Published on Apr 25, 2019 Updated 0 Hours ago

क्या ये आर्थिक मॉडल गरीबी पर लगाम लगाने में प्रभावी है?

न्यूनतम आय गारंटी, न्याय, और कुछ ‘न्यायसंगत’ सवाल

केन्द्र सरकार की योजनाओं के लिए आकर्षक शब्दावलियां गढ़ने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कौशल को प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस की ओर से एक तगड़ी चुनौती मिली है। कांग्रेस ने गरीबों के लिए न्यूनतम आय गारंटी योजना पेश की है और इसे न्याय (न्यूनतम आय योजना) का नाम दिया है। राहुल गांधी ने इसे “गरीबी पर सर्जिकल स्ट्राइक” करार दिया है जो मौजूदा सरकार के राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी नैरेटिव के समक्ष आर्थिक नैरेटिव पेश करने का एक स्पष्ट प्रयास दिखता है।

हांलाकि, इस योजना ने (अभी तक की व्याख्या के मुताबिक) कुछ असहज सवाल खड़े किये हैं।

न्याय योजना लांच करते वक्त उसकी रूपरेखा पेश करते हुए कांग्रेसी नेताओं ने कहा था कि 20 प्रतिशत सर्वाधिक निर्धन लोगों की आय औसतन करीब 6,000 रूपये है और यह योजना इन परिवारों को हर महीने 6,000 रूपये और मुहैया करायेगी ताकि इन परिवारों की मासिक आय हर महीने 12,000 रूपये हो जाये यानि 144,000 रूपये सालाना। कांग्रेस के मुताबिक यह योजना देश के सर्वाधिक गरीब पांच करोड़ परिवारों के 25 करोड़ लोगों को लाभ पहुंचायेगी।

“गरीब परिवार” और “आर्थिक रूप से पिछड़े व्यक्ति” की कांग्रेस और बीजेपी दोनों की परिभाषा मौजूदा आधिकारिक “गरीबी रेखा” के आय स्तर से मेल नहीं खाती।

बीजेपी के नेतृत्व वाली मौजूदा केन्द्र सरकार ने आर्थिक तौर पर पिछड़े सामान्य श्रेणी के लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण मुहैया कराने के लिए जनवरी, 2019 में हड़बड़ी में संवैधानिक संशोधन विधेयक पारित करते समय बताया था कि 8 लाख रूपये वार्षिक (यानि करीब 66,667 रूपये मासिक) से कम आय वाले लोग “आर्थिक तौर पर पिछड़े” माने जायेंगे। हांलाकि विधेयक के मूल पाठ में किसी खास आय सीमा उल्लेख नहीं है।

 “गरीब परिवार” और “आर्थिक रूप से पिछड़े व्यक्ति” की कांग्रेस और बीजेपी दोनों की क्रमानुसार परिभाषा मौजूदा आधिकारिक “गरीबी रेखा” के आय स्तर से मेल नहीं खाती। गरीबी के आकलन के लिए 2009-10 और 2011-12 में सुरेश तेंडुलकर कमेटी रिपोर्ट की सिफारिशों का उपयोग किया गया और इसमें ग्रामीण इलाकों के लिए 27 रूपये और शहरी इलाकों के लिए 33 रूपये दैनिक आय की सीमारेखा तय की गयी थी। बाद में रंगराजन कमेटी ने 2014 में अपनी रिपोर्ट सौंपी जिसमें गरीबी के आय स्तर को संशोधित करके ग्रामीण इलाकों के लिए 32 रूपये और शहरी इलाकों के लिए 47 रूपये दैनिक निर्धारित कर दिया गया था यानि ग्रामीण इलाकों के लिए 11,520 रूपये और शहरी इलाकों के लिए 16,920 रूपये सालाना।

गरीबी (या आर्थिक पिछड़ेपन) के ये मानदंड किसी भी रूप में दोनों बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों द्वारा निर्धारित सीमारेखा से मेल नहीं खाते।

अगर आय सीमा 16,920 रूपये या 11,520 रूपये की मामूली राशि के बदले 72,000 रूपये और 800,000 रूपये वार्षिक निर्धारित कर दी जाये तो “गरीब” और “आर्थिक तौर पर पिछड़े” वर्ग के लोगों की आबादी बढ़कर कितनी हो जायेगी? अगर ये पार्टियां इस बार सत्ता में आईं तो क्या ये गरीबी की आय सीमा की परिभाषा में बदलाव करेंगी?

