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खाड़ी क्षेत्र में अपने रणनीतिक हितों की रक्षा के लिए भारत अपनी प्रतिरक्षा पहुंच का विस्तार कर रहा है.
सूडान में पिछले दो हफ्तों में हुए राजनीतिक पतन ने राजधानी खार्तूम में फंसे नागरिकों को एक बार फिर से निकालने के लिए भारतीय सशस्त्र बलों कोएकजुट होकर कार्य करने के लिए लामबंद कर दिया. इसकी वजह है कि वहां हिंसा सड़कों पर फैल गई थी. भारतीय वायु सेना और भारतीय नौसेना दोनोंको सऊदी अरब में जेद्दाह के अलावा सीधे सूडान के तट पर तैनात किया गया था, क्योंकि नागरिकों की निकासी की कोशिशों में तेज़ी आई थी.
देखा जाए, तो सूडान संकट कोई पहला संकट नहीं है, जहां युद्ध ग्रस्त इलाक़ों से नागरिकों की सकुशल निकासी के लिए सशस्त्र बलों की महत्वपूर्णभूमिका सामने आई है. युद्धग्रस्त क्षेत्रों से नागरिकों की निकासी के लिए सैन्य बलों का उपयोग ऐसे अभियानों की 1990 के दशक की शुरुआत में पहलेखाड़ी युद्ध के समय से लेकर वर्ष 2015 में यमन में ऑपरेशन राहत तक ख़ासियत रही है. विस्तारित मिडिल ईस्ट (पश्चिम एशिया) रीजन में 7.5 मिलियनसे अधिक भारतीय रह रहे हैं और काम कर रहे हैं, ज़ाहिर है कि कई संप्रभु देशों में फैली इस एक छोटे से देश जैसी आबादी को प्रबंधित करने की कोशिशकरना कोई आसान काम नहीं है.
मिडिल ईस्ट एक ऐसी जगह है जहां कूटनीति के साथ-साथ सैन्य सहयोग का भी निरंतर विकास हो रहा है क्योंकि यह क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था, सुरक्षा और प्रवासी भारतीयों के लिए एक लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण हो गया है.
मिडिल ईस्ट एक ऐसी जगह है जहां कूटनीति के साथ-साथ सैन्य सहयोग का भी निरंतर विकास हो रहा है क्योंकि यह क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था, सुरक्षाऔर प्रवासी भारतीयों के लिए एक लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण हो गया है. सऊदी अरब और मिस्र में भारतीय वायु सेना के बार-बार होने वाले दौरों सेलेकर ओमान और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) में पनडुब्बियों सहित भारतीय नौसेना के युद्धपोतों के पोर्ट कॉल यानी उनके संचालन के लिए ईंधन कीआपूर्ति और अन्य ज़रूरतों के लिए बीच में स्टॉपेज बनाने तक ने इस पूरे इलाक़े में, विशेष तौर पर अरब देशों में भारत के अधिक रणनीतिक जुड़ाव केबढ़ते इरादों को प्रकट किया है.
उल्लेखनीय है कि तेज़ी के साथ विकसित होने वाली भू-राजनीतिक परिस्थितियों के लिए सैन्य जुड़ाव कई स्तरों पर आसान पहुंच प्रदान करता है. यहख़ासतौर पर बेहद अहम है, क्योंकि एक हिसाब से यह पूरा इलाक़ा मिडिल-पावर और क्षेत्रीय ताक़त हासिल करने के लिए होने वाले तमाम विवादों केसाथ ही महाशक्ति की प्रतिस्पर्धा के भी सबसे सक्रिय मंचों में से एक बन गया है. ज़ाहिर है कि इससे राजनीतिक और सैन्य अस्थिरिता बढ़ने की संभावनाभी बलवती हो जाती है. इस क्षेत्र में पड़ने वाला होर्मुज़ जलडमरूमध्य, वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा के लिए बेहद महत्वपूर्ण जल मार्गों में से एक है. होमुर्ज़जलडमरूमध्य न केवल इस इलाक़े के देशों के लिए, बल्कि भारत जैसे अन्य देशों के लिए भी समग्र रणनीतिक सोच का एक अहम हिस्सा रहा है, क्योंकियह संकरा जलमार्ग बड़ी मात्रा में वैश्विक तेल आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए बहुत अहम है. यह जलडमरूमध्य अंतर्राष्ट्रीय समुद्र में नहीं पड़ता है, बल्कियह ईरान और ओमान के बीच साझा किए जाने वाले पानी में मौज़ूद है. लाल सागर में इसका विकल्प, यानी बाब-अल-मंदब जलडमरूमध्य भी विवादोंके बीच घिरा हुआ है, क्यों कि सऊदी अरब और ईरान अप्रत्यक्ष रूप से एक दूसरे के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं और इसके साथ ही यमन संकट बढ़ गया है.
