America के midterm elections में अब कुछ दिनों का ही समय बचा है. आज मतदाता महंगाई और तेल की बढ़ी क़ीमतों से परेशान है. वहीं, खाने पीने के सामानों की क़ीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई पर हैं. ऐसे में चुनाव पूर्व के सर्वेक्षण बता रहे हैं कि, अमेरिकी संसद के निचले सदन House of representatives में वो अपना बहुमत गंवा देंगे. वहीं, senate में बमुश्किल से ही उनके पास बहुमत बच पाएगा.
डेमोक्रेटिक पार्टी की इस अलोकप्रियता के पीछे सबसे बड़ी वजह यही है कि वो जनता को अपना ये प्रमुख संदेश देने में नाकाम रहे हैं कि, पिछले चुनाव में हेरा-फेरी से जुड़ी साज़िश की कहानियां गढ़-गढ़कर, रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार, लोकतंत्र के लिए ख़तरा बन गए हैं. क्योंकि, रिपब्लिकन पार्टी के नेताओं द्वारा चुनाव में धांधली के दुष्प्रचार के चलते ही अराजक तत्वों ने 6 जनवरी 2021 को अमेरिकी संसद भवन पर हमला कर दिया था. आज मतदाता बढ़ती क़ीमतों और महंगाई को लेकर ज़्यादा चिंतित हैं.
राष्ट्रपति जो बाइडेन की लोकप्रियता के आंकड़े 40-42 प्रतिशत हैं, जो किसी भी बड़े चुनाव से किसी राष्ट्रपति की सबसे ख़राब रेटिंग में से एक है. डेमोक्रेटिक पार्टी के बहुत से उम्मीदवार उन्हें स्टार प्रचारक के तौर पर बुलाने से परहेज़ कर रहे हैं. ख़ास तौर से उन सीटों पर जहां मुक़ाबला तगड़ा है.
राष्ट्रपति जो बाइडेन की लोकप्रियता के आंकड़े 40-42 प्रतिशत हैं, जो किसी भी बड़े चुनाव से किसी राष्ट्रपति की सबसे ख़राब रेटिंग में से एक है. डेमोक्रेटिक पार्टी के बहुत से उम्मीदवार उन्हें स्टार प्रचारक के तौर पर बुलाने से परहेज़ कर रहे हैं. ख़ास तौर से उन सीटों पर जहां मुक़ाबला तगड़ा है. बाइडेन के बजाय, पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा अपनी पार्टी के लिए प्रचार करके, उसकी साख बचाने की कोशिश कर रहे हैं. ओबामा के मातहतों के पास, ऐसी अर्ज़ियों की भरमार है जिसमें उनसे किसी उम्मीदवार के समर्थन में वीडियो बनाने और फंड जुटाने के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए कहा जा रहा है.
डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए हालात इतने ख़राब हैं कि उसके दबदबे वाले ओरेगन जैसे राज्यों में भी त्रिकोणीय मुक़ाबला देखने को मिल रहा है. कहा जा रहा है कि ओरेगन में क्रिश्चियन ड्राज़न, गवर्नर का चुनाव जीत सकते हैं. ऐसा होता है तो ओरेगन में कई दशकों बाद कोई रिपब्लिकन गवर्नर होगा. क्रिश्चियन की लोकप्रियता के पीछे बेघरों और सड़कों पर प्रदर्शनकारियों द्वारा हिंसा करने की बढ़ती तादाद जैसी वजहें हैं. न्यूयॉर्क में भी यही कहानी दोहराई जा रही है. डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवारों को कड़ी टक्कर मिल रही है. इसके चलते बहुत से उम्मीदवार पिछले साल, पुलिस को फंड देना बंद करने जैसे अपने बेहद सख्त रवैये से पीछे हटने को मजबूर हुए हैं.
रो बनाम वेड विवाद
कुछ हफ़्तों पहले तक डेमोक्रेटिक पार्टी को ये उम्मीद थी कि वो मध्यावधि चुनावों के बाद हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव्स में अपना मामूली बहुमत बरक़रार रखने में सफल रहेगी. क्योंकि उस वक़्त अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट द्वारा रो बनाम वेड मुक़दमे का फ़ैसला पलट दिए जाने से जनता में भारी नाराज़गी थी. इससे, अमेरिका में महिलाओं के गर्भपात कराने के अधिकार ख़त्म हो गए थे. महिलाएं इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ एकजुट हो गई थीं. महिलाओं ने बड़ी तादाद में मतदान के लिए रजिस्ट्रेशन कराया था, ताकि वो रिपब्लिकन पार्टी के ख़िलाफ़ अपने ग़ुस्से का इज़हार कर सकें. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद रिपब्लिकन पार्टी के नेता, कई राज्यों में गर्भपात के अधिकार ख़त्म करने के लिए क़ानून बना रहे थे, या ऐसे प्रस्ताव ला रहे थे जिससे महिलाओं का ये हक़ छिन जाए.
