Author : Naghma Sahar

Published on Jul 09, 2018 Updated 0 Hours ago

सवाल है कि भीड़ इतनी हिंसक क्यूँ होती जा रही है। अफवाह अगर फैलती भी है तो भीड़ कानून अपने हाथ में लेने की हिम्मत कहाँ से जुटा पाती है? क्या कानून का डर, सजा का खौफ ख़त्म हो गया है? कौन उकसा रहा है, हिम्मत दे रहा है इस सनकी भीड़ को?

भीड़ की हिंसा को कौन दे रहा है देखो

केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा IIT दिल्ली के पढ़े हैं, फिर हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल गए और वो वेंचर कैपिटलिस्ट भी रहे हैं। यानी एक उच्च शिक्षा प्राप्त प्रोफेशनल। जिस दिन झारखण्ड के रामगढ में वो उन लोगों को माला पहनते नज़र आये जो एक मीट व्यापारी की पीट पीट कर हत्या के दोषी थे, तो एक ही झटके में उनकी छवि एक वेंचर कैपिटलिस्ट से एक रिस्क लेने वाले नेता की हो गयी। ऐसा कर के वो क्या हासिल करना छह रहे हैं। कोई तो फायदा होगा। शायद ऐसा कर के वो एक ख़ास किस्म की हिंदुत्व विचारधारा को बढ़ावा देने वाले के चहेते ज़रूर हो जायेंगे। जयंत सिन्हा ने रामगढ़ मामले में पुलिस जांच पर सवाल उठाते हुए इस मामले की सीबीआई जांच कि मांग की। मार्च में स्थानीय अदालत ने एक बीजेपी नेता समेत 11 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी, इनपर पिछले साल 55 साल के अलीमुद्दीन को बीफ ले जाने के शक में पीट पीटकर हत्या का आरोप है।

राजनितिक संरक्षण

जयंत सिन्हा जब बेल पर रिहा हुए इन ६ लोगों के साथ नज़र आये तो ट्विटर पर इसका बचाव भी किया। कहा कि उन्हें फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट के फैसले पर सवाल है। फैसले पर सवाल होना एक बात है और माला पहना कर उनके साथ पोज़ करना दूसरी बात।

तो सोंचिये की वो क्या अदृश्य ताक़त है, कौन सी वजह है जो दुनिया की बेहतरीन यूनिवर्सिटीज में पढ़े हुए वेंचर कैपिटलिस्ट को गौ रक्षकों का रखवाला बना देती है। लगता है की मोदी जी के मंत्री उनकी ही बातों को इतनी संजीदगी से नहीं लेते जितनी हम और आप, क्यूंकि याद कीजिये प्रधानमन्त्री ने गौ रक्षकों के भेस में छुपे असामाजिक तत्वों की निंदा की है।

लेकिन जब मंत्री और ऊंचे ओहदे पर बैठे लोगों से संरक्षण मिलेगा तो भीड़ की हिम्मत क्यूँ नहीं बढ़ेगी।

सोशल मीडिया की भागीदारी

भीड़ के हाथों हो रही हिंसा, यानी मॉब लिंचिंग के जो आंकड़े हमारे सामने हैं उसके लिए सोशल मीडिया, ख़ास तौर पर व्हाट्सएप्प को एक बड़ा विलन बताया गया है। इसलिए कि इसकी सबसे ज्यादा पहुँच है। २० मिलियन लोग इसका इस्तेमाल करते हैं। इनमें बहुत बड़ी तादाद है उनकी, जो साक्षर भी नहीं, या कुछ कम पढ़े लिखे हैं। ऐसे में ये एक खतरनाक हथियार बनता जा रहा है। लेकिन ये सिर्फ एक वजह है। कारण कई हैं।

पिछले सिर्फ एक महीने के अन्दर 19 ऐसी मौतें हुई हैं जिसकी वजह भीड़ की हिंसा थी, भीड़ हत्यारी क्यूँ बनी, कौन है जो इस भीड़ को उकसा रहा है। एक वजह मानी जा रही है वो अफवाह जो उनके स्मार्ट फ़ोन ने उन्हें परोस कर दी।

