईट परिवार से संबद्ध है, लेकिन उसकी परिवारिक पृष्ठभूमि बेहद कमजोर थी और बचपन बहुत सी चुनौतियों में बीता। [xv] उसके बचपन के समय में उसके देश में बहुत से बदलाव हो रहे थे, जहां रूढ़ीवाद, परंपरा और धार्मिक मान्यताएं जोर्डन के समाज के खास कर अमेरिका की अगुआई में चल रहे पश्चिमीकरण से टकरा रही थी। जैसा कि कई मामलों में हुआ है, जरका को इससे बहुत ज्यादा लाभ नहीं हुआ। जरकावी के पिता का 1984 में देहांत हो गया जब वह 18 साल का था। उसके बाद ज्यादा समय नहीं बीता था, जब उसे ड्रग्स रखने और यौन हिंसा के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। जेल में जरकावी काफी कट्टर विचारों के संपर्क में आया और बाहर निकलने के बाद कट्टरपंथी विचारों को आगे बढ़ाना ही अपना उद्देश्य बना लिया। जल्दी ही कट्टर इस्लामी जगत में लोकप्रिय जरका के पास की अल हुसैन बेन अली मस्जिद के इलाके में उसकी पहचान स्थापित हो गई। फिर जरकावी को अफगानिस्तान में सोवियत के खिलाफ सक्रिय जिहादियों के बारे में पता चला और उसे अफगान-अरब ब्यूरो ने अपने साथ ले लिया जिसका काम मास्को से लड़ रही इस्लामी ताकतों को जिहादी उपलब्ध करवाना था। [xvi]

काफी उत्साहित होने के बावजूद जरकावी अफगानिस्तान के संघर्ष में शामिल नहीं हो सका, क्योंकि सोवियत ने जल्दी ही वहां से खुद को पीछे हटा लिया। वह अपनी मां ओम सायेल के साथ पाकिस्तान के पेशावर पहुंचा जहां जोर्डन-फिलस्तीन मुजाहिद शेख अब्दुल्ला अजाम ने गर्मजोशी से उसका स्वागत किया। माना जाता था कि वह काफी संकोची प्रवृत्ति का व्यक्ति है, लेकिन यहां उसने अपनी नेटवर्किंग क्षमता का जम कर प्रदर्शन किया। अफगानिस्तान में वह अबू मुहम्मद अल मकदीसी (वास्तविक नाम- इसाम मुहम्मद ताहिर अल बरकावी) से मिला जो एक जाना-माना सलाफी और लड़ाका था। उसके मार्गदर्शन में उसने सोवियत के खिलाफ जिहाद के राजनीतिक और सैन्य दोनों पहलू को समझा। [xvii] यहां कोई सैन्य गतिविधि नहीं होता देख कर जरकावी और मकदीसी दोनों ही वापस जार्डन लौट आए। यहां जरकावी ने मकदीसी के आध्यात्मिक मार्गदर्शन में आतंकवादी नेटवर्क कायम करना शुरू कर दिया। इनकी शुरुआती कोशिश पूरी तरह नाकाम रही और जरकावी और मकदीसी दोनों को अपने पास ग्रेनेड रखने और एक प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन का हिस्सा बनने के लिए 15 साल के लिए जेल भेज दिया गया। मुकदमे के दौरान जरकावी से जब पूछा गया कि उसे हथियार कहां मिले तो उसने कह दिया कि सड़क किनारे पड़े मिले, जिससे स्वभाविक था कि जज को अच्छा नहीं लगा। लेकिन जेल की सजा जरकावी के लिए एक वरदान साबित हुई, क्योंकि यहां उसके कट्टरपंथी विचार और मजबूत हुए। यहां जरकावी और मकदीसी ने मिल कर एक नया संगठन खड़ा किया जिसका नाम था अल तवहिद वा अल जिहाद। [xviii]

जेल में जरकावी ने खुद को जिहाद में और पक्का किया। पूरा दिन वह कुरान को याद करने में बिताता। यहां उसका वजन बढ़ा और शारीरिक रूप से वह ज्यादा प्रभावशाली बना। यहीं उसकी पहचान नए सदस्यों को भर्ती करने वालों से भी हुई। जल्दी ही जरकावी ने मकदीसी को पीछे छोड़ दिया और उसकी आध्यात्मिक क्षमता को चुनौती देने लगा। अब वह इन मामलों के लिए मकदीसी के दिव्य ज्ञान का सहारा लेने की बजाय अपनी ही आवाज सुनना पसंद करता था। जेल से निकलने के बाद जरकावी धीरे-धीरे इराक के सबसे खुंखार अपराधियों की लिस्ट में शामिल हो गया। जल्दी ही उसके सर पर 2.5 करोड़ अमेरिकी डॉलर का इनाम रखा गया।

जेल में ही जरकावी ने अफगानिस्तान जाने का फैसला किया, जहां उसे एक ऐसा आतंकवादी संगठन कायम करना था जो दुनिया भर में जिहाद के लिए अपने लोगों का निर्यात कर सके। दक्षिण अफगानिस्तान के हेरात में उसने जुंद अल शाम गुट की स्थापना की। [xix] उसके लोगों को पर्याप्त संख्या में जिहादियों की नियुक्ति करने में कामयाबी मिली। अमेरिका के अक्तूबर, 2001 में हुए हमले से पहले ही ये लोग 2,000 से 3,000 जिहादियों की भर्ती कर चुके थे। वर्ष 2000 की शुरुआती अवधि के दौरान ही जरकावी पर ओसामा बिन लादेन की भी नजर पड़ी और बाद में लादेन ने कंधार में उससे मुलाकात की। [xx] कुछ स्रोतों में बताया गया है कि यह मुलाकात काफी फीकी रही। एक जगह कहा गया है कि जरकावी ने लादने को कहा कि उसका जिहाद पर्याप्त आक्रामक नहीं है। जरकावी को अहंकार की समस्या तो थी ही, अमेरिकी विदेश सचिव कोलिन पावेल की ओर से इराक पर हमले के लिए जिम्मेवार ताकतों में उसका नाम ले लिया। यह पावेल की रणनीति रही हो या गलती लेकिन इसके बाद तो वह रातों-रात बहुत प्रसिद्ध हो गया। अपेक्षाकृत गुमनाम व्यक्ति से जरकावी 2003 में दुनिया भर में जाना जाने वाले नाम हो गया।

बिन लादेन ने बाद में जरकावी को अल कायदा में शामिल होने का न्यौता दिया। उसे उम्मीद थी कि दोनों के मतभेद दूर हो जाएंगे और इराक में उपस्थिति ज्यादा मजबूत होगी। उधर, जरकावी ने ठान रखी थी कि वह अपने क्षेत्र में सक्रियता पर ज्यादा ध्यान देगा। वह चाहता था कि भ्रष्ट अरब सरकारों का मुकाबला करे और जोर्डन की राजशाही को गिरा कर इस्लामी राज्य कायम करे। उसके इस विचार और लादेन के नजरिए में टकराव हो रहा था, क्योंकि लादेन अमेरिका और इरजराएल को निशाना बनाने के व्यापक लक्ष्य पर नजर गड़ाए था। बिन लादेन के सैन्य कमांडर सैप अल अदेल ने दोनों के बीच सुलह करवा दी जिसके तहत जरकावी को अल कायदा का इराक का प्रमुख बना दिया गया। इस सुलह के बावजूद जरकावी अपने स्वभाव के अनुकूल ही लादेन को बयात (निष्ठा की शपथ) पेश करने को तैयार नहीं हुआ। इस वजह से दोनों के संबंध अच्छे नहीं हो पा रहे थे। जरकावी महीनों की कोशिश के बाद आखिरकार 2004 में ही बयात पेश करने को तैयार हुआ जब उसे लग गया कि उसे इराक में अपनी स्वीकार्यता बढ़़ाने की जरूरत है। बयात पेश करने के बाद उसे मिस्र की जमीन पर अल कायदा के आमीर की पदवी मिल गई। [xxi]

2004 के बाद के काल में अल कायदा ने जरकावी के बेहद हिंसक तरीकों को काबू करने की कई कोशिशें की, क्योंकि उसे डर था कि उसका आधार कमजोर पड़ जाएगा। उधर, जरकावी तो पहले से ही माने बैठा था कि अल कायदा और तालिबान जैसे संंगठन जिहाद को ले कर पर्याप्त गंभीर नहीं हैं, ऐसे में उसके लिए ऐसी कोशिशों और सलाह का कोई मायने ही नहीं था। बिन लादेन या उसके सहयोगी अल जवाहिरी की ओर से दिए गए किसी भी निर्देश को वह मानने को तैयार नहीं था। उसने पूरे इराक में भारी हिंसा की और पूरे इस्लामी जगत में इसका प्रचार किया।

जरकावी 2006 में अमेरिका के हवाई हमले में बगदाद के उत्तर में मारा गया जब वह 39 साल का था। इराक में अल कायदा का विस्तार और जरकावी की ओर से बोए गए वैचारिक बीजों की फसल का उगना शुरू हो गया था। [xxii]

2: अबू अयूब अल मंसारी और अबू ओमर अल बगदादी: अबू मुसाब अल जरकावी का उत्तराधिकारी बहुत जल्दी तलाश लिया गया जो अल कायदा के बेहद संगठित स्वरूप को प्रदर्शित करता था। साथ ही यह दिखाता था कि लादेन और जवाहिरी जरकावी के जाने से खुश थे। एक्यूआई के लिए जिस नए नाम का प्रस्ताव किया गया था वह था अबू अयूब अल मंसारी। अमेरिका का मानना है कि उसका असली नाम अबू हमजा अल मुजाहिर था। [xxiii] मंसारी जो 1968 में मिस्र में पैदा हुआ था, 1980 के दशक से ही अल जवाहिरी का खास विश्वासपात्र था। जरकावी के नेतृत्व में मंसारी 2001 में अफगानिस्तान होते हुए इराक चला गया था और अंसार अल इस्लाम में शामिल हो गया था जो कुर्द सुन्नी आतंकवादी संगठन था। बाद में एक्यूआई में शामिल हो कर मंसारी का जरकावी के साथ काफी अच्छा संबंध कायम हो गया। वह एक्यूआई में खुफिया जानकारी जुटाने से ले कर नए लोगों की भर्ती तक का काम देखने लगा। जरकावी की मौत के बाद मंसारी ने इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक को नए सिरे से संगठित किया।

जरकावी के नेतृत्व में मंसारी 2001 में अफगानिस्तान होते हुए इराक चला गया था और अंसार अल इस्लाम में शामिल हो गया था जो कुर्द सुन्नी आतंकवादी संगठन था। बाद में एक्यूआई में शामिल हो कर मंसारी का जरकावी के साथ काफी अच्छा संबंध कायम हो गया।

अमेरिकी नेतृत्व वाले गठबंधन में इस बात को ले कर लंबे समय तक असमंजस बना रहा कि मंसारी वास्तव में एक्यूआई पर नियंत्रण करता है या नहीं, क्योंकि खबरों के मुताबिक वह और अबू ओमर अल बगदादी आईएसआई का नेतृत्व कर रहे थे। 2007 में जब अमेरिकी सेना के प्रवक्ता ब्रिगेडियर जनरल केविन बर्गनर ने दावा किया कि खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक अल बगदादी वास्तव में अस्तित्व में ही नहीं है। [xxiv] बाद में पता चला कि यह सूचना खालिद अल मशादनी नाम के एक आतंकवादी से मिली थी जो दावा करता था कि वह बिन लादेन का दूत है।

अप्रैल 2010 में इराकी सेना और अमेरिकी सेना के जमीनी सैन्य ऑपरेशन में मंसारी और बगदादी दोनों ही मारे गए।

3: अबू बकर अल बगदादी– अब अबू बकर अल बगदादी के रूप में दुनिया भर में कुख्यात आतंकवादी बन चुके इब्राहिम अवद इब्राहिम अल बदरी का जन्म 1971 में इराकी राजधानी बगदाद के उत्तर में स्थित समारा शहर में हुआ था। बगदादी की परवरिश ज्यादातर एक सुन्नी परिवार में हुई जो खुद को मोहम्मद साहब का वंसज बताता है। [xxv]

कई और ऐसे ही लोगों की तरह बगदादी भी शुरुआत से ही बहुत धार्मिक प्रवृत्ति का था। इस्लाम के प्रति समर्पित और फुटबॉल का बेहद शौकीन बगदादी इराक के कथित सेकुलर शासक सद्दाम हुसैन और उसकी बाथ पार्टी की धर्म को राजनीति में इस्तेमाल करने की साजिश का उत्पाद भी था। इन्होंने 1993 में जो ‘फेथ कैंपेन’ चलाया था उसके तहत इस्लामी गुटों को ना सिर्फ संतुष्ट करना था, बल्कि उन्हें मुख्य धारा में शामिल भी किया जाना था ताकि इराक की इस्लामी पहचान दुनिया में कायम हो सके।

सद्दाम की इस सोच के तहत इराक ने सद्दाम इस्लामी अध्ययन विश्वविद्यालय भी स्थापित किया जहां बगदादी ने कुरान पाठ में मास्टर की उपाधि हासिल की। यहं इस्लाम के प्रति उसके रुझान को देखते हुए बगदादी के परिवार वालों ने उसे मुस्लिम ब्रदरहुड में शामिल होने को कहा। जरकावी की तरह उसे भी लगता था कि इस्लामी राज कायम करने के लिहाज से ये संगठन काफी धीमे चल रहे हैं।

बगदादी ने 2003 में अमेरिकी हमले से निपटने के लिए जयश अहल अल सुन्ना वाल जमाह (जेएसजी) के नाम से अपना पहला गुट तैयार किया। [xxvi] कुछ समय बाद ही उसकी गिरफ्तारी हो गई। यह गिरफ्तारी तब हुई थी, जब वह अपने एक मित्र के घर गया हुआ था और उस मित्र का नाम उन लोगों में शामिल था, जिनकी अमेरिका को तलाश थी। बगदादी को उम कसर इलाके के कैंप बूका में रखा गया। इसी दौरान इसी जगह पर जरकावी को भी रखा गया था (हालंकि इस बात की कोई पुष्टि नहीं हो सकी है कि बगदादी और जरकावी की बूका में मुलाकात हुई थी या नहीं। लेकिन इस बात की काफी संभावना है कि दोनों यहां जरूर एक-दूसरे से टकराए होंगे)।

