लगातार दो वर्षों तक उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नेटो) के शिखर सम्मेलनों में हिंद-प्रशांत 4 यानी IP4 देशों (जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड) के नेताओं का स्वागत किया गया. इनको “दुनिया भर में नेटो का भागीदार” समझा जाता है.
रूस-यूक्रेन संघर्ष ने नेटो के भीतर और उसके 31 सदस्यों के बीच पारस्परिक संपर्कों के अलावा IP4 के देशों से भी आपसी सहयोग को बढ़ावा दिया है. हिंद-प्रशांत और यूरो-अटलांटिक क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियों के घालमेल के साथ-साथ चीन की ओर से पेश ख़तरों की आम धारणाओं के आधार पर ऐसे सहयोग में बढ़ोतरी हुई है. नेटो के महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने ज़ोर देकर कहा है कि “यूरोप में होने वाली घटनाओं की एशिया और हिंद-प्रशांत के लिए अहमियत है; और एशिया और हिंद-प्रशांत के घटनाक्रम, यूरोप के लिए मायने रखते हैं.”
2022 में मैड्रिड में नेटो शिखर सम्मेलन के दौरान जारी रणनीतिक परिकल्पना में इसी संदर्भ में पहली बार चीन का ज़िक्र किया गया. हाल ही में विलिनियस में आयोजित शिखर सम्मेलन में जारी संयुक्त विज्ञप्ति तो और आगे बढ़ गई. इसमें चीन की ओर तक़रीबन 14 बार संकेत करते हुए उसपर “अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए रणनीतिक निर्भरताएं तैयार करने” और “ज़ोर-ज़बरदस्ती भरे हथकंडों” के उपयोग का आरोप लगाया गया. विज्ञप्ति में रूस के साथ चीन के गहराते रिश्तों पर भी चिंताएं जताई गईं. दरअसल यूक्रेन पर रूस की ओर से धावा बोले जाने से ठीक पहले चीन और रूस ने ‘बग़ैर हदों वाली’ साझेदारी पर दस्तख़त किए थे.
हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साथ नेटो के जुड़ाव को औपचारिक रूप देने और अन्य देशों के साथ बातचीत को सुविधाजनक बनाने के लिए जापान में नेटो का एक नया संपर्क कार्यालय खोले जाने की योजनाओं पर चर्चा चल रही है. जापान में प्रस्तावित कार्यालय यूक्रेन और जॉर्जिया जैसे देशों में नेटो के दर्ज़नों छोटे दफ़्तरों जैसा होगा. ये कार्यालय विभिन्न क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद करेगा. साथ ही साइबर ख़तरों से लेकर दुष्प्रचार, और आर्थिक ज़ोर-ज़बरदस्ती से लेकर विध्वंसकारी तकनीकों तक के क्षेत्रों पर प्रतिक्रियाओं में तालमेल बिठाएगा. ग़ौरतलब है कि ये तमाम ख़तरे भौगोलिक सीमाओं से परे होते हैं.
क्या ये देश चीन के हाथों का मोहरा बन रहे हैं?
बहरहाल, टोक्यो में एक संपर्क कार्यालय खोले जाने की योजनाओं पर फ्रांस ने कड़ा विरोध जताया है. फ्रांस को चिंता है कि टोक्यो में कार्यालय खोले जाने से चीन और नेटो के बीच तनाव बढ़ सकते हैं. फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने नेटो से उत्तरी अटलांटिक पर ही ध्यान केंद्रित रखने का अनुरोध किया है. उन्होंने चेताया है कि नेटो की पहुंच का विस्तार करना “एक बड़ी भूल” होगी.
इस विरोध का एक सिरा, विदेश नीति के मोर्चे पर मैक्रों की महत्वाकांक्षाओं और फ्रांस द्वारा यूरोप की रणनीतिक स्वायत्तता की परिकल्पना (अपने हितों के आधार पर ख़ुद अपना रास्ता निर्धारित करने की क्षमता और स्वतंत्रता) का पालन किए जाने से जुड़ता है. इसमें कोई शक़ नहीं कि फ्रांस, यूरोपीय रणनीतिक विचार में अग्रणी रहा है; फ्रांस पहला देश था जिसने हिंद-प्रशांत की परिकल्पना के चलन में आने से बहुत पहले, 2018 में ही हिंद-प्रशांत दृष्टिकोण प्रस्तुत कर दिया था. इस क्षेत्र में सबसे सक्रिय उपस्थिति वाली यूरोपीय ताक़त फ्रांस ही है. दरअसल इसे हिंद-प्रशांत के कई भू-क्षेत्रों में रेज़िडेंट पावर का दर्जा हासिल है.
