Author : Aarshi Tirkey

Published on May 24, 2019 Updated 0 Hours ago

कुलभूषण जाधव के मामले में भारत को शानदार जीत मिली है और इससे वीसीसीआर के तहत किसी देश की जवाबदेही भी तय हो गई है.

कुलभूषण जाधव मामला: अंतरराष्ट्रीय अदालत में जीत तो मिली, पर अंजाम का पता नहीं

कुलभूषण जाधव मामले में हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय अदालत (इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस यानी आईसीजे) ने 17 जुलाई 2019 को अंतिम फैसला सुनाया. इस केस में पाकिस्तान के खिलाफ़ 15-1 के भारी बहुमत से भारत को जीत मिली. अदालत ने पाया कि पाकिस्तान ने 1963 के वियना कन्वेंशन ऑन कॉन्सुलर रिलेशंस (वीसीसीआर) का उल्लंघन किया. कानूनी आधार पर (इसका विश्लेषण नीचे दिया गया है) बेशक इस मामले में भारत को जीत मिली है, लेकिन आईसीजे सीमित राहत ही दे सकता है. इसलिए कुलभूषण जाधव की हिरासत और टाली गई मौत की सज़ा को लेकर आगे क्या होगा, अभी इस बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता.

अब तक क्या हुआ?

जाधव को पाकिस्तान ने 3 मार्च 2016 को भारतीय जासूस होने के शक में गिरफ्तार किया था. पाकिस्तान को संदेह था कि उन्हें उनके देश में अशांति फैलाने के लिए भेजा गया था. भारत को 22 दिन बाद यानी 25 मार्च 2016 को उनके गिरफ़्तार किए जाने की जानकारी दी गई. इस देरी की पाकिस्तान ने कोई वाजिब वजह नहीं बताई है. भारत ने दावा किया कि रिटायरमेंट के बाद जाधव ईरान में कारोबार कर रहे थे और पाकिस्तान ने उनका अपहरण किया है. जाधव पर लगाए गए आतंकवाद और जासूसी के आरोप झूठे हैं. इसके बाद भारत ने कई बार पाकिस्तान से जाधव के लिए कॉन्सुलर एक्सेस की मांग की ताकि अधिकारी उनसे मिल सकें और उनकी तरफ से कानूनी पक्ष रखा जा सके लेकिन पाकिस्तान ने इससे इनकार कर दिया. उसने कहा कि जाधव के खिलाफ़ जांच में भारत के सहयोग करने पर ही अधिकारियों को उनसे मिलने दिया जाएगा. आख़िर कार, पाकिस्तान की मिलिट्री कोर्ट ने 10 अप्रैल 2017 को जासूसी और आतंकवाद के आरोप में उन्हें मौत की सज़ा सुनाई.

इसके बाद भारत ने 8 मई 2017 को आईसीजे में केस दर्ज कराया. इसमें उसने पाकिस्तान पर वीसीसीआर के उल्लंघन का आरोप लगाया था. 18 मई 2017 को आईसीजे ने पाकिस्तान से कहा कि जब तक इस मामले में फैसला नहीं आ जाता, तब तक वह जाधव को दी गई मौत की सज़ा पर अमल न करे.

आईसीजे के फैसले को नीचे दिए गए तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है.

1. आईसीजे के अधिकार और याचिका स्वीकार किए जाने को चुनौती देने में नाकाम रहा पाकिस्तान

पाकिस्तान ने शुरू में कहा कि इस मामले में आईसीजे को दख़ल देने का अधिकार नहीं है. उसने यह भी कहा कि भारत की याचिका पर आईसीजे में सुनवाई नहीं हो सकती और न ही उसे स्वीकार किया जा सकता है क्योंकि उसके ‘हाथ साफ’ नहीं हैं. उसने दलील दी कि भारत ने इस मामले की जांच में मदद नहीं की, इसलिए वह कानूनी कदम उठाने का अधिकार नहीं रखता.

आईसीजे ने पाकिस्तान के इन दोनों तर्कों को साफ तौर पर ख़ारिज कर दिया. उसने भारत की याचिका स्वीकार की. अदालत ने कहा कि वीसीसीआर के वैकल्पिक प्रोटोकॉल के तहत उसके पास इस केस की सुनवाई करने का आधार है क्योंकि इस समझौते पर भारत और पाकिस्तान दोनों ने ही दस्तख़त किए हैं.

2. मेरिट के आधार पर भारत को मिली जीत

कई देशों के बीच वीसीसीआर समझौता इसलिए हुआ था ताकि एक दूसरे के नागरिकों की कॉन्सुल के जरिये मदद की जा सके. इस समझौते के अनुच्छेद 36 में बताया गया है कि जब किसी देश के नागरिक को दूसरा देश जेल में बंद कर देता है या हिरासत में रखता है, तब कॉन्सुलर अधिकारियों के क्या अधिकार होते हैं. हम नीचे इन अधिकारों का जिक्र कर रहे हैः

  • सक्षम अथॉरिटी को बिना देरी के गिरफ़्तारी की “तुरंत सूचना” दी जाए,
  • विदेशी नागरिक को अपने कॉन्सुलेट से संपर्क और संवाद करने की छूट मिले, और
  • कॉन्सुलर अधिकारियों को नागरिक से मिलने और उनके कानूनी प्रतिनिधित्व की इजाज़त मिले.

