Author : Farheen Nahvi

Published on Oct 28, 2022 Updated 0 Hours ago

मौज़ूदा शासन हिजाब को ईरान की राष्ट्रीय पहचान की ख़ासियत के तौर पर देखता है, ऐसे में क्या मौज़ूदा विरोध से कोई बदलाव आएगा? 

ईरान: महिला आंदोलनों का बढ़ता सैलाब!

16 सितंबर 2022 को, 22 वर्षीय ईरानी महिला महसा अमिनी की ईरान की मॉरल पुलिस की हिरासत में ग़लत तरीक़े से हिजाब पहनने के आरोप में गिरफ़्तार होने के बाद मौत हो गई. जबकि पुलिस का दावा है कि महसा की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई थी. प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि उसे पुलिस ने पीटा था और इस दावे की पुष्टि अस्पताल में महसा की तस्वीरों से होती है जो ख़ून से लथपथ थीं और उसके शरीर पर जख़्मों के निशान थे. महसा की मौत के बाद  पूरे ईरान में सत्ता-विरोधी आग एक शहर से दूसरे शहर में भड़कती चली गई.

लगभग एक महीने के बाद अब ईरान में चारों तरफ हिजाब के ख़िलाफ़ प्रदर्शनों का दौर जारी है. विरोध प्रदर्शन जो अब आंदोलन में तब्दील हो चुका है, उसकी एक मूलभूत विशेषता यह है कि इसमें महिलाओं की व्यापक भागीदारी हो रही है. सभी उम्र और पृष्ठभूमि से आने वाली ईरानी महिलाएं न्याय, सुधार और अपने अधिकारों की मांग करने के लिए सड़कों पर उतरी हैं. हज़ारों पुरुषों के शामिल होने के साथ, यह आंदोलन अब तेहरान से ईरान के 50 अन्य शहरों और कस्बों तक फैल गया है. सड़कों पर गुस्साए प्रदर्शनकारी रो रहे हैं, “तानाशाह की मौत”, और ईरानी महिलाओं पर शासन के सख़्त नियंत्रण की खुली अवहेलना के तौर पर कई महिलाएं अपने स्कार्फ जला रही हैं और अपने बाल काट रही हैं.

विरोध प्रदर्शन जो अब आंदोलन में तब्दील हो चुका है, उसकी एक मूलभूत विशेषता यह है कि इसमें महिलाओं की व्यापक भागीदारी हो रही है. सभी उम्र और पृष्ठभूमि से आने वाली ईरानी महिलाएं न्याय, सुधार और अपने अधिकारों की मांग करने के लिए सड़कों पर उतरी हैं.

इस बीच ईरानी अधिकारियों ने प्रदर्शनकारियों को ख़तरनाक बताया है और आरोप लगाया है कि वे पश्चिमी देशों से प्रभावित हैं. ऑफिशियल नैरेटिव पर नियंत्रण रखने की कोशिश में ईरान ने इंटरनेट सेवाओं और सोशल मीडिया तक पहुंच को तेज़ी से प्रतिबंधित करना शुरू कर दिया है; हिंसक तरीक़ों का इस्तेमाल कर आंदोलनकारियों का दमन किया जा रहा है. ईरान की मानवाधिकार संस्थाओं के अनुमान के मुताबिक़ इस आंदोलन में अब तक मरने वालों की संख्या क़रीब 200 तक पहुंच चुकी है, जबकि 1,200 से अधिक लोगों को गिरफ़्तार किया जा चुका है. प्रदर्शनकारियों को नियंत्रित करने के लिए सरकार घातक बल का उपयोग करने से भी नहीं कतरा रही है. 20 वर्षीय हदीस नजफी को ऐसे ही एक विरोध के दौरान ईरानी सुरक्षा बलों द्वारा चेहरे, गर्दन और छाती में छह बार गोली मारी गई.

