Published on Aug 13, 2022 Updated 0 Hours ago

पिछले दिनों बीएसएफ के दो जवानों की मौत इस बात की तरफ़ इशारा करती है कि यूएन के अधिकारियों को मोनुस्को के लक्ष्य को ख़त्म होने से बचाने के लिए लोगों के असंतोष और अलगाव रोकने की अपनी कोशिशें दोगुनी कर देनी चाहिए.

अंतरराष्ट्रीय: कांगो में भारत के ‘शांति’ मिशन को झटका

डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (डीआरसी) में स्थानीय लोगों की हिंसक भीड़ के हाथों सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के दो जवानों की मौत से भारत की संयुक्त राष्ट्र (यूएन) शांति सेना की टुकड़ी को झटका लगा है. भारतीय शांति सेना की टुकड़ी डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में संयुक्त राष्ट्र संगठन स्थिरीकरण मिशन (मोनुस्को) का हिस्सा है. बीएसएफ के दो सैनिकों की मौत डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में यूएन के तहत भारतीय मौजूदगी के लिए एक मनोवैज्ञानिक झटका है. मारे गए दोनों सैनिक 139 जवानों वाली बीएसएफ की टुकड़ी का हिस्सा थे. बीएसएफ की ये टुकड़ी “संगठित पुलिस” की टुकड़ी या यूनिट में भारत का योगदान है जो कि नियमित पुलिस यूनिट से हटकर है और मोनुस्को मिशन का हिस्सा भी है. बीएसएफ की टुकड़ी में दो प्लाटून हैं और हर प्लाटून में 70-74 जवान हैं. इस टुकड़ी को इसी साल मई में तैनात किया गया था. मोनुस्को मिशन में कुल मिलाकर 1,888 सैन्यकर्मी हैं और पाकिस्तान के बाद भारत सैनिक मुहैया कराने के मामले में दूसरा सबसे बड़ा देश है. 28 मई 2010 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के प्रस्ताव 1925 के पारित होने के बाद मोनुस्को अस्तित्व में आया. मोनुक (डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में संयुक्त राष्ट्र संगठन मिशन) की जगह लेने वाला मोनुस्को दुनिया में संयुक्त राष्ट्र शांति सेना (यूएनपीकेएम) के सबसे बड़े मिशन में से एक है. 

भारतीय शांति सेना की टुकड़ी डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में संयुक्त राष्ट्र संगठन स्थिरीकरण मिशन (मोनुस्को) का हिस्सा है. बीएसएफ के दो सैनिकों की मौत डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में यूएन के तहत भारतीय मौजूदगी के लिए एक मनोवैज्ञानिक झटका है.

वैसे तो संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के मिशन के लिए सैन्य और पुलिस कर्मियों की दुखद मौत बहुत बड़ी बात नहीं है और जवानों का हताहत होना संघर्ष के किसी भी क्षेत्र में पेशे से जुड़ा हुआ एक जोख़िम है लेकिन इस वारदात का भारत के साथ-साथ दुनिया भर में फैले संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशन के लिए कुछ संदेश हैं. पहला संदेश ये है कि भले ही मोनुस्को मिशन को यूएनएससी के प्रस्ताव 1925 के ज़रिए मंज़ूरी दी गई, उसे संयुक्त राष्ट्र की वैधता मिली हुई है और सर्वसम्मति से यूएनएससी ने उसे अपनाया हो लेकिन ये काफ़ी हद तक अपर्याप्त है क्योंकि जिन लोगों को इस मिशन से फ़ायदा मिलने की बात कही गई थी वो संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के मिशन के औचित्य को हमेशा स्वीकार नहीं करते हैं. दूसरा संदेश ये है कि स्थानीय लोगों में व्याप्त आक्रोश और नाराज़गी जटिल कारणों का नतीजा हो सकती है. ये कारण सहायता सामग्री के ख़राब और असरहीन वितरण से लेकर संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के मिशन के अधिकार क्षेत्र को अपर्याप्त रूप से लागू करना हो सकते हैं जैसे कि हथियारबंद समूहों की हिंसा से स्थानीय लोगों की रक्षा करना एवं संयुक्त राष्ट्र के अभियान में मदद करने वाले लोगों को स्थानीय आबादी के एक वर्ग की बदले की कार्रवाई से बचाना. 

हथियारबंद समूहों से स्थानीय नागरिक आबादी की रक्षा करने में मोनुस्को मिशन की नाकामी अंतत: शांति सेना, शांति लागू करने और शांति स्थापित करने के तौर-तरीक़ों में अंतर का नतीजा है. इस तरह के अस्पष्ट अंतर संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशन को बेहद चुनौतीपूर्ण और उम्मीदों से भरा बनाते हैं.

