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भारत को मालदीव में अपने असर को बनाये रखने के लिए हर हाल में ऐसे फायदेमंद विकल्प पेश करने चाहिए जो विकास पर फोकस करें और भारत की मौजूदा परियोजनाओं को जल्दी पूरा करने को सुनिश्चित करें.
मालदीव में राष्ट्रपति चुनाव की तारीख़ तेज़ी से नज़दीक आती जा रही है लेकिन वहां की आंतरिक राजनीति अनिश्चितता की स्थिति में दिख रही हैं. चूंकि मालदीव का विपक्षी गठबंधन अपने नेता और राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार, पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन (जिन्हें भारत के पक्ष में नहीं कहा जाता है) जो सितंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में दावेदारी पेश करने के लिए योग्य हैं, की जीत सुनिश्चित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है, ऐसे में भारत को इस द्वीपसमूह से अपने रिश्तों के भविष्य पर हर हाल में विचार करना चाहिए.
भारत-मालदीव के बीच संबंध 2018 में मौजूदा इब्राहिम सोलिह सरकार के सत्ता में आने के बाद से मज़बूत हो रहा है. ये पूर्व के अब्दुल्ला यामीन (2013-2018) प्रशासन के ठीक विपरीत है. उस दौरान द्विपक्षीय रिश्तों में उथल-पुथल बना रहा- GMR प्रोजेक्ट की असफलता, मिलन नौसैनिक अभ्यास में शामिल होने के भारत के न्योते का मालदीव के द्वारा ठुकराना और सैन्य हेलीकॉप्टर के रूप में भारत का तोहफा लेने से मालदीव का इनकार करना- दोनों देशों के बीच रिश्तों में कड़वाहट के कुछ उदाहरण हैं.
अहम बात ये है कि भारत को ऐसे तरीकों पर अवश्य विचार करना चाहिए जिनसे वो ये सुनिश्चित कर सके कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान मालदीव में भारत ने उचित रूप से जिस कूटनीतिक फोकस और पूंजी का निवेश किया है, वो सरकार में बदलाव की वजह से बेकार नहीं हो जाए.
राष्ट्रपति के उम्मीदवार में दावेदारी की आख़िरी तारीख़ (7 अगस्त) ख़त्म होने के साथ इस बात पर विचार करना महत्वपूर्ण है कि क्या सरकार में बदलाव की वजह से मालदीव में भारत की स्थिति खराब हो जाएगी. क्या चुनाव के बाद “इंडिया आउट” अभियान का कोई स्थायी असर होगा? अहम बात ये है कि भारत को ऐसे तरीकों पर अवश्य विचार करना चाहिए जिनसे वो ये सुनिश्चित कर सके कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान मालदीव में भारत ने उचित रूप से जिस कूटनीतिक फोकस और पूंजी का निवेश किया है, वो सरकार में बदलाव की वजह से बेकार नहीं हो जाए.
यामीन की अगुवाई में इंडिया आउट कैंपेन के निशाने पर सोलिह सरकार (जब से वो सत्ता में आई है) है. मालदीव में भारत की सैन्य मौजूदगी की अनुमति को लेकर सोलिह सरकार पर मालदीव की संप्रभुता के उल्लंघन का आरोप लगा है. सरकार ने बार-बार इन आरोपों से इनकार किया है और पिछले साल उसने एक प्रेसिडेंशियल डिक्री (राष्ट्रपति द्वारा पारित कानून) जारी करके “अलग-अलग नारों से विभिन्न देशों के ख़िलाफ़ नफरत फैलाते वाले अभियानों” पर पाबंदी लगा दी थी. इसमें इंडिया आउट प्रदर्शनों का ख़ास तौर पर ज़िक्र किया गया था. सरकार की कार्रवाई के बाद लगता है कि प्रदर्शन थम गये हैं लेकिन यामीन के राष्ट्रपति चुनाव अभियान के निशाने पर हिंद महासागर में मालदीव का प्रभावी पड़ोसी भारत बना हुआ है. ऐसी रिपोर्ट है कि स्थानीय मीडिया से बात करते हुए यामीन ने कहा कि “2023 का चुनाव मालदीव में भारत और उसके असर को हराने के लिए है” और उन्होंने अपने समर्थकों से अनुरोध किया कि वो इस लक्ष्य के लिए काम करें.