ईरान में महिलाओं के अधिकार: एक स्थायी स्वतंत्रता आंदोलन

ईरानी महिलाओं ने अपने अधिकारों के लिए लंबे समय तक संघर्ष किया है और इसे लेकर ज़्यादातर उपलब्धियों का श्रेय 1979 तक की अवधि को दिया जाता है. तब ईरान के शाह की आधुनिक नीतियों ने महिलाओं को उन्हें प्रभावित करने वाले विभिन्न मुद्दों की वकालत करने की खुली छूट दी थी. उनके पास हिजाब पहनने का विकल्प था, 1963 में वोट देने का अधिकार प्राप्त हुआ और आम तौर पर पितृसत्तात्मक मानदंडों को चुनौती दी गई जिनसे उनकी प्रगति सीमित हो गई थी. तब वे ईरान में जीवन के सभी क्षेत्रों में सक्रिय थे. परिवार संरक्षण अधिनियम ने महिलाओं के लिए विवाह की आयु बढ़ा दी, बहुविवाह को कम कर दिया, अस्थायी विवाहों पर प्रतिबंध लगा दिया और इसमें धर्मगुरुओं की भूमिका को कम कर दिया.

ईरानी महिलाओं ने अपने अधिकारों के लिए लंबे समय तक संघर्ष किया है और इसे लेकर ज़्यादातर उपलब्धियों का श्रेय 1979 तक की अवधि को दिया जाता है. तब ईरान के शाह की आधुनिक नीतियों ने महिलाओं को उन्हें प्रभावित करने वाले विभिन्न मुद्दों की वकालत करने की खुली छूट दी थी.

साल 1979 में ईरान में इस्लामी क्रांति हुई और ईरान में राजशाही का अंत कर दिया गया और देश में अयातुल्ला खुमैनी के साथ सर्वोच्च नेता के रूप में एक इस्लामिक शासन स्थापित किया गया. यह क्रांति एक निचले स्तर का आंदोलन था जिसमें कई वर्षों के विरोध और समाज के हर वर्ग के लोगों की भागीदारी शामिल थी. महिलाओं ने क्रांति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई; उन्होंने विरोध मार्च और प्रदर्शनों में जमकर हिस्सा लिया, नर्सों और कार्यवाहकों के रूप में सेवा की और गुरिल्ला गतिविधियों में भाग लिया.

ऐसी क्रांतिकारी महिलाएं अपने संघर्ष को कभी नहीं भूलीं लेकिन महिलाओं के अधिकारों के मुद्दे को नए शासन के तहत एक विचार माना गया, लेकिन उनकी चिंताओं को दूर करने के लिए सरकार द्वारा तत्काल कोई कदम नहीं उठाया गया. इसके बजाय, जैसी कि आशंका थी, महिलाओं ने धीरे-धीरे अपने अधिकारों को खो दिये क्योंकि उनकी आज़ादी पर नकेल कसने के लिए सख़्त कानून बना दिए गए थे. इसका नतीजा यह हुआ कि महिलाएं सार्वजनिक जीवन से बाहर हो गईं, शाह के शासन के दौरान महिला अधिकारों को लेकर जो प्रगति हुई वो सब एक झटके में ख़त्म हो गया. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि परिवार संरक्षण कानून को निरस्त कर दिया गया और हिजाब पहनने को अनिवार्य कर दिया गया.

भले ही महिलाओं की आज़ादी पर व्यवस्थित तरीक़े से कुठाराघात किया गया था लेकिन इसके बावज़ूद महिलाओं ने ऐसे प्रतिबंधों को चुपचाप स्वीकार नहीं किया. फिर उन्हें हिंसा के ज़रिए ऐसे कानूनों को मानने पर मज़बूर किया गया, जिससे उनके लिए किसी भी क्षमता में समाज में हिस्सेदारी करना मुश्किल हो गया. 1990 के दशक में महिला कार्यकर्ताओं ने पारिवारिक कानूनों के तहत अपने कुछ खोए हुए अधिकारों को बहाल करने पर ध्यान केंद्रित किया और तलाक शुरू करने और बच्चों की कस्टडी प्राप्त करने के अधिकारों को पुनः प्राप्त करने में सफलता हासिल की. इस दौरान कई महिलाओं ने उन परिस्थितियों को, जिनमें वे रह रही थीं, उसे उजागर करने के लिए सरकार के ख़िलाफ़ कई हिम्मत वाले काम किए. फरवरी 1994 में होमा दरबी ने अनिवार्य रूप से हिजाब पहनने के विरोध में सार्वजनिक रूप से अपना हिजाब हटा दिया और आत्मदाह तक कर लिया. 2019 में  सहर खोदयारी, जो एक फुटबॉल मैच में प्रवेश करने की कोशिश के लिए गिरफ़्तार किए जाने के बाद ख़ुद को जलाकर मार डाला था, सरकार के शासन की दमनकारी नीतियों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने का प्रतीक बन गई.

