Published on Aug 12, 2022 Updated 0 Hours ago

श्रीलंकाई संकट से मालदीव को जो एक बात सीखनी चाहिए, वह यह है कि अति आवश्यक संरचनात्मक सुधारों को लगातार टालने के कितने घातक परिणाम हो सकते हैं.

जानिए, मालदीव को किस प्रकार प्रभावित कर सकता है श्रीलंका में छाया संकट!

श्रीलंका का संकट पूरे मालदीव को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है, क्योंकि इन दोनों देशों की बाहरी और संरचनात्मक आर्थिक विशेषताएं एक समान हैं. बाहर से देखा जाए तो दोनों देश वैश्विक मुद्रास्फीति, कोविड-19 महामारी और यूक्रेन में रूस के आक्रमण के प्रभाव की चपेट में हैं. संरचनात्मक तौर पर देखा जाए दोनों देशों ने व्यापक स्तर पर उधारी लेकर, ब्याज बढ़ाकर और कर्ज़ का बोझ बढ़ाकर, अधिक व्यय के साथ कम राजस्व, पर्यटन पर अत्यधिक निर्भरता और कम निर्यात राजस्व एवं आर्थिक गतिविधियों के विविधीकरण के साथ अपने आर्थिक विकास को बरकरार रखा है. हालांकि दोनों देशों का सावधानी से आकलन करने पर यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि श्रीलंका की तुलना में मालदीव अपेक्षाकृत आर्थिक लाभ में है. हालांकि, मालदीव को श्रीलंकाई संकट से पैदा होने वाले प्रत्यक्ष राजनीतिक और सुरक्षा प्रभावों का सामना करना पड़ सकता है.

श्रीलंका की भांति ही मालदीव को भी पारंपरिक रूप से लगातार कम होते घरेलू राजस्व, सार्वजनिक फ़िजूलख़र्ची और अस्थिर वित्तीय एवं ऋण नीतियों जैसे मुद्दों का सामना करना पड़ा है.  

एक आर्थिक भ्रम का मायाजाल? 

श्रीलंका की भांति ही मालदीव को भी पारंपरिक रूप से लगातार कम होते घरेलू राजस्व, सार्वजनिक फ़िजूलख़र्ची और अस्थिर वित्तीय एवं ऋण नीतियों जैसे मुद्दों का सामना करना पड़ा है. हालांकि, पर्यटन सेक्टर पर अत्यधिक निर्भर रहने वाले मालदीव ने वर्ष 2009 में लोकतंत्र की स्थापना के बाद से बड़ी इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करके अपनी अर्थव्यवस्था में विविधता लाने की कोशिश की. इनमें से वर्ष 2013-2018 के बीच राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के कार्यकाल के दौरान चीन की मदद से रफ़्तार पकड़ने वाली कई परियोजनाओं ने बाद में ऋण और बजट घाटे में बढ़ोतरी की. परिणामस्वरूप, मालदीव का ख़र्च काफ़ी हद तक उसके राजस्व से (टेबल 1 का संज्ञान लें) ज़्यादा हो गया. इसका असर यह हुआ कि देश के विदेशी कर्ज़ में भी वृद्धि दर्ज़ की गई. जिस प्रकार कोविड-19 महामारी ने पर्यटन उद्योग पर बुरा असर डाला है और इसकी वजह से मालदीव की जीडीपी प्रभावित हुई है, (टेबल 1 का संज्ञान लें), इन सबके कारण घाटे, ऋण और उधार में वृद्धि हुई है. कुल मिलाकर यह पूरा घटनाक्रम एक ऐसी डर की स्थिति पैदा कर रहा है कि मालदीव का हाल भी कहीं श्रीलंका के तरह ना हो जाए.

टेबल 1 . मालदीव का बजट घाटा, विदेशी कर्ज़ और जीडीपी

वर्ष 2015 2016 2017 2018 2019 2020 2021
मालदीव की जीडीपी ( बिलियन अमेरिकी डॉलर में) 4.1 4.3+ 4.75 5.3 5.6 3.7 4.8
जीडीपी के % के रूप में घाटा -6-5 -10% -3.1% -5.3 -6.7 -23.5 -16.5
कुल विदेशी कर्ज़ (बिलियन अमेरिकी डॉलर में) 0.72 0.99 1.25 2.0 2.3 3.2 3.3

