Published on Sep 18, 2023 Updated 0 Hours ago

जैविक हथियारों पर विमर्श के दायरे का विस्तार हो रहा है, ऐसे में कमज़ोर और असुरक्षित लैंगिक समूहों पर जैव-युद्ध के प्रभाव का ध्यान रखना होगा. 

जैविक-युद्ध और निरस्त्रीकरण में सेक्स और जेंडर से जुड़े सवालों पर विचार ज़रूरी!

अगस्त 2019 में संयुक्त राष्ट्र निरस्त्रीकरण अनुसंधान संस्थान (UNIDIR) का सम्मेलन आयोजित किया गया. इसका मक़सद लैंगिक रूप से प्रतिक्रियाशील या उत्तरदायी जैविक हथियार सम्मेलन (BWC) के दायरे पर चर्चा करना था. ये चर्चा जैविक युद्ध में सेक्स और जेंडर आधारित प्रतिनिधित्व के इर्द-गिर्द घूमी. इस परिचर्चा में जानबूझकर किए गए जैविक हमलों और प्राकृतिक प्रकोपों के ऐसे तमाम उदाहरणों पर मंथन किया गया, जो अलग-अलग तरीक़ों से विभिन्न लैंगिक समूहों पर प्रभाव और असर दिखा सकते हैं. 

भले ही जैविक हथियार प्रोटोकॉल्स के दायरे में लिंग यानी जेंडर एक अपेक्षाकृत अनजान विचार हो, लेकिन ऐतिहासिक तौर पर ज़्यादा कमज़ोर और असुरक्षित लिंगों पर इसका बेहद विषण प्रभाव रहा है.

भले ही जैविक हथियार प्रोटोकॉल्स के दायरे में लिंग यानी जेंडर एक अपेक्षाकृत अनजान विचार हो, लेकिन ऐतिहासिक तौर पर ज़्यादा कमज़ोर और असुरक्षित लिंगों (आमतौर पर जैविक रूप से महिलाओं के संदर्भ में) पर इसका बेहद विषण प्रभाव रहा है. उभरती टेक्नोलॉजियों के साथ ये असुरक्षाएं और बढ़ती जा रही हैं. 

ऐतिहासिक और परंपरागत जैविक युद्ध 

चिकित्सा और जैविक प्रतिरूपों के विकास में विविध लिंगों का प्रतिनिधित्व पहले से ही कम रहा है. ये हालात, दमन के शिकार और अल्पसंख्यक लैंगिक समूहों को उनके पुरुष समकक्षों की तुलना में जैविक हथियारों के प्रति ज़्यादा असुरक्षित बना देते हैं.  

ऐतिहासिक रूप से भी महिलाओं को स्पष्ट तौर पर जैविक हथियारों से निशाना बनाया जाता रहा है. मिसाल के तौर पर दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद काल में दक्षिण अफ्रीकी सत्य और सुलह आयोग (TRC) के सामने दी गई गवाहियों से पता चला था कि वहां राजनीतिक विरोधियों के ख़ात्मे के लिए जैविक हथियारों का प्रयोग किया गया था. प्रोजेक्ट कोस्ट (Project Coast) के तहत, उसी गवाही में एक अगुवा वैज्ञानिक ने ऐसे सीरम विकसित करने के (नाकाम) प्रयासों की बात स्वीकार की, जो अश्वेत महिलाओं में बांझपन का कारण बन सकती थी. 

उधर, 1932-1945 के कालखंड के बीच जापान ने अपने बंदियों के ख़िलाफ़ यौन संपर्कों के ज़रिए फैलने वाली बीमारियों का प्रयोग किया. आज भी, बलात्कार और जबरन गर्भधारण को युद्ध का हथियार माना जाता है. इनके अनेक ऐसे प्रभाव हैं जो आजीवन असर दिखाते हैं, जिनमें यौन संचारित रोग शामिल है.

इसी तरह, जैविक हथियार सम्मेलन यानी BWC, क्लैमेडिया को भी जैविक एजेंट/हथियार के तौर पर रेखांकित करता है. वैसे तो क्लैमेडिया के कई परिणाम हो सकते हैं, लेकिन महिलाओं में ये अक्सर लक्षणहीन (asymptomatic) होता है. इसे यौन संचारित रोग के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, जिसकी महिलाओं पर अपेक्षाकृत अधिक मार पड़ती है. 

आज भी, बलात्कार और जबरन गर्भधारण को युद्ध का हथियार माना जाता है. इनके अनेक ऐसे प्रभाव हैं जो आजीवन असर दिखाते हैं, जिनमें यौन संचारित रोग शामिल है.

