Author : Sana Hashmi

Published on Oct 12, 2023 Updated 0 Hours ago

आज की दुनिया में विकास संबंधी व्यापक चिंताओं का निपटारा सुनिश्चित करने में प्रमुख और मझौली ताक़तों की भूमिका पहले से कहीं ज़्यादा अहम हो गई है. 

हिंद-प्रशांत में सतत विकास को रफ़्तार देती मझोले ताक़तें

बड़ी और मझौली शक्तियों का उदय, बहुध्रुवीय दुनिया के उभरने का संकेत करता है. इनमें कई ताक़तों का केंद्रीकरण एशिया में है. इसके चलते स्वाभाविक रूप से एशिया और व्यापक हिंद-प्रशांत क्षेत्र की ओर तमाम देशों का ध्यान जा रहा है. जैसे जैसे दुनिया के राष्ट्र, एशिया और हिंद-प्रशांत की ओर फोकस कर रहे हैं, उनके जुड़ाव में बढ़ोतरी हो रही है. साथ ही साझा आर्थिक और विकास संबंधी लक्ष्यों की मान्यता भी बढ़ रही है. हालांकि ये इलाक़ा चुनौतियों से खाली नहीं है. इनमें अमेरिका-चीन रस्साकशी, चीन की आक्रामक और अलगाववादी विदेश नीति, मौजूदा रूस-यूक्रेन टकराव और इस क्षेत्र के प्रमुख किरदारों द्वारा सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की ओर ध्यान नहीं दिया जाना, शामिल हैं. इन तमाम चुनौतियों से यहां अनिश्चितता के बादल मंडराने लगे हैं.   

ग्लोबल साउथ के कई देशों का मानना है कि इस टकराव से उनके सुरक्षा हितों को उस तरह का तात्कालिक ख़तरा नहीं है जैसे पश्चिमी जगत को है.

ग्लोबल साउथ की विरोधाभासी प्राथमिकताएं

वर्तमान में अमेरिका और चीन के बीच प्रभुत्व को लेकर रस्साकशी बेरोकटोक जारी है. उधर लंबे खींचते जा रहे रूस-यूक्रेन संघर्ष के समाधान के कोई संकेत दिखाई नहीं दे रहे. इससे ग्लोबल साउथ (अल्प-विकसित और विकासशील दुनिया) के लिहाज़ से अहम तमाम ज्वलंत मसलों और साझा चिंताओं से लगातार ध्यान भटकता जा रहा है. भले ही इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि रूस-यूक्रेन संघर्ष चिंताजनक है, लेकिन ग्लोबल साउथ के कई देशों का मानना है कि इस टकराव से उनके सुरक्षा हितों को उस तरह का तात्कालिक ख़तरा नहीं है जैसे पश्चिमी जगत को है. कइयों के विचार से ये ज़रूरी नहीं है कि इस संघर्ष में कोई रुख़ अपनाने से उनकी ज्वलंत चिंताओं के निपटारे में किसी तरह की मदद मिलेगी. इन चिंताओं में ऋण, खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, डिजिटल टेक्नोलॉजी जैसे अनेक मसले शामिल हैं. इस संदर्भ में, निरंतर जारी वैश्विक टकरावों के बीच प्रमुख और मझौली ताक़तों की रणनीतियों में विकास संबंधी भागीदारियां केंद्रीय स्थान लेती जा रही हैं. विकासशील और अल्पविकसित देशों के हितों के लिए आवाज़ बुलंद करने और अपना रुतबा जताने की प्रतिबद्धता इन क़वायदों का संचालन कर रही है.  