एक अफवाह रही बच्चा चोर गिरोह की जिसकी वजह से महारष्ट्र के धुले से लेकर छत्तीसगढ़ के सरगुजा और गुजरात के अहमादाबाद से लेकर तमिलनाडु, त्रिपुर तक में लोगों की हत्या की गई।

भीड़ के हाथों हो रही हिंसा, यानी मॉब लिंचिंग के जो आंकड़े हमारे सामने हैं उसके लिए सोशल मीडिया, ख़ास तौर पर व्हाट्सएप्प को एक बड़ा विलन बताया गया है।

जैसा महाराष्ट्र में धुले के पास हुआ जहाँ नाथ गोसावी समुदाय के ५ लोगों को भीड़ ने मार डाला इस शक पर कि वो बच्चा चोरी करने की नीयत से आये हैं। कमाल है कि जो विडियो इस अफवाह की वजह बना वो पाकिस्तान का निकला। यानी कितनी आसानी से लोग फ़ोन पर आया कोई भी फ़ॉर्वर्डेड सन्देश पत्थर की लकीर मान लेते हैं। कई बार ये हिंसा गोरक्षा के नाम पर हुई।

हाल में हुई भीड़ की हिंसा

मणिपुर की कुछ तस्वीरें सामने आई जहां देखा गया कि दो अलग-अलग गांवों में बच्चा चोरी के शक में भीड़ पिटाई कर रही है। 30 जून को चेन्नई में भी बिहार के दो लोगों को बच्चा चोर समझ कर बुरी तरह पीट दिया गया। गोपाल साहू और बिनोद बिहार से आये मेट्रो में काम करने वाले मज़दूर थे और सड़क पार करते हुए एक बच्चे को रोक रहे थे मगर लोगों ने बच्चा चोर समझ लिया। दो जुलाई को बेंगलुरू में भीड़ ने बच्चा चोरी करने के शक में एक आदमी को क्रिकेट के बल्लों और लाठियों से पीट-पीट कर मार डाला। नाशिक के मालेगांव में भीड़ ने पांच लोगों पर हमला कर दिया लेकिन पुलिस उन्हें बचाने में कामयाब रही। बाद में गुस्साई भीड़ ने पुलिस की गाड़ी को जला डाला। मंगलवार को अहमदाबाद में एक भिखारी महिला को 50 लोगों की भीड़ ने मार डाला। सूरत और राजकोट में भी ऐसी घटनाएं सामने आई हैं। त्रिपुरा में 28 जून को भीड़ ने सुकांतो चक्रवर्ती नाम के एक शख्स को मार डाला जो अफवाहों से खबरदार करने आया था। सुकांत चक्रवर्ती को 500 रुपये की दिहाड़ी पर रखा गया था। सुकांत जिस गाड़ी से जा रहे थे उस पर लाउडस्पीकर भी लगा था जिससे वह अनाउंस कर रहा था कि ऐसी अफवाहों से सावधान रहें। अफवाह फैल गई कि एक बच्चे को किडनी निकाल कर फेंक दिया गया है। इसके कारण लोगों और पुलिस में ही झड़प हो गई। किडनी स्मगलर से लेकर बच्चा चोर गिरोह की बातें होने लगीं। इसी झगड़े में सुकांत चक्रवर्ती फंस गए और मारे गए।

बाहरी से नफरत

इसके शिकार चाहें हिन्दू हों या मुसलमान ज्यादातर ग़रीब लोग हैं। कितनी आसानी से किसी ने अफवाहों के ज़रिए ग़रीबों को अफवाहों में उलझा दिया है।