जिहादियों को रखे जाने के लिए कैंप बूका सबसे प्रमुख जगह थी। अमेरिकी सेना ने सद्दाम हुसैन के शासन को नष्ट कर राजनीतिक शून्य पैदा कर दिया था, जिससे निपटने में इराक आज तक संघर्ष कर रहा है। जिहादियों को एक साथ बूका में एक ही छत के नीचे कैद रखने की अमेरिकी नीति वास्तव में इन विद्रोहियों के ही काम आ गई। पहले से ही कट्टरपन की राह पर चल रहे कैदियों को लगा कि इस कैंप की चाहरदीवारी में अमेरिकी जेलरों की नाक के ठीक नीचे उन्हें आपस में संपर्क बनाने और भविष्य की तैयारियों को सर्वश्रेष्ठ जगह मिल गई है।

बुका कैंप में बगदादी ने अपनी जड़ें काफी मजबूती से जमा लीं। उसे 8 दिसंबर, 2004 को जेल से छोड़ा गया और उसकी गिनती नागरिक कैदियों में की गई ना की जिहादी में। यहां से निकलने के कुछ दिनों के अंदर ही उसने अल कायदा और अपने खुद के जेएसजे से संपर्क करना शुरू कर दिया। साथ ही वह अल कायदा के मार्गदर्शन में अमेरिका के खिलाफ बन रहे गठबंधन में शामिल होने वाले शुरुआती लोगों में था। बगदादी के साथ कई अहम बातें एक साथ जुड़ गईं। जिहादी खेमे में उसने अंदर तक पैठ बना ली थी, उधर, इस्लामिक अध्ययन में अपनी पीएचडी को भी जारी रखे था। एक तरफ इस्लाम का प्रकांड पंडित साबित हो रहा था तो दूसरी ओर खुद को मोहम्मद साहब के खानदान से सीधा जुड़ा बता रहा था। उस पर से लड़ाई में तपा हुआ उसका अतीत भी था। इन सब की वजह से वह अपने दूसरे समकालीनों से आगे निकल गया। [xxviii]

जरकावी की मृत्यु के बाद एक्यूआई के नए प्रमुख मसरी ने इस्लामिक स्टेट के विचार को आगे बढ़ाया और बगदादी ने नए गुट के धार्मिक काम-काज के प्रबंधन की भूमिका मांग ली। इसके जरिए उसने अपनी विचारधारा का प्रचार इराक के विभिन्न राज्यों में करना शुरू किया और उसे समर्थन भी हासिल होने लगा। इस काम में बगदादी काफी आगे बढ़ रहा था। आगे चल कर वह आईएस की शरिया समिति का सुपरवाइजर बन गया, जिस पर गुट की विचारधारा को व्यवहारिक रूप से लागू करने की जिम्मेदारी थी।

उस समय के आईएस के दो प्रमुख व्यक्ति मसरी और अबू उमर ने अप्रैल 2010 में खुद को विस्फोट में उड़ा लिया, जब तिरकिट में उनके छिपने का ठिकाना अमेरिका और इराक के साझा ऑपरेशन में घेर लिया गया। इसके बाद कमान कौन संभालेगा इसको ले कर मैदान पूरी तरह खुला था और अांतरिक परिषद के सदस्य और अल कायदा नेतृत्व में काफी संघर्ष शुरू हो गया। हालांकि तब के सैन्य परिषद प्रमुख हाजी बकर ने बहुत आंतरिक राजनीति की, लेकिन आखिरकार अबू बकर अल बगदादी को नया अामीर चुन लिया गया।

तब तक बगदादी काम को ठीक से संभालता, सीरिया में 2011 में राजनीतिक अस्थायित्व शुरू हो गया। नए आमिर ने इस मौके का जम कर फायदा उठाया। बगदादी ने नुसरा फ्रंट (अब जिसे हयात ताहिर अल शाम या एचटीएस के नाम से जाना जाता है) का गठन कर सीरिया में प्रवेश किया। अगले कुछ महीनों की अवधि में बगदादी ने इराक में अपनी स्थिति काफी मजबूत की और 2014 तक फालूजा, रमादी और मोसूल जैसे बड़े शहर इस्लामी स्टेट के तहत आ गए, जिससे उसे सीरिया में अपनी पैठ बढ़ाने का और मौका मिल सका।

बगदादी जो अब तक आमिर था, अब अपनी ताकत को और बढ़ा रहा था और ‘खलीफा’ के तौर पर लड़ाकों को निर्देश दे रहा था। जैसे ही मोसूल पर कब्जा हुआ, बगदादी ने अल नूरी मस्जिद की कमान संभाल ली और यहां होने वाली जुमे की नमाज के दौरान उपदेश दिया जिससे उसकी नई पदवी और मजबूत हो। यह आज तक का सार्वजनिक तौर पर सामने आने का उसका पहला और आखिरी मौका था। क्योंकि वह इस्लामिक स्टेट के शीर्ष लोगों में सबसे ज्यादा गुमनाम रहने वाला शख्स है। बगदादी के जीवन के बारे में मौलिक लेखन नहीं के बराबर हुआ है। विल मैकेंट्स ने एक लेख जरूर लिखा है जिसका शीर्षक है- ‘आस्तिक: अबू बकर अल बगदादी इस्लामी स्टेट का नेता कैसे बना।’ इस लेख में विल मैकेंट्स कहते हैं, बगदादी को ले कर जो रहस्य का माहौल कायम किया गया है, इसकी परत तभी खुलेगी, जब वह खलीफा रहते मारा जाए। “बगदादी का आकलन इस पर निर्भर करता है कि आप उसके जीवन से क्या उम्मीद रखते हैं। कुछ लोगों के लिए बगदादी बिल्कुल छुटभैया व्यक्ति है, जिसका गैर धार्मिक पूर्व बाथिस्ट पार्टी या ठगों ने इस्तेमाल किया। ये वही लोग हैं जो इस्लामिक स्टेट का इस्तेमाल सत्ता हासिल करने के लिए करना चाहते हैं। कुछ अन्य लोगों के लिए वह मशीन की धूरी है, उसे संचालित करने वाली शक्ति है, जिसने ऐतिहासिक शक्ति या संस्थान कायम किया है। दोनों ही तरह के विचार इस बात पर जरूर सहमत हैं कि बगदादी जो है, उसमें उसका खुद का योगदान बहुत कम है। मुमकिन है कि यह सद्दाम हुसैन की वजह से हो या फिर जॉर्ज डब्लू बुश इसका कारण हो या फिर इसके पीछे कई क्षेत्रीय शक्तियां रही हों।” [xxix]

ऐसे व्यक्तित्वों के बारे में अध्ययन का मकसद आखिरकार यही होता है कि उनकी ओर से चलाए गए जन आंदोलनों पर उनका असर क्या रहा। इस मामले में देखें तो इस्लामिक स्टेट ने राष्ट्र-राज्य के ढांचे की सांस्थानिक सत्ता को ही चुनौती दे दी। इसमें और चीजों के साथ ही कर वसूली, सैन्य ढांचा, स्थानीय निकायों को सक्रिय करना और एक औपचारिकता दिलवाना शामिल है। इस महत्वाकांक्षी कोशिश में उन्हें कई इलाकों में कामयाबी हासिल हुई।

संचालन: इराक और सीरिया

इस्लामी स्टेट के उदय के बारे में सबसे खास सवालों में एक यह भी है कि ऐसा उग्रवादी समूह जो किसी राष्ट्र की सरकार नहीं था, वह सैन्य रूप से सक्षम इकाई में कैसे बदल सका। वर्ष 2014-15 के दौरान आईएस ने इराक और सीरिया दोनों में ही लाखों वर्ग मील इलाके पर कब्जा कर लिया। इससे प्रधानमंत्री नौरी अल मलिकी की तब की इराकी सरकार और बशर अल असद जो अब भी सत्ता में है उनकी सीरियाई सरकार को बड़ी चोट पहुंची।

आईएसआईएस जैसे समूहों [xxx] के पैदा होने और संसाधनों व व्यापक क्षेत्रों में पनपने के लिए मददगार तत्वों के बारे में कई तरह के सिद्धांत प्रचलित हैं। इस शोध पत्र को ऐसे साक्ष्य मिलते हैं कि इराक में जिस तरह इराकी सेना को भंग कर दिया गया और उसके बाद अल मलीकी की विभाजनकारी और अधिनायकवादी सत्ता आई उसने इसके लिए अनुकूल माहौल उपलब्ध करवाया। ऐसे में सुन्नी उग्रवादियों को मौका मिल गया कि वे अपने एजेंडे को लोगों के बीच ले कर जाएं, संगठन को मजबूत करें और आगे बढ़ें, क्योंकि इराक में जनता बंटी हुई थी। अल्पसंख्यक सुन्नी आबादी डरी हुई थी। साथ ही बाथ सरकार के दौरान के हजारों लड़ाके, अधिकारी और युद्ध के लिए प्रशिक्षित जनरल अब उद्देश्यहीन थे और उनके पास कोई काम नहीं था। [xxxi]

इराक में ताकत के दम पर बाथ पार्टी की जो नीतियां लागू की जा रही थीं, अमेरिकी हमले में इराक की सद्दाम हुसैन की सत्ता को ध्वस्त किए जाने के बाद वहां सुन्नी वर्ग के अंदर इन नीतियों से मुक्ति की भावना काफी तेजी से फैली। इराक में अल्पसंख्यक होने की वजह से सुन्नी वर्ग अपने भविष्य को ले कर आशंकित भी हो गया था, उन्हें इस देश में अपने भविष्य को ले कर और नई सरकार के स्वरूप को ले कर आशंका बनी रहती थी। 2006 में अल मलीकी की जीत शिया जगत के केंद्र ईरान के लिए तो बहुत खुशी ले कर आया। लेकिन आठ साल तक चले इसके शासन ने एक्यूआई और दूसरे सुन्नी उग्रवादी संगठनों के प्रसार के लिए बिल्कुल अनुकूल माहौल उपलब्ध करवाया।

इसका शुरुआती बिंदु या फिर कहें कि जहां से इसने जोर पकड़ा वह था ऑपरेशन इराकी फ्रीडम (ओआईएफ)। यह सद्दाम की सत्ता के खिलाफ अमेरिका का चलाया गया अभियान था। अमेरिका के मुताबिक सद्दाम आतंकवादी गतिविधियों को प्रश्रय दे रहा था और जिसके पास व्यापक नरसंहार के हथियार मौजूद थे। ओआईएफ के तहत के सबसे अहम चरण था एकलिप्स -2 (जिसे फेज-4 के नाम से भी जाना जाता है और जो एकलिप्स-1 के नाम पर रखा गया है जिसके तहत द्वितीय विश्व युद्ध के उपरांत जर्मनी में नाजीवाद की जड़ें समाप्त करने के लिए चलाया गया था)। इतिहास में इसे एक्यूआई और ऐसे दूसरे उग्रवादी संगठनों की जड़ें मजबूत करने के सबसे अहम कारण के रूप में भी जाना जाएगा। [xxxii]

इराकी सेना को भंग करने के फैसले से रातों-रात 4,00,000 सैनिक और लगभग 50,000 बाथ अधिकारी बेरोजगार हो गए। इससे आफत तो आनी ही थी। [xxxiii] क्षेत्रीय गठबंधन प्राधिकरण (सीपीए) को यह जिम्मा दिया गया कि सद्दाम के बाद के इराक में प्रगतिशील, लोकतांत्रिक और सभी वर्गों को साथ ले कर चलने की वाशिंगटन डीसी और राष्ट्रपति जॉर्ज डब्लू बुश की नीतियों को लागू करे। सीपीए का नेतृत्व अमेरिकी कूटनीतिक पॉल ब्रेमर के हाथों में था। अफगानिस्तान में किए उनके पिछले काम की वजह से उनकी खासी प्रतिष्ठा थी। उनके ऊपर रक्षा मंत्री डोनाल्ड रम्सफेल्ड थे। सीपीए के जरिए अमेरिका ने यहां बेहद निराशाजनक तरीके से कोशिश की जिसने भयानक राजनीतिक शून्य पैदा कर दिया। इसका नतीजा दुनिया को आज तक भुगतना पड़ रहा है। अमेरिका ने बस ‘हवा में हाथ हिलाया’ और इराकी सेना को भंग कर दिया। [xxxiv]

2003 से 2006 की अवधि के दौरान इराक की सुरक्षा की जिम्मेवारी पूरी तरह से अमेरिका के ही कंधों पर रही। इस दौरान अमेरिकी सेना को वहां आक्रमणकारी औपनिवेशिक ताकत के रूप में ही देखा जा रहा था। इराक ऐतिहासिक रूप से ऐसी स्थिति से परिचित रहा है। इस परिस्थिति ने अमेरिका की इराकी परियोजना को गंभीर नुकसान पहुंचाया और जरकावी को महज एक मोहरा भर माना जा रहा था।

बेरोजगार हो चुके सेना के वरिष्ठ अधिकारी और बाथ अधिकारी यहां पैदा हुए शून्य की वजह से विभिन्न उग्रवादी गुटों में बंट गए थे। उनका अब तक का काम ही हथियार चलाना और लोगों की हत्या करना था। सेना को भंग तो कर दिया गया लेकिन उन्हें ना तो कोई रोजगार दिया गया और ना ही कोई दूसरा विकल्प। ऐसे में इन लोगों ने खाली बैठे रहने की बजाय अमेरिकियों के खिलाफ सक्रिय आतंकवादी संगठनों में शामिल होना ही बेहतर समझा। ब्रेमर ने जो स्थिति पैदा कर दी थी, उससे पहले एक्यूआई और बाद में आईएसआईएस को ही लाभ मिला।