इस साल गर्मियों में डेमोक्रेटिक पार्टी की स्थिति मज़बूत बनाने वाले दूसरे मुद्दों में टेक्सस के उवाल्डे शहर में एक स्कूल में क़त्लेआम के बाद बंदूकों पर लगाम लगाने और 6 जनवरी के मामले को लेकर संसद की सेलेक्ट कमेटी के सामने चल रही सुनवाई के दौरान सामने आई बातों के चलते, रिपब्लिकन पार्टी से लोकतंत्र को ख़तरे का माहौल बन रहा था. संसदीय समिति ने ये बात साबित करने की कोशिश की थी कि पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप न केवल 6 जनवरी 2021 को अमेरिकी संसद पर हमले के लिए अपने समर्थकों को उकसाने के दोषी थे, बल्कि उन्होंने चुनाव के नतीजों को लेकर लोगों के मन में वहम भरने का काम भी बढ़-चढ़कर किया था. ऐसे में, डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता जनता को ये समझा रहे थे कि ट्रंप का समर्थन पाने वाले रिपब्लिकन उम्मीदवारों का चुनाव करना, अमेरिका के लोकतंत्र के लिए ख़तरा पैदा करने जैसा होगा.
जैसे जैसे वक़्त बीता, तेल के दाम में तेज़ी और महंगाई जैसे मुद्दे मतदाताओं के ज़हन पर हावी होते है. वहीं गर्भपात के अधिकार जैसे मुद्दे अगर तीसरे नहीं, तो दूसरे दर्जे के मसले बन गए. जहां तक लोकतंत्र को ख़तरे जैसे अस्तित्व के संकट वाले मुद्दों की बात है, तो डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता अपने राजनीतिक विज्ञापनों में कभी-कभार ही इस बात को हवा दे रहे हैं.
लेकिन, जैसे जैसे वक़्त बीता, तेल के दाम में तेज़ी और महंगाई जैसे मुद्दे मतदाताओं के ज़हन पर हावी होते है. वहीं गर्भपात के अधिकार जैसे मुद्दे अगर तीसरे नहीं, तो दूसरे दर्जे के मसले बन गए. जहां तक लोकतंत्र को ख़तरे जैसे अस्तित्व के संकट वाले मुद्दों की बात है, तो डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता अपने राजनीतिक विज्ञापनों में कभी-कभार ही इस बात को हवा दे रहे हैं. क्योंकि चुनाव के रणनीतिकारों ने उन्हें ये बताया है कि आज मतदाता उन बातों से ज़्यादा प्रभावित हो रहे हैं, जो उनकी अपनी ज़िंदगी पर असर डालने वाले हैं. उन्हें उन घटनाओं को लेकर ज़्यादा फ़िक्र नहीं है, जो लगभग दो साल पहले वॉशिंगटन डी.सी. में हुई थी.
ये सच है कि अर्थव्यवस्था से जुड़ी बुरी ख़बरें लगातार सुर्ख़ियां बनी हुई हैं और अगले साल अमेरिका में सुस्ती आने की आशंका लगातार जताई जा रही है. ये बातें अमेरिकी जनता का भरोसा तो नहीं ही बढ़ा रही हैं. इसका नतीजा ये हुआ है कि टैक्स, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े बड़े बिल संसद से पास कराने में जो बाइडेन प्रशासन की ज़बरदस्त कामयाबी भी पर्दे के पीछे चली गई है.
यूक्रेन में युद्ध और ओपेक प्लस देशों द्वारा नवंबर में तेल के उत्पादन में कटौती करने के एलान ने भी डेमोक्रेटिक पार्टी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. राष्ट्रपति जो बाइडेन को तेल की क़ीमतें स्थिर रखने और उठा-पटक से बचने के लिए बार बार अमेरिका के सामरिक पेट्रोलियम भंडार से तेल जारी करना पड़ रहा है.
बाइडेन के आदेश पर इस साल अमेरिका के सामरिक तेल भंडार से 16.5 करोड़ बैरल तेल खुले बाज़ार में जारी किया गया है. रिपब्लिकन पार्टी के नेता इसे राष्ट्रीय संसाधनों के ख़तरनाक ढंग से कम होने के तौर पर देख रहे हैं और इसे ऐसा फ़ैसला बता रहे हैं, जिससे बचा जा सकता था. बाइडेन की परेशानियों से फ़ायदा उठाने के लिए रिपब्लिकन पार्टी के कुछ उम्मीदवारों ने यूक्रेन को अमेरिका द्वारा लगातार समर्थन देने पर भी सवाल उठाए हैं. प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा किए गए एक पोल में पाया गया था कि युद्ध में यूक्रेन की हार को लेकर केवल 38 फ़ीसद अमेरिकी नागरिक बेहद चिंतित थे. जबकि मई महीने में ये तादाद 55 प्रतिशत थी.
हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव्स में रिपब्लिकन पार्टी के नेता केविन मैक्कार्थी ने हाल ही में कहा था कि उनकी पार्टी अगर वो चुनाव जीतते हैं तो उनकी पार्टी यूक्रेन को ‘आंख मूंदकर समर्थन’ नहीं देगी, क्योंकि ‘सुस्ती का सामना कर रही जनता’ ये बिल्कुल नहीं चाहेगी. फरवरी में रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले के बाद से अमेरिका, यूक्रेन को आर्थिक और सामरिक मदद की मद में 60 अरब डॉलर से ज़्यादा रक़म ख़र्च कर चुका है. लेकिन, अब इस बात पर अमेरिकी जनता की आम सहमति में दरारें पड़ती दिख रही हैं.
उच्च शिक्षा पर राजनीति
ऐतिहासिक रूप से देखें, तो अमेरिकी मतदाताओं ने मध्यावधि चुनावों में कभी भी सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में मतदान नहीं किया है. लेकिन, इस बार तो डेमोक्रेटिक पार्टी जनता के सामने साफ़ तौर पर अपनी बात कह पाने में भी नाकाम रही है. अगस्त में बाइडेन ने सवा लाख डॉलर से कम सालाना आमदनी वालों के दस हज़ार डॉलर तक के छात्रों के क़र्ज़ को माफ़ कर दिया था. बाइडेन के इस फ़ैसले से जनता बेहद नाराज़ हुई थी, क्योंकि इससे अमेरिका के करदाताओं पर कुल मिलाकर 400 अरब डॉलर का बोझ बढ़ने का अंदेशा है. सुप्रीम कोर्ट ने छात्रों को क़र्ज़ में राहत देने वाले इस फ़ैसले को लागू करने पर रोक लगाने से जुड़ी आपातकालीन याचिका ख़ारिज कर दी थी. इससे बाइडेन प्रशासन को काफ़ी राहत मिली थी. लेकिन, आगे चलकर ये मामला अदालती पचड़े में फंसना ही है.
छात्रों का क़र्ज़ माफ़ करने के फ़ैसले का जिस तरह से विरोध हुआ, उसने डेमोक्रेटिक पार्टी के नेताओं को भी हैरान कर दिया है. क्योंकि, रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति बड़ी कंपनियों को नियमित रूप से रियायतें देते रहे हैं, जिसे डेमोक्रेटिक पार्टी ‘कारोबारियों को दान’ कहती रही है.
छात्रों का क़र्ज़ माफ़ करने के फ़ैसले का जिस तरह से विरोध हुआ, उसने डेमोक्रेटिक पार्टी के नेताओं को भी हैरान कर दिया है. क्योंकि, रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति बड़ी कंपनियों को नियमित रूप से रियायतें देते रहे हैं, जिसे डेमोक्रेटिक पार्टी ‘कारोबारियों को दान’ कहती रही है. लेकिन, रिपब्लिकन पार्टी को ऐसे फ़ैसलों पर जनता की नाराज़गी कुछ ख़ास नहीं झेलनी पड़ी है. लेकिन सियासत और संदेशों की हक़ीक़त वाली दुनिया में अमेरिकी जनता ने अमीरों को टैक्स में भारी रियायतों को तो मंज़ूर कर लिया. लेकिन ग़रीबों को सरकार द्वारा दी जाने वाली मदद का वो विरोध कर रहे हैं.
रिपब्लिकन पार्टी के सियासी विज्ञापनों में उन लोगों की नाराज़गी का भरपूर फ़ायदा उठाने की कोशिश की जा रही है, जो कभी कॉलेज नहीं गए. उन्हें ये लगता है कि जो इतने ख़ुशक़िस्मत थे कि यूनिवर्सिटी जाकर पढ़ाई कर सके, अब उन्हें और रियायतें दी जा रही हैं. यहां असल मुद्दा तो अमेरिका में बेहद महंगी उच्च शिक्षा है. लेकिन, उससे निपटने का मतलब, उच्च शिक्षा पर शिकंजा कसे बैठे बहुत से ताक़तवर लोगों की नाराज़गी मोल लेना होगा. कोई भी सियासी दल ये नहीं करना चाहता है.
अगर, उम्मीद के मुताबिक़ मध्यावधि चुनावों में हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव्स में रिपब्लिकन पार्टी का बहुमत हो जाता है, और सीनेट में डेमोक्रेटिक पार्टी का बहुमत बना रहता है तो अगले दो साल तक विदेश नीति और तमाम घरेलू मुद्दे द्विपक्षीय राजनीतिक खींच-तान में अटके रहेंगे. इसके अलावा, ट्रंप जैसे जितने अधिक नेता निचले स्तर पर यानी राज्य सचिवों के तौर पर देश की राजनीतिक व्यवस्था का हिस्सा बनेंगे, मुश्किलें उतनी ही और बढ़ेंगी. क्योंकि यही लोग चुनाव की निगरानी करते हैं. पिछले महीने कराए गए एक ओपिनियन पोल में पाया गया था कि 61 फ़ीसद रिपब्लिकन ये मानते हैं कि 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में बाइडेन को धांधली से जिताया गया. ऐसी सोच रखने वाले बहुत से नेता इन चुनावों में उम्मीदवार हैं.
इनमें से कोई भी बात उन लोगों के लिए अच्छी नहीं है, जो अमेरिकी लोकतंत्र और उसकी सेहत की फ़िक्र करते हैं.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.