इन राजनीतिक दलों ने “गरीब” की परिभाषा तय करते वक्त न्यूनतम आय सीमा के मानदंड में परिवर्तन क्यों नहीं किया जबकि उनके पास ऐसा करने का अवसर था? अगर आय सीमा 16,920 रूपये या 11,520 रूपये की मामूली राशि के बदले 72,000 रूपये और 800,000 रूपये वार्षिक निर्धारित कर दी जाये तो “गरीब” और “आर्थिक तौर पर पिछड़े” वर्ग के लोगों की आबादी बढ़कर कितनी हो जायेगी? अगर ये पार्टियां इस बार सत्ता में आईं तो क्या ये गरीबी की आय सीमा की परिभाषा में बदलाव करेंगी?

ये पहली श्रेणी के सवाल हैं जिन्हें आम नागरिक और मतदाता को नैतिक रूप से पूछना चाहिए।

न्यूनतम आय गारंटी या सकल मूलभूत आय (यूनिवर्सल बेसिक इनकम) का विचार अर्थशास्त्रियों का सपना रहा है क्योंकि 20वीं सदी में लोगों का जीवन स्तर मूलभूत स्तर से ऊपर उठाने की आकांक्षा विश्व भर में अधूरी रह गयी। एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के अनेक देशों में गरीबी दूर नहीं हुई और बढ़ती आय असमानता ने समस्या को और गंभीर बना दिया।

विभिन्न देशों में गिनी सूचकांक के रूझान (तालिका 1) इस निर्धारित तथ्य की पुष्टि करते हैं। गिनी सूचकांक इस बात का आकलन करता है कि किसी देश में आय का वितरण आदर्श समान वितरण से कितना भिन्न है। गिनी सूचकांक 0 है तो यह पूर्ण स्तर की समानता को और अगर 100 है तो पूर्ण स्तर की असमानता को इंगित करता है।

आज कल किसी भी कल्याण योजना के कार्यान्वयन में JAM (जनधन, आधार और मोबाइल) की तिकड़ी के उपयोग पर कुछ ज्यादा ही भरोसा किया जाता है लेकिन ऐसे कई उदाहरण सामने आये हैं जब लाभ को सुपात्र लाभार्थियों तक प्रभावी रूप से स्थानांतरित करने में ये तिकड़ी नाकाम रही है।

इसकी बजाय, सकल रोजगार गारंटी (मौजूदा योजना का विस्तार शहरी क्षेत्रों तक करके), सकल मूलभूत सेवाएं (स्वास्थ्य और शिक्षा सहित) और सकल गैर-सहभागी पेंशन (बुजुर्गों और दिव्यांगों) की एक अलग तिकड़ी में “गरीबी पर सर्जिकल स्ट्राइक” करने की ज्यादा प्रभावी क्षमता है। जयती घोष जैसे अर्थशास्त्रियों के मुताबिक इस तिकड़ी में स्वैच्छिक चयन की सुविधा है। इस वजह से किसी को गलत तरीके से इसमें शामिल करने या किसी को अनुचित रूप से वंचित रखने की आशंका कम है और इसमें बेहतर जीवन स्तर मुहैया कराने की क्षमता ज्यादा है। इससे दूसरे प्रयासों को भी बढ़ावा मिल सकता है और अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों की आर्थिक गतिविधियों में तेजी आ सकती है जिससे सरकार की आय भी बढ़ सकती है। इन कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में न्याय की तुलना में तीन गुना ज्यादा धनराशि की जरूरत होगी लेकिन इसका पूरी आबादी पर ज्यादा व्यापक सकारात्मक प्रभाव होगा।

क्या कांग्रेस गरीबी कम करने के लिए सबको ध्यान में रखकर ऐसी योजना को लागू करने की इच्छुक है? यह किसी मतदाता द्वारा पूछा जाने वाले आखिरी न्यायसंगत सवाल होना चाहिए — एक खास अवधि के लिए।

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.