आईसीजे ने माना कि पाकिस्तान ने अपने अधिकारों और दायित्वों का उल्लंघन किया. पहले तो उसने जाधव को वीसीसीआर के तहत उनके अधिकारियों की जानकारी नहीं दी. दूसरी, भारत को 22 दिनों के बाद उनकी गिरफ़्तारी की सूचना देने को बेवजह की देरी माना गया, जबकि उसे शुरू में ही पता चल गया था कि जाधव भारत के नागरिक हैं. तीसरी, भारत के बार-बार आग्रह करने के बावजूद उसने कॉन्सुलर एक्सेस देने से मना कर दिया. यहां तक कि उसने इसके लिए भारत के सामने जांच में मदद की शर्त रखी. यह शर्त कानूनन तो गलत है ही, साथ ही पाकिस्तान का मक़सद इसके ज़रिये भारत पर जाधव का ‘गुनाह’ कबूल करने का दबाव डालना भी था.पाकिस्तान ने इस केस में वीसीसीआर को लागू करने को चुनौती दी थी. उसने कहा कि केस जासूसी और आतंकवाद से जुड़ा है, इसलिए यह वीसीसीआर के दायरे में नहीं आता. पाकिस्तान ने भारत के साथ 2008 के द्विपक्षीय समझौते का भी ज़िक्र किया. उसने कहा कि इसमें संवेदनशील (राजनीतिक और सुरक्षा से जुड़े) मामलों में वीसीसीआर को लागू नहीं करने की छूट है. आईसीजे ने उसकी इन सभी दलीलों को ख़ारिज कर दिया. अदालत ने कहा कि वीसीसीआर में कोई संशोधन नहीं किया जा सकता. आईसीजे ने यह भी कहा कि अगर आतंकवाद और जासूसी के मामलों को वीसीसीआर से छूट दे दी जाए तो विवादास्पद मामलों में देश मनमानी करने लगेंगे.

3. भारत को आंशिक राहत ही मिली

अंतरराष्ट्रीय अदालत ने पाकिस्तान से कहा कि ‘वह अपने तरीके से’ जाधव की ‘सजा की समीक्षा और पुनर्विचार’ करे. इस मामले में पाकिस्तान को निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करनी होगी और वह इससे इनकार नहीं कर सकता. इसके साथ, उसे जाधव को कॉन्सुलर एक्सेस भी देना होगा. पाकिस्तान को अनुच्छेद 36 के उल्लंघन और किसी पूर्वाग्रह की पड़ताल भी करनी होगी.

हालांकि, भारत ने इस मामले में जो अन्य मांगें रखी थीं, उन्हें अदालत ने नहीं माना. आईसीजे ने पाकिस्तान की मिलिट्री कोर्ट से जाधव को मिली सजा-ए-मौत को रद्द नहीं किया और उसने पाकिस्तान को उन्हें भारत को सौंपने का निर्देश भी नहीं दिया. वैसे, इस तरह के फैसले पर आईसीजे के हाथ बंधे हुए हैं. वह घरेलू मामलों के क्रिमिनल अपीलेट कोर्ट (आपराधिक अपीलीय अदालत) की तरह काम नहीं करता, इसलिए उसके लिए भारत की इन मांगों को मानना संभव नहीं था.