जब इस क्षेत्र में प्रवासी भारतीयों के हितों के साथ-साथ अपने रणनीतिक हितों की रक्षा करने की बात सामने आती है, तो भारत के पास अतीत से सीखनेके लिए बहुत कुछ है. भारत इस क्षेत्र में, ख़ासकर ओमान की खाड़ी में कई बार क्रॉसफायर में फंस चुका है. अक्टूबर 1984 में भारतीय तेल टैंकर जग परीकुवैत जा रहा था, इसका स्वामित्व मुंबई (तब बॉम्बे कहा जाता था) की ग्रेट ईस्टर्न शिपिंग के पास था, इस तेल टैंकर पर ईरान-इराक़ युद्ध छिड़ जाने कीवजह से कथित रूप से ईरानी लड़ाकू विमानों द्वारा हमला किया गया था. हालांकि तेहरान ने इस तरह के दावों का खंडन किया था और फिर बाद मेंसद्दाम हुसैन के शासन वाले इराक़ को इस महत्वपूर्ण जलमार्ग के विरुद्ध लगातार आक्रामकता के लिए दोषी ठहराया गया. जनवरी 1985 में एक बारफिर से भारतीय तेल टैंकर कंचनजंगा पर ईरानी जेट द्वारा कथित तौर पर हमला किया गया था और उसके ब्रिज को क्षतिग्रस्त कर दिया गया था, क्योंकियह तेल टैंकर सऊदी अरब से 1.4 मिलियन बैरल से अधिक तेल लेकर जा रहा था.
जब इस क्षेत्र में प्रवासी भारतीयों के हितों के साथ-साथ अपने रणनीतिक हितों की रक्षा करने की बात सामने आती है, तो भारत के पास अतीत से सीखने के लिए बहुत कुछ है. भारत इस क्षेत्र में, ख़ासकर ओमान की खाड़ी में कई बार क्रॉसफायर में फंस चुका है.
तेज़ी के साथ आगे के वर्षों की ओर रुख करें और वर्ष 2019 में आएं, तो इस क्षेत्र में एक बार फिर से इसी प्रकार की स्थिति पैदा हो गई थी. हालांकि, 1980 के दशक के उलट, जब भारत का सामर्थ्य और क्षमताएं बेहद सीमित थी, 2019 में भारतीय नौसेना को उपमहाद्वीप में महत्त्वपूर्ण क्रूड ऑयल कीआपूर्ति करने वाले तेल टैंकरों की सुरक्षा का दायित्व सौंपा गया था. उस समय ऑपरेशन संकल्प के अंतर्गत रोज़ाना 16 भारतीय जहाजों को इंडियन नेवीके युद्धपोतों ने सुरक्षा प्रदान की थी, क्योंकि यह जलमार्ग एक बार फिर युद्ध के मैदान में तब्दील हो गया था. इस बार संयुक्त राज्य अमेरिका (US) औरईरान के बीच तनाव बढ़ने की वजह से ऐसे हालात पैदा हुए थे. तब भारतीय युद्धपोत आईएनएस तलवार ने होर्मुज़ जलडमरूमध्य और ओमान की खाड़ीमें भारतीय तेल टैंकरों की पेट्रोलिंग में मुख्य भूमिका निभाई थी और इस क्षेत्र में भारतीय सुरक्षा हितों एवं मर्चेंट शिप्स को चलाने वाले भारतीयकर्मचारियों दोनों की ही सुरक्षा सुनिश्चित की थी. यह मिशन अब अपने ऑपरेशन के तीसरे वर्ष में है और यह वर्ष 2008 से अफ्रीका के पूर्वी तट और अदनकी खाड़ी में चल रहे भारत के एंटी-पायरेसी ऑपरेशन्स का विस्तार है. देखा जाए, तो पिछले दो दशकों के दरम्यान भारत ने अमेरिका, विशेष रूप सेबहरीन में तैनात अमेरिकी नेवी की पांचवीं फ्लीट अर्थात जहाजों के बेड़े जैसे भागीदारों के साथ स्थिर सहयोग के माध्यम से हिंद महासागर में फैले अरबसागर की सुरक्षा में एक अभूतपूर्व हिस्सेदारी का प्रदर्शन किया है.
उपरोक्त काबिलियत हासिल करने के लिए, नई दिल्ली द्वारा कूटनीति हेतु सशस्त्र बलों का एक क़ीमती उपकरण के रूप में उपयोग करने का यह विशेषतरीक़ा कहीं न कहीं बेहद कारगर साबित हुआ है. इस क्षेत्र में भारत की सैन्य मौज़ूदगी एक अहम संकेत की तरह है और उसकी गंभीरता को भी सामनेलाती है, साथ ही यह भी ज़ाहिर करती है कि एक भागीदार देश अपने रणनीतिक संबंधों को विकसित करने में कितनी संजीदगी दिखा रहा है. भारतीयनौसेना ने अरब देशों, ईरान और इजरायल में समान रूप से पोर्ट काल्स का संचालन किया है, वो भी सभी हितधारकों के साथ संबंधों और सामरिकतटस्थता, दोनों को बरक़रार रखते हुए. इसका एक मकसद बड़े क्षेत्रीय संघर्षों के मामले में ऑफ-रैंप विकसित करना है, यानी छोटे-छोटे क़दमों के ज़रिएबड़े उद्देश्य को हासिल करना है.