ज़्यादा स्पष्ट तौर पर कहें तो मोनुस्को मिशन का लक्ष्य कांगो के पूर्वोत्तर हिस्से में स्थानीय नागरिक आबादी की अपर्याप्त रक्षा की वजह से प्रभावित हुआ है. हथियारबंद समूहों से स्थानीय नागरिक आबादी की रक्षा करने में मोनुस्को मिशन की नाकामी अंतत: शांति सेना, शांति लागू करने और शांति स्थापित करने के तौर-तरीक़ों में अंतर का नतीजा है. इस तरह के अस्पष्ट अंतर संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशन को बेहद चुनौतीपूर्ण और उम्मीदों से भरा बनाते हैं. स्थानीय नागरिक आबादी के ख़िलाफ़ हिंसा में शामिल हथियारबंद समूहों के ख़िलाफ़ सेना और पुलिस के जवानों से किस हद तक कार्रवाई करने की उम्मीद की जाती है? वैसे तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1925 में ये नहीं कहा गया है कि मोनुस्को ख़ुद को ज़्यादातर “देश के पूर्वी हिस्से में केंद्रित रखे और बाक़ी जगहों के लिए एक रिज़र्व फोर्स तैयार रखे.” लेकिन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो के पूर्वी हिस्से में स्थित गोमा में सबसे ज़्यादा हिंसा होती है और बीएसएफ के दोनों जवानों की हत्या बुटेम्बो नाम के जिस इलाक़े में हुई है वो भी देश के पूरब में है. मोनुस्को की मुख्य ज़िम्मेदारी अशांत क्षेत्रों को स्थिर करना है और इस काम में मोनुस्को का उद्देश्य “धीरे-धीरे डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो की सरकार को मोनुस्को की सुरक्षा भूमिका अपने हाथ में लेने के लिए सक्षम बनाना है.” लेकिन ये मक़सद हासिल करना मुश्किल है. प्रस्ताव 1925 के तहत ये ज़रूरी है कि कांगो की सेना और कांगो की मिलिट्री पुलिस को संयुक्त राष्ट्र के बलों के द्वारा प्रशिक्षित किया जाए. 

मोनुस्को मिशन पीछे हटने को तैयार

बीएसएफ के दो सैनिकों की मौत की घटना के बाद भारतीय बलों को मोनुस्को मिशन के तहत तैनात दूसरे देशों के सैनिकों के साथ अपनी सुरक्षा को मज़बूत करने, अपने ठिकाने की सुरक्षा बढ़ाने और ज़रूरत के वक़्त दूसरे सैनिकों के पहुंचने की क्षमता को लेकर फिर से बातचीत करनी होगी. एक और महत्वपूर्ण मुद्दा जो मोनुस्को के बलों के लिए समीक्षा को आवश्यक बनाएगा, वो है स्थानीय पुलिस और सैन्य बलों को दिए गए प्रशिक्षण का स्वरूप और मोनुस्को को डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो के बलों की क्षमता बढ़ाने से जुड़ी ज़रूरतों का समाधान करना. मौजूदा शांति बनाए रखने की पद्धति और अभियान, नेतृत्व, प्रशिक्षण, संख्या बल और साजो-सामान से जुड़ी क्षमता में कमी का समाधान करना डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में मोनुस्को मिशन को ज़्यादा असरदार बनाने में बहुत उपयोगी होगा. 

मोनुस्को के मिशन को स्थानीय बलों को प्रशिक्षित करने और साजो-सामान से लैस करने की कोशिशों को तेज़ करने की ज़रूरत होगी और इस कोशिश को बेहतर खुफ़िया जानकारी इकट्ठा करने और उसे आगे तक बढ़ाने के साथ मज़बूत करना होगा.

मोनुस्को मिशन की स्थापना के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1925 को पारित हुए एक दशक से ज़्यादा बीत चुके हैं. वैसे तो डेमोक्रेटिक रिपब्ल्कि ऑफ कांगो में स्थायित्व बनाए रखने में मोनुस्को मिशन का प्रदर्शन महत्वपूर्ण रहा है लेकिन प्रभावी ढंग से शांति स्थापित करने की ज़िम्मेदारी सौंपने का मोनुस्को मिशन का उद्देश्य अभी भी पूरा नहीं हुआ है. अगर मोनुस्को मिशन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, ख़ास तौर पर उसके पूर्वी क्षेत्र, में हिंसा को नहीं रोक पाया तो मिशन की वैधता पर निशाना साधने की कोशिश की जाएगी और इसे लंबे समय तक बनाए नहीं रखा जा सकेगा. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के द्वारा हासिल संस्थागत वैधता के ज़रिए कांगो के लोगों के लिए “अच्छा” करने की शानदार कोशिशों के बावजूद मोनुस्को के मिशन पर नज़र रखने वाले संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों एवं कर्मियों को मिशन के लक्ष्य को ख़त्म होने से बचाने के लिए लोगों का असंतोष एवं अलगाव रोकने की अपनी कोशिशों को दोगुना करने की ज़रूरत होगी. मोनुस्को के मिशन को स्थानीय बलों को प्रशिक्षित करने और साजो-सामान से लैस करने की कोशिशों को तेज़ करने की ज़रूरत होगी और इस कोशिश को बेहतर खुफ़िया जानकारी इकट्ठा करने और उसे आगे तक बढ़ाने के साथ मज़बूत करना होगा. ऐसा होने पर मोनुस्को मिशन को डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में हिंसा में बढ़ोतरी होने की जानकारी पहले से होगी और उसे रोकने के लिए वो ज़्यादा प्रभावी क़दम उठा सकेगा. अंत में, हिंसा की ताज़ा घटनाओं को देखते हुए डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो के अशांत क्षेत्रों में सरकार के अधिकार को स्थापित करने के लिए ज़्यादा कोशिश करने की ज़रूरत है. इसमें कोई शक नहीं है कि मोनुस्को मिशन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो को अपने नियंत्रण से हटाकर ऐसी स्थिति में छोड़ने में मदद के लिए तैयार है जहां सरकार के अधिकार और उसके आदेश को वैधता हासिल हो. संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन और विशेष रूप से डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में मोनुस्को मिशन में सैनिकों का बड़ा योगदान करने वाले देश के रूप में भारत को भी इस नतीजे तक पहुंचने के लिए समर्थ बनाने में ज़्यादा मज़बूती के साथ काम करना चाहिए. ऐसा नहीं होने पर मोनुस्को मिशन का लक्ष्य पूरा नहीं होगा और ये डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में लंबे समय तक संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में प्रशासनिक और सैन्य मौजूदगी का कारण बनेगा.  

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