अनुच्छेद 36 से जुड़े पुराने केसः लागू करने में आने वाली अड़चनें

आईसीजे ने इस मामले में भारत को जो राहत दी है, उसके मद्देनजर ऐसे ही केस में उसके पिछले फैसलों पर अमल की पड़ताल जरूरी हो जाती है. वीसीसीआर के अनुच्छेद 36 को लेकर अदालत ने जाधव के मामले में जो फैसला सुनाया है, वह उसी तरह ही आदेश पहले ला ग्रैंड (जर्मनी बनाम अमेरिका) और एवेना केस (मेक्सिको बनाम अमेरिका) में भी दे चुका है. दोनों ही मामलों में आईसीजे ने पाया था कि अमेरिका ने अनुच्छेद 36 का उल्लंघन किया है. उसने अमेरिका ने उन मामलों में विदेशी नागरिकों को सुनाई गई सजा पर ‘पुनर्विचार और समीक्षा करने’ का निर्देश दिया था. रिसर्च पेपर (यहां और यहां देखें) से पता चलता है कि इन दोनों मामलों में आईसीजे के फैसलों को सही तरीके से लागू नहीं किया गया. अमेरिका में ऐसे कई फैसले आए हैं, जिनमें कहा गया कि अनुच्छेद 36 के तहत मिले अधिकारों को घरेलू अदालतों के जरिये लागू नहीं करवाया जा सकता और ना ही घरेलू कानून के तहत ऐसे मामलों में कोई राहत दी जा सकती है, भले ही इनमें इसके उल्लंघन की बात साबित होती हो. कई घरेलू अदालतों ने ला ग्रैंड और एवेना मामलों में आईसीजे के फैसलों का जिक्र किए बगैर कथित ‘पुनर्विचार और समीक्षा’ की. इसके अलावा, इन अदालतों ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 36 के उल्लंघन की वजह से उस दौरान विदेशी नागरिक के दिए गए बयान खारिज नहीं हो जाते. यह बात जाधव के मामले में महत्वपूर्ण है क्योंकि पाकिस्तान के पास कथित तौर पर जाधव के कई वीडियो हैं, जिनमें वह अपना ‘दोष’ कबूल चुके हैं. भारत ने इनकी प्रामाणिकता पर सवाल उठाया है, लेकिन पाकिस्तानी अदालतें इन्हें ठोस सबूत मान सकती हैं.

इन बातों के मद्देनजर यह देखना होगा कि पाकिस्तान की अदालतें किस हद तक फैसले की समीक्षा और उस पर पुनर्विचार करती हैं. आईसीजे ने पाकिस्तान को निष्पक्ष कानूनी कार्यवाही का निर्देश दिया है, लेकिन इस पर अमल को लेकर भारत कुछ नहीं कर सकता. अगर जाधव का मामला पाकिस्तान के सिविल कोर्ट में जाता है तो कुछ उम्मीद बंधेगी, लेकिन अगर यह मिलिट्री कोर्ट के पास ही रहता है तो शायद ही निष्पक्ष सुनवाई हो. इस केस का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय कानून को लेकर क्या रुख़ अपनाता है. अब तक पाकिस्तान का जो रिकॉर्ड रहा है, उसे देखते हुए इसकी कम ही उम्मीद है कि वह अंतरराष्ट्रीय कानून पर ईमानदारी से अमल करेगा.

आईसीजे के बाद भारत के पास विकल्प

कॉन्सुलर एक्सेस मिलने के बाद पाकिस्तानी कानून के तहत भारत जाधव के बचाव के लिए पूरी ताकत झोंकने के अलावा भारत के पास सीमित विकल्प हैं. अगर पाकिस्तान की अदालत का फैसला उसके हक में नहीं आता तो वह बहुत कुछ नहीं कर सकता. इस मामले में आईसीजे का फैसला अंतिम है और उसमें अपील की गुंजाइश नहीं है, लेकिन वह फिर से उसके पास इन परिस्थितियों में जा सकता है:

  • अगर फैसले के अर्थ और उसके दायरे पर भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेद हो, और
  • अगर भारत को नए और अहम तथ्यों का पता चलता है तो वह फैसले को बदलवाने की याचिका दे सकता है.

ये अपील नहीं हैं, लेकिन इनसे भारत के पास कुछ वजहों को लेकर राहत की मांग का रास्ता खुला हुआ है. अगर पाकिस्तान आईसीजे के किसी भी फैसले को लागू नहीं करता तो भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पास भी जा सकता है. उसके पास आईसीजे के फैसलों को लागू करवाने के उपाय करने के अधिकार हैं. हालांकि, इसके लिए परिषद के पांचों सदस्यों देशों की सर्वसम्मति ज़रूरी है, जिसमें पाकिस्तान का दोस्त चीन आड़े आ सकता है.

अपने स्तर पर भारत पाकिस्तान से राजनयिक संबंध ख़त्म कर सकता है, वह उसके खिलाफ़ पाबंदी लगा सकता है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उस पर दबाव बनाने की कोशिश कर सकता है. हालांकि, भारत को इनका इस्तेमाल सोच-समझकर करना होगा ताकि पड़ोसी देश के साथ तनाव और न बढ़े.

कानूनी आधार पर जाधव के मामले में भारत को शानदार जीत मिली है और इससे वीसीसीआर के तहत किसी देश की जवाबदेही भी तय हो गई है. हालांकि, पहले के ऐसे मामलों में फैसलों को जिस तरह से लागू किया गया, उससे जाधव के केस पर भी सवालिया निशान लग गया है. मीडिया में पहली बार जाधव की खबर आने के बाद से देश के लोग उनकी सुरक्षा को लेकर चिंतित रहे हैं. भारत आईसीजे के निष्पक्ष कानूनी प्रक्रिया वाले फैसले पर अमल के साथ अगर राजनयिक स्तर पर पहल करे तो शायद वह अपनी बात मनवा सकता है. हालांकि, अभी तक भारत ने इस तरह के संकेत नहीं दिए हैं.

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