जून, 2014 में मोसुल और उसी महीने कुछ समय बाद तिरकिट का तेजी से कब्जे में आ जाना आईएसआईएस की ओर से अपनी क्षमता के प्रदर्शन के साथ ही खिलाफत के लिए क्षेत्रीय शासन में उसकी दिलचस्पी को भी जाहिर करता है। इराक के इन इलाकों पर आईएसआईएस के कब्जे का सुन्नी अल्पसंख्यकों ने अपनी आशंकाओं के बावजूद (जिनके बारे में इस शोध पत्र में पहले चर्चा की गई है) ज्यादा विरोध नहीं किया। मीडिया में मिल रही जोरदार चर्चा के बावजूद इस आतंकवादी समूह को इराकी सेना और पुलिस बलों से कोई खास चुनौती नहीं मिली। मीडिया में इस दौरान आईएसआईएस की ओर से अपने विरोधियों के बर्बर तरीके से सर कलम करने को भी खूब दिखाया गया। मोसुल और तिरकिट दोनों ही जगह आईएसआईएस के नेतृत्व में नए गवर्नर बनाए गए। ये दोनों ही सद्दाम के शासनकाल में बाथ पार्टी से जुड़े रहे थे। बाथ पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी रहे अबद अल राशिद ने तिरकिट को संभाला जबकि इराकी सेना के जनरल अजहर अल ओबेदी ने मोसूल का काम संभाला। 

इस अवधि के पहले अल मलीकी की नीतियों ने इराक में हालात को और खराब ही किया था। एक्यूआई जैसे संगठनों से लड़ रहे दूसरे संगठन मुश्किल में आ रहे थे, क्योंकि मलिकी सुन्नी वर्ग को संतुष्ट करने में लगे थे। उन्होंने बसरा में शिया धर्मगुरू अल सदर को सरकार के सामने झुकने को मजबूर किया और उसके गुट के हथियार कब्जे में ले लिए। मलिकी के इस रवैये ने इराक में उनके अपने लोगों को तो निराश किया ही अमेरिका भी इस मामले में घिर रहा था कि क्या तेजी से बिगड़ती स्थिति को काबू करने का यही तरीका है। [xxxvii] प्रधान मंत्री ने इराकी सरकार से सुन्नी और कुर्द नेताओं को हटाना शुरू कर दिया था। इनकी जगह वह शिया लोगों को रख रहे थे। इस तरह उनकी तेहरान से करीबी बढ़ रही थी जो अमेरिका का विरोधी था। उन्हें यह अच्छी तरह पता था कि बुश प्रशासन के सामने इसके बावजूद उसे समर्थन करते रहने के अलावा कोई चारा नहीं था। [xxxviii]

मलिकी के शासन के अंतिम वर्ष यानी 2014 तक सुन्नी बगदाद में उनकी सरकार के खिलाफ खुल कर विद्रोह पर उतर आए थे। आईएसआईएस देश के सुन्नी प्रभुत्व वाले इलाकों में जब दाखिल हुआ तो उनको ज्यादा विरोध का सामना नहीं करना पड़ा। फलूजा में तो उन्हें लगभग स्वागत का सा माहौल मिला और उस साल जनवरी में उन्होंने वहां कब्जा कर लिया।

इस समय तक सीरिया में जरकावी और अबू बकर अल बगदादी की ओर से बोए गए आईएसआईएस के वैचारीक बीजों की फसल उगने लगी थी। खिलाफत का विचार इराक और सीरिया के इलाकों पर ही नहीं उससे आगे के इलाकों पर भी कब्जे की बात करता था। 2011 में इराक में प्रभावी रहे आईएसआईएस को असद के खिलाफ हुए विद्रोह का फायदा मिला और यह अपने प्रसार में कामयाब हुआ। अपने प्रभुत्व और शासन के इलाके को ले कर गंभीरता साबित करने के लिहाज से आईएसआईएस ने रक्का को अपनी राजधानी घोषित कर दिया। रक्का शहर सीरिया में युफरात्स नदी के किनारे बसा है। चूंकि यह संगठन इराक से पनपा था, इसे देखते हुए यह कदम काफी अहम था।

सीरिया में अलग तरह की कट्टरपंथी हिंसा चल रही थी। यहां बहुसंख्यक शिया पर अल्पसंख्यक अलवित असद परिवार का शासन था, जिस वजह से यह खुद ब खुद आईएसआईएस की गोद में चला गया। असद परिवार के खिलाफ विद्रोह एक तरह से कथित ‘अरब स्प्रिंग’ का ही विस्तार था। इस दौरान लगातार हुए विरोध से वैश्विक समुदाय को लगा कि कट्टरपंथी विचारों से आच्छादित मध्य पूर्व में भी न्याय व लोकतंत्र के विचार की लहर है। इराक की ही तरह मध्य पूर्व में सीरिया भी कट्टरवादी विचारों का एक प्रयोग स्थल है, जहां सुन्नी आबादी का शासन में बहुत कम प्रतिनिधित्व है, क्योंकि दशकों से असद परिवार ही शासन कर रहा है।

इराक की ही तरह सीरिया में मौजूद परिस्थिति ने भी विभिन्न आतंकवादी संगठनों के लिए अनुकूल माहौल पैदा किया। असद शासन अवसरवादी रणनीति अपनाते हुए इन संगठनों को एक-दूसरे से लड़ाने की कोशिश करता रहता था। साथ ही यह जताने की कोशिश भी करता था कि इस्लामी ताकतों ने ही उसकी सरकार के खिलाफ अरब स्प्रिंग प्रदर्शनों की शुरुआत की है। हालांकि सीरिया में आईएसआईएस के लिए ज्यादा उलझन थी, क्योंकि यहां अल कायदा और इसके पूर्व सहयोगी नुसरा फ्रंट के साथ ही कई और संगठनों, जिनमें से कुछ को अमेरिका का भी समर्थन था, का जाल फैला हुआ था। उधर, रूस और ईरान ने इसलिए दखल देना शुरू किया ताकि असद सरकार गिर न जाए और मध्य एशिया में सीरियाई सीमा पर आईएसआईएस का कब्जा नहीं हो जाए। इससे मामला और भी जटिल हुआ।

बशर अल असद ने सीरिया की कमान अपने पिता हफीज अल असद से संभाली थी। वे सीरिया की बाथ पार्टी के प्रमुख थे और उन्होंने सोवियत संघ के समर्थन से 1970 में तख्ता पलट की चाल चली थी। 1970 के दशक में की गई यह पहल अब भी इस क्षेत्र में रूस के प्रभाव का केंद्र बनी हुई थी। रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतीन की ओर से पिछले कुछ वर्षों के दौरान असद को जो संरक्षण दिया गया था वह इस क्षेत्र पर प्रभाव कायम रखने की मास्को की कोशिश है। क्योंकि यह ऐसा इलाका है जहां अधिकांशतः पश्चमी शक्तियों का ही प्रभाव है, खास कर अरब खाड़ी के राज्यों में। सीरिया में दमास्कस, वाशिंगटन और मास्को का जो त्रिकोण बना है वह एक तरह से शीत युद्ध काल की ही निरंतरता में है। आईएसआईएस की वजह से रूस को इस लड़ाई में शामिल होने का ठोस कारण मिल गया। इसकी दो मुख्य वजह थीं। एक तो जैसा कि पहले भी उल्लेख किया गया है, इस क्षेत्र में उसे राजनीतिक और सैन्य प्रवेश के अपने एकमात्र बिंदु को बचाए रखना। दूसरा, उसका गंभीरता से यह प्रयास होगा कि मध्य एशिया में आईएसआईएस ज्यादा प्रभावी हो कर सत्ता संतुलन को बिगाड़ ना सके। 2016 तक की रिपोर्ट के मुताबिक 2,500 रूसी आईएसआईएस की ओर से लड़ रहे हैं। जबकि कई अपुष्ट खबरें तो इस संख्या को 8,000 तक बताती हैं। [xl]

आज, आईएसआईएस की ओर से सीरिया में पिछले तीन साल के दौरान दिखाई गई बर्बरता सीरियाई गृह युद्ध की समस्या का एक हिस्सा भर है। सीरिया की सेना को आईएसआईएस से ही नहीं लड़ना पड़ रहा, बल्कि अमेरिकी समर्थित आतंकवादी संगठनों, जिनमें कुर्द शामिल हैं, जिहाद के नाम पर खड़े हुए बहुत से आतंकवादी संगठन जो सरकार के खिलाफ तो लड़ ही रहे हैं, आपस में भी भिड़े हुए हैं, उनका भी सामना करना पड़ रहा है। आईएसआईएस को सीरिया में खिलाफत की स्थापना करने में इराक के मुकाबले ज्यादा समस्या हुई। क्योंकि यहां नुसरा फ्रंट जैसे संगठन अल कायदा से अलग भी इस्लामिक राज्य कायम करने का अपना एजेंडा चला रहे थे। इस परिकल्पना में ना तो असद सरकार फिट बैठती थी और ना ही आईएसआईएस।

2016 तक की रिपोर्ट के मुताबिक 2,500 रूसी आईएसआईएस की ओर से लड़ रहे हैं। जबकि कई अपुष्ट खबरें तो इस संख्या को 8,000 तक बताती हैं।

सीरिया के नजरिए से तथ्यों को सही परिदृष्य में रखा जाए तो कथित खिलाफत की राजधानी रक्का की लड़ाई में अमेरिका समर्थित आतंकवादी संगठनों को आईएसआईएस को देश के पूर्वी इलाके से बाहर निकालने के लिहाज से काफी कामयाबी हासिल हुई। इस काम में उनको अमेरिकी स्पेशल फोर्सेज के साथ ही हवाई सहयोग भी हासिल था। हालांकि संघर्ष के दूसरे क्षेत्रों की तरह आईएसआईएस के हाथ से कोई भूभाग के निकल जाने का मतलब आईएसआईएस पर पूरी जीत नहीं था।

भूभाग के छिनते जाने के साथ ही आईएसआईएस इन इलाकों में एक व्यापक शून्य छोड़ कर जा रहा है। यह स्थिति वैसी ही है जैसे 2014-15 में इसे हासिल हुई थी। हालांकि इस मौके पर एक बड़ा फर्क यह है कि इस राजनीतिक शून्य के साथ ही इस बार हथियारों का इतना बड़ा जखीरा भी छोड़ा जा रहा है जिसको संभालना सीरियाई सरकार के साथ ही किसी भी एक राजनीतिक इकाई के लिए संभव नहीं होगा। आईएसआईएस की हार के बाद का रक्का को संभालना अमेरिकी नेतृत्व वाले गठबंध के लिए नए सिरे से चुनौती होगी। यहां शिया और सुन्नी आतंकवादी संगठन, धार्मिक नेता और कुर्द जैसी क्षेत्रीय शक्तियां हैं जो इस भूभाग पर वर्चस्व के लिए सक्रिय हैं। हालांकि आईएसआईएस के बाद के सीरिया की इस समस्या का भी वास्तविक हल निकालने की बजाय महज ‘पैबंद लगा कर काम चलाया’ गया तो व्यापक खतरा मौजूद रह जाएगा। इलाके में दीर्घकालिक स्थायित्व कायम करने की बजाय अगर सैन्य वापसी और कठपुतली सरकार बनाने जैसे तात्कालिक समाधानों पर ही ध्यान दिया गया तो वास्तविक समस्या अपनी जगह ही रह जाएगी। इस क्षेत्र में पश्चिम की दखल देने वाली नीति का यही इतिहास रहा है। [xli] आर्थिक और राजनीतिक समृद्धि के व्यापक लक्ष्यों को पूरा करने की बजाय सिर्फ तात्कालिक लक्ष्यों को पूरा करने की कोशिशों की वजह से ही बार-बार आतंकवाद पैदा होता है और हिंसा, अतिवाद और कट्टरपंथ का कुचक्र जारी रहता है।

आईएसआईएस के खिलाफ लड़ाई इराक में ज्यादा सीधी है। सीरिया में ईरान और रूस की संलिप्तता इसे और उलझा देती है। ईरान समर्थित आतंकवादी संगठन सीरिया में जहां आईएसआईएस से सक्रिय रूप से संघर्ष कर रहे हैं, वहीं वे व्यवस्थित रूप से अपने सशस्त्र गुटों और हिज्बुल्ला के लिए भी स्थान पैदा कर रहे हैं। ऐसे में वे ना सिर्फ असद विरोधी ताकतों बल्कि अल कायदा, कुर्द और अमेरिका समर्थित आतंकवादी संगठनों और विभिन्न छोटे-छोटे इस्लामी संगठनों से भी संघर्ष करने को मजबूर होते हैं जो आईएसआईएस की ओर से खाली हुई जगह को हथियाने को तत्पर हैं।

इस राजनीतिक शून्य के साथ ही इस बार हथियारों का इतना बड़ा जखीरा भी छोड़ा जा रहा है जिसको संभालना सीरियाई सरकार के साथ ही किसी भी एक राजनीतिक इकाई के लिए संभव नहीं होगा।

यह लिखे जाते समय रक्का ऐसे दौर में प्रवेश कर रहा था जहां इस शहर के इर्द-गिर्द खड़ी की गई आठवीं सदी की दीवार को सीरियाई लोकतांत्रिक सेना, अरब गठबंधन और कुर्द लड़ाके पार कर चुके थे। हालांकि आईएसआईएस के इस भूभाग से पीछे हटने को इस आतंकवादी संगठन के खिलाफ जीत के तौर पर पेश करने की लगातार कोशिश हो रही है। लेकिन रक्का की लड़ाई इतनी आसानी से समाप्त नहीं होने जा रही। जहां 50,000 से ज्यादा नागरिक शहर के अंदर हैं जो आपस में युद्धरत पक्षों के लिए ढाल का काम कर रहे हैं, ऐसे में जिहादी संघर्ष आने वाले वर्षों तक कायम रह सकता है। हालांकि यह भी नहीं भूलना चाहिए कि शहरों को आजाद करवाने और जीत हासिल करने का एलान करना भी आईएसआईएस की ओर से फैलाए जा रहे कथ्य का मुकाबला करने की रणनीति है।