हालांकि, फ्रांस का यही रुतबा उसे अक्सर नेटो गठबंधन के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका के साथ टकराव में डाल देता है. हाल ही में बीजिंग की यात्रा पर गए मैक्रों ने बड़ा विवाद खड़ा कर दिया. दरअसल उन्होंने यूरोप से ताइवान पर अमेरिका-चीन तनाव से दूर रहने और “अमेरिका का अनुयायी” नहीं बनने का अनुरोध कर दिया था. हो सकता है कि मैक्रों हिंद-प्रशांत के मसलों को यूरोपीय संघ (EU) के ढांचे के ज़रिए निपटाना चाहते हैं. दरअसल अमेरिका की अगुवाई वाले नेटो में फ्रांस जूनियर किरदार है, जबकि यूरोपीय संघ में उसका दबदबा क़ायम है. इसके अलावा पश्चिमी यूरोपीय देशों के लिए चीन के साथ आर्थिक हितों का संरक्षण भी अक्सर एक अतिरिक्त कारक होता है, जिसके चलते वो चीन को नाराज़ नहीं करना चाहते. अनुमान के मुताबिक चीन में मैक्रों के विचारों की गूंज सुनाई दी. चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वेंग वेनबिन ने नेटो को “क्षेत्रीय मामलों में दख़लंदाज़ी करने और गुटों में टकराव भड़काने” के ख़िलाफ़ चेतावनी दे डाली.
विश्लेषकों ने हिंद-प्रशांत की सुरक्षा को लेकर नेटो और विशेष रूप से यूरोपीय योगदानों को बाधित कर सकने वाले अन्य कारकों की ओर भी इशारा किया है. इनमें यूरोपीय सैन्य क्षमताओं का अभाव, तात्कालिक रूप से यूरोपीय महाद्वीप पर ध्यान और यूक्रेन का समर्थन, और सैन्य ख़र्चों में बढ़ोतरी लाने की ज़रूरत बरक़रार रहना, शामिल हैं. इनके अलावा चीन की ओर रुख़ को लेकर यूरोपीय संघ के सदस्य देशों में आपसी तौर पर अनेक मतभेद हैं. हंगरी जैसे कुछ देश चीन के साथ घनिष्ठ संबंधों का लक्ष्य रखते हैं.
चूंकि नेटो की निर्णय प्रक्रिया आम सहमति पर आधारित होती है, लिहाज़ा एक देश का विरोध, प्रस्ताव को बाधित करने के लिए पर्याप्त है. यही वजह है कि विलिनियस में जारी अंतिम साझा बयान में टोक्यो के प्रस्तावित संपर्क कार्यालय का कोई ज़िक्र नहीं था.
सशक्त होती साझेदारियां
कुछ कारक जापान की राजनयिक प्रतिबद्धताओं की बुनियाद रहे हैं. इनमें नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के सम्मान के आधार पर साझेदारियों में मज़बूती लाना, सुरक्षा मज़बूत करना और साझा वैश्विक चुनौतियों का समाधान करना, शामिल हैं. पूर्वी यूरोप में रूस और हिंद-प्रशांत में चीन की आक्रामक कार्रवाइयों ने क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता के बारे में चिंताएं बढ़ा दी हैं. इस संदर्भ में नेटो के साथ जुड़ाव से जापान को अपनी बचावकारी शक्तियों को बढ़ाने का अवसर मिलता है. सामूहिक रक्षा प्रतिबद्धता वाले नेटो समूह के साथ जुड़ने से जापान को फ़ायदा होना तय है. हालांकि जापान, नेटो के सामूहिक रक्षा सिद्धांत (आर्टिकल 5) के दायरे में नहीं आता है. ये सिद्धांत, सदस्य देशों के बीच पारस्परिक रक्षा की गारंटी देता है. बहरहाल, सामूहिक रक्षा को लेकर नेटो गठबंधन की प्रतिबद्धता हिंद-प्रशांत समेत तमाम क्षेत्रों में स्थिरता और प्रतिरोध बनाए रखने में मदद करती है.
