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भारतीय सेना पहले भी महामारी से निपट चुकी है और कोलरा, चेचक, मलेरिया, डेंगू या ऊंची पहाड़ियों में तैनात जवानों को होने वाली फेफड़े के फूलने जैसी बीमारी को लेकर उसे पूरा अनुभव है. इसमें कोई शक की बात नहीं कि कोविड-19 के ख़तरे को देखते हुए उसे नई रणनीति तैयार करनी होगी.
दुनिया भर की सशस्त्र सेनाएं एक घातक और जानलेवा दुश्मन का सामना करने के लिए मजबूर हैं और इसका नाम है- कोविड-19 वायरस. प्रशांत महासागर में कोविड-19 की वजह से दो अमेरिकी सुपर कैरियर बिना काम के हैं. पश्चिमी प्रशांत महासागर में कोई अमेरिकी जहाज़ नहीं होने की वजह से चीन अपनी भुजाएं फड़का रहा है. शनिवार 11 अप्रैल को चीन का जहाज़ लायोनिंग, दो डिस्ट्रॉयर और दो फ्रिगेट्स के साथ ओकिनावा के नज़दीक मियाको स्ट्रेट से गुज़रा और उसके बाद दक्षिण-पूर्व की तरफ़ मुड़कर दक्षिणी चीन सागर जाने के लिए बाशी चैनल की तरफ़ चला गया. वहां जाने का मक़सद सैन्य अभ्यास था.
इससे पहले मार्च के मध्य में चीन की वायुसेना ने नाइट ड्रिल के दौरान अपने लड़ाकू विमानों को ताइवान की तरफ़ भेजने का अभ्यास किया. इसका मक़सद अपनी ताक़त दिखाना था. न सिर्फ़ अमेरिका, ताइवान और जापान बल्कि पूरी दुनिया को चीन संदेश देना चाहता था कि बर्बादी के बावजूद उसकी सेना युद्ध के लिए तैयार है. हालांकि, शुरुआत में चीन की सेना को इनर मंगोलिया के झूरिहे में अपना सालाना युद्ध अभ्यास रद्द करना पड़ा था क्योंकि डर जताया जा रहा था कि बड़े पैमाने पर सैनिकों को लाना बेहद जोखिम भरा हो सकता है.
PLA वायरस का मुक़ाबला करने में पूरी तरह शामिल थी. उसने अपने 10 हज़ार स्वास्थ्य कर्मियों को वुहान भेजा. वुहान में ही PLA की ज्वाइंट लॉजिस्टिक सपोर्ट फोर्स का मुख्यालय है. ये छोटे-छोटे उदाहरण हैं जो बताते हैं कि महामारी ने सुरक्षा को लेकर परंपरागत विचारों और हालात को चुनौती दी है. भारत को भी मौजूदा हालात पर नज़र रखनी चाहिए जिससे कि वो इस तूफ़ान से सबक़ सीख सके.
सशस्त्र सेना में काम करने वाले लोग समुदाय में रहते हैं- बैरक में रहना, लंगर या मेस में खाना और समूहों में चलना. यहां शारीरिक दूरी आसान नहीं है. ख़ास तौर पर मैदानी तैनाती में जैसे लाइन ऑफ कंट्रोल पर जहां उन्हें बंकर में रहना पड़ सकता है.
20 मार्च को लेह में भारतीय सेना का पहला जवान कोरोना पॉज़िटिव मिला. लद्दाख स्काउट का सदस्य ये जवान ईरान से लौटे अपने पिता से वायरस संक्रमित हो गया. बाद में कुछ और जवानों के भी संक्रमित होने की ख़बर आई.
सेना क्वॉरन्टीन ऑपरेशन में शामिल रही है और इसकी वजह से सेना के कुछ जवानों को संक्रमण का ख़तरा है. दुनिया भर में सबसे ज़्यादा संक्रमण का ख़तरा स्वास्थ्य कर्मियों को है. मार्च के आख़िर में सेना के कमांड अस्पताल में काम करने वाले एक कर्नल को पॉज़िटिव पाया गया. इसी तरह देहरादून में एक जूनियर कमीशंड अधिकारी को भी पॉज़िटिव पाया गया. दोनों संक्रमण दिल्ली से जुड़े हुए थे.
सेना के एक और डॉक्टर को इसी हफ़्ते पॉज़िटिव पाया गया और उनके संपर्क में आने वाले दूसरे लोगों और पॉज़िटिव को क्वॉरन्टीन किया गया. सशस्त्र सेना में काम करने वाले लोग समुदाय में रहते हैं- बैरक में रहना, लंगर या मेस में खाना और समूहों में चलना. यहां शारीरिक दूरी आसान नहीं है. ख़ास तौर पर मैदानी तैनाती में जैसे लाइन ऑफ कंट्रोल पर जहां उन्हें बंकर में रहना पड़ सकता है.
