Published on May 27, 2024 Updated 0 Hours ago

भारत और म्यांमार के बीच सीमा की जटिल भौगोलिक स्थिति और दोनों देशों के लोगों के बीच साझा जातीय संबंध, सीमा की बाड़ेबंदी की पहल को और पेचीदा बना देते हैं.

भारत और म्यांमार की सीमा पर बाड़ेबंदी की पहल: ज़रूरतों और चुनौतियों का आकलन क्यों है ज़रूरी?

प्रस्तावना

 

मीडिया में हाल के दिनों में आयी ख़बरों के मुताबिक़ भारत, म्यांमार के साथ लगने वाली अपनी लगभग 1610 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा पर 3.7 अरब डॉलर की लागत से बाड़ लगाने जा रहा है. इससे पहले भारत सरकार ने म्यांमार के साथ स्वतंत्र रूप से आवाजाही की व्यवस्था वाले समझौते (FMR) से अलग होने का एलान किया था. इस समझौते के तहत दोनों देशों के लोग सीमा के आर-पार 16 किलोमीटर अंदर तक बिना वीज़ा के आ और जा सकते थे. FMR के ख़त्म होने और छानबीन की सैनिक चौकियों में सख़्ती से जांच करने के उपायों पर विचार किया जा रहा है, ताकि उत्तरी पूर्वी क्षेत्र (NER) में लगातार बनी हुई चुनौतियों जैसे कि ड्रग तस्करी और म्यांमार से शरणार्थियों की आमद को रोका जा सके. हालांकि, इस फ़ैसले की संभावित कमज़ोरियों को स्वीकार करना भी ज़रूरी है. भारत और म्यांमार के बीच जो सीमा है, उसकी भौगोलिक बनावट काफ़ी जटिल है. इसके अलावा, दोनों देशों के नागरिकों और समुदायों के बीच साझा जातीय संबंध रहे हैं. इन कारणों से इस फ़ैसले को प्रभावी तरीक़े से लागू कर पाना काफ़ी जटिल हो जाता है. इसीलिए, भारत को चाहिए कि इस नीति को लागू करने से पहले वो पूर्वोत्तर (NER) के राज्यों की सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक चुनौतियों पर विचार कर ले.

 भारत और म्यांमार के बीच जो सीमा है, उसकी भौगोलिक बनावट काफ़ी जटिल है. इसके अलावा, दोनों देशों के नागरिकों और समुदायों के बीच साझा जातीय संबंध रहे हैं. इन कारणों से इस फ़ैसले को प्रभावी तरीक़े से लागू कर पाना काफ़ी जटिल हो जाता है.

सीमा पर बाड़ लगाना क्यों आवश्यक है?

 

1970 के दशक से ही भारत का पूर्वोत्तर इलाक़ा ड्रग तस्करी की समस्या से जूझ रहा है. इसकी मुख्य वजह तो ड्रग तस्करी के उस सुनहरे त्रिकोण से नज़दीकी है, जिसमें उत्तरी पूर्वी म्यांमार, उत्तरी लाओ और उत्तरी पश्चिमी थाईलैंड आते हैं. इस पूरे इलाक़े को दुनिया में ड्रग तस्करी के सबसे बड़े केंद्र के तौर पर जाना जाता है. भौगोलिक रूप से इस सुनहरे त्रिकोण से नज़दीक होने के अलावा, भारत और म्यांमार के बीच सीमा पर बाड़ और चौकसी न होने की वजह से भारत में काफ़ी तादाद में ड्रग्स की आमद होती है, जो भारत के पूर्वोत्तर राज्यों की सामाजिक आर्थिक स्थिति पर काफ़ी असर डालती है. 2023 में म्यांमार दुनिया में अफ़ीम का सबसे बड़ा उत्पादक देश बन गया था. इसकी अवैध खेती का दायरा 99 हज़ार एकड़ से बढ़कर एक लाख 16 हज़ार एकड़ में फैल गया था. इससे पूर्वोत्तर क्षेत्र (NER) में ड्रग्स की तस्करी का ख़तरा और बढ़ गया. आधिकारिक रिपोर्टों के मुताबिक़ वित्त वर्ष 2022-23 में अकेले पूर्वोत्तर के राज्यों में ही दो हज़ार करोड़ रुपए (लगभग 26.7 करोड़ डॉलर) से ज़्यादा की ड्रग्स पकड़ी गई थी. मिसाल के तौर पर, 2023 में अकेले असम राज्य में ही 718 करोड़ रुपए (8.6 करोड़ डॉलर) की ड्रग्स ज़ब्त की गई थी और 4,700 ड्रग तस्करों को धर लिया गया था. 