चूंकि हिंद-प्रशांत क्षेत्र लगातार ध्यान और समर्थन जुटा रहा है, लिहाज़ा विकास संबंधी मसलों और चिंताओं के निपटारे के लिए ग्लोबल साउथ के कई देशों द्वारा प्रमुख स्टेकहोल्डर्स से प्रभावी कार्य योजना की उम्मीद करना पूरी तरह से तार्किक हो जाता है. हालांकि ग्लोबल साउथ के भी कई देश पश्चिम पर सीमित भरोसा रखते हैं. इस अविश्वास को आंशिक रूप से असंगत जुड़ाव और तवज्जो वाले इतिहास के साथ-साथ ऐसे वाक़यों से भी जोड़ा जा सकता है जहां कार्रवाइयां, शिगूफ़ों से मेल नहीं खाती हैं. इसका एक हालिया उदाहरण मई 2023 में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की पापुआ न्यू गिनी की तय यात्रा का रद्द होना है, जिसके लिए घरेलू मुद्दों को ज़िम्मेदार ठहराया गया था. ये हालात संयुक्त राष्ट्र की अगुवाई वाली प्रणाली पर विश्वास के अभाव से भी प्रेरित है, जिसे बहुपक्षीयवाद के घिसे-पिटे स्वरूप के तौर पर देखा जाता है. भारत जैसे देशों ने इसमें सुधार की वक़ालत की है. इस बीच, चीन और अमेरिका के बीच जारी रस्साकशी के मद्देनज़र, और लगातार आक्रामक होती जा रही चीन की नीतियों के बीच ग्लोबल साउथ के देश पूरी सक्रियता से चीन पर अपनी निर्भरता घटाने की कोशिशों में लगे हैं. इस क़वायद में वो प्रमुख और मझौली ताक़तों की ओर रुख़ कर रहे हैं, जिन्हें ज़्यादा भरोसेमंद समझा जाता है. विकास संबंधी मुद्दों के निपटारे की प्रतिबद्धता के संदर्भ में पश्चिम की अगुवाई वाले संस्थानों के साथ-साथ अमेरिका और चीन पर भी भरोसा धीरे-धीरे कम हो रहा है. सार्थक योगदान देने की क्षमता रखने वाली मझौली शक्तियों के साथ गठजोड़ को अब विकास संबंधी चुनौतियों से निपटने के लिए अनिवार्य समझा जा रहा है. 

इस वैकल्पिक दृष्टिकोण के उदाहरणों में आपदा राहत पहुंचाने के लिए हिंद प्रशांत के देशों के साथ ऑस्ट्रेलियाई सरकार की सहभागिता, जलवायु भागीदारियों की स्थापना और ब्लू कार्बन पहल का कार्यान्वयन शामिल हैं.

सतत विकास लक्ष्यों की ओर बढ़तीं प्रमुख और मझौली ताक़तें 

हालांकि, हिंद-प्रशांत में समान विचार वाले देशों ने विकास संबंधी मसलों के निपटारे और सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में भरोसेमंद रास्ता तैयार करने में बढ़ी हुई दिलचस्पी दिखाई है, लेकिन ये प्रयास फ़िलहाल अपने शुरुआती चरणों में हैं और अभी तक कोई ठोस परिणाम नहीं दे सके हैं. उल्लेखनीय है कि ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका की हिस्सेदारी वाले क्षेत्रीय समूह क्वॉड ने ख़ुद को स्पष्ट रूप से सुरक्षा पर केंद्रित समूह के तौर पर परिभाषित नहीं करने का विकल्प चुना है, और ये सतत विकास की ओर अपने ध्यान बढ़ा रहा है. फिर भी, क्वॉड को चीन-विरोधी गठजोड़ के तौर पर देखे जाने से जुड़ी चिताएं बरक़रार हैं, और ये समूह अब भी अपनी विश्वसनीयता मज़बूत करने की चुनौती से जूझ रहा है. 

भले ही सामूहिक दृष्टिकोण के प्रभाव का अभाव रह जाए, लेकिन ऑस्ट्रेलिया जैसी मझौली ताक़तें भरोसेमंद विकल्प पेश कर रही हैं. इस वैकल्पिक दृष्टिकोण के उदाहरणों में आपदा राहत पहुंचाने के लिए हिंद प्रशांत के देशों के साथ ऑस्ट्रेलियाई सरकार की सहभागिता, जलवायु भागीदारियों की स्थापना और ब्लू कार्बन पहल का कार्यान्वयन शामिल हैं. 