देश में क़ुदरती आपदा के दौरान सशस्त्र सेनाएं हमेशा आगे बढ़कर हाथ बंटाती रही हैं. कोविड-19 के मामले में भी जब सैनिकों को ड्यूटी पर बुलाया गया तो वो आगे आए. भारतीय वायुसेना ने वुहान में मेडिकल राहत सामग्री ले जाने के लिए विमान भेजा. साथ ही वुहान और ईरान से भारतीय नागरिकों को लाने के लिए भी विमान भेजा. सेना ने मानेसर के अलावा 4 और जगहों पर क्वॉरन्टीन सेंटर शुरू किया जहां विदेश से आने वाले भारतीय नागरिकों को रखा गया.
सेना को ये मालूम था कि कोविड-19 की वजह से उसकी तैयारियों को कितनी चुनौती मिली है. सेना ने तेज़ी से काम करते हुए सभी गैर-ज़रूरी ट्रेनिंग, सम्मेलन और यात्राओं को रद्द किया. बाद में गृह मंत्रालय ने भी अर्धसैनिक बलों के लिए ऐसा ही आदेश जारी किया. साथ ही सभी छुट्टियां भी रद्द कर दी. लेकिन सेना ने इसके विपरीत घर गए जवानों की छुट्टियां बढ़ा दी ताकि वहां से लौटने वाले जवानों की वजह से किसी को संक्रमण न हो.
वायुसेना के बेस स्टेशन को भी बंद कर दिया गया और आम लोगों के आने-जाने पर पाबंदी लगा दी गई. भारतीय सेना छावनी से काम करती है जो कि आम लोगों के इलाक़े से अलग जगह बसी होती है. कोविड-19 की वजह से सेना ने छावनियों को पूरी तरह सील कर दिया है. छावनी में जाना बेहद कठिन हो गया है और गाड़ियों के आने-जाने पर पाबंदी है. अगर कोई गाड़ी जाती भी है तो उसे सैनिटाइज़ किया जाता है. छावनी/बेस से अलग जगह रहने वाले सैन्य कर्मियों को बाहर ही रहने के लिए कहा गया है. भारतीय सेना पहले भी महामारी से निपट चुकी है और कोलरा, चेचक, मलेरिया, डेंगू या ऊंची पहाड़ियों में तैनात जवानों को होने वाली फेफड़े के फूलने जैसी बीमारी को लेकर उसे पूरा अनुभव है. इसमें कोई शक की बात नहीं कि कोविड-19 के ख़तरे को देखते हुए उसे नई रणनीति तैयार करनी होगी.
सेना से उम्मीद की जाती है कि वो परमाणु, रासायनिक और जैविक हथियारों से हमले को लेकर तैयार रहे. ऐसे में ये पूछना बनता है कि क्या वो कोविड-19 को लेकर तैयार थी अगर ये महामारी जान-बूझकर फैलाई गई होती. सेना के पास टैंक, इन्फैंट्री कॉम्बैट व्हीकल्स और हेलीकॉप्टर जैसे उपकरण हैं जो रासायनिक, जैविक, रेडियोलॉजिकल और परमाणु जैसे माहौल में काम कर सकते हैं. सेना में एक हिस्सा इनसे निपटने को लेकर है. वायुसेना और नौसेना में भी रासायनिक, जैविक, रेडियोलॉजिकल और परमाणु जैसे माहौल से निपटने को लेकर एक विंग है. तीनों सेनाएं समय-समय पर अपनी तैयारी का जायज़ा लेने के लिए अभ्यास भी करती हैं.
लेकिन अब उनका ध्यान मुख्य रूप से रासायनिक हथियारों पर है. जैविक हथियार अभी भी वैज्ञानिक कहानी की तरह ही है क्योंकि ये तय करना कि जैविक हथियार सिर्फ़ दुश्मनों को निशाना बनाए, आसान नहीं है. ऐसे में दुनिया भर की सेनाएं जैविक ख़तरे से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हैं. ये भारत में DRDO की प्रतिष्ठित लैबोरेटरी- डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेबलिशमेंट, ग्वालियर- के कामकाज में झलकती है. लैब ने बैक्टीरिया और वायरस, एंथ्रेक्स और दूसरी चीज़ों से जुड़े विष विज्ञान के अध्ययन पर ध्यान दिया. साथ ही रासायनिक, जैविक, रेडियोलॉजिकल और परमाणु जैसे माहौल में इस्तेमाल होने वाली मेडिसीन किट और कपड़ों को विकसित किया.
सप्लाई चेन की रुकावट पर काम करना जो महामारी की वजह से हो सकता है जैसा कि कोविड-19 के मामले में हो रहा है जहां रेल, हवाई और यहां तक कि सड़क का ट्रैफिक भी बंद है
कुछ साल पहले NBC सूट बनाकर 97.87 करोड़ में 50 हज़ार सूट और जुराब सेना को सप्लाई की गई. लेकिन ये सूट रासायनिक हथियारों से रक्षा करते हैं, वायरस से नहीं. कोविड-19 से जो सबक़ हम तुरंत सीख सकते हैं वो इस प्रकार हैं:
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