इराक और सीरिया में आईएसआईएस के खिलाफ लड़ी जा रही लड़ाई निकट भविष्य में समाप्त होती नहीं दिखाई दे रही। इसे काबू करने की सैन्य उपलब्धि अलग बात है और यह सुनिश्चित करना अलग बात है कि जिन इलाकों से इसे खदेड़ा जा रहा है, वहां कोई दूसरा इस्लामी आतंकवादी संगठन अपनी जड़ें नहीं जमा ले। लंदन के सेंटर फॉर स्टडी ऑफ रैडिकलाइजेशन एंड पोलिटिकल व्हाइलेंस (आईसीएसआर) के सीनियर रिसर्च फेलो चार्ली विंटर जैसे विद्वानों ने सवाल उठाया है कि कहीं मोसूल जैसे शहरों को हारना आईएसआईएस की किसी रणनीति का हिस्सा तो नहीं। [xlii] विंटर का तर्क है कि आईएसआईएस के काम करने के तरीके जिसमें बर्बर हिंसा और स्थानीय आबादी पर हत्या और बलात्कार जैसी भारी क्रूरता किसी भूभाग पर उसके प्रभुत्व को चुनौती देती है। ये ध्यान दिलाते हैं कि आईएसआईएस की ओर से राज्य स्थापित करने की कोशिश नाकाम हुई है। साथ ही विंटर एक सवाल उठाते हैं, “अगर भूभाग सहित किसी भी और चीज के मुकाबले आईएसआईएस अगर वैश्विक जिहाद में सिर्फ अपनी वैचारिक जीत हासिल करना चाहता हो तो? इस कोशिश में वैचारिक महत्वाकांक्षा को पूरा करना किसी जमीन के टुकड़े पर प्रशासनिक अधिकार हासिल किए रहने से ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है। इसके लिए चाहे जो भौतिक कुर्बानी देनी हो।” [xliii]

ज्यादा संभावना इस बात की है कि आईएसआईएस खुद को किसी राज्य पर शासन करने वाली शक्ति की बजाय गुरिल्ला युद्ध में माहिर संगठन के तौर पर ही दुबारा से स्थापित करना चाहेगा। एक संगठन और खिलाफत के तौर पर आईएसआईएस के लक्ष्य के इस बदलाव का नतीजा वास्तव में क्या रहेगा, इसको ले कर मौजूदा शोधों में अनुमान से ज्यादा कुछ दिखाई नहीं देता। आईएसआईएस के टिके रहने की क्षमता को समझने के लिए यह बहुत जरूरी है कि एक राज्य के तौर पर इसके काम-काज को समझा जाए।

आईएसआईएस का कार्य संचालन

निम्न भाग में आईएसआईएस के कार्य संचालन के मुख्य रूप से तीन पक्षों पर चर्चा की जाएगी। एक अर्ध राज्य के संचालन की बारीकियां काफी जटिल होती हैं, लेकिन आईएसआईएस ने अपनी विलायतों (राज्यों) को चलाने के लिए एक व्यवस्था विकसित कर ली थी। विलायत की स्थापना के साथ ही एक खुफिया सूचना तंत्र विकसित कर लिया जाता है और दुश्मनों की हत्या कर दी जाती है ताकि कोई विद्रोह न खड़ा हो सके। राज्य की संरचना से ज्यादा आईएस की कोशिश होती है कि वह आधिकारिक दिखने वाला ढांचा विकसित करे, दावा होर्डिंग खड़े हों और मीडिया से मिलने की खास जगह हो जहां आईएसआईएस के लड़ाके आ कर अपने प्रचार की सामग्री पेश कर सकें। इसी तरह सार्वजनिक जगहों को स्वच्छ और ‘पवित्र’ किया जा सके। इसके तहत धर्मस्थलों को नष्ट करना, कब्रों को नुकसान पहुंचाना, समलैंगिकों को सजा देना और चोरी, धुम्रपान और शराबखोरी जैसे अपराधों के लिए सार्वजनिक तौर पर कड़ी से कड़ी सजा देना शामिल है। [xliv]

आईएसआईएस की कामयाबी के तीन प्रमुख कारक हैं सैन्य शक्ति, ऑनलाइन व मीडिया प्रोपगंडा और वित्तीय संसाधन। जैसा कि इस शोध पत्र में पहले भी चर्चा की गई है, जिन जगहों पर आईएसआईएस ने अपनी पैठ बनाई, उनमें से कई तो ऐसी थीं, जहां इन्हें लगभग स्वागत की सी स्थिति मिली और इनका विरोध नहीं के बराबर हुआ। खास कर इराक में ऐसी स्थिति ज्यादा मिली।

सैन्य शक्ति

खबरों के मुताबिक मई, 2017 में आईएसआईएस का युद्ध मंत्री अबू मुसाब अल मसरी सीरिया के शहर अलप्पो में मारा गया। आईएसआईएस के संगठन के ढांचे में खलीफा अल बगदादी के बाद युद्ध मंत्री दूसरा सबसे अहम पद है। खास तौर पर जब आईएसआईएस के आधिकारिक प्रवक्ता और मुख्य प्रचारकर्ता मोहम्मद अल अदनानी की पिछले साल अगस्त में सीरिया के अलप्पो में मौत हो गई। माना जाता है कि बगदादी की मौत के बाद अल अदनानी ही खलीफा बनेगा। [xlv]

आईएसआईएस भी अपना रक्षा मंत्रालय चलाता है जिसे यह युद्ध कार्यालय बुलाता है, जो सीधे खलीफा से निर्देश लेता है और कैबिनेट के निर्देश को सीधे मानने के लिए मजबूर नहीं है। किसी सैन्य संगठन की तरह युद्ध मंत्री सभी तरह के युद्ध संचालन और आक्रमण के निर्देश देने और उनके प्रबंधन के लिए जवाबदेह होता है। हालांकि वरिष्ठता क्रम में देखें तो बगदादी के बाद स्वभाविक तौर पर युद्ध मंत्री का पद नहीं आता।

एक भूभाग पर कब्जा रखने वाली शक्ति के तौर पर आईएसआईएस की मुख्य सैन्य रणनीति लोगों के दैनिक आमदनी के स्रोत पर कब्जा करने की रही है। खास तौर पर कर की व्यवस्था कर। साथ ही शरिया के अपने विचार को आगे बढ़ाने के लिए सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित करना इसका अहम हिस्सा है। इस तरह वह अपने नियंत्रण वाले क्षेत्र में शरिया लागू करना चाहता है। युद्ध मंत्री ही उस विलायत की सैन्य सुरक्षा के लिए जवाबदेह होता था और हर जगह इसका स्वरूप अलग-अलग होता है। यह उस जगह आईएसआईएस को मिल रही चुनौती पर निर्भर करता है।

अपने सैन्य रणनीति को लागू करने को ले कर आईएसआईएस की कोई खास तरह की घोषित संरचना नहीं। इसकी सैन्य पहचान को समझने के लिए प्रारंभिक तौर पर इसे खिलाफत से पहले और इसके उपरांत के दो भागों में बांटा जा सकता है। एक्यूआई ने मुख्य रूप से एक गुरिल्ला सैन्य संगठन के तौर पर काम किया। यह इंप्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी), घर में ही विकसित की गई आक्रमण करने वाली गाड़ियों[xlvi] हमले की रणनीति और स्थानीय आबादी के बीच जा कर छुप जाने की रणनीति का इस्तेमाल करता है। 2014 के उपरांत के काल में आईएसआईएस ने अपनी सैन्य रणनीति भूभाग पर कब्जे की अपनी रणनीति के ईर्द-गिर्द ही विकसित की। इससे इसको ना सिर्फ अपने लिए और समर्थन हासिल करने में मदद मिली, बल्कि साथ ही एक रणनीति के तौर पर विभिन्न सेनाओं और आतंकवादी संगठनों को आईएसआईएस को परंपरागत तरीके से निशाना बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा। ऐसे संघर्ष में कुर्द और सीरियाई सेना का ज्यादा अनुभव था। 2017 में अपने भूभाग को खोने के बाद आईएसआईएस को फिर से शहरी गुरिल्ला युद्ध में सक्रिय होना पड़ा है, जो आईएसआईएस के अस्तित्व को लंबे समय तक कायम रख सकता है। जहां भौगोलिक सीमा के खो जाने से आईएसआईएस की सैन्य रणनीति में बदलाव आया है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आईएसआईएस की एक विचार के तौर पर भी मौत हो गई है।

ऑनलाइन/मीडिया प्रचार

“इस्लामिक स्टेट में काम करने वाले मीडिया के सभी भाइयों, आपको निम्न तथ्य जानने और मानने चाहिएं कि मीडिया भी अल्लाह तक पहुंचने के जिहाद का हिस्सा है और आप व मीडिया में आपका काम भी अल्लाह के रास्ते में मुजाहिद हैं। ” [xlvii]

– ‘मीडिया ऑपरेटिव, आप भी एक मुजाहिद हो’

इराक और सीरिया की सीमा में जहां इसने भौगोलिक विस्तार कर इस्लामिक स्टेट को बढ़ावा देने के लिए सैन्य शक्ति का सहारा लिया वहीं आईएसआईएस ने मीडिया के उपयोग को ले कर जैसी समझ दिखाई और जैसा इसका समर्पण रहा है, उसकी वजह से दुनिया भर में इसके जिहाद की ब्रांड वैल्यू को सबसे ज्यादा बढ़ावा मिला है। दुनिया भर में अपना प्रचार करने और खौफ पैदा करने के लिए मौजूदा पश्चिम में विकसित सोशल मीडिया प्लेटफार्मों का इस्तेमाल करने के अलावा भी आईएसआईएस के पास सूचनाएं प्रसारित करने के लिए ज्यादा व्यवस्थित और सुनिश्चित तरीके हैं।

आईएसआईएस के कार्य संचालन में मीडिया एक बेहद पवित्र और आवश्यक पहलू माना गया है। मीडिया प्रचार के लिए सक्रिय अपने कार्यकर्ताओं को भी इसने उतना ही महत्वपूर्ण स्थान दिया है, जितना भौतिक रूप से हथियार उठा कर लड़ने वालों को देता है। आईएसआईएस ने ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्सऐप, टेलीग्राम और दूसरे विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्म का अपनी विचारधारा को फैलाने के साथ ही दुनिया भर से लोगों को अपने खिलाफत में शामिल होने के लिए भी जम कर इस्तेमाल किया है।

मीडिया के नए प्लेटफार्म का इस्तेमाल कर लोगों तक पहुंचने की आईएसआईेस की रणनीति की कामयाबी को समझने के लिए इस सवाल का जवाब तलाशना महत्वपूर्ण है कि यह अपनी ऑनलाइन सेना का इस्तेमाल ‘मीडिया जिहाद’ के लिए कैसे करता है। जिन लोगों तक इसे पहुंचना है, उनके लिए काफी अच्छे से तैयार की गई खिलाफत को गौरवान्वित करने वाली सामग्री उपलब्ध करवाता है। इसमें यह भी दिखाया जाता है कि इसने किस तरह दूसरे समूहों में भी शरिया का राज कायम किया है। एक्यूआई से निकले होने की वजह से आईएसआईएस को भी मीडिया के जम कर इस्तेमाल की कला विरासत में ही मिली थी। इसमें वह सोशल मीडिया मंचों के साथ ही पुरानी शैली के चैट रूम और यहां तक कि कैसेट्स का भी इस्तेमाल करता है। [xlviii] ओसामा बिन लादेन खुद भी टेलीवीजन के काम-काज को ले कर काफी परिचित था। इसने पहले खाड़ी युद्ध के दौरान टीवी के महत्व को देखा और समझा था, जब इस संघर्ष को सीधे अमेरिकी ड्राइंग रूम में प्रसारित किया गया था। अल कायदा के लिए 11 सितंबर की घटना टीवी पर दिखाया जाने वाला एक महा-तमाशा था, क्योंकि इसे पता था कि ऐसी घटना को ना सिर्फ पूरे अमेरिका में बल्कि पूरी दुनिया में दिखाया जाएगा। मई, 2011 में पाकिस्तान के ऐबटाबाद में अमेरिकी सील टीम की ओर से बिन लादने को मारे जाने के बाद उसके पास से बड़ी मात्रा में वीडियो और ऑडियो रिकार्डिंग आदि बरामद हुए थे। [xlix] उस दौरान की वीडियो रिकार्डिंग में वह क्लीपिंग भी शामिल है जिसमें वह एक केबल चैनल पर खुद की कवरेज देख रहा है। [l] अल कायदा और दूसरों के लिए पारंपरिक मीडिया से आगे बढ़ कर डिजिटल मीडिया में सक्रिय होने का बदलाव रातों-रात नहीं हुआ। इनमें से बहुत से आगे भी अपनी सामग्री पहले कैसेट में और फिर बाद में सीडी या डीवीडी में रिकार्ड करते और बांटते रहे। हालांकि बिन लादेन को यह स्पष्ट था कि उसे केबल टेलीवीजन के पीछे इस नए मीडिया की उपेक्षा नहीं करनी है। इसी से जिहादी संगठनों की रणनीति में वह अहम तत्व शामिल हुआ जो मीडिया संगठनों का उन्हीं के खेल में इस्तेमाल करता है।[li] इस्लाम की विचारधारा की वकालत करने वाले कई और भी हैं जो मीडिया को जिहाद का औजार बताते हैं। इनमें अबू मुसाब अल सूरी भी शामिल है जो अल कायदा का संदिग्ध सदस्य और जिहादी लेखक है, जो सीरिया में पैदा हुआ, लेकिन स्पेन का नागरिक है और माना जाता है कि इस समय वह स्पेन की जेल में है। 2005 में उसे पाकिस्तान से निर्वासित कर दिया गया था और तब से ही माना जाता है कि वह स्पेन की जेल में है। 2004 में प्रकाशित अपने मौलिक कार्य ‘ए कॉल टू ए ग्लोबल इस्लामिक रेजिस्टेंस’ में अल सूरी ने इंटरनेट के जिहादियों में इस्तेमाल को रेखांकित किया है। यह यहां तक कहता है कि मीडिया संसाधनों में तकनीकी विकास के बाद जिहाद के लिए पदों की भौतिक संरचना की जरूरत नहीं है। इसके लिए मीडिया के नए साधन ही काफी हैं। वह संकेत देता है कि हर मुस्लिम का घर प्रशिक्षण स्थल या अग्रिम चौकी बन सकता है। इससे बड़े अड्डों की भी जरूरत नहीं रह जाएगी, जिन्हें दुश्मनों की ओर से आसानी से निशाना बनाया जा सकता है। [lii]

