Author : Gurjit Singh

Published on May 10, 2023 Updated 0 Hours ago

G20 की अध्यक्षता भारत के लिए अच्छा मौक़ा है कि वो अफ्रीका के साथ अपने रिश्तों में नई जान डाले.

अब अफ्रीका पर ध्यान देने का वक़्त आ गया है

भारत की G20 अध्यक्षता में ये संभावना है कि इससे उसकी अफ्रीका नीति को और बल मिले. अफ्रीका के लिए भारत की एक नई नीति से, विकासशील देशों की आवाज़ (VOGS) के रूप में उसकी G20 अध्यक्षता और चमक उठेगी.

नरेंद्र मोदी के शासनकाल में भारत अफ्रीका फोरम का कामयाब शिखर सम्मेलन (IAFS III) हुआ था, जिसमें अफ्रीका के सभी 54 देश शामिल हुए थे. इसने अफ्रीका नीति में नई जान डालने का काम किया था. 2016 और 2018 में मोदी का अफ्रीका दौरा और 2018 में युगांडा में अफ्रीका के लिए दस सिद्धांतों का प्रतिपादन, कुछ अहम क़दम थे. महामारी और यूक्रेन युद्ध के बाद अब इन बातों के नए सिरे से मूल्यांकन की ज़रूरत है. इसके संकेत भी दिख रहे हैं. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने युगांडा और मोज़ांबिक का दौरान किया है. जब विदश मंत्री BRICS की बैठक के लिए दक्षिण अफ्रीका जाएंगे, तो उनके पास अन्य अफ्रीकी देशों के दौरे का अवसर भी होगा.

चूंकि भारत विकासशील देशों (ग्लोबल साउथ) की आवाज़ है, इसलिए अफ्रीका के पक्ष में बोलना ख़ास तौर से अहम है. अफ्रीका को महामारी और यूक्रेन संघर्ष के नतीजे ख़ास तौर से भुगतने पड़े हैं. वॉयस ऑफ़ ग्लोबल समिट (VOGS) में अफ्रीकी देशों की भागीदारी उनकी अपेक्षाओं और संभावनाओं को दिखाती है. भारत की G20 अध्यक्षता के ज़रिए इन आकांक्षाओं को पूरा किया जा सकता है.

भारत की अफ्रीका नीति का विस्तार कैसे किया जाए?

अपनी G20 अध्यक्षता के दौरान भारत अपनी मौजूदा अफ्रीका नीति को आगे बढ़ाने के लिए कौन से रणनीतिक क़दम उठा सकता है?

पहला, भारत को चाहिए कि वो G20 शिखर सम्मेलन से पहले भारत अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन IV का आयोजन करे. ये सम्मेलन महामारी और अफ्रीकी संघ (AU) के दूसरे बचे हुए सम्मेलन के कारण काफ़ी समय से लंबित है. अगर IAFS IV को जल्दी से जल्दी आयोजित किया जाता है, तो इससे विकासशील देशों की नुमाइंदगी करने का भारत का क़द और बढ़ जाएगा, विशेष रूप से G20 में अफ्रीका का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा. 2021 के बाद से ही अमेरिका- अफ्रीका लीडर्स शिखर सम्मेलन, फोरम ऑफ़ चाइना अफ्रीका को-ऑपरेशन, यूरोप अफ्रीका शिखर सम्मेलन, टोक्यो इंटरनेशनल कांफ्रेंस ऑन अफ्रीकन डेवेलपमेंट का आयोजन हो चुका है. रूस और अफ्रीका का शिखर सम्मेलन इस साल जुलाई में होना प्रस्तावित है. ऐसे में भारत के लिए, चौथा इंडिया अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन, G20 के बाद आयोजित करने के अवसर सीमित हो जाएंगे, क्योंकि 2024 में भारत में आम चुनाव होने हैं.