 

इसी तरह मणिपुर की पुलिस ने जुलाई 2022 से जुलाई 2023 के बीच 1610 करोड़ रुपए (19.3 करोड़ डॉलर) की ड्रग्स पकड़ी थी. जानकारों का कहना है कि भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों में तस्करी करके जो ड्रग्स लाई जाती है, उसमें से 90 प्रतिशत तो अकेले म्यांमार से आती है. 2024 का साल दिखाता है कि ये चिंताजनक ट्रेंड अभी भी जारी है, जिसका सबूत हम उत्तर पूर्व के कई राज्यों में बरामद की गई ड्रग्स की खेप के रूप में देख सकते हैं. मीडिया में आई अलग अलग ख़बरों का मूल्यांकन करने पर पता चलता है कि असम राज्य में 2024 में 454 करोड़ रुपए (5.44 करोड़ डॉलर) की ड्रग्स बरामद की गई है. जिन ड्रग्स की तस्करी की जाती है, उनमें मुख्य रूप से हेरोइन, YABA की गोलियां, गांजा और ब्राउन शुगर शामिल हैं. ये ड्रग्स भारत के पूर्वोत्तर राज्यों से तस्करी करके लाई जाती हैं, जिन्हें मिज़ोरम और मणिपुर के रास्ते लाकर भारत के अन्य राज्यों में भेजा जाता है. 

 ड्रग तस्करी को बढ़ावा देने के पीछे एक और कारण, म्यांमार से भागकर भारत और विशेष रूप से मिज़ोरम और मणिपुर में पनाह लेने वाले शरणार्थियों की बाढ़ है. 2021 में म्यांमार में तख़्तापलट के बाद तो मणिपुर में म्यांमार से आए शरणार्थियों की तादाद में काफ़ी बढ़ोत्तरी हुई है.

ड्रग तस्करी को बढ़ावा देने के पीछे एक और कारण, म्यांमार से भागकर भारत और विशेष रूप से मिज़ोरम और मणिपुर में पनाह लेने वाले शरणार्थियों की बाढ़ है. 2021 में म्यांमार में तख़्तापलट के बाद तो मणिपुर में म्यांमार से आए शरणार्थियों की तादाद में काफ़ी बढ़ोत्तरी हुई है. मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह और राज्य के बहुसंख्यक मैतेई समुदाय राज्य में चल रहे मौजूदा हिंसक संघर्ष के पीछे शरणार्थियों की इस बाढ़ को एक बड़ा कारण बताते रहे हैं. वैसे तो मिज़ोरम म्यांमार से आने वाले इन शरणार्थियों का जातीय समानता की वजह से स्वागत करता है. पर, इन शरणार्थियों को मिज़ोरम के लोग लंबे वक़्त तक स्वीकार करेंगे, इस पर सवालिया निशान लगा हुआ है. चारों तरफ़ ज़मीन से घिरा होने और मुख्य रूप से कृषि आधारित अर्थव्यवस्था होने और कम विकसित राज्य के तौर पर आने वाले समय में स्थानीय मिज़ो नागरिकों और म्यांमार से आ रहे शरणार्थियों के बीच ज़रूरी संसाधनों को लेकर प्रतिद्वंदिता बढ़ने की आशंका है. इन सबसे बड़ी समस्या ये है कि म्यांमार के सत्ताधारी सैन्य शासकों तत्मादाव और विद्रोही संगठनों के बीच चल रहे संघर्ष की वजह से हिंसा के बचने के लिए बहुत से और शरणार्थी भारत आ सकते हैं. इन चिंताओं से पता चलता है कि भारत और म्यांमार के बीच खुली सीमा की वजह से पैदा हो रही समस्याओं और अप्रवासियों की आमद से निपटने के लिए सख़्त क़दम उठाने आवश्यक हैं.