आईएसआईएस की मीडिया रणनीति को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है- ‘मीडिया ऑपरेटिव, यू आर ए मुजाहिद टू’ (मीडिया में काम करने वालों, आप भी एक मुजाहिद हैं)। यह इस समूह के विचार, सोच, जरूरतों और प्रचार के बारे में बताता है। यह पर्चा आईएसआईएस के लिए मीडिया नीति का संक्षिप्त रूप है। इसे अल हिम्मा पुस्तकालय ने प्रकाशित किया है। यह प्रकाशन आईएसआईएस के घोषणापत्रों और धार्मिक पंफलेट आदि छापता है। [liii] इसे अप्रैल, 2016 में अरबी में टेलीग्राम पर जारी किया गया था। यह चैट प्लेटफार्म डेटा को एनक्रिप्ट कर देता है, इसलिए आईएसआईएस और इससे जुड़े लोगों को काफी पसंद है। इस पर्चे को किस लेखक ने तैयार किया था यह नहीं बताया गया है, लेकिन यह आईएसआईएस के ऑनलाइन समर्थकों के लिए था। यह इस समूह के दुनिया भर में फैले ऑनलाइन समर्थकों को ‘मीडिया मुजाहिदीन’ कहता है। इस पर्चे का काम है कि ऑनलाइन दुनिया में सक्रिय समर्थकों को कभी भी यह नहीं लगे कि वे खिलाफत लाने के लिए शारीरिक रूप से सक्रिय लोगों से किसी भी कीमत पर कमतर योगदान दे रहे हैं। यह आईएसआईएस के मीडिया कथ्य की महत्ता को रेखांकित करता है।

इस पर्चे के मुख्य हिस्सों में कहा गया है, “हम एक युद्ध में रत हैं और इस युद्ध का आधे से ज्यादा मैदान मीडिया ही है।” [liv] ऐसा लगता है कि इस संदेश के जरिए आईएसआईएस के लिए मीडिया के महत्व को दर्शाने की कोशिश की गई है, वहीं यह भी ध्यान देने की बात है कि सूचना के युद्ध में मीडिया को इतना महत्वपूर्ण बताने वाली यह सूचना भी एक झूठा प्रचार ही है। यानी प्रोपगंडा के अंदर भी प्रोपगंडा। विद्वान चार्ली विंटर के मुताबिक, यह संवाद दरअसल पहली बार अल कायदा के अल जवाहिरी और जरकावी के बीच पत्राचार के जरिए हुआ था। जवाहिरी ने जेहाद के एक्यूआई के बर्बर तरीकों को रेखांकित किया था और उसे समझाया था कि इतने अति हिंसक तरीके अपनी विचारधारा को आगे बढ़ाने के गलत तरीके हैं और ऐसे में मीडिया के जरिए स्थानीय लोगों तक गलत संदेश जाता है। लेकिन अल कायदा के नेतृत्व को पहले से ही चुनौती दे रहे आईएसआईएस ने इसे और ज्यादा अपना लिया और अपने मीडिया मुजाहिदों के जरिए अपना प्रोपगंडा और तेज किया।

2014 के बाद आईएसआईएस का मीडिया अभियान और ज्यादा व्यवस्थित हो गया। यह आईएसआईएस के लड़ाकों की ओर से सर कलम करने के वीडियो जारी करने से ले कर ट्वीटिर जैसेे सोशल मीडिया का तकनीकी इस्तेमाल अपनी भयानक हिंसा की तस्वीरें और वीडियो लोगों तक पहुंचाने के लिए जम कर करने लगा। सर कलम वाले वीडियो में आईएसआईएस के लड़ाके जहां काले लबादे पहने होते हैं, वहीं उसके कैदी नारंगी रंग के जंपसूट पहने होते हैं, जो काफी कुछ उस तरह के ही हैं जैसे अमेरिका की कुख्यात ग्वांतमाओ बे में बिना किसी पक्के आरोप के ही वर्षों तक रखे जाने वाले कैदियों को पहनाए जाते हैं। [lv] आईएसआईएस को जल्दी ही यह पता चल गया कि ऐेसे वीडियो से उसे उन इलाके के लोगों में भी भय कायम रखने में मदद मिलती है जिन पर यह कब्जे का शासन चला रहा होता है। इसके अलावा आईएसआईएस को यह भी पता है कि पश्चिमी मीडिया उसके इस कथ्य को खूब आसानी से स्वीकार करेगा और पूरी दुनिया के लोगों तक पहुंचाएगा। [lvi]

अपने मीडिया युद्ध के प्रभावी प्रसार और खिलाफत को वैधता दिलाने के लिए आईएसआईएस ने चार मुख्य केंद्र बनाए हैं जहां से यह सूचना प्रसारित करता है। इनमें पहला है अमाक, जो मुख्य रूप से एक वेबसाइट है। यह आईएसआईएस के बयान तो रिलीज करता ही है, साथ ही इंफोग्राफिक्स और इसके काम से जुड़े बहुत से दूसरे ब्योरे भी जारी करता है। इसी तरह यह टेलीग्राम पर आधिकारिक ग्रुप बना कर भी सामग्री प्रसारित करता है। इसी तरह रुमैया नाम की एक आकर्षक सुंदर कागज पर छपने वाली पत्रिका है जो हिम्मा प्रकाशन से आती है। इसे इस्लामिक स्टेट की ‘न्यूजवीक’ कहा जा सकता है। यह दुनिया भर में हो रही आईएसआईएस के अनुकूल गतिविधियों को शामिल करती है। उदाहरण के तौर पर रुमैया के दसवें अंक की कवर स्टोरी है ‘पूर्व एशिया में जिहाद’। इसमें फिलिपिंस की अबू सयाफ समूह (जिसे आधिकारिक तौर पर इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड लेवांट के नाम से जाना जाता है। लेवांट फिलिपिंस का राज्य है) के साथ संघर्ष के ब्योरे हैं। यह ब्योरे तब के हैं जब 2016 में इस समूह ने बगदादी के साथ अपनी आस्था का एलान कर दिया। [lvii] [lviii]

तीसरा जरिया रहा है दाबिक। यह अब बंद हो गया है और इसे रुमैया का पुराना अवतार कहा जा सकता है। दाबिक के जरिए ही लोगों को आईएसआईएस की क्षमताओं और सूचना प्रसारण को ले कर इसके औपचारिक स्वरूप का पता चला था। यह पत्रिका ग्लौसी कागज पर छपती थी और इसका ले आउट भी काफी व्यवस्थित होता था। कुल मिला कर यह एक पेशेवर राज्य संचालित प्रकाशन के तौर पर दिखाई देती थी। [lix] हरलीन के गंभीर जैसे लोगों ने इसका विश्लेषण करते हुए कहा है कि यह आईएसआईएस को बाहर के समाज में पेश करने की कोशिश दिखाई देती थी जो इराक और सीरिया की सीमा के बाहर इसके प्रभाव को बढ़ाने में मदद कर सके। [lx] जब अलप्पो के करीब के पवित्र शहर दाबिक पर से आईएसआईएस का कब्जा समाप्त हो गया और यह अक्तूबर, 2016 में सीरियाई विद्रोहियों के हाथ में चला गया तो इस पत्रिका का प्रकाशन बंद कर दिया गया और इसकी जगह रुमैया शुरू कर दी गई। इसके बाद अल नबा नाम से एक न्यूजेलटर भी शुरू किया गया। आईएसआईएस का सबसे अहम और सबसे आधिकारिक माना जाने वाला माध्यम है नाशिर मीडिया फाउंडेशन (एनएमएफ)। इसे आईएसआईएस के सीधे आधिकारिक चैनल के तौर पर भी देखा जाता है। इसका इस्तेमाल सूचनाओं के प्रसार के लिए कम और निर्देश जारी करने के लिए ज्यादा किया जाता है। उदाहरण के तौर पर पिछले साल दिसंबर में एनएमएफ ने एक बयान जारी किया और क्रिसमस के आयोजनों पर हमला करने को कहा। इसमें खास तौर पर यूरोप के ‘आईएस वुल्फ’ को संबोधित किया गया था। [lxi]

हालांकि इन आधिकारिक और अर्ध आधिकारिक माध्यमों के बारे में ज्यादा तथ्य दर्ज नहीं हैं, लेकिन मोटे तौर पर इनका मुख्य लक्ष्य सोशल मीडिया है। आईएसआईएस के कुप्रचार की सामग्रियों के आसानी से ऑनलाइन उपलब्ध हो जाने की समस्या का तत्काल कोई समाधान नहीं है। इंटरनेट की प्रवृत्ति ही ऐसी है कि ऐसी सामग्री को काबू करना आसान नहीं होता। माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर वह पहली जगह थी जहां आईएसआईएस और इसके समर्थन में चल रहे कुप्रचार की सामग्री इतनी प्रचूरता में उपलब्ध हुई। सिर्फ आईएसआईएस ने ही ट्विटर का इस्तेमाल नहीं किया बल्कि अल शाबाद जैसे आतंकवादी संगठन ने भी इसका जम कर इस्तेमाल किया। 2013 में कीनिया के नैरोबी में वेस्टगेट शॉपिंग मॉल पर कब्जे के दौरान इस आतंकवादी संगठन ने पूरे ऑपरेशन के बारे में लाइव ट्वीट किए, जहां इसके लड़ाकों ने कुल 66 नागरिकों को मार दिया था। [lxii]

सिर्फ आईएसआईएस ने ही ट्विटर का इस्तेमाल नहीं किया बल्कि अल शाबाद जैसे आतंकवादी संगठन ने भी इसका जम कर इस्तेमाल किया।

सोशल मीडिया को ले करआईएसआईएस सिर्फ प्रयोग कर के सीखने के सिद्धांत पर नहीं चलता, बल्कि इसने तकनीकी रूप से प्रशिक्षित जिहादियों को इस काम में लगाया है। खास तौर पर इसने विदेशी लोगों को इसमें लगाया है जो खिलाफत के लिए युद्ध करने इसके पास पहुंचते हैं। इनकी मदद से यह अपनी ऑनलाइन मौजूदगी को काफी सशक्त और प्रभावशाली बना चुका है। ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूट के लिए शोधरकर्ता जे.एम. बर्जर और जोनाथन मोर्गन की ओर से आईएसआईएस और ट्विटर के इसके उपयोग को ले कर किए गए एक मौलिक अध्ययन के मुताबिक 4 अक्तूबर से 27 नवंबर 2014 के बीच ट्विटर पर 46,000 से अधिक सक्रिय एकाउंट पाए गए जहां से आईएसआईएस समर्थित सामग्री साझा की जाती थी। बर्जर और मोरगन के अध्ययन में ट्विटर उपयोगकर्ताओं की जगह पर भी प्रकाश डाला गया। इस लिहाज से सऊदी अरब, सीरिया, इराक, अमेरिका और मिस्र शीर्ष पांच देश प्रमुख रहे। [lxiii] आईएसआईएस समर्थित खातों को ले कर उठे विवाद पर ट्वीटर काफी देर से जागा। इससे पहले डिजिटल दुनिया में सक्रिय समुदाय में यह चर्चा तेजी से उठने लगी थी कि अगर कोई आतंकवादी हमले में शामिल नहीं हो लेकिन उसका जश्न मना रहा हो तो उसके खाते को बंद करना क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ है। हालांकि लगातार लोगों में कट्टरपंथ बढ़ाने के तेज होते प्रयास और यूरोप में होने वाले हमलों के लिए आईएसआईएस की ओर से खास तौर पर इंटरनेट का इस्तेमाल किए जाने की घटनाओं के सामने आने के बाद ट्विटर जैसी सेवाओं को भी अपने विचार को बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा। 2016 के अपराह्ण तक ट्विटर ने 3,76,000 से ज्यादा ऐसे खातों को बंद किया जो बर्जर और मोरगन की ओर से किए गए 2014 के अनुमान से बहुत ज्यादा है।

सोशल मडिया को ले करआईएसआईएस सिर्फ प्रयोग कर के सीखने के सिद्धांत पर नहीं चलता, बल्कि इसने तकनीकी रूप से प्रशिक्षित जिहादियों को इस काम में लगाया है।

ट्विटर ने जिस तरह आईएसआईएस के आधार पर चोट की उसके बाद इसे विकल्प तलाशने को मजबूर होना पड़ा। ऐसे में इसने ट्विटर की तर्ज पर अपना एक अलग ऐप तैयार किया, जिसे इसने ‘डाउन ऑफ ग्लैड टाइडिंग’ (या सिर्फ ‘डाउन’) का नाम दिया। इसे 2014 में एंड्रायड सिस्टम के लिए लांच किया गया। डाउन एक लोकप्रिय अमेरिकी ऐप थंडरक्लैप पर आधारित है जिसका इस्तेमाल अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 2010 में अपने प्रचार के दौरान ऑनलाइन समर्थन जुटाने के लिए किया था। [lxiv] इसके लोगों ने डाउन का इस्तेमाल ट्विटर पर अपने कमेंट पोस्ट करने के लिए किया। आईएसआईएस के लोग इस पर जारी होने वाली सामग्री को सीधे नियंत्रित करते हैं और आम लोगों का इस बात पर बहुत कम नियंत्रण होता है कि खुद से बनाए गए इस ऐप के जरिए उनके एकाउंट का उपयोग कर उनकी ओर से क्या संदेश डाला जा रहा है। [lxv] थोड़े समय बाद गूगल प्ले जैसे डाउनलोड पोर्टल ने डाउन को अपने यहां से हटा दिया तो आईएसआईएस ने दूसरे स्थापित माध्यमों को अपना लिया। ऐसे में टेलीग्राम उसका पसंदीदा माध्यम बना।

2015 में आईएसआईएस के लगभग आधिकारिक माध्यम नाशिर और अमाक को टेलीग्राम पर उपलब्ध करवा दिया गया। इस दौरान नाशिर ने अपना खुद का ऐप भी लांच कर दिया। [lxvi] इस ऐप पर उसी दौरान लांच की गई चैनल की सुविधा ने उपयोगकर्ताओं को ब्रोडकास्ट का विकल्प भी दिया। इसमें उपयोगर्ताओं की संख्या की सीमा नहीं थी। इससे आईएसआईएस को अपना चैनल बना कर अपने कुप्रचार की सामग्री को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने की सुविधा मिल गई। टेलीग्राम में डेटा एनक्रिप्शन की वजह से आईएसआईएस के ऑनलाइन प्रचार का मुकाबला कर रही एजेंसियों को तो समस्या हुई ही साथ ही टेलीग्राम इन सुरक्षा एजेंसियों को अपने उपयोगकर्ताओं की जानकारी उपलब्ध करवाने की बाध्यता की शर्तों को भी नहीं मानता। हालांकि अक्सर ऐसी खबरें आती रहती हैं कि ईरान ने टेलीग्राम के एनक्रिप्शन को भेद लिया है, इसके बावजूद आईएसआईएस इस सूचना प्रसारण प्लेटफार्म का प्रमुखता से इस्तेमाल कर रहा है। अपनी घोषणाएं करने और दुनिया के किसी भी कोने में हुए किसी हमले के लिए दावा करने के लिए यह इसका इस्तेमाल खास तौर पर करता है। [lxvii]

