Published on Jun 29, 2024 Updated 0 Hours ago

बिजली तक पहुंच महज एक कनेक्शन से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है. अन्य आवश्यकताओं को हासिल करने के लिए बिजली के महत्व को देखते हुए अब वक्त आ गया है कि मूलभूत बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए कड़े उपाय किए जाए.

क्या अब बिजली को बुनियादी मानवाधिकार मानने का वक़्त आ गया है?

आजाद भारत के लिए विद्युतीकरण, विकास का एक अहम लक्ष्य था. जब देश को आजादी मिली तब बिजली की उपलब्धता कुछ शहरों तक ही सीमित थी. ग्रामीण क्षेत्रों में तो बिजली तक पहुंच लगभग नहीं के बराबर ही थी. भारत अब शत-प्रतिशत घरों तक विद्युतीकरण पहुंचने का दम भरता है. फिगर 1 में पिछले एक दशक के दौरान भारत में हुई विद्युतीकरण की प्रगति को दर्शाया गया है. पिछले एक दशक में विद्युतीकरण की रफ़्तार में भारत ने वैश्विक रफ्तार के औसत को पीछे छोड़ दिया है. हालांकि भारत अभी अपने 2022 के उस लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाया है जिसके तहत बिजली तक पहुंच 24x7 सुनिश्चित की जानी है. बिजली तक पहुंच के लिए कोई तय व्याख्या तो नहीं है, लेकिन आमतौर पर इसका मतलब किसी परिवार को ग्रिड से बिजली कनेक्शन मिलना या किसी परिवार के पास बिजली आपूर्ति के लिए स्वयं की स्वतंत्र व्यवस्था उपलब्ध होना होता है. बुनियादी पहुंच का मतलब यह है कि किसी घर में 5 से 6 बल्ब जले, एक मोबाइल चार्ज हो, एक पंखा और टीवी चल सके. बिजली की ख़पत विभिन्न क्षेत्रों और आर्थिक वर्गों के हिसाब से अलग-अलग होती है. यह एक तय अवधि में घटेगी या बढ़ेगी और यह बात उस परिवार अथवा संस्थान की बिजली की ख़पत पर भी निर्भर करती है. बिजली आपूर्ति में किसी ख़राबी की वजह से आने वाली रूकावट या फिर कम बिजली पैदा होने की वजह से बिजली उपलब्ध न होना या किसी अन्य कारण से आपूर्ति प्रभावित होने को पावर कट्स या पावर आउटेजेस यानी बिजली कट जाना माना जाता है.


बिजली की ख़पत विभिन्न क्षेत्रों और आर्थिक वर्गों के हिसाब से अलग-अलग होती है. यह एक तय अवधि में घटेगी या बढ़ेगी और यह बात उस परिवार अथवा संस्थान की बिजली की ख़पत पर भी निर्भर करती है. 

फिगर 1 : बिजली तक पहुंच रखने वाली आबादी का प्रतिशत (भारत और विश्व में)

Source: The World Bank

बिजली का महत्व 

बिजली आपूर्ति अब रोजमर्रा के जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुकी है. बिजली का उपयोग करके ही सूर्यास्त के बाद रोशनी उपलब्ध होती है, जीवन यापन से जुड़ी गतिविधियां चलती है, डिजिटल ट्रांजेक्शन होते हैं, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच उपलब्ध होती है और स्मार्ट क्लासेस के माध्यम से शिक्षा भी उपलब्ध होती है. आज की दुनिया में पानी की तरह बिजली, मनुष्य के जिंदा रहने के लिए अनिवार्य तो नहीं है, लेकिन यह एक बेहतर जीवन जीने के लिए आम आदमी की जरूरत बन चुकी है. ग्रामीण स्वास्थ्य स्टैटिसटिक्स यानी आंकड़ों के हिसाब से मार्च 2022 तक भारत के 11.4 प्रतिशत स्वास्थ्य उप-केंद्र (भारत की बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं में शामिल) और 3.7 प्रतिशत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, बगैर बिजली आपूर्ति के काम कर रहे थे. स्वास्थ्य केंद्रों पर किसी बच्चे को सुरक्षित जन्म देने के लिए मेडिकल यानी स्वास्थ्य उपकरणों के सुचारू संचालन के लिए भरोसेमंद बिजली आपूर्ति जरूरी है. भरोसेमंद बिजली आपूर्ति के चलते ही रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूती प्रदान करने वाली वैक्सीन को सुरक्षित रखा जा सकता है. बिजली तक पहुंच की वजह से परिवार की आजीविका और आय पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. एक शोध से पता चलता है कि बिजली तक पहुंच की वजह से एक परिवार के व्यवसायों में औसतन 35% का इज़ाफ़ा होता है. इतना ही नहीं युवाओं को भी शिक्षा के पोर्टल और नौकरी की ख़ोज करने के लिए जॉब पोर्टल तक पहुंच उपलब्ध होती है. ऐसे में बिजली केवल एक कनेक्शन ही नहीं रह जाती, बल्कि यह बुनियादी अधिकारों और जिंदगी की ज़रूरतों को हासिल करने का माध्यम बन जाती है.