दूसरा, भारत को चाहिए कि वो अफ्रीकी संघ को G20 में स्थायी मेहमान के दर्जे से ऊपर उठाकर इसका 21वां सदस्य बनाने का प्रयास करे. अफ्रीकी संघ ने फरवरी 2023 में अपने शिखर सम्मेलन के दौरान ख़ुद को G20 का सदस्य बनाने के लिए अभियान चलाने के प्रस्ताव पर मुहर लगाई थी. अफ्रीका को लगता है कि अभी उसके, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की स्थायी सदस्यता हासिल करने में वक़्त लगेगा. इसीलिए अफ्रीका, G20 का सदस्य बनने की ख़्वाहिश रखता है. इस वक़्त अफ्रीकी संघ आयोग और अफ्रीकी संघ की न्यू पार्टनरशिप फॉर अफ्रीकाज़ डेवेलपमेंट (AU-NEPAD) G20 के स्थायी आमंत्रित सदस्य हैं. जबकि, दक्षिण अफ्रीका G20 का इकलौता अफ्रीकी सदस्य देश है. AU-NEPAD को उस वक़्त आमंत्रित सदस्य बनाया गया था, जब वो एक अलग संस्था थी. चूंकि अब उसका विलय AU की डेवेलपमेंट एजेंसी (AUDA) के साथ कर दिया गया है, तो अब यही तार्किक होगा कि AU-NEPAD को आमंत्रित सदस्यों की सूची से हटाकर, अफ्रीकी संघ को G20 का 21वां सदस्य बनाया जाए.

अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अफ्रीका की नुमाइंदगी एक लगातार चलने वाला संघर्ष है. कई दशकों से भारत, बड़े अंतरराष्ट्रीय संगठनों में अफ्रीका को जगह दिलाने की लड़ाई लड़ता रहा है और उसने अफ्रीकी देशों को बांडुंग, संयुक्त राष्ट्र, विश्व व्यापार संगठन और अन्य संस्थाओं की सदस्यता दिलाई है. अफ्रीकी संघ को G20 का सदस्य बनाने पर आम सहमति बनाने से भारत की कूटनीतिक अहमियत बढ़ेगी, क्योंकि अन्य प्रतिद्वंदी भी ऐसा करने होड़ लगाएंगे. लेकिन, अफ्रीका के मामले में भारत इस होड़ में आगे निकल सकता है.

यहां तक कि BRICS के विस्तार की भी कोशिश हो रही है. जब ब्रिक्स का विस्तार हो, तो भारत को चाहिए कि वो अफ्रीकी देशों को इसका सदस्य बनाने की वकालत करे. इस वक़्त G20 और BRICS में दक्षिण अफ्रीका ही इकलौता अफ्रीकी देश है. चूंकि G20 के विस्तार की सीमाएं हैं इसलिए, नाइजीरिया, मिस्र और कीनिया जैसे देशों को ब्रिक्स के विस्तार का हिस्सा बनाना एक अच्छा विकल्प हो सकता है मॉरीशस के अलावा नाइजीरिया और मिस्र ऐसे अफ्रीकी देश हैं, जिन्हें भारत ने G20 में मेहमान के तौर पर बुलाया है. इससे ब्रिक्स के विस्तार को चीन के नेतृत्व में चलने वाला अभियान बनने से रोका जा सकेगा.

संबंधों के विस्तार की एक बड़ी संभावना

भारत, सिक्योरिटी ऐंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रीजन (SAGAR) और इंडो पैसिफिक ओशंस इनिशिएटिव (IPOI) की पहल के ज़रिए पूरी लगन के साथ लगातार अपनी हिंद प्रशांत नीति को लागू कर रहा है. ये ज़रूरी है कि अफ्रीका को भी भारत की हिंद प्रशांत नीति का हिस्सा बनाया जाए, और IPOI के तहत सहयोग को हिंद प्रशांत के तटीय देशों के साथ संबंधों का हिस्सा बनाया जाना चाहिए. भारत के मॉरीशस, सेशेल्स, मैडागास्कर, मोज़ांबीक़ और अन्य देशों के साथ द्विपक्षीय सामरिक रिश्ते हैं. लेकिन, हिंद महासागर और लाल सागर के तटीय देशों के साथ सामरिक रूप से अधिक व्यापक और लगातार संपर्क बनाए रखना आवश्यक है. इससे भारत की अफ्रीका नीति को उसके लिए सामरिक रूप से अहम देशों पर अधिक केंद्रित किया जा सकेगा. सामरिक रूप से ये ध्यान केंद्रित करने के बाद, भारत को चाहिए कि वो अपने विकास संबंधी सहयोग, निजी क्षेत्र द्वारा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) और दूसरे तरह के सहयोग को भी अपनी रणनीति का हिस्सा बनाए, जिससे इन देशों के साथ नज़दीकी संपर्क बनाया जा सके.