वैसे तो इस अभियान के कुछ ख़ास तत्व हैं जो मालदीव के साथ भविष्य की चुनौतियों का आकलन करने में भारत के लिए रास्ते के पत्थर के रूप में काम करते हैं- जैसे कि इस अभियान का लगातार जारी रहना, इसकी हिंसा और इसकी फंडिंग का संभावित स्रोत- लेकिन ये भारत के सामने कोई नई चुनौती नहीं है. भारत विरोधी भावनाओं को अक्सर चुनाव के समय विरोधी पार्टियों के द्वारा उछाला जाता है. ऐसा बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका और हाल के दिनों में मॉरीशस में भी हो चुका है. दक्षिण एशियाई भू-राजनीति (जियोपॉलिटिक्स) में ये निश्चित तौर पर सामान्य है.
इसी तरह चीन को भी मालदीव की घरेलू राजनीति में घसीटा गया था जब इब्राहिम सोलिह की मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (MDP) विपक्ष में थी और उसके तत्कालीन राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार मोहम्मद नशीद 2008 के चुनाव के लिए प्रचार अभियान चला रहे थे. नशीद मालदीव में चीन की मौजूदगी के सख़्त ख़िलाफ़ हैं. पिछले कुछ वर्षों के दौरान वो चीन के निवेश को कर्ज़ के जाल की कूटनीति बता रहे हैं और चीन के फंड से चलने वाली परियोजनाओं के ऑडिट की मांग कर रहे हैं. अपने निडर रवैये के तहत उन्होंने ये तक कह दिया कि “एक तरह से अब हमें चीन से अपनी संप्रभुता वापस ख़रीदने की ज़रूरत है”. फिर भी नशीद के प्रशासन के तहत ही चीन ने मालदीव में अपने सबसे बड़े प्रोजेक्ट में से एक- हुलहुमाले में 1,000 घर- को पूरा किया था.
मालदीव के साथ भविष्य की चुनौतियों का आकलन करने में भारत के लिए रास्ते के पत्थर के रूप में काम करते हैं- जैसे कि इस अभियान का लगातार जारी रहना, इसकी हिंसा और इसकी फंडिंग का संभावित स्रोत- लेकिन ये भारत के सामने कोई नई चुनौती नहीं है.
चुनाव अभियान के दौरान राजनेता जो कहते हैं, ख़ास तौर पर विपक्षी दलों के नेता, और सत्ता हासिल होने के बाद आख़िर में जो नीति चुनते हैं, वो ज़रूरी नहीं कि एक ही हों. जब नये प्रशासन को शपथ दिलाई जाती है तो सत्ता पाने वाले लोगों के सामने राजनीतिक अर्थव्यवस्था से जुड़ी वही चुनौतियां होती हैं जो पिछली सरकार के सामने थी. जब वो वास्तविक, ज़मीनी तौर पर अमल में लाने वाली नीतियों के साथ इन चुनौतियों का समाधान करने की कोशिश करते हैं तो ये नेता अक्सर उन सभी के साथ काम करना बुद्धिमानी समझते हैं जो उनके सामने आकर्षक हल पेश करते हैं.
इसलिए भारत को इंडिया आउट कैंपेन के तात्कालिक असर के आगे देखना चाहिए और मालदीव के विकास से जुड़े अधिक दीर्घकालीन दृष्टिकोण पर आधारित सहायता की पेशकश जारी रखनी चाहिए. यहां तीन तरीके हैं जिन पर ध्यान देकर भारत मालदीव की आंतरिक घरेलू राजनीति के बावजूद दोनों देशों को काफी फायदा पहुंचा सकता है.
सच्चाई ये है कि हाल के वर्षों में भारत का नज़रिया विकास पर केंद्रित रहा है. भारत न सिर्फ़ सत्ता में बैठी सरकार तक पहुंचा है बल्कि उसका उद्देश्य मालदीव के लोगों को फायदा पहुंचाना रहा है. समुदायों पर ज़्यादा असर वाली परियोजनाओं (हाई इंपैक्ट कम्यूनिटी प्रोजेक्ट यानी HICP) पर उसके ज़ोर को सराहा गया है.
स्ट्रीट लाइट से द्वीप पर काम करने वाले लोगों को लंबे समय तक काम करने में सहायता करती है, साथ ही गेस्ट हाउस, रेस्टोरेंट एवं दूसरे छोटे व्यवसायों को मदद मिलती है.