 

क्या है चुनौतियां?

 

भारत सरकार द्वारा स्वतंत्र रूप से आवाजाही की व्यवस्था (FMR) रद्द कर देने और सीमा पर बाड़ लगाने के प्रस्ताव पर पूर्वोत्तर राज्यों के कई बड़े नेताओं और संस्थाओं ने प्रतिक्रिया दी है. असम, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर के मुख्यमंत्रियों ने केंद्र सरकार के इस फ़ैसले को अपना समर्थन देते हुए ये तर्क दिया है कि सीमा पार से उग्रवाद पर क़ाबू पाने, अवैध शरणार्थियों की घुसपैठ पर रोक लगाने और म्यांमार के रास्ते ड्रग्स की तस्करी रोकने के लिए ये क़दम ज़रूरी है. इसके उलट, नगालैंड में बीजेपी की सरकार होने के बावजूद वहां की सरकार ने इस फ़ैसले का विरोध किया है. मिज़ोरम की विधानसभा ने तो केंद्र सरकार के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ दो महीने पहले एक प्रस्ताव भी पारित किया है. इसमें जटिलता की एक परत, नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (इसाक मुइवाह) के विरोध से भी जुड़ गई है. NSCN-IM नगालैंड का एक प्रमुख विद्रोही संगठन है, जो इस वक़्त केंद्र सरकार के साथ युद्धविराम का पालन कर रहा है. उनका तर्क है कि सीमा पर बाड़ लगाने से भारत और म्यांमार की सीमा के भीतर रहने वाले नगा समुदायों के ऐतिहासिक जातीय रिश्तों में ख़लल पड़ेगा

 NSCN-IM का ये रुख़ नगाओं के एकीकृत देश ‘नगालिम’ की उनकी आकांक्षाओं को रेखांकित करता है, जिसके दायरे में भारत और म्यांमार दोनों के इलाक़े आएंगे. 

NSCN-IM का ये रुख़ नगाओं के एकीकृत देश ‘नगालिम’ की उनकी आकांक्षाओं को रेखांकित करता है, जिसके दायरे में भारत और म्यांमार दोनों के इलाक़े आएंगे. मणिपुर, मिज़ोरम और नगालैंड जैसे राज्यों में पूर्वोत्तर के कई आदिवासी संगठनों ने भी केंद्र सरकार के इस फ़ैसले का कड़ा विरोध किया है, जिससे पता चलता है कि वो सीमा के औपनिवेशिक रेखांकन को सिरे से ख़ारिज करते हैं. इस तरह, बाड़ लगाने से इन संगठनों और समुदायों की क्षेत्रीय आकांक्षाओं में और उभार आने का डर है, जिससे केंद्र सरकार के साथ उनके संबंध ख़राब होंगे और भारत से दूरी भी बढ़ेगी. अगर सरकार और इन समुदायों के बीच मध्यस्थता नहीं की जाती है, तो इससे मौजूदा तनाव के और भी बढ़ जाने की आशंका है.