उभरती हुई एक प्रमुख शक्ति के रूप में भारत इस इलाक़े के सामने पेश चुनौतियों के समाधान मुहैया कराने वाले देश के तौर पर उभर रहा है. भारत की G20 अध्यक्षता और उसका एजेंडा, इस बात के ज्वलंत उदाहरणों के रूप में काम कर रहे हैं कि कैसे उभरती प्रमुख शक्तियां और मझौली ताक़तें क्षेत्रीय विमर्श को पूरी सक्रियता से प्रभावित कर रही हैं. जून 2023 में अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि, “भारत की G20 अध्यक्षता के तहत, हम एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य की भावना पर ज़ोर दे रहे हैं. हम ग्लोबल साउथ की प्राथमिकताओं को आवाज़ दे रहे हैं.” ये मोदी द्वारा किसी विमर्श को आकार देने का प्रयास भर नहीं है; इस क़वायद को ग्लोबल साउथ के कुछ नेताओं का समर्थन हासिल है. मिसाल के तौर पर पापुआ न्यू गिनी की यात्रा के दौरान पापुआ न्यू गिनी के प्रधानमंत्री जेम्स मरापे ने प्रधानमंत्री मोदी से कहा था, “हम वैश्विक सत्ता संघर्ष के शिकार हैं…आप (प्रधानमंत्री मोदी) ग्लोबल साउथ के नेता हैं. हम लोग वैश्विक मंचों पर आपके (भारत) नेतृत्व के समर्थन में खड़े होंगे.”

आज की विभाजित दुनिया में प्रमुख ताक़तें, विकास संबंधी व्यापक चिंताओं की बजाए अपने भूराजनीतिक हितों में ही उलझी हुई हैं.

एक ओर, राष्ट्रपति बाइडेन द्वारा पापुआ न्यू गिनी की यात्रा रद्द किए जाने को अवसर गंवाने के रूप में देखा गया, तो दूसरी ओर इसने दक्षिण प्रशांत पर भारत के बढ़ते फोकस को लेकर PM मोदी को सुर्ख़ियों में ला दिया. PM मोदी को इस बात का श्रेय दिया जाना चाहिए कि वो दक्षिण प्रशांत के साथ जुड़ाव को लेकर अपनी प्रतिबद्धता पूरी कर रहे हैं. उनकी पापुआ न्यू गिनी की यात्रा के दौरान 8-साल के अंतराल के बाद भारत-प्रशांत द्वीप सहयोग मंच (FIPIC) का तीसरा शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया. प्रधानमंत्री मोदी ने सतत तटीय और महासागर शोध संस्थान (SCORI) लॉन्च किया, जिसे चेन्नई स्थित राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र की ओर से सहायता उपलब्ध कराई जा रही है. G20 में अफ्रीकी संघ के प्रवेश से समावेशन के प्रति भारत की वचनबद्धता ज़ाहिर हुई है. इसके अलावा, नई दिल्ली में G20 नेताओं की घोषणा में सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में प्रगति में रफ़्तार भरने पर काफ़ी ज़ोर दिया गया.

ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और दक्षिण कोरिया जैसी मझौली शक्तियां 2030 सतत विकास लक्ष्य एजेंडे को आगे बढ़ाने में अपनी बढ़ी हुई ज़िम्मेदारी को तेज़ी से पहचानने लगी हैं. एक सहभागितापूर्ण दृष्टिकोण अनिवार्य है. आज की विभाजित दुनिया में प्रमुख ताक़तें, विकास संबंधी व्यापक चिंताओं की बजाए अपने भूराजनीतिक हितों में ही उलझी हुई हैं. ऐसे में दूसरी प्रमुख और मझौली शक्तियों की भूमिका पहले से कहीं ज़्यादा अहम हो जाती है. उन्हें ही ये सुनिश्चित करना है कि कोई भी पीछे ना छूट जाए और नाज़ुक मसलों का समयबद्ध तरीक़े से प्रभावी निपटारा हो पाए. 


सना हाशमी ताइवान-एशिया एक्सचेंज फाउंडेशन और जॉर्ज एच. डब्ल्यू. बुश फाउंडेशन फॉर यूएस-चाइना रिलेशंस में फेलो हैं

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