पिछले दिनों मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद की भारत यात्रा के दौरान HICP से जुड़े नौ नये समझौता ज्ञापनों (MoU) पर हस्ताक्षर किये गये. ये परियोजनाएं बेहद व्यापक हैं और लोगों के वास्तविक जीवन पर असर डालने वाले हैं जैसे कि कोंडे (गाफ अलिफ अटोल) में स्ट्रीट लाइट लगाना और कंदीथीमू (शवियानी अटोल) में वॉलीबॉल कोर्ट तैयार करना. स्ट्रीट लाइट लगाने का काम पुल बनाने और पोर्ट के विकास जैसे बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट की तरह तो नहीं हैं लेकिन लोगों पर इसके प्रभाव से इनकार नहीं किया जा सकता है. स्ट्रीट लाइट से द्वीप पर काम करने वाले लोगों को लंबे समय तक काम करने में सहायता करती है, साथ ही गेस्ट हाउस, रेस्टोरेंट एवं दूसरे छोटे व्यवसायों को मदद मिलती है. जैसा कि भारतीय उच्चायुक्त संजय सुधीर ने बताया, इस तरह की परियोजनाओं का स्वरूप ये है कि इनका असर “द्वीप पर रहने वाले हर निवासी” पर होता है. हाल के दिनों में जिन अन्य परियोजनाओं पर चर्चा की गई है उनमें विलुफुशी में एक स्कूल को डिजिटाइज़ करना और निलांधू में एक कंप्यूटर लैब को अपग्रेड करना शामिल है. राजनीतिक संबंध चाहे किसी से हो लेकिन समुदायों पर इस तरह की परियोजनाओं के पड़ने वाले असर से कोई भी सरकार इनकार नहीं कर सकती है.
भविष्य की ऐसी परियोजनाएं जिनका लक्ष्य युवाओं को रोज़गार के लिए तैयार करना और एंटरप्रेन्योरशिप हो, वो मालदीव के लिए बेहद फायदेमंद होंगी. मालदीव की 35 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या 15-35 साल के युवाओं की है जो काम-काज (वर्कफोर्स) में शामिल होने की तैयारी कर रहे हैं. विश्व बैंक के मुताबिक, अपने मज़बूत आर्थिक विकास के बावजूद मालदीव में बेरोज़गारी की दर अधिक है. वैसे तो मालदीव महामारी से अच्छी तरह उबर गया है लेकिन उसका आर्थिक विकास एक स्थायी कमज़ोरी का शिकार है जो छोटे आर्थिक आधार, विविधता की कमी और पर्यटन पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता से पैदा होती है. चूंकि कर्मचारियों के लिए सुरक्षा का जाल पेंशन तक सीमित होता है, ऐसे में ये मालदीव के नौजवानों पर खराब असर डालता है जिनमें से ज़्यादातर अटोल (प्रवाल द्वीप) में रहते हैं. ऐसा पता चला है कि काम मिलने में नाकामी की वजह से वो तेज़ी से अस्थायी काम और स्व-रोज़गार की तरफ मुड़ रहे हैं. नौजवानों के लिए रोज़गार के अवसरों को बढ़ाना मालदीव की सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण लक्ष्य बना हुआ है, भले ही चुनाव कोई भी जीते. मालदीव में भारत के HICP में ऐसे प्रोजेक्ट ज़रूर होने चाहिए जिनका उद्देश्य युवाओं को रोज़गार के लिए तैयार करना और उनके बीच एंटरप्रेन्योरशिप को बढ़ावा देना हो.
भारत की इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी एफकॉन्स लिमिटेड के द्वारा भारत के फंड से ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट (GMCP) के तहत बनाया जा रहा समुद्री पुल मालदीव में बन रही बुनियादी ढांचे की सबसे बड़ी परियोजना है. 6.74 किलोमीटर लंबा समुद्री पुल और माले एवं नज़दीक के द्वीपों विलिंगली, गुल्हीफाल्हू और थिलाफुशी के बीच पुल के संपर्क का मालदीव के लोगों की ज़िंदगी पर काफी असर पड़ेगा. इससे न केवल कनेक्टिविटी के मुद्दे का समाधान होगा, जो कि किसी भी द्वीपीय देश में सबसे बड़ा मुद्दा है, बल्कि ये माले में जनसंख्या घनत्व की वास्तविक और तात्कालिक समस्या में भी राहत पहुंचाएगा. साथ ही इससे नौकरी के अवसरों का निर्माण होगा और लंबे समय में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा.