हाल ही में भारत ने 20 अफ्रीकी देशों के साथ सैन्य युद्धाभ्यास AFINDEX का दूसरा संस्करण आयोजित किया था. भारत ने पहली बार अफ्रीकी देशों के सेनाध्यक्षों के साथ भी सम्मेलन आयोजित किया था. अफ्रीकी देशों और भारत का युद्धाभ्यास (AFINDEX) धीरे धीरे अपना क़द बढ़ा रहा है; हालांकि इसमें तालमेल और बढ़ाने की ज़रूरत है. जिन देशों के साथ भारत के सामरिक रिश्ते हैं, उन्हें भी इसमें शामिल होना ही चाहिए. मिसाल के तौर पर इस युद्धाभ्यास (AFINDEX) से मॉरीशस और मोज़ांबिक की अनुपस्थिति अच्छी बात नहीं थी और अगले संस्करण में ये भूल सुधारी जानी चाहिए. इसी तरह सेनाध्यक्षों के सम्मेलन को भी सामरिक रूप से और ताक़तवर बनाना चाहिए. जिन देशों के साथ भारत अपने रिश्ते विकसित करना चाहता है, उन्हें भी उचित स्तर पर भागीदारी करनी चाहिए, न कि वो अपने दूतावासों के ज़रिए शामिल हों, या ख़ुद को ग़ैरहाज़िर रखें. अफ्रीका में 18 नए दूतावासों के साथ अब भारत को अधिक कूटनीतिक दबदबे का इस्तेमाल करना चाहिए.

2022 में भारत और अफ्रीका के रक्षा मंत्रियों की बैठक में 22 मंत्रियों की भागीदारी और 2021 में DEFEXPO के साथ हुए हिंद महासागर क्षेत्र के रक्षा मंत्रियों के सम्मेलन में 26 मंत्रियों की भागीदारी सुनिश्चित करके ये नज़रिया आगे बढ़ाया जा रहा है. निश्चित रूप से एक वक़्त पर इतने सारे मंत्रियों को एक साथ बुलाना आसान नहीं है. लेकिन, इसके लिए एक सुनिश्चित रणनीति की ज़रूरत होती है, जिससे वो देश निश्चित रूप से शामिल हों, जिनके साथ भारत अपने रिश्ते विकसित करना चाहता है.

आज भारत के रक्षा निर्यात के लिए नए और बड़े बाज़ार तलाशने की ज़रूरत भी है. उन देशों के साथ रिश्ते विकसित किए जा सकते हैं, जहां भारत के सैनिक दस्ते सक्रिय रहे हैं, जहां भारत ने प्रशिक्षण की सुविधाएं बनाने में मदद की है, और जहां भारत के सैनिक शांति स्थापना के मिशन में भागीदार बनते रहे हैं. संबंधों के विस्तार की एक बड़ी संभावना है, जिसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए.

इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA) एक क़ुदरती मोर्चा है, जहां भारत ने हिंद महासागर के तट पर बसे अफ्रीकी देशों के साथ संवाद आगे बढ़ाया है. भारत को चाहिए कि वो तंज़ानिया, कीनिया और मोज़ांबिक जैसे देशों को IORA की अध्यक्षता प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करे. क्योंकि दक्षिण अफ्रीका के सिवा, IORA के नौ देशों में से किसी भी एक सदस्य ने कभी भी मॉरीशस स्थित इस संगठन की अध्यक्षता नहीं की है. अगर कोई अफ्रीकी देश IORA की अध्यक्षता के लिए ख़ुद आगे आता है, तो भारत को चाहिए कि वो इसकी तैयारी, संपर्क और कामयाबी मे उस देश की मदद करे.

सूडान के हालिया संघर्ष से ये स्पष्ट है कि अफ्रीका और अन्य जगहों पर संकट जैसे हालात पैदा होते ही रहते हैं. भारत इस क्षेत्र के उन देशों के साथ सामरिक रिश्ते विकसित करने की ज़रूरत है, जिससे लोगों को निकालने और मानवीय सहायता और आपदा राहत (HADR) दोनों के अभियानों को प्रभावी तरीक़ों से संचालित किया जा सके. क्योंकि, चक्रवात और दूसरी प्राकृतिक आपदाओं जैसी समस्याएं भी बार बार पैदा होती हैं. अतीत में भारत ने लोगों को यमन से निकालने के लिए जिबूती को ठिकाना बनाया था; हालांकि, सूडान से अपने नागरिकों को निकालने के लिए सऊदी अरब के जेद्दा को अड्डा बनाया गया था. हिंद महासागर के तटीय क्षेत्र में स्थित सदर्न अफ्रीकन डेवेलपमेंट कम्युनिटी (SADC), ईस्ट अफ्रीकन कम्युनिटी (EAC) और इंटरगवर्नमेंटल अथॉरिटी ऑन डेवेलपमेंट (IGAD) जैसे क्षेत्रीय आर्थिक समुदायों (REC) के साथ साझेदारियों का विस्तार उनकी नीतियों को सामरिक इरादे से विकसित करने में मददगार साबित होगा.

हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका इस वक़्त बुरी तरह बंटा हुआ इलाक़ा है, जहां न केवल बड़ी ताक़तें, बल्कि क्षेत्रीय शक्तियां भी विभाजनकारी भूमिका निभा रही हैं. इस क्षेत्र में कभी भी संकट पैदा होने का ख़तरा बना रहता है. लोगों को निकालने और मानवीय सहायता के लिए तैयार रहना एक रक्षात्मक और नरम दृष्टिकोण है. लेकिन, विकासशील देशों के बीच भारत की हैसियत और उसकी सामरिक स्वायत्तता को देखते हुए, वो शायद हॉर्न ऑफ अफ्रीका के देशों के साथ संपर्क बढ़ा सकता है और अन्य दोस्त देशों के साथ मिलकर इस इलाक़े में स्थिरता क़ायम करने में मददगार हो सकता है. इस वक़्त तो ये बात बेहद मुश्किल दिखती है. लेकिन इस पर ध्यान देने और कोशिश करने की ज़रूरत है. अफ्रीका की ‘बंदूकों को ख़ामोश करने’ की ख़्वाहिश पूरी करने में मदद के लिए एक व्यवहारिक कोशिश तो ट्रैक-2 स्तर पर भी आवश्यक है. इस काम के लिए भारत, हॉर्न ऑफ अफ्रीका के लिए विशेष दूत नियुक्त करने पर विचार कर सकता है, जिससे वो अपनी भागीदारी बढ़ा सके.

गुटनिरपेक्ष आंदोलन के साथ फिर संपर्क करने की भारत नए सिरे से कोशिश कर रहा है, जो स्वागत योग्य है. इस वक़्त युगांडा इसका अध्यक्ष है. ये इस बात का संकेत है कि भारत ग्लोबल साउथ की संस्थाओं से दोबारा संवाद करने और आवश्यकता पड़ने पर उनकी मदद और दिशा दिखाने का इच्छुक है. इसके साथ साथ भारत, सुरक्षा परिषद समेत संयुक्त राष्ट्र में सुधार के प्रयास भी जारी रखे हुए है. इस मामले में अफ्रीका का सहयोग महत्वपूर्ण है. क्या भारत, अफ्रीका के साथ अधिक नज़दीकी से काम करने का आत्मविश्वास रखता है, जिससे वो अफ्रीकी देशों को साझा अफ्रीकी दृष्टिकोण या एज़ुलविनी आम सहमति से आगे बढ़कर अधिक उत्पादक नतीजे के लिए राज़ी कर सकता है? इससे अफ्रीकी देशों के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की सदस्यता हासिल करने का बेहतर मौक़ा प्राप्त होगा. अफ्रीकी देशों को ये समझना होगा कि एज़ुलविनी आम सहमति अब उसके पैरों की बेड़िया बन गई है, जो अफ्रीका को अपनी आकांक्षाएं पूरी करने से रोक रही है और विकासशील देशों के अन्य सदस्यों के साथ असरदार गठबंधन बनाने में भी बाधक साबित हो रही है.

आख़िर में चूंकि अफ्रीकी संघ महत्वपूर्ण है, तो अब समय आ गया है कि भारत इसकी नई संस्थाओं से संवाद करे. अफ्रीकी महाद्वीप मुक्त व्यापार क्षेत्र बनने की दिशा में अग्रसर है. भारत इसके लिए और दूसरे क्षेत्रीय आर्थिक समुदायों (RECs) को बेहतर ढंग से लागू करने के लिए तकनीकी विशेषज्ञता और मदद मुहैया करा सकता है इसी तरह अफ्रीका सेंटर फॉर डिज़ीज कंट्रोल (Africa CDC) को अपग्रेड करके इसे अफ्रीकी संघ की संस्था बनाने पर भी ध्यान देना चाहिए. भारत, अफ्रीका को दवाएं और टीके निर्यात करने वाला सबसे बड़ा देश है. CDC और नई उभरती संस्था अफ्रीकन मेडिसिंस एजेंसी के साथ संवाद करके इस निर्यात को प्रभावी साझेदारी में तब्दील किया जा सकता है.

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