महिला पर नियंत्रण का ईरान में लंबे समय से राजनीतिक प्रभाव रहा है.हिजाब का राजनीतिकरण पहली बार 1936 में रजा शाह पहलवी के शासन के दौरान किया गया था, जब उन्होंने महिलाओं को सार्वजनिक रूप से (कशफ-ए-हिजाब) घूंघट करने से मना किया था. उनके शासन के लिए, बिना हिजाब की महिलाएं एक धर्मनिरपेक्ष और आधुनिक ईरान का प्रतीक थीं.

महिला पर नियंत्रण का ईरान में लंबे समय से राजनीतिक प्रभाव रहा है.हिजाब का राजनीतिकरण पहली बार 1936 में रजा शाह पहलवी के शासन के दौरान किया गया था, जब उन्होंने महिलाओं को सार्वजनिक रूप से (कशफ-ए-हिजाब) घूंघट करने से मना किया था. उनके शासन के लिए, बिना हिजाब की महिलाएं एक धर्मनिरपेक्ष और आधुनिक ईरान का प्रतीक थीं. हालांकि, बाद में 1983 में, जब इस्लामी गणराज्य ने हिजाब को अनिवार्य कर दिया, तब हिजाब पहनी हुई महिलाओं को नए ईरान की धार्मिक पहचान का प्रतीक माना जाने लगा. अनजाने में ही सही, तब के शासकों ने ईरान की राष्ट्रीय पहचान की विशेषता के रूप में हिजाब का विकल्प चुना.

लेकिन 2022 का विरोध इससे अलग कैसे है?

जैसे-जैसे दुनिया तक़नीकी रूप से तरक्की करती है, विरोध का रूप भी बदलता है.महिलाओं के हिजाब के बिना तस्वीरें पोस्ट करने के साथ, सोशल मीडिया ऐसे क़ानूनों की अवहेलना करने का नया मंच बन गया है. ईरान के भीतर और बाहर ईरानी महिलाओं का एक आभासी समर्थन समुदाय बनाने के लिए इंटरनेट ने एक मंच प्रदान किया है. फेसबुक पर मसीह अलाइनजेड द्वारा शुरू किए गए माई स्टिल्थी फ़्रीडम और माई कैमरा इज़ माई वेपन जैसे सोशल मीडिया अभियानों ने इन महिलाओं को जुड़ने और संगठित करने, उनके द्वारा सामना किए जाने वाली दमनकारी परिस्थितियों और सरकार की अत्याचारी नीतियों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने के लिए बेहतर मंच दिया है.

 दांव पर क्या है?

इस समय ईरान में जारी आंदोलन के कई आयाम हैं. महसा की मौत के बाद से न्याय की लड़ाई के रूप में जो विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ वह वर्तमान ईरान के मौज़ूदा शासन के ख़िलाफ़ एक व्यापक आंदोलन में शामिल हो गया है, जिसमें ‘क्रांति के बाद की पीढ़ी’ ने वर्तमान व्यवस्था को ख़ारिज़ कर दिया है. इसके अलावा राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में एक के बाद एक हो रही घटनाओं से उपजी निराशा ने रूढ़िवादी और सख़्त सरकार को ईरान की ज़्यादातर आबादी से अलग थलग कर दिया है.

इसके साथ ही ईरान में महिलाओं के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन व्यापक नजर आ रहा है. जबकि ईरान पहले से ही 2016 के बाद से कई तरह के प्रतिबंधों के अधीन रहा है, 6 अक्टूबर को  संयुक्त राज्य अमेरिका के ट्रेजरी विभाग ने ईरान की सरकार में सात वरिष्ठ नेताओं और मानवाधिकारों के हनन के लिए नए प्रतिबंध लगाए हैं, जबकि ईरान की मॉरल पुलिस, वरिष्ठ नेतृत्व और महसा की मौत के बाद ईरान के सुरक्षा संगठनों के अन्य नेताओं के ख़िलाफ़ भी प्रतिबंध लगाया हुआ है.