अफवाहें हमारे समाज में नई नहीं। पहले भी मोहल्लों और शहरों में, रिश्तेदारों और दोस्तों के ज़रिये अफवाहें फैलती थीं। फिर वो भी दौर आया जब अफवाह के ही बुनियाद पर गणेश जी हर जगह दूध पीने लगे, और मंकी मैन का आतंक छा गया। हमारे ज़ेहन में चोटी काटने वाले का आतंक अभी ताज़ा है। ये आतंक अफवाहों के ज़रिये खूब फैला क्यूंकि ये व्हाट्सएप्प दौर की अफवाह थी। लेकिन हाल में ये देखा गया है की अफवाहों का ये बाज़ार हिंसक होता जा रहा है। एक ऐसी भीड़ जो आपस में एक दुसरे से कई बार अनजान भी होती है वो किसी एक या दो शख्स को इकठ्ठा हो कर किसी शक के आधार पर मार डालती है।

अफवाहें हमारे समाज में नई नहीं। पहले भी मोहल्लों और शहरों में, रिश्तेदारों और दोस्तों के ज़रिये अफवाहें फैलती थीं।

असंम , त्रिपुरा , चेन्नई इन सभी जगहों पर हुए हमले में एक बात जो एक जैसी थी, वो ये कि सारे हमले ऐसे लोगों पर थे जिनका किसी न किसी तरीके से परिवेश अलग था.. जो बाहरी थे, कभी दुसरे राज्य के लोग जैसे बिहार, कई बार दुसरे भाषी। यानी इस हिंसा के पीछे एक नफरत भी है, जो अपने जैसा नहीं है उसके खिलाफ नफरत जिसे अंग्रेजी में xenophobia कहते हैं।

क्या सरकार इस पर रोक लगा सकती है?

सोशल मीडिया से फैल रही अफवाह और उसकी वजह से होने वाली हिंसा का खतरा इतना बढ़ गया और इस पर आवाज़ इतनी उठने लगी कि सरकार ने अब इन सर्विस देने वालो को इसका जवाबदेह बनाने का फैसला किया है। आईटी मंत्रालय ने व्हाट्सएप्प को पत्र लिखा है जिसका व्हाट्सएप्प ने जवाब दिया है। इसमें कहा गया है कि व्हाट्सएप सिर्फ भारत के लिए एक नया फीचर ला रही है। जिसमें हर फॉरवर्ड मेसेज में लिखा जाएगा कि ये फॉरवर्ड किया गया है, ताकि उसे आगे भेजने से पहले सोंच लें कि ये ग़लत भी हो सकता है। साथ ही जो किसी ग्रुप का एडमिन होगा वो तय कर पायेगा कि कौन सदस्य मेसेज भेज सकता है कौन नहीं। इस में बड़ा सवाल ये भी है कि ये क्या गारंटी है कि ग्रुप एडमिन सांप्रदायिक या असामाजिक अफवाहें फैलाने वाला नहीं होगा। बहरहाल कोशिश जारी है, इसी तहत मार्क स्पैम फीचर भी आएगा जिसमें अगर ज़्यादातर लोग अगर किसी मेसेज को स्पैम बताएँगे तो वो ब्लाक हो जायेगा।

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आईटी मंत्रालय ने व्हाट्सएप्प को पत्र लिखा है जिसका व्हाट्सएप्प ने जवाब दिया है। इसमें कहा गया है कि व्हाट्सएप सिर्फ भारत के लिए एक नया फीचर ला रही है।

मद्रास हाई कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि सोशल मीडिया पर कोई मैसेज शेयर करना या फॉरवर्ड करना, कही गई बात को स्वीकार करने और मानने के बराबर ही है। पत्रकार से भाजपा नेता बने एसवी शेखर की याचिका खारिज करते हुए हाई कोर्ट ने यह फैसला दिया था। एसवी शेखर ने कुछ महिला पत्रकारों को लेकर कही अभद्र बातों को फेसबुक पर शेयर किया था।

हाई कोर्ट ने कहा था, “यदि किसी के बारे में कुछ कहा जा रहा है, तो यह महत्वपूर्ण है कि क्या कहा गया है, लेकिन इससे भी ज्यादा अहम यह है कि किसने कहा है। समाज में इसका ज्यादा असर होता है कि बात किसने कही है। कोई बड़ी हस्ती किसी मैसेज को फॉरवर्ड करती है, तो आम जनता पर इसका बड़ा असर पड़ता है। लोग इनमें कही बातों को मानना शुरू कर देते हैं। इसलिए यदि महिलाओं के बारे में सोशल मीडिया में कुछ गलत कहा जा रहा है, तो इसका भी नकारात्मक असर होता है।”