स्रोत : मालदीव मौद्रिक प्राधिकरण 

हालांकि, कुछ फैक्टर ऐसे हैं, जो मालदीव को लाभ की स्थिति में लाते हैं. श्रीलंकाई सरकार ने वर्ष 2000 की शुरुआत से ही उच्च ब्याज दरों पर निवेश और ऋण लेना ज़ारी रखा. ये निवेश और श्रीलंका को (आधिकारिक) उधार देने की राशि क्रमशः 12 बिलियन अमेरिकी डॉलर और 6 बिलियन  अमेरिकी डॉलर है. दूसरी तरफ, मालदीव ने इस तरह का निवेश और उधार कम अवधि के लिए लिया और वो भी केवल यामीन के शासन में. फलस्वरूप, आधिकारिक तौर पर मालदीव पर चीन की 1.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की देनदारी है और 2018 में इसके सकल घरेलू उत्पाद का 15 प्रतिशत (लगभग 800 मिलियन अमेरिकी डॉलर) का निवेश प्राप्त हुआ है. इस प्रकार, मालदीव चीन से मिली कुल उधारी राशि को कम कर रहा है और ऋण जाल के दायरे को घटा रहा है.

 

इसी तरह, कोवडि-19 महामारी के असर की परवाह किए बिना, श्रीलंका ने व्यापक उधारी के माध्यम से अपनी वृद्धि को बनाए रखा. इसका सार्वजनिक ऋण जीडीपी अनुपात वर्ष 2018 में पहले से ही 91 प्रतिशत था, और जो वर्ष 2021 में बढ़कर 119 प्रतिशत तक हो गया. इसके उलट, मालदीव ने वर्ष 2018 तक अपनी जीडीपी के साथ ऋण अनुपात में कुछ समानता बनाए रखी (टेबल 2). कोविड के कारण पैदा हुई स्थितियां ही केवल वो वजह थीं, जिनसे मालदीव की जीडीपी कम हो गई और उधारी एकाएक बढ़ गई.

 

Table 2. सकल घरेलू उत्पाद का बकाया ऋण प्रतिशत

वर्ष 2013 2014 2015 2016 2017 2018 2019 2020 2021
जीडीपी अनुपात (%) 56.1% 55.2% 52.8% 56.8% 59.1% 58.8% 62.5% 121.4% 124.8%

स्रोत : मालदीव मौद्रिक प्राधिकरण

आख़िर में जहां तक श्रीलंका की बात है, तो उसके मामले में कोविड19 संकट भी उसकी ऋण परिपक्वता के साथ मेल खाता है. श्रीलंका को वर्ष 2026 तक अपने कुल 51 अरब अमेरिकी डॉलर के कर्ज़ में से 25 अरब अमेरिकी डॉलर चुकाना हैं. हालांकि, मालदीव की समस्याएं महामारी के बाद की दुनिया में सामने दिखाई दे रही हैं. मालदीव ने इसी वर्ष जून में 250 मिलियन अमेरिकी डॉलर के अपने सबसे बड़े निकट अवधि के ऋण का भुगतान कर दिया है, इससे अलावा उसका अगला सबसे बड़ा मध्यम अवधि ऋण वर्ष 2026 में परिपक्व होना है. एक सकारात्मक पहलू यह भी है कि मालदीव में 7.6 प्रतिशत की वार्षिक जीडीपी वृद्धि देखी जा रही है और इसका विदेशी मुद्रा भंडार वर्ष 2019 में 600 मिलियन अमेरिकी डॉलर की तुलना में अप्रैल, 2022 में बढ़कर 829 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है. जहां तक बजट घाटे की बात है तो वर्ष 2022 के लिए -11 प्रतिशत के अनुमान के साथ यह भी धीरे-धीरे कम होता जा रहा है.

इस बात की संभावना भी बहुत कम है कि श्रीलंका में संतुलन के खेल में वहां के संकट को लेकर चीन ने जिस तरह से अपनी सधी प्रतिक्रिया दी है, उस पर विचार करते हुए मालदीव की सरकार भारत और चीन के बीच अपने संतुलन को बढ़ाएगी.

राजनीतिक और सुरक्षा निहितार्थ

हालांकि, इस आर्थिक उथल-पुथल के विपरीत श्रीलंकाई संकट प्रत्यक्ष तौर पर मालदीव पर सुरक्षा और राजनीतिक प्रभाव डालता है. सबसे पहले, श्रीलंकाई संकट से मालदीव की विदेश नीति की पक्षपाती प्रकृति और तेज़ होने की संभावना है, क्योंकि भारत और चीन के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है. इसकी प्रबल संभावना है कि मालदीव की सत्ता पर काबिज राजनीतिक दल- मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) श्रीलंकाई संकट के लिए चीनी ऋण जाल को ज़िम्मेदार ठहराएगी और यामीन की चीन समर्थक नीतियों एवं भारत विरोधी बयानबाजी की आलोचना करना जारी रखेगी. इस बात की संभावना भी बहुत कम है कि श्रीलंका में संतुलन के खेल में वहां के संकट को लेकर चीन ने जिस तरह से अपनी सधी प्रतिक्रिया दी है, उस पर विचार करते हुए मालदीव की सरकार भारत और चीन के बीच अपने संतुलन को बढ़ाएगी. इस तरह से मालदीव की एमडीपी सरकार भारत के साथ आगे के संबंध जारी रखेगी, जैसा कि अगस्त 2022 की शुरुआत में राष्ट्रपति सोलिह की यात्रा के दौरान देखा गया था. दूसरी तरफ, यामीन की भारत विरोधी बयानबाजी और चीन के साथ निजी संबंधों को देखते हुए, इसकी संभावना कम है कि वह दोनों को संतुलित करेंगे, यहां तक कि गार्ड में बदलाव के मामले में भी. जैसा कि राजपक्षे की घटना ने शायद दिखाया होगा, यामीन को अपने आर्थिक और राजनीतिक लाभों का फ़ायदा उठाने के लिए चीनी हितों को खुश करना और उनका पालन करना होगा, जो बहुत संभव है कि भारत की कीमत पर होगा.