इस प्रोजेक्ट को लेकर भारत की सबसे बड़ी चुनौती होगी इसको पूरा करने की महत्वाकांक्षी तारीख़. जब बात दक्षिण एशिया में भारत की परियोजनाओं की होती है तो ऐतिहासिक रूप से भारत की छवि इस मामले में नकारात्मक है कि वो समय पर प्रोजेक्ट को पूरा नहीं कर पाता. मालदीव का विपक्ष पहले ही संसद में समुद्री पुल के बारे में चिंता जता चुका है. मावाशू के सांसद और PNC के उपाध्यक्ष मोहम्मद सईद ने संसद और ट्विटर- दोनों मंचों पर प्रोजेक्ट के बारे में अपने विरोध के मुद्दों के बारे में बताया है. इनमें निर्माण की क्वालिटी से लेकर पर्यावरण पर असर, ख़ास तौर पर विलिमाले रीफ पर, और एफकॉन्स के दिवालिया होने के दावे शामिल हैं. उन्होंने आलोचना करते हुए कहा, “ये GMR के मामले से भी ज़्यादा गंभीर मुद्दा है.” GMR का नाम लेना साफ तौर पर राजनीतिक कदम था लेकिन इसकी नाकामी को देखते हुए इस तरह की तुलना से भारत को चिंता होनी चाहिए.
इस प्रोजेक्ट को लेकर भारत की सबसे बड़ी चुनौती होगी इसको पूरा करने की महत्वाकांक्षी तारीख़. जब बात दक्षिण एशिया में भारत की परियोजनाओं की होती है तो ऐतिहासिक रूप से भारत की छवि इस मामले में नकारात्मक है कि वो समय पर प्रोजेक्ट को पूरा नहीं कर पाता.
इस बात में कोई शक नहीं है कि कोविड-19 महामारी की वजह से आई रुकावट के नतीजतन कुछ देरी ज़रूरी होगी. समुद्र के बीच में बन रहे पुल के कंस्ट्रक्शन के स्वरूप और जटिलता को देखते हुए आगे आने वाले समय में और भी ज़्यादा अभूतपूर्व चुनौतियां आएंगी और देरी होगी. लेकिन इस प्रोजेक्ट को जल्दी पूरा करने को सुनिश्चित करना भारत के लिए प्राथमिकता होनी चाहिए. इससे पहला मक़सद ये पूरा होगा कि भारत अपनी परियोजनाओं को पूरा करने में असाधारण देरी की नकारात्मक धारणा से लड़ पाएगा और दूसरा इस परियोजना की प्रतिष्ठा की वजह से इसके इर्द-गिर्द किसी भी तरह की नकारात्मक भावना को ख़त्म कर सकेगा.
PPM-PNC के विपक्षी गठबंधन ने यामीन के नामांकन को सुरक्षित करने की अपनी ताज़ा कोशिश के तहत राष्ट्रपति चुनाव को टालने की अपील की है. चूंकि मालदीव में घरेलू हालात रोज़ बदल रहे हैं, ऐसे में ये याद रखना महत्वपूर्ण है कि अंतर्राष्ट्रीय संबंध गतिशील होते हैं और सरकार में बदलाव द्विपक्षीय संबंधों में नई चुनौतियां पेश कर सकते हैं. मालदीव में भविष्य की सरकार जैसी भी हो या उसकी नीतिगत प्राथमिकता जो भी हो लेकिन मालदीव में चीन का असर और हित कम होने की संभावना नहीं है. भारत को ये उम्मीद करनी चाहिए कि बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत चीन की परियोजनाएं आने वाले वर्षों में बढ़ेंगी. भारत के आधिकारिक दौरे पर आये मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद से जब मालदीव में BRI के विस्तार के बारे में पूछा गया तो उन्होंने सावधानीपूर्वक जवाब दिया, “जब आप हमारे सबसे अच्छे दोस्त हैं तो आप मुझे अपना दोस्त चुनने के लिए नहीं कहेंगे.” ये निष्पक्षता नहीं है कि भारत मालदीव से ये उम्मीद करे कि वो चीन से प्रोजेक्ट की पेशकश को ठुकरा दे. इसके बदले भारत को विश्वसनीय और फायदेमंद विकल्पों की पेशकश करनी चाहिए जो विकास एवं युवाओं के रोज़गार के हुनर पर ध्यान दे और अपनी मौजूदा परियोजनाओं को जल्दी पूरा करने को सुनिश्चित करे.
विनिता रेवि ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के साथ जुड़ी एक इंडिपेंडेंट स्कॉलर हैं.
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Dr. Vinitha Revi is an Independent Scholar associated with ORF-Chennai. Her PhD was in International Relations and focused on India-UK relations in the post-colonial period. ...
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