 

भारत और म्यांमार की सीमा के पास इन आदिवासी समुदायों की अच्छी ख़ासी आबादी होने की वजह से उनके बीच आपसी संबंध रेखांकित होता है. जनसंख्या की ये सच्चाई इशारा करती है कि सीमा पर बाड़ लगाने और FMR को रद्द करने से सीमा के दोनों तरफ़ रहने वालों की शिकायतें बढ़ेंगी. यही नहीं, केंद्र सरकार के फ़ैसले से दोनों देशों के लोगों के बीच अभी जो सीधा संबंध है, उसमें भी बाधा आएगी. जबकि आम लोगों के बीच ये रिश्ते, भारत द्वारा अपनी एक्ट ईस्ट नीति के ज़रिए दक्षिणी पूर्वी एशिया के देशों से संबंध मज़बूत बनाने की महत्वाकांक्षा के लिहाज़ से काफ़ी अहम हैं. भारत और म्यांमार के बीच सीमा की भौगोलिक जटिलताएं सीमा से जुड़ी इन पहलों को लागू करने की राह में बड़ी चुनौतियां खड़ी करने वाली हैं. दोनों देशों की सीमा, दक्षिण में छोटी छोटी पहाड़ियों से लेकर उत्तर में ऊबड़-खाबड़ घाटियों और ऊंची चोटियों से होकर गुज़रती है. 

 

लॉजिस्टिक्स की ये मुश्किलें, भारत की पहल को और जटिल बना देती हैं. यही नहीं, इससे पहले सीमा से जुड़ी परियोजनाओं की पहलें भी ज़्यादातर अकुशल साबित हुई हैं; मिसाल के तौर पर मणिपुर और म्यांमार के बीच केवल 10 किलोमीटर लंबी सीमा पर बाड़ लगाने में एक दशक लग गए थे. इसी से म्यांमार से लगने वाली सीमा पर बाड़ लगाने की परियोजना से जुड़ी परियोजना की लॉजिस्टिक्स वाली चुनौतियां रेखांकित होती हैं, जो भारत सरकार की पहल में जटिलता की एक और परत जोड़ देती है.

 केंद्र सरकार के फ़ैसले से पूर्वोत्तर के इलाक़ों में क्षेत्रीय आकांक्षाओं में उभार आ सकता है. इससे भारत की एक्ट ईस्ट नीति में भी बाधा आने का डर है.

निष्कर्ष

 

भारत का म्यांमार से लगने वाली अपनी सीमा पर बाड़ लगाने और स्वतंत्र रूप से आवाजाही का समझौता (FMR) रद्द करने से एक जटिल परिस्थिति का निर्माण हुआ है, जिसके नकारात्मक नतीजे निकल सकते हैं. इसमें कोई शक नहीं कि खुली सीमा ने अवैध गतिविधियों को बढ़ावा दिया है, जिससे पूर्वोत्तर के राज्यों की नाज़ुक सामाजिक आर्थिक स्थिरता पर बुरा असर पड़ा है. हालांकि, भारत और म्यांमार की सीमा की जटिल भौगोलिक स्थिति, सीमा के आर-पार रहने वाले समुदायों के बीच साझा ऐतिहासिक संबंधों से इस फ़ैसले को लागू करने में पेचीदगियां खड़ी होती हैं. पूर्वोत्तर इलाक़े के अहम राजनेताओं, उग्रवादी समूहों और स्थानीय समुदायों का विरोध, मौजूदा तनावों को और बढ़ा सकता है. यही नहीं, केंद्र सरकार के फ़ैसले से पूर्वोत्तर के इलाक़ों में क्षेत्रीय आकांक्षाओं में उभार आ सकता है. इससे भारत की एक्ट ईस्ट नीति में भी बाधा आने का डर है. म्यांमार से लगने वाली सीमा को लेकर भारत को एक संयमित तरीक़ा अपनाने की ज़रूरत है, जिसमें सुरक्षा संबंधी चिंताएं दूर करने और क्षेत्र की जटिलताओं के बीच संतुलन बनाया जा सके

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Author

Ophelia Yumlembam

Ophelia Yumlembam

Ophelia Yumlembam is a Research Assistant at the Dept. of Political Science, University of Delhi (DU). She graduated with an M.A. in Political Science from ...

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