आईएसआईएस के टेलीग्राम के उपयोग को ले कर हुए एक ताजा शोध के मुताबिक आईएसआईएस के इस माध्यम का उपयोग करने के पीछे कई वजहे हैं। एक तो यह सूचना के प्रसारण के लिए सुरक्षित जरिया उपलब्ध करवाता है। साथ ही इसका जैसा स्वरूप है और उपयोगकर्ताओं को यह जो विकल्प उपलब्ध करवाता है उससे आईएसआईएस और इसके ‘मीडिया मुजाहिद’ को अपने ऑनलाइन कुप्रचार के लिए लगभग आदर्श साधन मिल जाता है। टेलीग्राम के चैनल के जरिए जो लिंक लोगों से साझा किए जाते हैं, वे 30 मिनट से ले कर दो घंटे तक में समाप्त हो जाते हैं। इसमें भी 30 मिनट ही इनकी प्राथमिकता रहती है। इस रणनीति की वजह से आईएसआईएस के प्रचार तंत्र के लोग ज्यादा समय तक ऑनलाइन रहते हैं ताकि ऐसी कोई सामग्री आए तो उनसे छूट नहीं जाए। [lxviii]

आईएसआईएस ने अपने प्रचार के लिए जो तैयारियां कीं, वे भी कई मायनों में अनोखी थीं। इस आतंकवादी संगठन ने हिंसा के अपने कृत्यों को प्रचार के लिए कोई साधन नहीं छोड़ा। इस काम में उन्होंने आधुनिकतम 4के हाई डेफनीशन कैमरे, ड्रोन और बेहतरीन क्वालिटी की एडिटिंग का जम कर इस्तेमाल किया। आईएसआईएस की मीडिया प्रचार की सामग्री के निर्माण की गुणवत्ता ने दूसरे जिहादी समूहों को भी इस ओर प्रेरित किया। इनमें से कई तो अभी आईएसआईएस के खिलाफ लड़ रहे हैं। इनमें हयात तहरीर अल शाम सबसे खास है। इस्लामी गुट एचटीएस पहले अल कायदा से ही संबद्ध था। इसने आईएसआईएस और सीरियाई सेना के साथ ही दूसरे गुटों के साथ अपने संघर्ष को ले कर हॉलीवुड सरीखी फिल्में भी बनानी शुरू कर दीं। [lxix] इसका मुकाबला करने के लिए असद विरोधी शक्तियों ने भी उतने ही भव्य स्तर पर जवाबी सामग्री तैयार करनी शुरू कर दी, जिसमें सिनेमा जैसे प्रोडक्शन, शानदार संगीत और कल्पना का सहारा लिया जाता है। इसमें फ्री सीरियन आर्मी जैसे गुट शामिल हैं, जिसमें ज्यादातर लोग सीरियाई सेना के पूर्व सैनिक हैं और जिसे पश्चिम की मदद हासिल है। ये सैनिक अरब स्प्रिंग के दौरान असद सरकार को गिराने के मकसद से अलग हुए थे। [lxx]

यह सारी कवायद आईएसआईएस के लिए वैश्विक स्तर पर काफी प्रभावी रही है। इसके जरिए इसने अपने कथ्य को दुनिया भर में पहुंचाया है। इसी तरह यह दूसरे पक्षों और विपक्षियों के लिए भी प्रभावी रही ताकि वे स्थानीय आबादी तक पहुंच सकें और इस्लामिक स्टेट के खिलाफ संघर्ष में शामिल होने की अपील कर सकें। यह सब इसलिए भी संभव हो सका क्योंकि आईएसआईएस अपने लिए स्ववित्तपोषी व्यवस्था कायम कर सका। जहां इसकी वित्तीय क्षमता काफी घटी है, 2014-15 के दौरान जब यह अपने चरम प्रभाव पर था, यह संभवतः दुनिया का सबसे धनी आतंकवादी संगठन था।

वित्त

भौगोलिक विजय के साथ ही आर्थिक चुनौतियां भी आती हैं। आईएसआईएस ने एक खास भूभाग पर कब्जा तो किया, लेकिन इसके साथ ही उसे इस अर्ध-राज्य को चलाने, नागरिकों, अपने लड़ाकों और दूसरी राज्य से जुड़ी इकाइयों को संचालित करने के लिए संसाधनों की जरूरत थी। 2015 के अंत में इस्लामिक स्टेट का अनुमानित मूल्य दो अरब अमेरिकी डॉलर से कुछ ज्यादा आंका जा रहा था। इस अवधि को इसके प्रभाव का चरम माना जा सकता है। जैसा कि इस शोध पत्र में पहले भी बताया गया है कि आईएसआईएस के कार्य संचालन और सफल आतंकवाद का ठोस आधार 2014-15 की अवधि से पहले ही तैयार कर लिया गया था। अमेरिकी खुुफिया एजेंसियों ने इससे पहले के वर्षों में ही बताया है कि एक्यूआई के प्रभाव के दिनों में ही इराकी आतंकवादी वित्तीय स्वाबलंबन हासिल कर चुके थे। ये 7 करोड़ अमेरिकी डॉलर से ले कर 20 करोड़ तक का धन जुटा रहे थे। यह रकम ज्यादातर अपराधी गतिविधियों और भौगोलिक इलाके में लगाए जाने वाले करों से हासिल होती है। 2005-06 के दौरान इसमें दान में मिलने वाली रकम का हिस्सा बहुत कम पाया गया था। [lxxi]

किसी अच्छे समझदार कारोबारी की तरह आईएसआईएस ने भी अपने वित्तीय संसाधनों के लिए किसी एक स्रोत पर ही निर्भरता नहीं रखी, बल्कि अपने पोर्टफोलियो की विविधता बना कर रखी। 2015 में तेल इसके राजस्व का 25 फीसदी देता था। 2016 तक इसमें भारी गिरावट आ गई, क्योंकि रूस और अमेरिकी गठबंधन दोनों ने ही तेल के कुओं को निशाना बनाया था। आईएसआईएस की कामचलाऊ तेल रिफाइनरियों और तेल के ट्रकों को निशाना बनाए जाने की वजह से इस गुट के तस्करी के कारोबार को तगड़ा झटका लगा था।

आईएसआईएस का तेल का कारोबार इस बात का बड़ा उदाहरण है कि आपसी मतभेद के बावजूद कैसे अलग-अलग संगठन इसका इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करते हैं। आईएसआईएस के लिए तेल बेचने के लिए सबसे बड़ा बाजार घरेलू ही था। इसमें अक्सर वे गुट भी शामिल होते थे, जो उसके खिलाफ लड़ते हैं। यहां तक कि कुछ रिपोर्ट बताती हैं कि सीरिया की सरकार भी उससे तेल खरीदती थी। वाल स्ट्रीट जर्नल के मुताबिक असद सरकार की ओर से तेल की खरीद की वजह से इराक और सीरिया में हो रहे लगातार हमलों के बीच आईएसआईएस को टिके रहने में मदद मिल रही है। [lxxiv] तेल की बिक्री से मिलने वाली रकम इसके लिए सबसे बड़ा वित्तीय संसाधन है। [lxxv] यह फिरौती से वसूली गई रकम से भी ज्यादा है। 2014-15 के दौरान आईएसआईएस के इस संसाधन में काफी कमी आई। 2014 में जहां 82 फीसदी राजस्व प्राकृतिक संसाधनों से आ रहा था, वहीं 2015 में यह घट कर 60 फीसदी तक पहुंच गया। इस दौरान आपराधिक गतिविधियों से मिलने वाली रकम का हिस्सा बढ़ा। 2014 में यह रकम 16 फीसदी थी, जो 15 में बढ़ कर 38 फीसदी तक पहुंच गई। [lxxvi] आईएसआईएस की संरचना में वित्त मंत्रालय संभालने के लिए कैबिनेट स्तर के मंत्री का प्रावधान है, जिसका प्रारंभिक काम कर व्यवस्था का नियंत्रण करना है। लेकिन सैन्य कमांडरों के साथ ही यह व्यक्ति दूसरे राजस्व संसाधनों का भी ध्यान रखता है। इसमें दान जुटाने सहित आईएसआईएस के इतर की वित्तीय गतिविधियां शामिल हैं। मार्च, 2016 में अबद अल रहमान मुस्तफा अल कादुली जिसे आईएसआईएस के वित्त मंत्री के तौर पर जाना जाता है, उसे अमेरिकी सेना के नेतृत्व में किए गए हमले में मार गिराया गया। उसकी मौत की घोषणा अमेरिकी रक्षा मंत्री एस्टन कार्टर की ओर से आईएसआईएस के शीर्ष अधिकारियों को निशाना बनाने की व्यापक अमेरिकी तैयारी के हिस्से के तौर पर की गई। [lxxvii] ईवाई के इनवेस्टिगेसन एंड डिसप्यूट सर्विसेज टीम और किंग्स कॉलेज, लंदन की ओर से किए गए एक अध्ययन के मुताबिक आईएसआईएस का कुल राजस्व 2014 के दो अरब अमेरिकी डॉलर से घट कर 2015 में 80 करोड़ अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया था। 

आईएसआईएस ने तेल के कारोबार से आगे निकलने की भी कोशिश की, जिसे प्राकृतिक गैस या महंगे धातुओं जैसी दूसरी प्राकृतिक संपदाओं के मुकाबले संचालित करना और बेचना अपेक्षाकृत आसान है। लेकिन इस क्षेत्र में काम करने के लिए जिस तकनीकी विशेषज्ञता की जरूरत थी, वह इसे उपलब्ध नहीं हो पा रही थी। ऐसे में तेल और गैस संपदा के प्रबंधन के लिए प्रशिक्षित जिहादी के लिए इसने 1,80,000 अमेरिकी डॉलर तक के वेतन का विज्ञापन दिया।

जैसे-जैसे आईएसआईएस के खिलाफ अभियान तेज हुआ, प्राकृतिक संसाधनों से मिलने वाला इसका राजस्व घटता गया और जैसा कि पहले बताया गया है, कर से मिलने वाली रकम और आपराधिक गतिविधियों से आय बढ़ी। आपराधिक गतिविधि इसके लिए गृह उद्योग की तरह हो गई जो इस्लामिक स्टेट के लिए संसाधन मुहैया करवा रही थी। अपने नियंत्रण में आने वाले भूभाग के 80 लाख लोगों के लिए इसने हर तरह की आर्थिक गतिविधियों पर कर की व्यवस्था कर दी थी। यह आबादी संख्या में डेनमार्क जैसे देशों की आबादी से ज्यादा है। आईएसआईएस धार्मिक अल्पसंख्यकों से संरक्षण कर या जजिया भी वसूलता है। करों के अलावा यह पानी और बिजली जैसी सुविधाओं पर भी शुल्क लेता है। उदाहरण के तौर पर सीरिया के रक्का में आईएसआईएस के दिवान अल खिदमत (सेवा विभाग) जैसे विभागों ने अपना समय और प्रयास स्थानीय लोगों से वसूली में लगाया।

2016 से लगातार जिस तरह भौगोलिक इलाकों पर आईएसआईएस का कब्जा कम हुआ है, उसके साथ ही इसके नियंत्रण वाली ऐसी आबादी भी घटी है, जिस पर वह कर लगा सके और जिससे फिरौती वसूल सके। इससे इसके संसाधनों पर काफी दबाव पड़ा है, जिसकी वजह से यह हवाला जैसे और ज्यादा खतरे वाले तरीके अपनाने को मजबूर हुआ है। जजिया लगाए जाने का महत्व भी इसके साथ बढ़ा है। आईएसआईएस ने येजीदी और सीरियाई ईसाईयों को निशाना बनाने में भी तेजी ला दी। संयुक्त राष्ट्र ने माना है कि इसने पिछले कुछ समय में सीरिया में धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय के 200 लोगों को मुक्त करवाने के लिए आईएसआईएस को 10 लाख अमेरिकी डॉलर का भुगतान किया है।

क्षेत्रीय प्रभाव और परिदृष्य

मोसुल में आईएसआईएस पर ईराकी सेना की जीत एक अहम घटना थी। हालांकि यह भी सच है कि इसने इस क्षेत्र के भविष्य को ले कर जितने सवालों का जवाब दिया, उससे ज्यादा नए सवाल खड़े कर दिए। इराक के मौजूदा प्रधानमंत्री हैदर अल अबादी ने ताजा मुक्त करवाए गए शहर से आईएसआईएस के कब्जे के खत्म होने के एलान के लिए लंबे सैन्य ऑपरेशन के समाप्त होेने के कुछ दिन के अंदर ही यहां का दौरा किया। इस दौरान ऐतिहासिक अल-नूरी मस्जिद भी क्षतिग्रस्त हो गई, जो शहर में आईएसआईएस का आखिरी ठौर था और इस्लामिक स्टेट का भी महत्वपूर्ण प्रतीक था।

आईएसआईएस के भौगोलिक इलाके पर कब्जे को समाप्त करवाए जाने के बावजूद सीरिया और इराक दोनों के लिए राजनीतिक स्थायित्व और सुरक्षा हासिल करना आने वाले समय में भी चुनौती बना रहेगा। तुलनात्मक रूप से इराक को ज्यादा स्थायी मामला माना जा सकता था। यहां रूस की कोई भागीदारी नहीं थी और आईएसआईएस के बाद के काल में पुनर्संरचना के लिए अमेरिका के साथ ही इराकी सरकार भी यहां राजनीतिक प्रक्रिया को चलाने में सहयोग कर सकती है। ईरान एक शिया शक्ति के रूप में इराकी समाज, अर्थव्यवस्था और राजनीति में स्वभाविक रूप से मौजूद रहने वाली शक्ति है। लेकिन आईएसआईएस के बाद के काल में तेहरान की भूमिका को ले कर मतभेद है। इससे पहले दोनों ही पक्षों ने प्रधानमंत्री अल मलीकी और अब के प्रमुख अल अबादी दोनों के नाम पर सहमति थी। [lxxxi]