जापान, स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत (FOIP) क्षेत्र का मुखर समर्थक रहा है, जो नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की सुरक्षा से जुड़े नेटो के लक्ष्य के अनुरूप है. विलिनियस की बैठक, जापान को अपने FOIP दृष्टिकोण के लिए समर्थन जुटाने और हिंद-प्रशांत में स्थिरता सुनिश्चित करने को लेकर समान विचारधारा वाले देशों के साथ क़वायदों का तालमेल बिठाने के लिए ताज़ा अवसर देते हैं. पिछले दो वर्षों में जापान और नेटो के बीच सहयोग को लेकर लगातार संपर्क होते रहे हैं. इनमें रक्षा, उभरती टेक्नोलॉजी, मानवतावादी मदद और आपदा राहत, इंटर-ऑपरेबिलिटी और समुद्री सुरक्षा जैसे मसले शामिल रहे हैं. जापान ने तीसरे देशों (जैसे अफ़ग़ानिस्तान और बाल्कन देश) में भी नेटो के अभियानों में अहम योगदान दिया है. ये दर्शाते हैं कि एशिया में नेटो कार्यालय के विचार पर चीन की आपत्तियों के बावजूद जापान, नेटो के लिए ना तो नया और ना ही सिर्फ़ सांकेतिक भागीदार है. दरअसल एशियाई संपर्क कार्यालय से जुड़ी बातचीत का सिरा 2007 तक जाता है. उस साल जापान के दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे ने ब्रुसेल्स स्थित नेटो मुख्यालय का दौरा किया था. 2018 में जापान ने ब्रुसेल्स में नेटो कार्यालय स्थापित किया. इस साल की शुरुआत में टोक्यो की यात्रा पर पहुंचे नेटो महासचिव स्टोलटेनबर्ग ने दो टूक कहा था कि “नेटो का कोई भी भागीदार, जापान से ज़्यादा नज़दीक या अधिक सक्षम नहीं है.”
हिंद-प्रशांत में चीन को परे कर की गई अधिकांश साझेदारियों ने किसी न किसी मोड़ पर चीन को नाराज़ किया है. चीन से कितनी दूरी बनानी है, इसको लेकर यूरोप के भीतर मतभेदों के बावजूद जापान और नेटो के इरादे स्पष्ट हैं. दोनों ही हिंद-प्रशांत के साथ साझेदारी को मज़बूत बनाना चाहते हैं. इनमें से अधिकांश साझेदारियां कार्य-आधारित सहयोग पर ध्यान केंद्रित करती हैं, जो आर्थिक, सामाजिक, वैज्ञानिक, डिजिटल और पर्यावरणीय चिंताओं तक फैले हुए हैं. हालांकि ये तमाम क़वायद भू-राजनीतिक नींव पर ही टिकी रहती हैं. इन साझेदारियों की गहराई सुनिश्चित करने वाला ये दृष्टिकोण नेटो-जापान सहयोग के लिहाज़ से भी अनुकूल है.
इससे भी व्यापक रूप से, दोनों समूहों के देशों के बीच द्विपक्षीय सुरक्षा सहयोग और उच्च-स्तरीय विचार-विमर्श पहले से ही दमदार रहे हैं. एक और अहम बात ये है कि नेटो और IP4 समूह अलग-अलग देशों के हिसाब से तैयार भागीदारी कार्यक्रमों के ज़रिए अपने जुड़ावों को और गहरा कर रहे हैं. इस कड़ी में साझा सैन्य अभ्यासों के साथ-साथ चीन की ओर से किए जाने वाले दुष्प्रचार और साइबर ख़तरों से निपटने के लिए ज़रूरी आदान-प्रदान की भी योजना है. फ्रांस, जर्मनी और यूनाइटेड किंगडम जैसे अनेक यूरोपीय सदस्यों ने प्रतिरोध को बढ़ावा देने और नियम-आधारित व्यवस्था की रक्षा के लिए हिंद-प्रशांत में युद्धपोत तैनात किए हैं. इसके अलावा, IP4 ने प्रतिबंधों और मानवतावादी सहायता के ज़रिए यूक्रेन को मज़बूती से समर्थन दिया है. टोक्यो में नेटो संपर्क कार्यालय की स्थापना से चाहे जो भी फ़ायदे हों, सच्चाई ये है कि इस योजना के फ़िलहाल ठंडे बस्ते में चले जाने के बावजूद IP4 के साथ नेटो सहयोग के बरक़रार रहने और उसमें और गहराई आने की भरपूर संभावना है.
शायरी मल्होत्रा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में एसोसिएट फेलो हैं.
प्रत्नाश्री बासु ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी में एसोसिएट फेलो हैं.
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