उपरोक्त मकसद के लिए ओमान, भारत का एक प्रमुख साझेदार रहा है. उल्लेखनीय है कि वर्षों से ओमान की हुकूमत ने अपने तटस्थता के स्तर कोबरक़रार रखने के लिए खुद को एक लिहाज़ से मिडिल ईस्ट के स्विट्जरलैंड के रूप में स्थापित करने की कोशिश की है. जबकि आज नई दिल्ली इस क्षेत्रमें कई सैन्य अभ्यासों का हिस्सा है. इनमें से कई युद्ध अभ्यास पिछले एक दशक में सामने आए हैं. भारत और ओमान के बीच द्विपक्षीय सैन्य अभ्यासपहली बार वर्ष 1993 में प्रारंभ हुआ था. हाल-फिलहाल में ‘नसीम अल बहर’ युद्धाभ्यास नवंबर 2022 में ओमान के तट पर हुआ था. यह भारतीय नौसेनाऔर ओमान की रॉयल नेवी के बीच द्विपक्षीय युद्धाभ्यास का 30वां वर्ष था. भारतीय नौसेना के युद्धपोतों के लिए रखरखाव, मरम्मत एवं ईंधन की आपूर्तिहेतु इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण के इरादे से ओमान के समुद्री तट पर स्थित डुक्म पोर्ट पर विभिन्न सुविधाओं का विकास भी अधिक संस्थागत सुविधाओं कोसंचालित करने के लिए नई दिल्ली के मंसूबों को सामने लाता है. इस बंदरगाह पर विकसित की गई सुविधाएं, एक हिसाब से पारंपरिक ऑफशोर सैन्यअड्डे की स्थापना के शुरुआती चरण के अंतर्गत संचालित होंगी.
इस क्षेत्र में भारत की सैन्य मौज़ूदगी एक अहम संकेत की तरह है और उसकी गंभीरता को भी सामने लाती है, साथ ही यह भी ज़ाहिर करती है कि एक भागीदार देश अपने रणनीतिक संबंधों को विकसित करने में कितनी संजीदगी दिखा रहा है.
इस बीच, चीन और अमेरिका के बीच होने वाली प्रतिस्पर्धा पहले से ही इस क्षेत्र में अपनी भूमिका निभा रही है. यहां हर तरफ इस तरह की चर्चा है किचीन मिडिल ईस्ट में बेपरवाह और उदासीन अमेरिका द्वारा छोड़े गए पावर वैक्यूम यानी खाली जगह को भरने की कोशिश कर रहा है. सच्चाई यह है किसऊदी अरब, यूएई और यहां तक कि ईरान जैसी क्षेत्रीय ताक़तें बीजिंग को आमंत्रित कर रही हैं. इन देशों का चीन को तवज्जो देने का मकसद अमेरिकीसिक्योरिटी अंबरेला की पारंपरिक बनावटों और सैन्य सहयोग के लिए उसकी विभिन्न मांगों से अपना बचाव करना है. इतना ही नहीं इन देशों का मकसदमानवाधिकारों जैसे मुद्दों का प्रबंधन करने के साथ ही यह भी संदेश देना है कि चीन के रूप में अब उनके पास विकल्प मौज़ूद है.
जहां तक भारत की बात है, तो इस इलाक़े में उसकी सैन्य उपस्थिति या फिर कहा जाए कि इस इलाक़े में उसके द्वारा जो भी सैन्य गतिविधियां संचालितकी जा रही हैं, वे कहीं न कहीं धीरे-धीरे अमेरिकी नेतृत्व वाले सुरक्षा पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत करने वाली हैं. इसके सकारात्मक और नकारात्मकदोनों ही पहलू हैं. भारत, मई 2022 में कंबाइंड मिलिट्री फोर्सेस-बहरीन (CMF-B) नाम के अमेरिका समर्थित काउंटर टेरर गठबंधन के एक सहयोगीसदस्य के रूप में शामिल हुआ है. इस गठबंधन को अंतर्राष्ट्रीय समुद्री क्षेत्रों की रक्षा करने का काम सौंपा गया था. भारत के CMF-B में शामिल होने काअधिक महत्वपूर्ण पहलू यह था कि भारत-यूएस 2+2 डायलॉग में चर्चा के बाद टोक्यो में दूसरी क्वाड समिट के दौरान इसका ऐलान किया गया था. ज़ाहिर है कि यह दोनों ही तंत्र सीधे तौर पर भारत की मिडिल ईस्ट नीतियों के साथ किसी भी लिहाज़ से मेल नहीं खाते हैं, लेकिन ये भारत की समग्ररणनीतिक सोच और शायद उससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण पुनर्स्थापना के विचार के अनुरूप हैं.
Kabir Taneja ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज प्रोग्राम में फेलो हैं.
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Kabir Taneja is a Deputy Director and Fellow, Middle East, with the Strategic Studies programme. His research focuses on India’s relations with the Middle East ...
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