मोसूल से आईएसआईएस के कब्जे का समाप्त होना इस संघर्ष में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है और इसने इस्लामिक स्टेट की समाप्ति की चर्चा को तेज किया है। यह चर्चा अर्ध राज्य ढांचे और कथित खिलाफत के लिहाज से सही हो सकती है, लेकिन मोटे तौर पर यह माना जा रहा है कि आईएसआईएस की विचारधारा और प्रकृति आने वाले निकट भविष्ट में इस क्षेत्र में बनी रहेगी। शोधकर्ता कोल बंजेल ने अपने शोध ‘फ्रोम पेपर स्टेट टू इस्लामिक स्टेट: आइडियोलॉजी ऑफ इस्लामिक स्टेट’ में कहा है कि अमेरिकी नेतृत्व वाले पश्चिमी गठबंधन की कामयाबी के बावजूद सैन्य अभियान वास्तव में आईएसआईएस विचारधारा को तीन मोर्चों पर मजबूत करेगा। पहला निश्चित तौर पर है अमेरिका, रूस और ईरान का अंतरराष्ट्रीय दखल; दूसरा है शिया नेतृत्व की ओर से सुन्नी को कमतर समझना (ऐसा तर्क जिसे अमेरिका की ओर से बढ़ावा दिया जाता था खास कर ईरान से परमाणु समझौते के लिहाज से); तीसरा है धर्मनिर्पेक्ष तंत्र अपने आप ही जिहादी विचारधारा को एक खतरा है। यह खास तौर पर अल्पसंख्यक अलावाईट असद सरकार को निशाना बनाता है। [lxxxii]

हालांकि आईएसआईएस का खंडित होना ही इस क्षेत्र की एकमात्र चिंता नहीं है। आज तक इस क्षेत्र के अधिकांश समूह इस्लामिक स्टेट से लड़ रहे हैं जबकि सभी के इरादे सीरियाई सरकार के लिए या फिर एक-दूसरे के विरुद्ध हैं। उदाहरण के तौर पर इराक और सीरिया के उत्तरी भाग में कुर्द और कुर्द पेशमेर्गा है। ये बिना किसी राज्य के रह रहे दुनिया के सबसे बड़े जातीय समूह हैं। कुर्द आंदोलन ने इराक, सीरिया और सबसे अहम तुर्की [lxxxiii] में आजादी के लिए लड़ाई लड़ी है। आईएसआईएस से लड़ते हुए अपने संसाधन और सैनिक गंवाए हैं, जो उनके अपने अस्तित्व के लिए आवश्यक था। आईएसआईएस के खिलाफ इनके अभियान में खासी कमी आने के बाद कुर्दों ने इराकी सरकार के साथ पूर्ण स्वायत्त कुर्दिस्तान के लिए पहले ही बातचीत शुरू कर दी है। मौजूदा घोषित स्वायत्तता के मुकाबले इनका प्रस्तावित पूर्ण स्वायत्त राज्य उत्तरी इराकी क्षेत्र से लिया जाएगा। कुर्दों ने आईएसआईएस से छीन कर जो इलाका अपने हाथ में ले रखा है, उसे इराक को वापस देने को तैयार हैं। बदले में इन्हें पूर्ण आजादी चाहिए। 

सीरिया में बहुत अलग-अलग तरह के समूह हैं और उनके अलग-अलग उद्देश्य हैं। यह समस्या ऐसी नहीं है जिसे आसानी से उपेक्षित किया जा सके। जैसा कि तालिका 4 में दिखाया गया है, कभी आईएसआईएस के कब्जे में रहे भौगोलिक इलाके का एक-दूसरे में घालमेल पहले ही शुरू हो गया है। आईएसआईएस के हटाए जाने के बाद अलग-अलग पक्षों ने इस पर अपना दावा कर दिया है। इनमें सीरियाई सरकार, फ्री सीरियन आर्मी और सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्स जैसे विद्रोही गुट, एचएसटी, अल कायदा से संबद्ध और दूसरे छोटे-मोटे जिहादी गुट आदि शामिल हैं।

इसी तरह आईएसआईएस के बाद के अहरार अल शाम जैसे दूसरे सलाफी-जिहादी गुट इस शून्य की स्थिति का फायदा उठाने के लिए अपने छोटे-छोटे द्वीप की तरह के शासन की योजना बनाने में जुटे हैं। इसे लिखे जाने के समय अल शाम अपने ‘एकीकृत प्रशासन’ के एलान की तैयारी कर रहा था। दूसरे शब्दों में यह इस इलाके पर अपने भौगोलिक नियंत्रण की बात कर रहा है जिसमें “सैन्य, राजनीतिक, नागरिक और न्यायिक नियंत्रण” शामिल है। [lxxxvi] उत्तर-पश्चिम सीरिया के इदलिब जैसे दूसरे शहरों में छोटे जिहादी गुट जिनमें अल कायदा से संबद्ध गुट भी शामिल हैं, पहले ही भौगोलिक और राजनीतिक नियंत्रण हासिल करने के लिए आपसी संघर्ष में जुट गए हैं। लंदन से चलने वाले सीरियन ऑबजर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स (एसओएचआर) के मुताबिक इदलिब में इस समय अल शाम और एचटीएस के बीच संघर्ष चल रहा है। यहां आईएसआईएस और सीरियाई सरकार दोनों ही अनुपस्थिति हैं और दोनों जिहादी गुट अपनी-अपनी सत्ता के लिए आतुर हैं। [lxxxvii] वेस्टप्वाइंट के कांबेटिंग टेररिज्म सेंटर की ओर से किए गए शोध में पाया गया है कि आईएसआईएस के शासन से आजाद होने के बाद से जून 2017 तक इराक और सीरिया के 16 शहरों में 1,468 हमले हुए हैं। [lxxxviii]

इदलिब अकेला ऐसा उदाहरण नहीं है जहां चल रहे मौजूदा वैचारिक और राजनीतिक संघर्ष में शहर के लोगों को आईएसआईएस के नियंत्रण के बाद के अपने भविष्य को तय करने में कोई खास अधिकार नहीं मिलने वाला। आईएसआईएस के बाद के राजनीतिक शून्य, वैचारिक संघर्ष और ऐतिहासिक कट्टरपंथी विभाजन के जानलेवा मिश्रण का असर पहले ही दिखाई देने लगा है। सीरिया और इराक दोनों ही जगह एक व्यवस्थित राज्य के ढांचे और अंतरराष्ट्रीय सीमा के अभाव में मौजूदा परिस्थितियों में आईएसआईएस के बाद भी इस्लामिक गुटों का प्रसार लाजमी है। उत्तरी हामा और पश्चमी अलेप्पो में भी ऐसा ही होने जा रहा है। पहले जो अलग-अलग युद्ध लड़े जा रहे थे, वे अब मुख्य भूमिका में आ गए हैं। यहां रहने वाले लोगों के लिए आईएसआईएस के बाद के काल में भी कोई खास बदलाव आने वाला नहीं है।

आईएसआईएस के बहुत से अधिकारी मारे गए और भौगोलिक इलाके पर इसका कब्जा खत्म हो गया, लेकिन इसने अपने पीछे इतनी शाखाएं छोड़ दी हैं कि ऐसा लगता है कि आने वाले भविष्य में भी इराक और उससे भी ज्यादा सीरिया में इस्लामी गुटों का व्यवस्थित कब्जा रहने वाला है। इन गुटों में आपसी सहमति की भी उम्मीद नहीं के बराबर है। अपने संभावित पटाक्षेप के साथ ही आईएसआईएस ने सीरिया और इराक में इतनी राजनीतिक और सामाजिक अव्यवस्था पैदा कर दी है, जिसमें खिलाफत व्यवस्था तैयार करने के इरादे से इसके दुबारा पैदा होने की पूरी आशंका बनी रहेगी।

इस्लामिक स्टेट का खाका खींच कर उसके भविष्य को समझने की ऊपर की गई कोशिश में यह बात स्पष्ट होती है कि दुनिया भर के दूसरे बहुत से आतंकवादी आंदोलनों के तरह इस्लामिक स्टेट भी एक विचार के तौर पर आने वाले समय में जिंदा रहने वाला है। इस शोध पत्र में विश्वास के साथ यह कहा जा रहा है कि जहां आईएसआईएस के लिए अपनी विचारधारा को इतनी तेजी से फैलाने में भौगोलिक कब्जे का बड़ा हाथ था, इस गुट की प्रबंधकीय शैली और लड़ाकों को तैयार करने और उनका मनोबल बनाए रखने की क्षमता भी एक अहम पहलू थी। मीडिया कुप्रचार के हिस्से में जिन रणनीति की चर्चा की गई है, मनोबल बनाए रखने के लिए अपनाई गई वे रणनीति नहीं अपनाई गई होती तो आईएसआईएस के लिए भौगोलिक कब्जे को बनाए रखना मुश्किल होता। मोसूल की लड़ाई के बाद, इस्लामिक स्टेट का भविष्य यही हो सकता है कि इराक में यह कमजोर हो और गुरिल्ला युद्ध के तरीकों को मजबूत करे और भविष्य में सीरिया में अपना विस्तार और ज्यादा करे। यह रक्का में अपना आधार गंवा रहा है और यह भी सच है कि आईएसआईएस के लिए आगे का रास्ता आसान नहीं होगा। इसे एक साथ बहुत से दुश्मनों से लड़ना होगा। फिर मजबूत होता अल कायदा जिसने कभी इसे पाल-पोस कर बड़ा किया उससे इसका संघर्ष हो सकता है जो आने वाले निकट भविष्य के लिए दुनिया के सबसे जटिल संघर्षों में से एक होगा। इराक और सीरिया के पड़ोस के लिए भी यह स्थिति कम खतरनाक नहीं होगी।


एंडनोट्स

[i] Rolling Back The Islamic State by Seth G Jones, James Dobbins, Daniel Byman, Christopher S. Chivvis, Ben Connable, Jeffery Martini, Eric Robinson and Nathan Chandler; RAND Corporation; Pg 15:

[ii] Transcript of Colin Powell’s UN Presentation. Accessed July 2017. http://edition.cnn.com/2003/US/02/05/sprj.irq.powell.transcript.09/

[iii] Mapping Militant Organizations: The Islamic State, Stanford University, Accessed May 2016: http://web.stanford.edu/group/mappingmilitants/cgi-bin/groups/view/1

[iv] Brian H. Fishman (2016) The Master Plan: ISIS, Al Qaeda, and the Jihadi Strategy for Final Victory, Yale, Pg 79 303.625

[v] Jessica D. Lewis, Al-Qaeda in Iraq Resurgent, Institute for the Study of War (ISW), 2013, Pg 7.

[vi] Rolling Back The Islamic State by Seth G Jones, James Dobbins, Daniel Byman, Christopher S. Chivvis, Ben Connable, Jeffery Martini, Eric Robinson and Nathan Chandler; RAND Corporation; Pg 80

[vii] Three Hotels Bombed in Jordan; at least 57 die, The New York Times. Accessed July 2017. http://www.nytimes.com/2005/11/10/world/middleeast/3-hotels-bombed-in-jordan-at-least-57-die.html?_r=0

[viii] Heirs of Zarqawi or Saddam? The Relationship between Al-Qaeda in Iraq and the Islamic State: Terrorism Research Initiative, University of Leiden, The Netherlands, 2015. Accessed June 2017. http://www.terrorismanalysts.com/pt/index.php/pot/article/view/443/html

[ix] Mujahidin Shura Council in Iraq: Fact or Fiction?, The Jamestown Foundation, 2006. Accessed July 2017. https://jamestown.org/program/mujahideen-shura-council-in-iraq-fact-or-fiction/

[x] Insurgent Leader Al-Zarqawi Killed In Iraq, The Washington Post. Accessed July 2017. http://www.washingtonpost.com/wp-dyn/content/article/2006/06/08/AR2006060800114.html

[xi] Al Qaeda in Iraq, by M.J. Kirdar, Center For Strategic & International Studies, 2011, Pg 5

[xii] Mapping Militant Organizations: The Islamic State, Stanford University, Accessed May 2016: http://web.stanford.edu/group/mappingmilitants/cgi-bin/groups/view/1

[xiii] ISIS is ‘best funded’ terror group ever, The Hill, 2014. Accessed August 2017. http://thehill.com/policy/defense/216023-senators-isis-is-best-funded-terrorist-group-in-history

[xiv] Comparing Al Qaeda and ISIS: Different Goals, Different Targets (Testimony) by Daniel L. Byman, Brookings Institution, 2015. Accessed August 2017. https://www.brookings.edu/wp-content/uploads/2016/06/Byman-AQ-v-IS-HSC-042315-2.pdf

[xv] Profile of a Killer by Loretta Napoleoni, Foreign Policy, 2009. Accessed May 2017. http://foreignpolicy.com/2009/10/20/profile-of-a-killer/

[xvi] Iblid.

[xvii] The Short, Violent Life Of Abu Musab Al-Zarqawi by Mary Anne Weaver, The Atlantic, 2006. Accessed May 2017. https://www.theatlantic.com/magazine/archive/2006/07/the-short-violent-life-of-abu-musab-al-zarqawi/304983/

[xviii] Iblid

[xix] The Zarqawi Node in the Terror Matrix by Matthew Levitt, The Washington Institute, 2003. Accessed July 2017. http://www.washingtoninstitute.org/policy-analysis/view/the-zarqawi-node-in-the-terror-matrix

[xx] ‘ISIS: Inside the Army of Terror’ by Michael Weiss and Hassan Hassan; Pg 13 (2016)

[xxi] The Short, Violent Life Of Abu Musab Al-Zarqawi by Mary Anne Weaver, The Atlantic, 2006. Accessed May 2017. https://www.theatlantic.com/magazine/archive/2006/07/the-short-violent-life-of-abu-musab-al-zarqawi/304983/

[xxii] Ellen Knickmeyer and Jonathan Finer, Insurgent Leader Al-Zarqawi Killed In Iraq, The Washington Post, June 2006. Accessed May 2017. http://www.washingtonpost.com/wp-dyn/content/article/2006/06/08/AR2006060800114.html

[xxiii] The Islamic State’s First War Minister by Kyle Orton, Henry Jackson Society, 2017. Accessed July 2017. https://kyleorton1991.wordpress.com/2017/01/25/the-islamic-states-first-war-minister/

[xxiv]Senior Qaeda Figure in Iraq a myth: US Military, Reuters, 2007. Accessed May 2017. http://www.reuters.com/article/us-iraq-qaeda-idUSL1820065720070718

[xxv] Will McCants, The Believer: How Abu Bakr al-Baghdadi Became Leader of the Islamic State, The Brookings Institution, 2015. Accessed May 2017. http://csweb.brookings.edu/content/research/essays/2015/thebeliever.html

[xxvi] A Biography of Abu Bakr al-Baghdadi, SITE Intelligence Group, 2014. Accessed May 2017. http://news.siteintelgroup.com/blog/index.php/categories/jihad/entry/226-the-story-behind-abu-bakr-al-baghdadi

[xxvii] Martin Chulov, ISIS: The inside story, The Guardian, 2014. Accessed May 2017. https://www.theguardian.com/world/2014/dec/11/-sp-isis-the-inside-story

[xxviii] Iblid.