एक शोध से पता चलता है कि बिजली तक पहुंच की वजह से एक परिवार के व्यवसायों में औसतन 35% का इज़ाफ़ा होता है. इतना ही नहीं युवाओं को भी शिक्षा के पोर्टल और नौकरी की ख़ोज करने के लिए जॉब पोर्टल तक पहुंच उपलब्ध होती है.

मानवीय नीति, ऊर्जा और विकास विषय के विशेषज्ञ लार्स लॉफक्विस्ट तर्क देते हैं कि, "बिजली का अधिकार अक्सर हमारे बुनियादी अधिकारों, जैसे जीवन जीने का अधिकार, की रक्षा करने के लिए ज़रूरी हैं. इसके अलावा बिजली के अधिकार से हम अपनी अन्य भौतिक आवश्यकताओं जैसे पर्याप्त आवास, स्वास्थ्य सुविधा और शिक्षा की रक्षा भी कर सकते हैं. इसके बावजूद जिंदगी में आवास, स्वास्थ्य सुविधा और शिक्षा को ज़रूरी माना गया है, जबकि बिजली को जरूरी नहीं समझा गया है." भारत में भी एसेंशियल कमोडिटी एक्ट 1955 यानी आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के तहत बिजली को एक आवश्यक वस्तु नहीं माना गया है, जबकि इस कानून के दायरे में पेट्रोलियम और पेट्रोलियम उत्पादों को आवश्यक वस्तुओं के रूप में शामिल किया गया है. 


केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने इलेक्ट्रिसिटी एक्ट (बिजली कानून) 2003 के तहत आने वाले सेक्शन 176 के अंतर्गत दिसंबर 2020 में इलेक्ट्रिसिटी रूल्स (ग्राहकों का अधिकार) 2020 यानी बिजली अधिनियम, 2020 को आधिकारिक रूप से जारी किया. इस अधिनियम के तहत यह उल्लेख किया गया था कि ग्राहकों को बिजली आपूर्ति करने वाले वितरण लाइसेंसधारी से सेवाओं का न्यूनतम मापदंड हासिल करने का अधिकार होगा. वितरण का लाइसेंस लेने वाले को प्रदर्शन के मापदंड के अनुसार ग्राहकों तक 24x7 बिजली आपूर्ति करनी होगी. बिजली अधिनियम ( ग्राहकों का अधिकार) में 2021, 2022 और 2023 में संशोधन किए गए. ग्राहकों को 24X7 बिजली आपूर्ति उनका अधिकार होने की जानकारी देने के लिए पब्लिक नोटिस भी प्रकाशित किए गए. बिजली वितरण कंपनी यदि अपनी मर्जी से लोड शेडिंग करती है तो ग्राहको को नुकसान भरपाई का दावा करने का भी अधिकार है. उदाहरण के लिए वर्ष 2023 के बीच में पश्चिम बंगाल राज्य बिजली आपूर्ति कंपनी लिमिटेड (WBSEDCL) ने एक पब्लिक नोटिस जारी किया था. यह नोटिस बिजली अधिनियम, ( ग्राहकों का अधिकार) 2020 के तहत 28 जून, 2023 को इंडियन एक्सप्रेस अखबार के कोलकाता संस्करण में प्रकाशित किया गया था. इन कदमों की वजह से कनेक्शन धारक और बिजली के बीच एक कांट्रेक्चुअल राइट यानी संविदात्मक अधिकार स्थापित होता है. 