बताया जाता है कि 1998-2000 के बीच के कालखंड में अमेरिका में कुख्यात जैविक एजेंट एंथ्रेक्स ने जैविक रूप से महिलाओं की तुलना में जैविक तौर पर पुरुषों को अधिक प्रभावित किया. हालांकि, एंथ्रेक्स से बचाव के लक्ष्य से लगाए गए टीके से पता चला कि इसका पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं, जिनका कोई निर्धारित कारण नहीं था और प्रतिक्रिया का जोख़िम लगभग दोगुना था. 

अमेरिका में 2001 के एंथ्रेक्स हमलों को हाल ही में अमेरिकी इतिहास के सबसे वीभत्स जैविक हमले के रूप में वर्गीकृत किया गया है. इन हमलों के चलते पांच लोगों की जान चली गई थी, जबकि 17 लोग गंभीर रूप से बीमार पड़ गए थे. 

वैसे जैविक हमलों का कोई पुख़्ता मामला नहीं है, क्योंकि ऐसे हमलों और इनके हानिकारक प्रभावों की गुंजाइश, सरकारों को सतर्क रखती है.

उभरती टेक्नोलॉजी और जैविक युद्ध 

जीन एडिटिंग टूल्स (जैसे क्लस्टर्ड रेगुलरली इंटरस्पेस्ड शॉर्ट पैलिंड्रोमिक रिपीट्स, यानी CRISPR) तकनीक़ के आग़ाज़ के साथ जैविक युद्ध के दायरे में नई चिंताएं उभर गई हैं. इससे लिंग संबंधी विचारों और नैतिक चिंताओं की आवश्यकता उभरकर सामने आती है.

2016 में विश्व स्तर पर ख़तरों और जोख़िमों का मूल्यांकन करने वाली रिपोर्ट ने दोहरे उपयोग की प्रकृति के कारण CRISPR जीन एडिटिंग को सामूहिक विनाश के हथियार के तौर पर चिन्हित किया था. जीन एडिटिंग टूल्स रोगाणुओं (pathogens) की क्षमता बढ़ाकर उन्हें पहले से ज़्यादा ज़हरीला और इलाज से क़ाबू में नहीं आने वाले रोगजनक बना सकते हैं. 

BWC सिर्फ़ आक्रामक अनुसंधानों पर ही प्रतिबंध लगाता है. बहरहाल, और चिकित्सा और क्लिनिकल रिसर्च में CRISPR के अनेक प्रयोग हैं; लिहाज़ा, दोहरे उपयोग वाले विकास के दायरे पर निश्चित रूप से विचार किया जाना चाहिए.

प्राथमिक रूप से CRISPR तकनीक़ का विकास और प्रयोग, और आनुवंशिक लक्षणों पर इसके संभावित प्रभाव, अनजाने में ही लैंगिक पूर्वाग्रह को बरक़रार रख सकते हैं. साथ ही ये लिंग के असमान प्रतिनिधित्व के परिणामों को भी बढ़ावा दे सकते हैं. इसके नतीजतन CRISPR पर आधारित किसी भी शोध या परिणाम के असमान प्रभाव हो सकते हैं. महिलाओं पर एंथ्रेक्स टीकों के प्रभाव से ये ज़ाहिर हो चुका है. इसके अलावा, CRISPR के संदर्भ में लैंगिक चिंताओं में आनुवंशिक विकारों को प्रभावित करने के लिए इस उपकरण के संभावित निहितार्थ शामिल हैं, जो सीधे-सीधे प्रजनन स्वास्थ्य और प्रजनन क्षमता (fertility) से जुड़ते हैं. 

एक और अहम बात ये है कि लिंग की चर्चा एक-आयामी (uni-dimensional) नहीं है. जैसा कि हमने पहले देखा, ख़ास जातीय समूहों या नस्लों पर जंग के दौरान हमलों की संभावना, उस समुदाय में कमज़ोर लिंग पर आक्रमण से शुरू हो सकती है. लिहाज़ा, युद्ध से जुड़े संवादों में आबादी के तमाम खंडों से जुड़ा विचार प्रासंगिक हो जाता है. इस कड़ी में जातीय और नस्ली विचारों को भी शामिल किया जाना अनिवार्य है. 

प्राथमिक रूप से CRISPR तकनीक़ का विकास और प्रयोग, और आनुवंशिक लक्षणों पर इसके संभावित प्रभाव, अनजाने में ही लैंगिक पूर्वाग्रह को बरक़रार रख सकते हैं. साथ ही ये लिंग के असमान प्रतिनिधित्व के परिणामों को भी बढ़ावा दे सकते हैं.

ज़ाहिर तौर पर ये ध्यान में रखना ज़रूरी है कि ऐसी तमाम चिंताएं CRISPR टेक्नोलॉजी के उपयोग के इर्द-गिर्द जारी व्यापक नैतिक और सामाजिक संवाद का हिस्सा हैं.