[xxix] Will McCants, The Believer: How Abu Bakr al-Baghdadi Became Leader of the Islamic State, The Brookings Institution, 2015. Accessed May 2017. http://csweb.brookings.edu/content/research/essays/2015/thebeliever.html

[xxx] There are many books and papers on ISIS and its functioning and rise, however, the author recommends Oliver Roy’s Jihad and Death: The Global Appeal of Islamic State for a well-rounded explanation for this argument.

[xxxi] Marc Lynch, Iraq Between Maliki and the Islamic State, The Project on Middle East Political Science, 2014, Pg 7.

[xxxii] MAJ James C. Reese, Lighting the Eclipse: Comparing the Planning for the Occupations of Germany and Iraq, School of Advanced Military Studies; United States Army Command and General Staff College Fort Leavenworth, Kansas. 2012. Pg 3. Accessed July 2017. file:///D:/ORFGuest/Downloads/ADA611425%20(1).pdf

[xxxiii] Major Robert S. Weiler, Eliminating Success During Eclipse II: An Examination of the Decision to Disband the Iraqi Military, Marine Corps University, 2009, Pg 10. Accessed May 2017. http://www.dtic.mil/dtic/tr/fulltext/u2/a511061.pdf

[xxxiv] Kendall D. Gott and Michael G. Brooks, Warfare In The Age of Non-State Actors, Combat Studies Institute Press Fort Leavenworth, Kansas. 2007. Pg 116.

[xxxv] The Free for all in Syria, CNN, 2017. Accessed May 2017. http://edition.cnn.com/2016/08/25/middleeast/syria-isis-whos-fighting-who-trnd/index.html

[xxxvi] Kabir Taneja, Counter Narratives Cloud the Fate of 29 Indians, The Sunday Guardian, 2014. Accessed May 2017. http://www.sunday-guardian.com/investigation/counter-narratives-cloud-the-fate-of-39-indians

[xxxvii] Rolling Back The Islamic State by Seth G Jones, James Dobbins, Daniel Byman, Christopher S. Chivvis, Ben Connable, Jeffery Martini, Eric Robinson and Nathan Chandler; RAND Corporation; Pg 79

[xxxviii] Iblid.

[xxxix] SyriaLive cartographic database observed and accessed throughout June 2017 and July 2017.

[xl] Iraq and Syria: How Many Foreign Fighters are Fighting for ISIL?, The Telegraph, 2016. Accessed June 2017. http://www.telegraph.co.uk/news/2016/03/29/iraq-and-syria-how-many-foreign-fighters-are-fighting-for-isil/

[xli] Noah Bonsey, The Post Caliphate Gauntlet In Eastern Syria, War On The Rocks, 2017. Accessed July 2017. https://warontherocks.com/2017/07/the-post-caliphate-gauntlet-in-eastern-syria/

[xlii] Charlie Winter, How ISIS Survives the Fall of Mosul, The Atlantic, 2017. Accessed July 2017. https://www.theatlantic.com/international/archive/2017/07/mosul-isis-propaganda/532533/

[xliii] Ibid.

[xliv] Aaron Y. Zelin, The Islamic State’s Territorial Methodology, The Washington Institute for Near East Policy. 2016. Pg 5.

[xlv] Key ISIS spokesman killed in Aleppo, CNN, 2016. Accessed July 2017. http://edition.cnn.com/2016/08/30/middleeast/isis-spokesman-killed/index.html

[xlvi] Islamic State goes ‘Mad Max’ in fight for Mosul, News.com.au, 2016. Accessed July 2017. http://www.news.com.au/lifestyle/real-life/wtf/islamic-state-goes-mad-max-in-its-fight-for-mosul-with-homemade-armoured-vehicles/news-story/3c7de63c2dc6cd6d32180e3de4cc389e

[xlvii] Charlie Winter, Media Jihad: The Islamic State’s Doctrine for Information Warfare, ICSR. 2017. Pg 13.

[xlviii] Jason Burke, The Age of Selfie Jihad: How Evolving Media Technology Is Changing Terrorism, CTC Westpoint, 2016. Pg 2. Accessed May 2017. https://ctc.usma.edu/posts/the-age-of-selfie-jihad-how-evolving-media-technology-is-changing-terrorism

[xlix] Iblid.

[l] Andy Bloxham, Osama bin Laden’s Past Video Messages, The Telegraph, 2011. Accessed July 2017. http://www.telegraph.co.uk/news/worldnews/al-qaeda/8522949/Osama-bin-Ladens-past-video-messages.html

[li] The Age of Selfie Jihad: How evolving media technology is changing terrorism – Jason Burke https://ctc.usma.edu/posts/the-age-of-selfie-jihad-how-evolving-media-technology-is-changing-terrorism

[lii] The Call for a Global Islamic Resistance by Abu Musab al-Suri – English translation of key parts. Accessed June 2017. https://archive.org/stream/TheCallForAGlobalIslamicResistance-EnglishTranslationOfSomeKeyPartsAbuMusabAsSuri/TheCallForAGlobalIslamicResistance
SomeKeyParts_djvu.txt

[liii] “The Thirty Suggestions” of Aby Ayyub al-Misri, International Institute for Counter-Terrorism, Israel. Accessed May 2017. https://www.ict.org.il/Article/1679/the-thirty-suggestions-of-abu-ayyub-al-misri

[liv] Charlie Winter, Media Jihad: The Islamic State’s Doctrine for Information Warfare, ICSR. 2017. Pg 11.

[lv] Dan Lamothe, Once Again, Militants Guantanamo Inspired Orange Suit In An Execution, The Washington Post. 2014. Accessed June 2017. https://www.washingtonpost.com/news/checkpoint/wp/2014/08/28/once-again-militants-use-guantanamos-orange-jumpsuit-in-an-execution/?utm_term=.2b94d1f1bac2

[lvi] Brendan I Koerner, Why ISIS Is Winning the Social Media War, Wired. 2016. Accessed June 2017. https://www.wired.com/2016/03/isis-winning-social-media-war-heres-beat/

[lvii] Caleb Weiss, Philippines-based jihadist group pledge allegiance to Islamic State, The Long War Journal. 2016. Accessed May 2017. http://www.longwarjournal.org/archives/2016/02/philippines-based-jihadist-groups-pledge-allegiance-to-the-islamic-state.php

[lviii] Rumiyah issue 10 – https://azelin.files.wordpress.com/2017/06/rome-magazine-10.pdf

[lix] Haroro J. Ingram, An Analysis of Islamic State’s Dabiq Magazine, Australian Journal of Political Science, 2016. Pg 2.

[lx] Harleen K Gambhir, Dabiq: The Strategic Messaging of the Islamic State, Institute for the Study of War (ISW). 2014. Accessed July 2017. https://pdfs.semanticscholar.org/5a52/fa4981379be0b5fbd11a4d610a9247d0b937.pdf?_ga=2.43779365.1025930965.1500014409-1352326737.1500014409

[lxi] Rukmini Callimachi (@rcallimachi), https://twitter.com/rcallimachi/status/815375382249500672. 01/01/2017. 7:23 AM. Tweet.

[lxii] Harriet Alexander, Tweeting Terrorism: How al Shabab Live Blogged the Nairobi Attacks, The Telegraph. 2013. Accessed July 2017. http://www.telegraph.co.uk/news/worldnews/africaandindianocean/kenya/10326863/Tweeting-terrorism-How-al-Shabaab-live-blogged-the-Nairobi-attacks.html

[lxiii] J.M. Berger and Jonathan Morgan, The ISIS Twitter Census: Defining and Describing the Population of ISIS Supporters on Twitter, The Brookings Institution, 2015. Accessed June 2017. https://www.brookings.edu/research/the-isis-twitter-census-defining-and-describing-the-population-of-isis-supporters-on-twitter/

[lxiv] James P Farwell, The Media Strategy of ISIS, International Institute for Strategic Studies. 2014. Pg 50. https://www.iiss.org/en/publications/survival/sections/2014-4667/survival–global-politics-and-strategy-december-2014-january-2015-bf83/56-6-04-farwell-97ca

[lxv] J. M. Berger, How ISIS Games Twitter, The Atlantic. 2014. Accessed July 2017. https://www.theatlantic.com/international/archive/2014/06/isis-iraq-twitter-social-media-strategy/372856/

[lxvi] ISIS Affiliated Nashir Media Foundation Releases Android App, MEMRI. 2017. http://cjlab.memri.org/lab-projects/tracking-jihadi-terrorist-use-of-social-media/isis-affiliated-nashir-media-foundation-releases-android-app-posting-isis-news-visual-releases-pictorial-reports-from-islamic-state/

[lxvii] Laura Smith, Messaging App Telegram Centerpiece of IS Social Media Strategy, BBC. 2017. Accessed July 2017. http://www.bbc.com/news/technology-39743252

[lxviii] Mia Bloom, Hicham Tiflati, John Horgan, Navigating ISIS’s Preferred Platform: Telegram, Georgia State University, 2017, Pg 9.

[lxix] Nusra Front propaganda video, YouTube. 2017. https://www.youtube.com/watch?v=s5WAXrZHc8I

[lxx] Free Syrian Army (FSA) recruitment propaganda video, YouTube. 2017. https://www.youtube.com/watch?feature=youtu.be&v=CJGp2kth-Ec&app=desktop

[lxxi] http://www.nytimes.com/2006/11/26/world/middleeast/26insurgency.html

[lxxii] ISIS Financing 2015 – Centre for the Analysis of Terrorism (CAT), 2016. Pg 7. Accessed July 2017. http://cat-int.org/wp-content/uploads/2016/06/ISIS-Financing-2015-Report.pdf

[lxxiii] Iblid.

[lxxiv] Banoit Faucan and Ahmed Al Omran, Islamic State Steps Up Oil & Gas Sales to Assad Regime, The Wall Street Journal, 2017. Accessed July 2017. https://www.wsj.com/articles/islamic-state-steps-up-oil-and-gas-sales-to-assad-regime-1484835563

[lxxv] Iblid.

[lxxvi] Iblid.

[lxxvii] Kyle Orton, Obituary: Abd al-Rahman Mustafa al-Qudali. 2016. Accessed June 2017. https://kyleorton1991.wordpress.com/2016/03/25/obituary-abd-ar-rahman-mustafa-al-qaduli/

[lxxviii] Stephen Heibner, Peter R Neumann, John Holland McCowan, Rajan Basra, Caliphate in Decline: An Estimate of Islamic State’s Financial Fortunes, ICSR, Pg 9. 2017.

[lxxix] Iblid.

[lxxx] ISIS Advertises professional jobs for captured oil fields, The Daily Mail, 2014. http://www.dailymail.co.uk/news/article-2816755/Wanted-experienced-oil-plant-manager-pay-140-000-p-send-CV-ISIS-Jihadists-advertising-skilled-professionals-man-failing-oil-fields-string-fatal-accidents.html

[lxxxi] Tim Arango, Iran Dominates in Iraq After US ‘Handed the Country Over’, The New York Times, 2017. Accessed July 2017. https://www.nytimes.com/2017/07/15/world/middleeast/iran-iraq-iranian-power.html?_r=0

[lxxxii] Cole Bunzel, From Paper State to Caliphate: The Ideology of the Islamic State, Brookings Center for Middle East Policy, 2015. Pg 36. Accessed May 2017. https://www.brookings.edu/wp-content/uploads/2016/06/The-ideology-of-the-Islamic-State.pdf

[lxxxiii] Sarah Leduc, Kurds: World’s Largest Stateless Nation, France24, 2015. Accessed July 2017. http://www.france24.com/en/20150730-who-are-kurds-turkey-syria-iraq-pkk-divided

[lxxxiv] Mark Townsend, Kurds Offer Land for Independence in Struggle to Reshape Iraq, The Observer, 2017. Accessed July 2017. https://www.theguardian.com/world/2017/feb/25/mosul-peshmerga-kurds-iraq-baghdad-erbil

[lxxxv] For the US and Russia, True Progress in Syria is Still a Distant Prospect, Stratfor, 2017. Accessed July 2017. https://worldview.stratfor.com/article/us-and-russia-true-progress-syria-still-distant-prospect?utm_source=Twitter&utm_medium=social&utm_campaign=article

[lxxxvi] Charles Lister (@Charles_Lister), https://twitter.com/Charles_Lister/status/886361570816786432. 16/07/2017. 4:37 AM. Tweet.

[lxxxvii] Islamist Insurgents Clash Across Syria’s Idlib, Reuters, 2017. Accessed July 2017. https://www.reuters.com/article/us-mideast-crisis-syria-idlib-idUSKBN1A40VN

[lxxxviii] The Fight Goes On: The Islamic State’s Continuing Military Efforts In Liberated Cities by Daniel Milton, Muhammad al-Ubaydi, Combating Terrorism Center at Westpoint, 2017, Pg 3. Accessed June 2017. – https://ctc.usma.edu/posts/the-fight-goes-on-the-islamic-states-continuing-military-efforts-in-liberated-cities

[lxxxix] The Fight Goes On: The Islamic State’s Continuing Military Efforts In Liberated Cities by Daniel Milton, Muhammad al-Ubaydi, Combating Terrorism Center at Westpoint, 2017, Pg 4. Accessed June 2017. – https://ctc.usma.edu/posts/the-fight-goes-on-the-islamic-states-continuing-military-efforts-in-liberated-cities

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