इलेक्ट्रिसिटी एक्ट यानी बिजली कानून 2023 में लाइसेंसी (वितरण कंपनी) की वित्तीय स्थिति और ग्राहकों की सुरक्षा में एक संतुलन स्थापित किया गया है. बिजली कानून, 2003 के तहत सेक्शन 56 में बिजली से जुड़ी किसी भी शुल्क का भुगतान करने में देरी अथवा जानबूझकर भुगतान न करने की सूरत में एक निश्चित समय के बाद बिजली कनेक्शन काट दिए जाने की व्यवस्था की गई है. इस सेक्शन के तहत बिजली से जुड़े किसी अन्य शुल्क का भुगतान न करने की स्थिति में भी बिजली कनेक्शन काटने का प्रावधान किया गया है, जबकि सेक्शन 57 में उपभोक्ता संरक्षण की बात की गई है. ज़मीनी स्तर पर भी लंबे समय तक बिजली बिल बकाया रहने पर कनेक्शन काटने के मामले देखे जाते हैं. 2022 में पंजाब हाई कोर्ट ने उसके समक्ष चल रही एक मामले की सुनवाई के दौरान अपने फ़ैसले में यह बात कही थी कि "इस बात पर अधिक जोर नहीं दिया जा सकता क्योंकि बिजली एक बुनियादी ज़रूरत है, और इसे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत इस अधिकार को जीवन जीने के अधिकार का ही एक अभिन्न हिस्सा माना जाएगा. ऐसे में जब तक याचिकाकर्ता के पास यह अधिकार है, उसे बिजली से वंचित नहीं रखा जा सकता."

गरीब परिवारों के मामले में किसी कारणवश बिजली बिल बकाया रहने पर बिजली तक पहुंच के असल प्रतिशत में बदलाव की संभावना होती है. अनुपात में होने वाले बदलाव की वजह से 100 प्रतिशत पहुंच हासिल करने के लक्ष्य में कमी आ सकती है या फिर यह लक्ष्य हासिल करने में देरी हो सकती है. समाज में बिजली का महत्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है. फिर यह चाहे शिक्षा, संचार, स्वास्थ्य सेवा, परिवहन (इलेक्ट्रिक वाहनों की बढ़ती लोकप्रियता के कारण) अथवा बैंकिंग का मामला ही क्यों न हो. अन्य आवश्यकताओं तक पहुंच स्थापित करने के लिए बढ़ रहे बिजली के महत्व को देखते हुए भरोसेमंद बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए अधिक प्रमुख और कड़े उपायों पर विचार करना होगा.

समाज में बिजली का महत्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है. फिर यह चाहे शिक्षा, संचार, स्वास्थ्य सेवा, परिवहन अथवा बैंकिंग का मामला ही क्यों न हो.

एक उपाय यह हो सकता है कि गरीब परिवारों के मामले में बिजली कनेक्शन काटने की बजाय इन परिवारों को यूनिट्स की एक तय सीमा तक बिजली की आपूर्ति जारी रखने का निर्णय लिया जाए. यह उपाय किया गया तो शत-प्रतिशत परिवारों तक विद्युतीकरण को न्यायोचित ठहराया जा सकेगा. अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा आयोग (IEA) के अनुसार प्रति व्यक्ति की ऊर्जा तक पहुंच का पैमाना 50-100 kWh है. राज्यों को यह तय करने का अधिकार दे दिया जाए कि वे बिल बकाया रहने की स्थिति में कितने बुनियादी यूनिट तक बिजली आपूर्ति जारी रख सकते हैं.

ग्रिड से अलग, पावर बैकअप व्यवस्था मुहैया कराना भी एक और उपाय हो सकता है. हाल ही में घोषित की गई प्रधानमंत्री सूर्योदय योजना के तहत एक करोड़ गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों को रूफटॉप सोलर संयंत्र उपलब्ध करवाए जा रहे हैं. इन परिवारों के पास सौर ऊर्जा से पैदा होने वाली 300 यूनिट तक की बिजली का उपयोग करने के बाद पैदा होने वाली अतिरिक्त बिजली को वितरण कंपनियों को बेचने का विकल्प भी मौजूद होगा. दूर-दराज़ के क्षेत्रों में अनेक मर्तबा तकनीकी गड़बड़ी या फिर प्राकृतिक आपदा की वजह से कई दिनों तक बिजली आपूर्ति बाधित रहती है. हाल ही में घोषित सूर्योदय योजना, सोलर रूफटॉप सिस्टम को एक पॉवर बैकअप सिस्टम का आकार दे रही है. एक ऐसा सिस्टम जो बिजली के बिल को कम करने के साथ ही लगातार बिजली आपूर्ति को सुनिश्चित करने वाला सिस्टम भी साबित होगा. कुल-मिलाकर बिजली पर समाज की निर्भरता तेजी से बढ़ती जा रही है. ऐसे में अब वक़्त आ गया है जब बिजली को एक आवश्यक वस्तु मानकर इसे एक अधिकार के रूप में देखा जाए. और इसे केवल एक लक्ष्य, एक विशेषाधिकार या फिर संविदात्मक अधिकार के रूप में देखना बंद किया जाए. 


मंजुश्री बैनर्जी, एनर्जी एक्सेस में एक स्वतंत्र सलाहकार के रूप में काम करती हैं.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.