बुरका जो कि लोगों पर इस्लामिक गणराज्य के नियंत्रण का प्रतीक है, वर्तमान विरोध प्रदर्शन देश के अंदर और बाहर ईरान की इस्लामिक शासन के तौर तरीक़ों पर सीधा हमला है. प्रशासन, विशेष रूप से गार्जियन काउंसिल, महिलाओं को उनकी स्थिति में किसी भी बड़े बदलाव की अनुमति देने की वकालत नहीं कर सकता है, क्योंकि इस मुद्दे पर अपनी शक्ति को स्वीकार करने से उन्हें ईरान में अपनी वैधता और सत्ता बनाए रखने में भविष्य में मुश्किल हो सकती है.

इस लड़ाई के अंत में कौन सा पक्ष दूसरे से आगे रहता है या फिर इस आंदोलन के बाद देश ख़ुद को कहां पाता है, इन बातों से इतर ईरान में जारी मौज़ूदा महिला आंदोलन के बड़े पैमाने पर असर होंगे. इसके बाद या तो महिलाओं को नियंत्रित करने वाले क़ानूनों को और सख़्त बना दिया जाएगा या फिर ईरान सुधार के नए युग में प्रवेश करेगा.

50,000 ईरानियों के 2020 के सर्वेक्षण के अनुसार, 75 प्रतिशत ईरानियों ने अनिवार्य तौर पर हिजाब पहनने को लेकर विरोध किया. इसे आंदोलन के दिनों से एक भारी बदलाव के रूप में देखा जा सकता है, जब केवल एक-चौथाई ईरानी आबादी ही इसका विरोध कर रही थी. अयातुल्ला खुमैनी के पोते हसन खुमैनी ने एक सार्वजनिक बयान जारी कर सरकार से प्रदर्शनकारियों के साथ बातचीत करने की अपील की है. विरोध प्रदर्शनों में युवा पुरुषों और महिलाओं की ज़बर्दस्त भागीदारी है, जबकि खोमैनी के समर्थन का आधार अति रूढ़िवादियों के बीच है. इस आंदोलन का मूल कारण, आखिर में, एक असंतुष्ट युवा ही प्रतीत होता है जो एक संरक्षित रूढ़िवादी अभिजात वर्ग की पिछड़ी नीतियों से जूझने पर मज़बूर है.

इस लड़ाई के अंत में कौन सा पक्ष दूसरे से आगे रहता है या फिर इस आंदोलन के बाद देश ख़ुद को कहां पाता है, इन बातों से इतर ईरान में जारी मौज़ूदा महिला आंदोलन के बड़े पैमाने पर असर होंगे. इसके बाद या तो महिलाओं को नियंत्रित करने वाले क़ानूनों को और सख़्त बना दिया जाएगा या फिर ईरान सुधार के नए युग में प्रवेश करेगा. लेकिन यह तय है कि दोनों में से किसी भी तरह की परिस्थितियां बिना राजनीतिक अनिश्चितता के दौर के संभव नहीं है. हालांकि यह निर्विवाद रूप से सत्य है कि ईरान में जारी मौज़ूदा संकट लंबे समय से चल रहे लोगों में गहरे असंतोष की अभिव्यक्ति है.अब ईरान जिन सवालों का सामना कर रहा है वह उसके अस्तित्व से जुड़ा सवाल है – कि क्या ईरान की सत्ता पर क़ाबिज़ लोग शासन में बदलाव के लिए तैयार हैं या इस तरह के किसी भी जोख़िम को उखाड़ फेंकने की कोशिश हो रही है.हालांकि यह देखते हुए  कि अधिकारियों का रुख़ अब तक विरोध प्रदर्शनों को लेकर कैसा रहा है, पहले की संभावना इस्लामी गणराज्य के लिए असंभव सा प्रतीत होता है.

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