Author : Shairee Malhotra

Expert Speak Raisina Debates
Published on Jun 26, 2024 Updated 0 Hours ago

यूरोप में युद्ध, आर्थिक चुनौतियों, वैश्विक व्यापार से संबंधित तनाव और किसान आंदोलन जैसे मुद्दों के बावजूद 2024 में हुए यूरोपियन संसद के चुनाव में सेंटर यानी मध्यमार्गियों ने अपना वर्चस्व बनाए रखा है.

यूरोपीय संसद चुनाव 2024: मुख्य रुझान और निष्कर्ष

EU के 27 सदस्य देशों के यूरोपीय नागरिकों ने छह से नौ जून के बीच 720 सदस्यीय यूरोपीय संसद में अपना सांसद (MEPs) भेजने के लिए मतदान किया. यूरोपीय संसद, EU के बजट को मान्यता देने के साथ ही EU की ओर से बनाए गए कानून में संशोधन करने, उसकी समीक्षा करने और उसे पारित करने का काम भी करती है. 2024 का चुनाव एक ऐसे नाजुक मोड़ पर हुआ है जब 2 वर्षों से यूरोप युद्ध का सामना कर रहा है. इस महाद्वीप के समक्ष इस अवधि में विभिन्न आर्थिक संकट भी खड़े हैंयुद्ध के कारण वैश्विक व्यापार में तनाव देखा जा है और किसान भी आंदोलनरत हैं. ब्रेक्जिट के बाद होने वाला EU का यह पहले चुनाव था. 1979 में जब EU के चुनाव आरंभ हुए, उसके बाद यह पहला ऐसा चुनाव था जिसमें यूनाइटेड किंगडम (UK) शामिल नहीं था. इस चुनाव में 51 फ़ीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग कियायह लगभग उतना ही मतदान था जितना 2019 के चुनाव में हुआ था. 2019 के चुनाव में 50.7 फ़ीसदी लोगों ने अपना वोट दिया था.

इस चुनाव में सेंटर-राइट यूरोपियन पीपुल्स पार्टी (EPP) सीधे-सीधे विजेता रही है. 2019 में 176 सीटें जीतने वाली इस पार्टी को इस बार 189 सीटें मिली हैं

मध्य मार्गियों का वर्चस्व 


फार राइट यानी कट्टर दक्षिणपंथी लोगों को इस चुनाव में लाभ हुआ हैलेकिन यूरोपियन संसद में अभी सेंटर-राइट यानी मध्य मार्गियों का वर्चस्व बना हुआ है. इस चुनाव में सेंटर-राइट यूरोपियन पीपुल्स पार्टी (EPP) सीधे-सीधे विजेता रही है. 2019 में 176 सीटें जीतने वाली इस पार्टी को इस बार 189 सीटें मिली हैं. प्रोग्रेसिव एलायंस ऑफ़ सोशलिस्ट् एंड डेमोक्रेट्स के सेंटर-लेफ्ट ग्रुप की सीटें 144 से घटकर 135 पर गई हैइसके बावजूद यह पार्टी यूरोपीय संसद में दूसरा सबसे बड़ा समूह बनी हुई है.

कट्टर दक्षिणपंथियों को बड़ी सफ़लता

 जीवन-यापन ख़र्चीला होने, किसान आंदोलन और प्रवसन के कारण उपजे गुस्से की वजह से मतदाताओं में काफ़ी गुस्सा था. इसी वजह से फ्रांस और जर्मनी में धूर-दक्षिणपंथी राजनीतिक दलों को मिली सफ़लता को वहां की राष्ट्रीय राजनीति को लेकर अपरोक्ष जनमत संग्रह ही माना गया. इस चुनाव में चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़ की सोशल डेमोक्रेट् के बाद दूसरे नंबर पर रही अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (AFD) को यह सफ़लता उसके अनेक विवादों में फंसने के बावजूद मिली है. मरीन ले पेन के नेतृत्व वाली नेशनल रैली पार्टी को फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की पार्टी रेनसां के मुकाबले दोगुना वोट मिले. मरिन ले पेन की पार्टी ने फ्रांस की 81 में से 31 सीटों पर जीत दर्ज़ की. मरिन ले पेन की पार्टी नेशनल रैली, राष्ट्रपति इमैन्युअल मैक्रों के ख़िलाफ़ बने विपक्षी समूह आइडेंटिफाइ एंड डेमोक्रेसी (ID) में शामिल है. इस चुनावी हार के कारण मैक्रों को फ्रांस में मध्यावधि चुनाव की घोषणा करनी पड़ी. ऑस्ट्रिया में भी धुर-दक्षिणपंथी फ्रीडम पार्टी शीर्ष पर रही. हंगरी में राष्ट्रपति विक्टर ओर्बन की फ़ाइड्ज़ पार्टी को ओर्बन के नवीनतम प्रतिद्धद्वी पीटर मग्यार और उनकी टिस्ज़ा पार्टी से कड़ी चुनौती मिल रही है. इसके बावजूद ओर्बन की पार्टी, जो फ़िलहाल किसी समूह का हिस्सा नहीं है, को 44.8 प्रतिशत वोट मिले. स्पेन में भी कट्टर-दक्षिणपंथी, वॉक्स पार्टी तीसरे नंबर पर रही. इस चुनाव में वॉक्स से पहले प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज की सोशलिस्ट पार्टी और EPP समूह में शामिल पॉपुलर पार्टी को पसंद किया गया.