दूसरे, मालदीव पहले ही अस्थिर श्रीलंका के हालातों का शिकार हो चुका है. वर्ष 1988 में पीपुल्स लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ तमिल ईलम (पीएलओटीई) का मालदीव सरकार को उखाड़ फेंकने का प्रयास संभवतः श्रीलंकाई संकट से उत्पन्न संभावित ख़तरे की घंटी बजाता रहेगा. हाल के वर्षों में भी मालदीव समुद्री ख़तरों, आतंकवाद, हथियारों एवं नशीली दवाओं की तस्करी, संगठित अपराध, अवैध मछली पकड़ने, प्राकृतिक और मानव जनित आपदाओं आदि का सामना करने के लिए नई दिल्ली और कोलंबो के साथ एक संस्थागत संबंध विकसित करने में जुटा रहा है. बगैर नौसेना वाला सबसे छोटा देश होने के नाते मालदीव अपनी समुद्री और बाहरी सुरक्षा के लिए भारत और श्रीलंका पर परस्पर निर्भर रहा है. यह सहयोग महत्वपूर्ण और सामयिक भी है, क्योंकि यह संबंध उस तस्करी नेटवर्क को नियंत्रित कर सकता है, जो मालदीव की बढ़ती चरमपंथी चुनौतियों को बढ़ा सकता है. ऐसे में एक अव्यवस्थित और संकटग्रस्त श्रीलंका, इस प्रगाढ़ होते सहयोग को या तो रोक देगा, या फिर ख़त्म कर देगा, जो मालदीव के लिए बहुत नुकसानदेह साबित होगा. यही कारण है कि एमडीपी ने पारस्परिक रूप से गोटबाया राजपक्षे को कुछ समय के लिए देश में शरण लेने की अनुमति देने का फ़ैसला किया. ज़ाहिर है कि ऐसे में पूर्व राष्ट्रपति नशीद का एक ट्वीट, जिसमें यह दावा किया गया था कि मालदीव सरकार ने श्रीलंका को आगे बढ़ने में किस प्रकार मदद की है, यह मालदीव की एक अस्थिर श्रीलंका से उत्पन्न चिंताओं को और पुख़्ता करता है.

 एक बात, जो मालदीव को श्रीलंकाई संकट से सीखनी चाहिए, वह है अति आवश्यक संरचनात्मक सुधारों को टालने का घातक नतीजा हो सकता है. मालदीव के पास अपने राजस्व में वृद्धि करने, अपने विदेशी मुद्रा स्रोतों में विविधता लाने और अपनी कुल उधारी एवं गैरज़रूरी ख़र्चों को कम करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है.

निष्कर्ष

एक तरह की आर्थिक परेशानियों और स्थियों के बावज़ूद, श्रीलंकाई संकट का मालदीव की सुरक्षा और राजनीति पर अधिक प्रभाव पड़ने की संभावना है. हालांकि इसका अर्थ कतई नहीं है कि मालदीव की अर्थव्यवस्था हमेशा बाहरी संकटों के प्रभाव से सुरक्षित रहेगी. एक बात, जो मालदीव को श्रीलंकाई संकट से सीखनी चाहिए, वह है अति आवश्यक संरचनात्मक सुधारों को टालने का घातक नतीजा हो सकता है. मालदीव के पास अपने राजस्व में वृद्धि करने, अपने विदेशी मुद्रा स्रोतों में विविधता लाने और अपनी कुल उधारी एवं गैरज़रूरी ख़र्चों को कम करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है. इसके अलावा, मालदीव को श्रीलंकाई संकट से पैदा होने वाली संभावित राजनीतिक और सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने के लिए भी ख़ुद को तैयार करना चाहिए, क्योंकि महाशक्तियों के बीच मुक़ाबला तेज़ हो गया है और श्रीलंका लगातार पतन की ओर अग्रसर है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.