सोशल मीडिया से फैल रही अफवाह और उसकी वजह से होने वाली हिंसा का खतरा इतना बढ़ गया और इस पर आवाज़ इतनी उठने लगी कि सरकार ने अब इन सर्विस देने वालो को इसका जवाबदेह बनाने का फैसला किया है।

बेक़ाबू होती भीड़

ये तमाम क़दम एक छोटी कोशिश भर हैं। भीड़ की हिंसक प्रवृति की सिर्फ एक वजह है व्हाट्स एप। भीड़ किसी भी बहाने लोगों की हत्या कर रही है, कभी बच्चों के चोरी होने के बहाने, कभी गोरक्षा के बहाने।

शुरुआत में लगा कि इस भीड़ की मानसिकता सिर्फ सांप्रदायिक है लेकिन अब कई शक्ल में ये भीड़ हमारे सामने है। अखलाक को मारने वाली भीड़ से लेकर धुले में नाथ गोसावी समाज के लगों को मारने वाली भीड़ तक।

नफरत की ये हवा व्हाट्सएप्प तक सीमित नहीं। ट्विटर तो नफरत और गालियों से जल रहा है। यही भीड़ एक वर्चुअल रूप सोचिया; मीडिया पर भी है। इसका अंदाज़ा इस बात से लगाइए कि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज तक को ट्रॉल्स ने नहीं बख्शा। जब खुद को मिल रही गालियों के बारे में बताते हुए सुषमा जी ने एक पोलिंग शुरू कर दी तो 43 फीसदी लोगों का ये मानना था कि उनको दी जा रही गालियाँ सही हैं। तब लगा की एक कैबिनेट मंत्री भी भीड़ के सामने बेबस हैं तो फिर आम लोगों की क्या हैसियत।

बड़ा सवाल जिस से इस समाज की मानसिकता को समझने की कोशिश की जा सकती है वो ये कि सुषमा जी के किसी वरिष्ठ सहयोगी ने उनको दी जा रही गालियों की निंदा नहीं की। उनके साथ खड़े नज़र नहीं आये।

सवाल है कि भीड़ इतनी हिंसक क्यूँ होती जा रही है। अफवाह अगर फैलती भी है तो भीड़ कानून अपने हाथ में लेने की हिम्मत कहाँ से जुटा पाती है? क्या कानून का डर, सजा का खौफ ख़त्म हो गया है? कौन उकसा रहा है, हिम्मत दे रहा है इस सनकी भीड़ को?

ये हिम्मत सुषमा स्वराज को गाली देने वालों की निंदा नहीं करने से आ रही है।

ये हिम्मत जयंत सिन्हा के हत्या के दोषियों को फूल माला पहनने से आ रही है।

ये हौसल केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह दे रहे हैं जब वो सांप्रदायिक दंगों के आरोपियों से मिलते हैं और उन्हें न छुड़ा पाने पर आंसू बहते हैं।

क्या हिन्दू क्या मुस्लमान, सब तरफ लोग ऐसी भीड़ में बदलते जा रहे हैं जो किसी को कभी भी मार सकती है। हिंसा उनके राजनितिक और सामाजिक स्वभाव का हिस्सा बनती जा रही है।

इस बंटे हुए समाज में जब तक लोग अपनी नफरतों और अपनी विचारधाराओं को किनारे रख एक दुसरे से मिलना जुलना वापस शुरू नहीं करेंगे ये बंटवारे बढ़ते जायेंगे। नहीं तो कितनी भी पाबंदियां हों या कानून वो भीड़ की हिंसा के आगे कमज़ोर पड़ते रहेंगे। बहरहाल जब तक ऐसा नहीं होता उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकारें इसे थामने की ईमानदार कोशिश करेंगी।

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