जैविक युद्ध में वैश्विक दिशानिर्देशों का प्रयोग 

ऊपर जिस UNIDIR रिपोर्ट का ज़िक्र किया गया है, उसमें महिलाओं पर रासायनिक हथियारों/रिसावों के प्रभावों और इबोला के प्रकोप पर भी ऐसे ही संदर्भ में चर्चा की गई है. रिपोर्ट में परमाणु युद्ध के लिंग-आधारित प्रभाव का भी आधार लिया गया है. वैसे तो, इन सम्मेलनों में हिस्सा लेने वाले कई राष्ट्र, परमाणु निरस्त्रीकरण में लिंग के न्यायसंगत प्रतिनिधित्व की ग़ैर-मौजूदगी को स्वीकार करते हैं, लेकिन इसे जैविक हथियारों के संदर्भ में स्पष्ट रूप से रेखांकित किए जाने की क़वायद अभी बाक़ी है. 

जैविक युद्ध के दायरे में लैंगिक आयाम को शामिल करने, और समग्र रूप से अधिक चौतरफ़ा समावेशन के लिए इन कारकों को जोड़े जाने की दरकार है:

  • जैविक युद्ध के पीड़ितों में सेहत से जुड़े मसलों पर महामारी विज्ञान संबंधी (epidemilogical) शोध, और सेक्स और लिंग के आधार पर हमले के प्रभाव में अंतर.
  • संभावित जैविक एजेंटों के प्रति रोग प्रतिरोध और उपचार संबंधी प्रतिक्रियाओं में लिंग से जुड़ी विविधताओं की समझ को आगे बढ़ाना.
  • उभरती टेक्नोलॉजी और संभावित एजेंटों को शामिल करने के लिए जैविक युद्ध के दायरे का विस्तार करना. ऐसी तकनीक़ और एजेंटों में लिंग, नस्ल और जातीयता-आधारित पीड़ितों को निशाना बनाने की क्षमता हो सकती है.

हाल के वर्षों में, कुछ स्टेकहोल्डर्स ने जैविक युद्ध में लिंग-केंद्रित निरस्त्रीकरण की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है. निरस्त्रीकरण मामलों के अंडर-सेक्रेटरी-जनरल और उच्च प्रतिनिधि इज़ुमी नाकामित्सु ने भी सामूहिक विनाश के जैविक हथियारों (WMD) के प्रभाव के साथ-साथ निरस्त्रीकरण नीतियों में लिंग संबंधी विचारों की आवश्यकता को पुख़्ता करने वाली असमानताओं पर प्रकाश डाला है

इसके अलावा, नॉर्वे ने अक्टूबर 2021 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित पहली समिति (निरस्त्रीकरण और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा) का उपयोग, निरस्त्रीकरण से जुड़े सभी संवादों में लिंग प्रतिनिधित्व की वक़ालत करने वाले मंच के तौर पर किया.

जैविक युद्ध के लिए जीन-एडिटिंग टूल्स के दुरुपयोग को रोकने को लेकर नियमन तैयार करने, अनुसंधान पारदर्शिता को बढ़ावा देने और जैव सुरक्षा उपायों को आगे बढ़ाना निहायत ज़रूरी है. सरकारों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और वैज्ञानिक समुदायों को इन क़वायदों के लिए सहभागिता करनी चाहिए. CRISPR और जैविक युद्ध के घालमेल से पैदा नैतिक और सुरक्षा चुनौतियों के निपटारे के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग और खुला संवाद ज़रूरी है. 

सरकारों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और वैज्ञानिक समुदायों को इन क़वायदों के लिए सहभागिता करनी चाहिए. CRISPR और जैविक युद्ध के घालमेल से पैदा नैतिक और सुरक्षा चुनौतियों के निपटारे के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग और खुला संवाद ज़रूरी है.

जैव-युद्ध के संदर्भ में लिंग के बारे में चर्चा और विचार, विभिन्न यौन समूहों और लिंगों पर जैविक हथियारों के बहुमुखी प्रभावों के निपटारे की दिशा में बेहद ज़रूरी कदम बन जाते हैं. जैविक युद्ध के ऐतिहासिक उदाहरण, CRISPR जैसी उभरती टेक्नोलॉजियों का बढ़ता महत्व और लिंग के आधार पर जानबूझकर या अनजाने में निशाना बनाए जाने की आशंका, इस मसले की तात्कालिकता को रेखांकित करती हैं.

सौ बात की एक बात ये है कि जैविक युद्ध के इर्द-गिर्द जारी विमर्श में लैंगिक विचारों को एकीकृत करके, हम एक अधिक न्यायसंगत और सुरक्षित दुनिया के क़रीब जा सकते हैं. एक ऐसा संसार, जिसमें कमज़ोरियों और असुरक्षाओं को स्वीकार किया जाता है, उनका निपटारा किया जाता है, और उनकी समग्र रूप से रोकथाम की जाती है. इससे समाज के सभी सदस्यों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सकेगी.

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