इस सफ़लता ने कट्टर-दक्षिणपंथियों को यूरोपीय संसद में EPP के बाद दूसरा सबसे बड़ा समूह बना दिया है. ऐसे में ये दोनों समूह मिलकर संसद में सबसे बड़ा गठजोड़ बन सकते हैं

कुल मिलाकर राष्ट्रीय रुझानों की तर्ज़ पर ही कट्टर-दक्षिणपंथी दलों, जिसमें यूरोपीय कंजरवेटिव्स एंड रिर्फोमिस्ट् (ECR) ग्रुप, ID तथा जो दल किसी भी समूह में शामिल नहीं है, को 146 सीटों पर जीत मिली. इस सफ़लता ने कट्टर-दक्षिणपंथियों को यूरोपीय संसद में EPP के बाद दूसरा सबसे बड़ा समूह बना दिया है. ऐसे में ये दोनों समूह मिलकर संसद में सबसे बड़ा गठजोड़ बन सकते हैं. लेकिन रूस तथा यूक्रेन को EU की ओर से दिए जाने वाले वर्तमान समर्थन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर अंदरूनी मतभेद इन्हें एक स्वर में बोलने से रोकेंगे. उदाहरण के लिए इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी, जो ECR समूह का हिस्सा है, कट्टर-दक्षिणपंथी होने के बावजूद यूक्रेन के समर्थन में ख़ुलकर सामने गई हैं. उनका यह रुख़ मरिन ले पेन, जिनके रूस के साथ नज़दीकी संबंध है से सीधे-सीधे टकराता है. ऐसे में कट्टर-दक्षिणपंथी समूह को मिली सीटों के कारण EU का विकासशील एजेंडा प्रभावित होगा. इन कट्टर-दक्षिणपंथियों के कारण EU की ओर से 2050 तक यूरोप को क्लाइमेट-न्यूट्रल बनाने संबंधी महत्वाकांक्षी विधेयक-यूरोपीय ग्रीन डील का भविष्य भी प्रभावित होगा.

 ग्रीन्स को भारी नुक़सान

EU की प्राथमिकताओं में जलवायु परिवर्तन जैसा अहम मुद्दा अब उतना महत्वपूर्ण नहीं रह गया है. ऐसे में ग्रीन्स/यूरोपीय फ्री अलायंस को इस चुनाव में भारी नुक़सान उठाना पड़ा. डेनमार्क जैसे कुछ देशों में सफ़लता के बावजूद ग्रीन्स को मिली वोट की हिस्सेदारी घटी और उसकी सीटें 71 से घटकर 53 पर गई. ऐसे में पहले से ही किसान आंदोलन और सेंटर-राइट की ओर से अपनाए गए अधिक दक्षिणपंथी रुख़ के कारण दबाव झेल रहा EU का हरित एजेंडा और भी प्रभावित होगा.

पराजय के बावजूद उदारवादी तीसरे स्थान पर

ग्रीन्स के साथ ही लिबरल रिन्यू युरोप (मैक्रों का समूह) को भी इस चुनाव में हार मिली. इस समूह की सीटें 102 से कम होकर 79 पर पहुंच गई. फ्रांस, जर्मनी और स्पेन में भारी पराजय के बावजूद इस समूह को कुछ सफ़लता भी मिली. स्लोवाकिया में विपक्षी दल प्रोग्रेसिव स्लोवाकिया पार्टी को इस बात के बावजूद जीत मिली कि वहां के लोकप्रिय वामपंथी विचारधारा वाले राष्ट्रपति रॉबर्ट फ़िको की हत्या की कोशिश की गई. कुल मिलाकर 79 सीटों के साथ रिन्यू यूरोप समूह यूरोपीय संसद में तीसरा सबसे बड़ा गठजोड़/समूह बनकर उभरा है

 यूरोपीय चुनावों में मिली करारी शिकस्त के कारण मैक्रों अब अपनी फूट डालने वाली नीति को आगे नहीं बढ़ा सकेंगे. वैसे भी मैक्रों फिलहाल अपने देश में होने वाले मध्यावधि चुनावों पर ही ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. 

भविष्य की राह

EU की नई संसद और उसके MEPs का सबसे पहला काम, EU के कार्यकारी निकाय, यूरोपीय आयोग के नए अध्यक्ष को मान्यता देना होगा. EPP से जुड़ी निर्वतमान अध्यक्ष वॉन डेर लेयेन ही उनकी पहली पसंद होगी. उन्हें संभवत: लगातार दूसरी बार काम करने का अवसर मिलेगा. आरंभिक चर्चाएं थी कि फ्रांस EU की ज़िम्मेदारी इटली के पूर्व प्रधानमंत्री मारियो द्राघी को सौंपने का इच्छुक था. लेकिन यूरोपीय चुनावों में मिली करारी शिकस्त के कारण मैक्रों अब अपनी फूट डालने वाली नीति को आगे नहीं बढ़ा सकेंगे. वैसे भी मैक्रों फिलहाल अपने देश में होने वाले मध्यावधि चुनावों पर ही ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. ऐसे में वॉन डेर लेयेन को दूसरा कार्यकाल मिलने में कोई रुकावट नहीं आएगी. इसके बावजूद उन्हें 361 MEPs के समर्थन की आवश्यकता होगी. इतने MEPs का समर्थन हासिल करना ऊपरी तौर पर तो आसान ही दिखाई देता है, क्योंकि मध्यमार्गियों के पास फिलहाल 400 से ज़्यादा सीटें हैं. लेकिन इसमें से कुछ MEPs (कम से कम 10 प्रतिशत) के अपने समूहों का साथ छोड़ने की आशंका है. ऐसे में वॉन डेर लेयेन को अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए संभवत: अन्य समूहों से, जिसमें कट्टर-दक्षिणपंथी समूह भी आते हैं, से समर्थन हासिल करना ज़रूरी होगा


शैरी मल्होत्रा, ऑर्ब्जवर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिए फेलो हैं.

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